मंगलवार, 12 जनवरी 2010
जब जगजीत सिंह इस दर्द से रु-बरु हुए तो अकिंचन ब्लॉगर्स किस खेत की गाजर,मूली,शलजम??
आजकल ब्लॉग जगत में दो 'हॉट' टॉपिक चल रहें हैं. एक 'नारी' और दूसरी 'टिप्पणी'.रोज ही एकाध पोस्ट इन दोनों विषयों पर देखने को मिल जाती है.मैंने सोचा,मैं भी बहती गंगा में हाथ धो डालूं.वैसे भी यह पोस्ट 'वाणी गीत' की पोस्ट का एक्सटेंशन भर है.कहीं पढ़ा,ये वाकया मुझे बाद में याद आया वरना वहीँ कमेंट्स में लिख देती.
एक बार प्रसिद्द ग़ज़ल गायक 'जगजीत सिंह; का प्रोग्राम दिल्ली में था.वे अपने साजिंदों के साथ मंच पर पहुंचे.हॉल खचाखच भरा हुआ था. श्रोताओं में टाई सूट में सजे, बड़े बड़े ब्यूरोक्रेट्स थे.माहौल बिलकुल अफसराना लग रहा था.जगजीत सिंह भी बड़े उत्साह में थे. सिर्फ बड़े बड़े अफसरानों के सामने ग़ज़ल पेश करने का उनका यह पहला मौका था. उन्हे लगा बहुत ही सुखद अनुभव होगा, यह तो.उन्होंने एक ग़ज़ल गाना शुरू किया.ग़ज़ल ख़त्म हो गयी.हॉल में वैसा ही ही सन्नाटा पसरा था,जैसा ग़ज़ल शुरू करने के पहले था.दूसरी ग़ज़ल शुरू की.ख़त्म हो गयी.वैसी ही शांति बरकरार.शायद टाई सूट में सजे लोगों को ताली बजाना नागवार गुजर रहा था.अब जगजीत सिंह से रहा नहीं गया.उन्होंने तीसरी ग़ज़ल शुरू करने से पहले कहा..."अगर आप लोगों को ग़ज़ल अच्छी लग रही है. तो वाह वाह तो कीजिये.यहाँ आप किसी मीटिंग में शामिल होने नहीं आए हैं.सूट पहन कर ताली बजाने में कोई बुराई नहीं है.अगर आप ताली बजाकर और वाह वाह कर मेरा और मेरे साजिंदों का उत्साह नहीं बढ़ाएंगे तो ऐसा लगेगा कि मैं खाली हॉल में रियाज़ कर रहा हूँ."
फिर तो अपने सारे संकोच ताक पे रख कर उन अफसरानों ने खुल कर सिर्फ वाह वाह ही नहीं की और सिर्फ ताली ही नहीं बजायी.जगजीत सिंह के साथ गजलों में सुर भी मिलाये.अपनी फरमाईशें भी रखी.वंस मोर के नारे भी लगाए.जगजीत सिंह की ली गयी चुटकियों पर खूब हँसे भी.जगजीत सिंह अपने प्रोग्राम में बीच बीच में गजलों को बड़े मनोरंजक ढंग से एक्सप्लेन भी करते हैं.उनके प्रोग्राम में जाने का मौका मिला है...देखा है मैंने कैसे श्रोता हंसी से दोहरे हो जाते हैं.इन श्रोताओं ने भी गजलों का पूरा रसास्वादन लिया और उस शाम को एक यादगार शाम बना दी.
यही बात टिप्पणियों के साथ भी है.अगर पढने वाले चुपचाप पढ़कर बिना अपनी प्रतिक्रिया दिए चले जाएँ तो ऐसा लगेगा जैसे यह ब्लॉग पर नहीं ,किसी डायरी में लिखा जा रहा है.टिप्पणियों पर इतनी बातें हो चुकी हैं कि कुछ भी और कहूँगी तो दुहराव सा लगेगा.
फिर भी इतना कहना चाहूंगी कि सबकी पसंद अलग अलग होती है.किसी को कवितायें अच्छी लगती है,किसी को समसामयिक विषय तो किसी को धर्मविषयक बातें.हर ब्लॉग का पाठक वर्ग अलग होता है.इसलिए टिप्पणियों की गिनतियों पर तो कभी नहीं जाना चाहिए.क्यूंकि फिर तो 'उम्दा लेख' ,'सार्थक लेख' ,भावपूर्ण रचना', 'अच्छी लगी रचना' या 'nice ' जैसे कमेंट्स ही मिलेंगे.'रश्मि प्रभा' जी ने भी ऐसे कमेंट्स पर एक बार एक पोस्ट लिखी थी,"कंजूसी
कैसी??" उन्होंने लिखा था ,'इस बधाई ने मुझे हताश कर दिया है, इस
नज़्म के लिए बधाई क्यूँ?..मेरी बेटी ने कहा,'दिमाग अभी चल रहा है,इसकी बधाई' "...पाठकगन (जो साथी ब्लौगर बन्धु ही हैं)...कहेंगे बहुत demanding है ये लिखने वाले?..अब थोडा तो होंगे,ना..स्वान्तः सुखाय ही सही पर लिखने में थोड़ी मेहनत तो लगती है.ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का कहना है " ये पाठक नहीं उपभोक्ता हैं,कुछ ग्रहण करते हैं यहाँ से"...फिर तो कुछ देना भी चाहिए.ये टिप्पणियाँ पारिश्रमिक जैसी ही हैं.
पर जो लोग अपनी रूचि से पढ़ते हैं और उन्हें रचना अच्छी या बुरी जो भी लगे..बताना जरूर चाहिए. यह नहीं कि कभी बाद में चैट या मेल पर बताएं कि आपकी पोस्ट तो बड़ी अच्छी लगी.अरे दो मिनट वक़्त निकाल कर वहीँ बताओ ना.अब सोचिये अगर जगजीत सिंह जी का प्रोग्राम वे लोग चुपचाप सुन लेते और कभी एयरपोर्ट या कहीं और उनसे मुलाकात होती तो उनके कानो में कह जाते,आपकी ग़ज़ल बड़ी अच्छी लगी थी.
मैं इतने महान गायक की तुलना ब्लॉगर्स के साथ नहीं कर रही.पर यहाँ संवेदनाएं एक सी हैं.अगर इतने महान गायक को यह दर्द हुआ तो हम अकिंचन ब्लॉगर्स किस खेत की गाज़र मूली शलजम हैं?
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रश्मि,
जवाब देंहटाएंहम अकिंचन क्या तुझे उपहार दें.
एक-दो टिपण्णी तेरी पोस्ट पर हम मार दें..
बहुत सही .....दुखती रग पर हाथ रख दी तूने भी....
अब ऐसा है....कि एक दुखती रग http://swapnamanjusha.blogspot.com/
पर भी wiatiyaa रही है..नज़रें इनायत हों आपकी ..सरकार....दिलदार...
सत्य वचन...जगजीत सिंग वाला दर्द समझता हूँ. कोशिश हमेशा करता हूँ कि प्रोत्साहन के दो शब्द छोड़ूं.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी जो दे उसका भी भला
जवाब देंहटाएंजो न दे उसका भी भला।
ब्लॉगर की सुनो
पाठक तुम्हारी सुनेगा
तुम एक टिप्पणी दोगे
पाठक दस लाख देगा।
(कुछ अधिक नहीं हो गया?)
घुघूती बासूती
हम ब्लोगर है ब्लोगर को और क्या चाहिये
जवाब देंहटाएंबस सब पढने बालो से एक टिप्पणी चाहिये
आपकी बात से सहमत हूँ। मानव कोई भी कार्य करता हैं तो उसे दुसरो की प्रतिक्रिया जानने की इच्छा भी सताती हैं। किसी भी विधा में व्यक्ति तभी पनपता हैं जब उस विधा के पारंगत उसकी प्रशंसा और आलोचना करते हैं। प्रशंसा के दो बोल तो कोई भी बोल दे परन्तु सच्ची समीक्षा मात्र आलोचक ही कर सकता हैं। ब्लॉग जगत में नया हूँ और आते ही लोगो ने प्रोत्साहन भी करा। प्रशंसा से ज्यादा आलोचना का हिमायती हूँ। आलोचना हमेसा लेखन की सुधारवादी प्रक्रिया को चालू रखती हैं।
जवाब देंहटाएंसच कह रहीं हैं आप... टिप्पणी देने से हौसला अफज़ाई होती है... और टिप्पणी देने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए..... आपके टिप्पणी से हौसला ही बढ़ता है... और अच्छा करने कि प्रेरणा मिलती है....
जवाब देंहटाएंआज जी वाणी जी की इस वावत पोस्ट देखी ..में तो इस बात से बिलकुल सहमत हूँ....
जवाब देंहटाएं" न मांगे सोना ,चांदी,न मांगे हीरा मोती ये ब्लोगर के किस काम के..
देता है टिपण्णी दे,बदले टिपण्णी के,दे दे दे दे "....हा हाहा हा
रश्मि हम गरीबो के दिल की बात कह दी आपने...शुक्रिया :)
आपने बहुत ही सही कहा ..टिप्पणियाँ प्रोत्साहित करने का काम करती हैं...अभी कल ही एक पाठक ने' चर्चा पान की दुकान पर' ब्लॉग पर पोस्ट की गई मेरी हास्य रचना पर टिप्पणी की कि ".. इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है" http://chrchapankidukanpar.blogspot.com/2010/01/blog-post_11.html
जवाब देंहटाएंअब ऐसी टिप्पणी का क्या करें?
ना जाने क्यों लोग टिप्पणी को कही और से जोड़ देते है बल्कि यह तो रचना कार का उत्साह बढ़ाने की सामग्री है जो उनके आलोचकों और प्रशंसकों के मिलती है..और यह भी सही कहा आपने जो भी जैसा लगे उसी वक्त बता देना चाहिए ..
जवाब देंहटाएंआपने एकदम उचित कहा रश्मि जी। हम भी आपसे पूर्णत: सहमत हैं।
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे शुक्र है कि पहुंच गया , वर्ना तो फ़िर आप मुझे लपेट देतीं हा हा हा, बिल्कुल जी मैं अपनी कहूं तो मुझे तो जितना मजा टिप्पणी करने में आता है उतना तो अपनी पोस्ट को लिखने में भी नहीं आता, एक शब्द और एक पंक्ति की टीप मुझे देनी नहीं आती ,मन करता है कि अब जितनी लंबाई चौडाई इस टीप बक्से की होती है बायडिफ़ाल्ट , उतनी टीप भी बाय डिफ़ाल्ट तो रहे ही , बह्ती गंगा में हाथ नहीं धोये आपने पूरी नहा धो ली हैं जी डुबकी मार मार के ,
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
मै तो कुछ नहीं बोलुंगा, नहीं सब कहेंगे की बोलता हूँ ।
जवाब देंहटाएं@अजय झा
जवाब देंहटाएंअरे, अजय जी,दिल से लगा लिया आपने, लगता है...हर टिप्पणी में जिक्र कर जाते हैं...कोई गल नहीं...पर अनजाने में ही सही..यह आपका ही किया हुआ था.....हर बार मेरा ही ब्लॉग नज़र से कैसे छूट जाता था...:)
@मिथिलेश भाई..कैसे बोलोगे??..आप जैसों के लिए ही तो ये पोस्ट लिखी गयी है..हा हा हा
भले ही कोई ये कहे की टिपण्णी ना हो पर पढ़े कितने गए हैं ये देखना चाहिए...लेकिन सच तो ये है की टिप्पणियों से प्रोत्साहन मिलता है...हांलांकि बात ये भी सही है की बधाई...और सुन्दर से बात नहीं बनती....पर कम से कम ये ज़रूर पता चल जाता है कि
जवाब देंहटाएंकम से कम पढ़ा तो गया...
लेखकों कि दुखती राग पर हाथ रख दिया है.....पूरी तरह से सहमत हूँ कि पाठकों को थोड़ा ससमय निकाल कर टिपण्णी ज़रूर देनी चाहिए.....
ये लीजिये हमारी भी टिप्पणी, वन्स मोर वन्स मोर :)
जवाब देंहटाएंकितना बड़ा बोझ दिमाग से उतर गया ... जब जगजीत सिंह जी जैसे उच्च कोटि के कलाकार भी दाद चाहते हैं तो हम तुच्छ ब्लोगर की टिप्पणी पाने की ख्वाहिश कोई असामान्य बात नहीं नहीं है
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख ....
समझ गए, समझ गए, ब्लॉगिंग की जगजीत सिंह जी,
जवाब देंहटाएंदाद (टिप्पणी) देने के लिए बहन को भाई नहीं आएगा तो बच कर कहां जाएगा...
आपको लोहड़ी और मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई...
जय हिंद...
सत्य वचन, पूरी तरह सहमत… विवादास्पद मुद्दों पर कन्नी काटने की प्रवृत्ति भी ठीक नहीं है…। कम से कम "सहमत" या "असहमत" इन दो शब्दों में तो टिप्पणी व्यक्त की ही जा सकती है…
जवाब देंहटाएंसहमत हूं आपसे,शत-प्रतिशत।
जवाब देंहटाएंआपकी बात से पूरी तरह सहमत ...क्या क्या न कहा टिप्पणी में सब ने वही पढ़कर मजा आ गया ...लिखना पढना क्या टिप्पणी बिना ....ब्लोगिंग का मजा आये न टिप्पणी बिना ....:)
जवाब देंहटाएंहह्हहहः हाँ हाँ हाँ रश्मि जी आप की बातो से पूर्णता सहमत हूँ तिपद्दी लेखक का अधिकार है , अगर हम इतनी मेहनत कर के लिखते है और आप पढ़ते भी है तो तिपद्दी तो मिलनी ही चहिये जहा तक मेल और फोन का सबाल है तो उत्साह वर्धन तो उंनसे भी होता है हाँ वो उत्साह वर्धन औरो को दिखाई नहीं देता , और उत्साह वर्धन को देखकर जो उत्साह वर्धन मिलता है शायद वो उत्साह वर्धन नहीं मिलता ,,, खैर तिपद्दी नियमित रहेगी इस पोस्ट के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
@खुशदीप भाई,टिप्पणी (दाद)...देने के लिए जबरदस्ती नहीं आना है...पर हाँ अगर अच्छा लगे तो बिना कुछ कहे भी नहीं जाना है.
जवाब देंहटाएंआप भाईजान की बात अलग है...आप बहन का लिखा पढने से कैसे बच पायेंगे.
@प्रवीण जी,
वो उत्साह वर्धन instant नहीं होता,ना...वो तो ऐसा हुआ.....रास्ते में कहीं मिल गए तो कह दिया...नहीं तो भूल गए
एक सही दिशा के लिए तुमने सबकी बातों का सही उपयोग किया है, टिप्पणी से शब्द मचलते हैं.....चाहे वह आलोचनात्मक हो या
जवाब देंहटाएंप्रशंसा में
सच है रश्मि जी.
जवाब देंहटाएंतुम्हारी बात से सहमत हूँ, सही लिखा है, लोग पढ़ लेते हैं और बाद में मेल से तारीफ करेंगे. इससे कोई फायदा नहीं है , अगर पसंद है या नापसंद है तो सबके सामने कहिये. तभी तो पता चलेगा की हमें करना क्या है? हम कहाँ गलत या सही हैं.
जवाब देंहटाएंठीक है, आज से हमारी दोस्ती पक्की। आपने आजतक मेरे ब्लॉग का मुँह नहीं देखा है। मैं भी दुर्भाग्य वश आज ही टिप्पणी कर रहा हूँ। आगे से हम एक दूसरे को टिपियाते रहेंगे। पक्का वादा है। धन्यवाद। :)
जवाब देंहटाएं(http://satyarthmitra.blogspot.com) सत्यार्थमित्र पर आइए, स्वागत है।
रश्मिजी
जवाब देंहटाएंटिप्पणी तो सभी चाहते है पार ये बात और है कि कोई साफ मांग लेता है और कोई दबे छुपे |पर आपने जगजीतसिंह जी का सन्दर्भ देकर सभी ब्लोगर के मन कि बात कहा दी |
कवि को न ही फूल, और न फूलो का हार चाहिए
उन्हें तो केवल तालियों कि बौछार चाहिए |
वैसे ही ब्लागर को टिप्पणियों का ही संसार चाहिए |
एक बार् बशीर बद्र साहब ने एक मुशायरे में यह किस्सा सुनाया कि एक शायर की गज़ल पढ रहे थे उनकी गज़ल पर कोई दाद नही दे रहा था तब उन्होने कहा भाई दाद दीजिये कुछ वाह वाह कीजिये तब एक श्रोता खड़ा हुआ और कहने लगा ,,आप तो गज़ल पढिये साहब .. गज़ल होगी तो दाद खुद ले लेगी ।
जवाब देंहटाएंयहां तो लोग मुक्त हस्त टिप्पणियां दे रहे हैं। जब मैने ब्लॉगिंग प्रारम्भ की थी हिन्दी में तो गिनती की टिप्पणियां थीं और कदम कदम पर चौधराहट जताने वाले।
जवाब देंहटाएंआप तो भाग्यशाली हैं, और अत्यंत स्तरीय!
फिर भी ब्लॉग कण्टेण्ट पर सदैव प्रयोग धर्मी होना चाहिये। और यह मात्र लेखन की विधा नहीं है। सम्प्रेषण के अनेक आयाम हैं।
हमारी इस टिप्पणी को पिछली 29 टिप्पणियों के बराबर माना जाय। :)
जवाब देंहटाएंचचा को भले न लगा हो लेकिन हमें तो लगा है कि यह पोस्ट एक प्रयोगधर्मी पोस्ट है:
ब्लॉग पोस्ट + जगजीत सिंह + प्रस्तुति(उत्प्रेरक) -> ढेर सारी टिप्पणियाँ।
अब तक => 58 तो हो ही गई हैं।
जय हिन्द। संक्रांति की शुभकामनाएँ।
रश्मि तुम्हारी हर बात से सहम्त इसका मतलव ये हुया कि तुम्हें मेरा लिखा पसन्द नहीम आता नही तो तुम जरूर टिप्पनी देती मुझे भी । चलो मुझे तो बहुत अच्छा लगता है तुम्हारा लिखा। बोलो कितनी तिप्पनी दूं अपनी बेटी को? जगजीत सिंह जी वाली बात बिलकुल सही है हमे तो टिप्पणी से बहुत ऊर्जा मिलती है। आशीर्वाद इसी तरह लिखती रहो
जवाब देंहटाएंटिप्प्णी नहीं देते तो क्या पढ़ते तो हैं...इतना ही काफी है। जो देदें उनका भला...
जवाब देंहटाएंआपने सवाल सही उठाया है.
जवाब देंहटाएंदिक्क़त तो तब हो जाति है, जब कोई बिना पोस्ट के पढ़े फ़िज़ूल के कमेन्ट कर जाता है, जिसका उस पोस्ट से कोई सिरा नहीं मिलता.
मैं झूठ की तुरपाई भी पसंद नहीं करता.ये चीज़ें रचनाकार को मार देती हैं.वैचारिक-मतभेद मुमकिन है.लेकिन लोग तर्क-कुतर्क में समय बर्बाद कर देते हैं.यदि सार्थक वाद-विवाद हो तो कई चीज़ें अच्छी भी निकल आ जा ती हैं.
मैं तो डर गया।
जवाब देंहटाएंफुरसत से आ कर टिप्पणी करूँगा, अभी तो भाग रहा अपने ऑफिस
आज वाले लेख से यहाँ। बस जगजीत सिंह वाली बात पढ़ने के लिए। पढ़ भी लिया। जा रहा हूँ। बेहतर लिखा जगजीत सिंह पर…
जवाब देंहटाएं