शनिवार, 18 अगस्त 2012

SMS की सुविधा कितनी लाभदायक ??



जब मेरे बेटे ने कहा,"पांच sms से ज्यादा जा ही नहीं रहे...क्या हो गया है मेरे फोन को? " तब तक मैने ये खबर सुनी या पढ़ी नहीं थी कि सरकार ने sms द्वारा अफवाहें फैलाने पर रोक लगाने के लिए सामूहिक sms भेजने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है.  मैं तो आदतवश शुरू हो गयी.."आखिरकार इन मोबाइल कंपनियों को कुछ अक्कल तो आई....कितने ही छात्रों की पढ़ाई..कैरियर सब चौपट कर  दिया है इस sms  की सुविधा ने...कितना समय बर्बाद होता है इस के पीछे. ये एक दिन में सौ sms...पांच सौ sms  के  फ्री पैकेज की सुविधा देना पागलपन है."
जब भी किसी टीनेजर के माता-पिता से मुलाक़ात होती है....सबकी एक शिकायत कॉमन होती कि बच्चे सारा समय sms पर लगे होते हैं. कहीं किसी फैमिली गैदरिंग में गए हों...किसी फंक्शन..पूजा-पाठ...विवाह-समारोह ,कहीं भी हों...नज़रें सामने होती हैं पर अंगुलियाँ दनादन टाइप करती जाती हैं. 

सिर्फ बच्चे ही क्यूँ कभी कभी...किसी मित्र/सहेली  का sms  मिलता है जो आला अफसर हैं, महत्वपूर्ण पद पर काम  कर रहे /रही हैं....और किसी मीटिंग में मेज के नीचे से sms करते/करती  हैं कि बोर हो रहें/रहीं हैं..वगैरह... वगैरह.{अगर इसे मेरे वे दोस्त पढ़ लें तो शायद फिर तो वे मुझे कब्भी ऐसी सिचुएशन में sms   ना करें ....ये रिस्क लेकर भी लिख दिया :) }  पर खैर उन्हें इतनी समझ तो है कि कब काम पर ध्यान देना है और कब वे ज़रा सी छूट ले सकते हैं. लेकिन इन चौदह - पंद्रह साल के बच्चों को कितनी अक्कल  है?? और इस उम्र में दोस्ती ही सबसे महत्वपूर्ण और सबसे प्यारी चीज़ लगती है...और इन्हें लगता है....हर पल दोस्त की खबर रखना ही सच्ची दोस्ती  की परिभाषा है.

जब मोबाइल फोन का आविष्कार किया गया तो मूलतः इसका उदेश्य एक-दूसरे से बात करना ही था. फिर इसमें कुछ  VAS   (Value Added Services  ) का समावेश किया गया. जिसमे   , रिंगटोन,  song download    वगैरह प्रमुख थे. मोबाइल कंपनियों को आशा थी कि ज्यादा आमदनी तो कॉल से ही होगी. इन  VAS से थोड़ी बहुत अतिरिक्त आमदनी हो जायेगी. पर हुआ इसके बिलकुल विपरीत, सिर्फ sms से ही भारत में मोबाइल कंपनियों को 5000 करोड़ की आमदनी होती है. 

मोबाइल से तस्वीरें खींचना , ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग करना...रेडियो सुनना,गाने सुनना, टॉर्च का काम  लेना.. GPS  के सहारे किसी भी जगह का पता ढूँढना संभव है. कैलकुलेटर, घड़ी., ..इन सारी चीजों की सुविधा मोबाइल पर उपलब्ध है. 
एक चुटकुला भी है..." एक लड़का दुकानदार से एक एक कर पूछता है, इस मोबाइल में कैमरा है?.,रेडियो  है.?., घड़ी है?....टॉर्च.है?..." दुकानदार  कहता है..'हाँ सबकुछ है...और आप इस से कभी कभी बात भी कर सकते हैं.:)" 

पर इन सारी चीज़ों से सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ SMS .मोबाइल कंपनियों को SMS की सुविधा प्रदान करने में कोई खर्च नहीं आता...अगर खर्च आता भी है, तो वो है 'एक पैसा'. जबकि इस से आमदनी इन्हें खूब होती है. 50 पैसे से लेकर एक रुपये पचास पैसे तक.  किसी टी.वी प्रोग्राम में sms  से संदेश भेजने पर इसका खर्च 3 रुपये से लेकर 6 रुपये तक आता है. इस से मोबाइल कंपनियों को बहुत आमदनी होती है. मोबाइल फोन पर जो सुविधाएं उपलब्ध होती हैं. उन्हें apps   कहते हैं...और इस sms की सुविधा को' killer apps ' और यह सही अर्थों में killer साबित हुआ जब पूरे भारत में ही sms के जरिये अफवाहें फैलायीं जाने लगीं कि असम और उत्तरपूर्व के लोगों को निशाना बनाया जाएगा . दक्षिण भारत में भी sms  के जरिये अफवाहों का बाज़ार गर्म होने लगा कि उत्तरपूर्व के लोगों पर हमले शुरू हो गए हैं और आने वाले दिनों में ये बढ़ते ही जायेंगे. उत्तरपूर्व के अभिभावक परेशान होकर अपने बच्चों को फ़ौरन वापस बुलाने लगे. छात्र भी 'जान है तो जहान है 'की सोच ताबड़तोड़ अपने शहर जाने की तैयारी करने लगे.15 से 17 अगस्त के बीच... बैंगलोर से गुवाहाटी के लिए 29,363 अनारक्षित   टिकट बेचे गए.  आठ स्पेशल ट्रेनें चलाई गयीं. 
सरकार, पुलिस ,मिडिया ,राजनीतिज्ञ और कुछ गैर सरकारी संस्थाओं की पहल से स्थिति सामान्य हुई . फिर भी जहरीले sms  ने जो जहर फैलाया था उस पर काबू पाने में समय लग गया.

मुंबई में भी आज़ाद मैदान में जो दंगे हुए ,इसके पीछे SMS  का ही हाथ बताया जाता है. जिस शख्स ने पुलिस की राइफल छीन ली थी उसने पूछताछ में यही बताया कि उसे एक sms   के द्वारा ही इस रैली का पता चला था. sms   सिर्फ एक तकनीकी सुविधा है...पर गलत इस्तेमाल पर कहर ढाने की क्षमता रखती है. 
फिलहाल सरकार ने सामूहिक sms  भेजने पर एक रोक लगा दी है. यह रोक पंद्रह दिनों के लिए है. पर इस सौ ...पांच सौ... -हज़ार फ्री   sms के पैकेज की सुविधा पर भी जरा गंभीरता से विचार करना चाहिए. 

हालांकि बच्चे भले ही  इसका दुरूपयोग करें ...पर स्कूल-कॉलेज-ऑफिस में इसका जम कर फायदा उठाया जाता है. कोई भी खबर सर्कुलेट करनी हो तो sms का ही सहारा लिया जाता है. और आजकल तो पैकेज की सुविधा के मोहताज होने की भी जरूरत नहीं BBM  और wts app है..जहाँ ग्रुप चैट चलते हैं. एक साथ  कई लोगों के साथ बात की जा सकती है.

 कभी कभी चार बच्चे एक साथ बैठे होते हैं पर चारों अपनी अपनी मोबाइल पर व्यस्त. वे आपस में ना जुड़ कर दूर-दराज के दोस्तों से जुड़े होते हैं. ये मोबाइल अगर दूर वालों को करीब ला रही है तो बड़ी तेजी से करीब के लोगों को दूर भी करती जा रही है. कितनी ही बार किसी बात की शुरुआत  हुई और किसी एक का मोबाइल टुनटुना उठा...अगर साइलेंट पर रख कर आगे बात जारी भी रखी जाती है तब भी सारा ध्यान मोबाइल की तरफ लगा होता है कि किसका मैसेज है..क्या मैसेज है...सामने वाला व्यक्ति गौण हो जाता है.

अब अपने बच्चों के लिए कुछ नियम बनाना ही अंतिम उपाय है. घर में आने के बाद वे मोबाइल स्विच ऑफ कर दें या अभिभावक के सुपुर्द कर दें. पढ़ाई के वक़्त मोबाइल साथ ना रखें. पर बच्चे भी "तू डाल- डाल मैं पात-पात "..वाली कहावत पर विश्वास करते हैं. जितने नियम बनाए जायेंगे वे उसे भंग करने के सौ तरीके निकाल लेंगे...ये सदियों से चलता आ रहा है...और शायद चलता ही रहेगा..

61 टिप्‍पणियां:

  1. जहा तक बच्चो की बात है आप की बात से सहमत हूँ , इसके लिए शुरू से ही बच्चो को समझाना चाहिए ना की बात हाथ से निकाल जाने के बाद , कम उम्र में बच्चो को मोबाईल दे ही नहीं , और हर समय उन पर नजर भी रखे की उनके मोबाईल पर किसी तरह के एस एम एस आ जा रहे है | किन्तु अफवाए तो मोबाईल के बिना भी फैलती है गणेश जी जब दूध पी रहे थे तो कौन सा मोबाईल का जमाना था और रैलियों के आमंत्रण के लिए और भी तरीके है सरकार ये सब कर बस सांप के निकल जाने के बाद लकीर पीटने का काम करती है वो बस ये दिखाने का प्रयास करती है की वो बसी गंभीर है और कुछ कर रही है जिसका असल में कोई मतलब ही नहीं होता है , सरकार को ये नहीं दिख रहा है की आम जानता के बीच उसको ले कर कोई विश्वास नहीं हो रहा है सरकार किसी की भी हो किन्तु जनता सरकार पुलिस किसी पर भी विश्वास नहीं करी है उसे भरोसा नहीं है की सरकार पुलिए आम लोगो की सुरक्षा कर सकती है , ये उसके लिए शर्म की बात है |

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    1. सही कह रही हैं, गणेश जी के दूध पीने की अफवाह के पीछे कौन सा sms का हाथ था.
      पर मैने उसी खबर के बहाने...युवाओं के चौबीसों घंटे sms पर लगे रहने की बात भी कहना चाहती थी. कल तो एक लड़की को देखा, मोबाइल पर टाइप करते हुए सड़क पार कर रही है...अब यह तो अति ही है.

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  2. बढ़िया लेखन.....
    वाकई एसएमएस बहुत बड़ा रेवोलुशन है...हर चीज़ की तरह इसके भी सकारात्मक और नकारात्मक पहलु हैं.....
    हां बच्चों को घर में मोबाइल से दूर रखा तो समझो किला फ़तेह...भई टॉयलेट तक जाता है मोबाइल !!!!
    राष्ट्रीय स्तर पर तो कंट्रोल सरकार के हाथ है....

    अनु

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    1. फिलहाल तो जिस तरह युवाओं में sms का क्रेज़ है..नकारात्मक पहलू ही ज्यादा दिख रहे हैं

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  3. इतने उपकरण , इतनी उत्सुक्ताएं हैं कि आखिर किस किस डाल को काटेंगे अब ?

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    1. डाल काटने की बात नहीं है...बस संयम की जरूरत है.

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  4. ओवर कम्युनिकेशन के इस दौर में बच्चों की परवरिश एक बड़ा विषय है , जिसपर कम ही ध्यान दिया जा रहा है | सकारात्मक पहलू समझने होंगें हम सभी को.....

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    1. बहुत जटिल कार्य है ये परवरिश भी...तलवार की धार पर चलने जैसा.

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  5. मुझे जब पता चला की बैंगलोर में जो हुआ वो सब एक मेसेज का नतीजा था...तब बड़ा गुस्सा आया मुझे...बड़ी चिढ़ सी हो गयी है मुझे भी इन एस.एम्.एस से...पता नहीं क्यों...और वो बात तो आपने एकदम सही कही है की "ये मोबाइल अगर दूर वालों को करीब ला रही है तो बड़ी तेजी से करीब के लोगों को दूर भी करती जा रही है"
    मुझे तो दीदी बड़ी चिढ़ सी होती है जब कोई आपके साथ बैठा हो और आपसे बातें कम मोबाईल पर चैटिंग ज्यादा करे...लेकिन फिर भी मुझे लगता है की जो मेरे उम्र के लड़के-लड़कियां हैं उनमे मेसेज का क्रेज तो है लेकिन उतना नहीं जितना अभी के कॉलेज स्टुडेंट्स में मेसेज का क्रेज हो गया है...इस विषय पर एक पोस्ट लिखने का मेरा भी मन था...आपने लिख कर अच्छा का कर दिया दीदी :)

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    1. तो लिख डालो ना एक पोस्ट...तुम अपने तरीके से लिखोगे...कई बातें जो इसमें आने से रह गयी हैं...तुम जरूर लिख डालोगे.

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  6. वैसे दीदी एक समय था जब मैं भी एस.एम्.एस किया करता था...कॉलेज में...लेकिन उन दिनों भी कभी एस.एम्.एस से चैटिंग नहीं की.बस फॉरवार्डिंग मेसेज ही भेजता था...जोक्स या कुछ और...उन दिनों डलवाता था मेसेज पैक मैं भी....अब तो बिलकुल नहीं...जरूरत ही नहीं पड़ती...वैसे आजकल मेरी माँ ने सीख लिया है एस.एम्.एस करना...वो हर दिन ऑफिस से करती है एस.एम्.एस तो मैंने पिछले महीने डलवाया एक मेसेज पैक...कितने दाम अब बढ़ गए हैं, दूकान वाले से मेसेज पैक का रेट जब पता किया, मैं तो उस वक़्त हैरानी से देखता रहा दूकान वाले को...सोच समझकर कर महीने में 150 मेसेज का पैक एक्टिवेट करवा लिया जिसके मुझे 18 रुपये लगे...तब याद आया...जब कॉलेज फाईनल इअर में था तो इसी दाम में हर दिन के 100 मेसेज फ्री मिलते थे..

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    1. अभी,
      मैं sms के विरुद्ध नहीं हूँ...खुद मैं भी इसका उपयोग करती हूँ..बस इसके प्रति obsession के विरुद्ध हूँ.
      ये तो बड़ी अच्छी बात है...कि माँ भी sms करती हैं...जमाने के साथ चलना ही चाहिए वरना तुमलोग हमलोगों को बुद्धू समझोगे :)

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  7. मैं तो जी साल भर में शायद चार-पांच से ज्यादा SMS नहीं करता. लेकिन मुझे हर दिन औसतन तीन-चार SMS डिलीट करने पड़ते हैं.
    और नियम बनाना बहुत कठिन है. जिन बच्चों ने वे दिन नहीं देखे जब हम दो मिनट का सस्ता कॉल करने के लिए रात के ग्यारह बजने का इंतज़ार करते थे, वे हमारे नियमों को बेतुका समझेंगे.
    नयी पीढ़ी का जीवन वैसे भी बहुत आत्मकेंद्रित है. कहने को उनकी दोस्ती-यारी बहुत फ्रीडम वाली और शेयरिंग से भरपूर है लेकिन उसमें प्रगाढ़ता नहीं है. एक दिन काम धंधे के फेर में फंस कर उन्हें आपकी बातें समझ में आ ही जायेंगीं. क्या पता, तब दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच चुकी होगी.

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    1. सच ,आज के बच्चे क्या समझेंगे. मेरे बेटे ने एक बार पूछ लिया...'फोन नहीं था तो होमवर्क कैसे डिस्कस करते थे आपलोग?'

      वैसे sms से ऐसी एलर्जी भी सही नहीं..:)

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  8. तकनीकी विकास के फायदे नुकसान एक साथ ही चलते हैं ! हम ज्यादातर फायदों पर फोकस करते हैं पर नुकसान झटके से पता चलते हैं जैसे कि पूर्वोत्तर के मित्रों के साथ हुआ या भावी पीढ़ी के साथ और जो भी होने वाला हो ?

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  9. दिन भर मोबाइल पर लदे फंदे बच्चों को देखते गुस्सा बहुत आता है , दन से जवाब आ जाता है ...अब फ़ोन पर इतनी बात करेंगे तो आप महंगा बिल आने की बात कहेंगी:).
    ज़रूरी सन्देश देने के लिए मुझे भी उनका ही सहारा लेना पड़ता है !
    कई बार मैसेज पढ़कर हम बहुत हँसते/परेशान भी है कि जिसने फॉरवर्ड किया , क्या उसकी दिली भावना इससे जुडी हुई भी है !! सब औपचारिकता सा लगता है !
    यह सही समय है मुफ्त सन्देश भेजे जाने वाली स्कीम पर अब विचार होना चाहिए . कम दाम की ये स्कीमें बच्चो या बड़ो की एकाग्रता पर गंभीर प्रहार करती है !

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    1. कहा ना...बच्चे तो इसी तर्ज़ पर चलते हैं.."तू डाल-डाल तो मैं पात-पात "

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  10. मैं जिस संस्था में काम करता हूँ वहाँ रहकर कितने उद्योगों को खेती की ज़मीनें लीलते देखा है.. विकास के फायदे के साथ-साथ नुकसान भी है और तकनीक अपनी अच्छाइयां बाद में - बुराइयां पहले लेकर आती हैं.. अफवाहों के फ़ैलाने के लिए एस.एम्.एस. तो सिर्फ एक बहाना बना, ये नहीं होता तो कुछ और ही ज़रिया होता..
    व्यक्तिगत तौर पर मैं एस.एम्.एस. बिलकुल ही नहीं इस्तेमाल करता या कभी बहुत ज़रूरत में ही किया हो.. त्यौहारों पर एस.एम्.एस. की औपचारिकता की जगह फोन कर लेता हूँ..
    रही बच्चों की बात.. तो उस युवा पीढ़ी को समझाना बहुत ही मुश्किल है जिस पीढ़ी का ऐन्थेम बन गया है कि
    हर एक फ़्रेंड ज़रूरी होता है!
    या,
    जो तेरा है वो मेरा है, जो मेरा है वो तेरा!!

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    1. पर हर पुरानी पीढ़ी ,नई पीढ़ी के लिए यही नहीं कहती...'इस पीढ़ी को समझना मुश्किल है' :)

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  11. सिक्के के दो पहलु !
    अब सुना है , इसमें भी बाहरी ताकतों का हाथ है .

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  12. vigyan ne chhuri banayee bahuto ne iss phal kate, par kuchh logon ne usse seena cheer diya....:)
    wahi baat mobile kesaath hai, aaj ki jindagi me sab se jayda essential ho gaya hai... par iske bahut se bure gun bhi hain... jis se ham prabhavit ho rahe hain...!!

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    1. मुश्किल तो ये है कि कम उम्र के बच्चों पर इसके दुष्परिणामों का ज्यादा असर हो रहा है.
      परिपक्व लोग तो समझबूझकर ही इसका इस्तेमाल करते हैं.

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  13. ये न्यूज़ तो मैंने सुबह ही पढ़ ली थी. रश्मि, मुझे भी मोबाइल कंपनियों की इन एसएम्एस पैकेज सुइधाओं से बहुत आपत्ति है. सैकड़ों एस एम् एस मुफ्त में देने की क्या तुक है? किशोरों/किशोरियों को बिगाड़ने का नायब नुस्खा है ये. कई बार तो बड़ों को भी इस लत का शिकार होते देखा है मैंने. मैं खुद खटाखट मैसेज ठोकती हूँ :(

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    1. तकलीफ इसलिए होती है कि जो समय ज्ञानार्जन का है..कैरियर बनाने का है...किताबें पढ़ने का है..वो सारा कीमती समय ,ये टीनेजर्स sms करने में गँवा देते हैं.

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  14. मेरे ख्याल से बल्क एस एम् एस पर हमेशा के लिए रोक लगा देनी चाहिए. किसी भी व्यक्ति या संस्था को अगर बल्क में एस एम् एस भेजने हों तो पहले लोकल पुलिस स्टेशन से मेस्सेज को अप्रूव्ड करवाना चाहिए.

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    1. वो तो बहुत मुश्किल काम होगा...पर कुछ कारगर उपाय तो करने ही चाहियें

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  15. ॒@ दीपक जी की बात से सहमति के साथ...
    SMS और फ़ेसबुक जैसी सोसल साइट पर कुछ भी लिखने की स्वछंदता पर सेंसर होना चाहिए.

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    1. ना शाहिद जी...
      सेन्सर लगाने कि बात कहना तो बहुत strong statement हो गया.

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  16. इन यन्त्रों से बहुत अधिक लगाव खटकने लगा है..

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  17. पागलपन की हद तक लगाव और कच्ची उम्र द्वारा बेइंतहा दुरुपयोग, आने वाले समय में बहुत नुकसान करेगा !
    शुभकामनायें आपको !

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  18. Bulk sms पर रोक लगाये जाने के बाद भी ये खतरा रहेगा। आज के मोबाईल फोन में बहुत से App और वेबसाईटे हैं जो फ्री अनलिमिटेड sms करने की सुविधा देती हैं। दूसरा sms की बजाय FB का चलन भी इतनी तेजी से हो चुका है कि हर कोई फोन पर हमेशा FB पर ऑनलाईन रहने लगा हैं।

    प्रणाम

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    1. बहुत सारे apps तो हैं ही और फेसबुक भी..फिर भी सबसे ज्यादा दुरूपयोग इन सौ-पांच सौ sms के पैकेज की सुविधा का ही होता है.

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  19. मैं तो इस निष्कर्ष पर पहुँची हूँ की किसी से बिना विघ्न बात करनी हों तो उसे फोन करना ही बेहतर है. कमसे कम वह पूरे ध्यान से आपकी बात तो सुनेगा. सामने बैठ बात करना चाहूँगी तो वह अपने मोबाइल पर एस एम एस पढ़ेगा, जब तब घंटी बजने पर लोगों से बात करेगा, फिर जब आपसे बात करेगा तब तक बातों की कड़ी टूट चुकी होगी. जब तक फिर से बात धारा प्रवाह चलने लगेगी फिर घंटी बजेगी. सो अब तो आमने सामने बैठ बात करना कठिन हो गया है.
    घुघूतीबासूती

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    1. हा हा...यकीन मानिए आपका ये कमेन्ट दिन भर में मुझे कई बार याद आता है...और जोरों की हंसी आती है. क्या दिन आ गए हैं..रु-ब रु नहीं फोन पर ही शान्ति से बात हो सकती है.

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  20. मुझे तो बहुत परेशानी हो रही है लिमिट हो जाने से... कभी कभी sms की बहुत जरूरत महसूस होती है... दुमिया की हर एक चीज में कुछ अच्छाई है तो कुछ बुराई भी.... ज़रूरी ये है कि हम क्या चुनते हैं...

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    1. अब जहाँ दो सौ..पांच सौ sms रोज भेजने की आदत हो तो परेशानी तो होगी ही (तुम्हारे लिए नहीं..आम लड़कों की बात कर रही हूँ )...पर राशनिंग में काम चलाना सीख लोगे तो फिर परेशानी नहीं होगी. सोचो हमारे वक़्त तो मोबाइल फोन नहीं थे..तो हमने पढ़ाई नहीं की या हमारे दोस्त नहीं बने? कौन सा काम रुका रह गया?

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    2. हम्म्म्म.... बात तो आपकी सही है... लेकिन कई बार ऐसा वक़्त होता है जब हम फोन नहीं कर सकते तो, किसी ज़रूरी सन्देश को पहुँचाने का जरिया बन जाते हैं ये मेसेज... २००-५०० तो मैं करता भी नहीं... दिन भर में कम से कम २० मेसेज तो मिलने ही चाहिए...

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    3. हाँ शेखर पांच का कोटा तो बहुत कम है....मैने कहीं फेसबुक पर लिखा भी है...कि सीमा बढ़ा कर पच्चीस कर दें ..पर ये दो सौ-पांच सौ ..की सुविधा ठीक नहीं.
      खैर अब एक हफ्ता तो पूरा हो गया...बस सात दिन और..फिर होने यंगस्टर्स और उनके sms :)

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  21. :( .I am a victim of this SMS facility . Daily i get at least 20 promotional SMS from different entertainment , hospitality , Insurance ,Bank , Tourism Sectors. Various agencies take our mobile number from social networking site or some other source for sending promotional SMS . Donn'w how much legal it is ? It's a like braching of secrecy of private information . It should be banned .I guess there is some way to block promotional messages coming to phone . But not much info on it . If any body has some information then please let me know ..........thanks in advance.

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  22. एक ही लाभ हुआ है। खाते में कब वेतन गया तुरंत पता चल जाता है। और तो जब मौका मिलता है बिना पढ़े डिलीट कर देता हूँ। मेरी आदत जानकर मित्र अब मुझे नहीं करते। :)

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    1. अब ऐसा भी ना किया कीजिए forwarded messages ,डिलीट करना ठीक है..पर अगर कोई जरूरी संदेश हो..जैसे पत्नी श्री ने sms किया हो...जरा धनिया पत्ती लेते आइयेगा...और आपने बिना पढ़े डीलीट कर दिया तो..:)

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  23. भारत में तो बाड़ ही आई हुयी थी पहले .... हर कोई इसका इस्तेमाल/दुरूपयोग करता है ... जरूरी के एस एम् एस भी इस भीड़ में रह जाते हैं ...
    बच्चे तो खास कर के .... जरूरी है उन पे नियंत्रण रखना ...

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    1. पर क्या उपाय किए जाएँ नियंत्रित करने के लिए ...बच्चे वे रहे नहीं..कि सब कहा मान लें..और इतने बड़े भी नहीं हुए कि खुद ही अच्छे-बुरे की पहचान कर लें.

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  24. बिलकुल सही कह रही हैं आप ! टीवी पर तो सारे रीयलिटी शोज़ SMS के बलबूते पर ही चलते हैं ! अपने चहेते कलाकार को जिताना है तो वोट करने के लिये SMS करें ! कौन बनेगा करोड़पति में घर बैठे जैक पॉट जीतना है तो SMS करें ! पब्लिक की जेब से करोड़ों रुपये निकलवा कर थोड़ा सा रुपया इनाम राशि के रूप में बाँट दिया जाता है ! और इनाम पाने के लालच में लोग लगे रहते हैं और अपना बिल बढ़ाते रहते हैं ! दरअसल लोगों को अपनी समझदारी को बढ़ाने की ज़रूरत है ! मोबाइल बनाने वाली कम्पनीज तो हर सुविधा देना चाहेंगे ! नहीं देंगे तो आज के कॉम्पीटीशन के ज़माने में नुक्सान थोड़े ही उठायेंगे ! बढ़िया आलेख !

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    1. हाँ, मोबाइल कम्पनियां तो बस अपना फायदा ही देखेंगी....वे बिजनेस करने के लिए बाज़ार में हैं ..किसी समाज सेवा के लिए थोड़े ही.

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  25. आपके मुंबई में दोस्तों ने मेरा फ़ोन छिनकर रख लिया था ३ घंटे :)
    आपसे मिलने आया तब तो शायद फ़ोन पर हम बीजी नहीं थे?

    ऐसा होता है कई बार कि आस पास सभी लोग फोन पर लगे होते हैं. और आपस में कोई बात नहीं. २०० एसेमेस की लिमिट भी कुछ लोगों के लिए कम पड़ जाती थी तो पांच तो ! :)

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    1. देखिए आपने 'शायद' लगा दिया..यानि कि आप भी श्योर नहीं हैं...:)
      नहीं...नहीं..आप उस वक्त फोन पर नहीं थे.
      पर दोस्तों ने फोन क्यूँ छुपाया...यानि कि एडिक्शन तो है...:)
      निकल आइये, इस से ..वरना भारी पड़ेगी...जब भावी-पत्नी श्री सामने होंगी और आप चुपके से नज़रें बचा दोस्तों के sms पर नज़र डालने की कोशिश करेंगे.

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  26. इन दिनों शहर से बाहर रहने के कारण इतनी बेहतरीन पोस्‍ट पढ़ने में देरी हो गयी। सच है आजकल एसएमएस की ही माया है।

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    1. शुक्रिया अजित जी,
      आप कितनी भी व्यस्त हों...कितने ही दिन बाद ब्लॉग जगत का रुख करें..पर मेरी पोस्ट जरूर पढ़ती हैं.
      आभारी हूँ, दिल से :)

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