कल सलिल वर्मा जी के ब्लॉग पर उनका, उनकी बिटिया द्वारा लिया गया ख़ूबसूरत साक्षात्कार पढ़ा....और मुझे कुछ याद आया...कि मेरे ब्लॉगजगत में आने के कुछ ही दिनों बाद....कुलवंत हैपी जी ने अपने ब्लॉग पर एक श्रृंखला शुरू की थी...जिसमे वे लोगो के साक्षात्कार लेते थे...उसी क्रम में मुझसे भी कुछ सवाल पूछे थे...{इस ब्लॉगजगत ने सारे शौक पूरे कर दिए...अब वास्तविक दुनिया में तो कोई इंटरव्यू लेने से रहा..:)}आज जब कई दिनों बाद उसे दुबारा पढ़ा तो लगा...अब दो साल होने को आए हैं..इस ब्लॉगजगत में पर सब वैसा ही है.
ब्लॉगर मित्र राजेश उत्साही जी ने एक बार मुझसे कहा था कि मैने अपनी पेंटिंग के विषय में कभी कुछ नहीं लिखा....वैसे तो हर पेंटिंग की अपनी एक कहानी है..पर यहाँ पेंटिंग की शुरुआत के विषय में बताने का अवसर मिला...और भी मन की कई सारी बातें हैं, जो लगा यहाँ शेयर करनी चाहिए.
कुलवंत हैप्पी : आपने अपनी एक पोस्ट में ब्लॉगवुड पर सवालिया निशान लगाते हुए पूछा था कि ब्लॉग जगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों वाला अखबार या महज एक सोशल नेटवर्किंग साईट? इनमें से आप ब्लॉगवुड को किस श्रेणी में रखना पसंद करेंगी और क्यों?
रश्मि रविजा : सबसे पहले तो आपको शुक्रिया बोलूं "आपने मेरा नाम सही लिखा है" वरना ज्यादातर लोग 'रवीजा' लिख जाते हैं। वैसे I dont mind much ....टाइपिंग मिस्टेक भी हो सकती है, और जहाँ तक आपके सवाल के जबाब की बात है। तो मैं पोस्ट में सब लिख ही चुकी हूँ। हाँ, बस ये बताना चाहूंगी कि ब्लॉगजगत को मैं एक 'सम्पूर्ण पत्रिका' के रूप में देखना चाहती हूँ। मेरे पुराने प्रिय साप्ताहिक 'धर्मयुग' जैसा हो, जिसमें सबकुछ होता था, साहित्य, मनोरन्जन, खेल, राजनीति पर बहुत ही स्तरीय। और स्तरीय का मतलब गंभीर या नीरस होना बिलकुल नहीं है। वह आम लोगों की पत्रिका थी और उसमें स्थापित लेखकों के साथ साथ मुझ जैसी बारहवीं में पढ़ने वाली लड़की को भी जगह मिलती थी।
मेरा सपना ब्लॉगजगत को उस पत्रिका के समकक्ष देखना है क्यूंकि मैं 'धर्मयुग' को बहुत मिस करती हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आपके ब्लॉग पर शानदार पेंटिंगस लगी हुई हैं, क्या चित्रकला में भी रुचि रखती हैं?
रश्मि रविजा : वे शानदार तो नहीं हैं पर हाँ, मेरी बनाई हुई हैं। और मैं अक्सर सोचती थी कि अगर मैं कोई बड़ी पेंटर होती तो अपनी 'चित्रकला' शुरू करने की कहानी जरूर बताती। अब आपने पेंटिंग के विषय में पूछ लिया है, तो कह ही डालती हूँ। बचपन में मुझे चित्रकला बिलकुल नहीं आती थी। सातवीं तक ये कम्पलसरी था और मैं ड्राईंग के एक्जाम के दिन रोती थी। टीचर भी सिर्फ मुझे इसलिए पास कर देते थे क्यूंकि मैं अपनी क्लास में अव्वल आती थी।
चित्रकला के डर से ही बारहवीं तक मैंने बायोलॉजी नहीं, गणित पढ़ा। पर इंटर के फाइनल के बाद समय काटने के लिए मैंने स्केच करना शुरू कर दिया, क्योंकि तब, खुद को व्यस्त रखने के तरीके हमें खुद ही इजाद करने पड़ते थे। आज बच्चे, टीवी, कंप्यूटर गेम्स, डीवीडी होने के बावजूद अक्सर कह देते हैं। "क्या करें बोर हो रहें हैं," पर तब हमारा इस शब्द से परिचय नहीं था। कुछ भी देख कर कॉपी करने की कोशिश करती. अपनी फिजिक्स, केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल्स बुक के सारे खाली पन्ने भर डाले। मदर टेरेसा, मीरा, विवेकानंद, सुनील गावस्कर...के अच्छे स्केच बना लेती थी.
फिर जब एम.ए. करने के लिए मैं होस्टल छोड़ अपने चाचा के पास रहने लगी तो वहाँ कॉलेज के रास्ते में एक पेंटिंग स्कूल था। पिताजी जब मिलने आए तो मैंने पेंटिंग सीखने की इच्छा जताई, पर बिहार में पिताओं का पढ़ाई पर बड़ा जोर रहता है। उन्होंने कहा,'एम.ए.' की पढ़ाई है, ध्यान से पढ़ो। पेंटिंग से distraction हो सकता है ,पर रास्ते में वह बोर्ड मुझे, जैसे रोज बुलाता था और एक दिन मैंने चुपके से जाकर ज्वाइन कर लिया। हाथ खर्च के जितने पैसे मिलते थे, सब पेंटिंग में लग जाते। उस दरमियान अपने लिए एक क्लिप तक नहीं ख़रीदा. कभी कभी रिक्शे के पैसे बचाकर भी पेंट ख़रीदे और कॉलेज पैदल गई...पर जब पापा ने मेरी पहली पेंटिंग देखी तब बहुत खुश हुए।
ये सारी मेहनत तब वसूल हो गई, जब दो साल पहले मैं अपनी एक पेंटिंग फ्रेम कराने एक आर्ट गैलरी में गयी...और वहाँ SNDT कॉलेज की प्रिंसिपल एक पेंटिंग खरीदने आई थी। उन्हें मेरी पेंटिंग बहुत पसंद आई और उन्होंने मुझे अपने कॉलेज में 'वोकेशनल कोर्सेस' में पेंटिंग सिखलाने का ऑफर दिया। मैं स्वीकार नहीं कर पाई, यह अलग बात है क्यूंकि मेरा बडा बेटा दसवीं में था। शायद ईश्वर की मर्जी है कि मैं बस लेखन से ही जुड़ी रहूँ।
कुलवंत हैप्पी : लेखन आपका पेशा है या शौक, अगर शौक है तो आप असल जिन्दगी में क्या करती हैं?
रश्मि रविजा : लेखन मेरा शौक है। मैं मुंबई आकाशवाणी से जुड़ी हुई हूँ। वहाँ से मेरी वार्ताएं और कहानियाँ प्रसारित होती हैं। और असल ज़िन्दगी में, मैं क्या क्या करती हूँ, इसकी फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि आप बोर हो जाएंगे, सुनते सुनते :)
कुलवंत हैप्पी : आपकी नजर में ब्लॉगवुड में किस तरह के बदलाव होने चाहिए?
रश्मि रविजा : व्यर्थ के विवाद ना हों, सौहार्दपूर्ण माहौल हमेशा बना रहें। कोई गुटबाजी ना हो. सबलोग सबका लिखा पढ़ें और पसंद आने पर खुलकर प्रशंसा-आलोचना करें। हाँ एक और चीज़...लोग अपना 'सेन्स ऑफ ह्यूमर' जरा और विकसित कर लें तो अच्छा...कई बात मजाक समझ कर छोड़ देनी चाहिए..उसे भी दिल पे ले लेते हैं।
कुलवंत हैप्पी : क्या आप आपकी नजर में ज्यादा टिप्पणियोँ वाले ब्लॉगर ही सर्वश्रेष्ठ हैं या जो सार्थक लिखता है?
रश्मि रविजा : ऐसा नहीं है कि ज्यादा टिप्पणियाँ पाने वाले ब्लॉगर सार्थक नहीं लिखते। यहाँ पर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो बहुत अच्छा लिखते हैं, लेकिन उनको टिप्पणियाँ ना के बराबर मिलती है। ऐसे में उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
कुलवंत हैप्पी : "मन का पाखी" में आपने नए साल पर उपन्यास लिखना शुरू किया है, क्या आप अब इस ब्लॉग पर निरंतर उपन्यास लिखेंगी?
रश्मि रविजा : सोचा तो कुछ ऐसा ही है कि अपने लिखे, अनलिखे, अधूरे सारे उपन्यास और कहानियां, सब अपने इस ब्लॉग में संकलित कर दूंगी। ज्यादा लोग पढ़ते नहीं या शायद पढ़ते हैं, कमेंट्स नहीं करते। पर मेरा लिखा सब एक जगह संग्रहित हो जाएगा। इसलिए जारी रखना चाहती हूँ, ये सिलसिला।
कुलवंत हैप्पी : आपको ब्लॉगवुड की जानकारी कैसे मिली, और कब शुरू किया?
रश्मि रविजा : 'अजय ब्रह्मात्मज' जी के मशहूर ब्लॉग "चवन्नी चैप" के लिए मैंने हिंदी टाकिज सिरीज के अंतर्गत हिंदी सिनेमा से जुड़े अपने अनुभवों को लिखा था। लोगों को बहुत पसंद आया। कमेन्ट से ज्यादा अजय जी को लोगों ने फोन पर बताया और उन्होंने मुझे अपना ब्लॉग बनाने की सलाह दे डाली। 'मन का पाखी' मैंने 23 सितम्बर 2009को शुरू किया और 'अपनी उनकी सबकी बातें' 10 जनवरी 2010को.
कुलवंत हैप्पी : "मंजिल मिले ना मिले, ये गम नहीं, मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है" आप इस पंक्ति का अनुसरण करती हैं?
रश्मि रविजा : ऑफ कोर्स, बिलकुल करती हूँ। सतत कर्म ही जीवन है, वैसे अब यह भी कह सकती हूँ "तलाश-ओ-तलब में वो लज्ज़त मिली है....कि दुआ कर रहा हूँ, मंजिल ना आए"।
कुलवंत हैप्पी : कोई ऐसा लम्हा, जब लगा हो बस! भगवान इसकी तलाश थी?
रश्मि रविजा : ना ऐसा नहीं लगा, कभी...क्योंकि कुछ भी एक प्रोसेस के तहत मिलता है, या फिर मेरी तलाश ही अंतहीन है, फिर से मंजिल से जुड़ा एक शेर ही स्पष्ट कर देगा इसे "मेरी ज़िन्दगी एक मिस्ले सफ़र है ...जो मंजिल पर पहुंची तो मंजिल बढा दी."
आपका बहुत बहुत शुक्रिया...मुझे इतने कम दिन हुए हैं, ब्लॉग जगत में फिर भी...मेरे विचार जानने का कष्ट किया और मेरे बारे में जानने की जिज्ञासा जाहिर की। आपने कहा था, जिस सवाल का जबाब ना देने का मन हो, उसे छोड़ सकती हूँ। पर देख लीजिए मैंने एक भी सवाल duck नहीं किया। आपके सवालों से तो बच जाउंगी पर ज़िन्दगी के सवाल से भाग कर कहाँ जाएंगे हम?
बहुत सुन्दर साक्षात्कार. अंतिम वाक्यांश "ज़िन्दगी के सवाल से भाग कर कहाँ जाएंगे हम" से बहुत हौसला मिला.
जवाब देंहटाएंरश्मि रविजा जी ,
जवाब देंहटाएंआपका ये इंटरव्यू बहुत अच्छा लगा तथा आपके विचारों को समझाने का मौका मिला. ब्लॉग पर वाकई आपकी पेंटिंग बहुत अच्छी है.............
पुरवईया : आपन देश के बयार
वाह काफी बढ़िया रहा यह इंटरव्यू ... आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं साथ साथ धन्यवाद ... सलिल भाई की पोस्ट के विषय में आप से ही जानकारी मिली !
जवाब देंहटाएंएक बार फिर मिलकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंहैपी जी के ब्लॉग पर तो नहीं पढ़ पाए थे :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपका बेबाक अंदाज़.
बहुत खुश कर देने वाला साक्षात्कार..positive vibes निकलते हों जिससे।
जवाब देंहटाएंऔर आपका लिखा मीठा सा तो हमेशा होता ही है।
शुभकामनाएं।
वाह, वाह। अच्छा इंटरव्यू है। सवालों के साथ जवाब भी लाजवाब।
जवाब देंहटाएंतलाश-ओ-तलब में वो लज्ज़त मिली है....कि दुआ कर रहा हूँ, मंजिल ना आए।
ये तो डायरी पर तुरंत उतार लेना चाहिए।
स्माल एंड ब्यूटीफुल इंटरव्यू आफ अ ब्यूटीफुल ब्लॉगर
जवाब देंहटाएंइंटरव्यू चकाचक है जी! फ़ोटो वैसे पहले भी देखा है लेकिन आज कुछ और अच्छा लगा। मुस्कराता हुआ। मेरा मन पेंटिंग सीखने का करता है -कार्टून बनाने के लिये ताकि अपनी खुराफ़ातों को कार्टून में बदल सकूं।
जवाब देंहटाएंआपका एक इंटरव्यू लेने का मन है मेरा भी ! :)
आपके भय आपका पीछा करते ही रहते हैं।
जवाब देंहटाएंदीदी, बहुत दिनों बाद यहाँ आ पायी हूँ. आपका इंटरव्यू बहुत अच्छा लगा और ये वाली बात भी "हाँ एक और चीज़...लोग अपना 'सेन्स ऑफ ह्यूमर' जरा और विकसित कर लें तो अच्छा...कई बात मजाक समझ कर छोड़ देनी चाहिए..उसे भी दिल पे ले लेते हैं।"
जवाब देंहटाएंऔर पेंटिंग के विषय में मेरी कहानी, बिलकुल आपसे उल्टी है. मैं जब लिख नहीं पाती थी, तभी चेहरे बनाने की कोशिश करती, ढाई साल की उम्र में जब बच्चे पेन्सिल पकड भी नहीं पाते. हमेशा क्लास में बच्चे मुझसे अपनी ड्राइंग बनवाते, खासकर लड़के. नवीं कक्षा तक जहाँ भी आर्ट कम्पटीशन में जाती, अव्वल आती, फिर खेल और पढ़ाई के चलते, संगीत और चित्रकला छूट गयी.
मैंने कभी पेंतिंस सीखी नहीं, लेकिन हाईस्कूल की परीक्षा के बाद कुछ ऑयल पेंटिंग बनाईं...उसके बाद युग हो गए, कुछ बनाए. बस कभी-कभी स्केचिंग कर लेती हूँ.
@मुक्ति
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा तुम्हारा आना.
उस से भी अच्छी लगी ये जानकारी कि तुम्हारी चित्रकला में इतनी रूचि थी और तुम्हे पुरस्कार भी मिलते थे...भई वाह..इतनी देर से ही सही ढेरो बधाई ले लो..:)
कभी पोस्ट करो अपनी पेंटिंग्स की तस्वीरें
साक्षात्कार में आपके विचार जानकर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंआप तो पेंटिंग भी बहुत बढ़िया करती हैं !
मज़ेदार पोस्ट ।
@मंजिल मिले ना मिले, ये गम नहीं, मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है"
जवाब देंहटाएंदूसरा ....ब्लॉगवुड
बढिया लगा..
वाह बहुत सुंदर साक्षात्कार रश्मि जी. बधाई आपको जो अपने सारे शौक पूरे करने का सौभाग्य आपको मिला.
जवाब देंहटाएं@{इस ब्लॉगजगत ने सारे शौक पूरे कर दिए...अब वास्तविक दुनिया में तो कोई इंटरव्यू लेने से रहा..:)}
जवाब देंहटाएंइतना बड़ा झूठ... वास्तविक दुनिया में आपके लिए गए इंटरव्यू को हमने भिन्डी की सब्जी (जो नहीं बन पाई)के साथ देखा है!!
आपके इस इंटरव्यू से बहुत कुछ जानने को मिला.
मुबारक हो.
जवाब देंहटाएंजी रश्मि जी आपका ये साक्षात्कार पढ़ा था मैंने ...
जवाब देंहटाएंतब भी मैं हैरान हुई थी आपकी ये खूबसूरत पेंटिंग्स देख कर ...
चित्रकला में मेरा भी शौक था पर कभी सहेज कर रख नहीं पाई
कुछ मायके में रह गई...जो मेरी कहानियों की तरह डस्टबिन में चली गईं ....
पर आपने तो गज़ब ढाया है इन तस्वीरों में .....
इधर राजेन्द्र स्वर्णकार जी भी गज़ब का हुनर रखते हैं इस कला में ....
इंटरव्यू बहुत अच्छा लगा सलिल जी और आप का साक्षात्कार पढ़ कर कई उन सवालो का जवाब भी मिल गया जो हम लोग भी आप लोगो से जानना चाहते थे | और रही बात पेंटिंग की तो ये मेरा पूरा परिवार बहुत अच्छी पेंटिंग बनता है माँ से लेकर भाई बहन सब बस मुझे छोड़ कर कई बार कोशिश की पर मै एक सीधी रेखा भी नहीं खीच पाई बहनों ने साफ कह दिया की ये तुम्हारे बस की बात नहीं है और फिर मैंने कभी प्रयास नहीं किया | आप की पेंटिंग वाकई बहुत एक अच्छी है |
जवाब देंहटाएंयह साक्षात्कार मील का पत्थर है।
जवाब देंहटाएंब्लॉगजगत के लिए तो है ही।
बड़ा बढिया साक्षात्कार है. हमने तो अभी ही पढा. अच्छा किया यहां पोस्ट कर के.
जवाब देंहटाएंसुलझे हुए विचार पसन्द आये। वाकई, दो साल में ज़्यादा कुछ नहीं बदला। हिन्दी ब्लॉगिंग को आज भी 'सेन्स ऑफ ह्यूमर' की उतनी ही ज़रूरत है जितनी तब थी। लेकिन फिर "देंगे वही जो पायेंगे इस ज़िन्दगी से हम..." वाली बात भी शायद सही ही हो।
जवाब देंहटाएंलेखनी के साथ पेंटिंग्स तो तुम्हारी शानदार है ही ...
जवाब देंहटाएंये अच्छी बात कही तुमने कि ब्लॉगर्स को सेन्स ऑफ़ ह्यूमर बढ़ाना चाहिए , वरना होता तो ये है कि लोंग दूसरों पर तो खूब हँस लेते हैं , मगर जब उनकी बारी आती है तो आगबबूला हो उठते हैं !
सर्वश्रेष्ठ वाकया ..."भाग कर कहाँ जायेंगे"...हैरानी नहीं है कि अपनी पोस्ट मे मैंने भी यही लिखा ...
कुल मिलाकर रोचक साक्षात्कार , समझदारी भरे जवाब !
वैसे डक किये जाने वाला कोई सवाल था भी तो नहीं ...हम लेंगे साक्षात्कार तो मुश्किल होगी :)
बहुत सुन्दर साक्षात्कार..अच्छा लगा पढ़कर, आपको जानकर....
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्टों से आपके बारे में बहुत कुछ जानते रहे हैं। यह साक्षात्कार भी उस जानकारी में वृद्धि करता है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कि आपने मेरे अनुरोध को याद रखा और यहां उसे पूरा भी किया। आपकी पेंटिंग के बारे मे तो पहले भी अपनी प्रतिक्रिया दे चुका हूं। पर यहां इस पोस्ट पर जो आपकी ओरिजनल पेंटिंग लगी है वह बहुत उर्जावान है। मैं आपकी फोटो की बात कर रहा हूं। बधाई।
चित्र भी खूबसूरत हैं और साक्षात्कार भी अच्छा है।
जवाब देंहटाएंbahut badhiyaa... spashtta kabiletarif hai
जवाब देंहटाएंवाकई ये जिंदगी एक मिस्ले सफर है ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपकी जुबानी आपको जानना ... आपकी पेंटिंग्स सच में कमाल की हैं ... रंगों को सही अनुपात में जोड़ना जैसे जिंदगी के लम्हों को जोड़ने जैसा होता है ... सही जुड़े तो आसान/अच्छा नहीं तो ....
आपकी कलम में भी उतना ही जादू है जितना पेंटिंग में ...
" लोग अपना 'सेन्स ऑफ ह्यूमर' जरा और विकसित कर लें तो अच्छा..."
जवाब देंहटाएंपहले इस संवाद और फिर टिप्पणियों को बांचने के बाद मुझे लगा कि जैसे आपको किसी खास टिप्पणी / टिप्पणीकार के अनायास ही टपक जाने की अनुभूति पहले से ही थी :)
आपके बारे में जानकर अच्छा लगा और जिंदगी के सवाल से भागकर कहां जायेंगे? यह दार्शनिकता को व्यक्त करता है, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
@वाणी
जवाब देंहटाएंवैसे डक किये जाने वाला कोई सवाल था भी तो नहीं ...हम लेंगे साक्षात्कार तो मुश्किल होगी :)
लगता है कोई दोस्त तुम्हारा इंटरव्यू ले..तो तुम्हे,काफी सवाल डक करने पड़ेंगे...इसीलिए तुम्हे ऐसा लगा...:):)
अपन कभी डक नहीं करेंगे.....वैसे सबलोग मुझे ही ग्रिल करने पर क्यूँ तुले हैं....रश्मि के आगे और भी कतार है लोगों की :)
साक्षात्कार में तुम्हारी कही सारी बातें अच्छी लगी...बातें करना तुम्हें खूब आता है पर तुम्हारी बातें कोरी बातें नहीं होती...कुछ तो SOLID कन्टेन्ट होते ही हैं... तभी तो आज तक तुम ब्लॉग पर हो, और बनी भी रहो...कुछ साहित्यिक background भी है तुम्हारा.
जवाब देंहटाएंमंथन जारी रहे...
दिल पर ली गई बात (एक अहं प्रकार) तभी भाप बन उड़ जाए जब सामने कोई उदारचेता हो...
बढ़िया इंटरव्यू ... आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं ... सलिल भाई की पोस्ट के विषय में आप से ही जानकारी मिली !
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम तो कुलवंत जी का धन्यवाद करना चाहूँगी जिन्होंने आपका इतना जीवंत एवं रोचक साक्षात्कार लिया और फिर आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने इसे ज्यों का त्यों दोबारा चाप कर हम सबके लिये उपलब्ध करा दिया जो उस वक्त इसे पढ़ने से वंचित रह गये थे ! इस साक्षात्कार के माध्यम से जिस 'रविजा' की प्रखर 'रश्मि' ने हमें चकाचौध कर दिया है उसकी सराहना और प्रशंसा के लिये शब्द कम पड़ रहे हैं ! आपको और आपकी तूलिका और आपकी लेखनी सभीको सलाम ! बहुत ही बढ़िया पोस्ट है यह !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया साक्षात्कार रहा.काफ़ी कुछ जानने को मिला.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती म
"तलाश औ' तलब में वो लज़्ज़त है आजकल कि टिप्पणी करने का वक्त अब मिला.... :) ज़िन्दगी यकीनन मिस्ले सफ़र है....दिलचस्प साक्षात्कार
जवाब देंहटाएंमेरा कमेन्ट किधर गया?मैंने भी किया था :(
जवाब देंहटाएंये इंटरव्यू पहले भी पढ़ चुका हूं....दुबारा पढ़ा।
जवाब देंहटाएंपेंटिंग की अभिरूची से संबंधित अलग से ब्लॉग बनाइये :)
हाँ तो "रवीजा" दीदी..
जवाब देंहटाएंआप जब विवेकानन्द,मदर टेरेसा की अच्छी तस्वीरें बना लेती थीं तो मैं मेरी भी अच्छी तस्वीर बना ही सकती हैं...जब मिलिएगा तो सबसे पहले तस्वीर बनाने ही कहूँगा..टेस्ट लेनी है..उधार रहा आपका ये मेरे पे..
और बाकी वैसा कुछ भी नहीं लगा जिसपे खिंचाई कर सकूँ :)
वैसे पिछली टिप्पणी(जाने कहाँ चली गयी) में मैंने ये बताया था की मुझे भी पेंटिंग का शौक था..शायद आपने पढ़ा भी हो ब्लॉग पे...
रश्मि दी ,
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा लगा यह साक्षात्कार। रोचक भी और ज्ञानवर्धक भी । कई बार ऐसे आलेखों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आपकी पेंटिंग वाली बात पर ध्यान आया यदि सभी ब्लॉगर्स का एक पेंटिंग कम्पटीशन करवा दिया जाए तो कैसा रहे? यहाँ तो सभी की-बोर्ड पर टाइप करते हैं, सबको लगता है उनकी writing बहुत अच्छी है लेकिन यदि एक handwriting competition भी हो तो असलियत पता चले...(wink-wink) .....वैसे एक बात कहूँ आपकी तस्वीर इस आलेख के अनुरूप है। बहुत अच्छी लगी।
रश्मि रविजा...राइटर, ब्रॉडकॉस्टर, ब्लॉगर, पेंटर,होममेकर............................ और हर फील्ड में नायाब...
जवाब देंहटाएंयानि इनसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता...तमाम मसरूफियत के बावजूद...चश्मेबद्दूर...
ये आपका इंटरव्यू लेने वाला कुलदीप हैप्पी न जाने क्यों मिस्टर इंडिया जैसा इनविज़िबल हो गया है...दिखता ही नहीं...
जय हिंद...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुमुखी प्रतिभा की धनी है आप\ आपका साक्षात्कार बहुत कुछ सीखने को प्रेरित करता है |
जवाब देंहटाएंपेंटिग ,संगीत ,सिलाई ,बुनाई ,लेखन ,गायन, अध्यापन ,गृहणी के कर्तव्य आदि -आदि फिर भी लगता है जिन्दगी में कुछ किया ही नहीं ?
पुराने जमाने का है..उस वक्त कुलवंत को हमने भी साक्षात्कार दिया थ....अच्छा आईडिया आ गया...हम भी अपनी एक पोस्ट बनायेंगे बिना फेर बदल के. :)
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