31दिसंबर 2012 को You Tube पर कड़वी सच्चाई बयान करता हुआ एक जोशीला गीत रिलीज़ हुआ . इस गीत को बनाने वालों (Swangsongs ) ने अपनी पहचान नहीं बतायी है बल्कि सिर्फ गीत के जरिये दिया सन्देश ही महत्वपूर्ण माना है।
इस गीत का एक एक शब्द बहुत ही प्रभावी है।
माँ नी मेरी मैं नई डरना .
जावेद अख्तर की ये ग़ज़ल बड़ी मौजूं लग रही है ,इस माहौल में
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
जमीन, सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
जो मुझे जिंदा जला रहे हैं, वे बेखबर हैं
कि मेरी ज़ंजीर धीरे धीरे पिघल रही है
मैं क़त्ल तो हो गया, तुम्हारी गली में लेकिन
मेरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है
न जलने पाते थे ,जिनके चूल्हे भी हर सवेरे
सुना है, कल रात से वो बस्ती भी जल रही है
सुना है, कल रात से वो बस्ती भी जल रही है
मैं समझता हूँ कि खामोशी में ही समझदारी है
मगर यही समझदारी मेरे दिल को खल रही है
कभी तो इंसान ज़िन्दगी की करेगा इज्ज़त
ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है
बहुत बढ़िया गीत रश्मि.
जवाब देंहटाएंवाकई असरदार और सुन्दर....
जावेद साहब तो लाजवाब हैं ही...
शुक्रिया दोस्त...
नया साल सुन्दर हो...
अनु
badiya geet..abhar
जवाब देंहटाएंउम्मीद पर ही दुनिया कायम है वर्ना दुश्वारियों के बहाने कितने थे !!
जवाब देंहटाएंपजांबी गीत तो पूरी तरह से समझ नहीं आया। जावेद अख्तर तो हमेशा की तरह ही बढिया हैं।
जवाब देंहटाएंमैं समझता हूँ कि खामोशी में ही समझदारी है
जवाब देंहटाएंमगर यही समझदारी मेरे दिल को खल रही है
ये गीत ओर जावेद साहब की गज़ल बहुत कुछ कह रही हैं ...
कभी तो इंसान ज़िन्दगी की करेगा इज्ज़त
जवाब देंहटाएंये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है
न जाने कितने दिलों में यही लौ जल रही है ....बहुत खूब ....रश्मि शेयर करने के लिए बहुत बहुत आभार
बहुत उम्दा गीत .
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनायें।
मैं क़त्ल तो हो गया, तुम्हारी गली में लेकिन
जवाब देंहटाएंमेरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है
:) :)
वैसे इस नए साल से मेरी भी कई उम्मीदें हैं दीदी...देखिये कितना क्या बदलता है...
यही उम्मीद हर दिन सुदृढ़ हो।
जवाब देंहटाएंसामयिक अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंआने वाले पल शुभ हो और सभी निर्भयी हो ,बस यही कामना है ।
जवाब देंहटाएं♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
कभी तो इंसान ज़िन्दगी की करेगा इज्ज़त
ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है
आदरणीया रश्मि रविजा जी
जावेद अख़्तर साहब की रचना के लिए विशेष आभार !
पंजाबी-हिन्दी गीत के लिए क्या कहूं ... बाजार का ही एक रूप ।
उन छह दरिंदों और उनकी करतूत को लेकर गीत (जोशीला गीत?) गाना मुझे तो अटपटा ही लगा ।
चार-पांच साल पहले एक कवि-सम्मेलन में हमारे राजस्थान में सूखे और अकाल की स्थिति को ले कर एक कवि चटकारे ले ले कर , आलाप भर भर कर , झूम झूम कर अकाल का रोना गीत में प्रस्तुत कर रहा था तो मैंने बीच में ही टोक कर पूछ लिया था कि अकाल और दुर्भिक्ष भोगने वाला रोएगा या गाएगा ?
समस्त मंगलकामनाओं-शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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आशा और विश्वास की सुदृढ़ करते गीत के भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक गीत |
जवाब देंहटाएंसादर