मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जब यादगार के तौर पर एक कॉफीन के सिवा कुछ नहीं रहता.

अक्सर गरीब देश के लोगो को नौकरी का लालच दे..दूसरे देशों में ले जाने के बारे में हम पढ़ते हैं...हमें उनके हालातो के बारे में भी मालूम होता है...पर सरसरी तौर पर. लेकिन जब इन्ही स्थितियों का शिकार हुए किसी के जीवन के पन्ने एक-एक कर हमारे सामने खुलने लगते हैं...तो लगता है..कहाँ है ईश्वर??


पिछले दिनों टी.वी. पर एक डौक्यूमेंट्री देखी जो दिल दहला गयी. 

पप्पू एक खुशमिजाज़ बंगला देशी युवक है..पढ़ा लिखा है...पर कोई पक्की नौकरी नहीं है.....कविताएँ लिखता है...मधुर गीत गाता है...ट्यूशन पढाता है. घर में सिर्फ  माँ और एक विधवा बहन अपने दो बच्चों के साथ है...पिता को वह बचपन में ही खो चुका है..माँ कपड़े सिल कर गुज़ारा करती है...आर्थिक परेशानियों के बीच जिंदगी की गाड़ी चल रही है..पर परिवार में आपसी प्यार बहुत है...पप्पू  माँ का बहुत ध्यान रखता है...घर में झाड़ू लगा देता है....माँ की साड़ी में कलफ लगा...इस्त्री  कर देता है...माँ से हमेशा कहता है...'अब इतना काम मत किया करो.." बहन के बच्चों की देखभाल करता है...उसके छोटे बेटे को नहलाना -धुलाना-खिलाना सब वही करता है.

एक व्यक्ति उस से दोस्ती गांठता है...उसके घर भी आना-जाना शुरू कर देता है....और अपने मीठे व्यवहार से सबका दिल जीत लेता है. वह पप्पू को सलाह देता है कि उसकी रिक्रूटमेंट एजेंसी के जरिये वो क्यूँ नहीं मलेशिया चला जाता?.. ..वहाँ से वह हर महीने हज़ारों रुपये (टका ) घर भेज सकेगा. बस उसे कुछ पैसों का इंतजाम करना होगा...पप्पू की  माँ के पास कुछ जमीन थी...जिसे उसने कितने बुरे वक़्त आने पर भी नहीं बेचा था....पर अब बेटे के सुखद भविष्य के सपने सच करने के लिए वो जमीन बेच देती है...कुछ क़र्ज़ भी लेती है और पप्पू मलेशिया चला जाता है.

उसके जाने के दिन माँ...पुलाव और खीर बनाती है...पर कवि ह्रदय पप्पू कहता है,..उसे अपने देश का राष्ट्रीय भोजन करना है और वह है...'बासी भात,प्याज और हरि मिर्च' पप्पू कहता है,...विदेश से लौटने के बाद भी वो यही खायेगा. एयरपोर्ट भी वो टैक्सी में नहीं..अपने राष्ट्रीय वाहन साइकिल रिक्शा में जाता है.

इसके बाद काफी दिनों तक पप्पू  की कोई चिट्ठी नहीं आती. उसकी माँ बहने बार-बार रिक्रूटमेंट एजेंसी में जाती हैं...तो वे कहते हैं...जाकिर हुसैन के नाम से एक चिट्ठी आएगी...उसे खोल लेना...अब उन्हें पता चलता है कि पप्पू को फर्जी पासपोर्ट पर ले जाया गया था,जबकि इनलोगों ने उसका असली पासपोर्ट बनवाया  था...
काफी दिनों बाद उन्हें एक कैसेट मिलता है...जिसमे पप्पू ने अपनी सारी राम कहानी टेप करके भेजी है...पूरे डौक्यूमेंट्री  में वो टेप चलती रहती है. पप्पू कहता है..".मैने कोई चिट्ठी इसलिए नहीं लिखी क्यूंकि माँ तुम्हे वो सब सुनकर तकलीफ होती ...पर तुम तो माँ हो...बिना मेरे बताए ही समझ जाओगी,कि मैं तकलीफ में हूँ...इसलिए छुपाने का कोई फायदा नहीं. ..इतने दिनों बाद तुमलोगों से बात करने का मौका मिला है..तो आज मैं तब तक बोलता रहूँगा..जबतक ये कैसेट ख़त्म ना हो जाए.

और पप्पू बताता है कि उन्हें नौकरी का लालच दिया गया पर यहाँ किसी कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करवाई जाती है...ईंट ..बड़े बड़े पाइप उन्हें ढोने  पड़ते हैं...मजदूरी कोई नहीं मिलती और खाने के लिए सूखे हुए ब्रेड और  पानी सी दाल  मिलती है. उन्हें खुले में कचरे के पास सोना पड़ता है...एक चादर तक नहीं है बिछाने को...दिनों से वे नहाए नहीं हैं. और एक महीने से ज्यादा उन्हें एक जगह काम नहीं करने दिया जाता क्यूंकि उनके पास....प्रॉपर कागज़ात नहीं हैं. अलग-अलग देशों से लाए मजदूरों को आलू-बैंगन की तरह एक साइट से दूसरे साइट पर बेच दिया जाता है. एक जगह से लाए लोगो को एक साथ नहीं रखा जाता.
अगर ये लोग विरोध करते हैं..तो उन्हें बुरी तरह पीटा जाता है. 


जब इनसब ने मिलकर काफी विरोध किया तो इन्हें थोड़े पैसे दिए जाने लगे...वे सब कम से कम खर्च करते और पैसे बचाते. पर एक दिन पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया...और जेल जाने से बचने के लिए सारे पैसे घूस में दे दिए . पप्पू बीच बीच में बंगला गीत भी गाता  है...जिसमे उसके दिल का दर्द उभर आता है.."काली रात है...अनजान  शहर है...डर लगता है..पर मैं जाऊं कहाँ " जैसे भावार्थ हैं.
 पप्पू कहता है कि जितने पैसे उसे यहाँ आने में लगे हैं..उतना कमाने में उसे शायद २०,३० साल लग जाएँ..पर वो हार नहीं मानेगा..पैसे कमाएगा जरूर.कभी नाराज़ होकर कहता है...."इनलोगों ने हम जीते जागते लोगो का सौदा किया...अपना  घर-परिवार चलाने के लिए...अपने बीवी-बच्चों.. माँ को खुश रखने के लिए पर वे भूल जाते हैं कि जिनका सौदा कर रहे हैं...उनका भी एक परिवार है...माँ.. भाई.. बहन है. कभी निराश होकर ये भी कहता है..'मेरा तो नाम तक अपना नहीं...मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं...जैसे पप्पू मर गया हो....मैं अब एक मृतक  के सामान हूँ." 

पप्पू की माँ- बहने...एजेंसी में जाकर पप्पू की स्थिति बताती हैं और उसे वापस लाने की प्रार्थना करती हैं...तो उन्हें सब पहचानने से इनकार कर देते हैं...बहन उस दोस्त के पैर पकड़ लेती है तो वो इतनी जोर की ठोकर मारता है कि वो कई फीट दूर जाकर गिरती है. बहन बताती है कि मेरे भाई के पास अच्छे कपड़े नहीं थे तो मैने दो बार जाकर रेड क्रॉस में खून बेचा और उसके लिए शर्ट लेकर आई..पर उसे नहीं बताया..और आज उसी भाई के लिए कुछ नहीं कर पा रही" यहाँ भी उनकी हालत बहुत दयनीय हो गयी . मकान का किराया नहीं दे पाने की वजह से मकान मालिक उनकी आजीविका का साधन सिलाई मशीन उठा कर ले गया. 

पप्पू की माँ -बहनों का एजेंसी में जाकर गुहार लगना और कुत्ते की तरह दुरदुराया जाना जारी रहता है. और एक दिन उन्हें बताया जाता है कि उनका बेटा ,अमुक तारीख को वापस आ रहा है.....वे लोग आस-पास सबको ख़ुशी-ख़ुशी बताती हैं...उसके लिए बढ़िया खाना बनाती हैं...और जब एयरपोर्ट जाती हैं तो एक कॉफीन में अपने बेटे का मृत शरीर उन्हें मिलता है. पता चलता है....पुलिस ने पप्पू को शरणार्थी कैम्प में  डाल दिया गया था...और वहीँ प्रताड़ना देकर उसे मौत की  नींद सुला दिया गया. कुछ आंकड़े भी दिखाए गए कि हर साल मलेशिया के विभिन्न शरणार्थी कैम्प में मरने वालों की संख्या सौ से ऊपर ही है.

उसकी बहन ने उस कॉफीन को सम्भाल कर रखा है...क्यूंकि उसके पास उसके भाई की बस वही निशानी है...वो कहती है...मैं पूरा ध्यान रखती हूँ कि इस पर कोई खरोंच ना आजाये ,ये कहीं से टूट ना जाए...क्यूंकि मेरे भाई की यही आखिरी निशानी है..उसका एक कपड़ा...उसकी कोई भी चीज़ हमारे पास यादगार के तौर पर नहीं है. माँ सडकों पर भटकती रहती  है कि कोई भी लड़का मेरे पप्पू जैसा मिले तो मैं उसे पास बुला, दो बातें करूँ....लेकिन वो आंचल से आँखें पोंछते हुए कहती है...'उसे कोई नहीं मिलता.'
डौक्यूमेंट्री में सबसे द्रवित करनेवाला  है...पप्पू की सात वर्षीय भांजी का कथन....शायद अजनबी लोगो के सामने और कैमरे को देख वो अपने आँसू रोकने का  भरसक प्रयत्न करती है..कंपकंपाते होठों से बस इतना कह पातीहै.."मामा को अक्सर सपने में देखती हूँ कि वो सर पर हाथ रखे ,सड़क के पास उदास सा बैठा हुआ है" होंठ वैसे ही कांपते रहते हैं...और एक आँसू गालों पर ढुलक  आता है.

ये सिर्फ बंगलादेश के एक पप्पू या उसके घर की कहानी नहीं है...हमारे देश के भी कितने ही नौजवान ऐसी ही नौकरी के लालच में खाड़ी के देशों में जलालत की जिंदगी बिताने को मजबूर हैं...उनका भी अंत कुछ ऐसा ही होता है...और परिवार वाले भी यही सब भुगतते हैं.

45 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने फिल्मों में इसका दर्दनाक चित्रण देखा है , न्यूज पेपर्स में ये घटनाएं पढ़ीं हैं , सोच कर रूह कांप जाती है .आपका लेख पढ़ते पढ़ते जैसे तस्वीर सामने बनती चली गयी .. ना लेख पढ़ते बना और ना छोड़ते

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  2. बरसों तक इसी तरह कितने ही मासूम पप्पू रुलाते रहे है..जाने कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा....

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  3. मुझे पता था...सबका मन उदास हो जाएगा ये सब पढ़कर...पर मैं नहीं लिखती तो मेरा ही सर फट जाता ...

    उन डौक्यूमेंट्री बनानेवालों पे क्या गुजरी होगी??..दिनों तक इसी कहानी के साथ सोए-जागे होंगे.

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  4. रश्मि दीदी
    मुझे लगता है इस तरह के लेख जरूरी भी हैं, इस तरह की घटनाएं कहीं भी घट सकती हैं..
    शायद किसी के लिए ये बात नयी हो....
    शायद कहीं कोई इस पोस्ट के पोस्ट-इफेक्ट की वजह से बच जाए ...है ना ?

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  5. मार्मिक मगर इस पर लिखना भी जरुरी है ताकि दूसरे अभिभावकों को इससे सीख मिल सके , ये भी है कि जिन्हें पढने की जरुरत है , वे पढ़ नहीं पाते होंगे ...पर जो पा रहे हैं , अपने आस पास लोगों को सावधान तो कर सकते हैं .
    पप्पू और उसके परिवारजन का दुःख भीतर तक सिहरा गया !

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  6. उफ्फ्फ.... अजीब सा ही लगा पढ़ते वक़्त, लगा मैं भी कितना मजबूर हूँ काश उसकी कोई मदद कर पाता...:((

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  7. इतना हृदय विदारक प्रसंग है कि रोंगटे खड़े हो गये हैं ! चलचित्र की तरह हर दृश्य आँखों के सामने साकार होता जाता है और मन पर मनों बोझ चढ़ता जाता है ! इसके लिये किसे दोष दें ? हमारे समाज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियाँ या फिर सरकार और प्रशासन की नवयुवकों को रोज़गार दिला पाने की अक्षमता या फिर सपनो के सौदागर वे कबूतरबाज की जो महत्वाकांक्षी नवयुवकों को जल्दी पैसा कमाने की तरकीबें मंहगे दामों में बेच कर अपना उल्लू सीधा करते हैं और उनके तन के कपड़े भी नोंच लेते हैं ! मन दुःख और क्षोभ से भर उठा है ! बहुत सार्थक और चिंतनीय पोस्ट है रश्मि जी ! इस पर विमर्श की बहुत सख्त ज़रूरत है !

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  8. @शेखर जी,
    आप जैसे लड़के ही तो कुछ कर सकते हैं....कितने ही लोगो के संपर्क में आप आते होंगे और आगे भी आते रहेंगे.
    अपने आस-पास....गाँव घर में ऐसे लोगों को देश के बाहर नौकरी के लिए जातें सुने तो उन्हें सचेत तो कर ही सकते हैं.

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  9. रोजगार के लिए विदेश जाकर अधिक पैसे कमाने का लालच इन्हे जुल्म सहने पर मजबूर करता है। मेरा भी एक मित्र बगदाद गया था,25 बरस पहले। यहाँ उसे लैब टैक्नि्शियन भर्ती करके ले जाया गया और बगदाद ले जा कर नाली साफ़ करने के काम में लगा दिया गया। तीन साल का उससे बाण्ड भरवाया गया था। वह मुश्किल से जान बचा कर आ पाया।

    दर्दनाक दास्तान सुनाई आपने।

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  10. एक गम्भीर और पिड़ादायक सत्य कथा!!

    दुख तो इस बात पर होता है कि सरकारें देश में ही रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध नहीं करवाती।

    लोग भी देश में चारों और रोजगार के अवसरों को हतोत्साहित करने में लगे रहते है।

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  11. रश्मि आज तो तुमने बहुत ही कडवी सच्चाई लिखी है ……………सही कह रही हो सब पढते है और छोड देते है मगर कोई नही जानता हकीकत कि उनके परिवारो और उन पर क्या गुजरती है………………बेहद ह्रदयविदारक और मार्मिक चित्रण्।

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  12. बहुत मार्मिक पोस्ट।
    की ऐसे पात्र हमारे ईर्द-गिर्द हैं।

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  13. लालच में इन्सान इतना भी गिर सकता है , यह देखकर बहुत दुःख होता है । अफ़सोस ऐसा हो भी रहा है ।
    देश में न जाने कितने पप्पू इस कुकर्म के शिकार होते होंगे ।

    रौंगटे खड़े कर देने वाली घटना ।

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  14. लालच ही सब कुछ करवाता है, इस से बच गये तो जिंदाबाद।

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  15. रश्मि जी!
    दुबई में एक दिन एक शख्स आया मेरे ऑफिस में और बोला पांच लाख रुपये भेजने हैं अपने खाते में.. मैंने भोजपुरी में उससे पूछ लिया कि हर महीने तो तुम दास-बीस हज़ार भेजते हो इस बार पांच लाख.. सर्दियाँ नहीं होतीं वहाँ पर उसने दिसंबर के महीने में भी बदन पर चादर दाल रखी थी. कहने लगा वापस जा रहा हूँ घर. मैंने पूछा, क्यों निकाल दिए गए या छोड़ डी नौकरी? उसने चादर हटाया और अपना कटा हाथ दिखाकर बोला, इस हाथ के बदले पांच लाख मिले हैं!! मैं सन्न रह गया!!
    कई पप्पू देखे हैं मैंने दुबई में!!

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  16. अपने देश की वास्तविकता, दूसरे देशों के स्वप्न से अधिक आनन्ददायी है।

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  17. बेहद हृदयविदारक । विडंबना यह कि हमारी सरकारें जानते बूझते हुए भी ऐसी एजेंसियों पर लगाम नहीं लगा पातीं। उन्हें तो ट्रैक टू डिप्लोमेसी की फिक्र है।

    वैसे भी सरकार एक हद तक ही कंट्रोल कर सकती है लेकिन वह भी उनसे नहीं होता, सो सावधानी लोगों को ही बरतनी पड़ेगी।

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  18. कुछ नहीं कह पाउंगी आपकी और सलिल जी की बातें पढ़कर

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  19. ये विकास की चक्की में पिस रहे घुन हैं जिनकी चिंता किसी को नहीं...

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  20. Dukh huaa padhke, wish ki wo documentary dekhke government he Kuch kadam uthaye in logo ko wapas lane mein.

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  21. बहुत दर्दनाक...लेकिन कितना सच है यह!!

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  22. फिल्‍म देस परदेस की कहानी फीकी है इस सचाई के मुकाबले.

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  23. रश्मि जी घटना काफी दर्दनाक है किन्तु ये ज्यादा पैसा कमाने के लालच का परिणाम ज्यादा है | मेरे एक मित्र के ममेरे भाई थे अच्छा खासा कमा खा रहे थे गांव में किसी ने लहा दिया दुबई जाने के लिए मेरी मित्र में भी उन्हें काफी समझाया मैंने भी समझाया कई खबरे यहाँ से मेल की पर समझने वाले कहा थे जाने की जिद्द पर अड़े थे फिर हम लोगों ने पूछा की भेजने वाला कितना पैसा मांग रहा है तो बोले की कुछ भी नहीं ले रहा है जब वेतन मिलेगा तो उसमे से दस प्रतिशत लेगा लालचा की पट्टी आँखों पर बंधी थी दुबई गये एक महीने बाद घूम कर लौट आये पता चला सब फर्जी था एयरपोर्ट पर ही कोई नहीं मिला नाम पता सब फर्जी था वीजा केवल घूमने का था | यहाँ आने पर पत्नी ने बताया की गांव की जमीन उसके गहने सब बेच कर उसे दस लाख रूपये दे दिये थे क्योकि उसने एक लाख रूपये महीने की नौकरी लगवाई थी |

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  24. बहुत तक़लीफ़देह है ये. चाहूं, तो भी विस्तृत टिप्पणी नहीं कर सकती. मन कैसा-कैसा हो गया .

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  25. बहुत मार्मिक ! मन गहरे अवसाद में चला गया... मैं एक मित्र को जानता हूँ जो ग्राफिक डिज़ाईनर के तरह गया था और मजदूर होके लौटा था... शुक्र था कि कतर टाइम्स में मेरे एक मित्र एडिटोरियल टीम में थे और उन्होंने उसकी मदद की.... अपना देश सबसे अच्छा...

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  26. जैसी असरदार पोस्ट ....वैसे ही असरदार कमेन्ट ...

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  27. हे भगवान रश्मि - इट्स टेरिबल ...
    बेचारे ऐसे सिचुएशन में फंसे लोग ... क्या कुछ किया जा सकता है इनके लिए ??

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  28. बेहद जरूरी पोस्ट है यह। एक बार दिल जरूर सहम जाता है, लेकिन फिर दूसरी बार आवाज भी आती है कि हमें कुछ करना चाहिए। कम से कम सच्चाई जानकर अनजान लोगों को असलियत तो बता ही सकते हैं। थैंक्स दी, इस पोस्ट के लिए और हमें भी इस बारे में सोचने को मजबूर करने के लिए।

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  29. बाहर पकवानों के कोरे सपनों से घर की सूखी रोटी भी अच्छी होती है...

    जय हिंद...

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  30. एक बार प्रसिद्ध ठग नटवरलाल ने अपने साक्षात्‍कार में कहा था कि जब तक दुनिया में लालच जिन्‍दा है, हमारे जैसे ठग पैदा होते रहेंगे। आम आदमी ऐसे झांसे में आ ही जाता है।

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  31. ऐसी मिलती जुलती कहानी कई पढ़ने को मिलते हैं और दुःख भी होता है, एक ऐसी ही कहानी है एक लड़की की, आज से कुछ दो तीन साल पहले मैंने भी एक डॉक्यूमेंट्री विडियो में देखा था..

    सलिल चचा का कमेन्ट पढ़ मैं भी एकदम सन्न रह गया..

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  32. यह लालच नहीं है, आजीविका की तलाश में भटकते लोगों की कहानी है। कहना आसान होता है कि अपना देश गांव भला। पर उसे भोगना भी होता है।
    *
    और यह केवल विदेश ही क्‍यों, देश में ही तमाम उदाहरण मिल जाएंगे जहां लोग रोजी की तलाश में अपना सब कुछ छोड़कर कीड़े मकोड़ों की तरह जीवन गुजारते हुए तथाकथित परदेश में पड़े होते हैं।
    *
    पापी पेट जो कराए वह थोड़ा है।

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  33. कुछ कहते नहीं बनता ऐसा पढ़ कर।
    राजेश जी ने जो कहा है, उससे बिलकुल सहमत हूँ मैं भी, अपना गाँव देश भला कहना सचमुच आसान है। पर उसे भोगना भी होता है।

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  34. very pathetic ! felt like crying ...I wish things to improve. Really sad Rashmi ji.

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  35. takleefdeh hai...aur jaane kitne bade bade business empire bane hai aise khilvaadon se...humaari samvednaa jaagegi to kab



    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  36. ufff! dardnaak!
    ham apne chhote chhote problems se pareshan ho jate hain...dosto se share karne lagte hain...:(
    sach me jindagi tere kitne roop!
    ham jaise log to bas yahi kuchh shabd se jata sakte hain ki kaaash pappu inn jalimo ke changul me na pada hota...!


    logo ko jagruk karne wale aise post ke liye aapko bhi naman!

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  37. फ़िल्म, आलेख और वर्मा जी की टिप्पणी - आदमखोरों की कहानियाँ हैं यह। शर्मनाक है कि आज के सभ्य समाज में यह सब हो रहा है और हम मूक दर्शक बने बैठे हैं।
    प्रस्तुति का आभार!

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  38. http://www.independent.co.uk/opinion/commentators/johann-hari/the-dark-side-of-dubai-1664368.html दो साल पुरानी स्टोरी है वैसे तो. थोड़ी लंबी है पर वक्त मिले तो पढियेगा.

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