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स्पीती नदी |
टाबो से दस बजे के करीब हम 'काज़ा' के लिए निकल पड़े. रास्ता वैसा ही भयावह था . ऊँचे पहाड़ के किनारे किनारे कच्चे से संकरे रास्ते .एक तरफ खाई और दूसरी तरफ पहाड़ों से गिरते छोटे छोटे पत्थर . हरियाली का नामोनिशान नहीं . चारों तरफ सिर्फ भीमकाय पहाड़. यह सोच कि हम हिमालय के अंदर ही अंदर पहाड़ों के बीच घूम रहे हैं, एक अलग सा रोमांच हो रहा था .
स्पीती नदी के किनारे करीब 11,980 फीट की उंचाई पर 'काज़ा' स्थित है .यहाँ सम्भवतः स्पीती घाटी का सबसे बड़ा मार्केट है. यहाँ एशिया का तीसरा सबसे उंचाई पर स्थित गाँव 'किब्बर' और एक पहाड़ी पर बना 'की मॉनेस्ट्री ' टूरिस्ट के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है .हमार ड्राइवर थका हुआ था .उसने कहा, 'आपलोग आज काज़ा मार्केट, बौध्द मठ वगैरह घूम लीजिये .अगले दिन किब्बर और की मॉनेस्ट्री देखने चलेंगे . हम होटल में सामान रख तुरंत ही मार्केट की तरफ निकल पड़े. बाज़ार सचमुच बहुत बड़ा था , हर तरह की चीज़ें उपलब्ध थीं . चारों तरफ विदेशी टूरिस्ट नजर आ रहे थे . एक बड़े से ग्रुप में से एक विदेशी बहुत अच्छी हिंदी बोल रहा था .उसने बड़े साफ़ हिंदी में कहा , 'पांच चाय देना' . एंटिक चीज़ों की एक बड़ी सी दूकान थी पर वहाँ हर चीज़ दो हज़ार से ऊपर की थी. शायद विदेशियों के लिए ही थी . एक जगह बोर्ड लगा था ,'इजरायली डिशेज़ ' हमने भी एक अजीब से नाम वाला कुछ ऑर्डर किया.पाया वो मैदे का मीठा चीला था .उसे डोसा के आकार में मोड़कर उसके ऊपर चॉकलेट सॉस से सुंदर डिजाइन उकेरा गया था. (अच्छा ख़ासा महंगा व्यंजन था ) .एक दूकान के बाहर कुछ कप्स बिक रहे थे, उसपर ड्रैगन की आकृति बनी हुई थी .चाय के कप्स खरीदने की मुझे अजब सी खब्त है, खरीद लिए (और बाद में एक्स्ट्रा लगेज़ हो जाने पर खुद को कोस रही थी )
हमने ड्राइवर को लौटा दिया था और पैदल ही घूमते हुए होटल लौटने की सोच रखी थी . रास्ते में एक सुंदर सा बौद्ध मठ था . सभी मठ खूब चटकीले रंग से पेंट किये हुए होते हैं, लाल ,सुनहरे ,हरे और नीले रंग बंजर पहाड़ों के मध्य बहुत खूबसूरत लगते हैं . मठ में जर्मनी के एक विदेशी युगल मिले. बातें होने लगीं, हम टाबो से आये थे और काज़ा ,रोहतांग पास होते हुए मनाली जा रहे थे .इन युगल को मनाली से काज़ा होते हुए टाबो जाना था .महिला रास्ते के बारे में पूछने लगीं. उन्हें इन खतरनाक पहाड़ी रास्तों पर बहुत डर लग रहा था .मैंने उन्हें आसान सा उपाय बताया ,'कानों में इयरफोन लगा, आँखें मूंदे बैठे रहिये...आँखें खोलिए ही नहीं कि रास्ता नजर आये ' पुरुष खूब हो हो कर हंसे और बोले...''बिलकुल ऐसा ही करना ' :)
मठ के पीछे एक पहाड़ी थी और पहाड़ी पर एक मंदिर था .हमारे पास समय था ,मन्दिर में श्रद्धा से ज्यादा हमें उस पहाड़ी पर चढने और ऊपर से पूरा 'काज़ा' देखने की इच्छा थी . सीढियां बनी हुई थीं पर चट्टानों की ही और बहुत ही बेतरतीब .किसी तरह चढ़ ही गए . ऊपर से ढलते सूरज की सुनहरी रोशनी में नहाया काज़ा देख मंत्रमुग्ध हो गए . दो तीन झबरीले कुत्ते भी हमारे साथ ही आये थे . पहाड़ के लोग अपने कुत्तों का बहुत ख्याल रखते हैं. सब कुत्ते हमें बहुत ही हृष्ट पुष्ट और सुंदर नजर आये .अपने यहाँ जैसे सडक पर घूमते उभरी हड्डियों वाला एक भी कुत्ता नहीं दिखा . होटल की तरफ लौटते हुए अन्धेरा हो गया था पर बादलों से लुका छिपी खेलते चाँद भरपूर रौशनी बिखेर रहा था .मैं तस्वीर लेने की कोशिश कर रही थी. पास से गुजरते एक बुजुर्ग सज्जन ने कहा, कल तस्वीर लेना...कल पूर्णिमा का चाँद होगा .तस्वीर ज्यादा अच्छी आएगी ." मैं तो जैसे खुशी से झूम उठी .अगले दिन हम चंद्रताल देखने जाने वाले थे यानि कि पूरे चाँद की रात हम चंद्रताल देख पायेंगे .ऐसा संयोग देख ,अपनी किस्मत पर नाज़ हो उठा (और इसका फल भी मिल गया ...आगे बताउंगी ) .
उन सज्जन का भी एक होटल था पर लगभग खाली था .वह बाज़ार से कुछ दूरी पर था और सडक से नीचे .वे बहुत चिंतित थे कि लोगों को उनके होटल के बारे में पता ही नहीं चलता .बहुत आग्रह से वे हमें अपना अहोत्ल दिखाने ले गए .साफ़ सुथरे सभी सुविधाओं से युक्त सुंदर कमरे थे .हमने उन्हें सलाह दी कि आप अपने होटल का ऑनलाइन विज्ञापन करें .दूर बैठे लोग सिर्फ कमरा और होटल देखकर बुकिंग कर देते हैं . वे बुजुर्ग इतने नेट सैव्वी नहीं थे फिर भी हमने उन्हें काफी समझाया .वे कितना कर पाए,नहीं पता .उनके कॉफ़ी के आग्रह को नम्रतापूर्वक ना कहना पड़ा .अनजान जगह थी,रात हो रही थी और हमें होटल वापस लौटना था .
दुसरे दिन जल्दी ही तैयार हो हम ,'की मॉनेस्ट्री', देखने निकल पड़े. ऊँची पहाड़ी पर बना यह किसी धार्मिक स्थल से ज्यादा एक किले सा लगता है. हज़ारों वर्ष पुराना ,स्पीती घाटी का यह सबसे बड़ा मॉनेस्ट्री है. 13,668 फीट की उंचाई पर स्थित इस मॉनेस्ट्री कि स्थापना 1000 AD में हुई थी. यहाँ लामाओं का प्रशिक्षण केंद्र भी है. दूर से यह घरों का एक गुच्छा सा लगता है. एक के ऊपर एक बने ,एक दूसरे से सटे हुए ढेरों घर इस मॉनेस्ट्री को एक अनोखा रूप प्रदान करते हैं. एक लामा हमें मोनेस्ट्री घुमाने ले गए .अंदर बहुत सारे कमरे थे और एक बड़ा सा प्रार्थन भवन था .ध्यानावस्थित बुद्ध की बड़ी सी मूर्ति थी. हमने भी आँखें बंद कर थोड़ी देर प्रार्थना की .वहाँ से लामा हमें एक दूसरे प्रार्थना भवन में ले गए और एक बिस्तर की तरफ दिखाया कि 'दलाई लामा' जब भी आते हैं, यहीं पर आराम करते हैं. अद्भुत शांति थी चारों तरफ . कई कमरों में घुमाते हुए वे हमें मॉनेस्ट्री की छत पर ले गए .वहाँ से चारों तरफ का दृश्य अनिवर्चनीय था .एक तरफ बर्फ से लदी हिमालय की चोटियाँ ,दूसरी तरफ बहती हुई स्पीती नदी के किनारे फैली विस्तृत घाटी ..."की गाँव' के छोटे छोटे घर और उसके सामने हरे भरे खेत . अपूर्व दृश्य था .
वहाँ से घुमावदार रास्ते से होते हुए हम 'किब्बर गाँव' की तरफ बढे .यह एशिया का तीसरा सबसे अधिक ऊँचाई(14,200 फीट) पर स्थित गाँव है. शायद यह स्पीती घाटी का सबसे हरा भरा क्षेत्र है. पहाड़ों पर खूब हरियाली फैली थी. सफेद दीवारों और लाल छतों वाले करीब सौ घरों का एक छोटा सा गाँव है 'किब्बर' .यहाँ एक छोटा अस्पताल और स्कूल भी हैं . गाँव में बिजली रहती है और छत पर लगा डिश एंटेना बता रहा था कि कई घरों में टी वी भी है..गाँव से ऊपर दूर तक फैला समतल क्षेत्र है,जहां गाँव वाले खेती करते हैं .धान की फसल लहलहा रही थी. घरों के बाहर याक के खाल और सींग भी सूखते दिखे. ठंढ नहीं थी पर बहुत ही तेज हवा चल रही थी. एक बस से कुछ युवा आये हुए थे .वे लोग हाथ फैला ,शाहरुख और काजोल के पोज में गाना गाते हुए फोटो खिंचवा रहे थे .सुदूर सफेद बर्फीली चोटियों के नीचे लाल छतों वाले घर और उनके सामने फैले लहलहाते हरे खेत बहुत मनमोहक लग रहे थे. हमें देर तक वहीँ बैठे रहने का मन था पर अब चंद्रताल के लिए निकलना था .सो वापस लौटना पड़ा रास्ते में पैदल चलते एक स्पेनिश युवा जोड़े ने लिफ्ट मांगी .
.लड़की तो नान नक्श और रंग से बिल्कुल भारतीय लग रही थी .वे लोग ट्रेक करते हुए किब्बर गाँव तक गए थे पर वापस लौटते हुए उनका पानी खत्म हो गया था और सूरज
की तेज किरणें भी बेहाल कर रही थीं . पूछने पर बताया कि उन्हें भारत बहुत अच्छा लगा और अक्सर आया करेंगे (एक भारतीय से भारत में लिफ्ट और क्या कहते...वैसे अच्छा भी लगा ही होगा :) )
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टाबो से काज़ा का सुंदर दृश्य |
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काज़ा का बाज़ार |
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काज़ा का बौद्ध मठ |
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खतरनाक रास्तों से डरने वाली जर्मन |
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काज़ा का बौद्ध मठ |
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काज़ा का पहाड़ी मन्दिर |
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पहाड़ी के ऊपर से दखता काज़ा |
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ढलती शाम में काज़ा |
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की मॉनेस्ट्री |
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किब्बर गाँव |
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किब्बर गाँव के खेत |
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किब्बर गाँव के पीछे बर्फ लदी चोटियाँ |
जब कोई जानी पहचानी जगह का लेख मिलता है अपनी यात्रा तुरंत याद आ जाती है फिर अपनी यात्रा और सामने वाले लेख को देखने लगते हैं कि हमने उस जगह पर कुछ छोड़ा तो नहीं था, जो जो आपने हमसे ज्यादा देखा हो।
जवाब देंहटाएंइस रुट पर हम बाइक पर थे। आपको भी बाइकर्स मिले होंगे।
आपसे क्या छूटा होगा ...आप तो गजब के घुमक्कड़ हैं :) पर हाँ जिन जगहों पर घूम चुके हों.उन्हें दूसरे की नजरों से पुनः देखना जरूर अच्छा लगता है.
हटाएंबहुत शुक्रिया आपका
शानदार यात्रा वृतांत. इतना जीवंत, कि लगा हम खुद सफर कर रहे तुम्हारे साथ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा वृतांत रश्मि जी , ऐसा लगा खुद घूम कर आये हैं ... वंदना बाजपेयी
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