गुरुवार, 7 जुलाई 2011

हाय!! मेरी आधा किलो भिन्डी :(

जैसा कि मैने पिछली पोस्ट में जिक्र किया था....एक शाम एक फोन आया कि "हम एक न्यूज़ चैनल से बोल  रहे हैं...गैस सिलेंडर की बढ़ी हुई कीमत पर आपकी प्रतिक्रिया चाहिए...कल आपके घर आ  जाएँ, आपके विचार जानने ?"....ऐसे अचानक किसी को भी फोन आए तो उसे उलझन होगी..मुझे भी हुई...और मैने असमर्थता जता दी...कि "मैं तो सिलेंडर इस्तेमाल ही नहीं करती...हमारे यहाँ...गैस की पाईपलाइन है....कैसे अपनी प्रतिक्रिया दूंगी.??"

उधर से स्वर में अतिशय विनम्रता घोल,  फोन करने वाले ने  कहा, " गैस के दाम बढ़ने से, गैस पाइप  लाइन के भी चार्ज बढ़ जाएंगे...उसके बिल पर भी असर पड़ेगा....आप अपने विचार बताइए" एक तो मुंबई में रहकर कान विनम्र स्वर सुनने के आदी  नहीं रहे...समय लगता है प्रकृतस्थ  होने में. एक बार यूँ ही एक फ्रेंड को अल्मोड़ा में फोन किया था और उसकी माता जी ने प्यार से कहा.." वो तो घर पर नहीं है...आपका शुभनाम बेटे " मैं एक  मिनट को कुछ बोल ही नहीं पायी...

यहाँ तो कहेंगे.."आप कौन?" अंग्रेजी में तो लगता है...डांट ही रहे हों.."हूss इज  दिस?"

मैने भी स्वर थोड़ा नम्र किया और पूछा, "आपको मेरा नंबर कहाँ से मिला?" क्यूंकि तब पतिदेव टी.वी. चैनल की नौकरी  छोड़ चुके थे...वैसे भी किसी चैनल में काम करने वालों के परिवार वाले इस तरह, कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले सकते. उसके ये कहने पर मेरे बॉस  ने दिया है..मैने उसके बॉस से बात की...और वे एक दूर के रिश्तेदार निकले. कहने लगे.."एक हफ्ते पहले ही मुंबई ट्रांसफर हुआ है...किसी गृहणी की प्रतिक्रिया लेनी थी...मैं और किसी को जानता नहीं..इसलिए आपका नंबर दे दिया"

 मैने उनसे भी अपनी मजबूरी जताई, " हमारे यहाँ तो गैस की पाईपलाइन है....गैस का सिलेंडर हम नहीं लेते तो कैसे अपनी प्रतिक्रिया दें? "
और उन्होंने भी वही कहा जो उनके असिस्टेंट ने कहा था.

"ठीक है..पर पहले इनसे पूछ लूँ..." (ऐसे समय आदर्श भारतीय  नारी का अवतार धारण करना बड़ा काम आता है )....मुझे पूरी उम्मीद थी कि नवनीत मना कर देंगे क्यूंकि टी.वी.चैनल में उनकी जॉब के दौरान बच्चों  को कई बार सीरियल्स में काम करने के ऑफर मिले थे...पर उनके पिताश्री ने तो सख्ती से मना कर ही दिया था...मुझे भी  मंज़ूर नहीं था . अक्सर देखा है...जिसने भी बचपन में एक बार कैमरे का सामना  किया...उसके जीवन का लक्ष्य फिर 'स्टार' बनना ही रह जाता है. बाल-कलाकार  किन हालातों में काम करते हैं...यह भी बहुत ही करीब से जाना है. एक अवार्ड शो में छोटे बच्चों के नृत्य का कार्यक्रम था और रात के एक बजे 7,8 साल के बच्चे भारी पोशाक और जेवर  से लदे उनींदे से ग्रीन रूम के बाहर पतले से कॉरिडोर में अपनी बारी का इंतज़ार करते फर्श पर बैठे  हुए थे.
एक बार एक रोचक बात हुई...एक सीरियल निर्माता ने लैंडलाइन पर फोन किया..मेरे बेटे ने उठाया ..उन्होंने बेटे से नाम  पूछा...थोड़ी बात की..और कहा.."मेरे सीरियल में काम करोगे?"  उसने मासूमियत से कहा, "पर मैं तो स्कूल जाता हूँ"

हालांकि यहाँ सिचुएशन अलग थी पर मुझे लगा कि नवनीत मना कर देंगे. लेकिन उन्होंने कहा.."इसमें क्या है...आने दो..घर पर"

लेकिन हम तो सिलेंडर खरीदते ही नहीं .." मैने पिटा पिटाया जुमला दुहरा दिया..पर पतिदेव का तर्क अलग था, "इतने ध्यान से कौन देखता है...उसे जरूरत है...आ जाने दो"

उस लड़के ने अपना नंबर दिया था...कि निर्णय ले लूँ तो कॉल बैक करूँ...पर मैने नहीं किया....सोचा..शायद उसे कोई और मिल जाए तो अच्छा....जब सामने पड़ जाए तो ये सब एक झंझट सा ही लगता है (मुझे तो लगा था )

 

पर रात के ग्यारह बजे उसका फोन आया और मैने 'हाँ' कर दी. अब, जब उसने कहा..."सुबह नौ बजे आ जाऊं??" तो मैं बुरी तरह घबरा गयी और  एकदम से ना कर दी...फिर बात को थोड़ा संभाला, "सुबह बहुत काम होता है..आप एक बजे तक आ जाइए. उसने अपनी मजबूरी जताई..." हमें न्यूज़ तैयार कर दिल्ली भेजना  होता है...ग्यारह बजे तक आऊंगा  "

किसी भी महिला को जब किसी के आगमन की खबर मिलती है..तो उसका दिमाग कई मोर्चो पर एकसाथ सक्रिय हो जाता है...कमरा  ठीक करना है..सुबह जल्दी से किचन का काम निबटाना है...कहीं कामवाली आने में देर ना कर दे...और इसके ऊपर , यहाँ क्या  बोलना है...ये भी सोचना था.

 

उसने कहा था...बच्चों से भी  बात करेगा क्यूंकि बजट का असर उनके पॉकेट मनी पर भी तो पड़ेगा (ये उसका तर्क था ) पर बच्चे तो सो चुके थे...छुट्टियाँ चल रही थीं..उन्हें भी सुबह जल्दी उठा कर तैयार होने को कहना पड़ेगा. उसने तो पतिदेव के लिए भी  कहा था,"सर भी रहते तो अच्छा था..." पर इन्होने एकदम से कन्नी काट ली..कि "मुझे जल्दी ऑफिस जाना है "(राम जाने, सच या झूठ )

सुबह तो, मैं जैसे मशीन ही बनी हुई थी...बच्चों को भी बता दिया...और कह दिया..तुमलोग खुद सोच लो..क्या कहना होगा अब मेरे पास टाइम नहीं है...कोई सलाह देने के लिए .
शुक्र था, सारे काम ग्यारह बजे तक ख़त्म हो गए और ठीक ग्यारह बजे, मेरे फ़्लैट की घंटी बजी.

कैमरामैन के साथ एक जाना-पहचान चेहरा था {अब नाम नहीं याद } पहले तो वे लोग कैमरे का एंगल देखते रहे...किधर से लेना है..कैसे लेना है...फिर मुझसे कहा, आप कुछ सब्जी काटते रहिए...उसी दरम्यान आपसे सवाल पूछेंगे. शुक्र था फ्रिज में भिन्डी पड़ी हुई थी,वर्ना लौकी काटना कुछ अजीब लगता ....मैं  थोड़ी सी भिन्डी ले आई...और उसने अपने अंदाज़ में पहले तो कहा..."आज हम रश्मि जी के  घर पर हैं..आइये इनसे जाने कि सिलेंडर के दाम बढ़ जाने से इनके घर के बजट पर क्या असर पड़ेगा ?? आदि....आदि.."....

और मैं शुरू हो गयी..."गैस के दाम  बढ़ने से बहुत कुछ सोचना पड़ेगा...रोज़ स्वीट डिश बनती  थी. अब हफ्ते में एक बार ही बनानी पड़ेगी ...मेहमानों को बुलाने के पहले सौ बार सोचेंगे....पत्ते वाली सब्जी भले ही गुणकारी हो..पर ज्यादा गैस खर्च होती है इसलिए अब नहीं बना सकूंगी..वगैरह...वगैरह..."


पर कैमरामैन ने कहा...ये एंगल ठीक नहीं था...फिर से बोलिए...उसके बाद ये सिलसिला चलता रहा...कभी एंकर ज्यादा झुक जाए...कभी कोई तार फंस जाए...कभी..मेरी भिन्डी फोकस में नहीं आए...और रिटेक होते रहे. इस 4-5 लाइन के लिए 9 रिटेक हुए. और अब समझ में आया कि जब हम सुनते हैं...'किसी फिल्म के फलां सीन के लिए इतने रिटेक हुए तो यही लगता है...कलाकार ने अच्छी एक्टिंग नहीं की...पर कई बार रिटेक के कई अलग-अलग  कारण ही होते हैं.


बस बुरा ये हुआ कि इस चक्कर में मेरी आधा किलो  भिन्डी कट गयी....और भिन्डी  हमेशा धोकर काटी जाती है {कितने पुरुष ब्लोगर्स को ये पता है?
} जबकि मैं तो यूँ ही फ़िज़ में से निकाल कर ले आ रही थी..लिहाज़ा सारी कटी हुई भिन्डी फेंकनी पड़ी
अब बच्चों की बारी थी....बच्चे तो पैदाइशी  अभिनेता होते हैं..मैं तो उनके उत्तर सुनकर हैरान रह गयी. बड़े बेटे ने कहा, " मैं 'बस' से कोचिंग क्लास जाता हूँ...पहले 'बस' आने में देर होती थी तो ऑटो-रिक्शा से आ जाता था. अब तो कितनी भी देर हो, 'बस' का ही इंतज़ार करना पड़ेगा. "

छोटे बेटे ने कहा, "पहले मैं पॉकेट  मनी से पैसे बचाकर शटल कॉक खरीद लेता था...पर अब पॉकेट मनी कम मिलेगी तो शटल कॉक नहीं खरीद पाऊंगा..टूटे हुए शटल कॉक से ही खेलना पड़ेगा "

इनलोगों के भी कई रिटेक हुए..और आखिरकार ढाई  बजे शूटिंग संपन्न हुई.

एक घंटे बाद स्टूडियो से उन रिश्तेदार सुरेश (नाम बदल हुआ है ) का फोन आया..."आपने तो बहुत अच्छा बोला है...अक्सर हाउस वाइव्स बोलने में अटक जाती हैं...हमें एक वाक्य पूरा करने को कॉपी पेस्ट करना पड़ता है".

 मैने कहा, 'शायद मुझे भूल  गए हैं..एक बार बोलना शुरू करूँ..तो फिर बस एडिटिंग का ही चांस बचता है   { इस ब्लॉग के पाठक भी यह बात बखूबी जानते होंगे } किसी ने मेरे लिए लिख भी दिया था..जाने किस खदान से बातें खोद कर लाती है और हम पर उड़ेलती  रहती है   how true 
 

हमेशा की तरह रिश्तेदारों - दोस्तों को  फोन मिला दिया सबने देखा  और फिर उलाहने भी दिए...'ठीक है बाबा...इतना मत सोचो...नहीं आएँगे तुम्हारे घर "
 

{ ये सब बातें..इसलिए लिख दीं...क्यूंकि ये कोई रहस्य नहीं है..सबको अंदाज़ा है कि टी.वी. पर अक्सर ऐसा दिखाते रहते हैं...)

58 टिप्‍पणियां:

  1. हे भगवान ! रश्मि कितना बोलती है बिना साँस लिए.... पढते पढते लगता है जैसे सुन रहे हों लगातार....:)

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  2. अरे कोई नहीं, सिलेंडर नहीं है तो क्या हुआ गैस तो महँगी हो ही गई है,

    काश कभी समझ में आती कि ऑफ़िस जल्दी जाना और लेट आना शौकिया शगल नहीं है, बहुत काम करना पड़ता है,

    हमें तो पक्का पता है कि भिंडी धोना होती है :) आखिर अच्छे कुक जो ठहरे, अब खुद को तो अच्छा ही कहेंगे ना :)

    बेचारी आधा किलो भिन्डी शहीद हो गई वो भी इस महँगाई में :(

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  3. @..और भिन्डी हमेशा धोकर काटी जाती है {कितने पुरुष ब्लोगर्स को ये पता है? }

    मुझे पता है ..मुझे पता है....मुझे पता है.....मुझे पता है :))

    @किसी ने मेरे लिए लिख भी दिया था..जाने किस खदान से बातें खोद कर लाती है और हम पर उड़ेलती रहती है

    बात तो सही है :) बाकी पढने में मजा तो आता है :)

    शक हो रहा है कहीं ये पोस्ट सच में ब्लोगर्स को घर आने से रोकने के उदेश्य से तो नहीं बनायी है

    @ ठीक है दीदी ...इतना मत सोचिये ...नहीं आएँगे आपके घर :)

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  4. सार्थक.जभी तो कहा जाता है इस ब्लॉग कि पोस्ट को. आपको पढना हमेशा अच्छा लगा है.
    समय हो तो युवतर कवयित्री संध्या की कवितायें. हमज़बान पर पढ़ें.अपनी राय देकर रचनाकार का उत्साह बढ़ाना हरगिज़ न भूलें.
    http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_06.html

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  5. @ गौरव,
    अरे बाबा लिख तो दिया है..कि जबरदस्ती कहना पड़ा...:(
    अब और कुछ नहीं कहूँगी..नहीं तो कहोगे पोस्ट तो पोस्ट...टिप्पणी में भी इतना बोलती है...:)

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  6. शीर्षक भिंडी का और बात सिलेंडर की।
    मस्त बतकही पढने मिली।

    हा हा हा
    आभार

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  7. kab ye sab bol gai aap... achha hua maine nahin dekha, padhker bhul bhi gai- kuch bhi ho jaye main milungi zarur aur wahi khaaungi, jisme gas adhik lage ....

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  8. रश्मि जी!
    शुरू से शुरू करूँ.. टेलीफोन पर "हूँ इज दिस" वाकई बड़ा असभ्य सा लगता है.. उसकी जगह उतने ही मिठास के साथ कहा जा सकता है, "मे आई नो हूँ इज ऑन लाइन प्लीज़!" दरअसल क्या कहा जा रहा है यह ज़रूरी नहीं, कैसे कहा जा रहा है वो ज़रूरी होता है.
    बाद की घटना पढने पर तो लगा जैसे कि आपने सांस लेने की भी जगह नहीं छोड़ी है. एक बात सही कही आपने कि "जिसने भी बचपन में एक बार कैमरे का सामना किया...उसके जीवन का लक्ष्य फिर 'स्टार' बनना ही रह जाता है."
    बस इसके आगे कहना चाहूंगा कि उनका लक्ष्य भी उनसे छूट जाता है.. डेज़ी/हनी ईरानी, सचिन, सारिका, मास्टर राजू (नॅशनल अवार्ड विनर बाल कलाकार), जूनियर महमूद वगैरह!!
    मज़ा आया भिन्डी का किस्सा सुनकर, और रीटेक ने तो आपको स्टार बना दिया!
    आपने गुस्से में पैक-अप तो नहीं कहा ना उनको?? :-)

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  9. तू कहता ब्‍लाग पर लेखी, मैं कहता टीवी पर देखी.

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  10. हां यह बात तो सही है पता नहीं कहां कहां से ले आती है और हम पर उडैल देती है। वहीं कैमरे पर सात बार उडैला।:)

    और शेखी मत बघारिए,पुरूषों को कमतर मत न आंकिए। विवेक जी और गौरव जी के बाद मैं तीसरा पुरूष हूँ जिसे पता है भिंडी को काटने के पहले धोना जरूरी है। बादमें धोने पर वह चिपचिपी सी हो जाती है। :)

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  11. @सलिल जी,
    मुंबई वालों के पास इतना वक्त कहाँ है...कोई ये कह दे "मे आई नो हूँ इज ऑन लाइन प्लीज़!" तो अगला घबरा कर फोन रख देगा कि किसी कम्पनी के कस्टमर केयर वालों को फोन लग गया है :):)

    और रिटेक तो हुए पर हम कहाँ के स्टार :(....वैसे भी पैकअप कहने का हक़ तो डायरेक्टर का ही होता है..:)..स्टार गुस्से में सेट छोड़ कर चले जाते हैं...हम स्टार भी नहीं थे और जाते भी कहाँ.... 'घर तो हमारा ही था " हा हा

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  12. सच में ............ बिना सांस लिए कितना कुछ बता गईं आप तो.... मेरे तो कान में अभी भी सब इको हो रहा है......

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  13. हाय रे रश्मि कितना बोलती है...
    यह आज पहली बार जाना, उन्होंनें असलियत में आपकी भिन्डी का भिन्डी कर दिया । अय हय..., चित्र के अनुसार तो बहुत ही सुघढ़ काटा है..

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  14. भिन्डियाँ फेंक तो नहीं दी,
    वैसे साफ महीन कपड़े से पोंछ कर यह भिन्डियाँ माइक्रोवेव में पकायी जा सकती हैं, कीटाणुरहित होने की गारँटी !
    अहाहा, आपने भिन्डी टकटका या साबुत भिन्डी बनाने का अवसर ही गँवा दिया ।

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  15. मैं तो बज्ज पे शीर्षक देखते ही समझ गया था की मजेदार पोस्ट होगी ये :)

    चलिए आपको स्टार बनाने में आधा किलो भिन्डी का भी तो बहुत बड़ा योगदान रहा :)

    वैसे,
    "भिन्डी हमेशा धोकर काटी जाती है {कितने पुरुष ब्लोगर्स को ये पता है?"

    - मुझे पता है....:) :)

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  16. @अमर जी,
    चित्र गूगल से साभार है...
    उस समय थोड़े ही पता था...कि कभी ये सब लिख भी डालूंगी...वर्ना शायद एक फोटो तो ले ही लेती.:)
    (पर भिन्डी , मैं सुघड़ ही काटती हूँ..:))

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  17. @किसी भी महिला को जब किसी के आगमन की खबर मिलती है..तो उसका दिमाग कई मोर्चो पर एकसाथ सक्रिय हो जाता है.
    बिल्कुल सही कहा आप ने इधर फोन पर कोई पूछ रहा होता है की कितने बजे घर आ जाऊ बस मन और दिमाग लग जाते है अपनी दौड़ में और आने वाले कल का पुरा कार्यक्रम आँखों के सामने आ जाता है या ये कहिये की एक दिन पहले ही हम उस कल को जी लेते है :))
    वैसे ये बात तो अब वैज्ञानिक भी मानते है की एक साथ कई काम करने की कुशलता तो सिर्फ महिलाओ में ही होती है |

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  18. मुम्बईया हिन्दी और शिष्ट हिन्दी में वही फर्क है जो अमरीकन इंग्लिश और ब्रिटिशन इंग्लिश में है। अमरीकी हर लफ्ज को अपनी सुविधानुसार कट शार्ट कर देते हैं और मुम्बईया भी कुछ उसी रौ में होते हैं। ज्यादा शिष्टता से बोला जायगा तो मुम्बई वाला सामने वाले को येड़ा समझेगा :)

    मस्त पोस्ट।मुम्बईया हिन्दी और शिष्ट हिन्दी में वही फर्क है जो अमरीकन इंग्लिश और ब्रिटिशन इंग्लिश में है। अमरीकी हर लफ्ज को अपनी सुविधानुसार कट शार्ट कर देते हैं और मुम्बईया भी कुछ उसी रौ में होते हैं। ज्यादा शिष्टता से बोला जायगा तो मुम्बई वाला सामने वाले को येड़ा समझेगा :)

    मस्त पोस्ट।

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  19. @ अमर जी,
    अहाहा, आपने भिन्डी टकटका या साबुत भिन्डी बनाने का अवसर ही गँवा दिया ।

    यहाँ तो एक से बढ़कर एक कुक हैं...हम महिलाओं की खैर नहीं अब....:(:(

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  20. कितना बोलती हो...बुलाया आधा किलो भिन्डी बता कर और सुना डाला गैस सिलेन्डर पुराण....खैर, मेहमानों को तो अब बुलाना है नहीं...तो इतना मत सोचो...नहीं आएँगे तुम्हारे घर ....:)

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  21. हा हा ... सीलेन्डर और भिन्डी...मज़ा आ गया पढ़ के :D

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  22. अरे बाप रे...
    मज़ा आया पढके...और वो भिन्डी वाली बात..मुझे पता है ..मुझे पता है.... :)
    और हाँ हम तो बहुत जिद्दी हैं आयेंगे ही आयेंगे आपके घर जब भी मौका मिला तो.... :)

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  23. बहुत बढ़िया लिखा है अपने मुझे भी लिखने का यही तरीका पसंद है की की पढ़ने वाले को ऐसा लगना चाहिए की आप से बात हो रही है न की वो कोई लेख पढ़ रहा है। सार्थक पोस्ट के लिए आप का आभार कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर आए शायद आप को भी अपना पैन लगे best wishes एवं धन्यवाद...

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  24. भिंडी तो कच्ची ही कचर-कचर खाने में जमती है :)

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  25. क्या पोस्ट है,क्या इस पर टिप्पणियाँ हैं.
    इसमें तो'भिंडियां' हीरोइनें बन गई हैं.
    हर रीटेक में कटती हुई.

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  26. इतने रिटेक वाली प्रतिक्रिया :) पर क्या प्रतिक्रिया दी जाए? :) :) :)

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  27. बोलना तो बोलना
    लिखना उससे भी अच्‍छा
    यही तो खास है
    इसलिए चैनल पर
    और प्रिंट मीडिया में
    इनका ही बज रहा साज है

    साज में भिंडी है
    सिलैंडर नहीं है
    उसकी पाईप लाईन है
    हमारे यहां पाईप
    लाईन आए तो
    सिलैंडर से
    मिल जाए मुक्ति
    कौन बतलाएगा युक्ति

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  28. 'ठीक है बाबा...इतना मत सोचो...नहीं आएँगे तुम्हारे घर "

    जय हिंद...

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  29. ज्यादा बोलने के चक्कर में अंगुलियाँ तो नहीं कटवा ली कहीं ...
    टेलीविजन पर सबकुछ बनावटी ही दिखाया जाता है , कन्फर्म ही कर दिया तुमने ...बेचारे अगली बार वार्निग देकर आयेंगे कि उनके बारे में कुछ नहीं लिखेंगी आप !
    रोचक शैली ,रोचक अंदाज़ ...

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  30. थोडा और भी न कुछ कुछ ब्रैकेट में लिखना था ....ब्रैकेट वाला बहुत भाया ..
    पुरुष ब्लागरों के लिए सचमुच जाकारीपूर्ण रोचक संस्मरण -भिन्डी को काटने के बाद धो लेना था ..मैं तो कदापि न फेकूं!
    यी बताईये क्या सचमुच महंगाई ने आपको घेर लिया है ....?
    शूटिंग टीम को चाय वे पिलाया था या नहीं !

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  31. चिन्ताओं की इतनी लकीरें छोड़ दी हैं, काश दाम न ही बढ़ाते तो अच्छा था।

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  32. .
    .
    .
    सबकी खबर लेने व देने का दावा करते यह चैनल वाले उस तक पहुंचने की तो जहमत तक नहीं उठा रहे जिस पर गैस सिलेंडर के दाम बढ़ने का वाकई फर्क पड़ा है... एक विडंबना को जाहिर किया है आपने... :(

    जब कॉलेज में पढ़ता था तो नागालैंड के एक मित्र के साथ रहते भिंडी उबाल कर बनाना-खाना सीखा था... उसमें भिंडी काटने के बाद धोने पर भी प्रयोग हो सकती है... फिर एक दो बार मठ्ठे ( Buttermilk ) में उबली भिंडियाँ भी खाईं कुछ घरों में... भिन्न स्वाद के लिये थोड़ा सा सहिष्णु होना होता है... पर दोनों ही तरीकों से पकी भिन्डी भी मुझे तो अच्छी ही लगती है... आप को यह पता होता तो आपकी आधा किलो भिन्डी फेंकी नहीं जाती... :)


    ...

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  33. पूरी आधा किलो भिन्डी फेंकनी पड़ी, बड़ी ना इंसाफी है। हमारी पसंदीदा सब्जी है!

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  34. मीनाक्षी जी के कमेंट का सहारा लूंगा, सचमुच आपकी रचना पढते हुए ऐसे लगता है कि जैसे आप सामने बैठकर सारी घटना सुनाती जा रही हैं।

    ------
    जादुई चिकित्‍सा !
    ब्‍लॉग समीक्षा की 23वीं कड़ी...।

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  35. 1 विनम्र हिंदी से मुंबई वाले क्या बाकी शहर वाले भी सोच में पड़ जाते हैं।
    2 आदर्श भारतीय नारी का अवतार धारण करना अक्सर बड़ा काम आता है
    3 जाना-पहचान चेहरा उस पर नाम नहीं?
    4 भिन्डी क्या, हर सब्जी धो कर काटी जाती है, पता है
    5 खदान खोद कर लाई बातों से सराबोर होएन का मौका मिला है हमें भी

    हाय! आधा किलो भिन्डी

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  36. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.07.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  37. आप तो सब्ज बाग दिखा गईं इस ब्लॉग पर इस पोस्ट के द्वारा। पता नहीं कब फिर से शूटिंग-वूटिंग देखने का मौक़ा मिलेगा।

    आपकी पिछली पोस्ट में पहली बार शूटिंग देखने का अनुभव बताया तो था।

    इस बार दूसरा वाकया शेयर कर लूं जब हम गए थे कौन बनेगा करोड़पति के सेट पर। अहा! क्या नज़ारा था, अमिताभ को जी भर देखने का अवसर मिला। आप बोलती हैं रिटेक से बोर हो जाने की बात, हम तो सोचते थे कि ये ग़लती करे और रिटेक हो, पर वो तो अमिताभ है। एक टेक में पूरे एक घंटे का एपिसोड कर कर गया। ... और हमें सेट से चले आना पड़ा।

    **(अब भी शूटिंग देखने का कोई जुगाड़ है तो बताइए!)

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  38. शहीद हुई लेडीफ़िंगरों के साथ हमें सहानुभूति है।

    प्रवीण जी और डाक्टर साहब की टिप्स आगामी एनकाऊंटर्स में यकीनन कारगर सिद्ध होंगी:)

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  39. एकदम से शानदार!
    @भिन्डी हमेशा धोकर काटी जाती है {कितने पुरुष ब्लोगर्स को ये पता है?}
    मुझे कुछ तो पता है कम से कम :)

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  40. लो जी आपने आधा किलो भिन्‍डी शीर्षक क्‍या रख दिया, यहां तो भिन्‍डी बाजार ही लग गया। सिलेंडर और गैस की बात तो गई चूल्‍हे में। और भिन्‍डी धोने की कौन कहे,अपन तो भिन्‍डी खरीदते ही पहला काम एक भिन्‍डी मुंह में डालकर कचर कचर करने लगते हैं।
    *
    और फोन पर हू इज दिस ही नहीं,सामने वाला जानता है तो अंग्रेजी में कहता है टेल मी। ऐसे में लगता है जैसे कह रहा हो बकिए। असल में तो यह भाषा भाषा का फर्क ही है।
    *
    बहरहाल हम भी यही कहेंगे कि मजा आ गया।
    *
    आप कुछ भी कहिए। हम तो आपके घर जरूर आएंगे।

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  41. रश्मि जी आपके संस्मरण और भिन्डी की कहानी पढ़ कर अच्छा लगा... लेकिन जब मेरे मित्र बढ़िया बाईट के लिए भटकते हैं तो मुझे अजीब लगता है... उन्हें दिखने के लिए सब कुछ सुन्दर चाहिए... महगाई दिखाने के लिए स्मार्ट किचेन.... स्मार्ट हाउस वाइफ....सब प्रायोजित नहीं लगता क्या.... इस लिए विश्वसनीयता घट रही है या कहिये ख़त्म हो रही है न्यूज़ चैनलों की.... जहाँ महंगाई वास्तव में कहर ढ़ा रही है वहां तो ये न्यूज़ चैनल के पत्रकार ही नहीं हैं..... खैर...आपकी भिन्डी सेलिब्रिटी हो गई....

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  42. बहुत बढ़िया ...रोचक किस्सा बन पड़ा यह तो..... हाय रे आधा किलो भिन्डी....

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  43. kya baat hain aap tv par aain aur hamein pataa bhi na chalaa, pahle se batana chahiye tha na bhalaa.... tv to apan dekhte hi hai actualy.... bas aapka blog padh kar hi khush ho late hain...

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  44. चार छह बार इस पोस्‍ट को पढने के लिए क्लिक किया .. पर कुछ न कुछ कारण ऐसे बनते गए कि सारे टैब एक साथ बंद हो गए .. शुक्र है बज्‍ज पर आयी एक नई टिप्‍पणी का .. जिसने इसे फिर से नजरों के सामने ला दिया और आज पढ पायी .. अच्‍छी लगी आपकी ये पोस्‍ट .. वैसे पहले की तुलना में आज की लौकी और भिण्‍डी में इतना पानी नहीं होता कि काटने के बाद धोकर न बनाने में परेशानी हो .. विटामिन अवश्‍य कुछ नष्‍ट हो जाएंगे .. पर सारी सब्‍जी बर्वाद नहीं होगी .. वैसे मेरी बात को मानकर एक प्रयोग करके फिर से आधा किलो भिंडी बर्वाद न करें :)

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  45. ओये मैडम हमे भी बता देती हम भी देख लेते टी वी पर ……………कितना बोलती हो? ऐसे ही बोलती रहा करो हम ज्यादा नही बस शोले के अमिताभ बन जायेंगे…………हा हा हा

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  46. " एक तो मुंबई में रहकर कान विनम्र स्वर सुनने के आदी नहीं रहे... " - ऐसा है क्या ? यह बताइए - क्या यह पोस्ट जीमेल कम्पोज़ बॉक्स में से कॉपी पेस्ट की है ? क्योंकि हिंदी तो ब्लॉगर में चल ही नहीं रही इन दिनों ? :) - वैसे पुरुष ब्लोगर्स को यह भी बता दें लगे हाथ कि - भिन्डी धो कर और फिर पोछ कर और सुखा कर पोंछें - नहीं तो फिर हाथ चिपचिपायेंगे - तो आपको ब्लेम लगेगा :)

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  47. ये तो एकदम गलत बात है बुलाया आधा किलो भिंडी लिखकर और पढ़वा दिया गैस पुराण :-)

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  48. बेहतरीन संस्मरण रश्मि जी ! हाँ शूटिंग के चक्कर में आधा किलो भिन्डी की कुर्बानी हमें भी अखर गयी ! वैसे आपके साथ ऐसे सुखद हादसे अक्सर होते रहते हैं यह खुशी की बात है और उससे भी अधिक प्रसन्नता की बात यह है कि आप उदारतापूर्वक उन्हें हम सबके साथ शेयर करती हैं ताकि हम भी उस आनंद को जी सकें ! आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद !

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  49. सबसे पहले ...भिन्डी धो के काटी जाती मुझे पता है ... वैसे सब को पता होगा ...(आज कल पति सारे काम करते हैं)... और गैस के रेत बढ़ने वाला प्रोग्राम तो मैंने भी देखा था ... आप नज़र नई आई ... आपने भिन्डी का बिल भेज देना था टी वी वालों को ...

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  50. आपने एक सांस में पोस्‍ट उड़ेली और हमने एक सांस में पढ़ भी डाली। हंसकर लोट पोट हो गए।

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  51. हाहाहाहाहाहाहाहाहाहा
    मजा आ गया और भिंडी ज्ञान भी हो गया।
    दोबारा कभी टीवी पर आना तो हमें भी एक मैसेज कर देना।

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  52. मस्त-मस्त-मस्त पोस्ट. मज़ा आ गया. कई दिनों बाद जी भर के हंसी :( वैसे दो महीने बाद ब्लॉग देखने का भी समय मिल पाया है :(
    तुम्हारी पोस्ट से मुझे अपनी रिकॉर्डिंग याद आ गई. दो साल पहले मई में मैं पटना जा रही थी, ट्रेन शाम को सात बजे थी. यहां ईटीवी म.प्र. का जो संवाददाता है उसके ऐसे ही विनम्र आग्रह को मैंने बहुत टालने की कोशिश की लेकिन अनतत: मानना पड़ा. लेकिन जब शाम को पांच बजे मेरी बिटिया ने बताया कि वो ईटीवी वाले आये हैं, और मैं ड्राइंगरूम में आई तो देखा वहां ७-८ लोग बैठे हैं खैर मैं सोफ़े पर बैठ गई मामला यहां की एक महिला नेत्री का था, जो बंदूक ले के चलती हैं, उन पर बोलना था. मेरे बैठते हे अचानक तीन कैमरे मेरे सामने स्टैंड पर लगाये जाने लगे. जिनमें एक सहारा और दूसरा स्टार न्यूज़ का था, ईटीवी के अलावा. मैने आपत्ति जताई तो उन्होंने बड़ी दयनीयता से कहा- आपको क्या? हम तीनों एक साथ रिकॉर्ड करेंगे. इस रिकॉर्डिंग में भी पूरा एक घंटा लग गया. वो तो मेरी ट्रेन थी, वरना और भी वक्त लगता :)
    लो पोस्ट पर पोस्ट. :):)

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  53. रश्मि, कितना ज्यादा बोलती हो, अरे टी वी पर आने का चांस मिला और तुम आधा किलो भिन्डी को रो रही हो,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  54. भिंडी कब तक पकती रहेगी??? आगे भी तो कुछ लिखिये...

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  55. बिना सांस लिए कितना कुछ बता गईं आप ***मजेदार पोस्ट ***

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