रागिनी मिश्रा ,तुमने तो निःशब्द कर दिया ।सुबह चार बजे उठ कर घर का काम खत्म करने के
बाद स्कूल की प्रिंसिपल का जिम्मेवारी भरा कर्तव्य निभा, फिर एक ही सिटिंग
पूरा उपन्यास भी पढ़ लिया ।पाठकों का यही प्यार बस मेरी पूँजी है और गहरी
जिम्मेवारी का भी आभास करवाती है ।'शिवानी' जैसी प्रसिद्ध लेखिका का जिक्र
पढ़कर तो कानों को हाथ लगा लिया , उन जैसा शतांश भी लिख पाऊं तो धन्य समझूँ
खुद को ।
तुम्हें बहुत शुक्रिया और स्नेह :)
कांच के शामियाने
आदरणीय रश्मि दी!.
स्कूल से लौटते ही "काँच के शामियाने" आज दोपहर १ बजे मिली, ...खाना खाने के बाद से पढ़ना शुरू किया | रोज दोपहर में थक जाने के कारण सो जाती थी लेकिन किताबों का पुराना शौक और नयी किताब का हाथ में आना और उस पर आपका सशक्त लेखन..... सोने पे सुहागा| ५ बजकर ४० मिनट पर पूरी किताब शब्द ब शब्द पढकर समाप्त की, या यूं कहूं कि "जया" के जीवन की यात्रा पूरी की |
कभी कभी लगा कि "शिवानी" का कोई प्रसिद्ध उपन्यास पढ रही हूँ | इस पुस्तक की विशेष बात कि इसने पूरा बांधकर रखा मेरे चंचल मन को..... तो गंभीर पाठक की बात ही क्या| अन्त में मेरे जैसा मस्त व्यक्ति रोया भी |
आप वाकई प्रशंसा और बधाई की पात्र हैं|
पूजा सिंह
कुछ ही महीने पहले पूजा विवाह बंधन में बंधी है . उसकी एंगेजमेंट , शादी, की तस्वीरें देखती रहती थी .फिर एक दिन अचानक इनबॉक्स में मैसेज मिला, 'मैंने भी कांच के शामियाने ' मंगवा अली है...जल्दी ही पढ़ती हूँ . मुझे लगा, अभी तो इसकी शादी हुई है, किसी और के जीवन की इतनी कडवी हकीकतों से क्या रूबरू होना...लिहाजा मैंने अपनी ही किताब के लिए कहा...'अभी रहने दो...बाद में कभी पढ़ लेना '...पर वो नहीं मानी...और एक दिन उसके वाल पर ये स्टेटस था :)
थैंक्यू पूजा...इतने प्यारे संदेश और फोटो के लिए :)
कांच के शामियाने
रश्मि दी जब आपने कहा था कि बहुत सुखद नहीं है आराम से पढ़ना तो मैंने सोचा की तभी पढूंगी जब एक सिटींग में पढ़ लूँ। आज पढ़ लिया, पता नहीं कितनी बार रोई पर सबसे ज्यादा रोना आया जब जया काव्या की नोटबुक पढ़ती है।
अगर मैं अपनी जेनेरेशन की लड़की मानकर जया को देखती तो बहुत गुस्सा आता उसपर की क्यों सहा इतना, तीन बच्चे क्यों पैदा किये। पर जैसे ही मैं उसे अपने अपने पूर्वी उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे से जोड़कर देखती हूँ तो पाती हूँ की ये कोई एक कहानी नहीं है, ऐसी कितनी जया को तो मैं पर्सनली जानती हूँ।
बहुत अच्छी सी किताब के शुक्रिया आपका
तुम्हें बहुत शुक्रिया और स्नेह :)
कांच के शामियाने
आदरणीय रश्मि दी!.
स्कूल से लौटते ही "काँच के शामियाने" आज दोपहर १ बजे मिली, ...खाना खाने के बाद से पढ़ना शुरू किया | रोज दोपहर में थक जाने के कारण सो जाती थी लेकिन किताबों का पुराना शौक और नयी किताब का हाथ में आना और उस पर आपका सशक्त लेखन..... सोने पे सुहागा| ५ बजकर ४० मिनट पर पूरी किताब शब्द ब शब्द पढकर समाप्त की, या यूं कहूं कि "जया" के जीवन की यात्रा पूरी की |
कभी कभी लगा कि "शिवानी" का कोई प्रसिद्ध उपन्यास पढ रही हूँ | इस पुस्तक की विशेष बात कि इसने पूरा बांधकर रखा मेरे चंचल मन को..... तो गंभीर पाठक की बात ही क्या| अन्त में मेरे जैसा मस्त व्यक्ति रोया भी |
आप वाकई प्रशंसा और बधाई की पात्र हैं|
पूजा सिंह
कुछ ही महीने पहले पूजा विवाह बंधन में बंधी है . उसकी एंगेजमेंट , शादी, की तस्वीरें देखती रहती थी .फिर एक दिन अचानक इनबॉक्स में मैसेज मिला, 'मैंने भी कांच के शामियाने ' मंगवा अली है...जल्दी ही पढ़ती हूँ . मुझे लगा, अभी तो इसकी शादी हुई है, किसी और के जीवन की इतनी कडवी हकीकतों से क्या रूबरू होना...लिहाजा मैंने अपनी ही किताब के लिए कहा...'अभी रहने दो...बाद में कभी पढ़ लेना '...पर वो नहीं मानी...और एक दिन उसके वाल पर ये स्टेटस था :)
थैंक्यू पूजा...इतने प्यारे संदेश और फोटो के लिए :)
कांच के शामियाने
रश्मि दी जब आपने कहा था कि बहुत सुखद नहीं है आराम से पढ़ना तो मैंने सोचा की तभी पढूंगी जब एक सिटींग में पढ़ लूँ। आज पढ़ लिया, पता नहीं कितनी बार रोई पर सबसे ज्यादा रोना आया जब जया काव्या की नोटबुक पढ़ती है।
अगर मैं अपनी जेनेरेशन की लड़की मानकर जया को देखती तो बहुत गुस्सा आता उसपर की क्यों सहा इतना, तीन बच्चे क्यों पैदा किये। पर जैसे ही मैं उसे अपने अपने पूर्वी उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे से जोड़कर देखती हूँ तो पाती हूँ की ये कोई एक कहानी नहीं है, ऐसी कितनी जया को तो मैं पर्सनली जानती हूँ।
बहुत अच्छी सी किताब के शुक्रिया आपका
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'