गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

हम उत्तर भारतीय क्या दे सकते हैं ,इन सवालों के जबाब ??


अपनी  एक कहानी में मैने जिक्र किया था कि कैसे , छोटे शहरों से आकर महानगरो में बसे लोग ,अपने बच्चों के ऊपर ज्यादा  ही प्रतिबन्ध लगाते हैं , और जैसे उन्हें एक जिद सी होती है लोगो को दिखाने की कि मेरे बच्चों को महानगर की हवा छू भी नहीं गयी है...वे बहुत ही आज्ञाकारी हैं ..और हमारी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं करते. कुछ ऐसा ही उदाहरण हाल  में ही देखने  को मिला. और यह मेरी पिछली पोस्ट से भी  सम्बंधित है...जैसे  कि माता-पिता, ने फिल्मो में काम करने की इजाज़त तो दे दी..पर यह अंकुश हैं कि हर तरह के रोल नहीं करने हैं. इसी तरह ,आजकल लड़कियों को उच्च -शिक्षा की... मनपसंद नौकरी की...यहाँ तक कि प्रेम विवाह तक की इजाज़त है पर शर्त ये है कि प्रेम अपनी ही जाति के युवक से करो...हाल में ही पढ़ी शरद कोकास जी की  कविता की ये पंक्तियाँ याद हो आयीं, 
           
     

अपने आसपास
उसने बुन लिया है जाल संस्कारों का
उसने मनाही दी है अपने बारे में सोचने की
जंगल में बहने वाली हवा
एक अच्छे दोस्त की तरह
मेरे कानों में फुसफुसाते हुए गुज़र जाती है
दोस्त ! प्रेम के लिये वर्ग दृष्टि ज़रूरी है

बस फर्क ये है कि यहाँ जंगल की हवा फुसफुसाती नहीं बल्कि अभिभावक  स्पष्ट शब्दों में बरज देते हैं.


मेरी एक परिचिता हैं. सहेली भी कह सकती हूँ परन्तु हमारी मुलाक़ात  बहुत ही कम  होती है. साल में मुश्किल से 3,4 अवसर आते होंगे,जब  हम मिल बैठ कर बातें करे. मुंबई में नौकरी वाली  स्त्रियाँ सुबह 8 बजे घर से निकलती हैं और शाम 7,8 के पहले घर नहीं लौट पातीं. छुट्टी का दिन,सबके लिए परिवार का दिन होता है और नौकरी वाली  महिलाओं के सैकड़ों काम राह तक रहें होते हैं. लिहाजा आते-जाते मिल लिए तो बस रास्ते में ही दो मिनट बात हो जाती है,बस . एक दिन उन्होंने कहा कि वे घर पर आएँगी, उन्हें कुछ जरूरी बात करनी है.


मुझे अपने आस-पास की घटनाओं के बारे में लिखते  देख,किसी ने कहा था आपने लोगों के घर में hidden camera  लगवा रखा है क्या ? ऐसा तो नहीं है पर शायद कहानियाँ खुद मुझे ढूँढती हुईं, मुझ तक पहुँच जाती हैं. :)


मिसेज़ जेनिफर  (कल्पित  नाम) का बेटा एक प्रतिष्ठित विमान सेवा में काम करता है. वहाँ एक एयरहोस्टेस से उसका अफेयर हुआ. एयरहोस्टेस उत्तर-भारत की है. उसके पिता कर्नल हैं. उन्होंने इस सम्बन्ध पर कड़ी आपत्ति जताई और बेटे को जान से मारने की धमकी दे डाली. जेनिफर ने  तीन साल पहले ही अपने पति को खोया है. घर में सिर्फ वो और उनका  बेटा है, बेटी की शादी हो चुकी है. वो भी मुंबई में ही थोड़ी दूरी पे रहती है. जेनिफर मुझसे पूछ रही थी, टी.वी. अखबार में तो पढ़ती रहती हैं पर "क्या सचमुच, यू.पी. में 'ऑनर किलिंग' प्रचलन में है और उनके बेटे को खतरा है? " मैं उनके सामने तो सीधी बैठी थी पर अंदर ही अंदर मेरा सर शर्म से झुका जा रहा था. किस बिना पर मैं उन्हें ये आश्वाशन दूँ कि नहीं घबराने की कोई बात नहीं, उत्तर-भारत में ये सब नहीं होता. वो लड़के के साथ-साथ लड़की के लिए भी चिंतित थीं. वो कई बार उनके घर आ चुकी थी और उन्हें पसंद भी थी. मैने पूछा,"आपको कोई आपत्ति नहीं?" तो कहने लगीं  कि उनकी भी इच्छा तो थी कि कैथोलिक लड़की ही बहू बन कर घर आए पर अगर उनके बेटे को ये लड़की पसंद है तो उन्हें भी पसंद है,आखिर ज़िन्दगी, उन दोनों  को साथ गुजारनी है.


उन्होंने कई बार लड़की के पिता से बात करनी चाही.लड़के ने मिलना चाहा पर वे लोंग बात करने को भी तैयार नहीं. अपनी ही बेटी को  टॉर्चर  करने लगे  और उसकी नौकरी छुडवा उसे अपने नेटिव प्लेस पर भेजने को आमादा हो गए. विमान-सेवा में भी बात कर दोनों की ड्यूटी का समय बदलवा दिया ताकि दोनों मिल ना सकें .आखिर लड़की ने कहा कि ,' इस लड़के से रिश्ता तोड़ लिया  है" फिर भी उसका मोबाइल फोन जब्त कर लिया  और उसे कहीं भी आने-जाने की मनाही कर दी. सिर्फ जो कार पिक-अप करने आती, उस से एयरपोर्ट जाती और फिर घर वापस. उसकी माँ रोज आलमारी में उसका एक-एक कपड़ा उठा चेक करती थी की कहीं उसने 'सेल फोन' ,छुपा कर तो नहीं रखा. पर आज के बच्चे 'तू डाल-डाल तो मैं पात-पात'... लड़के ने उसे किसी के हाथो 'सेल फोन' भिजवाया जिसे वह अपने जूते में छुपा कर रखती थी और सिर्फ घर से एयरपोर्ट के रास्ते में उनसे बात करती थी....ये सब बताने  के साथ-साथ व्यग्रता से वे मुझसे पूछतीं, "सचमुच पढ़े-लिखे लोग तो ऑनर किलिंग नहीं करते,ना ...मेरे बेटे को तो कुछ नहीं होगा."


मैने किसी तरह उन्हें अस्श्वस्त किया कि ," नहीं.. ऐसा कुछ नहीं होगा" पर मैं सोच रही थी, आज के युग में भी  लड़की, "लंदन, पेरिस, अमेरिका जा सकती है पर अपनी मर्जी से शादी नहीं कर  सकती." 


बीच-बीच में वे बाहर मिल जातीं ,बताती रहतीं..एक इतवार को  उन्होंने  बताया ,"सबकुछ वैसा ही है..पर लड़की के पैरेंट्स  को विश्वास हो गया है कि वो अब उनके बेटे से नहीं मिलती.और इसीलिए उनलोगों ने उसे एक सहेली के बर्थडे में जाने की इजाज़त दे दी और वो उनलोगों से मिलने आज उनके घर पर आई थी. वे , दोनों की कोर्ट मैरेज करवाने की सोच रही थीं. और पहली बार मुझे पता चला कि 'क्रिश्चियन लोगो के लिए कोर्ट मैरेज  के कुछ अलग कानून हैं' .


दूसरे दिन सोमवार की दोपहर यूँ ही मैने खिड़की से देखा, जेनिफर की बेटी परेशान सी अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर धूप में खड़ी थी. . पूछने पर बताया कि माँ के ऑफिस से आने का इंतज़ार कर रही है .मैने अपने घर पर बुला लिया तब उसने बताया कि कल वो लड़की यहाँ आई थी,यह बात उसकी बेस्ट फ्रेंड ने उसके माता-पिता को बता दी. और वे लोंग उसपर बहुत  नाराज़ हुए. उसकी नौकरी छुडवा उसे गाँव  भेज रहें थे.तो उसने बहुत रो-धो कर  अंतिम बार एक फ्लाईट पर जाने की इजाज़त मांगी और एयरपोर्ट से सीधा लड़के के पास आई है. दोनों उसके घर के इलाके के पुलिस स्टेशन में गए हैं ताकि कहीं 'अपहरण का इलज़ाम ना लगा दें ' थोड़ी देर बाद हैरान-परेशान सी माँ भी आ गयीं. बेटी ने हँसते हुए ही पर विद्रूपता से कहा, "उसके माता-पिता को अपने समाज में बदनामी का डर था कि सब हसेंगे कि लड़की ने कैथोलिक लड़के से शादी कर ली...अब क्या कहेंगे जब सब हसेंगे , लड़की घर से भाग गयी"


इन दोनों की कोर्ट  मैरेज हो गयी...दस दिनों तक अपना फ़्लैट छोड़, ये लोग,रिश्तेदारों के घर रहें..."हमलोगों को भी नज़र रखने को कहा था कि कोई हमारे बारे में पूछने तो नहीं आता" वाचमैन को सख्त ताकीद थी, 'किसी अनजान को कुछ नहीं बताने की ' पर सब ठीक रहा . जेनिफर ने बड़े शौक से मेरे साथ जाकर मंगलसूत्र ख़रीदा कि "आखिर आपलोगों के धर्म में मंगलसूत्र का महत्त्व  है , लड़की को कोई अफ़सोस ना हो" उसके माता-पिता ने कोई अवांछित कदम तो नहीं उठाया पर बेटी के अकाउंट से उसके अब तक के कमाए चार  लाख रुपये निकाल लिए .

59 टिप्‍पणियां:

  1. सब मजबूरी है
    पर मजबूरी का नाम
    महात्‍मा गांधी नहीं है

    यह मजबूरी
    हमें बांधती है
    किसी को साधती है
    किसी की होती है साध

    कोई करता है फरियाद
    किसी को नहीं रहता याद
    कोई याद करना नहीं चाहता

    ऐसा ही होता है
    हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के एक सेमिनार में शामिल ब्‍लॉगरों के हथियारों की झलक

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  2. इन सवालों का तो कोई भी जवाब नही दे सकता फिर चाहे कहीं का भी क्यों ना हो।

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  3. @वंदना
    जब ज्यादातर ये उत्तर-भारत में होता है तो....सवाल तो हमसे ही पूछे जाएंगे,ना

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  4. दी, बिल्कुल सही बात उठाई आपने. ये बात मैं भी गौर करती रही हूँ कि उत्तर भारत में लड़कियों को हर बात की आज़ादी मिल जाती है, पर अपनी मर्ज़ी से शादी की नहीं. और छोटे शहरों की तो छोड़िये, यहाँ दिल्ली के लोग अपनी बेटियों को हर तरह के फैशन की छूट देते हैं, माडलिंग भी करती हैं, पर शादी अरेंज्ड ही होती है, और इसे वे लोग अपनी शान मानते हैं.
    हमारा देश जाने कब तक आधुनिकता और पारम्परिकता के संक्रमण के बीच फंसा रहेगा. अरे या तो लड़कियों को सात परदे में रखो, बाहर ही ना निकलने दो और अगर बाहर पढ़ने भेजो तो इस बात की छूट भी दो कि वो जिससे चाहे शादी कर सके.

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  5. उत्तर भारत में तो यह भी होता है कि एक राजा अपनी प्रजा के कहने पर अपनी गर्भवती स्त्री को घर से निकाल देता है, एक बड़ा नेता अपनी तथाकथित पत्नी को मारकर तंदूर में जला देता है, और अभी हाल की घटना को सच मानें तो अपनी पत्नी के बहत्तर टुकड़े करके डीप फ्रीज़र में रख देता है. घटनाएं जो विचलित करें, कहाँ नहीं होतीं. आवश्यकता है कि उन घटनाओं का सामान्यीकरण न किया जाए.
    बिहारियों को बेवकूफी का पर्याय समझना और बिहारी शब्द का गाली के रूप में प्रयोग करना बड़ी आम बात है, पंजाबियों के बारे में यह कहना कि उनसे हाथ मिलाने के बाद अपनी उंगलियां गिन कर देख लो, कम तो नहीं हो गईं, या फिर रेल के सफर में विजयवाडा स्टेशन आते ही अपने-अपने जूते चप्पल संभाल कर रखना, कभी इस बात का प्रमाण नहीं हो सकता कि सारे बिहारी बेवकूफ होते हैं, सारे पंजाबी चोर होते हैं या सारे आन्ध्र प्रदेश के लोग चप्पल चोर होते हैं.
    इक्का दुक्का घटनाओं से राय नहीं बनायी जानी चाहिए. और फिर ये घटानाएं तो बढ़ा चढ़ाकर वही मीडिया दिखाता है जिसकी अपनी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न लगा है!!

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  6. लोग बातो बातो मे तो माडरन बनना ओर दिखाना चाहते हे, लेकिन दिल से नही, मेरे दोनो बच्चे अभी तो १९, २० वर्ष के हे ओर हमारी तमन्ना हे कि वो भारतिया लडकी से शादी करे लेकिन हम ने उन्हे यह भी कह रखा हे कि उन्हे कोई युरोपियन लडकी पसंद आये तो हम उसे भी वेसे ही अपनायेगे जेसे किसी भारतिया को,दिखावे से नही कर के दिखाने से माडर्न बने, कपडे पहन लेने से ही मात्र हम माडरन नही बन जाते

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  7. बहुत ही गंभीर विषय है और यह प्रश्न केवल उत्तर भारतीय से ही नहीं हर किसी से पूछना चाहिये, हाँ उत्तर भारत में इस तरह के वाक्ये ज्याद होते हैं, परंतु अगर महाराष्ट्र में भी देखेंगे तो इस तरह के वाक्ये होते हैं, दरअसल यह केवल परिवार की सोच पर निर्भर करता है। परिवार के पढे लिखे होने से यह नहीं सोच सकते कि वे सुलझे हुए और व्यवहारिक लोग है।

    उत्तर भारत के लोग दिखावटी ज्यादा होते हैं, बात बात में अपने को श्रेष्ठ बताने का जतन करते हैं, और भी बहुत कुछ, खैर इस बारे में तो अलग से एक पोस्ट लिखी जा सकती है।

    हमारी तरफ़ से नवदंपत्ति को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित कीजियेगा, धर्म सबसे बड़ा मानव धर्म है और हम आपस में एक दूसरे का सम्मान करें तो शायद उससे बड़ा कोई धर्म हो ही नहीं सकता।

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  8. हम भारतीयों में पता नहीं कितना कुछ आत्मसात कर लेने की क्षमता है, यह तो मात्र मानवता है, इससे क्यों मुँह मोड़ा जाये?

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  9. अच्छी और विचारोत्तेजक पोस्ट।

    हम भी अपेक्षाकृत छोटे शहरों से हैं, (मुज़फ़्फ़र पुर बिहार) अपने बच्चों पर कोई पाबंदी नहीं लगा रखी है, (और अगर लगाता भी तो जैसे हमारी मान ही लेते, आखिर वे महानगर में रहते हैं अभी)।

    अपने निकटतम रिश्तेदारों में देखा है, जो और भी छोटे शहर सहरसा से है, और एक ही परिवार से है, हिन्दू (सजातीय नहीं अंतरजातीय), मुसलिम, सिख और ईसाई बहू दामाद हैं, और सब की शादी तो पहले अपनी रीति (अकसर इस तरह के प्रेम विवाह में जैसा होता है) से हुई बाद में धूम-धाम से परिवार के सारे सदस्यों ने मिलकर विवाह का अनंद लिया।

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  10. इसका जवाब तो मेरे पास भी नही है। सोच रही हूँ कि क्या सही है और क्या गलत। शुभकामनायें।

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  11. @सलिल जी
    शायद आपका कहना सही हो...पर मैं ,जेनिफर से यह सब कुछ नहीं कह सकी. आँखों में झलझलाते आँसू और ठंढे पड़े हाथों से उनका बार बार ये पूछना, "I am so scared...They wont do anything to my son,na??"
    मुझे कहीं शर्मिंदा कर गया था इसलिए भी कि 'निरुपमा काण्ड और मनोज-बबली जैसी ऑनर किलिंग वाली घटनाएं...आँखों के सामने घूम रही थीं.

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  12. @मनोज जी,
    सबलोग ऐसे नहीं होते हैं और वो भी पढने-लिखने (यहाँ मेरा मतलब डिग्री से नहीं है) वाले बुद्धिजीवी लोंग चीज़ों को खुले मन से स्वीकार करते हैं पर एक सच वो भी है...
    और ज्यादातर घरो में विद्यमान है. कहानी में तो मैने जिक्र किया ही पर महानगर में ही रहने वाली मुक्ति ने भी यही महसूस किया
    mukti said...कुछ बातें हैं आपके लेखन की, जो आपके सूक्ष्म विश्लेषण की क्षमता को दिखाती हैं. जैसे--
    "जब अपने नेटिव प्लेस की कजिन्स को देखती तो लगता छोटे शहर में रहकर भी वे ज्यादा आज़ाद हैं."
    मुझे लगता है कि महानगर में रहने वाले छोटे शहरों के लोग ज्यादा कन्ज़रवेटिव होते हैं और आपने ये बात बखूबी आब्ज़र्व की है.

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  13. Sawal hamare liye hi h ti jawab hume hi to dena hoga.... or aisa nhi ki in sab ke jawab hai lekin koi chahata hi nhi ki in ka jawab nikale.

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  14. Jab sawal hamare liye utha h to jawab bhi hume hi dena h.... is sachahyi se kab tak bhaga jayega kab tak sar jhukayenge... aisa nhi ki in sawalo ke jawab nhi h hamare paas, jawab hai lekin koi bolna hi nhi chahata koi is baat ko sudharna hi nhi jata...

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  15. ये केवल उत्तर भारत में नहीं होता है कश्मीर से कन्या कुमारी तक ये सब होता है कही कोई छुपा कर करता है तो कोई सीना फैला कर सभी को बटाटा है कुछ मीडिया का भी देन है | यहाँ मुंबई में दो केस सुन चुकी हु मराठी थे पर कुछ ऊँची नीची जाति का फर्क था बस इसके कारण एक केस में लड़की को और दूसरे में दोनों को मार दिया गया घटना ज्यादा टूल नहीं पकड़ी क्योकि उसे ऑनर किलिंग की जगह जाति बंधन परिणाम बता दिया गया पर था तो वो भी ऑनर किलिंग ही | समस्या बस एक ही है लड़कियों अपने जीवन के अहम फैसले खुद नहीं कर सकती है आप को पता है कई बार लड़कियों द्वारा अपने ही जाति के पसंद के लडके से बस इस कारण विवाह से इंकार कर दिया जाता है क्योकि वो लड़की वो प्रेम विवाह होता |

    आज भी आप को ब्लॉग जगत में भी ऐसे लोग मिल जायेंगे जो साफ लिखते है की लड़कियों को लड़को से दोस्ती भी नहीं करना चाहिए उनसे ज्यादा मेल जोल नहीं करना चाहिए उनके कपड़ो को लेकर तो क्या क्या नहीं कहा जाता है | उनके अनुसार तो हर महिला मित्र बहन और हर पुरुष मित्र भाई होना चाहिए | इस मानसिकता का हम क्या कर सकते है वाकई इसका कोई जवाब नहीं है |

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  16. केवल धर्म और जातिगत बंधन ही नहीं हैं, ऊँच-नीच का भी झगड़ा है। सभी चाहते हैं कि उनकी नाक बनी रहे। लोग केवल पहनावे से आधुनिक हो गए हैं लेकिन मन से अभी भी पुरातन पंथी ही बने हुए हैं। अब समाज को समझ लेना चाहिए कि विवाह अब दो परिवारों का मामला नहीं रह गया है अब केवल दो लोगों का व्‍यक्तिगत मामला भर है। इसमें अभी समय लगेगा।

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  17. रश्मि जी!
    दो बातें कहने दुबारा आ गया. पहली बात तो ये कि महानगर में रहना, आधुनिक कपडे पहनना, अंगरेजी में बाते करना और आधुनिकता के तौर तरीके सीख लेना, ये सब मात्र दस बीस सालों या तीस चालीस सालों में आया है, जबकि परमपराएं सैकड़ों सालों से चली आ रही हैं. और इनको तोडने के लिए आपको इनसे इतना ऊपर उठाना होगा कि जहां से परम्पराएं बौनी दिखाई दें. अमित जी के पिता कायस्थ, माँ सिख, पत्नी बंगाली, पुत्रवधू कोंकणी, ये बातें छोटी हो जाती हैं उनके कद के आगे. किन्तु आज भी एक मध्यमवर्गीय परिवार में ये बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं. खुशदीप ने आपकी पिछली पोस्ट पर कहा था की आगरा कोई छोटा शहर नहीं है, लेकिन पटना को आज भी दिल्ली और मुंबई के लोग गाँव ही कहते हैं.
    दूसरी बात, जिस समस्या से आज पारसी समाज जूझ रहा है. इस विषय पर आप एक पोस्ट लिख सकती हैं. उनकी गिनती दिन-ब-दिन कम होती जा रही है और परम्पराएं समाप्त. कारण सिर्फ यही है कि उनके समाज में लोग पारसी समुदाय से बाहर विवाह करने लगे हैं.
    प्रेम विवाह इस कीमत पर जिसमें एक पूरा समुदाय बलि चढ जाये. सोचकर आंसू आते हैं आँखों में. खैर यह एक अलग विषय है और कोशिश करूँगा कि इस पर कुछ कहूँ यदि मौक़ा मिला तो!!

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  18. सलिल जी,
    आपने कहा, प्रेम विवाह इस कीमत पर जिसमें एक पूरा समुदाय बलि चढ जाये. सोचकर आंसू आते हैं आँखों में

    इसका कसूरवार कौन है??..पारसी समुदाय ही ना...जो किसी बाहरी समुदाय के लोगो को स्वीकार नहीं करते. अगर किसी ने पारसी समाज से अलग विवाह कर लिया तो उसे अपने समुदाय से निकाल देते हैं. अगर वे दूसरी जाति के लोगो का स्वागत करें तो उनकी परम्पराएं क्यूँ मिटेंगी?


    कई लड़के और लडकियाँ स्वेच्छा से उनके धर्म का पालन करने को तैयार हो जायेंगे और उनकी परम्पराओं को आगे भी बढ़ाएंगे पर पारसी लोगो को यह मंजूर ही नहीं चाहे उनके बेटे-बेटियाँ ताजिंदगी अविवाहित रह जाएँ.

    मुंबई में "out of station " को ही गाँव जाना कहते हैं .ये यहाँ की भाषा है..इनके लिए,दिल्ली,हैदराबाद, बैंगलोर सब गाँव ही हैं.:)

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  19. रश्मि जी,
    सुकर्णोपुत्री मेगावती मुस्लिम हैं और जब उनसे नाम बदलने को कहा गया तो वे बोलीं, तुम अपना धर्म बदल सकते हो, मगर परम्पराएं रातों रात नहीं बदली जातीं.
    आपने पारसी समाज के विषय में जो तर्क दिए वो आधा सच है... एक अलग विषय है यह, फिर कभी. प्रश्न समाज से निकाल देने या रख लेने का नहीं..प्रश्न है प्योरिटी का..और यह बैरियर तब समाप्त होगा, जब समाज धर्म विहीन, जाती विहीन और सम्प्रदाय विहीन हो जाए. अभिषेक बच्चन की जाती क्या है, धर्म क्या है, शायद कुछ नहीं!! क्योंकि ये उस ऊंचाई पर हैं जहां जाति या धर्म फ़िज़ूल की बाते हैं. लेकिन औसत भारतीय समाज अभी अभी भी इससे नहीं उबरा है.
    और हाँ! गाँव माने बाहर गाँव मुंबई में समझ में आता है, दिल्ली में भी, कलकत्ता में भी और इलाहाबाद में भी यही सूना है मैंने पटना के बारे में..
    खैर!! इसे पूर्ण विराम मानें.

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  20. समाज में चारों तरफ लोगों में इतना प्यार इतनी भावुकता भरी देख कर कभी कभी मैं द्रवित हो जाता हूँ. आपके दिए उदहारण में लड़का उस लड़की से कितना प्यार करता है की वो लड़की के माता पिता के पूर्ण विरोध के बावजूद लड़की के प्रति अपने प्रेम को कम नहीं कर पा रहा. प्रेम का तुफान उमड़ा जा रहा है. लगता है ये दुनिया इसी प्रेम के बल पर टिकी हुई है वर्ना कब की जलमग्न हो चुकी होती.

    इस विषय पर अपना एक भिन्न अनुभव बताता हूँ शायद आप उसमे और अपनी बात में कोई सम्बन्ध खोज पायें. मेरी एक भतीजी है उसके छोटे बेटे को हेपेटाइटीस- बी हो गया था. बच्चा करीब एक हफ्ता कोमा में रहा फिर उसकी मृत्यु हो गयी. इस दौरान उन लोगों को देख ऐसा महसूस होता था की अब उनकी दुनिया बच्चे के साथ ही ख़त्म हो जाएगी. बहुत सामान्य सी बात है. अगर मेरा अपना बच्चा भी मृत्यु शय्या पर होगा तो मैं भी ऐसा ही व्यवहार करूँगा. पर आज जब उस बच्चे को गए एक सप्ताह हो गया है तो सब कुछ पहले जैसा ही सामान्य हो चुका है. प्यार प्रेम का तुफान थम चुका है. ऊपर से तो निशान भी नहीं नजर आते.

    ऐसा व्यवहार ये आधुनिक प्रेमी लोग क्यों नहीं कर पाते. क्या इनका प्रेम एक माँ और उसके बच्चे से भी ज्यादा गहरा होता है या फिर ये प्रेम ना होकर सिर्फ इनकी जिद होती है.

    क्या इनके प्रेम की चरम अवस्था विवाह या शारीरिक मिलन ही होता है.

    मुझ पर आप भावना शून्य होने का आरोप लगा सकती हैं.

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  21. aise sawal har jagah bante hain.........chahe uttar bharat ho ya uttar america..........haan inko sahi kabhi nahi kaha ja sakta:)

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  22. विचारणीय लेख ...


    आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  23. विचारणीय पोस्ट ..ये समस्या उत्तरी भारत में ही नहीं भारत से बाहर भी है.

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  24. @सलिल जी,
    मुझे तो ऐसा ही पता है पारसी समाज के बारे में. आशा है आप जल्दी ही पारसी समाज के पूरे सच के साथ एक पोस्ट लिखेंगे...हमें इंतज़ार रहेगा .

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  25. ब्लू ब्लड को की स्वच्छता बनाए रखने की न जाने कैसी यह सामाजिक सोच है जबकि कुदरत वर्ण संकर सम्बन्धों को ज्यादा उकसाती है -मैं यह रहस्य नहीं समझ पाया -गहन अनुसन्धान की जरुरत है !

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  26. पूर्वी उत्तरप्रदेश के कुछ गाँवों के तथ्य (उत्तर भारत ही है)
    - राजपूत कन्या - बनिया लड़का, प्रेम विवाह के बाद गाँव में ही बच्चे के साथ।
    - राजपूत पुरुष - हजाम स्त्री, प्रेमविवाह। जाति बाहर लेकिन गाँव में ही आवास।
    - राजपूत पुरुष - ब्राह्मण स्त्री, प्रेमविवाह। गाँव में ही आवास। जाति बाहर।
    इतना ही बता रहा हूँ। अपनी जाति के बारे में ही बस। और जातियों के आँकड़े बहुत अधिक हैं लेकिन बताना ठीक नहीं। कभी ऑनर किलिंग नहीं हुई।
    साधारणीकरण ठीक नहीं। कर्क रेखा के पार दक्षिण में 'कुयें के मेढक' भी बसते हैं। हर जगह पाये जाते हैं।

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  27. उत्तर भारतीय होना तो एक ठप्पा है हम लोगों पर.. भौगोलिक स्थिति और मीडिया ने उछाल कर इस कोने को उत्तर भारत बना दिया.

    हम "उत्तर भारतीय" वैसे नहीं है.. जैसा कि ज्यादातर मामलों में दिखता है.
    शैक्षिक और मानसिक परिस्थितियाँ अलग हैं.. माँ बाप को ये नही लगता कि प्रेम विवाह सफल रहेगा..
    बचपन से लेकर बुढ़ापे तक आज्ञाकारी बनकर रहना होता है.. अपनी खुशी के कोई मायने नहीं है..
    ज्यादातर ऐसे मामलों में घर से ज्यादा बाहरी लोग हस्तक्षेप करते हैं.. जात बिरादर नाक वगैरह...

    ऐसे सवाल भारत के हर कोने में है.. प्रेम के अनेक रूप प्रचलित हैं.. माता पिता अन्य मामलों को लेकर ज्यादा चिंतित रहते हैं..
    ऐसा मेरा मानना है..

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  28. रश्मिजी मेरा भी ऐसा मानना है कि ऑनर किलिंग म‍ीडिया का बनाया हौआ है। ऐसी घटनाएं हमेशा होती रही हैं और केवल उत्‍तर भारत नहीं बल्कि पूरे देश में। उनका विरोध भी होता रहा है। इसलिए सवाल पूरे भारतीय समाज से होना चाहिए,बल्कि है।

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  29. पहली बात कौन कौन सा भारतीय है ? क्या हम केवल भारतीय नहीं हो सकते ।
    कहाँ है वो सीमा रेखा जहां से उत्तर खतम होता है और दक्षिण शुरू होता है ।
    दक्षिण अभी भी ज्यादा परंपरागत है

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  30. मैं ऑनर किलिंग के बारे में तो कुछ बात नहीं कहना चाहूंगी, लेकिन ये अवश्य कहूँगी की आपका ये पोस्ट काफी विचारणीय है.

    मैं खुद ही देख चुकी हूँ अपने ही घेरे में, आस पास में की लोग कहीं भी चले जाएँ, अमेरिका, लन्दन, पेरिस, लेकिन उनकी कुछ मानसिकताएं नहीं बदलती..लड़कियां आज भी अपने मन मुताबिक शादी नहीं कर सकती.उत्तर भारतीयों में ये थोड़ा ज्यादा है.ये मैंने खुद देखा है.
    कभी कभी सोचती हूँ की लोग ये जानते हैं की उनकी बेटी समझदार है, जिंदगी के अनुभवों को जानती है तो उसके फैसले पे आपत्ति क्यों जताते हैं.अगर आपत्ति ही जाताना हो तो पहले ही अपने छोटे शहर में बाँध के लड़की को रख दें.बात वहीँ खतम.
    झूठा ये दिखावा क्यों की हम आधुनिक मानसिकता के लोग हैं.

    आपकी कुछ बातों से मैं थोड़ी जुड़ सी गयी, इसलिए टिप्पणी भी कर रही हूँ, आमतौर पे बस साइलेंट रीडर ही रही हूँ मैं.

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  31. @अली जी
    हाँ..अली जी..माँ बेटी के joint account थे और बेटी इधर पुलिस स्टेशन और कोर्ट के चक्कर लगा रही थी और पेरेंट्स ने उसे सजा देने को या कहें सबक सिखाने को सारे पैसे विड्रा कर लिए. ऐसा भी होता है हमारी इसी दुनिया में.

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  32. @प्रीति
    अच्छा लगा तुम्हारा यूँ खुल के लिखना.....साइलेंट रीडर हो....काफी है इतना....कभी कहीं अपने विचार लिखने हों तो संकोच मत करना...:) मुझे अच्छा लगेगा

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  33. मेरी एक मित्र है, गढवाली ब्राह्मण.. उम्र लगभग 29-31 के बीच.. एक दफे मैंने पूछा कि शादी कब करनी है, और लव मैरेज या अरेंज्ड? उसने बताया कि जब वह 23-24 कि थी तब घर के लोग बेहद सख्त थे कि शादी अरेंज ही होगी, सो किसी लड़के को खुद पसंद करने कि जुर्रत ना करे.. कुछ साल बाद घर के लोग बोले कि खुद भी पसंद कर सकती है, मगर लड़का गढवाली और ब्राह्मण ही होना चाहिए(सब देख दाख कर ही प्रेम करना).. कुछ साल बाद फिर बोला गया कि लड़का कहीं का भी हो मगर ब्राह्मण ही होना चाहिए.. अब कहा गया है कि कोई भी हो, बस हिंदू होना चाहिए.. मैंने मजाक किया 5-6 साल और रुक जाओ, जेंडर कि भी समस्या खत्म हो जायेगी.. :D
    उसने चिढ कर कहा कि जिस उम्र में लोग प्यार जैसी चीजों के बारे में दिल से सोचते हैं, उसमे तो सख्त पाबंदी थी, और अब जब हर तरफ से छूट है तो दिमाग से काम लेने लगी हूं और ऐसे में कोई पसंद आता भी है तो दो घंटे बाद ही नकार देती हूं.. और जहाँ तक अरेंज मैरेज कि बात है तो अब जितने पैसे मैं कमाती हूं उतने कमाने वाले कम ही गढवाली ब्राह्मण कुवारे लड़के मी उम्र से मैच खाने वाले मिलते हैं.. और मैं शादी के बाद नौकरी छोड़ने से बेहतर शादी ही ना करना पसंद करूँ..

    ऐसे ही यह बात याद आ गई..

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  34. आपका सवाल , सवाल भी है और जवाब भी !
    जवाब इसलिए क्योंकि जवाब हमे ही देना है . सलिल जी ने तथ्यों को काफी अच्छे से उजागर किया है . लिखने के मतलब है समाज में पहले से आ रहे जो भी विसंगतियाँ है उनके खिलाफ आवाज़ उठाना , भ्रांतियों को दूर करना . ...

    मैं प्रायः इसी कोशिश में ....

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  35. मुझे लगता है कि यह व्यक्ति या परिवार विशेष पर निर्भर करता है..इस तरह से संपूर्ण उत्तर भारत को ऐसा मान लेना उचित नहीं.

    पोस्ट विचारणीय है.

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  36. रश्मि जी
    ऑनर किलिंग उत्तर भारत में ज़्यादा है... उत्तर भारत के मुक़ाबले दक्षिण भारत में महिलाओं की हालत बेहतर है...अनेक इलाक़ों में आज भी महिलाएं ही परिवार की मुखिया हैं...

    ऑनर किलिंग के नाम पर लड़कों को भी मौत के घाट उतारा जाता है...हरियाणा में ऐसे अनेक मामले हो चुके हैं...

    जहां तक प्रेम विवाह का मामला है... अगर लड़का और लड़की अलग-अलग संस्कृतियों से है, ऐसे में दोनों ही अपने-अपने परिवारों से कट कर रह जाते हैं... इस बात का अहसास उन्हें बाद में होता है, जब उन्हें रिश्तों की ज़रूरत पड़ती है...हम ऐसे बहुत से लोगों को जानते हैं... जिन्होंने दूसरी संस्कृतियों या दूसरे मज़हबों में विवाह किया...मगर आज उम्र के अंतिम पड़ाव पर अकेले हैं... ख़ुद को आधुनिक दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करना बेहद आसान है, मगर ज़मीनी स्तर पर सोचा जाए तो बात अलग ही मिलती है...

    हमारी ख़ाला जान (मौसी) की शादी राजस्थान में हुई है... ख़ाला जान की ससुराल ठेठ राजस्थानी है... ख़ाला जान चूंकि उत्तर प्रदेश की हैं तो उन्हें वहां के माहौल में ढलने में बहुत वक़्त लगा...उनके पड़ौस में बिहार के कई परिवार रहते थे... ख़ाला जान ने उनसे मेल-जोल बढ़ा लिया... कहती थीं कि उन्हें बिहारी महिलाओं के साथ ज़्यादा अपनापन महसूस होता था... आज उनके बच्चे जवान हो चुके हैं, आज भी कहती हैं कि शादी अपने जैसे लोगों में ही करनी चाहिए... अब उनकी बेटियों के उत्तर प्रदेश के रिश्ते आए तो यह कहकर मना कर दिया कि वे अपनी बेटियों की शादी राजस्थान में ही करेंगी, ताकि उन्हें वो परेशानी न हो जो उन्हें हुई है...

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  37. @फिरदौस खान

    फिरदौस, हमेशा की तरह आपने बड़े साहस और ईमानदारी से अपनी बात रखी.

    मैं भी अब ब्लॉग जगत में नई नहीं रह गयी हूँ...अच्छी तरह जानती थी कि "उत्तर-भारत ' लिखने पर लोग आपत्ति जताएंगे. पर मैने ऐसा ही देखा,सुना और जाना है. उत्तर-भारत में ऐसी घटनाओं का अनुपात ज्यादा है..चाहे हम उत्तर भारतीय कितना ही इस बात से इनकार करें या आँखे चुराएं. और सबसे बड़ी बात उस महिला (जेनिफर) की आँखों का डर....जो उत्तर भारत के लिए था. (उसी डर ने यह पोस्ट भी लिखवा ली ) .उसने भी ऐसी घटनाओं की खबर पढ़ी थी,तभी इतनी डरी हुई थी.

    बल्कि उत्तर-भारत लिख कर मैने शायद टिप्पणीकर्ताओं का कार्य आसान कर दिया.कई लोग बस इसी बात पर आपत्ति जता कर चले जा रहे हैं. अगर समस्त भारत की बात लिखती तो उन्हें गंभीरता से सोचना पड़ता कि क्या लिखें.

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  38. आपकी पोस्ट पर मेरा जवाब
    हरियाणा में पिछले दो साल प्रेमी जोड़ों के लिए सबसे खतरनाक साबित हुए। 25 प्रेमी जोड़ों की हत्या कर दी गई। आप यकीन मानिए, हर रोज लगभग 50 प्रेमी युगल हाईकोर्ट से सुरक्षा मांग रहे हैं। एक साल में ही हरियाणा से 690 युवक-युवतियां लापता हो चुके है, इनमें से आधे प्रेमी युगल हैं। ये आंकड़े तो तब हैं, जब मीडिया इतना सक्रिय है।
    हरियाणा ही क्यों, राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो के मुताबिक एक साल में 700 हत्याएं हुई हैं।
    इनमें से न जाने कितने गुमनाम जोड़ों को मौत की सजा दी जा चुकी है।
    मेरी इस बात में ही जवाब छिपा है
    क्या इस सब के बावजूद प्रेम अभिव्यक्त करना बंद कर दिया। बल्कि यूथ अब और ज्यादा करीब आ रहे हैं, और ये किसी के रोके नहीं रुकेंगे।

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  39. दिल और दिमाग़ के दरवाज़े यूं ही नहीं खुल जाते... अभी शायद सदियां और लगेंगी...

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  40. सच है पर धीरे धीरे बदल रहा है सोचने का तरीका... मुझे अच्छे दिन दिख रहे हैं थोड़े दूर ही सही.

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  41. पढ़े लिखे होने का प्रेम विवाह से कोई सम्बन्ध नहीं होता ...हम जिन झुग्गी झोपड़ी वालों के साक्षर नहीं होने के ग़म में घुले जाते हैं , उनके यहाँ प्रेम विवाह की रफ़्तार सबसे अधिक है ...इन लोगों की महिलाएं भी मुझे मध्यमवर्गीय महिलाओं से ज्यादा स्वतंत्र नजर आती हैं ..
    अभिभावकों का उम्र और दुनियादारी का अनुभव प्रेम विवाह और अंतरजातीय विवाहों को दरकिनार रखना चाहता है क्योंकि उन्हें इनसे होने वाली परेशानियों के कारण अपने बच्चों के भविष्य की चिंता होती है ...ये एक कटु सत्य है (जैसा कि कई कमेंट्स भी हैं इस पर )कि अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़े भी अपने बच्चों की शादी अपने ही समाज में करना चाहते हैं (दोनों में जिसका प्रभाव अधिक हो )...और इसके कारण भी उनके पास होते हैं ...
    ऑनर किलिंग सिर्फ उत्तर प्रदेश में होता है , ये कहना सही नहीं है ...बल्कि प्रेम विवाह या अंतरजातीय विवाह अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर भारत में ही सबसे अधिक होते हैं ..इन जोड़ों को अलग -थलग करने की कोशिश तो हमेशा से की जाती रही है वे किसी भी जाति,धर्म अथवा संप्रदाय के हों ...कुछ मामलों में या कुछ विशेष स्थानों पर घटनाएँ इस तरह से मोड़ ली जाती हैं कि वे ऑनर किलिंग का मामला नजर आये ...मुझे नहीं लगता कि इस सभ्य समाज में सिर्फ प्रेम विवाह और अंतरजातीय विवाह के लिए अभिभावक अपने ही बच्चों की जान ले लेंगे ...ये कार्य संकुचित विचारों वाले मुट्ठी भर लोगो का अवश्य हो सकता है ...
    जहाँ तक युवा पीढ़ी की बात है ...आजकल बच्चे ज्यादा प्रैक्टिकल हैं ...अंतरजातीय या प्रेम विवाह कर बिना मतलब का टेंशन मोल लेने की बजाय विवाह अपने समाज में करना ही ज्यादा पसंद करते हैं. क्योंकि बॉय फ्रेंड गर्ल फ्रेंड वाली पीढ़ी के लिए प्रेम कोई कमिटमेंट वाली बात नहीं रही है ..इधर कई बच्चों से बात करने के बाद जो मुझे लगा !
    अच्छा विषय पूरी गंभीरता से उठाया है तुमने ...!

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  42. ऑनर किलिंग सिर्फ उत्तर प्रदेश में होता है , ये कहना सही नहीं है ...बल्कि प्रेम विवाह या अंतरजातीय विवाह अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर भारत में ही सबसे अधिक होते हैं ..इन जोड़ों को अलग -थलग करने की कोशिश तो हमेशा से की जाती रही है वे किसी भी जाति,धर्म अथवा संप्रदाय के हों ...कुछ मामलों में या कुछ विशेष स्थानों पर घटनाएँ इस तरह से मोड़ ली जाती हैं कि वे ऑनर किलिंग का मामला नजर आये ...मुझे नहीं लगता कि इस सभ्य समाज में सिर्फ प्रेम विवाह और अंतरजातीय विवाह के लिए अभिभावक अपने ही बच्चों की जान ले लेंगे ...ये कार्य संकुचित विचारों वाले मुट्ठी भर लोगो का अवश्य हो सकता है ...
    जहाँ तक युवा पीढ़ी की बात है ...आजकल बच्चे ज्यादा प्रैक्टिकल हैं ...अंतरजातीय या प्रेम विवाह कर बिना मतलब का टेंशन मोल लेने की बजाय विवाह अपने समाज में करना ही ज्यादा पसंद करते हैं. क्योंकि बॉय फ्रेंड गर्ल फ्रेंड वाली पीढ़ी के लिए प्रेम कोई कमिटमेंट वाली बात नहीं रही है ..इधर कई बच्चों से बात करने के बाद जो मुझे लगा !
    अच्छा विषय पूरी गंभीरता से उठाया है तुमने ...!

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  43. इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
    आकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
    क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  44. @वाणी ,मैने उत्तर प्रदेश नहीं, उत्तर भारत लिखा है.

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  45. फिरदौस ने बिलकुल सही कहा " ख़ुद को आधुनिक दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करना बेहद आसान है, मगर ज़मीनी स्तर पर सोचा जाए तो बात अलग ही मिलती है..."

    यह उन लोगों के लिए आँखें खोलने वाला होना चाहिए जो तथाकथित आधुनिक हैं।

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  46. हर उत्तर भारतीय औनर किलिंग नहीं करता और न ही इसका विरोधी है. हाँ कुछ हठधर्मी लोगों ने इसको पूरे दिशा के नाम पर कलंक बना कर रख दिया है. वैसे उत्तर भारतियों से भय सब खाते हैं ऐसा क्यों? इसका जवाब सिर्फ इतना है कि झूटी प्रतिष्ठा के नाम पर ये बच्चों को झूठ बोलने और अपराध तक करवाने के लिए मजबूर कर देते हैं. पर ८० प्रतिशत लोगों कि सोच बदल चुकी है . लेकिन बुरे १ प्रतिशत ही सही बदनाम तो कर ही देते हैं.

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  47. पोस्ट पढ़ने के बाद और सबके कमेन्ट पढ़ने के बाद मैंने बहुत सोचा की क्या लिखूं
    तो बस ये लिखकर जा रहा हूँ
    "विचारणीय आलेख"

    "अब मेरी इस टिप्पणी को आप "बिना पढ़े दिया हुआ टिप्पणी समझे तो समझे...मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ;) "

    वैसे वो हिडेन कैमरा वाला बात तो लन्दन वाली दीदी ने कहा था शायद??:D

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  48. @अभी
    कमाल की याददाश्त है :)
    और जब तुमने कह दिया कि पोस्ट पढ़ ली है..कमेंट्स भी...और प्रमाण भी दे दिया फिर अविश्वास क्यूँ करूँ...वैसे कई लोग कह जाते हैं...आपकी पोस्ट पढने के बाद क्या लिखूं...समझ नहीं आता...या फिर बहुत सोचना पड़ता है...सो कोई गिला नहीं :)

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  49. मैं पिछले कमेंट्स में Out of Context बात कह गया था.. मगर मेरा अनुभव यही कहता है कि दक्षिण भारत में जहाँ कहीं भी उत्तर भारतीय अधिक हैं उस शहर में Crime Rate बहुत ऊपर है..
    खुद चेन्नई में(जहाँ फिलहाल मैं पिछले चार सालों से रह रहा हूं) वहाँ पिछले कुछ सालों पहले से तुलना करने में उत्तर भारतीय काफी बढ़ें हैं और अपराध भी.. चेन्नई के मुकाबले बैंगलोर में अपराध दर अधिक है, चेन्नई के मुकाबले बैंगलोर में उत्तर भारतीय भी बहुत अधिक हैं..
    आज से चार साल पहले से तुलना करने पर पाता हूं कि ट्रैफिक जैसी छोटी चीजों में भी अनियमितता अधिक बढ़ी है.. पहले ट्रैफिक जाम लगने पर अधिकाँश लोग शान्ति से उसके खुलने का इन्तजार करते थे, अब देखता हूं कि Zig-Zag Path से गाडियां निकालने वाले अधिक दिखते हैं, और उत्तर भारतीय ड्राइवर भी अधिक दिखते हैं..

    अब इसका कारण कोई Expert अथवा समाजशास्त्री ही समझा सकता है या फिर हम अपनी बुद्धि से मात्र अंदाजा ही लगा सकते हैं..

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  50. PD से सहमत । लेकिन ऐसा क्यों । क्या उत्तर भारतीय इस देश की ashmita को बिगाड़ रहे हैं । मूल कारणो में जाना आवश्यक है ।
    आज चेन्नई में उत्तर भारतीय यात्री , कुली या ऑटो वाले के लिए preferred कस्टमर है क्योंकि उससे ज्यादा पैसा उगाहा जा सकता है

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  51. क्षमा चाहती हूँ ! आगरा से बाहर हूँ इसलिए आपकी पोस्ट पर देर से पहुँच पाई ! आपका आलेख ऐसी विकृत मानसिकता के लोगों का मन झकझोरने के लिए काफी है जिनके लिए अपने बच्चों की आत्मिक प्रसन्नता से अधिक मूल्य अपने खोखले आदर्शों और मान्यताओं तथा झूठी प्रतिष्ठा का होता है ! काश ऐसे लोग इसे पढ़ पायें ! बहुत ही सारगर्भित आलेख ! आभार तथा शुभकामनाएं !

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  52. रश्मि जी काफी चर्चा हो चुकी है इस विषय पर.. ऐसा ही एक उदहारण मेरे पास भी है.. मेरा एक कॉपी राइटर मित्र था नाम नहीं लेना चाहूँगा.. मुंबई में रहता था.. लेकिन पृष्ठभूमि लखनऊ की थी... उसके पिता यू पी के फिल्म वितरण कारोबार से जुड़े थे... उनके बेटे ने जिद्द की कि एक क्रिस्चन लड़की से शादी करनी है.. शुरू में विरोध हुआ.. अंततः उसके पिता मान गए... होटल ताज, मुंबई में शादी होनी थी... कुछ वी आई पी और फिल्म उद्योग की हस्तियों को भी आना था... बस लड़की अंतिम समय में शादी के दिन बिना कोई कारण बताये मना कर दी... शादी नहीं हुई.. इस आशंका से कि लड़का लड़की को कोई क्षति पहुंचा सकता है.. उन्होंने लड़के को दिल्ली भेज दिया... और वही मेरी मुलाकात उस से हुई.. आज भी वह उस क्रिस्चन लड़की को भूल नहीं पाया है... उत्तर भारतीय ऐसे भी होते हैं ... इसलिए सरलीकरण करना ठीक नहीं.. जेनिफर जी को बताएं.. देश हिंदी से नफरत तो करता है लेकिन सबसे अधिक देखता है हिंदी चैनलों को, हिंदी सिनेमा को.. इधर कुछ दक्षिण के सिनेमा के हिंदी डबिंग को देखा है कुछ फ़िल्मी चैनलों पर और लगा कि उत्तर भारत जैसी प्रेम विवाह पर विवाद वाली फिल्मे उधर भी बनती हैं.. इस से यह बात तो सपष्ट है कि प्रेम विवाह में समस्या, समाज की सोच एक जैसी है....

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  53. @अरुण जी,
    इस तरह की कहानियाँ तो तमाम बिखरी पड़ी हैं...जहां मुंबई की लड़की/लड़के ने उत्तर भारतीय लड़के/लड़की को धोखा दिया या फिर vice versa

    इस घटना का उल्लेख करने के पीछे यह मंशा थी कि उत्तर- भारतीयों को लेकर इतना डर क्यूँ है लोगों के मन में?? यही अगर वो लड़की बंगाली या दक्षिण भारतीय होती और उसके पिता ने यह धमकी दी होती तो क्या जेनिफर के मन में इतना डर होता?

    विवेक जी, रेखा जी..PD आदि की टिप्पणियों से भी यह बात पता चलती है कि यह उग्रता उत्तर-भारतीयों में अधिक है...इसके पीछे शायद बहुत गहरे कारण हैं...पर अब जब एक धरातल पर जो लोग आ गए हैं ,वे भी इस पूर्वाग्रह से मुक्त क्यूँ नहीं होते....और अपनी दृष्टि और सोच व्यापक क्यूँ नहीं बनाते?

    बस इस बात पर ही चर्चा का उद्देश्य था वरना मैं खुद उत्तर-भारत से ही ही हूँ. लेकिन सिर्फ इसके लिए हम अपनी कमियाँ नज़रंदाज़ नहीं कर सकते.

    आज सुबह ही अखबार में पढ़ा, समीरा रेड्डी और कुछ फिल्म कलाकार पटना में किसी प्रोग्राम हेतु गए थे.वहाँ भगदड़ मच गयी, मार-पीट हो गयी और वे लोग किसी तरह जान बचा कर वहाँ से भागे. कुछ दिनों पहले, सनी देओल किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने पटना गए थे , लोगों ने दर्शकों की कई कारों के शीशे तोड़ डाले. सुना था एक बार हेमा मालिनी भी अपने शीर्ष दिनों में कोई प्रोग्राम देने बिहार गयीं थीं और उनके स्टेज पर आते ही इतना हंगामा हुआ कि बिना कार्यक्रम पेश किए ही लौटना पड़ा.बनारस में जी टी.वी. के एक कार्यक्रम 'अन्त्याक्षरी' की शूटिंग के दौरान हुई भगदड़ में कितने लोग घायल हो गए. लखनऊ यूनिवर्सिटी में हाल में ही ऋतिक रौशन गए थे. कुछ ऐसे ही दृश्य देखने को मिले. जबकि वहाँ दर्शकों में पढ़े-लिखे छात्र थे.

    तो इन सब घटनाओं से उत्तर-भारत के लिए लोगों के मन में डर नहीं पैदा होगा? रवि धवन ने आंकड़ो सहित हरियाणा में प्रेमी युगल की स्थिति बता ही दी...

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  54. आपने सभी बातें तो ठीक कही बस उदहारण गलत दे गई, शायद सही जानकारी के आभाव में..
    यहाँ पटना में जो कुछ भी हुआ वह दर्शकों के कारण नहीं आयोजकों के कारण.. आयोजकों ने भाई-भतीजावाद दिखाते हुए बिना टिकटों और बिना पास वाले लोगों को अंदर घुसाते रहे.. जब अंत में कोई जगह बाकी ना रहा तब आयोजकों ने टिकट और पास वालों को भी अंदर आने से रोकने लगे.. अब ऐसे में तो कोई भी जगह होता और कहीं के भी लोग होते, करते वही जो उन्होंने किया..
    मेरे मुताबिक़ वहाँ राजनीति का भी योगदान रहा

    इस सब में.. उपमुख्यमंत्री को बुलाया गया था जो भाजपा के हैं, मगर मुख्यमंत्री नदारद थे जो जदयू के हैं.. अब ऐसे में पुलिस का तमाशा देखना भी रहस्य ही पैदा करता है..

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  55. @ PD
    तुम्हे सही जानकारी होगी.
    पर फिर वही बात है....आयोजको ने रूल्स फौलो क्यूँ नहीं किए....वहाँ 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वाली कहावत अब तक चरितार्थ होती क्यूँ दिखती है?

    और पुलिस की भूमिका के बारे में मैने भी पढ़ा....कि वे प्रोग्राम देखने में मगन थे. पर खीझ बहुत होती है...ये सब क्यूँ होता है....हमारे ही प्रदेश में. :(

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