लखनऊ में बहन की शादी तय होने की खबर सुनते ही ,मैने लखनऊ जाने का प्लान बना लिया था. और लखनऊ जाऊं और महफूज़ से ना मिलूं ये तो मुमकिन ही नहीं. महफूज़ के साथ हुए हादसे के बाद तो मिलने की इच्छा और भी बलवती हो गयी कि अपनी आँखों से देख लूँ..वो बिलकुल ठीक तो है.
पर गिरिजेश राव जी की तरह महफूज़ से भी यही कहा कि शादी की गहमागहमी से फ्री होते ही खबर करती हूँ. शादी संपन्न हो जाने के बाद मेरे पास दो दिन थे. इन्ही दो दिनों में महफूज़ से मिलने की सोच रखा था .पर हुआ यूँ कि बारात वाले दिन मैं अपना मोबाइल चार्ज करना ही भूल गयी. दूसरे दिन बहन की विदाई के बाद बातें करते कब सो गयी पता ही नहीं चला. (दो तीन दिनों से सुबह तीन-चार बजे सोना...और शादी की रात का जागरण तो था ही ) मोबाइल स्विच्ड ऑफ हो चुका था. रात में ख्याल आया तो चार्जर लगाया.
दूसरे दिन सुबह स्विच ऑन करते ही महफूज़ के मेसेज आने शुरू हो गए..."आप कहाँ है?"..."आप लौट तो नहीं गयीं"..."प्लीज़ कॉल मी"...अब जाकर अपनी लापरवाही का अहसास हुआ .उस दिन तो महफूज़ से मिलना था. तुरंत कॉल बैक किया. पता चला, महफूज़ फोन कर-कर के परेशान था और मराठी में रेकॉर्डेड मेसेज सुन और परेशान हो गया कि शायद मैं बिना मिले लौट गयी.(ऐसा भला कैसे हो सकता है ) यह सुन और भी अफ़सोस हुआ कि उसने अपनी बहन आएशा के साथ घर आने का प्लान किया हुआ था. आएशा से भी मिलने का सुनहरा अवसर गँवा दिया था, मैने. आज का दिन तो था पर मेरी शॉपिंग पूरी बाकी थी. चिकन के कुरते...टॉप, सलवार-सूट ,साड़ियों की ढेर सारी खरीदारी करनी थी और शाम की ट्रेन थी. हिचकते हुए महफूज़ से कहा तो उसने कहा ."कोई बात नहीं शॉपिंग ख़तम कर के घर आ जाइए फिर मुझे कॉल करिए .मैं घर पर मिलने आ जाऊँगा." मन ही मन सौ बार थैंक्स कहा उसे.
पर घर से 'अमीनाबाद मार्केट' बहुत दूर था उस पर से घर से निकलने में भी देर हो गयी. शादी के घर से निकलना कितना मुश्किल होता है,सबको आभास होगा...कहीं कोई बहन,मौसी अटैची खोले बैठी होती है..और दूसरी कहती है."जरा ये साड़ी तो देखो..कितनी सुन्दर लग रही है"...वहाँ ठिठकते हुए, आगे बढ़ो..तो कोई जेवर दिखा रहा होता है...कहीं कोई बच्ची प्यारा सा डांस कर रही होती है, दो पल को कदम रुक ही जाते हैं.....दरवाजे से निकलने को ही होते हैं कि कोई काम करनेवाला फरमाइश कर देता है..'जरा किचन से ये निकाल कर दे दो" अब या तो खुद उनका काम कर दो..या किसी को ढूंढ कर सौंप दो...सब पूरा कर बाहर निकलो ..तो कुछ
एक्चुअली मैं शादी में इसमें बिजी थी.. बना बनाया जो मिल रहा था :) |
बुजुर्ग, कुर्सी लगाए बैठे होते हैं..देखते ही आवाज़ देंगे.."जरा देखो तो कब से चाय के लिए कहा था...लाया क्यूँ नहीं अब तक.." अब वापस पूरी दूरी तय कर चाय के लिए ताकीद करने जाओ.. ..आप सोचते हैं,जल्दी से ऑटो ले निकल जाएँ..पर किसी घर वाले की नज़र पड़ जाती है..और वे पीछे पड़ जाते हैं.."अरे इतनी गाड़ियां हैं..ऑटो से क्यूँ जाओगी...अरे जरा उसको बुलाओ..वो नहीं है..तो फलां को बुलाओ."....अब इंतज़ार करो..गाड़ी और ड्राइवर का..तो कहने का अर्थ ये कि इन सब अडचनों को पार करते हुए हमें मार्केट के लिए निकलने में दोपहर हो गयी.
लखनऊ की ट्रैफिक तो सुब्हानल्लाह ...कोई भी किधर से गाड़ी लिए घुसा चला आता है. वैसे ये boasting नहीं है.पर मुंबई जैसी systematic traffic कहीं नहीं है. हैदराबाद जैसे मेट्रो में भी देखा है...कोई extreme right lane से सीधा left turn ले लेता है. राम-राम करके मार्केट पहुंचे...और जल्दी-जल्दी खरीदारी शुरू की. दुकानदार सोच रहें होंगे ,'ऐसे कस्टमर रोज आएँ'. हम चार कुरते देखते और उसमे से दो सेलेक्ट कर लेते. एक नज़र घड़ी पर थी और एक नज़र कपड़ों पर. शो केस में लगी कितनी ही पोशाकें ललचा रही थीं (अभी भी आँखों के सामने घूम रही हैं :( ) पर समय की कमी के कारण उन्हें ट्राई नहीं कर पायी.
महफूज़ का फोन भी आ रहा था."घर कब पहुँच रही हैं?" पांच बज चुके थे .और घर जाकर सामान पैक कर वापस स्टेशन के लिए निकलना था. पौने आठ की ट्रेन थी. किसी तरह शॉपिंग ख़तम की और ईश्वर से प्रार्थना करते कि कोई ट्रैफिक जैम ना मिले ,घर की तरफ चले.
मेरे आने के कुछ ही देर बाद महफूज़ मियाँ भी अवतरित हो गए...एक सुन्दर सा बुके और मिठाई का पैकेट लिए. उसे बिलकुल स्वस्थ देख, सच बहुत ही ख़ुशी हुई . वही सदाबहार हंसी थी चेहरे पर...किसी अजनबियत की तो कोई गुंजाईश थी ही नहीं. पिछले एक साल में दोस्ती के हर रंग देख लिए हैं. महफूज़ को देखते ही मैने कह दिया.."तुम तो इतने छोटे लगते हो...अभी दो-चार साल शादी ना करो तब भी "मोस्ट एलिजिबल बैचलर" का खिताब कहीं जाने वाला नहीं." ये चॉकलेट,मिठाई, बुके का जिक्र करना मुझे ठीक नहीं लग रहा. पर वे लोंग लाए थे तो कहना तो पड़ेगा ही..वैसे ये सब जरूरी नहीं ..मैने तो उनलोगों को कुछ भी नहीं दिया... बस शादी की मिठाई ही ऑफर की ..वो भी मौसी की दी हुई....और हाँ एक और चीज़ दिया ....वो था...धन्यवाद :).
....और ' शिखा, महफूज़ लाल रंग की टीशर्ट पहन कर नहीं आया था.:) ' मैं और शिखा, महफूज़ के लाल रंग के ऑब्सेशन पर उसकी काफी खिंचाई करते हैं. {पता नहीं, पुरुषों को क्यूँ ये खब्त है कि वे रेड कलर में ज्यादा स्मार्ट दिखते हैं ...अब सारे पाठक अपनी रेड कलर की शर्ट, टी-शर्ट, कुरते याद कर रहें होंगे...आपलोग कॉन्शस मत होइए, बेहिचक पहनिए :)
पर महफूज़ से आराम से बैठकर बात तो हो ही नहीं सकी. कभी मैं भाग कर रिश्तेदारों को विदा करने जाती...कभी समान संभालती..कभी महफूज़ से दो बातें करती...महफूज़ को बड़ा अफ़सोस था, ' मेरे ममी-पापा से नहीं मिल सका' वे स्टेशन के लिए निकल चुके थे. और मुझे अफ़सोस हो रहा था कि वक्त ही नहीं है...जरा
वैसे ,मैने इतना सारा काम भी किया |
आराम से बैठ कर बातें करें. बातों से ज्यादा बस अफ़सोस ही प्रकट होता रहा. एक घंटा कैसे निकल गया पता ही नहीं चला. कैमरा ऊपर ही पड़ा था पर एक फोटो लेने की भी याद नही रही...जबकि इतने भाई-बहन सामने थे..कोई भी खींच देता. बहनों ने मेरे सारे समान एक जगह जुटा दिए थे. पैकिंग भी कर रही थीं. पर एक बार देख कर सब लॉक तो मुझे ही करना था. इधर मौसी की पुकार भी चल रही थी, "कुछ तो खा लो" बड़े बेमन से महफूज़ को विदा कहा. अब अगली बार सब सिस्टमैटिक होगा. मोबाइल चार्ज करना हरगिज़ नहीं भूलूँगी.
महफूज़ से तो घंटे भर की ही मुलाकात थी..पर उसकी लाई स्पेशल मिठाई ,मेरे साथ मुंबई तक आई. गुझिया के आकार की मिठाई जिसकी पूरी पेठे की थी और अंदर खोया और ड्राई फ्रूट्स भरा था..जरूर वहाँ की स्पेशियालिटी होगी क्यूंकि यहाँ मुंबई में नहीं मिलती. ट्रेन में मैने को-पैसेंजर्स को ऑफर किया...तो सब नाम पूछने लगे. अब मुझे तो पता ही नहीं था.(अब भी नहीं पता :( ) अली और अब्बास ने तो बस अंदर का खोया खाया और आउटर कवरिंग को चॉकलेट का रैपर समझते रहें. उनके डैडी ने कितना कहा..'इसे भी खा जाओ...ये खाने की चीज़ है"...पर वे नहीं माने.. रैपर समझ फेंकने ही वाले थे कि डैडी जी ने उदरस्थ कर लिया.
अपनी सहेलियों को भी खिलाया....उन्होंने इसे अच्छा नाम दिया.."ये तो बिलकुल पान की तरह है.:)" मेरे बच्चों ने भी कहा..'आंटी ने सही कहा...बिलकुल पान जैसा है.." और मेरे अंदर की माँ ने गंभीर होकर पूछ लिया.."तुमलोगों को कैसे पता..पान का स्वाद.....कब खाया?" दोनों ने एक स्वर में कहा.."शादी में खाए हैं...." हाँ! शादी..में बच्चों को चाय-कॉफी-पान की छूट मिल जाती है. पटना में अटेंड की एक शादी याद आ गयी...वहाँ बिलकुल एक नौटंकी कलाकार की तरह सजा-धजा एक पान वाला था...जो घूम घूम कर कुछ नृत्य जैसी मुद्राएँ बनाते हुए सबको अपने हाथों से पान खिला रहा था. नए से नए तरीके इंट्रोड्यूस हो रहें हैं.
महफूज़ ने बताया इस 'पान वाली मिठाई' को ऑनलाइन भी ऑर्डर कर सकते हैं...अब आप में से जो भी ऑर्डर करे..मेरा कमीशन मत भूलियेगा....आखिर मैने ही इसके बारे में बताया है आप लोगों को .:)
(एक और ब्लॉगर से मिलने का दिलचस्प किस्सा ..अगली पोस्ट में )
महफूज़ भाई की खैरियत आपने प्रत्यक्ष रूप में दिखा दी , अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंवैसे लाल टी शर्ट में महफूज़ मियां भी खूब जंच रहे हैं ।
अब तो हमें भी पहन कर देखनी पड़ेगी ।
पान वाली मिठाई कभी लखनऊ जाकर ही खायेंगे ।
अच्छाआआ! आप लखनऊ भी घूम आयीं और हमें पता ही नहीं चला वर्ना शॉपिंग की लंबी लिस्ट हम भी थमा देते, आप के शहर का होने का एक फ़ायदा तो उठा ही लेते…:)
जवाब देंहटाएंमहफ़ूज जी ठीक हैं ये जान कर अच्छा लगा। आप की पोस्ट से उनके व्यक्तित्व का एक नया रुप देखने को मिला, आभार्।
अगली बार किसी शादी में कहीं जा रही हों तो हमारी शॉपिंग लिस्ट ले जाना मत भूलिएगा…।:)
वाह दी ! लखनऊ आयी और महफूज़ से मिली भी तो इतनी आपाधापी में. चलिए महफूज़ की खैर-खबर तो मिली.
जवाब देंहटाएंमहफ़ूज़ की खैरियत जान तसल्ली हुई
जवाब देंहटाएंलाल शर्ट का फंडा मैं पहले एक पोस्ट में बता चुका हूँ :-)
मिठाई के बारे में जिज्ञासा जगा दी है आपने
अच्छा लगता है जब आप ऐसे लोगों से मिलते हैं,जिनमें इतना अपनापन होता है कि लगता"तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई"...
जवाब देंहटाएंपूरी पोस्ट पढाने के बाद बस एक ही बात दिमाग में आइ कहने के लिए कि यह पोस्ट भी इतनी स्पीड लिए है कि मैं अंदाजा लगा सकता हूँ कि कितनी व्यस्त रही होंगी आप शादी में!!
@पाबला जी,
जवाब देंहटाएंलिंक भी तो दे देते उस पोस्ट का...हमलोग भी जान लेते क्या है...लाल शर्ट का फंडा :)
महफूज जैसे ब्लॉगर हिन्दी ब्लॉगरी की ऊष्मा बनाये रखते हैं!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़ कर।
हम्म्म्म तो महफूज़ से मिल आई आप.वेरी गुड.
जवाब देंहटाएंवो एकदम स्वस्थ है जान कर अच्छा लगा.बहुत प्यारा शख्स है वो.
एक बार में सब पढ़ गई फिर एक बार.
लाल टी-शर्ट??? मैं अक्सर पहनती हूँ लोअर के साथ.थेंक गोड तुमने मर्दों पर ही 'कमेन्ट' किया.
हा हा हा
लखनवी अंदाज़,तहजीब के क्या कहने.बहुत अरसा हो गया वहाँ गए.महफूज़ की शादी में चले?
हा हा हा
यह तो वही बात हो गई आम के आम और गुठलियों के दाम ...शादी भी हो गई और ब्लोगर्स मीटिंग्स भी. अरे कोई एक -आधा शादी लन्दन में भी करा लो भाई हम तो रिपोर्ट्स पढ़ पढ़ कर ही जले जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंवैसे महफूज़ लाल टी शर्ट क्यों नहीं पहन कर आया होगा शायद मुझे पता है ...वो क्या है न आजकल उसके दिन वैसे ही ठीक नहीं चल रहे कोई भड़क जाता तो..........?हा हा हा.
बहुत रोचक और अपनत्व भरा वृतांत.महफूज़ - महफूज़ हैं जानकार अच्छा लगा.
वाह इस छोटी सी मुलाकात का मज़ा तो हम ने ले लिया अब देखते है हमे कब मौका मिलता है !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार !
जिस हड़बड़ी और रफ्तार में आप महफूज जी से मिलीं हैं, उससे कम स्पीड नहीं है पोस्ट की, बल्कि ज्यादा ही है।
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण है और बेहद सधे हुए अंदाज में हर बात को बारीकी से नेरेट किया है जैसे कि शादी के घर का माहौल, पूछ पुछौवल, ये कैसा लग रहा है, वो कैसा, चाय के लिये कहा था जरा देखना अब तक क्यूं नहीं आई, घर की गाड़ी है तो आटो क्यूं.....बहुत सुन्दर नेरेशन है।
महफूज जी के बारे में जानकर अच्छा लगा। ये लाल शर्ट का फंडा अपने को भी समझना है, कि क्या है :)
महफ़ूज़ की खैरियत जान तसल्ली हुई। अरे उसे पहन लेने दिया करो लाल शर्ट उसे गलतफहमी मे रहना अच्छा लगता है कि वो बहुत स्मार्ट लगता है जिस दिन कोई लडकी टोकेगी तब उसका ये बुखार भी उतर जायेगा। कहीं लाल शर्ट देख क र ही तो नही हादसे उसके पास आते? महफूज़ को बहुत बहुत आशीर्वाद। बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपकी महफूज़ से मुलाकात का किस्सा जानना!!!
जवाब देंहटाएंओह! लाल शर्टिया लिंक देना भूल गया था
जवाब देंहटाएंदेखिए वह लिंक http://shodh-survey.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
एक लिंक यह ले लो:
जवाब देंहटाएंhttp://udantashtari.blogspot.com/2009/08/blog-post_20.html
महफूज जी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा आपका ये सफर और मिलन - आजकल यहाँ शादियों की रौनक के तो क्या कहने ....
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट है...
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन पोस्ट। कभी कोलकता आकर यहां की ट्राफ़िक का लुत्फ़ लीजिएगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुचारू है!!!
कैसी भी रही हो आपाधापी पर मिलना तो हो गया न ....यही क्या कम है ...महफूज़ मियां मज़े में हैं जान कर अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारे विस्तृत वर्णन के अनुसार उस मिठाई को मलाई की गिलौरी कहते हैं ...यह लखनऊ की विशिष्ट मिठाई है ...
एक ही ट्रिप में शादी अटेंड करना और ब्लोगर्स से मिलना दोनों ही काम हो गए ....बधाई
मुझे तो आश्चर्य होता है इतनी स्पीड में आप कैसे लिख लेती है ?बहुत खुबसूरत संस्मरण जिसमे शादी भी हो गई लखनऊ की शोपिग भी और ब्लागर मीट भी | महफूज जी को जानना अच्छा लगा वैसे मै नहीं जानती ?की उनके साथ क्या दुर्घटना हुई |
जवाब देंहटाएं@शिखा
जवाब देंहटाएंमुझे भी थोड़ा सा अंदाज़ा है कि क्यूँ लाल शर्ट पहन कर नहीं आया...वो तो जनाब पहनते होंगे जब लड़कियों को इम्प्रेस करना हो....खासकर जब एक्सिस बैंक जाते हों...:)
@संगीता जी,
जवाब देंहटाएंइसका मतलब सहेलियों ने उसे पान जैसा कहा तो ठीक ही कहा....पान की गिलौरी ही तो कहलाती है.
@मनोज जी,
जवाब देंहटाएंजब गयी थी तो ख़ास इम्प्रेस तो नहीं किया वहाँ की ट्रैफिक व्यवस्था ने...हाँ, मिठाइयों की बात चल रही है....उसका आनंद लेने जरूर पहुंचन चाहिए कलकत्ता...यहाँ मेरी बंगाली फ्रेंड्स....उन्हें याद कर कर के आहें भरती रहती हैं.
@शोभना जी,
जवाब देंहटाएंकभी बात करके देखिए..बोलती भी उसी स्पीड में हूँ..हा हा
अब आप डर गयी होंगी :)
अरे वाह ! २२,२३,२४ नवंबर को तो मै भी लखनऊ में ही था लेकिन भागमभाग में शादी निपटाने के चक्कर में किसी ब्लोगर से मिलने की सोच भी नहीं पाया ... अच्छा लगा शादी के घर का बारीकी से चित्रण करना
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा महफ़ूज के हालचाल मिल गये
जवाब देंहटाएंआभार
अच्छी लगी ये मुलाक़ात भी| आभासी दुनिया ने कितने ही प्यारे रिश्ते बना दिए हैं| जिस शहर भी जाओ कोई न कोई दोस्त मिल जाएगा|
जवाब देंहटाएंओह तो अब समझ में आ गया कि महफूज़ के पीछे सारे सांड क्यों भागते रहते हैं...लाल रंग से उन्हें इतना प्यार जो होता है...मैंने अपनी वार्डरोब अच्छी तरह चेक कर ली है...लाल का कहीं नामोनिशान तक नहीं है...
जवाब देंहटाएंमज़ाक एक तरफ, बड़ी खूबसूरती के साथ लखनऊ प्रवास और महफूज़ से लिटिल एनकाउंटर का ज़िक्र किया है...
जय हिंद...
:) ...मस्त रिपोर्टिंग रही मुलाकात की :)
जवाब देंहटाएंलाल शर्ट वाली बात तो आपने मुझसे भी पूछी थी :)
मस्त पोस्ट..
रश्मि जी,
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत करती हैं आप हर घटना को...पढ़ने वाला खुद को भी उन्ही सराउंडिंगस में पाने लगता है...मुझे लगा मैं भी उसी भागदौड में व्यस्त हूँ..:) ....और हाँ ..मिठाई का डिस्क्रिप्शन एहसास करा रहा है..कि वह " पेठा गिलौरी " थी....गिलौरी किसी भी ऐसी पेशकश को कहा जाता है जिसकी उपरी परत को लपेट कर अंदर के भरवां के साथ खाया जा सकत है.. इसीलिए पान की भी गिलौरी ही कहलाती है... मलाई गिलौरी में ऊपर की परत खोये की होती है..आपकी मिठाई में पेठे की थी..हलवाइयों की तरह व्याख्या कर दी न मैंने :) .महफूज़ जी से नाम कन्फर्म होते ही मुझे बताइयेगा जरूर...:)
मुदिता
पान वाली मिठाई तो हमें भी बहुत पसन्द है, महफूजजी के स्वास्थ्य के बारे में जानकर बहुत ही अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंरश्मिजी, नवाबों के शहर लखनऊ में जाकर बड़ी ही नजाकतता से पोस्ट लिखी है। शादी का माहौल खूबसूरती से चित्रित किया है। अब पूर्ण तसल्ली है कि मियां महफूज महफूज हैं। एक बात और समझ आ गयी कि आपसे मिलने जब मुम्बई आना होगा तब मिठाई लानी होगी। हा हा हा हा।
जवाब देंहटाएंवाह क्या अंदाज़ है बयान करने का.. अच्छा लिखती हैं
जवाब देंहटाएंअजित जी,
जवाब देंहटाएंऐसी वैसी मिठाई नहीं चलेगी....उदयपुर की बिलकुल ख़ास मिठाई होनी चाहिए....फिर ऐसे ही विवरण लिखूंगी...:)
पर वो तो मैं उदयपुर आऊँगी...तब ना...मुंबई में तो हम मेजबान होंगे...आपको पूरनपोली खिलाऊँगी यहाँ की.:)
apaki mulakat badhiya lagi...
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट और रोचक मुलाकात महफूज़ साहिब के साथ......
जवाब देंहटाएंआगरा तो पेठे की मिठाइयों के लिये प्रसिद्ध है ! आप आगरा कब आ रही हैं ? मैं आपके लिये हर तरह की मिठाई मँगवा कर रखूँगी पेठे की ! ( वैसे उससे अधिक लालच इस बात का भी है कि शायद आप उस मिलन का संस्मरण लिख कर हमें भी मशहूर कर दें ! हा हा हा ! ) Jokes apart. आपका यह संस्मरण भी बहुत रोचक लगा ! महफूज़ जी के स्वास्थ्य समाचार भी मिल गये ! शादी का वृत्तांत बहुत अच्छा लगा ! बधाई !
जवाब देंहटाएंमहफूज भाई से मिलना अपन का भी हुआ है , मिलकर बढ़िया लगा था ! आपकी इस रोचक में मिलन का वर्णन पढ़कर अच्छा लगा ! महफूज भाई स्वस्थ हैं , जानकार खुशी हुई ! आभार !
जवाब देंहटाएंbadhiya....
जवाब देंहटाएंapan ko red se koi lagav nahi, han apan ko ye gumaan hai k apan black shirt me sahi dikhte hain.....
इस सघन आत्मीयता के बीच अजनबीपन महसूस होने लगा था, लेकिन ब्लॉग के रिश्ते से ही टिप्पणी कर पा रहा हूं.
जवाब देंहटाएंमहफ़ूज़ के बारे मे जानकर अच्छा लगा मगर बात क्या हुई उस बारे मे तो एक भी लफ़्ज़ नही आया और पूरी राम कहानी सुना दी……………हा हा हा…………जस्ट किडिंग्।
जवाब देंहटाएं@वंदना
जवाब देंहटाएंएक लफ्ज़ भी कैसे नहीं..पूरा वाक्य है ...'मोस्ट एलिजिबल बैचलर' वाला....:) :)
लिखा तो है..बातों से ज्यादा बस अफ़सोस ही प्रगट होता रहा....उन बातों से पाठकों को क्यूँ बोर करूँ...जब बाकी राम-कहानी इतनी इंटरेस्टिंग हो.:)
अच्छी खासी रिपोर्ट है शादी , शोपिंग और ब्लॉगर मिलन की ...
जवाब देंहटाएंमगर तस्वीर सिर्फ खाने की ...
लखनवी कढ़ाई की तो बात ही क्या है ...मिठाई के बारे में जानना अच्छा लगा ...
शादी के घर में इतनी सारे काम किया तुमने ...वाह !
महफूज़ को स्वस्थ देखना अच्छा लगा ...
वंदनाजी का सवाल मेरा भी है ...!
लम्बे समय से इस ब्लॉग जगत पर महफूज जी को हम भी मिस कर रहे है !
जवाब देंहटाएंए रश्मि..
जवाब देंहटाएंकितना सारा हलवा खा रही है तू ? हा हा हा...
नज़र नहीं लगा रही हूँ..
बहुत अच्छी पोस्ट...
महफूज़ मियाँ महफूज़ हैं जान कर बहुत ख़ुशी हुई...
हांफ रहा हूं...मुख़्तसर सी मुलाकात पर टिपियाने से कब्ल कितनी भागदौड हुई कह नहीं सकता ,आप शादी निपटाकर पोस्ट पर पोस्ट दिए जा रही हैं और इधर हम बे शादी के स्वजनों में उलझकर टिपियाने को तरस गए !
जवाब देंहटाएंये पढने के बाद पिछली पोस्ट की टिपण्णीयाँ पढने चला गया. कस्टडी का माने समझने में
जवाब देंहटाएंभूल गया कि क्या कहना है :)
महफूज़ भाई जिन्दाबाद.
जवाब देंहटाएं@ अली भईया, वक्त-वक्त की बात है।
अच्छी लगी तुम्हारी मुलाकात. ये मुख्तसर मुलाकातें हमेशा यादगार बन जाती हैं, मेरे खाते में भी हैं कुछ.अब तो बस, तुमसे मिलने का इन्तज़ार है.
जवाब देंहटाएंमहफूज़ से मुलाकात और लखनउ यात्रा का वर्णन पढ़कर अच्छा लगा...शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंमैं सही कहूँ तो मुझे उस वक़्त आपके पास से लौटना बहुत खराब लग रहा था.... मेरा मन आपसे बहुत बात करने को कर रहा था... पर यह वक़्त भी ना कभी किसी का नहीं होता... वो क्या कहते हैं ...टाइम नेवर स्टैंड्स स्टिल.... पर मुझे आपसे मिलकर बहुत ही अच्छा लगा .... लग ही नहीं रहा था कि आपसे पहली बार मिल रहा हूँ.... और उस वक़्त लाल टी-शर्ट इसलिए नहीं पहना था... क्यूंकि जो जींस मैंने पहनी थी... वो शर्ट उसके साथ मैचिंग की थी... नहीं तो मैं लाल टी-शर्ट ही पहन कर आता... ही ही ही ... शिखा जी ने सही कहा था... पर वो कॉम्बिनेशन के चक्कर में नहीं पहना था... मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी है कि मेरी मिठाई सबको पसंद आई.... वो मिठाई सिर्फ लखनऊ और कानपुर में ही मिलती है... और उसे ड्राई फ्रूट फिल्ड खोया पेठा गुझिया कहते हैं... आपसे यह मुलाक़ात यादगार रहेगी... और अब तो आपसे एक रिश्ता बन गया है.... अब तो हमेशा ही मिलना होगा...
जवाब देंहटाएंkam waqt hi sahi mulakaat to hui , aur is baar laal shirt bhi nahi .....
जवाब देंहटाएंसंस्मरण लिखने में जवाब नहीं आपका। फटाफट लिखने की एनर्जी पता नहीं कहां से लाती हैं आप।
जवाब देंहटाएंमहफूज जी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंमहफूज जी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंHi Rashmi Ma'm ,
जवाब देंहटाएंI was just browsing blogs , not getting sleep tonight . You have mentioned a sweet shaped like Paan . It is made in my native place too .Actually it is not petha . Its stuffed 'parwal' with khova + dry fruits ..covered with silver foil . Green veg 'parwal' is skinned out and boiled . then filled with khova ... though it tastes like petha but You can differentiate it while eating ... it will be softer than petha!
Was it this ?
http://nishamadhulika.com/sweets/parwal-sweet-recipe.html