मंगलवार, 14 सितंबर 2010
गणपति बप्पा मोरया...
मुंबई आने से पहले ही, यहाँ के सबसे बड़े त्योहार गणेशोत्सव के बारे में काफी कुछ सुन रखा था. जब मुंबई आए तो हमने सोचा,जैसे उत्तर भारत में दीपावली के समय लक्ष्मी गणेश की मूर्ति लाते हैं और उसकी पूजा करते हैं ,वैसे ही यहाँ भी सबलोग, गणेश जी की मूर्ति लाकर पूजा करते होंगे. और हमने भी उनकी मूर्ति लाकर पूजा करने की सोची. जैसे जैसे गणेशोत्सव का दिन नज़दीक आने लगा, हमें पता चला,हर घर में उनकी मूर्ति नहीं लाते. बल्कि मराठी लोगों के यहाँ तो खानदान में जो सबसे बड़ा हो, उनके यहाँ ही सबलोग जमा होते हैं और मूर्ति बिठाई जाती है. कई घरों में तो एक साल एक भाई के यहाँ पूजा की जाती है तो दूसरे साल दूसरे भाई के यहाँ.
बिलकुल शादी जैसा महौल होता है. सारे रिश्तेदार इकट्ठे होते हैं. आस-पास के खाली फ़्लैट में उन्हें ठहराया जाता है कुक रखे जाते हैं.काफी धूम रहती है. कई लोग गाँव भी चले जाते हैं.पर हमने सोच लिया था तो मूर्ति लेकर आए और पंडित को बुलाकर पूजा भी करवाई. जबकि मराठी लोग खुद ही पूजा कर लेते हैं. जब लोग दर्शन के लिए आने लगे तो पूछना शुरू किया,"आपने कितने साल तक पूजा करने की मन्नत की है?" लोग दो,पांच या सात साल की मन्नत करके ही पूजा करते हैं. और पतिदेव ने कह दिया, "जबतक मुंबई में रहेंगे,पूजा करेंगे". उस समय तक कुछ भी तय नहीं था कि स्थायी रूप से कहाँ रहेंगे. पतिदेव का दिल्ली... विदेश...मुंबई...भ्रमण जारी था.पर दो साल बाद ही गणपति बप्पा ने अपनी छत भी दे दी और हम यहीं बस गए. यहाँ लोगों के पूछने का तरीका भी अनोखा है. कोई ये नहीं पूछता,"आप गणपति की पूजा करते हो...या मूर्ति लाते हो?"लोग पूछते हैं.."आपके यहाँ गणपति आते हैं?" और लोग दर्शन के लिए निमत्रण का इंतजार नहीं करते. अगर उन्हें पता चल जाता है कि इस घर में पूजा होती है तो खुद ही चले जाते हैं.
एक महीना पहले ही जिसके यहाँ से आप मूर्ति लेते हैं उनकी चिट्ठी आ जाती है कि आप आकर मूर्ति बुक कर दें. फिर गणेशोत्सव के एक दिन पहले अक्सर रात में ही लोग मूर्ति अपने घर पर लेकर आते हैं. करीब करीब हर घर में ढेरो रिश्तेदार जमा होते हैं,इसलिए एक मूर्ति के लिए करीब करीब दस-बारह लोग जरूर जाते हैं. अक्षत,कुंकुम,नारियल से गणपति की पूजा कर, ढोल,मंजीरे के साथ उनकी जयजयकार करते हुए मूर्ति लेकर घर आते हैं यह सिलसिला पूरी रात चलता है.घर के दरवाजे पर भी, कुंकुम लगा , आरती की जाती है और गरम पानी दूध से मूर्ति लाने वाले का पद-प्रक्षालन किया जाता है. शायद यह भावना हो कि गणपति को लाने वाले के पैर दूध से धोए जाएँ.
दूसरे दिन सजे हुए मंडप में गणपति की स्थापना की जाती है .और दो दिन तक करीब करीब सारे जान पहचान वाले गणपति दर्शन को जरूर आते हैं. अपनी बिल्डिंग वाले लोग तो रात के बारह बजे भी आते हैं.क्यूंकि दिन में अक्सर उन्हें दूर दोस्तों या रिश्तेदारों के यहाँ जाना होता है. सार्वजनिक पंडाल में तो ग्यारह दिन तक के लिए मूर्ति रखी जाती है और फिर ग्यारहवें दिन,अनंत चतुर्दशी के दिन मूर्ति विसर्जित की जाती है.पर घरं में अक्सर लोग डेढ़ दिन के लिए ही रखते हैं. कुछ लोग ,पांच दिन या सात दिन के लिए भी रखते हैं.
मूर्तियाँ अक्सर तालाब या समुद्र में विसर्जित की जाती हैं. किन्तु पर्यावरण का ख़याल कर आजकल कई जगह कृत्रिम तालाब का निर्माण किया जाने लगा है. वैसे हमलोग शुरू से ही एक मंदिर के प्रांगण में बने कृत्रिम तालाब में ही मूर्ति विसर्जन के लिए जाते हैं. मंदिर से काफी पहले ही गाड़ी पार्क कर पैदल ,नंगे पाँव मूर्ति लेकर जाना होता है. पूरे रास्ते पर ढोल-ताशों के साथ लड़के-लडकियाँ,औरतें-पुरुष सब नाचते गाते,जयजयकार करते हुए चलते हैं. बहुत ही रोमांचित कर देने वाला नज़ारा होता है.
मंदिर में भीड़ तो बहुत होती है पर व्यवस्था इतनी अच्छी कि पंद्रह मिनट से ज्यादा नहीं लगते. लम्बी लम्बी मेजें बिछी होती हैं. सबलोग अपने घर से लाये गणपति को वहाँ रखते हैं और एक बार फिर आरती की जाती है और नारियल फोड़ कर उसका पानी गणपति के ऊपर डाला जाता है.शायद प्रतीकात्मक विसर्जन हो यह.
परिवार का एक सदस्य मूर्ति लेकर एक अलग रास्ते से तालाब की तरफ जाता है. बाकी लोग दूसरी तरफ से विसर्जन देखते हैं.पानी में कई स्वयंसेवक पहले से ही खड़े होते है वे दूर लेजाकर मूर्ति का विसर्जन कर देते हैं. उस दिन सबसे ज्यादा यह नारा गूंजता है " गणपति बप्पा मोरया..... पुढच्या वर्षी लाउकर आ "(मेरे गणपति बाबा,अगले वर्ष जल्दी आना )
एक दिन पहले ईद और दूसरे दिन इतवार ने इस गणपति को कुछ खास बना दिया. पूरा मुंबई ही त्योहार के खुशनुमा माहौल में डूबा था. मेरे घर पर भी सबकी छुट्टियां होने से मेरा काम काफी आसान हो गया. इस बार तो बच्चों ने ऐलान कर दिया, 'हमलोग ही सारा काम करेंगे' और सच में गणपति बप्पा को घर लाने से लेकर मंडप की सजावट, पूजा, विसर्जन...सबकुछ बच्चों ने ही किया. बस ये आस्था हमेशा बनी रहें.
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बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने गणेशोत्सव का सुन्दर सजीव चित्रण प्रस्तुत किया ... हम भी मुंबई नगरी की सैर कर आये.. हमें भी घर में एक छोटे से गणेश जी की स्थापना की है ..मेरे बेटा तो इतना ज्यादा भक्त है अब भक्त ही कहूँगी क्योंकि उसे दूसरी किसी चीज से कोई मतलब नहीं. .. सच में यदि इस समय मैं मुंबई होती तो मेरा बेटा को घूमता रहता सारी मुंबई में.. उसका मन इस समय सिर्फ गणेश की मूर्तियों पर ही टिकी रहती है... पर क्या करें एक समय तो कल से परीक्षा में शुरू हो गयी हैं .... ...पढ़ाना भी जरुरी है ....
जवाब देंहटाएंआपकी गणेश जी को फोटो दिखई तो बहुत खुश हुआ...
गणेशोत्सव की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
शुक्रिया कविता जी,....आपको तो खुश होना चाहिए,बेटा इतना संस्कारी है....बेटे को बहुत बहुत स्नेह और आशीर्वाद...आगामी परीक्षा की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंगणपति हमेशा हमने फिल्मों में ही देखा और इतना अच्छा लगा कि एक बार खुद भी करने का मन किया पर पता कुछ था नहीं तो यहाँ तो जाने कैसे कैसे संपन्न किया :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे ढंग से आपने गणपति महोत्सव समझाया अब अगली बार करने में आसानी होगी :)
और मंदिर तो बहुत ही खूबसूरत सजाया है बच्चों ने उनमें ये आस्था और भावना गणपति जी हमेशा बनाये रखें
गणपति बाप्पा मोरिया.
गणपति उत्सव से परिचय तो है क्योंकि हैदराबाद में भी इतनी ही धूमधाम से गणपति उत्सव मनाया जाता है ...बस ये हैं कि वहां घरों में नहीं , सार्वजनिक मंडपों में ही ज्यादा जोर रहता है ...बिहार में भी गणपति उत्सव होते देखा है और १० दिनों तक बाकायदा सांस्कृतिक कार्यक्रम ऑर्केस्ट्रा , नाटक आदि भी ..
जवाब देंहटाएंतुम्हे इस तरह का आयोजन करते देख बहुत ख़ुशी हुई ...अपनी जड़ों से अपने बच्चों को भी परिचित कराना ही चाहिए ...
बहुत अच्छी लगी तस्वीरें ..और पोस्ट तो झक्कास है ही ..!
bahut hi aakarshak manohari varnan hai
जवाब देंहटाएंआपने विस्तार से गणपति स्थापना बता दी, बहुत रोमांचक विवरण था। लग रहा था कि हम भी उसमें सम्मिलित हैं। हमारा भी प्रणाम निवेदन गणपति को, बस मांग लीजिए की सभी को बुद्धि प्रचुर मात्रा में दें। अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विवरण व सुन्दर चित्र हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
गणपति बप्पा मोरया...।
जवाब देंहटाएंजय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
जवाब देंहटाएंमाहौल तो बड़ा शानदार है ! हमारी भी बधाई स्वीकारिये !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसुरत सजीव सचित्र चित्रण |मुंबई में बिताये पिछले १५ वर्ष सजीव हो उठे |मध्य प्रदेश में मालवा निमाड़ में तो घे घर गजानना विराजते है \बहुत सुहाने लगते है ये १० दिन |
जवाब देंहटाएंमहाराष्ट्र में गणपति दर्शन जिनके यहाँ जाते है वे लोग लाडू चिवड़ा खिलाना नहीं भूलते |
आपके परिवार पर बाप्पा की कृपा बनी रहे |
रश्मि,
जवाब देंहटाएंअब समझ आया की क्यों इतनी व्यस्त थी, वाकई किसी मंडप से काम नहीं सजाया है. बहुत सुन्दर सझावत लगी और उससे अधिक लगा बच्चों का लाना. इस वर्णन से अब पूरे देश के त्यौहार और वहाँ के रीती रिवाज से हम लोग परिचित होने लगे हैं. हमें और करीब लेन लगा है ये ब्लॉग में वर्णन करने का ढंग.
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रश्मि,
जवाब देंहटाएंअब समझ आया की क्यों इतनी व्यस्त थी, वाकई किसी मंडप से काम नहीं सजाया है. बहुत सुन्दर सझावत लगी और उससे अधिक लगा बच्चों का लाना. इस वर्णन से अब पूरे देश के त्यौहार और वहाँ के रीती रिवाज से हम लोग परिचित होने लगे हैं. हमें और करीब लेन लगा है ये ब्लॉग में वर्णन करने का ढंग.
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गणपति घर में आये हैं ...बहुत बहुत बधाई ..वर्णन हमेशा की तरह सजीव ...बहुत अच्छा लगा ..चित्रों को देख ऐसा लगा की हम भी इस पूजा में शामिल हैं ...गणपति का वंदन
जवाब देंहटाएंवाह , बहुत सुन्दर झांकियां ।
जवाब देंहटाएंहमारे पर्व नीरस जीवन में रस घोल देते हैं ।
शुभकामनायें ।
हम भी इस पर्व का आनंद रोज ले रहे हैं, आनंदित हैं, वैसे तो हम बचपन से मराठी लोगों के बीच में ही रहे धार में, और गणेश चतुर्थी पर स्थापना और अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन के लिये ले जाना और झांकियों के बीच खो जाना, रात भर झांकियाँ निकलती थीं, गणपति बप्पा मोरिया...
जवाब देंहटाएंमंगल मूरती मोरिया ...
पहली बार जाना इतने विस्तार से गणपति का स्थापन .....
जवाब देंहटाएंबड़े प्यारे बच्चे हैं आपके ....
आपने सारी बातें बतायीं ये नहीं बताया ...मूर्ति कितने की होती है ....सजावट के लिए क्या क्या लिया जाता है ...या पूजा के लिए क्या सामग्री ली गयी .....?
मुझे तो स्कूल की सरस्वती पूजा ही याद है ...घर से दुपट्टे लेकर पंडाल सजाते थे ......!!
वाह आप ने तो हमे सारा विस्तार से बता दिया, हम ने तो यही समझा था कि बस पुजा की ओर मुर्ति को विसर्जन कर दिया, या सभी लोगो ने मिल कर एक मुर्ति खरीदी को एक दिन पुजा की ओर विसर्जन कर दिया, आप के लेख से सभी बाते बता चली,ब्लांग का यही लाभ है, धन्यवाद, आप ने बच्चो की तारीफ़ सब से कर दी, मै तो उन्हे आशीर्वाद ही दुंगा, मुझे तो बहुत सायने (बम्बई वाले सायने नही)ओर समझ दार लगे संस्कारी
जवाब देंहटाएंभी.
बहुत ही बेहतरीन तरीके से आपने सारी कहानी बयान की हैं.
जवाब देंहटाएंऐसा लग रहा था मानो हम भी गणेशोत्सव में शरीक हो.
आपने जिस तरीके से सारी जानकारी विस्तार से दी वो काबिल-ऐ-तारीफ़ हैं.
अभी तक सिर्फ सुना ही था और कुछेक बार (वो भी ढंग से या ध्यान से नहीं) फिल्मो में देखा हैं.
आपके विवरण से काफी हद तक सब कुछ जान गया हूँ.
बहुत-बहुत धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
पता है रश्मि, गणेश-चतुर्थी के दिन मुझे याद आया था कि तुम्हारे घर भी गणपति आ गये होंगे. मुम्बई तो इस समय गणपतिमय हो ही रही है. बहुत बढिया जानकारियों से भरपूर पोस्ट. मोदक याद आ रहे हैं :):)
जवाब देंहटाएंगणपति पूजन का सचित्र वर्णन बहुत सुंदर लगा..मुंबई में तो जैसे विशाल मेला सा लग जाता है..एक विशेष महत्व है गणपति पर्व का..गणपति पर्व के बारे में सचित्र और बढ़िया जानकारी बढ़िया लगी...धन्यवाद रश्मि जी
जवाब देंहटाएं" गणपति बप्पा मोरया..... पुढच्या वर्षी लाउकर आ ".. पर लगता है गणपति बाप्पा आपके पास नहीं आते.. :P किसी तस्वीर में आप नहीं दिखीं.. :)
जवाब देंहटाएंबहुत जानकारी मिली इस पर्व की..चित्र में परिचय भी तो लिखो कि कौन कौन है...
जवाब देंहटाएंगणपति बप्पा मोरया.
:)
हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
क्या सुन्दर वर्णन है. आनंद आ गया. पिच्ले३ वर्ष हम इन दिनों मुंबई चले जाया करते थे. इस बार जाना नहीं हो पाया. यहीं अपने केम्पस में मना रहे हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दरता से सारा वर्णन किया है जिसके बारे मे पूरी तरह कुछ नही पता था बस जो टी वी मे देखा उतना ही पता था………………सजीव चित्रण्।
जवाब देंहटाएंफ़ोटो तो बहुत ही शानदार हैं।
गणेशोत्सव की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ।
मैंने तो गणपति का त्यौहार सिर्फ टी.वी. पर ही देखा है... लकिन आज आपने इतिहास के साथ .... परंपरा को भी बता दिया... बहुत अच्छी लगी यह संस्मरणात्मक पोस्ट.... तभी मैं सोचूं.... कि आप कहाँ इतनी बिजी थीं इन दिनों.... ?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन और उमदा जानकारी। बधाई और धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
अच्छी लगी पोस्ट , गणपति का त्यौहार ,बाल गंगाधर तिलक की मस्तिस्क की उपज , बिखरे समाज को जोड़ने के लिए, जो सचमुच प्रभावशाली रहा और आज महाराष्ट्र से बाहर भी गणपति उत्सव की धूम सुनाई दे सकती है.गणपति बाप्पा मोरिया.
जवाब देंहटाएं@हरकीरत जी,
जवाब देंहटाएंपूजा की सामग्री के बारे में तो क्या बताएं ...पिछले चौदह साल से पुजारी जी एक लिस्ट थमा देते हैं जो हम दुकानदार को दे देते हैं. और फिर जो पैकेट दूकानदार देता है, उसे हम पंडित जी को दे देते हैं.अब क्या क्या होता है उसमे हमें आजतक पूरा नहीं याद...:)
मूर्ति की कीमत के विषय में पहली बार ही पंडित जी ने बड़ी अच्छी बात बतायी थी कि एक बार पूजा हो जाने के बाद गणपति, अनमोल हो जाते हैं. इसलिए अपने मन में भी कभी कीमत के बात नहीं लानी चाहिए.
सजावट का तो क्या है....चाहे तो सिर्फ एक टेबल पर एक कपड़ा बिछा पूजा कर लो.भगवान थोड़े ही ना कुछ कहते हैं.और सरस्वती पूजा की तो अच्छी याद दिलाई. स्कूल से लेकर कॉलेज तक हमेशा शामिल रही उस उत्सव में. मुझे भी गणपति पूजा के समय वही सब याद आता है.और विसर्जन के समय आँखें वैसे ही भीग जाती हैं जैसे स्कूल में सरस्वती जी की विदाई के समय होती थीं
@दीपक
जवाब देंहटाएंऐसा मत कहो भाई...:)
अभी तो ओणम में अपनी इतनी सारी तस्वीरें लगाई थीं,कहीं मेरी शक्ल देखकर सब बोर ना हो जाएँ..इसीलिए इस बार नहीं लगाई.
@समीर जी,
जवाब देंहटाएंमुझे लगा सब गेस कर ही लेंगे कि गणपति जी के साथ दोनों बेटे और पति की तस्वीरें हैं,. अब मैं इतनी उम्रदराज़ तो नहीं लगती कि पतिदेव बेटे की तरह लगें :)
.
photo bahut hee shaandaar aaye hain. likhaa to hameshaa kee tarah shaandar hai hee.
जवाब देंहटाएंवाह आज तो मजा ही आ गया, गणपति को हमने हमेशा फिल्मों में ही देखा है, नाच गाना होते हुए...और ज्यादा कभी जाना नहीं..आज जान भी लिया..
जवाब देंहटाएंऔर फोटू तो सब बहुत बहुत सुन्दर.....दिल एकदम खुश हो गया ....:)
EXCELLENT
जवाब देंहटाएंmadam ji, agli baar aapko sabhi bloggers ko aapke yaha Ganpati utsav mei bulana padega,
GANPATI BAPPA MORYA!
सजीव चित्रण,
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...
देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! वजहें बता कर बोर नहीं करना चाहती ! आपकी तस्वीरें और आलेख इतने सजीव और बोलते हुए हैं कि लगता है मैं भी आपके साथ हर विधि में सम्मिलित हूँ ! सार्थक एवं महत्वपूर्ण जानकारी से भरपूर आपकी इस पोस्ट ने बहुत ज्ञानवर्धन किया है ! इस त्यौहार के बारे में और मुम्बईवासियों की परम्पराओं के बारे में जान कर बहुत प्रसन्नता हुई ! आप सभी को गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं ! गणपति बप्पा मोरया !
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,
जवाब देंहटाएंमैं यहाँ वर्धा में आने के बाद महाराष्ट्र के इस सबसे महत्वपूर्ण पर्व को प्रत्यक्ष देखने का अवसर पा रहा हूँ। आपकी पोस्ट ने मेरी उत्सुकता और बढ़ा दी है। सावंगी में यहाँ के स्थानीय सांसद दत्ता मेघे द्वारा बड़े पैमाने पर गणेश उत्सव कराया जाता है। मूख्य सड़क पर विशाल स्वागत द्वार केसरिया रंग का बना हुआ है। भीतर दूर तक सजावट की गयी है। मैं अब गणपति का दर्शन करने जा रहा हूँ।
आपकी पोस्ट बहुत अच्छी है।
मुम्बई का गणेशोत्सव ..वाह ... मज़ा आ गया यह देखकर ही । वहाँ हमारे घर के लोग भी लगे हुए है और लाइव रपट रोज़ मिल रही है \ चित्र देखकर मज़ा आ गया और इस पोस्ट को पढ़कर याद आया भोपाल मे हम लोग अपने हॉस्टल मे इसी तरह गणेशोत्सव मनाते थे ...देखता हूँ एक ब्लैक अंड वाइट फोटो तो होनी चाहिये बाकी पोस्ट तैयार कर लूंगा ।
जवाब देंहटाएंइतने क्रमबद्ध धन ढंग से गणपति उत्सव का वर्णन मैंने पहली बार पढ़ा, नहीं तो समाचार में तो हर साल ही देखते हैं. खुशी होती है लोगों को सामूहिक रूप से त्यौहार मनाते देखकर और अफ़सोस भी कि हमारे उत्तर के अधिकांश राज्यों में ऐसे त्यौहार नहीं मनाया जाता, पंजाब को छोड़ दें तो... पहले तो हमारे यहाँ होली, नागपंचमी और दशहरे जैसे त्यौहार मनाये जाते थे, पर अब नहीं... वैसे शहरों में अब यहाँ भी दुर्गा पूजा और गणेशोत्सव जैसे त्यौहार लोकप्रिय हो रहे हैं.
जवाब देंहटाएंगणपति-उत्सव की हार्दिक शुभकामनाये...बप्पा आप पर और आपके परिवार पर सदैव कृपा बनाये रखे यही मंगलकामना है...
जवाब देंहटाएंगणपति के समय मुंबई की तो रौनक ही निराली होती है...बहुत ही सुन्दर चित्रण किया आपने...अभी कल ही हमारे यहाँ गणपति-विसर्जन हुआ...