शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
कुछ 'वैलेंटाइन डे'...ऐसे भी, गुजरते हैं
काफी साल पहले की घटना है,जब मेरे बच्चे बहुत छोटे थे पर मुंबई में 'वैलेंटाइन डे'
की धूम कुछ ऐसी ही रही होगी,तभी तो इनलोगों ने अपने टीचर से पूछा होगा,कि ये 'वैलेंटाइन डे' क्या बला है? और टीचर ने इन्हें बताया कि आप जिसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं ,इस दिन,उसे कार्ड,फूल और गिफ्ट देकर विश करते हैं. अब बचपन में बच्चों की सारी दुनिया माँ ही होती है (एक बार छुटपन में मेरे बेटे ने एक पेंटिंग बनायी थी जिसमे एक घर था और एक लड़का हाथों में फूल लिए घर की तरफ जा रहा था...मैंने जरा उसे चिढ़ा कर पूछा ,"ये फूल, वह किसके लिए लेकर जा रहा है?" और उसने भोलेपन से कहा था,"अपनी ममी के लिए" ) .अब टीचर की इस परिभाषा पर दोनों बच्चों ने कुछ मनन किया और मेरे लिए एक कार्ड बनाया और गुलदस्ते से एक प्लास्टिक का फूल ले कर कार्ड के साथ सुबह सुबह मेरे तकिये पर रख गए...मेरी आँखें खुली तो दोनों भागते हुए नज़र आए और दरवाजे से झाँक रहें थे.
इनलोगों के स्कूल जाने के बाद मैंने सोचा,कुछ अलग सा करूँ.? बच्चों ने कार्ड दिया है तो कुछ तो करना चाहिए और मैंने सोचा..जब मेहमान आते हैं तभी ढेर सारी,डिशेज बनती हैं.क्रौक्रीज़ निकाली जाती हैं.सफ़ेद मेजपोश बिछाए जाते हैं..चलो आज सिर्फ घर वालों के लिए ये सब करती हूँ. मैं विशुद्ध शाकाहारी हूँ पर घर में बाकी सब नौनवेज़ खाते हैं.सोचा,एक ना एक दिन तो बनाना शुरू करना ही है,आज ही क्यूँ नहीं?.मैंने पहली बार फ्रोजेन चिकेन लाया और किसी पत्रिका में से रेसिपी देख बनाया.स्टार्टर से लेकर डेज़र्ट तक.बच्चे समझे कोई डिनर पर आ रहा है...जब ये खेलने गए तब मैंने सफ़ेद मेजपोश और क्रौक्रीज़ भी निकाल कर लगा दी.दोनों बेटे जब खेलकर आए तो उन्हें बताया.वे भी बड़े खुश हुए और मैंने देखा किंजल्क मेरी महंगी परफ्यूम प्लास्टिक के फूलों पर छिड़कने लगा,जब मैंने डांटा तो बोला,'मैंने टी.वी. में देखा है,ऐसे ही करते हैं"...जाने बच्चे क्या क्या देख लेते हैं.मैंने तो कभी नोटिस ही नहीं किया.
खैर सब कुछ सेट करने के बाद मैंने पतिदेव को फोन लगाया.उनके घर आने का समय आठ बजे से रात के दो बजे तक होता है.हाँ, कभी मैं अगर पूरे आत्मविश्वास से सहेलियों को बुला लूँ...कि वे तो लेट ही आते हैं तो वे आठ बजे ही नमूदार हो जाएंगे .या फिर कभी मैं अगर बाहर से देर से लौटूं तो गाड़ी खड़ी मिलेगी नीचे.ये टेलीपैथी यहाँ उल्टा क्यूँ काम करती है,नहीं मालूम.
मैंने फोन पर कहा,कि आज तो बाहर चलेंगे,मैंने खाना नहीं बनाया है.वे बोले, "अरे, कहाँ इन सब बातो में पड़ी हो"..मैंने कहा "ना....when u r in rome do as romans do इसलिए खाना तो बाहर ही खायेंगे".बोले 'मुझे लेट होगा बाहर से ऑर्डर कर लो'.मैंने कहा ,'ठीक है, पर बच्चे वेट कर रहें हैं,सुबह कार्ड बना कर दिया है,डिनर तो साथ में ही करेंगे' फिर या तो मैं फोन करती या मुझे फोन करके बताया जाता कि,अभी थोड़ी देर और लगेगी.आखिर 11 बजे मैंने कहा,'अब अगर एक बजे आयेंगे तब भी एक बजे ही सब डिनर करेंगे' और फोन रख दिया
बच्चों को तो मैंने खिला दिया ,उनका साथ भी दिया और इंतज़ार करने लगी.पति एक
बजे ही आए और आते ही बोला, "तुमने ऐसा १ बजे कह दिया की देखो एक ही बज गए"
कहीं पढ़ा था, "wokaholic hates surprises "अब वो मेरे जीवन का मूलमंत्र बन गया है
वो दिन है और आज का दिन है,सफ़ेद मेजपोश और क्रौक्रीज़ मेहमानों के आने पर ही निकलते हैं.
कुछ साल बाद एक बार 14th feb को ही मेरे बच्चों के स्कूल में वार्षिक प्रोग्राम था.दोनों ने पार्ट लिया था.मुंबई में जगह की इतनी कमी है कि ज्यादातर स्कूल सात मंजिलें होते हैं.स्कूल कम,5 star होटल ज्यादा दीखते हैं.क्लास में G,H तक devision होते हैं,लिहाज़ा वार्षिक प्रोग्राम भी ३ दिन तक चलते हैं और रोज़ दो शो किये जाते हैं,तभी सभी बच्चों के माता-पिता देख सकते हैं.उस बार भी इन दोनों को दो शो करने थे यानि सुबह सात से शाम के ६ बजे तक. स्कूल में ही रहना था.मुझे फर्स्ट शो में सुबह देखने जाना था,और उसके बाद मैं घर मे अकेली रहने वाली थी.
यूँ ही झींक रही थी कि अकेली रहूंगी,खुद के लिए क्या बनाउंगी ,क्या खाऊँगी..पतिदेव ने दरियादिली दिखाई और कहा, 'मेरा ऑफिस रास्ते में ही है,प्रोग्राम के बाद वहीँ चली आना,लंच साथ में करते हैं'.मैंने चारो तरफ देखा,ख़ुदा नज़र तो नहीं आया पर जरूर आसपास ही होगा,तभी यह चमत्कार संभव था,वरना ऑफिस में तो बीवी का फोन तक उठाना मुहाल है. और यहाँ लंच की दावत दी जा रही थी.जरूर पिछले जनम में मैंने गाय को रोटी खिलाई होगी.
खैर प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद मेरी सहेली ने मुझे ऑफिस के पास ड्रॉप कर दिया और हम पास के एक रेस्टोरेंट में गए.वहाँ का नज़ारा देख तो हैरान रह गए.पूरा रेस्टोरेंट कॉलेज के लड़के लड़कियों से खचाखच भर हुआ था.हम उलटे पैर ही लौट जाना चाहते थे पर हेड वेटर ने this way sir ...please this way कह कर रास्ता रोक रखा था.पति काफी असहज लग रहें थे,मुझे तो आदत सी थी.मैं अक्सर सहेलियों के साथ इन टीनेजर्स के भीड़ के बीच CCD में कॉफ़ी पी आती हूँ. बच्चों के साथ ' Harry Potter ' की सारी फ़िल्में भी देखी हैं.मुझे कोई परेशानी नहीं थी.पर नवनीत का चेहरा देख ,ऐसा अलग रहा था कि इस समय 'इच्छा देवी' कोई वर मांगने को कहे..तो यही मांगेंगे कि 'मुझे यहाँ से गायब कर दें'.वेटर हमें किनारे लगे सोफे की तरफ चलने का इशारा कर रहा था.पर नवनीत के पैर जैसे जमीन से चिपक से गए थे.मुझे भी शादी के इतने दिनों बाद पति के साथ कोने में बैठने का कोई शौक नहीं था,पर सुबह से सीधी बैठकर पीठ अकड सी गयी थी,सोफे पर फैलकर आराम से बैठने का मन था.शायद नवनीत मेरा इरादा भांप गए और दरवाजे के पास छोटी सी एक कॉफ़ी टेबल से लगी कुर्सी पर ही बैठ गए,जैसे सबकी नज़रों के बीच रहना चाहते हों.वेटर परेशान था,'सर इस पर खाना खाने में मुश्किल होगी',...'नहीं..नहीं हमलोग कम्फर्टेबल हैं..जल्दी ऑर्डर लो.'
मूड का तो सत्यानाश हो चुका था.और पूरे समय गुस्से में थे, बीच बीच में बोल पड़ते
,'इन बच्चों को देखो,कैसे पैसे बर्बाद कर रहें हैं:..माँ बाप बिचारे किस तरह पसीने बहा कर पैसे कमाते हैं और इनके शौक देखो'.वगैरह..वगैरह...मैंने चुपचाप खाने पर ध्यान केन्द्रित कर रखा था.ज्यादा हाँ में हाँ मिलाती तो क्या पता कहीं खड़े हो एक भाषण ही ना दे डालते वहाँ.वेटर ने डेज़र्ट के लिए पूछा तो उसे भी डांट पड़ गयी,'अरे टाईम कहाँ है, जल्दी बिल लाओ"..
जब बाहर निकल, गाड़ी में बैठी तो नाराज़गी का असली कारण पता चला,उन्हें लग रहा था,कि सब सोच रहें होंगे वे भी ऑफिस से किसी के साथ लंच पर आए हैं.मन तो हुआ कह दूँ कि,'ना..जिस तरह से आप सामने वाली दीवार घूर रहें थे और चुपचाप खाना खा रहें थे,सब समझ गए होंगे हमलोग पति-पत्नी ही हैं.'...या फिर कहूँ 'ठीक है अगली बार से पूरी मांग भरी सिंदूर और ढेर सारी चूड़ियाँ पहन कर आउंगी ताकि सब समझ जाएँ कि आपकी पत्नी ही हूँ.'पर शायद उनके ग्रह अच्छे थे,ऑफिस आ गया.और मेरी बात मुल्तवी हो गयी.
दूसरे दिन सहेलियों को एक दूसरे से पता चला और सबके फोन आने शुरू हो गए,सबने चहक का पूछा ,"'क्या बात है...सुना,पति के साथ लंच डेट पर गयी थी,कैसा रहा?'..और मेरा पूरा अगला दिन सबको ये किस्सा सुनते हुए बीता.आज यहाँ भी सुना दिया.
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उफ! कुछ तो मज़बूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बे-वफ़ा नहीं होता। पति के साथ प्रेम-भोज!!! वाह--क़माल! सरस संस्मरण with व्यंग्य की छौंक...ऐसे ही लिखती रहें. दुआ।
जवाब देंहटाएंचुटकियों की भी भरमार है...साथ में मस्त प्यार!
जवाब देंहटाएंबढ़ियां लगा पढ़कर , माफी चाहूंगा पता नहीं मुझे पुछना चाहिए कि नहीं , मेरी ये जानने की इच्छा है क्या आपने इस तरह कभी वंसत पंचमी को भी मनाया है , अगर हाँ है तो पिछली पोस्ट उसके बारे में जरुर पढना चाहूंगा ।
जवाब देंहटाएंमिथिलेश भाई...ऐसी वसंतपंचमी मनाई है कि एक नहीं ३ पोस्ट लिख दूँ....बोलो तो मेल कर दूँ...क्यूंकि वसंतपंचमी तो अब अगले साल ही आयेगी
जवाब देंहटाएं"workaholic hates surprises "
जवाब देंहटाएंअच्छा जी ,तो जे बात है! काश !!
" मन के सच्चे "
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा
कभी-२ मुझे लगता है ,की रोज ही रश्मि मिल जाया करे ,
अब तो मेरी आदत ऐसी होते जा रही कि ...लगता है रश्मि न मिले तो जी ही नहीं लगे ,
इतने मजेदार-२ संस्मरण , मज़ा आ गया .
सच में लाजवाब , पढ़ते-२ मेरे खुद के अकेलेपन का अहशास ही नहीं रहा ,
एक से बढ़कर एक मनोरंजक क्षण ,सच में ऐसा ही होता है जी
मस्ती आ गयी , मेरे लिए तो हो गया वेलेंटाइन डे.
धन्यवाद रश्मि जी
आपने तो फिर भी कहा...चलो एक बजे तक इंतजार कर लेती हूँ...लेकिन मेरी पत्नि घर बाद में पहुंचती थी..फोन पहले आ जाता था कि चाय रखी है कब तो आओगे..मतलब चाय रखती है..उबलने से पहले...नहीं तो वहीं पड़े रहो..
जवाब देंहटाएंसब किस्से रोचक थे..उसके अलावा मुम्बई के बारे में जानने को काफी कुछ मिला...शायद एक महानगर नामक किताब से तो ज्यादा ही।
जवाब देंहटाएंरश्मि दीदी
जवाब देंहटाएंजानकर अच्छा लगा कि आपने वंसत पंचमी को भी मनाया था , लेकिन आपने उसे जाहिर नहीं किया , शायद उसकी तवज्जो कम है वेलेन्टाइन की अपेक्षा ।
बहुत ही बढ़िया संस्मरण...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया..
ऐसा ही कुछ हाल है अब...
बाकि हैप्पी वेलेंटाइन डे...
@ मिथिलेश
जवाब देंहटाएंकिसने कहा,मिथिलेश ऐसा..??..तुम्हे ऐसा लगता है??...देखो हमें कुछ किसी को साबित नहीं करना है...मैं वसंतपंचमी,होली,दशहरा,गणपति भी मनाती हूँ...और न्यू ईअर और क्रिसमस भी...हमें सफाई नहीं देनी किसी को...और शायद संस्मरण पढ़ा नहीं तुमने ठीक से...चलो जाने दो...तुम वापस आ गए...पोस्ट लिखी...टिप्पणी करनी शुरू की...अच्छा लगा ये देख
आदरणीय रश्मि दीदी
जवाब देंहटाएंपहली बात तो मैं आपको ये बताना चाहूंगा कि मैंने आपसे कुछ भी साबित करने को नहीं कहा । बस मन में जो सो केह दिया । मैं ये नहीं कह रहा कोई वेलेन्टाइन डे न मनायें , लेकिन दुःख होता है जब अंग्रेजो के चमचा गीरि के निचे हम खुद दबते नजर आते है, मैं बस आपकी बात नहीं कर रहा , हम भारतीय नववर्ष नहीं मनाते , और अंग्रेजी कैलेडंर में इन्तेजार करते है कि कब नव वर्ष आये , आपने जिस तरह से वेलेन्टाइन मनाना सबके सामनें रखा और वहीं आपका कहना है कि इससे बढिया तरिके से वसंत पचमी को मनाया परन्तु उसे आपने हमारे समकक्ष नहीं रखा । इससे कहीं ना कहीं ये बात साफ होती हैं कि हम अपनी पहचान दूसरो की चमचागीरि में ज्यादा ढ़ुढते है , देश आजाद है परन्तु हम मानसिक गुलामी से अब भी नहीं उबर पायें, बाकी आप जो समझे ।
रशिम जी हम ने कभी भी नही मनाया कोई भी डे, लेकिन आप का लेख पढ कर अच्छा लगा, वेसे जर्मन मै भी यहां के लोग वैलेंटाइन डे इतना नही मनाते जितना हम भारतीया मनाते है
जवाब देंहटाएंचिरंजीवी मिथिलेश भाई,
जवाब देंहटाएंमुझे यहाँ तुम्हे जबाब देने का मन नहीं था....पोस्ट से ध्यान हटकर टिप्पणियों पर आ जाता है....तुम्हे मेल में आराम से उत्तर दे दूँगी..सिर्फ इतना बता दूँ...कि बडा आश्चर्य हुआ देख,तुम नहीं जानते...भारतीय नव वर्ष कब मनाया जाता है??...मेरे बच्चे हमेशा यही सवाल पूछते थे और मैं जबाब देती थी कि हम भारतीय जितने हर्ष और उल्लास से अपना नव वर्ष मनाते हैं..वह और कोई नहीं मनाता...और वो है होली
Hi..
जवाब देंहटाएं@ Sarvpratham main Mithilesh ji ki tippani par kahna chahunga ki Mithelesh ji ne 'valentine day' par dil main ek anmana bhav le kar aapki post padhi hai aur usi anusar apni tippani di hai.. Kash wo aapke saras sansmaran ke bhavon ko unke mool rup main padh pate jisme es post ke har shabd main ek parivar ke aapsi..pyaar,maan, vishwas aur shradha samayi hai..
Barhal ek saal baad hi sahi par 'VASANT PANCHMI' par apni post daal kar Mithilesh ji ke aagrah ko avashya pura kar deejiyega.. Haan hamen bhi aapki post ki pratiksha rahegi..
Rahi baat aapke saras sansmaran ki.. To wo hamesha ki tarah es oor se us chhor tak..,ghar se bahar tak..,bachhon se pati tak..,aasha se vishwas tak.., aur lekhak se pathak tak.., sabko bandh kar rakh paane main safal rahi hai..
Humari Eshwar se prarthna hai ke kal ka din aapke jeevan main aapke janm divas ke tarah naye acharazon se paripurn rahe..aur es par aapki agli post ki bhi pratiksha rahegi..
Shubhkamnayen..
DEEPAK..
वाह बहुत ही अच्छे, क्या बात है, मजा आ गया, आपके पतिदेव की चिंता भी जायज है कि आज कल की पीढ़ी पैसे का महत्व नहीं समझती है, माँ बाप कैसे कमाते हैं, उन्हें क्या पता। वो तो उडाने में लगे हैं। हमें भी कई बार दुविधा होती है, जहाँ ज्यादा लड़के लड़कियों की भरमार होती है।
जवाब देंहटाएंपरम सत्य लिखा है, पति पत्नि के रिश्ते के बारे में..
जी हां रश्मि जी, शादी के दस साल बाद ऐसा ही होता है. किसी भी कारण से सही, आप दोनों ने वैलेन्टाइन डिनर तो किया न? बधाई हो.
जवाब देंहटाएंबढिया किस्सा है । हम तो अभी भी श्रीमती जी के साथ कोने वाली टेबल ही ढूँढते हैं । जो उन्हे नहीं पहचानते अगले दिन हमे छेड़ते हैं ।
जवाब देंहटाएंबहरहाल आपको सभी भारतीय अभारतीय पर्वों की शुभकामनायें .. यह प्यार आपको जीवन भर मिलता रहे .. गाय को भी रोटी खिला दें ताकि....।
युवा मिथिलेश के लिये एक गीत की पंक्ति.." जब कभी हमने तेरा चान्द सा चेहरा देखा ..ईद हो या के ना हो मेरे लिये ईद हुई "
एक किस्सा विद कविता हमारे ब्लॉग पर भी है ( शरद कोकास ) कृपया देखें ।
रश्मि बहना,
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी के ब्लॉग पर जो किस्सा सुनाया है वहीं यहां रिपीट कर रहा हूं...
मक्खन ने भी एक बार वेलेन्टाइन्स डे पर एक विदेशी महिला को गुलाब पेश करने के साथ हिम्मत करते हुए कह ही दिया...आई लव यू...विदेशी महिला दयालु थी...मक्खन का दिल रखने के लिए कह दिया...आई लव यू टू...मक्खन भला कहां पीछे रहने वाला था...तपाक से बोला...टू...आई लव यू थ्री, फोर, फाइव...सिक्स....
जय हिंद...
अरे भई ये तो बड़ी ज्यादती हुई .....काश कल का दिन ऐसा ना बीते....वैसे भी कल रविवार है तो ऑफिस से तो किसी को ले जाने का सवाल नहीं.....हा हा हा ...बहुत बढ़िया संस्मरण...
जवाब देंहटाएंऔर कल १४ फ़रवरी के लिए शुभकामनायें
अरे इतना प्यारा संस्मरण पढने में देर हो गई :( पर चलो देर आये दुरुस्त आये....बड़े मजेदार और सच्चे प्रसंगों से भरा है ये संस्मरण...कहीं कहीं तो लगा की हम भी आसपास ही हैं ...और आप वाली हालत से गुजर रहे हैं हा हा हाहा...हाँ हमने शायद कभी गाय को रोटी नहीं खिलाई ..तो ये सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ...बहुत ही रोचक तरीके से लिखा संस्मरण...
जवाब देंहटाएंहाँ और कुछ अब हो न हो अगले साल बसंत पंचमी जरुर मनाना और पोस्ट का हम सब इंतज़ार करेंगे .
अत्यन्त सरस और रोचक संस्मरण । आभार ।
जवाब देंहटाएंतुम्हारी ये पोस्ट बहुत काम की है ...:)
जवाब देंहटाएंबाकि हर व्यस्त पति वाले परिवार में घर घर कि यही कहानी है ....यथा संभव हमलोग विदेशी पर्व नहीं मनाते हैं ...हाँ बेटियां जरुर विश कर देती हैं इस दिन ....!!
बहुत अच्छा लगा.. बच्चे कितने प्यारे होते है.. भोले.. मासूम.. उन्होंने बहुत प्यारा कार्ड बनाया होगा..
जवाब देंहटाएंरश्मि जी वैलेंटाइन डे को मै प्रेम दिवस कहता हू और प्रेम के दो भारतीय रूप वात्सल्य और दाम्पत्य को आपने इस कुछ 'वैलेंटाइन डे'...ऐसे भी, गुजरते हैं" मे स्पर्श किया है. प्रेम शास्वत है और इसे हमने किसी से उधर नही लिया है आपके लेख मे ये घटनाये अनायास इस दिन पडी इसलिये ये एक पोस्ट का रूपक बनी. बहुत अच्छा लिखा है और मुझे तो पति के साथ डेटिन्ग भी बडा ही रूमानियत भरा लगता है.
जवाब देंहटाएंमेरे बेटे को कभी बाहर खाना हो और हमारा मन नही हो तो वो अपनी दादी को साथ ले जाता है. बेटी आती है तो उसे तो हम ट्रीट देते ही है.
मिथिलेश भाई जिस वसन्त उत्सव की याद इस समय कर रहे है और ऐसे जैसे कि किसी को पता ही नही होगा कि वसन्त कब आया तो भाई दुनिया उससे कही बडे है जितना मेरी नाक के सामने से दिखती है. मैने बहुत कोशिश की आपके ब्लोग को टटोलने की लेकिन वसन्त पन्चमी पर मुझे उसमे कोइ शब्द नज़र नही आया. कोई जरूरी भी नही है कि तुमको उस पर लिखना ही है लेकिन इसी बात को हम दूसरो के लिये भी स्वीकार करे. तुम्हे अचआ लिखने की बहुत बहुत शुभकामना.
रश्मि जी, रोचक पोस्ट है........... व्यंगात्मक चुटकियों के साथ अधुनिक दांपत्य जीवन का अच्छा वर्णन किया है.
जवाब देंहटाएं@मिथिलेश भाई, यार आप बहुत जल्दी जोश में आ जाते हो. यह वैलेंटाईन डे का मैं भी विरोधी हूँ. क्योंकि यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक "माल बेचू " प्रोपगंडा के सिवा कुछ नहीं.
क्या भारत में इस तथाकथित "त्यौहार" के आगमन से पहले युवक-युवतियां प्रेम नहीं करते थे??
रोटी, कपडा, मकान के बाद जीवन की सबसे अनिवार्य आवश्यकता प्रेम ही है. फिर क्या प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए दिन मुक़र्रर होना चाहिए?
बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रायोजित मीडिया दुष्प्रचार क्या इसे सिर्फ युवक - युवतियों के यौनाचार के रूप में पेश नहीं करता?
टेलीविजन पर यह भौंडा माल बेचू दुष्प्रचार मासूम बच्चों से उनका बचपन छीनकर उन्हें समय से पहले यौन जिज्ञासाओं और कुचेष्टाओं की ओर नहीं धकेल रहा?
यदि इन प्रश्नों का उत्तर "हाँ" है तो यह पर्व नहीं बल्कि सामाजिक विद्रूपता फैलाने का सिर्फ एक कुत्सित प्रयास है जिससे फ़ायदा सिर्फ इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को होने वाला है जबकि इसके दुष्परिणाम पूरे देश और समाज को भुगतने पड़ेंगे.
Bahut sundar prastuti..
जवाब देंहटाएंPyar to bus pyar hai.
baaki sab bekar hai...
Bahut badhi.....
दीदी
जवाब देंहटाएंमुझे समझ में नहीं आता क्या लिखूं ....
परन्तु टिपण्णी करना जरुरी समझा ..
आपका पोस्ट यादों का एक मनमोहक पिटारा लगा...
टिपण्णी बॉक्स में गया तो तीसरे टिपण्णी के बाद पोस्ट की मिठास कडवाहट में बदल गयी
एक प्रश्न मन में आया की कुछ लोग अपने महानता को दिखलाने के लिए दूसरों को ज़बरजस्ती शिक्षा क्यों देतें है?
दुनिया में जीने की सबकी अपनी अपनी एक अदा होती है और कोई इन्सान जो अभी अभी खड़ा होना सिखा है वो आग बबूला होकर अपने उम्र की परवाह किये बिना किसी ऐसे इन्सान को जो अपने में एक अनुभव रखता हो को अपने संक्रिन बिचारों को थोप कर क्या साबित करना चाहता है
एक तरफ कोई आपको दीदी कहे और दुसरे तरफ एक वयस्क सिरफिरे की तरह अपनी बात पर अड़ा रहे तो उनसे मेरा एक प्रश्न यही है की अपनी बड़ी बहनों से वे ऐसे हीं बहस लड़तें हें क्या ?
और अंत में मै माफ़ी मांगते हुए आपसे ये कहना चाहूँगा की इस तरह की टिप्पणियों पर यथा संभव जवाब देने से बचाना चाहिए .
मै छमा चाहूँगा हर उस व्यक्ति से जिन्हें मैंने जाने अनजाने दुःख पहुँचाया हो.
बहुत अच्छा लगा ये संस्मरण । बहुत बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है, क्या बात है, क्या बात है ! मज़ा आ गया ये पोस्ट पढ़कर. मज़ेदार है. बधाईया.
जवाब देंहटाएंAapke prasank bhi kisi bahut hi rochak upanyaas se kam nahin hote... ji karta hai bas padhte hee jayen...
जवाब देंहटाएं@अरशद अली जी
जवाब देंहटाएंबढियां लगा आपकी राय जानकर , बात शिक्षा देंने की यहाँ पर नहीं हो रही , ना ही किसी को देंने की इच्छा ही है । रही बात उम्र की परवाह करना तो एक बार आपको अवश्य ही बताना चाहूंगा कि मुझे नहीं लगात कि एसी बांते करने के लिए किसी उम्र विशेष की होने की आवश्यकता जरुरत है , और अगर आपकी ऐसी सोच है तो इसे बदलंने की कोशिश करें , और उम्र से ज्यादा सोंचे, और कोई भी अचानक से खडा़ नहीं हो जाता सभी पहले कभी ना कभी सिखते है खडा होना , तो इसका मतलब ये तो नहीं होता कि वह अपनी भावनायें दबा ले । और जिस संकिर्ण विचारधार की बात करते आप कह रहें ना उसे मात्र ये कहना कि गलत है तो वह उससे गलत नहीं हो जाता , तर्क दीजिए और साबित करिए कि किसकी विचारधारा कैसी है । आपने मुझे सिरफिरा कहा सूनकर अच्छा लगा कोई तो है जो मुझे पहचान पाया । जहाँ तक दीदी कहने ना कहने की बात है तो वे संबंध इस आभासी दूनियां से बाहर है और रहेगा , दीदी है तो इसका मतलब ये तो नहीं होता कि चमचो की तरह हाँ में हाँ मिला दिया जाये ।
मिथिलेश....तुम्हें अरशद की बातों से तकलीफ हुई...मैं उसकी तरफ से सॉरी बोलती हूँ....शायद वो भी तुम्हारी तरह कम उम्र का है...और कुछ ऐसे शब्द बोल गया जो नहीं बोलना चाहिए था...पर मेरी एक इल्तजा है...प्लीज़ इसे तुमलोग वाद विवाद का स्थल मत बनाओ....अरशद तुमसे भी प्रार्थना है...तुम्हे जो कहना है मुझे मेल में कहो....यहाँ कुछ जबाब मत देना प्लीज़..
जवाब देंहटाएंयह कोई सार्थक बहस होती तो मैं कुछ नहीं बोलती,पर यह व्यर्थ का विवाद है..
बस एक बात बोलूंगी...मैंने यह पोस्ट वैलेंटाइन डे के पक्ष या विपक्ष में नहीं लिखी है. जो तुम्हे इसे नकारना था या 'चमचों' की तरह हाँ में हाँ मिलाना था.जिन्होंने इसे पसंद किया वे मेरे चमचे नहीं हैं...जाने माने सक्रिय ब्लॉगर्स हैं बहुत कुछ लिख सकती हूँ पर ऐसा लगेगा कि मैं कोई सफाई दे रही हूँ....और मैं तुम्हे बहुत पहले बता चुकी हूँ कि मैं अपने लिखे पर अंत तक कायम रहती हूँ....यह हास्य का पुट लिए एक रोचक संस्मरण है .अगर इसे तुम उस नजरिये से नहीं देख सकते...कोई बात नहीं...बहुत कुछ है ब्लॉगजगत में पढने को...पढो और एन्जॉय करो....शुभकामनाएं
rashmi ji
जवाब देंहटाएंbahut hi rochak sansmaran raha aur shayad kafi logon ki zindagi se milta julta hoga .....sabko sukun mila hoga aisa sirf unke sath hi nhi hota sabke sath hota hai..........hahahaha.........vyangya ke sath bahut hi sundar dhang se likha hai.........badhayi.
संस्मरण मुझे बहुत अच्छा लगा... मैं बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ इस सन्दर्भ में....पर पता नहीं क्यूँ दिमाग चल नहीं रहा.....? अभी फिर आता हूँ.... कई बार कहने के लिए बहुत कुछ होता है.... पर कह नहीं पाते.... आता हूँ फिर....से.....
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहूँगा रश्मि दीदी जो कुछ भी कहा , आपकी बांतो पर अवश्य ही ध्यान दूंगा और कोशिश करुंगा ब्लोगजगत में और कुछ पढ़ने को ।
जवाब देंहटाएंये भी कुछ कम प्रेममय नही !!!!!! सुन्दर संस्मरण ,
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे वहां भी मेरी प्रेम की गठरी देखें ---
sushilapuri.blogspot.com
मजेदार पोस्य थी.....क्या कहूं...
जवाब देंहटाएंचलिए कुछ कहता हूं.....कई टिप्पणियां पढ़ने के बाद....
जवाब देंहटाएंभई बड़ी दीदी हों तो मजा तो आता है लड़ने में.आज भी दीदी की झाड़ खाता हूं मुकदर है भई अपना......
बाकी बात ये कि एक दिन था जो आपने बाहर बिताया अब उस दिन वेलेंटाइन था तो उसका क्या कसूर.....अब किसी को कत्ल करना तो नहीं सिखाता न वेबेटाइन डे....हद है यार बंसत भी मनाई जाती है .... जो हमने मनाई पूजा-पाठ के साथ....वेलेटाइन अकेले मनाई....पर माता-पिता के साथ था..इससे बेहतर औऱ क्या....जिसे सबसे ज्यादा प्यार करते हों उनके साथ रहना किस्मत है....
अरे बहना, सबकी यही कहानी है, हाँ तुम्हारी जुबानी पढ़ी तो तबियत खुश हो गयी. होता है होता है, उनका सोचना गलत नहीं है, ये दुनिया भी कुछ अजीब है? जब बाप बेटी के साथ होने पर लोग कमेन्ट कर देते हैं तो फिर तुम तो ................
जवाब देंहटाएंI came after a long time but as always it was worth it.Very interesting!Valentine's Day we also don't celebrate but how can one criticise others for doing so.Free country free will!
जवाब देंहटाएंदीदी ये पोस्ट पढ़ कर तो अपनी भी याद आ गयी वैलेंटाइन डे की..जब मैंने बहुत महीनो बाद फिर से लिखना शुरू किया था ब्लोग्स तो ये पोस्ट लिखी थी - http://abhi-cselife.blogspot.com/2010/02/blog-post.html ...
जवाब देंहटाएंअब बहुत ही ज्यादा गडबड कर दी पोस्ट लिखने में लेकिन लिखा था...हा हा ...आप पढ़ लें, समझ जायेंगी :P :P