कई गुदड़ी के लाल. की....धूल में खेलकर बड़े हुए पैरों के आसमान छूने की कहानियाँ सुनी हैं,पढी हैं .पर किसी ऐसे ही व्यक्ति के श्रीमुख से उनकी जीवन कथा सुनना एक अनोखा अनुभव रहा .
बेटे का दीक्षांत समारोह था .अक्सर ऐसे समारोह में बस बच्चों को गाउन पहने डिग्रियां ग्रहण करते हुए देखना ही रुचिकर लगता है वरना लम्बे लम्बे भाषण उबासियाँ लेने पर मजबूर कर देते हैं . पर जैसे ही मुख्य अतिथि के परिचय में दो शब्द कहा गया और उनकी उपलब्धियों में कुछ ऐसी बातों का जिक्र था जिनकी जानकारी मेरे लिए बिलकुल नयी थी. मुख्य अतिथि 'डॉक्टर रघुनाथ माशेलकर ' जब छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को संबोधित करने आये तो पूरा हॉल सतर्क हो गया..और बीच बीच में बजती तालियाँ इस बात की द्योतक थीं कि सबलोग रुचिपूर्वक ध्यान से सुन रहे हैं.
'रघुनाथ माशेलकर जी ' ने अपने विषय में बताया कि उन्होंने छः वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो दिया था .उनकी माता जी उन्हें लेकर काम ढूँढने मुंबई आ गयीं . वे छोटे मोटे काम करने लगीं और रघुनाथ जी को एक सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया . वे बॉम्बे सेन्ट्रल के प्लेटफॉर्म पर अपनी पढ़ाई किया करते थे . वे बता रहे थे तब साढ़े दस बजे गुजरात जाने वाली लास्ट ट्रेन मुंबई सेन्ट्रल से छूटती और उसके बाद प्लेटफॉर्म पर शान्ति होती, तब वे रात के दो बजे तक पढ़ाई करते . दसवीं की बोर्ड परीक्षा में वे राज्य में ग्यारहवें स्थान पर आये थे. पर फिर भी वे आगे पढाई न कर काम की तलाश में थे क्यूंकि उनकी माता जी उनकी पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थीं. उसी वक्त 'टाटा ग्रुप' ने उन्हें अगले छः साल तक के लिए प्रतिमाह साठ रुपये महीने की छात्रवृत्ति प्रदान की .रघुनाथ जी ने आगे की पढ़ाई जारी रखी और मुंबई यूनिवर्सिटी से १९६६ में केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और १९६९ में इसी विषय में पी.एच.डी किया.
बेटे का दीक्षांत समारोह था .अक्सर ऐसे समारोह में बस बच्चों को गाउन पहने डिग्रियां ग्रहण करते हुए देखना ही रुचिकर लगता है वरना लम्बे लम्बे भाषण उबासियाँ लेने पर मजबूर कर देते हैं . पर जैसे ही मुख्य अतिथि के परिचय में दो शब्द कहा गया और उनकी उपलब्धियों में कुछ ऐसी बातों का जिक्र था जिनकी जानकारी मेरे लिए बिलकुल नयी थी. मुख्य अतिथि 'डॉक्टर रघुनाथ माशेलकर ' जब छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को संबोधित करने आये तो पूरा हॉल सतर्क हो गया..और बीच बीच में बजती तालियाँ इस बात की द्योतक थीं कि सबलोग रुचिपूर्वक ध्यान से सुन रहे हैं.
'रघुनाथ माशेलकर जी ' ने अपने विषय में बताया कि उन्होंने छः वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो दिया था .उनकी माता जी उन्हें लेकर काम ढूँढने मुंबई आ गयीं . वे छोटे मोटे काम करने लगीं और रघुनाथ जी को एक सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया . वे बॉम्बे सेन्ट्रल के प्लेटफॉर्म पर अपनी पढ़ाई किया करते थे . वे बता रहे थे तब साढ़े दस बजे गुजरात जाने वाली लास्ट ट्रेन मुंबई सेन्ट्रल से छूटती और उसके बाद प्लेटफॉर्म पर शान्ति होती, तब वे रात के दो बजे तक पढ़ाई करते . दसवीं की बोर्ड परीक्षा में वे राज्य में ग्यारहवें स्थान पर आये थे. पर फिर भी वे आगे पढाई न कर काम की तलाश में थे क्यूंकि उनकी माता जी उनकी पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थीं. उसी वक्त 'टाटा ग्रुप' ने उन्हें अगले छः साल तक के लिए प्रतिमाह साठ रुपये महीने की छात्रवृत्ति प्रदान की .रघुनाथ जी ने आगे की पढ़ाई जारी रखी और मुंबई यूनिवर्सिटी से १९६६ में केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और १९६९ में इसी विषय में पी.एच.डी किया.
विदेश के कई विश्वविद्यालयों में लेक्चर दिए. भारत के विज्ञान और तकनीक विभाग में नियम बनाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. देश-विदेश में उन्हें करीब ५० से ज्यादा अवार्ड और कई विश्विद्यालयों ने उन्हें मानक डॉकट्रेट की उपाधि प्रदान की है ,वे अनगिनत वैज्ञानिक कमिटियों के मेंबर रह चुके है . उन्हें 1991 में पद्मश्री और 2006 में पद्मविभूषण प्रदान किया गया .
उन्होंने अपने भाषण में एक बहुत ही रोचक वाकये का जिक्र किया। अमेरिका में हर वर्ष विज्ञान,साहित्य, समाज-सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करने वाले पूरे विश्व से चुने गए एक व्यक्ति को एक अवार्ड दिया जाता है. अब तक सात-आठ भारतीयों को भी यह अवार्ड मिल चुका है। संभवतः २०१० में रतन टाटा को यह अवार्ड मिला था और उसके अगले ही वर्ष 'रघुनाथ मालेश्कर ' को यह अवार्ड प्रदान किया गया. वहाँ एक परिपाटी है कि अवार्ड लेने वाला व्यक्ति वहां रखी एक पुस्तिका में अपने हस्ताक्षर करता है। किसी करणवश 'रतन टाटा ' उस वर्ष अवार्ड लेने नहीं जा सके ,और अगले वर्ष रघुनाथ माशेलकर ' के साथ ही यह अवार्ड ग्रहण किया और उस पुस्तिका के एक ही पन्ने पर दोनों महारथियों ने हस्ताक्षर किये. माशेलकर जी ने कहा , "इसी टाटा ग्रुप की छात्रवृत्ति से मैंने शिक्षा ग्रहण की और ५० साल बाद टाटा ग्रुप के मालिक और उनकी आर्थिक मदद से पढ़े हुए एक व्यक्ति ने समकक्ष रूप से यह अवार्ड ग्रहण किया।
उन्होंने ये भी जिक्र किया कि एक बार किसी कॉन्फ्रेंस में सबसे पूछा गया , कि सबसे महत्वपूर्ण फॉर्मूला क्या है ? किसी ने आइन्स्टाइन का e = mc square बताया किसी ने न्यूटन का F = ma बताया पर रघुनाथ जी ने कहा, मेरे लिए e = f का फ़ॉर्मूला सबसे महत्वपूर्ण है यानि Education = Future . अच्छी शिक्षा ही बेहतर भविष्य दे सकती है। वे इस बात पर बहुत जोर देते हैं कि "knowledge is wealth and knowledge creates wealth"
माशेलकर जी ने बहुत सारे महत्वपूर्ण अनुसंधान किये हैं जो मुझ जैसी सामान्य बुद्धि वाली की समझ में नहीं आने वाले। विज्ञान के छात्र ही समझ सकते हैं। यहाँ विस्तार से इसका जिक्र है।
पर हमारे लिए यह बात बहुत महत्वपूर्ण रही कि हल्दी के औषधीय गुण, जिसे हमारे देश में हज़ारो साल से जाना जाता है और प्रयोग में लाया जाता है। इस जानकारी को एक पश्चिमी देश ने अपने नाम से पेटेंट करवा लिया था। माशेलकर जी ने इसके लिए लम्बी लड़ाई लड़ी , पुराने ग्रंथों से कई साक्ष्य प्रस्तुत किये ,उसके बाद पुराने निर्णय को बदलकर भारत के नाम से इसे पेटेंट करवाया गया . इसी तरह बासमती चावल में खुशबू की खोज को भी texas ने अपने नाम से पेटेंट करवा लिया था। नीम के औषधीय गुण को भी पश्चिमी देश अपनी खोज बता रहे थे। माशेलकर जी के प्रयासों से इन निर्णय को बदलकर भारत के नाम से पेटेंट करवा लिया गया।
माशेलकर जी ने यह भी जिक्र किया कि 'रेडियो' का आविष्कार 'जगदीश चन्द्र बोस' ने किया था। सिस्टर निवेदिता ने उनसे आग्रह भी किया, अपने नाम से पेटेंट करवाने का पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया और आज इतिहास में रेडियो के आविष्कारक के रूप में मार्कोनी का नाम दर्ज है। इसी वजह से माशेलकर जी ने intellectual property को रजिस्टर करवाने पर बहुत जोर दिया और इसके लिए बहुत काम किया .
माशेलकर जी के नेतृत्व में CSIR ने सिर्फ तीन वर्षों में अमेरिका में पेटेंट किये गए अनुसंधानों में ३०%-४०% भारत के नाम दर्ज करवाए।
डॉक्टर रघुनाथ माशेलकर ने अपनी मेहनत और लगन से अपने बुरे दिनों का सामना किया और उन्हें परास्त किया। आज भी विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में वे कई महत्वपूर्ण पदों पर उसी मेहनत ,लगन ,दूरदर्शिता और देशभक्ति की भावना से काम कर रहे हैं।
बालक माशेलकर, उनकी दादी और नन्ही चिड़िया के बगैर तो ये कहानी अधूरी है :) ^_^ :)
जवाब देंहटाएंआप सुना दीजिये वो कहानी
हटाएंप्रेरक प्रसंग ! सराहनीय प्रविष्टि !
जवाब देंहटाएंइस शानदार व्यक्तित्व को प्रणाम . . .
जवाब देंहटाएंराजनीतिक शिथिलता अन्य पक्षों में भी प्रभाव डालती है।
जवाब देंहटाएंवाह......
जवाब देंहटाएंदिल खुश हो गया पढ़ कर रश्मि....
मन भर आया!!!
हमारे लिए तो अनजान थे ये महान शख्सियत.
अनु
प्रेरक ... सच में ऐसी महान विभूतियों द्वारा किये कार्यों से प्रेरणा मिलती है ... माँ भारती के सचे सपूत तो दरअसल ये ही हैं ... नमन है डाक्टर रघुनाथ को ...
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंनिःसंदेह वो नमन के योग्य हैं.। यही होता है, जिस देश को अपने लोगों की परवाह नहीं होगी तो गैर तो फायदा उठाएँगे ही.। प्रवीण जी की बातों से सह-मत हूँ :)
नमन ...उनके विचार एवं कार्य सराहनीय और अनुकरणीय हैं
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार पोस्ट है रश्मि. सचमुच जगदीश जी ने बहुत बड़ी गलती की थी...मैं जब भी बच्चों को ये टॉपिक पढाती हूं, अफ़सोस ज़ाहिर करती हूं..
जवाब देंहटाएंविशिष्ट व्यक्तित्व और पूर्व महानिदेशक (मैं सी एस आई आर परिवार से हूँ) के गुणगान के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंशानदार व्यक्तित्व को प्रणाम .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : नई अंतर्दृष्टि : मंजूषा कला
बहुत अच्छा लगा इनके बारे में जानकर।अमेरिका और दूसरे कई
जवाब देंहटाएंदेश तो बाहर जन्मी प्रतिभाओं को भी लपकने को तैयार रहते हैं और दूसरी तरफ हम हैं जो अपने यहाँ की प्रतिभाओं की ही कद्र नहीं करते।हाँ फर्जी बाबाओं और निठल्ले साधुओं की चरण वंदना में कोई कमी नहीं रखते।
डॉ. रघुनाथ माशेलकर जी को नमन कि उन्होंने भारतीय वैज्ञानिक सोच को बढाया और स्थापित किया कि कैसे पश्चिम भारत कि बौद्धिकता को चुरा ले रहा है....
जवाब देंहटाएंरश्मि जी आपके इस पोस्ट को आपकी अनुमति के बिना मैंने अपने फेसबुक पर शेयर किया है.. ब्लॉग पोस्ट का लिंक भी साझा किया है.
माशेलकर जी जैसे प्रेरक व्यक्तित्वों और उनकी लगन के बारे में जानकर अच्छा लगता है. आभार!
जवाब देंहटाएंहल्दी , नीम आयात होने से बच गए !
जवाब देंहटाएंमाशेलकर जी बधाई के पात्र हैं !
very knowledgeable post ! thanks for introducing with Dr. Mashelkar .
जवाब देंहटाएंबढ़िया और प्रेरक !
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