(पिछली पोस्ट में आप सबने लावण्या शाह जी, रंजू भाटिया, रचना आभा, स्वप्न मञ्जूषा 'अदा' ,सरस दरबारी कविता वर्मा एवं वन्दना अवस्थी के रोचक संस्मरण पढ़े ....आज प्रस्तुत है दो और अनूठी यादें )
पहले दिन का तो कोई खास संस्मरण नही है किन्तु शादी के करीब दो महीने बाद यानि की सन 7 4 के जुलाई महीने की बात है । शादी केबाद एक महीने तक तो गाँव में ही रहना हुआ उसके बाद सपनो की नगरी मुंबई में जाना हुआ जहाँ हमें गृहस्थी बसानी थी । उन दिनों मध्यम वर्गीय परिवारों का फ़्लैट में रहना बड़े स्टेट्स की बात थी, तो हमको फ़्लैट में रहने को मिला साथ ही पतिदेव के बचपन के मित्र भी अपने परिवार के साथ एक ही फ़्लैट में रहे ।भाभी हमसे बड़ी थी और मुंबई में हमसे सीनियर भी थी ।हमने एक रविवार को अपनी पाक कला में निपुणता दिखने के लिए कह दिया की हम रविवार को इडली का नाश्ता करवायेगे ।उन दिनों
उत्तरभारत में इडली का आज जितना प्रचलन नहीं था हमने भी बस पत्रि का में पढ़ा ही था और मुंबई में एक बार खाई थी भाभी से पूछा तो उन्होंने भी कहा हाँ मुझे आती है । बस शनिवार रात को भिगो दिया दाल चावल ये तो सोचा नही की इसे पिसना भी होगा तब कोई mixer grinder तो था नहीं भाभी ने कहा ऊपर एक मद्रासी (तब हमे भी मालूम नहीं था साऊथ में चार स्टेट हैऔर सभी मद्रासी नहीं होते हम तो सभी को मद्रासी ही कहते थे )आंटी है,, उनके पास घोटा (इडली डोसा पिसने का गोल पत्थर )है वाही से ले आते है हम भी उत्साह में चले गये, घोटे को देखकर हाथ पांव ढीले पड़ गये बहुत भारी । भाभी ने कहा यही पिस लेते है पर आंटी ने कहा हमे बाहर जाना है !अब इतने भी नजदीक नहीं थे की वो हमे चाबी दे जाती वो भी मुंबई में ?सो हम दोनों के कहा हम इसे ले जाये ?
आंटी ने कहा -मुझे कोई एतराज नहीं किन्तु शाम को दे देना मुझे भी पिसना है हम ख़ुशी ख़ुशी अति उत्साह में घोटा उठाकर ले आये हरेक सीढ़ी पर रखते रखते पसीने से तर बतर ।अब आई पिसने की बारी दाल चावल डाल दिए और साथ में पानी लगे छपा छप कूटने चावल और पानी उड़ उड़ कर बाहर आकर किचन की मोजक टाइल्स पर सफ़ेद रंग की चित्रकारी करने लगा । वो तो भला हो कम वाली बाई का जो बर्तन साफ करने आई थी उसने जब हम दोनों की हालत देखी तो हसने लगी और पूछने लगी ?
काय झाला ?
क्या हुआ? हमने उससे कहा इडली बनानी है ।
उसने कहा - ऐसे थोड़ी न पिसते है ?
फिर उसने हमे बताया ,पिसना!\
पहले सारा पानी निकाला फिर बट्टे को घोल घोल घुमाकर थोडा थोडा पानी डालकर पिसते रहना ।फ़िर हमने जैसे तैसे पिसा ।बाई भी काम करके चली गई हमे थोड़ी शांति हुई की अब हमारा मजाक कम होगा । पर अभी कहाँ ?अभी तो बहुत कुछ बाकि था ।
अब इडली बनाई किस बर्तन में जाय ,आंटी भी बाहर चली गई थी फिर इडली पात्र किससे मांगते ? फिर एक भगोने में चलनी रखकर थाली में ढोकले ही तरह पकाना शुरू वो भी केरोसिन स्टोव पर ,बार बार देखने के बाद भी इडली पत्थर? जबकि पतीली का पूरा पानी सूख गया । उधर भाभी का बच्चा रो रहा था पतिदेव और भाई साहब की ऑफिस की बाते भी ख़त्म हो रही थी वो लोग भी बार बार किचन में झांककर देखते ।
हमने भी उन्हें ज्यादा देर इंतजार न कराते हुए इडली के पीस किये औ मूंगफली की चटनी के साथ प्लेट में दे दी इडली ।,और वहां से किचन में आ गये भाभी भी बच्चे को सुलाकर आ गई कहने लगी, कहाँ है? मेरी इडली ?उन्हें भी एक प्लेट में देदी इडली । उन्होंने तो मुहं में रखते ही बाहर निकाल दी! तब तक पति देव भी प्लेट लेकर किचन में आये और मै अभी आता हूँ कहकर बाहर निकल गये| मै कुछ समझ ही नहीं पाई कुछ गडबड तो जरुर है ?मै भाभीजी से पूछती ही रही बताइए न क्या बात है ?वो मंद मंद मुस्कुराती रही | भाई साहब से तब मै बात नहीं करती होने थी नई नई जो थी ?
और भाभी भी फिर से बच्चे को देखने दुसरे कमरे में चली गई मैंने सफेद चित्रकारी की थोड़ी सफाई की जब तक पतिदेव भी हाथ में पेकेट लेकर आ गये और कहने लगे रामान्न्जेय होटल से इडली लाया हूँ फटाफट प्लेट लगाओ भैया भाभी को दो उन्हें कब से भूख लगी है मै शरम से पानी पानी हो रही थी ।फ़िर भाभी को आवाज दी और हम सबने इडली खाई ।खाने पर मालूम पड़ा इडली ऐसी होती है, इतनी नर्म और इसके साथ चटनी सांभर भी खाया जाता है | सबने कहा- कोई बात नही ? पहली बार ऐसा ही होता है । शाम को जब मद्रासन आंटी घोटा मांगने आई तो उन्होंने कहा -इडली पात्र ले लेना इडली बनाने के लिए । भाभी और हमने साथ ही कहा हमने तो इडली बना ली !
अरे बिना खमीर उठे ही इडली कैसे बन गई ?तब हमे याद आया की घोल को पिसने के बाद कम से कम 6 से 7 घंटे तक रखना पड़ता है खमीर के लिए ,हमने पढ़ा था कितु बाद वाली लाइन भूल गये थे जैसा की हमेशा होता है इसीलिए हमेशा पढाई में भी कम नम्बर आते थे |
खैर वो पत्थर इडली सबको अभी तक याद है भाई साहब के बच्चे तो अभी तक कहते है काकी वाली इडली मत बनाना |
पल्लवी सक्सेना : अब नयी नवेली बहु अपना रूप कहाँ निहारे :)
मेरी शादी काफी जल्दी हो गयी थी उस वक्त मेरा एम.ए भी पूरा नहीं हो पाया था। यानी मेरी उम्र कुल 22-23 साल ही थी। जब मेरी सहेलियों को मेरी सगाई के बारे में पता चला तो किसी को पहली बार में यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि मैं सच बोली रही हूँ। उस वक्त सब को यही लग रहा था, कि मैं मज़ाक कर रही हूँ।
खैर जब सब को यक़ीन हो गया कि यह मज़ाक नहीं सच है। तब सब ने मुझ से मेरे ससुराल के बारे में पूछा कि कौन-कौन है...वहाँ परिवार में कितने सदस्य हैं वगैरा-वगैरा, मैंने सब को अपनी सगाई का एल्बम दिखते हुए बताया भी कि मैं सब से बड़ी बहू बने जा रही हूँ उस घर की, मेरे दो देवर है, मेरे इतना कहने कि देर थी कि जाने क्यूँ सब के मुँह से एक साथ निकला देवर तो ठीक हैं, यह बता ननंदें कितनी है क्योंकि वह कहते हैं ना “यार ननंदें तो मिट्टी कि भी बुरी होती हैं” औरफिर सब हंस दिये क्योंकि सभी जानते थे कि आगे आने वाली ज़िंदगी में यह नंदों वाली भूमिका सभी को निभानी थी।
खैर फिर सब ने सास के बारे में पूछा तो मैंने बताया वह बहुत अच्छी हैं, स्वभाव की बहुत नरम है और उसे भी बड़ी बात यह है कि उनका खुद का “ब्युटि पार्लर” है तो वह एक व्यापारी महिला है इसलिए किस से कैसे बात करनी चाहिए, इस बात की उनको बहुत अच्छी समझ है। मगर मेरी दूसरी बात पर तो जैसे किसी ने ध्यान देना ज़रूर ही नहीं समझा था। सब “ब्युटि पार्लर” का नाम सुनकर ही बहुत खुश थे।
सबका यही कहना था, यार तेरे तो मजे हो गए। घर का पार्लर है अब तो, जो मन करे कराते रहो वह भी मुफ्तमें इसे ज्यादा और क्या चाहिए। इसे यह ज़ाहिर होता है कि उन दिनों लड़कियों में ब्युटिपार्लर का कितना क्रेज़ हुआ करता था। मेरे मन में भी उस वक्त कुछ ऐसे ही ख़्याल थे।
हालाँकि मुझे पार्लर जाने का कोई खास शौक़ नहीं था मगर मैं अपने घर में एकलौती बेटी हूँ। इसलिए मेरे घर की ड्रेसिंग टेबल मुझे हमेशा सजी संवरी ही मिली हाँ यह बात अलग है कि उस पर रखे सौंदर्य प्रसाधन कभी बदलते नहीं थे जैसे nail polish का रंग फिक्स था लिपस्टिक (lipistick) का रंग फिक्स था कॉम्पैक्ट (compact) पाउडर तक का रंग फिक्स था और कंपनी भी, क्योंकि अपनी माँ की पसंद ही मुझे पसंद थी हाँ कभी-कभी नेल पोलिश का रंग मैं अपने हिसाब से लगा लिया करती थी मगर बाँकी सब हमेशा मम्मी की पसंद का ही रहा।
अब यही छवि लिए जब में पहली बार ससुराल पहुँची, तो शुरुआत में तो घर मेहमानों से भरा होता ही है तो मेरा तैयार होना पार्लर में ही होता था। लेकिन जब मेहमानों के जाने के बाद रोज़ मर्रा की साधारण शुरुआत हुई तब मैंने देखा इनके घर में तो एक बड़ा आईना तक नहीं है तैयार होने के लिए, ड्रेसिंग टेबल तो बहुत दूर की बात है। मैं इतने आश्चर्य में थी कि क्या कहूँ क्योंकि मैंने तो बचपन से अपने घर में ड्रेसिंग टेबले देखी थी और फिर यहाँ भी जब घर कि महिला का खुद का पार्लर हो और उसके ही घर में इस समान का ना होना मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात थी।
अब नयी नवेली होने के कारण में अपनी सास से तो कुछ बोल नहीं पायी मगर पति देव सेबोला कि आपकी मम्मी इतना बड़ा और अपने इलाक़े का इतना मशहूर पार्लर चलाती है और आपके घर में एक शीशा तक नहीं है तैयार होने के लिए भला ऐसा क्यूँ, इस बात पर वह मुस्कुराये और जाकर सासु जी से सब कह दिया कि देखो यह कह रही है कि तुम्हारी मम्मी का इतना बड़ा पार्लर है और घर में एक आईना तक नहीं है तैयार होने के लिए, मैं बहुत डर रही थी कि इन्होंने ने सब कह दिया सासु माँ से अब जाने क्या होगा वह क्या सोचेंगी मेरे बारे में अंदर ही अंदर डर भी लग रहा था और पतिदेव पर ग़ुस्सा भी बहुत आ रहा था। यह सोच-सोचकर कि इन को क्या जरूरत थी यह बात अपनी माँ को जाकर बताने कि अपने तक ही नहीं रख सकते थे
लेकिन उनके मुँह से यह बात सुनकर सासु माँ को भी हंसी आ गई और वह बोली बिटिया
भले ही अपना पार्लर है मगर घर में तो सब बेटे ही हैं न, बेटी है ही नहीं, जो इस तरह कि
फ़रमाइश करती कभी, तो कहाँ से बड़ा आईना होगा घर में, इसलिए हमारा भी ध्यान इस
बात पर गया ही नहीं कि इसकी भी बहुत जरूरत है घर में और सब हंसने लगे। अगले ही
दिन एक full size mirror मेरे कमरे में रखवा दिया गया J