रविवार, 15 अक्तूबर 2017

लाहुल स्पीती यात्रा वृत्तांत -- 6 (रोहतांग पास, मनाली )

मनाली का रास्ता भी खराब और मूड उस से ज्यादा खराब . पक्की सडक तो देखने को भी नहीं थी .बहुत दूर तक बस पत्थरों भरा कच्चा  रास्ता. दो जगह गाड़ी भी अटकी ,हम फिर से बर्फीले  पानी में चले  'रोहतांग पास' आया तो देखा कई लोग पुल के नीचे पत्थरों पर खड़े हो तस्वीरें खिंचवा रहे हैं. वो घटना याद  आगई.जब ऐसे ही स्टूडेंट्स को लेकर आई बस किनारे खड़ी थी .सारे बच्चे उतर कर फोटो खींच रहे थे और अचानक से बाँध का पानी छोड़ा गया. कई बच्चे उस तेज बहाव में बह गए :( . 'रोहतांग  पास' के विषय में स्कूल के जमाने से ही पढ़ा था पर यह घटना याद आते ही उतरने की इच्छा नहीं हुई . हम आगे बढ़ गए .

मनाली के पास आते ही सडकें अच्छी मिलने लगीं और आस पास सब कुछ धुंध में लिपटा हुआ .नीचे सारी घाटी बादलों से ढकी नजर आ रही थी .मनाली में हमारा होटल माल रोड पर ही था . माल रोड पर कोई ऑटो,कार कोई भी सवारी नहीं आ सकती . ढेरों के ढेर लोग पैदल ही घूमते फिरते नजर आ रहे थे .हम भी होटल में फ्रेश होकर नीचे आ गए . कहीं चाट खाते, कहीं कुछ शोपिंग करते ,आइस्क्रीम खाते माल रोड पर ही टहलते रहे . मालिश करने वाले हाथों में तरह तरह की तेल की शीशियाँ  लिए घूम रहे थे .कई लोग उनसे अपने थके पैरों की मालिश करवा थकान उतरवा रहे थे. यह देख अच्छा  लग रहा था ,भारतीयों में अब घुमने का शौक काफी बढ़ गया है और लोग परिवार सहित घुमने निकलते हैं. घर के बड़े बुजुर्ग को भी साथ लेकर चलते हैं . एक दस-पन्द्रह लोगों का ग्रुप था .हर उम्र के लोग थे .उनमें एक बूढी महिला जो जरूर माँ और दादी माँ होंगी.उनके पैरों की मालिश करवाई जा रही थी .पूरा परिवार उन्हें घेर कर खड़ा था और हंसी मजाक कर रहा था. बारह बजे रात तक बहुत गहमागहमी थी ,बाद मे भी रही होगी पर हम वापस होटल चले आये .

 मनाली शहर 6,726 फीट की उंचाई पर कुल्लू घाटी के उत्तरी छोर के निकट व्यास नदी की घाटी में स्थित है .यह   हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों का एक महत्वपूर्ण हिल स्टेशन है। प्रशासकीय तौर पर मनाली कुल्लू जिले का एक हिस्सा है, जिसकी जनसंख्या लगभग 30,000 है। यह छोटा सा शहर लद्दाख और वहां से होते हुए काराकोरम मार्ग के आगे तारीम बेसिन में यारकंद और ख़ोतान तक के एक अतिप्राचीन व्यापार मार्ग का शुरुआत था।
मनाली और उसके आस-पास के क्षेत्र भारतीय संस्कृति और विरासत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसे सप्तर्षि का घर बताया गया है।  मनाली शहर का नाम मनु के नाम पर पड़ा है। मनाली शब्द का शाब्दिक अर्थ "मनु का निवास-स्थान" होता है। पौराणिक कथा है कि जल-प्रलय से दुनिया की तबाही के बाद मनुष्य जीवन को दुबारा निर्मित करने के लिए साधु मनु अपने जहाज से यही पर उतरे थे। मनाली को "देवताओं की घाटी" के रूप में जाना जाता है। पुराने मनाली गांव में ऋषि मनु को समर्पित एक अति प्राचीन मंदिर हैं।
1980 के शेष दशक में कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद के बाद मनाली के पर्यटन को जबरदस्त बढ़ावा मिला. जो गांव कभी सुनसान रहा करता था वो अब कई होटलों और रेस्तरों वाले एक भीड़-भाड़ वाले शहर में परिवर्तित हो गया।
मनाली शहर 6


हिडिम्बा मन्दिर ---- 
लोगों ने बताय कि हिडिम्बा मंदिर और मनु मंदिर तक पैदल ही जाया जा सकता है . हमने पैदल ही जाने का निश्चय किया. ज़रा मनाली कि ऊँची नीची सुरम्य पहाड़ी रास्तों पर तसल्ली से घूमने का मन था. माल रोड से मात्र दो किलोमीटर की दूरी  पर है .,यह मंदिर परिसर ऊँचे ऊँचे घने देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ है और मन्दिर तक का रास्ता बहुत ही खूबसूरत बगीचे से होकर जाता है.  मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है. ,हिडिम्बा मंदिर पगोडा शैली में काष्ठ कला से निर्मित  बहुत ही प्राचीन मन्दिर है.इस मन्दिर का निर्माण १५५३ में हुआ था.मन्दिर की उंचाई लगभग ४० मीटर . चौकोर छत हैं और सबसे ऊपर शंकु सी आकृति पीतल से मढ़ी हुई है. मन्दिर के बाहर और छत से कई जंगली जानवरों, बारहसिंघा आदि के सींग टंगे हुए हैं.गर्भ गृह के अंदर हिडिम्बा देवी की प्रतिमा एक बड़े शिला के रूप में विराजमान है.मनाली के लोग और कुल्लू राजवंश के लोग हिडिम्बा  देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं.सदियों से उनकी पूजा करते चले आ रहे हैं. हिडिम्बा मंदिर से कुछ ही दूरी पर घटोत्कच का मंदिर भी है.

मन्दिर के बाहर कुछ पहाड़ी औरतें रुई के बड़े गोले से खरगोश लेकर खड़ी थीं. वे सबसे जिद कर रही थीं कि दस रुपये देकर खरगोश को लेकर फोटो खिंचवायें.हमलोगों की इच्छा नहीं  थी .जब उन महिलाओं की तस्वीरें लेनी चाही तो उनलोगों ने मुंह फेर लिया :) फिर मैंने भी दस रुपये देकर फोटो खिंचवा ली .  

हिडिम्बा मन्दिर के पास म्यूजियम ऑफ ट्रेडीशनल हिमाचल कल्चर है। इस संग्रहालय से हिमाचल के  हस्तशिल्प तथा कला के नमूने खरीद सकते हैं।

इसके बाद हम मनु मंदिर की तरफ चले .मनु मंदिर बहुत उंचाई पर स्थित है, यह अक्सर  बादलों से घिरा रहता  है. यहाँ से पूरी मनाली को देखा जा  सकता है.मंदिर लकड़ी और पत्थर से  बना हुआ है और उसपर बहुत सुंदर नक्काशी की  हुई है. जमीन संगमरमर का है. पुराणों के अनुसार जब पूरा संसार जल प्रलय में डूब गया था तो मनु, सप्तऋषियों के साथ एक नाव पर सवार हो उंचाई पर स्थित मनाली आ गए थे . और इसे अपना निवास स्थान बनाया. ये भी कहा  जाता है कि ऋषियों ने यज्ञ कर एक स्त्री 'श्रद्धा ' का निर्माण किया और मनु और श्रद्धा के के सन्तान से इस संसार का निर्माण हुआ. हम सब मनु की सन्तान हैं. मनाली शब्द मनु + आलय से बना  है यानि ये मनु का निवासस्थान है. 



मनाली में माल रोड से करीब चार किलोमीटर दूरी पर वशिष्ठ नामक एक छोटा-सा गांव बसा हुआ है। इस गांव में मुनि वशिष्ठ और भगवान राम को समर्पित कई पुराने मंदिर हैं। ‘सतयुग में महाऋषि वशिष्ठ ने मनाली में रह कर पूजा की थी। उनका एक आश्रम अयोध्या में भी था। भगवान राम के समय वे अयोध्या में रह कर उनकी शिक्षा का काम देखते थे। उसके बाद वे पुन: मनाली आ गये थे। पांच हजार साल पहले वे अंतर ध्यान हो गये। तब यह मूर्ति प्रकट हुई। जो इस मंदिर में स्थापित है।’यहीं पर ठंडे और गर्म चश्मे हैं, जहां आप भी स्नान कर सकते हैं। महिलाओं के लिए बने कुण्ड में बहुत सारी स्त्रियाँ स्नान कर रही थीं.  उनमे ज्यादातर विदेशी महिलायें थीं. मुझे अल्बर्ट का कथन याद आ गया कि वे लोग होम स्टे करते हैं,सस्ते जगहों पर रहते हैं. होटल में नहीं टिकते कि नहाने की अच्छी सुविधा हो.इसीलिए विदेशी,इन गर्म कुण्ड का सबसे ज्यादा लाभ उठाते हैं. मैं तो सिर्फ पानी में पैर डालकर आ गई. 
इसके बगल में राम मंदिर है। यहां के पुजारी के अनुसार यह मंदिर लगभग चार हजार साल पहले बना था। १६०० ई० में राजा जगत सिंह ने इसका उद्घार किया।

पास में ही  तिब्बती शरणार्थियों द्वारा 1960 में निर्मित गाधन थेकचोलिंग गोम्पा स्थित है। पारम्परिक गोम्पाओं की तरह चटख सुनहरे और लाल रंग से सजे इस बौद्ध मंदिर में शाक्य मुनि बुद्ध की प्रतिमा विराजमान है। गोम्पा की बाहरी दीवार पर तिब्बत में 1987 से 1989 के बीच चीनी कार्रवाई में मारे गए नागरिकों के नाम लिखे हुए हैं। मंदिर बना हुआ है। जो कि १८०० साल पुराना कहा जाता है।

थोड़ी दूर पर ही व्यास नदी के किनारे क्लब हाउस है . क्लब हाउस में मनोरंजन की बहुत सारी चीज़ें हैं . पर मुंबई से हम खुले में पहाड़ों और नदी के सान्निध्य के लिएय आये थे. बंद कमरे के अंदर एक पल भी बिताने की इच्छा नहीं थी. हम क्लब हाउस नहीं गए वहीँ.बहती व्यास नदी के किनारे थोड़ी देर बैठकर वापस आ गए.

सुबह जल्दी ही हम तैयार होकर चंडीगढ़ के लिए निकल पड़े. अब वापसी थी. पूरे रास्ते व्यास नदी साथ साथ बहती रही. सडक के एक तरफ कलकल बहती साफ़ पानी वाली व्यास नदी और दूसरी तरफ पेड़ों के झुरमुट. रास्ते में एक रेस्टोरेंट में हमने चाय पी. रेस्टोरेंट का ज्यादा हिस्सा नदी पर ही बना हुआ था . ऐसा आभास हो रहा था मानो नाव पर बैठ कर चाय भजिये खा रहे हों.इतना खूबसूरत रास्ता था कि मन हो रहा था ,चलते जाएँ और हमें चलते ही जाना था.आज पूरे दिन सफर ही करना था. मंडी पहुँचते रात हो गई .वहीँ  एक होटल में हमने आराम किया और फिर अगली सुबह चंडीगढ़ के लिए निकल पड़े. मुंबई की फ्लाईटशाम की थी पर हम काफी जल्दी पहुँच गए थे . चंडीगढ़ का मशहूर जुबली पार्क देखा, जहां अक्सर फिल्मों की शूटिंग होती है. पार्क बहुत खूबसूरत था पर पर पार्क शाम को ही घूमना चाहिए, दिन की चटख धूप में नहीं. फिर भी हमारी तरह कुछ और सिरफिरे भी घूम रहे थे थे ,पता नहीं उनकी क्या मजबूरी थी,हमें तो समय काटना था . 

 एयरपोर्ट पर पता चला हमारा लगेज ज्यादा हो गया है . टाबो  से, प्रेयर बाउल, लोहे और काष्ठ की कुछ आकृतियाँ, काज़ा से चाय के कप्स, मनाली से भी लकड़ी का मध्यम आकार का सजाने के लिए एक  प्रेयर ड्रम ( ,जिसके भीतर हज़ार बुद्ध मन्त्र लिख कर रखे हुए होते हैं. ऐसी मान्यता है कि ड्रम को एक बार घुमाने का अर्थ है, हज़ार मन्त्रों को पढ़ लेना .इसी से पूरे हिमाचल में जगह जगह बीच सडक ,चौराहे पर प्रेयर ड्रम्स  लगे हुए हैं और आते जाते लोग इन्हें क्लॉकवाइज़ घुमाते रहते हैं.) सेबों की  तीन पेटियां जिनमें चार चार किलो सेब थे ,खरीद लिए थे . बाक़ी सारे सामान तो अटैची के अंदर थे .सेब ही बाहर थे . (शुक्र है सतलज नदी के किनारे से चुने सुंदर आकृति वाले गोल-चिकने पत्थर गाड़ी में ही छूट गए थे,वरना कुछ वजन वे और बढ़ा देते .अधिकारी ने छह हजार का बिल बना कर दे दिया. जितने का सामान नहीं ,उतने का तो ले जाने का किराया हो जाता. मन मसोस कर सेबों को ही छोड़ देने का निश्चय किया  .सोचा था ,पड़ोसियों को, दोस्तों  को ताजे-मीठे हिमाचली सेब खिलाऊँगी पर सोचा कब पूरा होता है. उदास मन से वहीँ ट्रॉली में पड़े सेबों को निहारते वापस चले आये :( 


हिडिम्बा मंदिर 







महर्षि मनु मंदिर 

महर्षि मनु मंदिर 

साथ साथ चलती व्यास नदी .




4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-10-2017) को
    "नन्हें दीप जलायें हम" (चर्चा अंक 2759)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आखिर खरगोश वाली को दस रुपये मिल ही गये।
    मनाली से मंडी तक ही रात हो गयी। गजब कर दिया।
    सवा सौ किमी में पूरा दिन लग गया।

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    1. मंडी तक रात नहीं हुई थी . मंडी से आगे किसी और जगह रुके थे पर जगह का नाम याद नहीं आ रहा था तो मंडी ही लिख दिया :)

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