(फेसबुक पर यह पोस्ट बहुत लोगों ने पढ़ी,इसपर अछा विमर्श किया और कई लोगों ने शेयर भी किये ,लगा इसे ब्लॉग पर सहेज लेना चाहिए )
एक फ्रेंड है, जो फेसबुक पर एक्टिव हैं,पर सिर्फ पढ़ने के लिए । उन्होंने डिप्रेशन पर कुछ लिख कर मुझे भेजा है कि मैं इसे अपनी वाल पर शेयर करूँ। बहुत जरूरी और सटीक बातें लिखी हैं,उन्होंने।आज समाज में डिप्रेशन के विषय में जागरूकता अतिआवश्यक है ।
उन्होंने देवनागरी के साथ रोमन का भी प्रयोग किया है ,जिसे मैंने यथावत रहने दिया है ।
उन्होंने देवनागरी के साथ रोमन का भी प्रयोग किया है ,जिसे मैंने यथावत रहने दिया है ।
Depression,एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में हमारा भारतीय समाज कभी खुलकर बात नहीं करता।यूं तो अधिकतर cases मे रोगी खुद ये स्वीकार करने को तैयार नहीं होता कि वो depressed है,और कहीं अगर कोई अपनों से इसका ज़िक्र करता भी है तो उसे परिवार वाले ही कहते हैं कि दिमाग पर control रखो,खुद को व्यस्त रखो आदि आदि । ये कहते हुए उन्होने कभी ये नहीं सोचा होता है कि दिमाग पर control भला करना पड़ता है क्या?क्या thyroid का कोई रोगी thyroxin hormone को control मे रहने को कह सकता है,BP का रोगी अपने BP को control मे रख सकता है भला? ।ये एक mental illness है,और अन्य बीमारियों की तरह ही हमारा इसपर कोई control नहीं हो पाता । जैसे हम BP Sugar,Cholestrol आदि अन्य बीमारियों से ग्रसित हो सकते है, उसी तरह depression के भी शिकार हो सकते है।
मतलब ये कि हर बीमारी का अपना एक अलग इलाज़ है। और हाँ, लोगों के पास उन्हे उसे न छिपाने का एक सम्मानजनक कारण भी। फिर जब हमारे यहाँ लोग depress होते हैं तो हम समाज को ये क्यों नहीं कह पाते,कि हाँ ये बीमार हैं और हम doctor/psychiatrist से मिल रहे हैं। अगर कोई depressed है और उसके परिवार ने सही समय पर इसे पहचान लिया और accept भी कर लिया तो ये रोगी के लिए बहुत अच्छा है। पर रोगी की समस्या यही खत्म नहीं हो जाती ,हाँ कम से कम उन्हे उनलोगों की तरह नहीं जीना पड़ता जिसके परिवार मे ही उसकी ये बीमारी स्वीकार्य नहीं है और वो बिना दवा के अपने दिमाग को control मे रखकर जीने या यूं कहें घुटघुटकर जीने को बाध्य है।
वैज्ञानिकों के अनुसार Brain मे serotonin नाम का एक chemical होता है जो brain में दो cells के बीच neuro transmitters की तरह कार्य करता है। यह mood balance,याददाश्त भूख आदि के लिए ज़िम्मेवार होता है। उनका मानना है कि serotonin के असंतुलन की वजह से डिप्रेशन होता है। हालांकि इसको लेकर वैज्ञानिक sure नहीं हैं की इसकी कमी से डिप्रेशन होता है या डिप्रेशन की वजह से serotonin कम हो जाता है क्योकि brain के अंदर serotonin लेवेल की जांच हो पाना अभी तक संभव नहीं हुआ है।
Doctors के अनुसार इस बीमारी मे रोगी का दिल किसी काम मे नहीं लगता।थकान,कमजोरी नींद व भूख की कमी होती हैं। रोगी उदास व अकेला महसूस करता है साथ ही जीने की इच्छा न होना व suicidal attempt जैसे लक्षण भी होते हैं।शुरुआत मे अगर हम इस रोग को पहचान लें तो psychotherapy जिसे talk therapy भी कहते है से काम बन सकता है।इसमे psychologist रोगी के साथ बात कर उन्हे उनकी बीमारी का अहसास दिलाते हैं।रोगी को stress न लेने और अपने mood swings को (जो उनकी बीमारी की अहम वजह होती है) समझने को कहा जाता है। साथ ही उन्हे ये समझाया जाता है की जो चीज उन्हे परेशान कर रही है उसका कैसे सामना कर सके या उससे निजात पा सके।और सबसे अहम बात कि psychologist पहले उन्हे समझते है,बिना निर्णायक बने।लेकिन कई मामलों मे जब रोगी को दवा की जरूरत होती है ,तो psychiatrist के सलाहनुसार उन्हे antidepressant medicine लेना पड़ता है।
आज हमारे देश मे लगभग 40 प्रतिशत लोग डिप्रेशन के शिकार हैं।हालांकि world health organisation जैसी संस्थाएं लोगो को जागरूक बनाने के लिए अपने तरीके से काम कर रही है। अभी हाल मे ही उन्होने let’s talk depression campaign किया है ,पर छोटे शहरों और गावों मे इसके प्रति सजकता लाना जरूरी है।doctors को इस बीमारी के प्रति सजगता लाने के लिए आगे आना चाहिए। साथ ही depressed patient के परिवार को को भी इस बीमारी को छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए,ताकि रोगी खुद को अलग न समझे। साथ ही उनके बात करने से समाज में उनके आसपास कोई और, जो इसी बीमारी से जूझ रहा हो लेकिन समझ नहीं पा रहा हो कि वो बीमार है उसे भी दिशा मिले,और वो भी अपना इलाज कराने की सोच सके!आए दिन हम किसी न किसी जगह से depression से suicide कर लेने वाली घटना के बारे में सुनते है।अगर depression को लेकर एक बेहतर सोच बनाई जाए व depressed लोगों के लिए हमारे परिवार workplace व समाज मे बेहतर माहौल बन सके तो शायद ऐसे घटनाएँ न हो।come on, let’s talk ,let’s act!
(इस पोस्ट पर आये कमेंट्स )
बीनू भटनागर : रश्मि मै मनोविज्ञान में ऐम ए हूं और ख़ुद अवसाद या डिप्रैशन से गुज़री हूं। डिप्रैशन के लिये दवाइयों की ज़रूरत पड़ती है पर सायकौथैरैपी भी कम महत्व नहीं रखती। मेरा लेखन सायकौथैरैपी सैशन में ही शुरू हुआ। सायकॉलजिस्ट और सायकेट्रिस्ट दोनों के काम अलग है। मैने Anxiety disorder, bipolar disorder, OCD, dysylaxia, attention deficit hyper activity तथा और कुछ सामान्य मनोरोगों के बारे में जागरूकता लाने के लिये बहुत लेख लिखे है। कोई चाहे तो लिंक दे सकती हूं पर हम लोग हमेशा इसे नकारने के आदी है किसी से चिकित्सा लेने को कहो तो वो बुरा मान जाता है। बहुत संकीर्ण सोच है। मैने तो अपनी पहली किताब की भूमिका में भी इसका जिक्र किया था।
नीलू नीलपरी : सही लिखा है रश्मि आपकी दोस्त ने। मैं भी साइकोलॉजी में एमएससी हूँ, साइकोलोजिस्ट और खुद भी डिप्रेशन और suicide attempt कर साइकेट्रिस्ट की मदद से उस अवसाद की स्थिति से निकली हूँ। अब मेरा बेटा भी adhd और डिप्रेशन की ट्रीटमेंट ले रहा है। इनमें साइकेट्रिस्ट और साइकोलोजिस्ट के साथ साथ परिवार, सहकर्मी, मित्रों का साथ भी बहुत ज़रूरी है, नहीं तो अवसाद कब सुसाइड और अन्य mental illnesses में बदल जाये कह नहीं सकते। अपनी प्रॉब्लम करीबी व्यक्तियों से शेयर करने से, बात करने से ही इलाज की राह पर जाय जा सकता है। जो भी ट्रीटमेंट हो साइकेट्रिस्ट की देखरेख में ही दवा, काउंसलिंग, मैडिटेशन सब चलना चाहिए। otc यानी केमिस्ट से खुद से दवा लेकर, या किसी अन्य पेशेंट की दवा को खुद पर आजमाना रोग को बढ़ा सकता है, इससे बचना चाहिए। यह केमिकल imbalance ही है जो ठीक हो जाता है, जैसे विटामिन की कमी विटामिन की गोलियों और उचित खानपान से ठीक होती है। छुपाने जैसी कोई बात नहीं इसमें। रोग है ठीक होता है 100%.
👍
सुरेश चन्द्र उपाध्याय ;इसके अतिरिक्त मैंने एक पत्रिका में पढा कि होम्योपैथी का आरिटैनम अचूक दवा है, जिसे आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म कहा है।
इसके अलावा दोनों समय पसीने आने तक कसरत भी जरुरी है। मैंने शाइजोफ्रेनिया मरीज को कसरत और अच्छी खुराक़ से ठीक होते देखा है। कसरत सबसे अधिक प्रभावी उपाय है। साथ ही भारतीय शास्त्रीय संगीत का नियमित सुनना, गाना, बजाना असरकारक है। मेरे दो साथियों पर पडे प्रभाव को देख रहा हूँ। नींद आने लगी है, डिप्रैशन बिलकुल नहीं है,आत्मविश्वास बढ गया है कसरत टुकडों में हो तो भी असरकारक
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