रविवार, 23 दिसंबर 2012

किसे सुनाएँ हाल-ए-दिल...नज़र और जुबां पे सबके ताले पड़े हुए हैं

दिल्ली में घटी उस शर्मनाक घटना पर फेसबुक मेरी त्वरित प्रतिक्रिया थी,
"दिल्ली में वहशीपन की इस घटना पर सबका खून खौल रहा है .पर सिर्फ खून खौलने की नहीं, खून का ये उबाल बनाए रखने की जरूरत है, जब तक ऐसी घटनाएं बंद न हो जाएँ;.
दोषियों को सजा न मिल जाए और लडकियां अपने आप को सुरक्षित न महसूस करने लगें।
ये नहीं कि कुछ दिनों में हम इसे भूल जाएँ और फिर किसी अगली खबर का इंतज़ार हो। "

सबसे ज्यादा इस बात का डर था कि  सबका गुस्सा पानी के बुलबुले सा बैठ न जाए। 
पर संतोष है कि ये उबाल  एक जलता ज्वालामुखी बन गया है, जिस से दहकता लावा निकलता ही जा रहा है। 
सही भी है, पता नहीं कितने दिनों का जमा आक्रोश है, यह।  रोज ही ऐसी ख़बरें सुनने  को मिलती हैं और गुस्से में बेबसी से मुट्ठियाँ  भिंच  कर रह जाती हैं। 
पर अब और नहीं, आज हर वर्ग के युवक-युवतियां आक्रोशित हैं, उस पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए कटिबद्ध हैं और ऐसी व्यवस्था चाहते हैं कि आगे चलकर ऐसी घटनाएँ न हों, महिलायें सड़कों पर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। 
बस इतनी सी उनकी मांगें, इतनी सी उनकी चिंता और हमारे प्रशासकों, देश के संचालकों के पास उन्हें आश्वस्त करने के लिए दो शब्द भी नहीं ??
जिनके हाथों में शासन की बागडोर है ,क्या उन्हें ये सब मजाक लग रहा है ? सिर्फ बच्चों का ऊधम  लग रहा है जो इसे पूरी तरह नज़रंदाज़ कर अपने सुरक्षित कमरे में बैठकर चाय के सिप के साथ राजनीति की गोटियाँ बिठाने में व्यस्त हैं ??

अगर घर के  किसी बच्चे या बच्चों को कोई बात गलत लगती है और वे अपना आक्रोश जताते हैं तो 'घर के  बड़े उनकी पीठ सहलाते हैं, उन्हें आश्वस्त करते हैं, उन्हें दिलासा देते हैं कि अब ऐसा नहीं होगा और वे इसे सुधारने की पूरी कोशिश करेंगे।'
इन मंत्रियों, शीला दीक्षित, सुशील कुमार शिंदे ,सोनिया गांधी हमारे मूक बधिर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति इन सबसे इतनी सी ही अपेक्षा थी कि वे इस जनसमूह को दिलासा देते और प्रॉमिस करते कि "एक निश्चित अवधि के अन्दर उन दोषियों को सजा मिलेगी। वे क़ानून ,व्यवस्था इतनी कड़ी कर देंगे कि रेप जैसे दुष्कर्म करने से पहले दुष्कर्मियों  रूह काँप जायेगी। लडकियां  खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी।" 
ये सब क्या इतना कठिन कार्य है? जिसे कार्यान्वित करने का आत्मविश्वास उनके पास नहीं है। ये क्या गरीबी हटाने और बेरोजगारी दूर करने जैसी माँगें  हैं, जिनके लिए उन्हें योजनायें बनानी है, समय लेना है। 
ये sheer apathy है सिर्फ उदासीनता, सिरे से नज़रंदाज़ करना और इस मुद्दे को अहमियत नहीं देना। क्यूंकि ये लोग उनके वोट बैंक नहीं हैं। आज अगर ये सारे नेता इन युवाओं का साथ भी दे दें तो उन्हे पता है  
इन युवाओं की अपनी सोच है, जरूरी नहीं कि उन्हें ये वोट दें। यहाँ हर वर्ग के युवा थे, जाति ,अल्पसंख्यक का भेदभाव नहीं था, इसलिए इन राजनीतिज्ञों की रूचि भी नहीं रही होगी। 

पर एक बार चुनाव जीत कर जब शासन की बागडोर हाथ में ले ली फिर तो वे परिवार के मुखिया से हो गए। युवाओं के इस आन्दोलन में वे उनके बीच आते, युवाओं से दो बाते करते, टी वी  के माध्यम से ही उन्हें सन्देश देते .उनके साथ बने रहते तो उनकी संवेदनशीलता भी जाहिर होती। पर उन्हें परवाह ही नहीं है। बल्कि आन्दोलन के दुसरे दिन तो पुलिस को जिस तरह आंसू गैस, लाठी चार्ज , पानी की बौछार करने के निर्देश दिए गए ,यह किसी कठोर शासक की तानाशाही जैसा रवैया ही था . शांतिपूर्वक अपनी बात कहने का भी हक़ नहीं। आपको वोट देकर जिताया गया, शासन की बागडोर सौंपी गयी। पर अब आपका जैसा मन हो व्यवस्था चलायें . कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ती रहें, गरीबी ,महंगाई,बेरोजगारी दूर करना  तो दूर, एक सुरक्षित माहौल तक भी नहीं दिया जा सकता। जनता को सिर्फ सहना है, वो मुहं नहीं खोल सकती। और मुहं खोलने की जुर्रत की तो फिर उसे बंद करवाने के कई तरीके आजमाए जायेंगे। पुलिस बल, जनता की रक्षा के लिए नहीं , वह नेताओं की शान बढाने के लिए है . एक राजनीतिज्ञ की सुरक्षा के लिए तीन पुलिसकर्मी नियुक्त हैं, जबकि 700 आम जनता के लिए मात्र एक पुलिसकर्मी। कमाल का जनतंत्र है। 

प्रधानमंत्री 'मनमोहन सिंह' और राष्ट्रपति 'प्रणव मुखर्जी' ने तो मुहं नहीं खोले . वे भावहीन चेहरा लिए लिखी लिखाई स्पीच पढेंगे 'राष्ट्र के नाम सन्देश ' . (आज सुबह पढ़ा भी और जनता को ज्ञान दिया कि 'हिंसा किसी समस्या का हल नहीं।' मूक बधिर तो वे थे ही अब क्या नेत्रहीन भी हो गए कि उन्हें दिखाई नहीं दिया , जनता तो शांतिपूर्वक बैठी थी, पर उनपर आंसू गैस के गोले छोड़े गए और पानी की बौछार की गयी और लाठी चार्ज भी ) राष्ट्र के जनता की क्या फिकर करनी? चुनाव सन्निकट होगा, तो अपने वोटबैंक को संबोधित किया जाएगा, उन्हें झूठे आश्वासन दिए जायेंगे।   शीला दीक्षित ने मुहं खोला  भी तो अपने फायदे के लिए, 'दिल्ली पुलिस' पर दोष लगा, खुद को बरी करने की कोशिश। केंद्र में सरकार क्या उनकी पार्टी की नहीं है ?? वे गृहमन्त्री से बात नहीं कर सकती ? शीला  के एक और बयान ने हैरान किया, वे बरखा दत्त को दिए इंटरव्यू में कह रही थीं, "उन्हें पीडिता को देखने की हिम्मत नहीं है, उसके माता -पिता से मिलने की हिम्मत नहीं है,वे रो पड़ेंगी . डा नर्स उस लड़की का अच्छा ख्याल रख रहे हैं। वे उनसे हालचाल पूछ कर संतुष्ट हो जाती हैं। " यही बातें इनकी मानसिकता दर्शाती हैं। उनके राज्य में ये जघन्य घटना घटी है और वे इसकी जिम्मेवारी नहीं लेना चाहतीं। उनके पास कहने के लिए दो शब्द भी नहीं ? क्या उनके परिवार में किसी के साथ कोई दुर्घटना घटे तो वे बस डा. से हालचाल पूछ कर रह जायेंगी ? कोई भी आपदा आने पर हर देश के मुखिया, अस्पताल में जाकर पीड़ितों का हालचाल पूछते हैं, तो क्या वे असंवेदनशील हैं ?? और शीला दीक्षित  खुद को इतना संवेदनशील समझती हैं कि  उन्हें रो पड़ने का डर  है? तो रो पड़तीं , बेहोशी में भी उस पीडिता की आँखों में आंसू थे, कैसा मर्मान्तक कष्ट झेला  था उसने। 

हमारे प्रधानमन्त्री गृहमंत्री सब ये राग अलाप रहे हैं कि 'हम इनका दुःख समझते हैं हमारी भी तीन बेटियाँ है। " किसी का दुःख समझने के लिए बेटियों के माँ -बाप होना जरूरी नहीं , एक संवेदनशील ह्रदय होना चाहिए।  मेरे सहित कई लोगों के सिर्फ बेटे हैं तो क्या उनका मन आहत नहीं है? उन्हें इनका दुःख महसूस नहीं हो रहा?  इन सबके ,इतने हास्यास्पद बयान ये जाहिर कर रहे हैं कि ऐसी स्थितियों से निबटने के लिए हमारे नेता सक्षम नहीं हैं। वे सिर्फ लिखी लिखाई स्पीच पढने और जलसों में फूल और शॉल  ग्रहण करने के योग्य हैं। 

इस घटना पर बहुत लोग ज्ञान  बघार रहे हैं। शबाना आज़मी कह रही हैं, 'दोषियों को सजा देना समस्या का हल नहीं है बल्कि उन्हें समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए, उसे कोई  नौकरी न मिले,वो समाज में सर उठा कर न चल सके आदि आदि।' पता नहीं किस लोक की वासी हैं वे, उन्हें हमारे देश के व्यवस्था का पता ही नहीं। इतनी बड़ी जनसँख्या और इतने कम पुलिस बल, कौन उन पर नज़र रख पायेगा ? एक और बुद्धिजीवी महिला ने शबाना आज़मी की इस बात मेरे ऐतराज करने पर फेसबुक पर लिखा कि 'अगर कठोर सजा जैसे फांसी जैसी सजा दी जायेगी तो हमारे चाचा, भाई,पिता, दोस्त, पडोसी सब इस सजा के लिए पंक्तिबद्ध पाए जायेंगे, इसलिए शबाना आज़मी की सलाह मानी जाने चाहिए ।' 
तो इसलिए कि समाज में हमारे अपने भी ऐसा घृणित दुष्कर्म कर रहे हैं, हम कठोरतम सजा की अपेक्षा न करें? ये सही है, कठोरतम सजा के प्रावधान से अपराध ख़त्म नहीं हो जाते पर कम जरूर हो जाते हैं। आज ड्रंक ड्राइविंग , कार चलते वक़्त मोबाइल पर बातें करना आदि जैसी गलतियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है और काफी कमी आयी है, लोगों की ऐसी हरकतों में। पहले ही सोच लेना कि 'सात साल सश्रम कारावास की सजा' ही बहुत है, जबकि एक लड़की की पूरी ज़िन्दगी पर असर पड़ता है . उसका पूरा व्यक्तित्व बदल जाता है। उसे एक नॉर्मल रिलेशनशिप निभाने में कठिनाई आती है तो क्या यह उसके व्यक्तित्व की ह्त्या नहीं है ?? जरूरी है कि इस दुष्कर्म को गंभीरतम अपराध के रूप में लिया जाए ताकि रूह काँप जाए किसी की ऐसा अपराध करते। जब देश की राजधानी में इसके खिलाफ आन्दोलन चल रहे थे। मुंबई में नेपाल से अपने पति को ढूँढने आयी एक लड़की की मदद करने के बहाने उसके पति के तीन मित्रों ने अलग अलग जगह ले जाकर उसका रेप किया। ऐसा वे बस इसलिए कर पाए कि उन्हें पता है, पहले तो अपराध साबित ही नहीं होगा और साबित हो गया तब भी वे जल्द ही जेल से छूट जायेंगे। लोगो में एक भीषण डर  पैदा करने की बहुत जरूरत है और ऐसा तभी हो सकता है, जब वे अपने  साथी अपराधकर्मियों को कठोर  सजा पाते हुए देखें। 

इसके साथ लोगों की मानसिकता बदलनी भी बहुत जरूरी है। आज भी नारी चाहे हर क्षेत्र में पुरुषों के समकक्ष हो। पर अधिकाँश पुरषों के मन में ,उसके लिए सम्मान नहीं है, । कुछ आंकड़े  पढ़कर हैरानी हुई। दिल्ली में एक लाख महिलाओं  में से 500 रेप की शिकार हुई हैं। मुंबई में एक लाख में 250 , बैंगलोर, चेन्नई में 5 और कलकत्ता में एक लाख महिलाओं में दो महिलायें . और कलकत्ता का  ये आंकड़ा पिछले पांच साल से ऐसा ही है। क्यूँ है ऐसा? क्यूंकि दक्षिण में बंगाल में महिलाओं का सम्मान है। बंगाल में  छोटी लड़कियों को सिर्फ माँ कहा ही नहीं जाता ,उन्हें सम्मान भी दिया जाता है। 
दुःख हो रहा है,ऐसा कहते पर सच तो यही है कि  हमारे उत्तर भारत में लडकियां आज भी जायदाद समझी जाती हैं। उनका अलग अस्तित्व नहीं माना  जाता। अधिकाँश पुरुष, उनके ऊपर अपना अधिकार समझते हैं,। 
पर धीरे धीरे लडकियां जागरूक हो रही हैं। जिस तरह निर्भीक होकर दिल्ली में लड़कियों ने प्रदर्शन में भाग लिया है और उनके माता -पिता ने इसकी अनुमति दी, वो स्वागतयोग्य है।  अब नयी पीढ़ी अपने बेटे-बेटियों में भेदभाव  नहीं करेगी। बेटियों को भी उतना ही प्यार और सम्मान मिलेगा अपने माता -पिता से . और जब हर घर से शुरुआत होगी समाज को भी लड़कियों का सम्मान करना सीखना होगा। अभी इस परिवर्तन में  बहुत समय लगेगा पर आशा और प्रार्थना है कि हमारे बाद आने वाली पीढ़ियों को  ऐसे अपराध की ख़बरें भी सुनने  को न मिले। अब कोई और निर्भया रेप की शिकार न हो।

निर्भया ( टाइम्स ऑफ इण्डिया द्वारा उस साहसी लड़की को यही नाम दिया गया है ) के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना में हाथ जुड़े हुए हैं। अब बस एक यही तमन्ना है, जल्द ही देख पाऊं कि मुस्कुराती हुई निर्भया  टी.वी. के माध्यम से हमसे मुखातिब हो रही है। चाहे उसे पूरी तरह ठीक होने में एक साल लग जाए, दुनिया के किसी भी कोने में उसे इलाज के लिए जाना पड़े पर हमें उसे मुस्कुराते हुए देखना है।

20 टिप्‍पणियां:

  1. main bhi bas ab NIRBHAYAke swasth hone ki prarthna hi karunga... aur vishay dukh dete hain... kis ko sahi samjhen, samajh nahi aa raha...

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  2. Ek ladka jise bachpan se ladki se dosti karna paap bataya gaya hai. vo ladka bada hota hai aur es dauran vo ladki ko tv par " eski kaise lelu main" jaise serial me laziz bhogne ki vastu me dekhta hai. bluefilmes baki bachi buddhi ka satyanash kar deti hai vo ladki ko insaan samjhta hi nahi hai aur rape karna mamuli baat samjhta hai. ladke ladki ki swasth dosti ko badava dena jaruri hai taki ladke samjhe ki ladki insaan hoti hai bomb nahi. aur bluefilms par lagaam honi chahiye.

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  3. क्या कहूँ रश्मि.....
    पूरा सिस्टम ही बर्बाद है.....किसकी गलती/कौन दोषी....इसमें ही वक्त निकल जाएगा...
    हम जैसे असहाय भी दिल में टीस लिए बैठे रहेंगे...

    अनु

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  4. Nirbhya ki dono aante nahi hai aur aise logi ki ghatiya jindagi ke baare me mujhe pata hai. i pray to god
    " aap nirbhya ko youthnesia dedo."
    yeh jaruri hai.

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    1. हम ऐसा क्यूँ सोचें हेमंत ,
      मेडिकल साइंस में रोज नयी खोजें हो रही हैं। ब्रिटेन के लीड्स शहर में intestine transplantation भी होता है। पर इसके लिए निर्भया को पूरी तरह ठीक होना पड़ेगा। उसके बाद ऐसा इलाज सोचा जा सकता है।
      ये सच है कि निर्भया पूर्णरूपेण सामान्य ज़िन्दगी नहीं बिता पाएगी। फिर भी कई ऐसे लोग हैं जो किसी दुर्घटना के शिकार हो गए हैं फिर भी समाज को कुछ दे गए हैं। एक व्यक्ति पूरी तरह पक्षाघात से पीड़ित है। सिर्फ अपनी पलकें झपका सकता है और उसने पलके झपका कर ही इशारे से एक किताब लिखवा डाली। उनके जीवन पर फिल्म भी बनी है। 'हिंदी फिल्म 'गुजारिश' उसी फिल्म पर आधरित थी . Stefen Hawking का उदाहरण हमारे सामने है। फिर भी हम उसके मौत की कामना क्यूँ करें?

      हम तो प्रार्थना करेंगे कि वो जीवित रहे और उन दरिदों की हार हो,जिन्होंने उसकी ज़िन्दगी लेनी चाही । उन नर पिशाचों को मौत से भी बदतर कोई सज़ा मिले।

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    2. haven't u heard about the case of a handicap girl who is a scientist in some where other country and she was not allowed to board airplane in India from chennai to mumbai flight ? she was capable enough and was a bright scholar . Despite of convincing airport crew a lot she was not allowed to board the flight . When this is the mentality of indians , how wise it is to consider the example of "Stefen hawkings " or "Nicholas james vujicic" . The gangrape victim will have to live between dirty people , dirty society . I am sorry , i am not wishing that she should not live , but i just want to say that there might be be many other problem for this girl . I wish may the people of India be able to change their mentality .

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    3. Haven't you read about the case of that girl who is a scholar and last year came to india . She is a differently abled person and was not allowed to board the flight by crew members because they didnt find her fit enough to travel alone .. Despite of convincing by her a lot that she used to travel international countries airport people didnt allow her. How wise it is to consider the example of "stefen Hawkings" or "nicholas james vujicic" for Rape victim ? I am not saying that she should not live but all i want to say that after surviving she will have to face more challenges . she has to survive in dirty society with narrow thinking people. What Hemant has written is a short cut way to end all problems for her , but that is not a wholesome way to change system. May god give her courage to face upcoming challenges.

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    4. @Summary
      can understand ur anger...U r deeply hurt ,so are we. Stefen Hawkings's and Nicholas james vujicic's name just came across to my mind so i wrote their name . In India too there r many examples of courageous ppl who r trying to lead a normal life against all odds.
      I agree ours is a dirty society but its our duty to make it better and improve the situation.

      My prayers r wid "Nirbhaya'...and i want her to live n to lead a normal life as far as possible as she is going thru such tremendous pain n still wants to live. we r not in her shoes and hvnt experienced this desire to live. its very easy to say that 'i want to die' but when situation comes, no body wants to die (in their sound mind ) they cling to last thread of life, so everybody shud given a chance.we cant decide on her behalf.

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  5. निर्भया ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है. बेहोशी में भी उसे केवल उन दरिंदों की याद है. होश में आने पर उसने पूछा- उन्हें सजा मिली?
    यानि, निर्भया की ज़िन्दगी साथ देगी या नहीं, नहीं जानती, इतना ज़रूर चाहती हूं, कि अपराधियों को निर्भया के जीते-जी फ़ांसी दे दी जाये, ताकि अगर उसकी सांसें गिनती की बची हों, तो चैन से अन्तिम सांस ले सके. ये उसकी मौत की कामना नहीं है, बल्कि डॉक्टर्स की रिपोर्ट ऐसा ज़ाहिर कर रही हैं.
    रहा सरकारी तंत्र, तो ऐसे मौकों पर सिवाय चुप्पी साध जाने के उसे आता ही क्या है? आखिर हम सबने ही चुन के भेजा है ऐसे गूंगे-बहरे प्रतिनिधियों को, अब शिकायत किससे करें?

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  6. पूरा सिस्टम सड़ा हुवा है ... आग जो उठ रही थी इस त्रासदी के खिलाफ सरकार ने उसे दबाना शुरू कर दिया है बहाने से ... आक्रोश किसी भी बात के प्रति हो सरकार को अपनी कुर्सी की चिंता हो जाती है ओर वो उसकी खातिर उसे दबाने में लग जाती है ...
    दुआ करता हूं की निर्भया जल्दी ही सबके सामने आएगी ...

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  7. सख्त कानून और उसके पालन की जरूरत है।
    जनता का आक्रोश वाजिब है।

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  8. यह सब देख कर लगता है कि राह अभी भी बहुत कठिन है।

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  9. Our Prime Minister needs a new speech writer and this country needs a new Prime Minister

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  10. इस सरकार ने कब जनता की विपत्ती में साथ दिया है? वर्ल्‍ड कप जीतने पर सोनिया गांधी गाडी पर चढ़कर नाचती है और उसके चमचे खुश हो लेते हैं। लेकिन विपत्ति के समय, न जाने युवराज और राजमाता कहां अन्‍तर्धान हो जाते हैं। बस मौका तलाशते हैं कि कभी तो विपक्ष बोलेगा और हम कहना शुरू कर देंगे कि राजनीति हो रही है।

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  11. sab padh sun kar dekh kar hi mabahut dukhd hai ..bahut hatasha hoti hai yah sab halat dekh kar aur yah dekh kar ki hamne desh kinko soump rakha hai

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  12. हुक्मरानों को तलाशते ही रहे युवा की कोई उनकी आवाज़ सुन भर लेता ...
    स्तब्ध थे तो यह तो कहते !
    इन्साफ जिनके हाथ में था , इन्साफ करने नहीं, करने की गुहार में लगे थे ...
    हद है !!

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  13. चलो , न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी .....कम से कम हमारी इंग्लिश मेम तो यही सोच रही होंगी . मैडम शीला दिक्षित बहुत हिम्मत वाली महिला हैं , रश्मि जी . मिलने नहीं गयीं लड़की से पर आज सुबह उनकी फोटो देखि अखबार में कैंडल जलाते हुए . इस वर्ष कई मंत्रियों ने अपने बोल्ड विचार व्यक्त किये विभिन्न विषयों पे। पिचले 2 हफ़्तों में कई बुद्धिजीवियों ने स्त्रियों के मानक बताये .
    क्या करना चाहिए , क्या नहीं ... बाहर जाना चाहिए तो कैसे .. कपडे पहनने चाहिए तो कैसे ... कुछ ने कहा ... लड्कियूं को फिल्म नहीं देखनी चाहिए ... जीन्स पहनने से वे लड़कों को उकसाती हैं .
    रात 6 बजे के बाद घर से बहार नहीं निकलना चाहिए ... 1 महिला वैज्ञानिक ने तो यहाँ तक बोल ..की 'दामिनी'/निर्भया ' ने उन लोगों को उकसाया . वो रात को 10 बजे पिक्चर देखने क्यूँ निकली ?
    अच्छी बात है ... तो फिर ये लोक्तंत्र का बाजा क्यूँ ? चुनाव क्यूँ ? खाड़ी देशों के तरह .. महिलायों को घर में बिठा कर रखो ... 5 क्लास के बाद नज़रबंद कर दो ... जो मार काट के गद्दी पे बैठ जाये वो PM . क्यूँ कल्पना चावला सुनीता विल्लिअम्स का example देते हो ...वे दोनों यहाँ से निकल गयीं तो कुछ कर दिखाया ..वर्ना यहाँ ..double standard politics mentality का शिकार बन चुकी होतीं ....क्यूँ कहते हो ..उन्हें भारत की मूल नागरिक ? इस हिसाब से तो उन्होंने भारत की नाक कटा दी .. जीन्स पहन के ......अमेरिकी क्यूँ लड़कियों को जीन पहने देख उत्तेजित नहीं होते ..वे नामर्द हैं क्या ? सारे मर्द यहाँ भारत वर्ष में पैदा हुए ... दु:शाशन से लेकर गोपाल कांडा तक ......

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  14. we don't want insensible , incapable and careless government . Its pity that when whole nation was expecting some quick , strict action from gov that time gov acted as a silent spectator without having any strategy to deal with the situation. RIP my little sister. we are sorry .

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  15. कानून बनाना ही समस्या का निदान नहीं , असल समस्या है कानून का पालन न होना | आक्रोश पूरी तरह जायज है |

    सादर

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