मंगलवार, 28 अगस्त 2012

सहज..सरल..गरिमामयी हेमा मालिनी

हेमा मालिनी अपनी बेटी आहना और इशा के साथ 

मैने नहीं सोचा था , 'हेमा मालिनी ' से सम्बंधित कोई पोस्ट लिखूंगी कभी. पर कुछ उनकी बातें करने का मन हो आया और मन की बात ये ब्लॉग ना सुने {और आपलोग ना पढ़ें  :)} तो फिर कौन सुने...:)


जब हेमा मालिनी शिखर पर थीं , तब मैं उनकी फ़िल्में नहीं देखती थीं. वैसे तो उस वक़्त,घर से  गिनी-चुनी फ़िल्में ही दिखाई जाती थीं..फिर भी उनमें हेमा मालिनी की फ़िल्में नहीं होती थीं और ना ही कभी देखने की इच्छा होती थी. उनका अभिनय, उनका ग्लैमरस रूप कुछ ख़ास पसंद नहीं आता था. हमें तो सलोनी सी सीधी सादी 'जया भादुड़ी 'पसंद थीं और हम थे उनके जबरदस्त फैन. अपनी छोटी सी बुद्धि से सोच लिया था कि ये दोनों एक दूसरे की विरोधी हैं. जो हेमा मालिनी को पसंद ना करने का एक और कारण बन गया . हालांकि फिल्म 'किनारा' और 'खुशबू'...जरूर देखी...रिलीज़ होने के कई साल बाद टी.वी. पर. और हेमा मालिनी के अभिनय ने मुत्तासिर भी किया पर सारा क्रेडिट हमने ,दे दिया गुलज़ार को कि उन्होंने हेमा जी से इतना अच्छा अभिनय करवा लिया और रोल भी तो बहुत बढ़िया था. पूरी कहानी नायिका के गिर्द घूमती थी.' मीरा ' फिल्म में हेमा मालिनी बहुत ही अच्छी लगी थीं..फिल्म भी बहुत अच्छी  बनी थी (फिर से एक बार देखने की इच्छा है ) पर इस फिल्म से जुड़े एक विवाद ने पहले से ही उनके प्रति विमुख  कर दिया था. गुलज़ार ने शादी के बाद राखी के जन्मदिन की पार्टी में सबके सामने राखी को 'मीरा' का रोल ऑफर किया था. पर बहुत जल्द ही दोनों अलग हो गए और बाद में यह रोल गुलज़ार ने 'हेमा मालिनी को दे दिया . उन दिनों पत्रिकाओं में यह चर्चा का विषय था. हालांकि इसमें हेमा मालिनी का क्या दोष...पर कच्ची उम्र में इतनी समझ थोड़े ही होती है हम तो फिर से उनके फैन बनने से रह गए. और फिर उनकी  बाल बच्चों वाले धर्मेन्द्र से शादी की खबर ने तो उनके फैन बनने की हर उम्मीद का दिया ही बुझा दिया. 

लेकिन.. लेकिन..जब वर्षों बाद उन्हें 'जी फिल्म अवार्ड शो' में स्टेज पर  थोड़ा करीब से देखा तो जैसे मंत्रमुग्ध रह गयी. उनकी खूबसूरती पर नहीं (वो तो माशाल्लाह है ही ) ...उनकी सादगी, गरिमा, अंदाज़ पर .एक प्लेन आसमानी रंग की साड़ी पहनी थीं उन्होंने और स्टेज पर जिस तरह आत्मविश्वास से लहराती हुई चाल से वे गयीं और अवार्ड लेकर जिस मुद्रा में खड़ी हुईं. लगा वो ट्रॉफी ही धन्य हो गयी.  नृत्यांगना होने से उनकी चाल में, उनके खड़े होने , एक गरिमा तो है ही. उनके सभी  posture  बहुत ही अच्छे होते हैं. अवार्ड लेते समय भी उन्होंने कुछ बडबोलापन नहीं दिखाया . उनके व्यक्तित्व का एक नया पहलू सामने आया. 

उसके बाद कई बार उन्हें टी.वी. पर इंटरव्यू में देखा. खुल कर हंसती है...बिना किसी बनावटीपन के सहजता से मन की बात कह देती हैं. करण जौहर के शो कॉफी विद करण में वे आई थीं..शो में बड़ी सरलता से कह दिया.."ईशा (उनकी बिटिया ) इस शो को लेकर बहुत  नर्वस थी कि उसकी माँ पूरे शो  में इंग्लिश में कैसे बोल पाएगी...मुझे अच्छी इंग्लिश नहीं आती." फिर हंस कर करण जौहर से पूछा, 'मैने ठीक बोला,ना?" उसी शो में करण जौहर ने एक सवाल पूछा था ,"आज के जो प्रमुख बैचलर हीरो हैं,अगर उनमे से किसी को अपनी बेटी से शादी के लिए चुनना हो तो आप किसे चुनेंगी?" और हेमा जी ने कह दिया ' अभिषेक बच्चन को ' मुझे नहीं लगता दूसरी नायिकाएं इस ट्रिकी सवाल का सीधा उत्तर देतीं. उसी शो में जीनत अमान भी आई थीं. वे बता रही थीं, हेमा जी जब फिल्म की शूटिंग  करती थीं तो स्पॉट  बॉय से लेकर हीरो,डायरेक्टर, प्रोड्यूसर सब उनके प्रेम में पड़े होते थे. पर ये ऐसे शो करती थीं,जैसे उन्हें यह सब पता ही नहीं. चुपचाप अपना काम ख़त्म करतीं और चली जातीं. " शायद ही हेमा मालिनी कभी ,किसी विवाद में पड़ी हों . 

एक इंटरव्यू में देखा..'बागबान में उनके काम और उनकी खूबसूरती की बहुत तारीफ़ हो रही थी. ' पर हेमा मालिनी ने शिकायत की ,'होली खेले रघुवीरा...में मुझे ज्यादा डांस करने का मौका नहीं मिला...कुछ और डांस करने का अवसर मिलता तो अच्छा लगता..' बच्चों जैसी ही लगी कुछ ये शिकायत . वे हमेशा पौलीटिकली  करेक्ट होने की कोशिश नहीं करतीं.

अभी इन्डियन आइडल शो में वे धर्मेन्द्र के साथ आई थीं ख़ूबसूरत तो लग ही रही थीं.  वैसे मुझे लगता है..चाहे कितने भी तराशे हुए नैन नक्श हों...अगर चेहरे पर खुशनुमा भाव ना हों तो कोई भी स्त्री/पुरुष सुन्दर नहीं लग सकता/सकती . बड़ी-बड़ी आँखें,सुतवां नाक..पंखुड़ी से होंठ किसी को ख़ूबसूरत नहीं बनाते बल्कि पूरे चेहरे पर जो भाव खिले होते हैं...वही ख़ूबसूरत बनाते हैं. कितनी बार साधारण नैन-नक्श वाले लोग भी बहुत अच्छे लगते हैं..वो उनका खुशनुमा व्यक्तित्व ही होता है . नैन-नक्श तो उपरवाले की देन है..पर अपना व्यक्तित्व निखारना खुद के हाथों में है. और हेमा जी को उपरवाले ने खूबसूरती तो दी ही है...उनकी pleasant personality  ने उसे द्विगुणित कर दिया है {हो सकता है..हेमा मालिनी को नापसंद करने वाले अपनी भृकुटियाँ  चढ़ाएं :)} .
उस प्रोग्राम में आशा भोसले के कहने  पर आशा भोसले,सुनिधि चौहान और इतने सारे बढ़िया गाने वालों के बीच ,बिना सुर के  भारी दक्षिण  भारतीय उच्चारण के साथ एक उर्दू शब्दों से भरे गीत की दो पंक्तियाँ गा दीं.  और गाने के  बाद जोर से हंसी भीं कि ' मैने आप सबके सामने गाने की हिम्मत कर ली '  

एक और घटना के विषय में पढ़ा था कहीं, हेमा जी को इस्कॉन मंदिर जाना था . रास्ते में उनकी कार खराब हो गयी. ड्राइवर बोनट उठा कर देखने लगा, पर हेमा जी ने इंतज़ार नहीं किया और एक ऑटो-रिक्शा को हाथ दिखा,बैठ गयीं. मंदिर पहुँच कर उतर कर वे आगे बढ़ गयीं. जब ऑटो रिक्शा वाले ने पैसे मांगे तो वे बड़े पेशो-पेश में पड़ी. अब ये बड़ी नायिकाएं कोई मध्यम वर्गीय गृहणियां तो हैं नहीं कि घर से बाहर निकलें तो पर्स जरूर साथ में रखें ',क्या पता रास्ते में सब्जी लेनी हो..ब्रेड लेना हो या और कुछ :)' .पर तब तक ऑटोवाला भी उन्हें सामने से देख कर पहचान गया था और उसने हाथ जोड़कर पैसे लेने से इनकार कर दिया. (वरना किसी को फोन कर पैसों का इंतजाम करवातीं ,शायद ). 
प्रसंगवश एक और मार्मिक घटना याद आ रही है , जब हेमा जी ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की तो  टोकन स्वरुप कुछ पैसे जमा करने थे . फिर से पर्स उनके पास नहीं था. प्रमोद महाजन ने अपने पास से दस रुपये का नोट दिया .उसके बाद हमेशा वे उन्हें मजाक में याद दिलाते 'मेरा दस रुपये  का नोट उधार है आप पर.' जब प्रमोद महाजन की मृत्यु हुई तो उनके पार्थिव शरीर के पास हेमा जी अश्रुपूरित नेत्रों से वो दस का नोट रख कर आ गयीं.

मैने हेमा मालिनी का  प्रत्येक  पब्लिक एपियरेंस नहीं देखा है...हो सकता है ,कुछ लोग मेरी बातों से इत्तफाक ना रखें. पर मेरा औब्ज़र्वेशन यही है. और फिर जिस तरह उन्होंने अपनी शर्तों पर अपना जीवन जिया है..अपने अकेले के दम पर दोनों बेटियों को बड़ा किया है, उनके प्रति मन में सम्मान ही जागता है. धर्मेन्द्र जरूर उनके परिवार का हिस्सा रहे पर मुझे नहीं लगता ,अपनी बेटियों के परवरिश के लिए या किसी भी चीज़ के लिए वे धर्मेन्द्र पर निर्भर रहीं. धर्मेन्द्र ज्यादातर अपने पुराने घर में या अपने लोनावाला वाले फ़ार्म हाउस में ही रहते हैं (अब सुना है,ऐसा..वरना हमें क्या पता ) .ईशा देओल की शादी की तैयारियां भी वे अकेली ही करती नज़र आयीं . 
फिल्मों में अभिनय ..घर-परिवार की जिम्मेवारियाँ ...निर्देशक और प्रोड्यूसर की भूमिका..राज्यसभा की सदस्यता...इन सारी जिम्मेवारियों के बीच भी,उन्होंने  अपने नृत्य -प्रेम को एक पल के लिए भी धूमिल नहीं होने दिया. नृत्य उनका पहला प्यार है और देश-विदेश में लगातार अपने नृत्य कार्यक्रम प्रस्तुत कर उन्होंने इसके प्रति अपनी अगाध निष्ठा और समर्पण ही जताया है. 
इशा देओल , अच्छी खिलाड़ी थीं, फुटबौल बहुत अच्छा खेलती थीं,अपनी स्कूल की टीम में भी थीं.पर  मालिनी ने अपनी दोनों बेटियों को नृत्य की विधिवत शिक्षा भी दिलवाई . इशा और आहना के साथ जब वे स्टेज पर नृत्य प्रस्तुत करती हैं तो वो समां दर्शनीय होता है. वैसे भी हर नृत्य प्रस्तुति की तरह हेमा जी का नृत्य प्रदर्शन भी स्वर्गिक आनंद देनेवाला होता है.

अक्सर ऐसा होता है कि जिन्हें हम परदे पर अच्छे किरदार निभाते देखते हैं,उसके प्रशंसक हो जाते हैं. पर कई बार ऐसा भी होता है, जो हमें परदे पर बिलकुल पसंद नहीं आते .परदे की  दुनिया के बाहर उनके व्यक्तित्व की झलक हमें उनका मुरीद  बना देती है.

32 टिप्‍पणियां:

  1. जैसा आपने कहा था..सच में ये एक V-turn है :)
    बहुत अच्छी पोस्ट दीदी!!
    इतने अच्छे अच्छे इन्सिडेंट आप कहाँ कहाँ से लेकर आ जाती हैं...लेकिन जहाँ से भी लाती हैं, हम जैसे पाठकों पर तो एक तरह से उपकार ही करती हैं :)
    आपने जिक्र किया 'मीरा' फिल्म का...वो फिल्म देखने की जाने कब से देखने की ईच्छा है मेरी!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये सारे इन्सिडेंट कहीं से ढूंढ कर नहीं लाती...पर जब कोई ख़याल आता है तो उस से जुड़ी सारी बातें...दिमाग के कोने-कतरे से निकल -निकल कर आना शुरू कर देती हैं और फिर एक पोस्ट लिखनी मजबूरी हो जाती है...:)

      सचमुच U-turn ही है. किसी गंभीर पोस्ट के बाद ऐसी पोस्ट लिखना de stress कर देता है.

      हटाएं
    2. हाँ.. हो जाईये, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू.. :P :)

      हटाएं
    3. थैंक्यू प्रशांत
      तुम्हारा ये छोटे भाई सा चिढ़ाना...बचपन के दिनों में लौट देता है..:)
      जब भाई कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ते थे,चिढाने का.... ये आदत छोड़ना नहीं :)

      हटाएं
    4. इतना बड़ाई मत कीजिये...सर पर चढ़ जाएगा बदमाश...

      और दीदी...मेरे पहले कमेन्ट में 'देखने की' दो बार लिखा गया है...एक ठो मिटा दीजियेगा :P

      हटाएं
  2. ये सच है शुरू में हेमा मालिनी को मैं भी ऐसा ही समझता था ... एक चलता किस्म की अभिनेत्री पर धीरे धीरे अब उनके व्यवहार और व्यक्तित्व की मजबूती ने विचारों को बदल दिया है ... अब उनके प्रति सम्मान ज्यादा रहता है मन में ... ये जरूरी है अगर निष्ठां, मजबूती और चरित्र बलवान रहे इंसान दिल में जगह बना लेता है .... कई अनछुए पहलुओं को ले कर आपने दिल को छूती हुई पोस्ट लिखी है ....

    जवाब देंहटाएं

  3. मुझे तो हेमा जी हमेसा से पसंद थी और फिर गुलजार के साथ की गई फिल्मो ने तो कुछ नंबर और जोड़ दिए , याद होगा की करन के उसी शो में उन्होंने बताया था की कैसे एक दक्षिण भारतीय फिल्म निर्माता उनके साड़ी में पिन लगाने की आदत को पसंद नहीं करता था , उसे उम्मीद रहती थी की साड़ी में पिन ना हो तो अचानक से पल्लू के गिरने से कुछ फिल्माया जा सके जिसका मौका उसे नहीं देती थी , कहा जाता है की क्रांति फिल्म के एक बारिस वाले गाने " जिंदगी की ना छूटे "में उन्हें सफ़ेद लहंगा पहनने का प्रयास किया गया था उसे भी उन्होंने कामयाब नहीं होने दिया कितनी ही फिल्मो में उन्होंने त्वचा के रंग के कपडे पहन कर काम किया है | धर्मेन्द्र को लेकर उनके रिश्तो को देखे तो लगता है कई बात इन्सान दिल और दिमाग के बीच फंस जाता है जब लगता है की जो कर रहा है वो कही ना कही गलत है किन्तु जीवन में इस चीज को हम सब जानते हुए भी छोड़ नहीं सकते है | धर्मेन्द्र ने उनसे वादा किया था की वो दोनों १०० फिल्मो से साथ काम करेंगे और अब तक शायद ५८ फिल्मो में साथ काम किया है लगता नहीं है की ये १०० हो पायेगा |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. याद है,अंशुमाला
      और ये भी कहा था कि सेट पर जाकर शॉट देने से पहले वे कैमरे का एंगल देखती थीं क्यूंकि निर्देशक चालाकी से कैमरे का एंगल नीचे कर के रखते थे.

      हटाएं
    2. वहा रश्मि जी क्या संजोग बना है अभी अभी एन डी टीवी पर रविश जी का शो देख रही थी जिसमे देश भर में किये गये सर्वे को दिखाया जा रहा है | कितने आश्चर्य की बात है की अब तक की सबसे महान अभिनेत्री में देश के लोगों ने हेमा जी को करीना कैटरीना , माधुरी काजोल और रेखा को पीछे छोड़ सबसे ऊपर जगह रखा है | जैसा की आप ने बताया की वो यहाँ भी बड़ी शालीनता और झेपते हुए इस बात पर हैरानी जाता रही थी और सभी को अच्छा बता रही थी , और कैमरे के एंगल वाली बात भी आप ने ठीक कही उन्होंने ये शिकायत भी किया था की आज की अभिनेत्रिया इस बात का ध्यान नहीं रखती है की कैमरा उनके शरीर के किस भाग को दिखा रहा है कितना फर्क है उनमे और आज की अभिनेत्रियों में |

      हटाएं
    3. हम देखने से चूक गए वो शो..:(:(

      हटाएं
  4. हेमा मालिनी एक साधारण अभिनेत्री थीं और उनके संवादों की अदायगी की नक़ल तो लगभग हर स्टैंड-अप कॉमेडी में हुई.. लेकिन उनकी सबसे बड़ी खूबी थी कि वो निर्देशक की अभिनेत्री थीं.. अपने को निर्देशक के हवाले करना और उसके अनुसार अपना बेस्ट देना.. यही कारण है कि उनकी गुलज़ार के साथ की सारी फ़िल्में उनको वास्तविक हेमा मालिनी के रूप में पेश करती है. और संदर्भ से अलग जीनत अमां जैसी साधारण अभिनेत्री भी बी.आर. चोपडा के साथ इन्साफ का अत्राजू में कमाल का बहिने कर जाती हैं..
    हेमा जी की सादगी बेमिसाल है. और वह एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व में दिखाई देता है जैसा कि आपने बताया!! बहुत अच्छी पोस्ट!!

    जवाब देंहटाएं
  5. ड्रीम गर्ल से मिला हूँ, बंगलोर में। अभी तक याद स्पष्ट है..

    जवाब देंहटाएं
  6. Really good writing, can not decide your writing is good or Hema

    जवाब देंहटाएं
  7. यह सच है कि जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ रही है वे और सुन्‍दर होती जा रही हैं। बहुत अच्‍छा लिखा है। जब हम स्‍कूल में पढ़ते थे तब पहली बार वे जयपुर आयी थी और उन्‍होने वहां नृत्‍य समारोह में भाग लिया था। हमारी एक मित्र थी वे उनके फोटो लेकर आयी कि देखो यह नृत्‍यांगना है लेकिन शीघ्र ही फिल्‍मों में आने वाली हैं।

    जवाब देंहटाएं
  8. मुझे बहुत पसंद रहीं हेमा .... और उनकी गरिमा शुरू से उनकी चाल का हिस्सा रही

    जवाब देंहटाएं
  9. हेमा जी का अभिनय और उनका संवाद बोलने का ढंग मुझे कभी अच्छा नहीं लगा. पर एक व्यक्ति के रूप में वो हमेशा अच्छी लगीं. उनकी सरलता, सहजता, आत्मविश्वास और जीवन को अपनी शर्तों पर जीने का दृढ़ निश्चय मुझे प्रभावित करता रहा है. मुझे उनके और धर्मेन्द्र जी के प्यार और शादी की बात भी कभी खराब नहीं लगी क्योंकि उन्होंने अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व बनाए रखा है.
    सुंदरता तो ईश्वर की देन होती है, पर उसे गरिमामय बनाना व्यक्ति के स्वयं के ऊपर निर्भर करता है और हेमा जी ने हमेशा इस बात का ध्यान रखा है. अंशुमाला जी की इस बात से भी मैं सहमत हूँ कि उन्होंने कभी फिल्मों में अकारण देह-प्रदर्शन नहीं किया.

    जवाब देंहटाएं
  10. सचमुच ऐसी ही हैं हेमा जी. ये अलग बात है की उनकी आवाज़ में साउथ इन्डियन टच अभी भी बरकरार है. लेकिन उससे उनके व्यक्तित्व की गरिमा कम नहीं होती, बल्कि बढ़ जाती है. हेमा जी जब सुपर स्टार थीं, तब हम लोग सचमुच ही नासमझ उम्र में थे :) लेकिन मुझे वे हमेशा से खूबसूरत लगती रही हैं. बाद में उनकी सौम्यता लुभाती रही. प्रैस की नौकरी के दौरान तो उनसे कई बार मुलाक़ात हुई, और हर बार वे बहुत सरल-सहज लगीं. एक ख़ास बात जो उनके व्यक्तित्व में मैंने हमेशा महसूस की, वो ये की चुम्बकीय आकर्षण के साथ-साथ एक प्रभामंडल सा है उनके चारों और, जो उन्हें दैदीप्यमान करता है. आसानी से कोई भी उनके लिए हल्की भाषा का इस्तेमाल नहीं कर पाता. हेमा जी जैसी ही सुन्दर पोस्ट है रश्मि.

    जवाब देंहटाएं
  11. जब वे फिल्मों में आईं , लोग उन्हें ड्रीम गर्ल कहते थे तब वे मुझे रत्ती भर पसंद नहीं थीं पर अब वे कहीं ज्यादा ग्रेसफुल दिखती हैं , मेरा मतलब अच्छी लगती हैं ! मैं आज तक समझ नहीं पाया ऐसा क्यों हुआ !

    जवाब देंहटाएं
  12. हेमा जी जैसी ही सुन्दर पोस्ट..वंदना जी के कथन से सहमति के साथ.

    जवाब देंहटाएं
  13. आपका यह कहना बिल्कुल सही है कि हेमामालिनी के चेहरे पर सौंदर्य के साथ जो सहजता हमेशा मौजूद रहती है, वह उन्हें एक खुशनुमा व्यक्तित्व देती है जबकि उनके अभिनेत्री रहते उनके गुस्से के किस्से अक्सर पत्र-पत्रिकाओं के गॉसिप कॉलमों में होते थे। पर उनकी खुली और सहज हंसी उन्हें बहुत आकर्षक बना देती है। उन्हें इस बात का गुमान कभी नहीं रहा कि वह एक महान अदाकारा हैं जबकि एक समय वह सबसे अधिक लोकप्रिय या फिल्मी पत्रिकाओं की मानें तो नंबर 1 अभिनेत्री थीं। उन्हें अपनी सीमाएं हमेशा मालूम थीं.. इसलिए उन्होंने कोई बड़ी-बड़ी बातें नहीं कीं जैसा कि एक फिल्म हिट हो जाने के बाद आज की अभिनेत्रियां करने लगती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत अच्छी पोस्ट रश्मि.....
    सच्ची एक एक बात जैसे तुमने चुराई हो मेरे मन से...मुझे भी कभी हेमा जी अच्छी नहीं लगीं....और अब तो वो लगती हैं...वाकई माशाल्लाह....
    हां वो मिले सुर मेरा तुम्हारा....गाना था न दूरदर्शन वाला...उसमे ज़रूर हेमा जी पहली बार अच्छी लगी थीं....
    सारे वाकयात भी उनकी शक्सियत को उजागर करते....
    लगता है उम्रदराज़ होना हेमा जी को सूट किया...इसी उम्मीद में हम भी उम्र गुज़ार रहे हैं :-)
    ढेर सा प्यार- इस फ़िल्मी होकर भी नॉन फ़िल्मी पोस्ट के लिए .
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  15. हेमा मालिनी की खूबसूरती और सादगी तो बेजोड है ही बल्कि अब बढती उम्र के साथ उनका व्यक्तित्व और निखरता जा रहा है।रजत शर्मा के शो में इसकी झलक एक दो बार दिखी है।दूरदर्शन पर एक बार एक धार्मिक सीरियल में वे दुर्गा के रूप मे भी नजर आई थी।इसे देखने के बाद मुझे नहीं लगता कि दुर्गा के रोल में कोई भी अभिनेत्री इतनी जँच सकती है।मैंने उनकी ज्यादा फिल्मे नहीं देखी लेकिन जितनी देखी उनमें उनका अभिनय साधारण लगा पर हाँ बागबान में उन्होंने प्रभावित किया।और उस सर्वे की जो ऊपर बात की गई है मुझे लगता है हेमा जी के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर ही लोगों ने वोट दिया होगा वरना माधुरी या रेखा अभिनय में हेमा मालिनी से कम कैसे हो सकती हैं।वैसे नई नायिकाओं के साथ तुलना करना ही गलत है पहले का समाज फिलमे और उनके पात्र सब अलग थे ।
    और रश्मि जी क्या बाद में जया भादुडी आपकी पसंद नहीं रही?मुझे तो लगता है आज की कोई भी हिरोईन चाहकर भी वैसा भोलापन और सादगी अपने चेहरे पर नहीं ला सकती(अभिनय करते हुए भी नही) जैसा जया जी के अभिनय में था।यही बात हम हेमा जी के व्यवहार के लिए भी कह सकते हैं यदि आज की अभिनेत्रियो से तुलना करें तो ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. राजन,
      मैने फिल्मों से सम्बंधित अपने संस्मरण की तीन पोस्ट की एक श्रृंखला सी ही लिखी थी. उसमे जया भादुड़ी के विषय में ये लिखा था...:)

      इन फिल्मो के देखने के बाद तो मैं जया भादुड़ी की जबरदस्त फैन हो गयी. किसी भी पत्रिका में उनकी छपी फोटो या आर्टिकल देखती तो तुंरत काटकर जमा कर लेती. हाल में ही मैंने 'सुकेतु मेहता' की लिखी किताब 'Maximum City 'पढ़ी ..उसमे उन्होंने अमिताभ बच्चन के ड्राईंग रूम में लगी एक पेंटिंग का जिक्र किया है जिसमे कुछ बच्चे बायस्कोप देख रहे हैं. (शायद सुकेतु मेहता को भी ये नहीं पता (वरना अपनी किताब में इसका जिक्र वो जरूर करते) कि दरअसल वो पेंटिंग नहीं है बल्कि सत्यजित राय की फिल्म महानगर के एक दृश्य की तस्वीर है जिसमे उन बच्चों में फ्रॉक पहने जया भादुरी भी हैं. ये फोटो भी मैंने किसी पत्रिका से काटकर अपने संकलन में शामिल कर ली थी और काफी दिनों तक मेरे पास थी.
      जया, भादुड़ी से बच्चन बन गईं, फिल्मो में काम करना छोड़ दिया पर मेरी loyalty वैसी ही बनी रही. जब एक फिल्म फेयर अवार्ड में उन्होंने मंच पर से कड़क आवाज में सारे नए अभिनेता,अभिनेत्रियों को उनकी अनभिज्ञता पर जोरदार शब्दों में डांट पिलाई (क्यूंकि किसी अभिनेत्री ने सुरैया के निधन की खबर सुनकर बड़ी अदा से यह पूछा था "वाज सुरैया मेल औ फिमेल?")तो उनके प्रति आदर और बढ़ गया .ऐसे ही एक बार सिमी गरेवाल के टॉक शो में जया कुछ बता रही थीं और अमिताभ ने बार बार 'अ..अ' कहते हुए उन्हें टोकने की कोशिश तो की पर पूरी तरह टोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाए तो बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ,इतना बड़ा सुपरस्टार जिसे हिंदुस्तान में तो क्या विश्व में भी कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता पर हमारी आइडल ने कोई भाव ही नहीं दिया .खैर ये लिबर्टी जया ने शायद उनकी पत्नी होने के नाते ली थी.लेकिन उनका प्रखर व्यक्तित्व समय के साथ कभी धूमिल नहीं हुआ.

      देख ली न आपलोगों ने बानगी, जया की बात निकली तो फिर दूर तलक गयी।

      हटाएं
    2. हाँ बानगी तो दिख ही रही है और आपका तीक्षण ऑबजर्वेशन भी।कुछ दिन पहले आपकी पुरानी पोस्टो में कुछ फिल्मों पर भी दिखी थी ,उन्हें भी पढ़ा।लगता है आपको फिल्मों और फिल्मी कलाकारों पर चर्चा करता बहुत पसंद हैं।
      और ये जया जी के बारे में तो अमिताभ खुद कई बार कह चुके है कि मेरी इतनी हिम्मत नहीं कि कोई भी छोटा बड़ा काम बिना उनकी सलाह के करूँ।

      हटाएं
    3. मुझे क्या नहीं पसंद??..ये सोचना पड़ेगा...:):)

      कब से सोच रही हूँ...लेबल लगा लूँ..तो पता चल जाएगा...खेल पर,समाजिक समस्याओं पर, बच्चों से सम्बंधित, सामयिक विषयों पर,फिल्मो पर कितना लिख मारा है...बस आलस्यवश नहीं कर पाती ये सब.

      पर अब लगता है जल्दी ही करना पड़ेगा..:)

      हटाएं
  16. मैंने जया भादुडी की बात ऊपर इसलिए की क्योंकि आपकी बातों से ऐसा लगता है जैसे पहले लोग जया भादुडी और हेमा मालिनी की तुलना भी लोग इसी तरह करते होंगे जैसे आज या कुछ समय पहले तक काजोल की तुलना करीना या किसी ग्लेमरस हिरोइन से करते रहे हैं।ज्यादातर काजोल को ही पसंद करते हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  17. प्यारी सी पोस्ट..... उनकी सादगी और जीवंत मुस्कराहट किसे प्रभावित न करेगी....?

    जवाब देंहटाएं
  18. कम ही लोग होते हैं जो जैसे दिखते हैं वैसे ही होते भी हैं |

    जवाब देंहटाएं
  19. हेमामालिनी के जीवन के कुछ अनजानी बातों की जानकारी दी। वो दस रूपये वाले नोट की बात..
    सीता-गीता मैने कई बार देखा। एंग्री गर्ल की वो अदा कभी नहीं भूलती। जिंदादिल इंसानों को देखना, पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है। खूबसूरत हैं, इसमें कोई शक नहीं मगर उनकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है जब हम उनके जीवन के इन पहलुओं पर दृष्टि डालते हैं जिसका इशारा आपने किया है।
    ..बढ़िया पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं
  20. वाह ! नयी नयी जानकारियाँ मिल रही हैं (कमेंट्स में भी) यहाँ पर तो ..अपन चुपचाप लेकर नहीं जायेंगे .. आभार प्रकट करता हूँ :)

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत बढिया पोस्ट |
    अपने तो हमारी अनुभूतियो को शब्द दे दिए |
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  22. मैंने बहुत देर से पढ़ा इसे, पर मुझे अच्छा लगा :)

    जवाब देंहटाएं

फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

यह संयोग है कि मैंने कल फ़िल्म " The Wife " देखी और उसके बाद ही स्त्री दर्पण पर कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग सुनी ,जिसमें सुधा अरोड़ा, मध...