जब अपनी सहेली के साथ ,'बरसात का एक दिन' गुजारा था...और उन यादों को यहाँ पोस्ट में बाँटा भी था, तभी उस जैसे ही गुजरे एक रोचक दिन की याद हो आई थी, अगली पोस्ट ही लिखने की सोची थी पर बीच में ये फिल्म उड़ान, राखी,ओणम आ गयी....अभी भी गणपति की तैयारियों में व्यस्त हूँ फिर भी कुछ ना लिखूं तो खालीपन सा महसूस होता है (और कहीं आपलोग इस ब्लॉग का रुख ही ना भूल जाएँ... ये डर भी है :) )
दो,तीन साल पहले की बात है...दोनों बेटों को स्कूल की तरफ से पिकनिक पर जाना था. उनकी तैयारियाँ चल रही थीं. पतिदेव घर आ चुके थे और अपने प्रिय सोफे पर विराजमान हो टी.वी. पर नज़रें जमाये बैठे थे. उनकी नज़रों का अनुसरण करते हुए देखा तो पाया उनकी नज़रें 'ऐश्वर्या राय' पर जमी हैं. 'जोधा अकबर' का प्रोमो चल रहा था. मैने मौके का फायदा उठाया और पूछ डाला,"ये फिल्म देखनी है?"
"हूँ"
अब पति लोगों की इस 'हूँ' का अर्थ कुछ भी हो सकता है. या तो ये, कि 'बात सुन ली गयी है' या कि 'सोचेंगे' या 'हाँ' भी हो सकता है. तभी बेटा कुछ पूछने आ गया और मैं भी उसके साथ चली गयी.फिर सब कुछ भूल गयी.
दूसरे दिन दोनों बेटे सुबह साढ़े छः बजे ही चले गए और शाम छः के पहले नहीं आनेवाले थे. पूरे दिन का समय था मेरे पास. उन दिनों ब्लॉग्गिंग भी नहीं करती थी वरना कहानी की एकाध किस्तें ही लिख डालती. ग्यारह बजे के आस-पास एक सहेली का फोन आया जो कुछ महीने पहले काफी दूर शिफ्ट हो गयी थी. उसके बच्चे भी स्कूल पिकनिक पर गए थे.(जनवरी, फ़रवरी यहाँ पिकनिक का मौसम होता है ). हम दोनों काफी दिनों से नहीं मिले थे. दोनों का एक दूसरे को अपने घर बुलाने का सिलसिला शुरू हो गया. फिर हमने सोचा, एक चहारदीवारी से निकल दूसरी में जाने का कोई मतलब नहीं है. और अचानक उसने पूछा, "जोधा अकबर देखने चलें? मुझे यहाँ अभी कम्पनी नहीं मिल रही." और मैं तैयार. जल्दी से अखबार निकाले गए और दोनों के घर से जो थियेटर ,पास था. वहाँ जाना तय किया. पतिदेव को फोन लगाया तो कनेक्ट नहीं हुआ.( हमेशा की तरह किसी मीटिंग में व्यस्त होंगे.) पंद्रह मिनट में तैयार हो हम थियेटर भी पहुँच गए. टिकट भी मिल गयी तो सुकून आया.
हम, काफी दिनों बाद मिले थे तो जाहिर है फिल्म देखने से ज्यादा हम अपनी बातों में मगन थे. आस-पास बैठे मुंबई के दर्शकों को भी कठिन उर्दू शब्दों से भरी इस फिल्म से ज्यादा रोचक शायद हमारी बातें लग रही थीं .क्यूंकि किसी ने नहीं टोका. कभी अपनी आवाज़ जरूरत से ज्यादा तेज़ पाकर हम खुद ही चुप हो जाते.
फिल्म ख़त्म होने के बाद, 'बरिस्ता ' का एक कप कॉफी का आमंत्रण ठुकराना संभव नहीं था. राज भाटिया जी और सतीश पंचम जी शायद इस बार हमें महाकंजूस की उपाधि से नवाज़ें क्यूंकि हमने एक ही प्लेट 'सिज़्लिंग ब्राऊनी' शेयर किया. अब असर हो ना हो पर कैलोरी का ध्यान तो रखना ही पड़ता है. वैसे भी उनलोगों के टोकने पर ही मेरा ध्यान गया कि सचमुच शॉपिंग , फिल्म के साथ हम सहेलियों का खाने -पीने पर बहुत कम ध्यान रहता है. पर हाँ...महीने दो महीने में सब मिलकर लंच के लिए जरूर जाते हैं और तब सिर्फ लंच ही करते हैं (महिलायें हमेशा organized होती हैं. मिक्स नहीं करती चीज़ों को :) )
बच्चों के वापस आने से पहले हम अपने अपने घर पहुँच गए. गन्दी यूनिफॉर्म, गंदे जूतों, ढीली टाई,बिखरे बाल और अनछुई टिफिन के साथ बच्चे वापस आए. उनकी उत्साह से भरी बातें सुनने में व्यस्त थी कि पतिदेव ने प्रवेश किया और आते ही अनाउंस किया, "कल की 'जोधा-अकबर' की चार टिकटें बुक कर दी हैं."
अभी तक तो मैं किसी को बता भी नहीं पायी थी कि मैने यह फिल्म देख ली है. और मैने होठ सी लिए. लौटते समय, कार में जब मैने बताया कि मैने तो एक दिन पहले ही यह फिल्म देख ली थी. तो बच्चे और पतिदेव आश्चर्य से मुझे घूरने लगे कि ' चार घंटे की इतनी स्लो फिल्म ,दो दो बार झेलने की हिम्मत मुझे कैसे हुई?' अब उन्हें क्या पता कि पहली बार तो बस हम बातें ही करते रहें. कितने सारे डायलॉग और प्रसंग नज़रों से छूट गए थे,जिन्हें इस बार ध्यान से देखा.
पर इस से भी ज्यादा मजेदार वाकया, मेरी सहेली वैशाली के साथ हुआ. हमारे ग्रुप में बाकी सबने यह फिल्म अपनी बहन..कोई दूसरी सहेली या फिर अपने पति के साथ देख ली थी (ऐश्वर्या के नाम पर कईयों के पति मेहरबान हो गए थे :)). वैशाली ने पास में रहने वाली अपनी ननद से चर्चा की तो उन्होंने भी कहा, "हाँ देखते हैं" पर कुछ निश्चित नहीं हुआ था.
और एक दिन उसकी दिल्ली से आई एक सहेली ने फोन किया और साथ में यह फिल्म देखने का आग्रह किया. वैशाली भी उसके साथ 3 से 6 का शो देखने चली गयी. अभी फिल्म देखकर निकली ही थी कि उसकी ननद का फोन आया कि उन्होंने , 9 से 12 , नाईट शो की टिकटें बुक कर दी हैं. वैशाली ने मुझे फोन मिलाया और बताया कि उसने तो कपड़े तक नहीं बदले. घर आकर कुछ काम निपटाए और उसी ड्रेस में दुबारा चार घंटे की फिल्म देखने चली गयी.पर उसने भी दूसरी बार ही ध्यान से देखा, पहली बार तो गप्पें ही चल रही थीं.
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बाप रे, गज़ब झेलन क्षमता है..दो दो बार जोधा अकबर!! नमन करता हूँ.
जवाब देंहटाएंआनन्द आया संस्मरण पढ़कर.
(महिलायें हमेशा organized होती हैं. मिक्स नहीं करती चीज़ों को :) )
जवाब देंहटाएंसोने सी खरी बता कही है :)
और आपकी और आपकी सलेही वैशाली को दंडवत प्रणाम ...गजब की सहन शक्ति है ..तोबा ...
वैसे फिर भी एक बात है साथ मनचाहा हो तो कोई भी फिल्म बार बार देखी जा सकती है ..फिल्म देखनी ही किसे होती है ..है न ? :)
बहुत ही हलकी फुलकी फुआर सी पोस्ट मजा आया पढकर.
सचमुच बहुत हिम्मत है रश्मि जी । हम तो ये काम कॉलिज के दिनों में करते थे । लेकिन तब ऐसा करने का कोई न कोई कारण होता था । :)
जवाब देंहटाएंकैसे झेला आपने दो बार जोधा अकबर को ..हम तो जब पहली बार देख रहे थे तब फिल्म के बीच में ही सो गए, नींद खुली तो पता चला की फिल्म अभी बाकी है, खत्म नहीं हुई :)
जवाब देंहटाएंडा. दराल जी, क्या कारण होता था ? :) :)
जवाब देंहटाएंओह्ह दो बार तो मैंने आजतक लाइफ में बहुत ही कम फ़िल्में देखी हैं.. लेकिन ऐश्वर्या में ऐसा क्या है मुझे तो नहीं समझ आता.. उससे सही तो नंदितादास, कोंकणा सेन शौरी या सोनाली कुलकर्णी लगती हैं(देखने में) और फिर अभिनय की तो बात करना ही बेमानी है.. :(
जवाब देंहटाएं@दीपक
जवाब देंहटाएंहा हा ...तुम पति नहीं बने ना अभी, इसलिए समझ में नहीं आएगा :)
वैसे ये सब पति लोगों की थोड़ी खिंचाई के मूड में लिखा है....हमेशा पत्नियों को लेकर ही मजाक किए जाते हैं, इसलिए.
@ एक ही प्लेट 'सिज़्लिंग ब्राऊनी' शेयरिंग।
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से बहुत सही डिसिजन था....महाकंजूस तो नहीं कह सकता,
हाँ समझदार कंजूस कह सकता हूं. क्योंकि सिजलर्स से मैं वैसे भी दूर भागता हूं....क्म्बख्त सामने ही सन सनाता हुआ धुआं निकलता लाकर रख देते हैं और प्लेट अलग तड़ तड़ करती रहती है ...इस चक्कर में एक बार आलू के बने एक चीज को जो सिज्लर में ही था... ठंडा समझ कर मुँह में डाल लिया और वह हालत हो गई मेरी कि क्या बताउं :)
इसलिए समझदार कंजूस।
@वैसे ये सब पति लोगों की थोड़ी खिंचाई के मूड में लिखा है....हमेशा पत्नियों को लेकर ही मजाक किए जाते हैं, इसलिए
मुझे अंदाजा हो गया था कि यह पोस्ट कुछ कुछ पतियों की खिंचाई के हिसाब से भी लिखी गई है और टिप्पणी में आपने स्वीकार करत हुए मेरे अंदाजे को सही साबित कर दिया :)
बढ़िया पोस्ट है।
इसे कहते हैं इच्छा का सम्मान .. धन्य हैं आप ।
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह...फिर भी जोधा अकबर फ्लॉप हो गई? इतने दर्शकों के बाद-बावज़ूद? वो भी रिपीट वैल्यू वाले दर्शक...। ख़ैर, आप तो जान ही गई होंगी, according to JODHA-AKBAR कि अकबर के पिता का नाम क्या था? हा हा हा
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,
जवाब देंहटाएंएक ही सिज्जलर को शेयर करना कंजूसी नहीं बल्कि समझदारी का काम हैं.
एक चीज को शेयर करने से आपसी प्यार, प्रेम, और सामंजस्य बढ़ता हैं.
आपने अपनी दोस्ती को और गहराई प्रदान करने के लिए काफी होशियारी दिखाई हैं.
जिसके लिए, मैं आपकी तारीफ़ करना चाहूँगा.
दूसरी बात, जब पति लोग पत्नियों की खिंचाई कर सकते हैं तो पति-लोगो की खिंचाई करने का आपको पूरा हक़ हैं और मैं आपके हकों के साथ था, साथ हूँ, और सदैव साथ रहूंगा.
लेकिन, लेकिन, लेकिन आप भी ये मत भूलियेगा कि--"सभी पति एक जैसे नहीं होते."
बहुत ही बढ़िया,
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
कई संभावनाएं जागी हैं :)
जवाब देंहटाएं(१)वैशाली को ज़रूर स्ट्रेचर पर वापस लाया गया होगा
(२)वैशाली अब ऊंचा सुनती होगी और इशारों में बातें करती होगी
(३)वैशाली अपनी सास की सबसे धीरज वाली बहु साबित हुई होगी
(४)उसके बाद वैशाली के पति डरे सहमें से रहते होंगे
(५)बात एश्वर्या की क्यों यहां तो मामला ऋतिक रोशन का लग रहा है
फिलहाल इतना ही पर संभावनाएं अभी खत्म नहीं हुई हैं :)
@ are jiyo ali sahab aap to bas jiyo...
जवाब देंहटाएंdekh lo madam ji ali saa kya kah rahe hain.. baki aapki saheli to mahan aatmaa hain no doubt...
रश्मि जी,
जवाब देंहटाएंहमको त बुझाइए नहीं रहा है कि ई सिनेमा दू बार जिस ढंग से आप लोग देखीं हैं, उससे किसका ऐश हुआ हुआ और किसका दिमाग़ रौशन हुआ... ई फिलिम त एक्के बार देखकर जो धाए हैं सो (अ) कबर में गिरते गिरते बचे… भगवान किसी को अईसा मुरव्वत न झेलने का मौका दे...
दुनिया के कुछ आश्चर्यों में से एक यह भी है की दो सहेलियां साथ हों और चुप हों -
जवाब देंहटाएंएक और प्रमाण :)
अच्छा किया लौट कर बताया -पति मनोविज्ञान में डाक्टरेट हैं क्या ? :)
हमें ऐश्वर्या को देखकर कुछ नहीं होता इसका मतलब कि हम पति नहीं हैं :)
जवाब देंहटाएंवैसे हम आज तक इस फ़िल्म को झेलने की हिम्मत नहीं जुटा पाये हैं।
पर कई फ़िल्में ऐसी रहीं कि हमने रोज देखीं -
"जख्म", "खलनायक" और भी बहुत सी, पर अब तो फ़िल्म देखने का शौक लगभग खत्म ही हो गया है।
एक मूवी दो बार देखने का जोश और कई बार तो लगातार २ शो देखने का का उत्साह , कॉलेज के दिनों के बाद हवा हो गया. पिछले १०-१५ सालो में इतनी ही मूवी देखि होगी. वैसे अली साहब ने बजा फ़रमाया ही की सम्भावनाये अभी समाप्त नहीं हुई है तो कुच्छ ऐसा भी हो सकता है.
जवाब देंहटाएं१---वैशाली जोधा वाली पालकी में बैठकर वापस आई होगी.
२--वैशाली के पति अपने को अकबर महान मानने लगे होगे.
३--वैशाली ने अपने दोस्त और ननद दोनों को शुक्रिया किया होगा.
४--वैशाली ने आपको कॉपी किया . जो दोस्ती का प्रमाण है .
मेरे कमेन्ट को पति -पत्नी के सदभाव की दृष्टि से पढ़ा जाय
जोधा अकबर हमने सिर्फ एक बार ही देखी है.
जवाब देंहटाएंवो भी तब जब हम ३ दोस्तों ने जिन्दगी का एक दिन आवारागिर्दी करने की सोची और हम में से सबसे सीधे साधे दोस्त ने कहा कि फिल्मे तो सभी एक सी होती है जोधा अकबर में कम से कम ३-४ घंटे ऐश्वर्या तो देखने को मिलेगी.
हमें भी ऐश को देख के कुछ कुछ नही होता हमें अपने पति होने पर संदेह पैदा होता है.
शिक्षा का दीप जलाएं-ज्ञान प्रकाश फ़ैलाएं
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की बधाई
संडे की ब्लाग4वार्ता--यशवंत की चाय के साथ--आमंत्रण है…।
रश्मि बहना,
जवाब देंहटाएंमुझे परिवार को नोएडा साथ लाए पांच साल से ज़्यादा हो गए हैं...लेकिन मैंने मल्टीप्लेक्स पर सिर्फ एक ही फिल्म देखी है...वो भी कहीं से कम्पलीमेंटरी टिकट आ गए थे...और वो फिल्म यही जोधा-अकबर थी...फिल्म का ट्रीटमेंट अच्छा लगा था...
वैसे आजकल केबीसी का प्रोमो बढ़िया आ रहा है...बच्चा पूछता है...पापा अकबर के बाप का नाम क्या था...अब पिताश्री दोस्तों से बात करते कहते हैं, मैंने कौन सी जिओग्राफी पढ़ी थी जो मुझे पता हो अकबर के बाप का नाम क्या है...फिर पिताश्री आखिर में बड़ी रिसर्च के बाद बेटे से कहते हैं...बेटा पता चल गया है अकबर के बाप का नाम क्या था...बेटा पूछता है...कौन था....पिताश्री जवाब देते हैं- राकेश रोशन...
जय हिंद...
इस फिल्म को अब तो देखना ही पडेगा वो भी अपनी खुद की एश्वर्या के साथ.
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनांए
लिंक पे लिंक बनाते चलो ब्लॉग की रेंकिंग बढ़ाते चलो
यह फिल्म कई लोगों को पसंद नहीं आई पर हमें तो ये काफी अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी हलके फुल्के पलों से सजी ये पोस्ट और आपकी ये बात का तो कोई जवाब नहीं की महिलायें हमेशा organized होती हैं. मिक्स नहीं करती चीज़ों को :)
बढ़िया है!
जवाब देंहटाएंटीम हमारीवाणी
क्या आप हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी.कॉम के सदस्य हैं?
ओह्ह्ह!!...बेचारी वैशाली....ये पोस्ट तो पढ़ पाई न..
जवाब देंहटाएंsab aapke himmat ki daj dete hai ki movie do baar dekh liya aapne par main kahta hoon dekha ja sakata hai...movie thik hai..haan thoda jaldi jaldi dekha gaya ...
जवाब देंहटाएंbadhiya rochak sansmaran..
@अली जी एवं आशीष जी,
जवाब देंहटाएंहा हा...कोई भी संभावना कारगर सिद्ध नहीं हुई....वैशाली और हम सब पक्के movie buff हैं. एक से एक बोरिंग फिल्मे देखी है.."अनुरणन ' और खामोश पानी' का लोगों ने नाम भी नहीं सुना होगा..और हमने देख डालीं.(खाली हॉल में:) ). कभी कभी तो थियेटर वाले कहते हैं,एक, दो लोग और आ जाएँ तब शो शुरू करेंगे नहीं तो शो कैंसिल और पैसे वापस.
और वो अगर स्ट्रेचर या पालकी में वापस आती तो उसकी गाड़ी कौन लेकर आता. हमारे ग्रुप की सबसे सक्षम ड्राइवर वही है और 80% उसकी कार में ही हम सब जाते हैं. चाहे लोनावाला जाना हो या रात के एक बजे किसी प्रोग्राम से लौटना...वैशाली जिंदाबाद!!!
पत्नियों से तो सारे पति डरते हैं.....अली जी आप नहीं डरते?? :) :)
@विवेक जी एवं हरि शर्मा जी
जवाब देंहटाएंअब तो ये मिसेज़ रस्तोगी और मिसेज़ शर्मा से पूछना पड़ेगा कि 'ऐश' को देखकर कुछ नहीं होता फिर किसे देख कर कुछ होता है....'विपाशा' को? हा हा
और प्लीज़ बोरिंग और politically correct जबाब मत दीजियेगा कि बीवी को देखकर कुछ कुछ होता है..:):)
@खुशदीप भाई.
जवाब देंहटाएंपांच साल बाद ' जोधा अकबर' आपको मल्टीप्लेक्स की तरफ खींच कर ले गयी और इतने दिनों बाद
"जोधा अकबर' ही इस ब्लॉग तक खींच लाई. कहीं ये 'ऐश' का जादू ही तो नहीं? :) :)
@ विनोद जी एवं सारिका
जवाब देंहटाएंशुक्र है मेरे जैसे ही आप दोनों को भी यह फिल्म पसंद आई. मुझे तो सचमुच अच्छी लगी थी...खासकर ऋतिक और ऐश्वर्या के साथ वाले दृश्य और 'सोनू सूद ' का किरदार भी बहुत पसंद आया था.
बाकी लोगों की खुशकिस्मती है कि मैं उन दिनों ब्लॉग जगत से परिचित नहीं थी वरना एक पोस्ट लिख डालती ,इस फिल्म पर और सबको फिल्म के साथ वो पोस्ट भी झेलनी पड़ती.:)
वैसे सारे जबाब मैने हलके मूड में दिए हैं....गुजारिश है, उसे 'निर्मल हास्य' की तरह ही लें.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ khushdeep bhai - geography padhne se mujhe bhe akbar ke baap ka naam pata nahee chalaa haa itihaas padhne se pata chalaa ki babar ke bete humaanyu ko aam sahmati se itihaskaar akbar kaa bap maante hai
जवाब देंहटाएं@ rashmi ji, poloitically correct hone ka man kabhee nahee hotaa haa ek dhyaan rakhte hai ki kisee mahila ke blog par comment kar rahe hai to shishtataa mai chook naa ho jaaye. patni kaa jawaab abhee liya hai. usee ke shabdo mai rashmi bahnaa ek aish hee rah gayee hai nahee to sabhee ko dekhke inhe jaane kitanaa kuchh hotaa hai.
aur haa maine parvarish aur sholay 6-6 baar dekhee hai ek film dhartee lagaatar teen din dekhee hai. par apne hee papa ke 17 baar sangam dekhne ke record ke aas pas nahe pahuch paya. haa mere bete ne doolhe rajaa cd pe 25-30 baar dekhee hogee aur bhee bahut see film bahut baar par record to theatre mai dekhne se hee bantaa hai
(ऐश्वर्या के नाम पर कईयों के पति मेहरबान हो गए थे :))
जवाब देंहटाएंइस बात पर मुझे अपने कॉलेज का किस्सा याद आ गया ..मैं M.A. का एक्साम दे कर जब होस्टल से घर गयी तब बॉबी पिक्चर देखी थी ...घर पर एक अंकल आंटी आये हुए थे ...बस यूँही पिक्चर की बात चल पड़ी ..तो हम लड़कियां और आंटी भी कहने लगे -- चिंटू बहुत अच्छा लगा है पर डिम्पल कुछ खास नहीं ....तभी अंकल बोले कि अरे उसके बारे में हमसे पूछो न .. हा हा
वैसे मुझे जोधा अकबर पसंद आई थी ..पर घर में बैठ कर दो बार देखी जा सकती है ..पिक्चर हॉल में ....:):)
तुम्हारी हिम्मत की दाद देती हूँ :):)
बहुत हिम्मत वाला काम है इस फिल्म को दुबारा देखना .... या झेलना .... नींद ही आ जाए हमें तो ....
जवाब देंहटाएंमैने तो अब तक नही देखी………………तुम दोनो ने कैसे झेली?मुझसे ऐसी मूवीज़ टी वी पर नही देखी जातीं …………बडी बहादुर हो।
जवाब देंहटाएंmain to gai thi dekhne , shukra bhagwaan ka - mera beta jo us waqt nda me tha, uska phone aa gaya aur main 2 ghante ke liye hall se baahar.......to kam jhelna padaa
जवाब देंहटाएंअगर हिम्मत न हो तो भारतीय नारी का लोहा कौन मानेगा? तुम्हारी भी हिम्मत काबिले तारीफ है. वैसे मैं पिक्चर देखने का स्मय नहीं निकाल पति हूँ. एक बार देख लूं बहुत है. ऐश्वर्या के लिए ये पति लोग झेल सकते हैं. दाद देनी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंएक बार में हम महान अकबर हो गये। दो बार में क्या होंगे?
जवाब देंहटाएंमुझे तो कुल मिलाकर यह समझ आया कि जोधा अकबर फिल्म को समझना हो तो दो बार फिल्म देखनी होगी। शायद इसलिए भी एक बार का समय तो ऐशवर्या को देखने में निकल जाएगा। और दूसरी बार कहानी और अभिनय देखना होगा।
जवाब देंहटाएंjodha akbar !!!??? iski kahani suni hai isliye ek baar bhi dekhne ka dil nahi kiya...
जवाब देंहटाएंA Silent Silence : Ek bejurm sazaa..(एक बेजुर्म सज़ा..)
Banned Area News : Pop Singer Christina Aguilera on her marriage
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
jodha akbar pata nahi kai logo ko kyon nahi acchi lagi, mujhe to acchi lagi thi arrrrrre AIshwarya ki wajah se nahi,
जवाब देंहटाएंakbar ke baap ke bete ki wajah se bhi nahi,
70mm ke canvas pey ek historical movie dekhna ek alag hee mazaa hai, kyonki mugh-e-azam ke baad koi sahi mayane mei acchi historical movie hain.
रश्मि जी...
जवाब देंहटाएंइधर कुछ दिनों से नेट धोखा दे रहा है और कुछ व्यस्तता भी ज्यादा है...की में अपेक्षित समय नहीं दे पा रहा...सो आपकी पोस्ट पर देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ....
वैसे आपने फिल्म के साथ पतियों पर भी जो हस्यास्त्र चलाया है वो आपके आलेख के इस एक वाक्य में समाहित हैं...
(ऐश्वर्या के नाम पर कईयों के पति मेहरबान हो गए थे :)....हाहाहा.....वैसे मेरा व्यक्तिगत तौर पर ये मानना है की पति तो पति..ऐश्वर्या को तो बहुत सी पत्नियाँ भी प्रेम (या जलन.....) की दृष्टी से निहारती है और इसका प्रमाण ये है की ऐश्वर्या के पोस्टर अमूमन ब्यूटी पार्लर और सौंदर्य प्रसाधनों की दुकानों पर ही ज्यादा दिखाई देते हैं.....(अब ये न पूछियेगा की आपको कैसे पता.....) अब आप ही बताएं....जो पत्नियों को पसंद हो अगर पति बिचारे उसे पसंद करें तो बुरा क्या है.....हाहाहा....
वैसे पति शायद ऐश्वर्या को शायद ये जानने के लिए अधिक निहारते हैं की उनकी पत्नी किस कोण से ऐश्वर्या सी नज़र आती है.....
वैसे मैंने ये फिल्म एक बार भी नहीं देखी.....
दीपक....
jodha akbar to hero heroine ki beauty dekhne ke liye do caar baar dekhi ja sakti hai
जवाब देंहटाएंjodha akbar to hero heroine ki beauty dekhne ke liye do caar baar dekhi ja sakti hai
जवाब देंहटाएंवाह! मज़ेदार दास्तान. पतियों का हर जगह यही हाल है, लेकिन मेरा काम तो केवल हूं से नहीं चलता, मैं तो हां या ना कहलवा के ही दम लेती हूं, ताकि अपना कार्यक्रम फ़िक्स कर सकूं :):):)
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया पोस्ट.