शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

खेलप्रेमियों का नया चहेता : युवराज वाल्मीकि

इस पोस्ट को कुछ दिनों पहले ही लिखना था..पर अनेकानेक कारणों से वक़्त नहीं मिला...पर देर से ही सही इसे लिखने की तमन्ना जरूर थी.

इंग्लैण्ड के हाथों भारतीय क्रिकेट टीम को मिली करारी हार ने खेल प्रेमियों को व्यथित कर रखा था...ऐसे में मरहम का कार्य किया हॉकी में मिली अनापेक्षित जीत ने. लेकिन इस मरहम का प्रयोग कितने लोग कर पाए...क्यूंकि अधिकाँश लोगो को हॉकी की खबर ही नहीं रहती...ना तो अखबार में इसके चर्चे होते हैं ना ही टी.वी. पर (ब्लॉगजगत में हुई हो तो पता नहीं) .12 सितम्बर 2011 को चीन में एशियन हॉकी चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल मैच में भारत ने पकिस्तान को 4-2  से हराकर चैम्पियंस ट्रॉफी जीत ली. पर इस मैच का सीधा प्रसारण किसी भी चैनल ने नहीं किया क्यूंकि वे क्रिकेट मैच दिखाने में व्यस्त थे 

भारतीय क्रिकेट टीम, टेस्ट-मैच श्रृंखला....एक-दिवसीय श्रृंखला...T-20  श्रृंखला हार  गयी, पर उसके खिलाड़ी जब भारत लौटे तो हर खिलाड़ी 15 से 20 लाख रुपये कमा चुका था. और यहाँ हमारी हॉकी टीम के खिलाड़ियों की कमाई  थी... 300 रुपये दैनिक भत्ते के हिसाब से कुछ हज़ार रुपये (विशवास नहीं होता..पर मैंने अखबार में यही पढ़ा है) 

जब टीम जीत कर लौटी तो हॉकी फेडरेशन के सेक्रेटरी ने हर खिलाड़ी को इनामस्वरूप पच्चीस हज़ार रुपये देने की घोषणा की. जब खिलाड़ियों ने इतनी कम राशि लेने से इनकार कर दिया और मिडिया ने भी आलोचना की तब डेढ़ लाख रुपये के इनाम की घोषणा की गयी. 
पंजाब सरकार, उड़ीसा सरकार, महाराष्ट्र सरकार ने खिलाड़ियों के लिए इनाम की घोषणा की है लेकिन इस विवाद के बाद. वरना टीम के जीत की खबर सुनते ही किसी ने टीम के लिए किसी इनाम की घोषणा नहीं की. जबकि क्रिकेट टीम को मिली किसी भी जीत पर इनामो की कैसी बारिश की जाती है...यह सब हम हाल के दिनों में देख ही चुके हैं.

                                                              युवराज वाल्मीकि अपनी झोपड़ी में 
मुंबई के युवराज वाल्मीकि भी इस टीम के सदस्य थे और जीत में भी उन्होंने अहम् भूमिका निभाई. उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने दस लाख रुपये देने की घोषणा की है. पर जब उनके बारे में पढ़ा तो पता चला वे एक झोपडी में रहते हैं, जिसमे दरवाजे भी नहीं है..और पक्की छत भी नहीं. पर वो झोपडी कप और शील्ड से सजी हुई है. मैने सोचा दस लाख में मुंबई में तो एक फ़्लैट भी नहीं खरीद  सकते वे. खैर..सरकार को थोड़ी शर्म आई है और अब उन्हें मुख्यमंत्री के २% के कोटे से एक फ़्लैट दिया जा रहा है.

इक्कीस वर्षीय युवराज वाल्मीकि की यह सफल यात्रा विश्वास दिलाती है कि कड़ी मेहनत और सच्ची लगन से क्या हासिल नहीं किया जा सकता. मुंबई की मरीन लाइंस में 16/16 की एक झोपडी में युवराज रहते हैं जहाँ पिछले चालीस सालों से बिजली नहीं है. उनके पिता एक ड्राइवर  हैं जिनकी मासिक आय 6000 रुपये है. फिर भी उन्होंने युवराज को कॉलेज में पढ़ने भेजा और कभी हॉकी खेलने से नहीं रोका. बल्कि बढ़ावा ही दिया. 

नौ साल की उम्र में उनके पहले कोच मर्ज़ाबान पटेल ने उनकी प्रतिभा को पहचाना  और उन्हें कोचिंग देनी शुरू की. सत्रह साल की उम्र में वे एयर इण्डिया के लिए खेलने लगे .उसके बाद से धनराज पिल्लै, गेविन फरेरा, जोकेम कारवालो ने उन्हें कोचिंग देनी शुरू की. नेशनल टीम के चयन के लिए कोचिंग कैम्प में 110 खिलाडी थे. उसमे से 18 खिलाड़ियों की सूची में अपना नाम देखकर ही वे खुश थे. पर जब पकिस्तान के साथ खेलते हुए पाकिस्तानी टीम के विरुद्ध उन्हें पेनाल्टी शूट का मौका मिला, तो उन्होंने अपने कोच को निराश नहीं किया और गोल करके भारत को बढ़त दे दी और भारत विजयी रहा. 

अच्छी बात है कि युवराज इस चकाचौंध  से भ्रमित नहीं हुए हैं..और कहते हैं..."अब तो और भी मेहनत करनी है...भारत ओलम्पिक में मेडल ला सका तो मेरा सपना पूरा होगा. "

एक दिलचस्प बात और हुई. युवराज के दादा जी सालो पहले उत्तर-प्रदेश के अलीगढ से मुंबई आए थे. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे....जो मुंबई में सिर्फ "मराठी माणूस" को ही देखना चाहते हैं..उन दोनों ने भी युवराज वाल्मीकि का सम्मान किया. 

21 टिप्‍पणियां:

  1. इसे ही कहते है गुदड़ी के लाल | २५ हजार इनाम की बात सुन तो सभी को ही गुस्सा आया था वो भी खेल मंत्री के द्वारा , लेकिन असली समस्या की जड़ तो हाकी के आकाओ की लड़ाई है जो हाकी का भला करने और खेल की तरफ ध्यान देने के बजाये अपनी अपनी लड़ाई में लगे है उन्हें अपने कमाने खाने से फुरसत मिले तब ना |

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  2. भारत जीत गया है और कुछ विवाद हुआ है इनाम की राशि कि लेकर यह समाचारों में आया था और अवगत हुआ था। पर इस उदीयमान खिलाड़ी के बारे में इतना विस्तार से जानने का अवसर नहीं मिला था। (सच कहूं तो नाम ही आज पहली बार सुन रहा हूं।)
    आपका आभार कि आप ने इस अनमोल रत्न से परिचय कराया।

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  3. ओह! प्रकाशित होने तक वेट करना होगा।

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  4. इस प्रतिभा से परिचय हाल की श्रृंखला के दौरान ही हुआ और ईमानदारी से कहूँ तो ऐसे ही, जैसे "कौन बनेगा करोडपति" की तैयारी के लिए सवाल याद कर रहा होऊं...
    इस पतन के लिए कौन जिम्मेवार है यह कहना बड़ा ही कठिन है.. हाँ, जिस ज़माने में मैं दीवाना होता था इस खेल का, तब इसका जिम्मेवार मैंने अशोक कुमार (स्व. ध्यानचंद के सुपुत्र) को पाया है.. १९७५ के बाद जब वे टीम भावना को छोडकर, व्यक्तिगत खेल को महत्व देने लगे तो दोनों ही समाप्त हो गए... क्रिकेट में व्यक्तिगत खेल की वैल्यू है, मगर हॉकी में वही घातक हो गयी..
    बहुत दिनों तक एस्ट्रो टर्फ का बहाना चला.. फिर राजनीति और फिर पतन!! देखें इस बच्चे के सपने किस ऊंचाई तक उड़ान भर पाते हैं!!

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  5. चलिए आपने भी यह पोस्‍ट लगाकर उनका एक तरह से सम्‍मान ही किया।

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  6. इस चक दे पोस्‍ट का अंतिम पैरा तो एकदम पेनाल्‍टी शूट है, वाह.

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  7. इस बहादुर लड़के को सुनहरे भविष्य के लिए शुभकामनायें !

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  8. "इस मैच का सीधा प्रसारण किसी भी चैनल ने नहीं किया क्यूंकि वे क्रिकेट मैच दिखाने में व्यस्त थे"
    सचमुच उस दिन इतना बुरा लग रहा था कि कुछ मत पूछिए ..
    आपने बहुत अच्छा किया इस पोस्ट को लिखकर -क्या हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल सचमुच है?
    अब युवराज पर इनकम टैक्स वाले गुर्रा रहे हैं...वे अन्ना के अरविन्द पर भी तैश खाये हुए हैं ..
    अपने देश में चीजें इतना बेतरतीब क्यों हो गयी है ? जाहिर है भ्रष्ट लोग मिजारिटी में हैं !

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  9. अपने मुल्क में खेल संघों की कमान ऐसे हाथों में सिमट गई है जो अपने आप में उस विधा विशेष के बहुत बड़े शून्य हैं ! ऐसे में अचीवमेंट जो भी हो वह उस प्रतिभा का होता है जो सौभाग्यवश / चमत्कारवश अंतिम स्क्वाड में शामिल हो पाई !

    हॉकी की दुर्गति भी ऐसे ही '.मीने' खेल संघ प्रमुखों का कमाल है वर्ना युवराज वाल्मिकी (प्रतिभायें) गली मुहल्लों में थोक के भाव बिखरे पड़े हैं !

    वितृष्णा की हद ये है कि हॉकी अपना प्रिय खेल है पर हमने भी वह मैच नहीं देखा ! पर मैच के परिणाम के बाद इसका पछतावा ज़रूर है !

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  10. समाचारों में केवल ब्रेकिंग न्यूज के रूप में पट्टी पर बताया जा रहा था कि भारत की हाकी टीम ने एक गोल किया, अब दूसरा गोल दागा और मैं चैनल बदल बदल कर देख रहा था कि कहीं तो दिखे लेकिन नहीं दिख रहा था। सब पर कुछ न कुछ उटपटांग दिखाई दे रहा था।

    उम्मीद है अब कुछ स्थिति बदलेगी। आखरी पैरा जोरदार रहा।

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  11. हीरे अपनी चमक से अभिभूत कर ही देते हैं, जिनका मोल न सरकार दे पाती है और न ही मीन-मेख में अनावश्यक जगहों पर जुटी मीडिया।

    युवराज पर पढ़कर अच्छा लगा! आभार..!

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  12. युवराज सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं होते...अच्छा लगा महाराष्ट्र सरकार ने युवराज के लिए ग्यारह लाख रुपये के इनाम के साथ घर और नौकरी का आश्वासन भी दिया है...

    एक बात और...क्या सचिन तेंदुलकर से पहले भारतरत्न पर दद्दा मेजर ध्यानचंद का हक़ नहीं बनता...

    जय हिंद....

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  13. यह जानकारी तो आपने बढ़िया दी. अगर अन्य खेलों में थोडा प्रोत्साहन दिया जा सके तो शायद उसके भी अच्छे खिलाडी सामने आयें.
    दाद देनी होगी ऐसे लोगों की जो इस तरह के अभावों में में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में कामयाब हो पाते हैं.

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  14. हालांकि मैं मूल से पूरी तरह सहमत हूँ यहाँ, फिर भी आपके यहाँ खेल पर २-४ बातें कह के मन उलीच लेता हूँ। :)

    किसी खेल में भी यदि अधिक पैसा है तो खिलाड़ी या सरकार दोषी नहीं होते, (BCCI सरकारी संस्था नहीं है, ना ही Nike, TATA, Sahara, Reliance ...) दोष यदि लग सकता है तो केवल और केवल दर्शकों पर।यदि लसिथ मलिंगा के पाटे हाँकने (उसे क्रिकेट कहने को मेरी आत्मा तैयार नहीं :)) पर लाखों लोग झूमते हैं, टिकेट खरीदते हैं, हर ओवर के बाद आत़े Gillette twin blade के ads देखते नहीं अघाते। उन्हें करोड़ों देने को हम तैयार हैं, तो इससे क्रिकेट या खिलाडी दोषी कैसे हो गए? या फिर हमारी सरकार भी?
    F1 के इतने महंगे टिकेट बिक गए, लेकिन ७०-८० रूपये के भी टिकेट ले हम नहीं जाते हॉकी देखने।

    और ये एक vicious circle है, देखने वाला बच्चा यही देखेगा तो आगे hockey stick तो नहीं ही उठाएगा, यहाँ तक की गेंद भी नहीं।
    हॉकी को उठाने के लिए क्रिकेट या किसी भी खेल के विपरीत दिशा में कुछ भी कहना, मुझे ठीक नहीं लगता।
    हाँ इस बेतरह ईनाम की बारिश. चाहे वो क्रिकेट में दिए जाएँ या हॉकी में, यदि सरकार की तरफ से है, को मैं सही नहीं मानता। वो सचिन तेंदुलकर हो, महेश भूपति या फिर साइना नेहवाल।
    हाँ, निजी संस्थाओं के advertisement का propaganda हो तो फिर क्या कहूँ?
    किसी भी देश में (बांग्लादेश या केन्या की बात ना करें तो) किसी भी खिलाडी को तयशुदा इनाम ही मिलता है (जो कि निःसंदेह अच्छी रकम होती है), न कि सबसे महंगे शहर में फ्लैट, बँगला, विला।

    एक खिलाडी या एक फिल्म अभिनेता हो जाने से ही विशेष अधिकार तो नहीं हो जाते?
    एक बल्लेबाज़ रन नहीं बनाएगा तो क्या करेगा?
    एक हॉकी खिलाडी यदि गोल नहीं करेगा तो...?
    क्या एक बैंक मैनेजर या एक इंजिनियर जो पूरी तहजीब-तसल्ली से अपना काम करते हैं, उन्हें भी मिलेंगे ऐसे ईनाम? पढ़ाई करना ऐसी बुरी बात भी नहीं। :)
    क्या यह सम्मान कम है कि ये खिलाडी सबसे ऊँची वरीयता पर खेलते हैं? निश्चय ही वेतन और सुविधायें उसी अनुरूप होना चाहिए जो कि अन्य खेलों में कतई नहीं है। और हॉकी फेडरशन की तो खैर...

    युवराज पर आयें, तो वो निश्चय ही बधाई के पात्र हैं। और योग्य पुरस्कार के भी।

    और हाँ! अंतिम अनुच्छेद तो कमाल है!!
    धन्यवाद आपका जो आपने इस "More on Sports" वाले पृष्ठ पर रुके सितारे पर लिखा।
    आज फिर से बहुत ज्यादा हो गया। :)

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  15. युवराज बाल्मीकी के बारे में आपके आलेख में पढ़ कर बहुत प्रसन्नता हुई ! हमारा राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद भी हॉकी लोकप्रियता के मामले में कितना पिछड़ा हुआ है और भारत को जीत का गौरव दिलाने के बाद भी इसके खिलाड़ियों के साथ जिस तरह का सौतेला व्यवहार किया गया उससे हमें भी बहुत दुःख हुआ था ! क्रिकेट खिलाड़ियों को कितने भी खराब प्रदर्शन करके बाद जिस तरह से आसमान पर बैठाया जाता है उसका सारा दोष दर्शकों को नहीं दिया जा सकता ! नि:संदेह रूप से दर्शक उन्हें पसंद करते हैं लेकिन सरकारी इनामों की बरसात नेताओं और क्रिकेट फेडरेशन के अधिकारियों की मिलीभगत का ही परिणाम होता है ! हॉकी की शोचनीय दशा पर बहुत गंभीर होकर विचार करने की आवश्यकता है !

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  16. देखो...इसी से अंदाजा लगाओ कि लोकप्रियता के स्तर का क्या आलम है क्रिकेट को छोड़ कर मानो कोई और खेल खेल है ही नहीं....कितने लोग जानते हैं इन खिलाड़ियों के बारे में जो देश के लिए इतनी मेहनत कर पदक लेकर आते हैं...

    बहुत जरुरी है इस तरफ ध्यान देना और मीडिया का इसमे अहम रोल होना चाहिये.

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  17. युवराज की लगन प्रशंसनीय है। खेलों का व्यवसायीकरण तो हुआ ही है परंतु सबसे अधिक हानि उनके राजनीतिकरण से हुई है।

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