'कुसुम पालीवाल जी 'कनाडा में अपनी नवासी के आगमन की तैयारियों में व्यस्त थीं और बीच बीच
में मैसेज करती रहतीं, 'किताब ले आई हूँ, पर पढ़ नहीं पा रही ' .मैंने कहा,
'पहले तो बिटिया और नवासी की देखभाल कीजिये ,उनके सामीप्य का आनन्द उठाइए
,किताब कहाँ भागी जा रही ' उनकी बिटिया और नन्ही परी को बहुत[ बहुत प्यार
एवं आशीष :)
भारत आने के बाद उन्होंने किताब पढी और अपने विचार भी व्यक्त किये.....आपका बहुत बहुत शुक्रिया
" काँच के शामियाने "
दोस्तों ....रश्मि रविजा के इस उपन्यास को आज खत्म किया इसमें जया एक ऐसा पात्र है जो किसी न किसी रूप में हर घर में विद्दमान है । हमारे समाज का एक हिस्सा ... आज भी जया की तरह जिन्दगी बसर कर रहा है ये कहना गलत न होगा ।
जया एक ऐसी लडकी ...जिसने माँ के घर में नाज नखरों से जिन्दगी बसर की हो और ससुराल में बिल्कुल अलग परिवेष में पहुँच कर किस तरह अपनी जिन्दगी को जहन्नुम होते देख कर , उन रूढिवादी संस्कारों से जकडे लोगों के बीच अपने आत्म सम्मान की धज्जियों के टुकडों को बार - बार समेंटते हुए जिन्दगी को मौके दे रही थी कि शायद आज नहीं तो कल तो बदलेगें उसके दिन ......जहाँ का वातावरण न उसके अनुरूप था और न ही उसके मन के अनुरूप । वहाँ उसको एक ऐसे व्यक्ति के साथ जीवन यापन करना है ........जिसको पत्नी नहीं .. सिर्फ औरत का शरीर चाहिए क्षुधा पूर्ती हेतु ।
जया एक एेसा पात्र है जिसके लिए मन में दया उपजती है कि कोई इतनी जिल्लत कैसे सह सकता है .. वो भी उस पुरूष के द्वारा जो खुद पढा -लिखा तो है लेकिन अपनी पितृसत्त्तात्मक समाज के दकिया नूसी ख्यालात और पुरूष प्रधानी सत्ता को अपने से अलग नहीं कर सका ....और उसके इसी सोच का नतीजा जया भुगतती रही ।
जया डरपोक या निर्बल नहीं है वो जो भी जिल्लत सह रही है तो सिर्फ इस कारण कि बचपन से लडकी को यही समझाया जाता रहा है कि तुम्हारा घर वही है उस घर की जिम्मेदारी तुम्हारी है , अब वो लडकी जया किस तरह अपनें ससुराल वालों की बुराई पक्ष को बताये मायके में , सब सह रही है फिर भी जी रही है अपने बच्चों के भविष्य की खातिर ।
किताब पढ़कर पता चलता[ है, जाया ने किस तरह समाज के दोगले लोगो के बीच संघर्ष करके अपने बच्चों को बनाया और अपने लिए एक मुकाम हासिल किया ।
भारत आने के बाद उन्होंने किताब पढी और अपने विचार भी व्यक्त किये.....आपका बहुत बहुत शुक्रिया
" काँच के शामियाने "
दोस्तों ....रश्मि रविजा के इस उपन्यास को आज खत्म किया इसमें जया एक ऐसा पात्र है जो किसी न किसी रूप में हर घर में विद्दमान है । हमारे समाज का एक हिस्सा ... आज भी जया की तरह जिन्दगी बसर कर रहा है ये कहना गलत न होगा ।
जया एक ऐसी लडकी ...जिसने माँ के घर में नाज नखरों से जिन्दगी बसर की हो और ससुराल में बिल्कुल अलग परिवेष में पहुँच कर किस तरह अपनी जिन्दगी को जहन्नुम होते देख कर , उन रूढिवादी संस्कारों से जकडे लोगों के बीच अपने आत्म सम्मान की धज्जियों के टुकडों को बार - बार समेंटते हुए जिन्दगी को मौके दे रही थी कि शायद आज नहीं तो कल तो बदलेगें उसके दिन ......जहाँ का वातावरण न उसके अनुरूप था और न ही उसके मन के अनुरूप । वहाँ उसको एक ऐसे व्यक्ति के साथ जीवन यापन करना है ........जिसको पत्नी नहीं .. सिर्फ औरत का शरीर चाहिए क्षुधा पूर्ती हेतु ।
जया एक एेसा पात्र है जिसके लिए मन में दया उपजती है कि कोई इतनी जिल्लत कैसे सह सकता है .. वो भी उस पुरूष के द्वारा जो खुद पढा -लिखा तो है लेकिन अपनी पितृसत्त्तात्मक समाज के दकिया नूसी ख्यालात और पुरूष प्रधानी सत्ता को अपने से अलग नहीं कर सका ....और उसके इसी सोच का नतीजा जया भुगतती रही ।
जया डरपोक या निर्बल नहीं है वो जो भी जिल्लत सह रही है तो सिर्फ इस कारण कि बचपन से लडकी को यही समझाया जाता रहा है कि तुम्हारा घर वही है उस घर की जिम्मेदारी तुम्हारी है , अब वो लडकी जया किस तरह अपनें ससुराल वालों की बुराई पक्ष को बताये मायके में , सब सह रही है फिर भी जी रही है अपने बच्चों के भविष्य की खातिर ।
किताब पढ़कर पता चलता[ है, जाया ने किस तरह समाज के दोगले लोगो के बीच संघर्ष करके अपने बच्चों को बनाया और अपने लिए एक मुकाम हासिल किया ।
रश्मि के इस उपन्यास में हर लडकी कहीं न कहीं , कुछ धटनाऔ में अपने को खड़ा पायेगी इस उपन्यास की यही सार्थकता है ।
रश्मि को बधाई है ....कि उन्होने नारी का एक सशक्त पहलू प्रस्तुत किया है .....कि नारी ही है ..जो तमाम तकलीफो के बावजूद भी हिम्मत नही हारती है ।
रश्मि को बधाई है ....कि उन्होने नारी का एक सशक्त पहलू प्रस्तुत किया है .....कि नारी ही है ..जो तमाम तकलीफो के बावजूद भी हिम्मत नही हारती है ।
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