"क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात "
"क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो "
"To err is human , to forgive is divine "
"Forgiveness is the virtue of the brave and the final form of love "
ये सारी उक्तियाँ सुनने में बहुत ही प्रेरणास्पद लगती हैं . क्षमा अपने आप में एक महान चीज़ है, व्यक्ति के उदारमना होने का परिचय देती है, अपराधी को सुधरने का मौक़ा देती है. पर क्या गारंटी है कि अपराधी सुधर जाए ?? कई बार अपराधी इसे सामनेवाले की कमजोरी भी समझ लेते हैं और फिर वे तो नहीं ही सुधरते बल्कि उन्हें यूँ कोई सजा पाते न देख आपराधिक प्रवृत्ति के दुसरे लोगों का भी हौसला बढ़ता है और उनका डर गायब हो जाता है ,फिर उन्हें भी कोई अपराध करने में हिचक नहीं होती .
अभी हाल में ही महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित शहर कहे जाने वाले मुंबई में एक वीभत्स घटना हुई .(जो सामने आयी वरना पता नहीं मुम्बई सहित कितने शहरों में रोज ऐसे कितने ही अपराध होते हैं और पता भी नहीं चलता ) पिछले दिसंबर में निर्भया के साथ हुए दर्दनाक हादसे और उसकी मौत से पूरे देश का गुस्सा उबल पड़ा था , लोग सड़कों पर आ गए थे . लेकिन उन अपराधियों को सजा देने की प्रक्रिया भेडचाल से चल रही है. ऐसा नहीं है कि मुम्बई में इस कुकृत्य को करने वाले इन अपराधियों ने देश का वो रोष नहीं देखा होगा . लोग सड़कों पर थे ,टी,वी चैनल्स हफ़्तों पूरे पूरे दिन इसका प्रसारण करते रहे फिर भी इन अपराधियों को ज़रा भी डर नहीं लगा . वे साथ में ये भी देख रहे थे कि नारों,धरनों और टी.वी. रिपोर्टिंग के आगे कुछ नहीं हो रहा . उन्होंने इस फोटो जर्नलिस्ट के पहले भी जाने कितनी ही लड़कियों के साथ ये अमानुषिक अत्याचार किया है. क्यूंकि इन्हें सजा पाने का कोई डर नहीं था . इन्हें विश्वास था कि लडकियां पुलिस में रिपोर्ट नहीं करेंगी. समाज में बदनामी का भय और पुलिस की नाकामी और हमारी धीमी न्याय प्रक्रिया ..इन अपराधियों के हौसले और भी बढ़ा देती है .
पिछली पोस्ट लिखते वक़्त मुझे दो घटनाएं याद आयीं जो इन बड़े बड़े अपराधों के समक्ष तो बहुत छोटी हैं पर अपराध की श्रेणी में तो आती ही हैं.
जब मैंने यह जिक्र किया था कि धीमी ट्रैफिक में मैंने कार का शीशा इसलिए नीचे नहीं किया क्यूंकि मंगलसूत्र छिन जाने का डर था ...उस वक्त दिमाग में कुछ ही दिनों पहले अखबार में पढ़ी एक घटना ताज़ा थी . फिल्म अभिनेता 'विद्युत जामवाल ' ट्रैफिक जैम में फंसे हुए थे और अपने कार का शीशा नीचे कर मोबाइल पर बातें कर रहे थे .तभी एक लड़का उनके हाथों से मोबाइल छीन कर भागा . आज के अभिनेताओं की तरह विद्युत् भी अच्छी वर्जिश करते हैं और फिट हैं. उन्होंने उस लड़के का पीछा किया .लड़के का एक साथी मोटरसाइकिल पर सवार था , लड़का जैसे ही बाइक पर बैठने को हुआ विद्युत् ने उसे पकड़ लिया .उसे कुछ झापड़ रसीद किये .पब्लिक ने भी उसे मारना शुरू कर दिया. लड़का गिडगिडाने लगा और विद्युत् ने उसे माफ़ कर दिया ,पब्लिक से बचा कर उसे जाने दिया. विद्युत् का कहना है , "वह एक अच्छे घर का पढ़ा -लिखा लड़का लग रहा था. अंग्रेजी में बातें कर रहा था .उसे सुधरने का मौक़ा मिलना चाहिए "
पहली नज़र में विद्युत् जामवाल की बातें सही लगती हैं ,लेकिन क्या पता वो लड़का इसे एक थ्रिल समझे फिर से ऐसा करने का प्रयास करे. इस बार किसी ओवरवेट सज्जन का मोबाइल छीने जो उसे भाग कर नहीं पकड़ सकें. उसे अपने किये की कोई सजा तो नहीं मिली .
जब मैंने मॉर्निंग वाक पर जाने वाली महिलाओं के गले से चेन छीने जाने की घटना का जिक्र किया तो उसी से जुडी एक घटना याद हो आयी .तीन-चार साल पहले की बात है ,इस तरह की घटनाएं नयी नयी शुरू हुई थीं .एक दिन वॉक पर जाते वक़्त मैं गले की चेन उतारना भूल गयी. मेरी फ्रेंड ने कहा . उतार कर पर्स में रख लो ,मैंने वैसा ही किया .लौटते वक़्त सब्जी खरीदने के लिए छोटा सा पर्स हम साथ रखते थे . वॉक से लौटकर मैंने डाइनिंग टेबल पर पर्स रख दिया और दुसरे कामों में लग गयी . जब बाद में पर्स ढूँढा तो पर्स नहीं मिला. पर्स में छः सौ रुपये भी थे . इसके चार-पांच दिनों पहले कहीं जाते हुए मंगलसूत्र पहनना चाहा था तो वो भी नहीं मिला . मुझे लगा मैंने कहीं और रखा होगा . मैं इतनी कुशल गृहणी नहीं हूँ . हर चीज़ जगह पर नहीं रखती और आलमीरा भी लॉक नहीं करती. मैंने सोचा किसी और दराज में या किसी और डब्बे में रख दिया होगा. मेरी लापरवाही की एक और वजह है, इतने दिनों की गृहस्थी में मुझे हमेशा ईमानदार कामवालियां मिलीं थीं . बाथरूम में गिरा हुआ चेन उठा कर दे देतीं, इधर उधर पड़ी मेरी अंगूठियाँ, कड़े उठा कर दे देतीं. जब मैं पटना जाती तो वहां भी वही आदत ,कहीं भी चीज़ें रख देतीं और माँ कहतीं 'यहाँ की कामवालियां तुम्हारे मुम्बईवालियों की तरह ईमानदार नहीं हैं ' इसीलिए जब मंगलसूत्र नहीं मिला तो मुझे कामवाली पर शक नहीं हुआ. नयी कामवाली दस दिन पहले ही मेरे पास आयी थी . उसका पिता पिछले दस वषों से बगल की बिल्डिंग में वाचमैन था .उसकी माँ भी आस-पास के फ्लैट्स में काम करती थी इसलिए उसपर शक का कोई सवाल ही नहीं पर जब चेन भी नहीं मिला तो उसपर शक किये बिना गुजारा भी नहीं. मैंने कबर्ड का कोना कोना..पूरा दराज, हर डब्बा खोल खोल कर देख लिया पर न तो चेन था न मंगलसूत्र . सोचा वो काम करने आएगी तो पहले काम करवा लूंगी ,फिर उस से पूछताछ करुँगी. पर इतना धीरज नहीं रहा . उससे पूछा और वो जोर जोर से चिल्ला कर कसमें खाने लगी...रोने लगी ..तरह तरह के दलील देने लगी. पर मेरा भी कहना था , 'उसके सिवा कोई बाहरी व्यक्ति घर में आया ही नहीं.' वो बाहर चली गयी , अपने पिताजी , माँ को लेकर आयी . उनका भी यही कहना था ,"ऐसा काम वो कर ही नहीं सकती " जब मैंने पुलिस की धमकी दी तो रोने लगी, "मेरे दो छोटे छोटे बच्चे हैं..पति ने छोड़ दिया है..बच्चों का क्या होगा " मेरे बेटे भी उसका रोना देख द्रवित हो गए . अंकुर ने मुझे अलग बुलाकर कहा , "उस दिन तुमने मुझे पांच सौ दिए थे ..शायद उसी पर्स में से दिया होगा " मेरी झल्लाहट उनपर निकली ,"अकेला वही पांच सौ का नोट था घर में ??"
पूरे दिन ये चलता रहा ,वो, उसके भाई..माता-पिता आते रहे . {और झाडू-पोछा बर्तन मैं करती रही :(} आखिर उसने कहा , "आपने ही घर में इधर उधर गिरा दिया होगा..ठीक से देखिये " मैं उसकी चाल समझ गयी .मैंने कहा," ठीक है तुम्ही देखो" तो उसने कहा,"अब तो रात हो गयी..कल झाड़ू लगाकर देखती हूँ '
दुसरे दिन आते ही उसने झाडू उठाया .मैं जानबूझकर कमरे में नहीं गयी . थोड़ी देर बाद उसकी चिल्लाने की आवाज़ आयी.."भाभी देखिये..यहाँ चेन है.." कोने में एक थैला पड़ा था जिसमे कुछ कागज़ वगैरह रखे थे. उसी में से उसने चेन निकाल कर दे दिया. मुझे सुनाया भी.."आप खुद ठीक से नहीं रखतीं ...दुसरे का नाम लगाती हैं..आदि आदि " उस पर्स में से निकल कर उस थैले में चेन गिर जाने की कोई संभावना नहीं थी फिर भी मैं चुप रही..मैंने कहा.."देखो ऐसे ही कहीं मंगलसूत्र गिरा होगा..वो भी ढूंढो " पर पूरे घर में झाडू लगाने के बाद उसने झाडू पटका और जोर से ये कहती हुई कि " चेन की तरह मंगलसूत्र भी आपने कहीं गिरा दिया होगा,शायद घर से बाहर गिराया हो " चली गयी. फिर दुबारा उसने मेरे घर का रुख नहीं किया . कई बार मन में आया पुलिस में शिकायत करूँ फिर उसके बच्चों का ख्याल कर रुक गयी. कुछ दिनों बाद सुनने में आया आस-पास के फ्लैट्स से भी उसने पैसे ,बर्तन चुराए हैं .सबने उसे निकाल दिया . अब किसी नयी कॉलोनी में काम कर रही होगी .पर न तो उसे कोई सबक मिला न उसकी आदतें सुधरीं . ये उसके हक में भी अच्छा नहीं हुआ. इसी तरह हर जगह से काम छूट जाएगा तो भूखो मरने की नौबत आ जायेगी .
मेरे लिए तो और भी बुरा हुआ . उसकी झोपड़पट्टी में ये बात फ़ैल गयी . .बाद में जो कामवाली आयी ,उसने भी बड़ा आश्चर्य जताया ,अपने ईमानदार होने की कसमे खाईं . उन दिनों मेरे कुछ बुरे ग्रह ही चल रहे थे .एक दिन ऐसे ही देर रात कंप्यूटर पर कुछ पढ़ते हुए इस अंगुली की अंगूठी उस अंगुली में डाल रही थी और अंगूठी नीचे गिर गयी . टन्न से आवाज़ भी हुई . झुक कर देखा,नहीं मिला..सोचा अब इतनी रात में मेज खिसका कर क्या सबकी नींद खराब करूँ .दुसरे दिन मैंने बाई के साथ ही टेबल खिसका कर ढूँढा पर मुझसे पहले शायद बाई को नज़र आ गयी . और अंगूठी नहीं मिली .
कुछ दिनों बाद ही किसी फंक्शन में जाना था ,मैंने अपनी डायमंड इयररिंग्स उतार कर सौ रुपये के मैचिंग लम्बे इयररिंग्स पहने . दुसरे दिन, घर पर कुछ गेस्ट आने वाले थे ,बहुत ही बिजी थी..उसी में जल्दी में पुरानी इयररिंग्स पहनी पर ठीक से उसका स्क्रू नहीं लगा और वो घर में ही कहीं गिर गया . मैंने तो अगले दिन नोटिस किया तब तक झाडू-पोछा हो चुका था .दुबारा झाडू लगाकर ढूँढने की कोशिश की पर नहीं मिला. कामवाली साफ़ नकार गयी . उसे डर तो था नहीं कि ये पुलिस में शिकायत कर देंगी . उसे लगा, इनके यहाँ तो आराम से चीज़ें ली जा सकती हैं .उन मैडम को भी अलविदा कहा . टचवुड उसके बाद से सब ठीक रहा है...मैं भी थोड़ी सतर्क हो गयी और अच्छी कामवाली भी मिल गयी . लोगो ने ये कह कर भी डरा दिया था "सोना खोना बहुत बुरा होता है " पर सब ठीक ठाक ही है.
फिर भी कई बार ये ख्याल आता है अगर मैं पहली वाली बाई के साथ ही सख्ती बरतती तो शायद उसे मेरा मंगलसूत्र भी लौटाना पड़ता और दूसरी बाइयां भी मुझसे डर कर रहतीं कि इनके यहाँ से चोरी करके नहीं बचा जा सकता. उन्हें सबक मिलता तो उनकी आदतें भी सुधर जातीं .
क्षमा करने जैसी बात सुनने में बड़ी अच्छी लगती है ,पर जिन्हें क्षमा किया जाता है, उनका कुछ अच्छा नहीं होता .आखिर हम अपने बच्चों को भी छोटी छोटी बातों पर सजा देते हैं. 'होमवर्क नहीं किया, आज टी.वी. देखना बंद.' 'अपनी चीज़ें जगह पर नहीं रखीं ,.खेलने जाना बंद' .अपने बच्चों को हम अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं ,उनकी गलतियां सुधारना चाहते हैं ,उनमें अच्छे गुण भरना चाहते हैं तो वैसे ही समाज के प्रति भी हमारा यही दृष्टिकोण होना चाहिए . उन्हें भी सुधारने की जिम्मेवारी हमारी ही है .
अरे हम तो क्षमा कर कर के क्षमा देवी हो गए हैं, लेकिन क्या किया जाए पुलिस वैगरह का झंझट भी तो बहुत है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं है कि सबक सिखाना ज़रूरी है, एक बार अगर ये बात लोग जान जाएँ कि ग़लती करके यहाँ बचा नहीं जा सकता है तो अच्छा ही रहता है, खुद के लिए भी और अपराधी के लिए भी, थोडा डर तो आ ही जाता है मन में..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है तुमने अगली बार मैं माफ़ नहीं करने वाली :)
पता है, तुम्हारी माँ की विश्वासी बाई ने जिसकी तुमलोगों ने इतनी मदद की, उसके बच्चे को होस्टल में रखकर पढ़ाया ..उसने रातो रात घर का सारा सामान साफ़ कर दिया.
हटाएंपर हमलोगों को पुलिस का भरोसा ही नहीं है, नतीजा कुछ निकलेगा नहीं और रोज रोज पुलिस स्टेशन के चक्कर काटो ..वो अलग . यही सब सोचकर आम नागरिक मौन रह जाता है.पर थोड़ी परेशानी उठा कर अपराधी को सजा दिलवाना भी अब हमें अपने कर्त्तव्य में शामिल कर लेना चाहिए.
ऑफ कोर्स क्षमा का अभिप्राय अलग ही है। होना यह चाहिए कि निरपराध को सज़ा न मिले और अपराधी को और अपराध करने के बहाने न मिलें।
जवाब देंहटाएंपर अक्सर होता उल्टा ही है, निरपराध पकडे जाते हैं और अपराधी खुले घूमते हैं
हटाएंसबको आमदनी चाहिए ..
जवाब देंहटाएंसबको आसान आमदनी चाहिए .
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जवाब देंहटाएंचोरी यूँ तो अपराध ही है , मगर कई बार पेट भरने की मजबूरी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है। जिस तरह महंगाई बढ़ रही है , रोज काम कर अपना पेट भरने वालों की मुश्किलें भी ! इसलिए कई बार उन्हें माफ़ कर दिया जाता है!!
मगर जघन्य अपराधों पर माफ़ी समाज के लिए अत्यंत घातक है। किसी भी सूरत में माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए !! निर्भया के साथ हुए विभत्स हादसे पर यदि दोषियों को उनके इस जघन्य अपराध की गंभीर सजा मिली होती तो शायद ऐसी घटनाओं की पुनरावृति पर अंकुश लगता।
चोरी से कभी किसी का पेट नहीं भरता, मेहनत से भरता है. इसमें कोई नियमित आमदनी नहीं रहती.जो कामवालियां ईमानदारी से काम करती हैं ,वे अपना घर चला रही हैं, बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं ,उन्हें नियमित काम मिलता है .पर चोरी करने वालों को कोई काम पर भी नहीं रखना चाहता .एक दिन दीवाली तो बाकी के दिन फाकाकशी भी करना पड़ता है .
हटाएंऔर किसी जघन्य अपराध की शुरुआत हमेशा छोटे छोटे अपराधों से ही होती है . मुंबई में जो अपराधी पकडे गए हैं, वे छोटी -मोटी रेलवे की चोरियां ही किया करते थे .धीरे धीरे निर्भीक होकर बड़े काण्ड करने लगे. एक अपराधी के बारे में तो कहा जा रहा है ,अगर उसे सजा मिली होती तो वो अभी जेल में होता और इस वीभत्स काण्ड में शामिल नहीं हो पाता. उसके हक़ में भी अच्छा होता ,चोरी के लिए शायद साल दो साल की सजा काटकर बाहर आ जाता अब तो कड़ी से कड़ी सजा मिले यही सबकी मांग है .
अगर गलती की है और फिर भी सजा न मिले तो बढ़ावा ही मिलता है..... यकीनन क्षमा के मायने अलग हैं ...
जवाब देंहटाएंसच में छोटी गलतियों की छोटी सजा ही ...पर सजा मिलनी जरूर चाहिए .
हटाएंक्षमा गलती के लिए होती है, अपराध के लिए नहीं। अपराध के लिए तो हमेशा से दंड का प्रावधान रहा है, प्राचीन काल से। हां अनजाने में हुई गलती या भूल को क्षमा कर देना उचित है, वह भी तभी तक जब तक वह एक आदत न बने।
जवाब देंहटाएंपरिस्थिति देखकर ही क्षमा करना चाहिए। कई बार बाइयों के मामले में तो चुप ही रह जाना पड़ता है वो भी महानगरों में।
जवाब देंहटाएंमहानगर में या कहीं भी लोग चुप ही रह जाते हैं ...छोटे शहरों में तो ये लोग चोरी भी करती हैं और अगर उनसे जबाब तलब किया जाए तो काम करना भी छोड़ देती हैं और दूसरी बाइयों को भी उस घर में काम नहीं करने देतीं.
हटाएं
जवाब देंहटाएंआप की बातो से बिलकुल सहमत हूँ , मेरा भी यही मानना है की पहली गलती पर माफ़ी हमेसा दूसरी गलती करने की प्रेरणा होती है , यदि व्यक्ति अपनी तरफ से गलती मान भी ले तो भी सांकेतिक ही सजा जरुर देनी चाहिए , नहीं तो उसे लगेगा की फिर अपनी गलती मान कर बचा जायेंगे , सांकेतिक सजा उसे इस बात की याद दिलाएगा की पहा;ली गलती होने और उसे मानाने के बाद भी सजा मिली थी तो दुबारा किया तो बाख नहीं सकते है , मोबाईल और चेन छिनने वाले सुधारने वाले लडके नहीं होते है क्योकि ये काम वो मजबूरी में नहीं मौज मस्ती के लिए करते है , अपना रुतबा बढ़ने के लिए करते है , ये तभी सुधरेंगे जब उनके रुतबे पर आंच आये और ये काम पुलिस में उन्हें दे कर किया जा सकता है , माफ़ी मिलाने की खबर से तो बाकियों को भी लगेगा की चलो पकडे गए तो माफ़ी मांग लेंगे ।
और हा मुझे उम्मीद न थी की आप इतनी लापरवाह हो सकती है ।
बिलकुल मोबाइल और चेन छीनने वाले लड़कों की कोई मजबूरी नहीं होती...मौज मस्ती के लिए करते हैं फिर इसमें मजा आने लगता है और वह आदत बन जाती है. विद्युत् जामवाल को भी पुलिस स्टेशन बुला कर जबाब तलब किया जा रहा है कि उन्होंने उस लड़के को पुलिस को क्यूँ नहीं सौंपा ...हो सकता है वह मोबाइल छीनने वाले किसी गैंग का सदस्य हो.
हटाएंऔर यह सब लिख कर तो मैंने अपनी ही इमेज का बंटाधार कर दिया .क्या पता आपकी तरह और लोग भी मुझे बड़ा जिम्मेवार समझते हों :( पर अपने पक्ष में मैं एक दलील {इसे दलील ही कहेंगे :)} भी दे देती हूँ. एक बार शोभा डे ने कहीं लिखा था कि 'वे जानती हैं उनकी कामवालियां सब्जियां लाती हैं या सामान लाती हैं तो पैसे का गड़बड़ करती हैं या किचन से सामान गायब करती हैं पर वे इतना लेखा जोखा नहीं रखतीं कि अब उसका हिसाब करें या अपनी पढ़ाई-लिखाई देखें ." कई महिलायें बताती हैं वे तो कामवाली के पीछे पीछे घुमती हैं..साथ रहकर काम करवाती हैं .अब मैं घर-बाहर का काम भी करूँ और कामवाली के साथ साथ भी काम करवाऊं फिर अपनी रूचि का काम कब करूँ :(
नहीं नहीं आप ने अपनी इमेज का कोई बंटाधार नहीं किया है :)
हटाएंमै आप को बहुत सतर्क मानती थी ( और हूँ ) इसलिए लगा की एक ही लापरवाही आप दुबारा नहीं कर सकती है , हा ये भी हो सकता है की इन अनुभवों ने ही आप को इतना सतर्क बना दिया , आखिर हम अपने अनुभवों से ही सिखाते है, सीखे सिखाये पैदा नहीं होते है । पीछे पीछे मै भी नहीं घुमती किन्तु कोई कीमती चीज सामने भी रही रखती , लोगो को शक में घूरती नहीं रहती हूँ किन्तु लोगो पर विश्वास भी नहीं करती ।
मै आप को अपना किस्सा बताती हूँ , मेरे घर एक महिला दूध देने आती महिना भर ही हुआ था की सोसायटी के लोगो ने सीसी टीवी में किसी को पहचानने के लिए बुलाया देखा तो वो महिला मेरे घर दूध देने के बाद जाते समय वो लिफ्ट के बगल वाले के दवाजे में लगे उनके दूध को चुरा कर ले जाती थी छुट्टियों के दिन उनका दूध देर तक पड़ा रहता था , दुसरे दिन उसे बुला कर पडोसी से अच्छे से डांट खिलावाही और जितने दिन चुरा कर ले गई उसके पैसे भी लिए । मैंने उसे मना कर दिया आने के लिए , लगा अगली बार कुछ भी गायब हुआ तो पहला शक उसपे जाएगा और बदनामी मेरी होगी , और फिर जा कर उस दूध सप्लायर को भी बताया जो उसे मेरे घर भेज रहा था ताकि उसे भी पता चले की महिला क्या कर रही थी , उस बेचारे को भी सुनना पड़ा था और ये सब हुआ मात्र १५ रु के दूध के लिए हुआ , वो बेचारे सिर्फ चाय के लिए मंगाते थे ।
जिनकी चोरी की आदत लग जाती है...वे कुछ भी चुराने से बाज नहीं आते .
हटाएंअच्छा किया उसकी असलियत सबके सामने लाकर .
सतर्क तो रहना ही चाहिए ,मुझे अपनी एक सहेली की माँ की बात हमेशा याद आती है..वे कहती थीं, "ये बिचारी गरीब होती हैं..उनके सामने पैसे रखकर, पर्स खुला छोड़कर उन्हें लालच क्यूँ देती हो तुमलोग "
पहले जब कानून के बजाय व्यक्ति के विवेक का ही ज्यादा महत्व था अतः कहीं क्रोधवश अराजकता की स्थिति उत्पन्न न हो,ये क्षमा को लेकर ये बडी बडी बातें कही गई होंगी।वर्ना हमारी ऐसी संस्कृति कि जिसमें यदि आपसे बिना दुर्भावना के भूलवश भी अपराध हुआ तो भी लापरवाही की सजा भुगतनी पडेगी।महाराज पाण्डु और दशरथ जैसे कई उदाहरण हैं।जब कोई गलती करता है तो लोग या तो भावनाओं में बहकर या पुलिस के लफडे से बचने के लिए कुछ नहीं करते पर ज्यादातर छोटी मोटी सजा दी ही जाती है पर वह व्यक्ति नए परिवेश में नए लोगों के बीच फिर वही गलती करता है।कुछ मामलों में यह भी लग सकता है कि पुलिस से गिरफ्तार करवाना इस अपराध के लिए ज्यादा ही बड़ी सजा हो जाएगी।पर कई बार तो अपने स्तर पर कोई सजा देने के बाद लोग यह जता देते हैं कि तुझे पुलिस के पास इसलिए नहीं ले जा रहा कि तू गरीब है या तेरे छोटे बच्चे हैं या ऐसा ही कुछ ।दरअसल ऐसा करके वो खुद की पीठ थपथपा रहे होते हैं कि मैं कितना महान ।यह भी एक प्रवृति है।सच तो यह है कि अपनी बारी आने पर सब करते वही हैं जो उस समय उन्हें सुविधाजनक लगे।स्वयं मेरा कोई अनुभव नहीं क्योंकि मेरे साथ ऐसा कुछ नही हुआ बस अंदाजे से कह रहा ।
जवाब देंहटाएंपहले जब कानून के बजाय व्यक्ति के विवेक का ही ज्यादा महत्व था अतः कहीं क्रोधवश अराजकता की स्थिति उत्पन्न न हो,ये क्षमा को लेकर ये बडी बडी बातें कही गई होंगी।वर्ना हमारी ऐसी संस्कृति कि जिसमें यदि आपसे बिना दुर्भावना के भूलवश भी अपराध हुआ तो भी लापरवाही की सजा भुगतनी पडेगी।महाराज पाण्डु और दशरथ जैसे कई उदाहरण हैं।जब कोई गलती करता है तो लोग या तो भावनाओं में बहकर या पुलिस के लफडे से बचने के लिए कुछ नहीं करते पर ज्यादातर छोटी मोटी सजा दी ही जाती है पर वह व्यक्ति नए परिवेश में नए लोगों के बीच फिर वही गलती करता है।कुछ मामलों में यह भी लग सकता है कि पुलिस से गिरफ्तार करवाना इस अपराध के लिए ज्यादा ही बड़ी सजा हो जाएगी।पर कई बार तो अपने स्तर पर कोई सजा देने के बाद लोग यह जता देते हैं कि तुझे पुलिस के पास इसलिए नहीं ले जा रहा कि तू गरीब है या तेरे छोटे बच्चे हैं या ऐसा ही कुछ ।दरअसल ऐसा करके वो खुद की पीठ थपथपा रहे होते हैं कि मैं कितना महान ।यह भी एक प्रवृति है।सच तो यह है कि अपनी बारी आने पर सब करते वही हैं जो उस समय उन्हें सुविधाजनक लगे।स्वयं मेरा कोई अनुभव नहीं क्योंकि मेरे साथ ऐसा कुछ नही हुआ बस अंदाजे से कह रहा ।
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है ,जो सुविधाजनक लगे सब वही करते हैं और ईश्वर न करे आपको कभी इस तरह का कोई अनुभव हो
हटाएंक्षमा - घाव गहरे न हों तो कर ही देता है इंसान
जवाब देंहटाएंछोटों के सरल उत्पात सॉरी के साथ चलते हैं
और अन्याय,जघन्य पाप के साथ कैसी क्षमा
…………।
क्षमा शब्द नहीं,मन की एक गहरी प्रक्रिया है - जिसे उपदेश और सूक्ति से नहीं चला सकते
क्षमा का अर्थ भी होना चाहिए अन्यथा कोई औचित्य नहीं
बहुत सारगर्भित बातें कहीं हैं ,आपने
हटाएंइतनी दरियादिली?
जवाब देंहटाएंमैं तो मोबाइल कंपनी वालों को भी सड़क पर खींच लेता हूँ दस रुपयों के झूठ के लिए! :)
वो आपकी उम्र का असर है :)
हटाएंकिसी की चोरी की मजबूरी समझना उतना ही घातक है जितना भ्रष्टाचार सहना।
जवाब देंहटाएंसही कहा
हटाएंक्षमा शोभती उस भुजंग को.... राम की शक्ति-पूजा की ये पंक्तियां मुझे बहुत पसन्द हैं रश्मि.. असल में क्षमा वही व्यक्ति कर सकता है जो सक्षम हो. हर गलती पर माफ़ी, हमारी अपनी कमज़ोरी दर्शाने लगती है. जहां हमें लगे कि माफ़ नहीं किया जाना चाहिये, वहां सख्ती बरतना ही चाहिये.
जवाब देंहटाएंसही कहा वन्दना
हटाएंकुल मिलाकर कित्ता कुछ गुम कर डालती हैं आप जी :) इत्ता सोना , हीरा मोता , माल पतरा सब कुछ :) रुकिए सरकार को अभी आपकी पोस्ट पढवाते हैं :)
जवाब देंहटाएंहमारे साथ खुद एक बार यही हुआ घडी रखी , बेड साइड पर घूमे के घडी गायब । श्रीमती जी का हाथ बंटाने जो आती थीं वो नई नई थीं , मगर हमने हल्ला गुल्ला मचा दिया , कहां गई हमारी घडी , फ़िर दो मिनट के लिए इधर उधर हो गए और श्रीमती जी को भी ईशारा कर दिया ।दो मिनट बाद जब उसी कमरे में लौटे तो , वे हाथ में घडी उठाए कह रही थीं , ये रही भईया जी , यहां नीचे पडी थी , हमने भी ले ली चुपचाप , समय तेज़ होता है न फ़ट्ट से घडी बेड से उछल कर नीचे चली गई और उन्हें मिल भी गई । मगर इसके बाद घनघोर सतर्क रहते हैं :)
हाँ ,कुछ बुरे ग्रह थे यही कह कर संतोष दिया मन को {अब चारा भी क्या :)}
हटाएंऐसे हादसे हर घर में होते हैं ! आपकी पोस्ट ने हमारे भी कई ज़ख्म कुरेद दिये ! कौन सी महरी ने कब-कब क्या-क्या चुराया ! एक्वेरियम की सफाई करने वाला सामान हमसे माँगता रहा और नज़र बचा कर मेज़ पर रखी अँगूठी चुरा ले गया ! दो साल हो गये इस बात को लेकिन आज भी एक्वेरियम की सफाई के लिये उसे ही बुलाना पड़ता है ! अब सबक मिल चुका है तो सावधान रहते हैं ! ऐसे लोगों से निबटना भी तो आसान नहीं होता ! सबके सामने खुद की ऐसी दयनीय तस्वीर खींच देते हैं कि औरों की नज़र में तो क्या खुद की नज़र में भी हम अत्याचारी और घोर अन्यायी बन जाते हैं क्योंकि ना तो सामान ही कभी निकलवा पाये ना उससे उसका अपराध ही कबुलवा पाये ! यह शायद हमारी ही कमी है ! फिर इन लोगों की डिमांड इतनी ज़बरदस्त है कि अगर निकाल बाहर करें तो कुछ दिनों के बाद ऐसा महसूस होने लगता है कि सज़ा उसको नहीं स्वयं को दी है क्योंकि वह महरी तो किसी दूसरे पड़ोसी के यहाँ और अधिक तनख्वाह पर ठाठ से काम कर रही है लेकिन हम महीनों से बर्तन भी माँज रहे हैं और हमारे स्वयं के सारे व्यक्तिगत काम भी ठप हो गये हैं ! ऐसे में पुराणी सूक्तियां याद आती हैं " अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं !" बिशप्स कैंडिलस्टिक्स की कहानी याद आ जाती है ! दरअसल यह सब जनरलाईज़ नहीं किया जा सकता ! हर परिस्थिति के अनुसार उसका ट्रीटमेंट भी भिन्न ही होता है ! आपका आलेख बेशक बहुत चिंतनीय है ! जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबिलकुल हर घर में ये हादसे होते हैं ,मेरे भाई-भाभी दोनों नौकरी करते हैं, उनके यहाँ छः साल पुराना एक रसोइया था, विश्वासी हो ही गया था .ये लोग ऑफिस के लिए निकलते तो वो भी निकल जाता और फिर शाम को आता .पर एक दिन भाई-भाभी ऑफिस में और उनका बेटा स्कूल में था तो उसने घर के बाहर की ताले सहित कुण्डी ही निकाल कर अन्दर की आलमारी चाभी से खोल सारे जेवर और कैश गायब कर दिए .(उसे ही पता था, भाभी चाभी कहाँ रखती है )उसके बाद वह गायब हो गया .
हटाएंपर फिर भी इनलोगों ने पुलिस में रिपोर्ट नहीं की क्यूंकि भाई ने कहा ,'पुलिस माली, ड्राइवर ,गार्ड ,झाडू बर्तन करने वाले सबको पकड़ कर ले जायेगी.. पूछताछ करेगी...सामान भी नहीं मिलेगा और सब काम छोड़ देंगे..ये लोग परेशानी में लोग पड़ जायेंगे .
(और इनके साहस की तो क्या कहिये,तीन चार महीने बाद...उसकी पत्नी -माँ फिर से उनके घर के चक्कर लगाने लगी कि उस से गलती हो गयी...फिर से काम पर रख लीजिये, परिवार भूखों मर रहा है )
यही सब सोच आम लोग सब सहते रहते हैं...और पुलिस में खबर नहीं करते.
कुछ समय पहले एक जाने पहचाने परिवार में चोरी हुई ठीक होलिका देहन की शाम को। पत्नी जा चुकी थी , बड़ा बेटा उम्र १७ साल और उसके पिटा घर में थे।
जवाब देंहटाएंचोरो ने हाथ पैर बाँध कर लूट की और चले गए।
पत्नी एक मिनिस्टर की भांजी हैं , सो अगले ही दिन पूरी कालोनी की मैड , चोकीदार और काम वालियों को थाने में बुलाया गया। उसके बाद तकरीबन रोज १५ दिन तक ये सिलसिला चला। उनके साथ मार पीट इत्यादि सब हुईं ;लेकिन कुछ नहीं पता चला।
फिर एक दिन वो लोग कोलोनी छोड़ कर चले गये बाद में पता चला की चोरी उनके बड़े बेटे और उसके एक कर करवाई थी। बेटे को पिता जी ने "माफ़" के जापान भेज दिया और दोस्त को उनके पिता जी ने कहीं विदेश
हर घर में अब अगर कुछ खोता हैं तो काम वालियां कहती हैं ज़रा अपने बच्चो पर नज़र रखे
बस किस्सा याद आ गया आप की पोस्ट पढ़ कर
और प्रश्न वही हैं क्या माफ़ करना सही था , पुलिस में क्यूँ नहीं दिया
आपने जो उदाहरण दिया वैसे आम तो नहीं है पर ऐसा भी नहीं कि कभी सुना नहीं .
हटाएंहाँ, बेटे को जरूर सजा मिलनी चाहिए थी...उसके हक में ही अच्छा होता.
हाँ लेकिन बच्चे जानते हैं..यह हमारे भले के लिए हो रहा है ...इन नौकरों से कुछ कहने में भी संकोच होता है...उनकी जुबां तो हम पकड़ नहीं सकते ....ऐसी ऐसी बातें कह देते हैं...की खुद शर्म आने लगती है ...और फिर जब तक आँखों से न देखा हो...इलज़ाम लगाना भी मन को गवारा नहीं होता...अगर नहीं ली होगी तो...बस यही "तो" आड़े आ जाता है .....इसका एक ही समाधान है की हम स्वयं अपनी आदतें बदलें और थोडा सतर्क रहे.....
जवाब देंहटाएंजब 'कहीं नहीं लिया हो तो '..ऐसी शंका होती है तब तो कोई इलज़ाम नहीं ही लगाता ..जब पूरा यकीन हो तभी पूछताछ करते हैं .
हटाएंभूल हो जाए तो क्षमा उचित है पर समझते-बूझते किए गए अपराध का दंड मिलना ही चाहिए - शुरू से ही अंकुश लगे तो आगे की संभावना कम होगी .
जवाब देंहटाएंक्षमा अच्छी बात है पर बिना दंड दिए, या मानसिक टूर पे ये समझाए बिना की कुछ गलत काम जरूर हुआ है ... छोड़ना ठीक नहीं ... नहीं तो ये आदत बन जाती है ... ओर पहली गलती को तो मभी भी नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए ... दूसरी पर फैंसला ले लेना चाइये ...
जवाब देंहटाएं.... सहमत हूँ आप की बातो से पर परिस्तिथि के हिसाब से कई बार माफ़ कर दिया जाता है!!
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