एक प्रोग्राम में 'Chitra Desai पास बैठी थीं, बात चीत हुई...हम साथ ही बाहर निकले .अन्य मित्रों के साथ एक टपरी पर चाय पी .चित्रा जी का घर मेरे घर के रास्ते में ही था तो उन्हें ड्राप करने का प्रस्ताव रखा ,चित्रा जी ने आगे का रास्ता समझाया ,फिर थोड़ी देर बाद मुझे मैसेज किया कि 'सुरक्षित घर पहुँच गई ना'...ड्राइव करते समय मैसेज नहीं देख पाई तो फिर उन्होंने कॉल ही किया .इतनी देर में ही इतनी आत्मीयता पनप आई थी .उनसे काफी बातें हुई थीं ,कई बार पति और बच्चों का जिक्र भी आया . फेसबुक का जिक्र तो आना ही था:) जब घर आकर उनका प्रोफाइल देखा तो पता चला, वे तो प्रख्यात अभिनेता 'अनंग देसाई' की पत्नी हैं, जिन्हें हम जमाने से फिल्मों और टी वी सीरियल में देखते आ रहे हैं . किसी अभिनेता से दूर दराज का रिश्ता हो तब भी लोग शो ऑफ करने से नहीं चूकते . चित्रा जी की ये सादगी छू गई .
जब उन्होंने अपने प्रथम कविता संग्रह ,'सरसों से अमलतास ' के लोकार्पण समारोह में बुलाया तो जाना ही था . चित्रा जी और अनंग जी के मित्रों से पूरा हॉल भरा हुआ था .फिल्मों और टी वी के भी कई कलाकार थे . पर विशेष आकर्षण 'सूर्यबाला जी ,सुधा अरोड़ा जी और राम जेठमलानी जी थे .चित्रा जी वकील हैं और राम जेठमलानी उनके वरिष्ठ सहयोगी और घनिष्ठ मित्र भी हैं .
कार्यक्रम की शुरुआत में सीमा भार्गव की नाट्य मंडली ने चित्रा जी की कविताओं को स्टेज पर जीवंत कर दिया . बचपन में उनके मन में घुमड़ते भावों, बदलते परिवेश , जीवन में आते परिवर्तन , कभी सुख..कभी परेशानी सबका सामना करते हुए सृजनरत रहना और उनसे नए अनुभव लेकर और निखर जाना सब सजीव हो उठा.
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए ,'राम जेठमलानी' जी ने ईमानदारी से स्वीकारा कि वे हिंदी भाषा नहीं पढ़ पाते और सही रूप से बोल भी नहीं पाते ,उनके परिवार में अब तक कोई कवि नहीं हुआ है फिर भी चित्रा जी के स्नेह से उन्होंने ये आमन्त्रण स्वीकार किया है. उन्होंने कहा, "धर्मान्धता विश्व के उपर एक संकट के रूप छाया हुआ है . मैंने हिन्दू, मुस्लिम, क्रिश्चन , बुद्धिज्म हर धर्म के ग्रन्थ पढ़े हैं .कोई भी धर्म नफरत नहीं सिखाता , पर अतिवादी अपनी तरह से धर्म की व्याख्या कर लेते हैं . सिर्फ प्यार ही विश्व को बचा सकता है, इसलिए प्यार की कवितायें लिखनी चाहियें." उन्होंने चित्रा जी से आग्रह भी किया कि अगले कविता संग्रह में हर कविता सिर्फ प्यार पर हो " 93 वर्ष में उनकी आवाज़ का जोश और कथ्य की गंभीरता पर उम्र की छाया भी नहीं दिखती .
मुंबई विश्वविद्यालय की अंग्रेजी की प्राध्यापिका ,भाग्यश्री वर्मा ने चित्रा जी की कविताओं पर अपने विचार रखे और एक कविता का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रस्तुत किया.
'सुधा अरोड़ा' जी ने कहा, 'किसी महिला की किताब प्रकाशित होती है तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है क्यूंकि महिलायें कई जिम्मेदारियों का वहन करते हुए लिखती है . कुछ महिलाएं देर से लिखना शुरू करती हैं ,पर उसके पहले वे नौकरी ,घर -गृहस्थी, बच्चों की जरूरते पूरी करते हुए कविता को जी रही होती हैं ."
'सूर्यबाला जी' ने चित्रा जी की कविताओं पर विस्तार से बात की और कहा उनकी कवितायें विद्रोह की कवितायें नहीं हैं .वे पंख फैला आकाश भी नाप लेना चाहती हैं और नीड़ भी बनाए रखना चाहती हैं.जैसे आंगन में नीम के पेड़ पर डला झूला हो जिसपर बैठ पेंग मार क्षितिज छू लेने का अहसास हो और फिर वापस आंगन में सुरक्षित आ जाएँ .अपनी बिब्बी (चित्रा जी की माँ और नानी ) को समर्पित कविता का ख़ास जिक्र किया ,जिसमे स्त्री जीवन की त्रासदी का जिक्र है , शादी के बाद .बस के ऊपर रखे सन्दूक में कई साल की फसलें कैद हो लड़की के साथ चली जाती हैं, कुछ दिनों बाद ससुराल वालों की मांग पर कुछ और फसलें कैद हो चली जाती हैं. पर फिर लड़की भरीपूरी लौटती है और उनकी मांग पूरी करने से इनकार कर देती है ,अब उसके पास उसकी बेटी है, जिसे वो पूरा आकाश देती है . सूर्यबाला जी ने इस बात पर जोर दिया , स्वतंत्रता अर्जित की जाती है ,उसकी मांग नहीं की जाती ...और यह सब चित्रा जी की कविताओं में है .चित्राजी यह सब सुनते भावुक हो उठीं .
राजकमल के प्रकाशक 'अशोक माहेश्वरी जी और नवनीत के सम्पादक, 'विश्ववनाथ सचदेव जी ने कहा, चित्रा जी की एक कविता पढने के बाद ,और पढने की इच्छा जाग उठती है और लगातार कई कवितायें पढ़ ली जाती हैं. कविताओं में मन के हर मौसम नजर आते हैं .
चित्रा जी ने सबका आभार प्रकट करते हुए ,सबके मन में उठते प्रश्नों का उत्तर भी दिया कि ,'कविता संग्रह के लोकार्पण में उन्होंने राम जेठमलानी जी को क्यूँ आमंत्रित किया . तीन साल पहले विश्व शान्ति के उद्देश्य से किये गए एक सम्मेलन में जिसमे पाकिस्तान के वकील भी आमंत्रित थे , जेठमलानी जी ने 'चित्रा जी से अनुरोध किया था कि वे मंच से एक कविता पढ़ें . इस कविता पाठ ने चित्रा जी को बहुत आत्मविश्वास दिया , उनमें उत्साह जगाया .वे कविताओं की दुनिया में फिर से लौटीं और उनमें अपना संकलन प्रकाशित करवाने की इच्छा जागी .इन सबका श्रेय जेठमलानी जी को है .
मंच का संचालन 'अनंग देसाई' जी ने किया पर वे पूरे समय परिप्रेक्ष्य में बने रहे . ये चित्रा जी का कार्यक्रम था और उहोने उन्हें उत्सव मूर्ति बने रहने दिया . वे सिर्फ वक्ताओं को आमंत्रित करते और फिर श्रोताओं के बीच जाकर बैठ जाते . चित्रा जी ने अपनी एक कविता में दाम्पत्य जीवन के सामंजस्य पर बहुत सुंदर लिखा है
जब तुम सिमट गए
तो हमने आकाश फैला दिया
जब हम बौने हुए तुमने अपना कद बढ़ा लिया
जब तुम सिमट गए
तो हमने आकाश फैला दिया
जब हम बौने हुए तुमने अपना कद बढ़ा लिया
चित्रा जी को एक सफल समारोह की बधाई एवं इस पुस्तक की अनेक शुभकामनाएं ,
मेरे लिए भी यह कार्यक्रम ख़ास रहा . सूर्यबाला जी से मुलाक़ात हो सकी .धर्मयुग में जिनकी कहानियाँ पढ़ते हुए ही कहानी में रूचि जागी और बाद में लिखना भी शुरू किया . उनके लिखे संस्मरण कहानियाँ.सब, अब तक याद हैं . अपनी किताब उन्हें देना ,मेरे लिए सौभाग्य की बात थी . मैंने हॉल में अँधेरे में ही अंदाज़े से उसपर कुछ लिखा ,डर था ,ऐसा ना हो कार्यक्रम खत्म होते ही वे चली जाएँ ..( कार्यक्रम शुरू होने के पहले सूर्यबाला जी से बातें हुई थीं.पर तुरंत ही अपनी किताब देना अच्छा नहीं लगा था ) पर इतनी बड़ी लेखिका होते हुए भी , सूर्यबाला जी, सुधा अरोड़ा दी में इतनी सहजता है कि उनके समक्ष मन नतमस्तक हो जाता है,.मैंने बाद में एक तस्वीर खिचवाने की भी इच्छा जाहिर की . उनलोगों ने खुद कहा, 'यहाँ अन्धेरा है ,तस्वीर अच्छी नहीं आएगी...इधर आ जाओ " और फिर दो तीन जगह बदलकर जहाँ अच्छी रौशनी थी ,वहां खड़ी हुईं . मुझे जोर देकर बीच में खड़े होने के लिए कहा .सूर्यबाला जी को आभास है कि अपनी किताब से किसी को कितना प्यार होता है .उन्होंने 'कांच के शामियाने' बिलकुल सामने कर लिया . बाद में मैंने तस्वीर देखी तो गौर किया smile emoticon . कितना कुछ सीखा जा सकता है ,इन महान लेखिकाओं से ..सादर नमन उन्हें .
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