अभी कुछ दिनों पहले बहन की शादी में शामिल होने मुंबई से बाहर गयी तो नेट पर किसी को नहीं बताया कि लखनऊ जा रही हूँ क्यूंकि पिछली लखनऊ यात्रा की खबर कुछ मित्रो को दे दी थी पर शादी की गहमागहमी में उनसे मिलने के लिए यथेष्ट समय नहीं निकाल पाने के कारण बड़ा दुःख हुआ था । किसी से कुछ मिनटों के लिए स्टेशन पर मिली तो किसी से घर पर। जिसकी गाथा यहाँ और यहाँ लिख ही रखी है। और इस बार यह भी प्रार्थना की थी कि खडूस सहयात्री मिले जिन्हें बातें करने में कोई रूचि न हो ताकि मैं इत्मीनान से किताबें पढ़ सकूँ। फिर इस से भी सरल उपाय सोचा कि खुद ही खडूसियत ओढ़ ली जाए ताकि कोई बातचीत शुरू ही न कर सके।
पर अंकुर के मन में भी ये सवाल आया था और उसके पूछने पर उनलोगों ने कहा था, कि "उन्हें लगता था, ड्रग्स लेने के बाद वे ज्यादा जिंदादिल हो जाते हैं, उनके फ्रेंड्स को उनके साथ रहना अच्छा लगता है .अगर ड्रग्स नहीं लेंगे तो उनके दोस्त उन्हें पसंद नहीं करेंगे, उनसे दोस्ती नहीं बढ़ाएंगे । ये भीतर की insecurity और low self esteem है जो उन्हें ड्रग्स को लेने उकसाती और फिर तो ड्रग्स ही उन्हें और ड्रग्स के लिए मजबूर करता ".. उस उन्नीस साल के लड़के की बात सुनकर मैं हैरान थी।
इन तीनो की कहानी सुन बहुत ही अच्छा लगा। ज़िन्दगी चाहे रसातल में चली जाए पर बस एक हिम्मत की जरूरत होती है। अगर कोशिश की जाए तो सिर्फ उठ कर खड़ा ही नहीं हुआ जा सकता, सरपट दौड़ भी लगाई जा सकती है। किसी के साथ भी अगर बहुत बुरा हो गया होता है तो उसके बाद उस से ज्यादा बुरा नहीं हो सकता, सिर्फ अच्छा ही हो सकता है।
यात्रा से सम्बंधित कोई पोस्ट लिखने का न तो इरादा था और न ही कोई मैटेरिअल ही पास था। पर लखनऊ से वापसी के वक़्त कुछ ऐसे सहयात्री मिले , जिनके विषय में जानकार एक शॉक सा ही लगा।
वे तीन लोग थे, दो बीस-बाइस की उम्र के युवक और एक पचास के करीब का पुरुष। लड़कों के लम्बे बाल थे और हेवी एक्सेंट में अंग्रेजी बोल रहे थे। तीनो रिश्तेदार तो नहीं थे पर जिस तरह से वे पुरुष उन लड़कों का ख्याल रख रहे थे ,करीबी ही लग रहे थे। फिर भी समझ नहीं आ रहा था , कहीं एडमिशन के लिए जा रहे हैं तो यह पुरुष क्यूँ साथ है ? दोनों लड़के अकेले जा सकते हैं . अपनी दुबली काया से स्पोर्ट्स मैन भी नहीं लग रहे थे कि कोच साथ हो। अगर किसी बैंड के मेंबर हैं तो कोई इंस्ट्रूमेंट साथ नहीं था। होंगे कोई, मैंने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया और एक किताब लेकर ऊपरी बर्थ पर चली गई और थोड़ी ही देर में सो गई .
मेरा बेटा अंकुर भी साथ था। उसे टी शर्ट- थ्री फोर्थ-चप्पल में देख और हाथो में मोटी अंग्रेजी की किताब ,कानो में हेड फोन लगाए देख वे लड़के उसके साथ कम्फर्टेबल हो गए और इनके बीच बात-चीत शुरू हो गयीं। शादी के जागरण और देर तक पुस्तक पठन से मेरी आँखें जल्दी ही मुंद गयीं। बीच बीच में देखती इनकी बातें चल ही रही हैं। अंकुर को यूँ भी रतजगे की आदत है, उसे अच्छा साथ मिल गया था . करीब रात के दो बजे वे सब सोने गए।
मुंबई पहुँचने पर अंकुर ने बताया कि वे तीनो Rehab में हैं। मेरे चौंकने पर उसने कहा, वो भी ऐसे ही चौंका था और मान नहीं रहा था तो उनलोगों ने मुंबई के पास एक Rehab Center का कार्ड दिखाया और बताया कि वे दोनों लड़के ड्रग एडिक्ट थे और वे पुरुष अल्कोहलिक (शराबी ) अब तीनो उस एडिक्शन से उबर चुके हैं और सेंटर के प्रोग्राम के तहत आम लोगो (इसके लिए वे 'मेनस्ट्रीम पीपल ' जैसे टर्म इस्तेमाल कर रहे थे) में घुलने मिलने की कोशिश कर रहे हैं . वे तीनो एक हफ्ते के लिए उन पुरुष के घर पर गए थे और अब सेंटर लौट रहे हैं। तीनो ने अंकुर को अपनी अपनी कहानी सुनायी।
उनकी कहानी उनकी ही जुबानी
निशांत (19 वर्ष )
मैं अपने माता -पिता की इकलौती संतान हूँ .मैं नौ साल का था जब पहली बार सिगरेट पी। मेरे घर के सामने कुछ लड़के शाम को सिगरेट पिया करते थे। मैं उनके आस-पास ही खड़ा रहता था। उनमे से ही एक ने पहली बार सिगरेट पिलाई और फिर आदत लग गयी। नवीं कक्षा में था जब मेरे माता-पिता दुबई चले गए।मुझे हॉस्टल में नहीं रख कर मेरे चाचा की देखरेख में उनके घर पर रखा। पर चाचा के यहाँ मैं अजनबी जैसा ही था। बाहर के एक कमरे में रहता। उनके परिवार का कोई सदस्य मुझसे बात नहीं करता। बस समय पर खाना भिजवा देते कमरे में जिसे मैं कभी खाता, कभी नहीं। धीरे धीरे मैं हर तरह का नशा करने लगा। माँ से बहाने से पैसे मंगवाता, वे भी भेज देतीं। (निशांत ने अंकुर को अपने हाथ, छाती और गले के ज़ख्म भी दिखाए, जो इंजेक्शन लेने की वजह से बने थे। बता रहा था घोड़ो को रेस के समय तेज दौड़ने के लिए कोई इंजेक्शन दिया जाता है, नशे के लिए ये लोग उसे लेते थे ) पर इन सबके साथ मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही थी। मैंने अच्छे नबर से दसवीं और बारहवीं किया और मुंबई के IHM (होटल मैनेजमेंट ) में मेरा सेलेक्शन हो गया। मुंबई में हॉस्टल में आने के बाद मेरी नशे की आदत और बढ़ गयी। मैं एक लेक्चर अटेंड करता और नशे की तलब लग जाती, हॉस्टल में आकर इंजेक्शन लेता। पर एक दिन मैं सो कर ही नहीं उठ सका। आँखें खोलीं तो लगा आँखों के आगे पटाखे छूट रहे हैं, लाल-पीली रौशनी। बड़ी मुश्किल से उठा और मुझे लगा 'मेरे साथ कुछ भी ठीक नहीं है,अब और नहीं,इन सबसे निकलना होगा' मैंने माँ को स्काइप पर मैसेज भेज 'मम्मा, आयम इन डीप ट्रबल, आई नीड योर हेल्प' संयोग से माँ भी ऑनलाइन थीं और उन्होंने टाइप किया 'हाँ, बोलो बेटा " ये 'बोलो बेटा' पढ़कर मैं फूट फूट कर रोने लगा . माँ ने तुरंत कॉल किया और अच्छी बात ये रही कि माँ मेरी सारी बात सुनकर हिस्टिरिकल नहीं हुईं, चीखी-चिल्लाई नहीं। मुझे कोसा नहीं, ये नहीं कहा,"ऐसा तुम कैसे कर सकते हो?' उन्होंने शान्ति से मेरी पूरी बात सुनी। मेरा धैर्य बंधाया। दो दिन बाद ही वे दुबई से मुंबई आयी। इस रिहैब सेंटर का पता लगाया और मुझे यहाँ भर्ती कर दिया। पिछले सोलह महीने से मैं यहाँ हूँ। पिछले कई महीने से मैंने बियर तक नहीं पी है। अब मैं बिलकुल स्वस्थ हूँ। मुझे यहाँ से छुटटी मिल सकती है, पर मुझे यहाँ अच्छा लगता है। यहाँ आकर पता चला बिना ड्रग लिए, बिना कोई नशा किये भी खुश रहा जा सकता है। मैं ओबेराय होटल से एक कोर्स करने वाला हूँ और फिर बिना किसी नशा के नयी ज़िन्दगी शुरू करूँगा।
जावेद (22 वर्ष )
मैं देहरादून के एक बहुत ही महंगे स्कूल में पढ़ा .अच्छे नंबर से पास हुआ और दिल्ली के 'सेंट स्टीफेंस' जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज में एडमिशन लिया । वहां पहले से ही मेरे स्कूल के सीनियर्स थे जो देहरादून में मेरे 'हॉस्टल मेट्स' थे . उनलोगों ने मुझे अपने ग्रुप में शामिल कर लिया .अपने साथ बड़े बड़े राजनीतिज्ञों और मंत्रियों के घर पार्टियों में ले जाने लगे। वहाँ उनके बच्चों के साथ वे लोग भी ड्रग्स लेते थे . फिर मेरे हाथ पैकेट्स भिजवाने लगे, कहते 'ये सीधा-साधा लड़का है, इस पर कोई शक नहीं करेगा।' मैं भी अपने सीनियर्स का काम करके खुश रहता था। धीरे धीरे मैं भी ड्रग्स लेने लगा और मैं 'ड्रग पेडलर' से 'ड्रग कंज्यूमर' और फिर 'ड्रग एडिक्ट' बन गया। Rave Parties में जाने लगा और एक बार पुलिस की रेड में पकड़ा गया। मेरे मम्मी- डैडी को खबर की गयी और मुझे कॉलेज से निकाल दिया गया। डैडी प्रिंसिपल से मिले, मुझसे एक बात नहीं की और मम्मी के हाथ में टिकट रख दिया, "तुम्हे इसके साथ आना है, अकेले आना है, जो करना है करो। मुझे अब इस से कोई मतलब नहीं।" मैं अपने मम्मी- डैडी का इकलौता बेटा हूँ। मेरे कोई भाई-बहन नहीं हैं। जाहिर है डैडी को मुझसे बहुत उम्मीदें थीं। उन्होंने मुझे दुनिया का बेस्ट दिया। पर मैंने उन्हें निराश किया .
इन सब बातों से मुझे इतना बड़ा झटका लगा कि मैं डिप्रेशन में चला गया। सात हफ़्तों तक मैं अपने कमरे से बाहर नहीं निकला , न कुछ खाता -पीता था न किसी से बात करता था। मेरा वजन 35 किलो हो गया था। इतना कमजोर हो गया था कि मैं चल नहीं पाता था। मेरा हाल सुनकर मेरी एक कजिन यू एस से आयी और उसने इस सेंटर का पता लगाया . और मुझे यहाँ एडमिट कर दिया, यहाँ मैं व्हील चेयर पर आया था। अब मैं बिलकुल स्वस्थ हूँ। सारा नशा छोड़ दिया है। अब धीरे धीरे हमें आम लोगो में घुलने-मिलने का मौका दिया जा रहा है। जल्द ही यहाँ से निकल कर मैं क़ानून की पढ़ाई करूँगा और नशे के खिलाफ सख्त कानून बनाने पर जोर दूंगा ताकि कोई जीवन बर्बाद न हो।
इन सब बातों से मुझे इतना बड़ा झटका लगा कि मैं डिप्रेशन में चला गया। सात हफ़्तों तक मैं अपने कमरे से बाहर नहीं निकला , न कुछ खाता -पीता था न किसी से बात करता था। मेरा वजन 35 किलो हो गया था। इतना कमजोर हो गया था कि मैं चल नहीं पाता था। मेरा हाल सुनकर मेरी एक कजिन यू एस से आयी और उसने इस सेंटर का पता लगाया . और मुझे यहाँ एडमिट कर दिया, यहाँ मैं व्हील चेयर पर आया था। अब मैं बिलकुल स्वस्थ हूँ। सारा नशा छोड़ दिया है। अब धीरे धीरे हमें आम लोगो में घुलने-मिलने का मौका दिया जा रहा है। जल्द ही यहाँ से निकल कर मैं क़ानून की पढ़ाई करूँगा और नशे के खिलाफ सख्त कानून बनाने पर जोर दूंगा ताकि कोई जीवन बर्बाद न हो।
धीरज (48 वर्ष )
मेरा बहुत बड़ा पारिवारिक बिजनेस है। जिसे मैं और मुझसे तीन वर्ष बड़े भाई मिल कर संभालते थे। दो साल पहले उनकी अचानक मृत्यु हो गयी। वे भाई से ज्यादा मेरे लिए दोस्त सामान थे। फिर भाभी ने अपना हिस्सा लेकर बिजनेस का बंटवारा कर दिया। अकेले बिजनेस संभालने में भी परेशानी होने लगी और मैंने शराब का सहारा ले लिया। मैं बेड टी की जगह आधी बोतल व्हिस्की पीता। मीटिंग के दौरान भी शर्ट के अन्दर पिंट छुपा कर रखता और बीच बीच में बाथरूम में जाकर पीता। चौबीसों घंटे पीने लगा था। घर पर सब मुझसे दूर हो गए थे,मेरा सोलह साल का बेटा मेरी बारह साल की बेटी मेरे पास भी नहीं आते। बीवी भी दूर ही रहती . ये सब देख कर मैं और दुखी होता फिर और पीता। ऑफिस में भी सब पीठ पीछे मजाक उड़ाते और मैंने एक दिन फैसला किया इन सबसे उबरना होगा। पिछले छह महीने से इस सेंटर में हूँ। शराब को हाथ भी नहीं लगाता। अभी एक हफ्ते के लिए घर गया था। बीवी बच्चे सब मेरे साथ एक्स्ट्रा स्वीट थे। मुझे पता था,वे जानबूझ कर ऐसी कोशिश कर रहे हैं पर मैं ये अटेंशन एन्जॉय कर रहा था। अब जल्द ही हमेशा के लिए घर लौट जाऊँगा और अपना बिजनेस संभालूँगा।
जब 'अंकुर' ने उन सबकी कहानी सुनायी तो मैंने कहा, "मुझे पहले बताया होता तो मैं भी उनसे बात करती और पूछती कि आखिर उन्हें ड्रग या शराब पीने के बाद क्या महसूस होता था, कैसी ख़ुशी मिलती थी कि वे बार बार फिर उसकी तरफ कदम बढाते। "
बेटे ने बहुत गंभीरता से कहा, "शायद तुमसे वे लोग बाते नहीं करते क्यूंकि निशांत और जावेद कह रहे थे, 'पता नहीं तुम्हारी माँ क्या सोचेगी हमारे विषय में ' तो मैंने उनसे कहा 'नहीं, मेरी माँ एक राईटर है और बहुत कूल है।' (ये बच्चे लोग मेरे लिए हमेशा ये जुमला इस्तेमाल करते हैं कि ' तुम तो बहुत कूल हो ' कभी कभी लगता है कहीं ये लोग ऐसा तो नहीं सोच लेते कि माँ सबकुछ एक्सेप्ट कर लेगी। पर कोई बात नहीं तब मैं अपने 'अनकूल बिहेवियर' की झलक दे दूंगी उन्हें। वैसे भी यदा कदा दे ही देती हूँ )
पर अंकुर के मन में भी ये सवाल आया था और उसके पूछने पर उनलोगों ने कहा था, कि "उन्हें लगता था, ड्रग्स लेने के बाद वे ज्यादा जिंदादिल हो जाते हैं, उनके फ्रेंड्स को उनके साथ रहना अच्छा लगता है .अगर ड्रग्स नहीं लेंगे तो उनके दोस्त उन्हें पसंद नहीं करेंगे, उनसे दोस्ती नहीं बढ़ाएंगे । ये भीतर की insecurity और low self esteem है जो उन्हें ड्रग्स को लेने उकसाती और फिर तो ड्रग्स ही उन्हें और ड्रग्स के लिए मजबूर करता ".. उस उन्नीस साल के लड़के की बात सुनकर मैं हैरान थी।
उसने आगे कहा था, "सबसे पहले जरूरत है यह स्वीकार करने की कि आपके साथ सबकुछ ठीक नहीं है, आप नॉर्मल नहीं हैं। आप sick है और आपको मदद की जरूरत है। हमें पता ही नहीं था कि बिना ड्रग लिए भी खुश रहा जा सकता है। अब जैसे मैं तुमसे बात कर रहा हूँ। तुम मुझे जज नहीं कर रहे। मेरी बातें सुन रहे हो। इस तरह हमें बिना जज किये हमारे बारे में बिना कोई राय बनाए भी लोग हमसे संवाद कर सकते हैं हम मेनस्ट्रीम के लोगो के बीच भी रह सकते हैं "
इन तीनो की कहानी सुन बहुत ही अच्छा लगा। ज़िन्दगी चाहे रसातल में चली जाए पर बस एक हिम्मत की जरूरत होती है। अगर कोशिश की जाए तो सिर्फ उठ कर खड़ा ही नहीं हुआ जा सकता, सरपट दौड़ भी लगाई जा सकती है। किसी के साथ भी अगर बहुत बुरा हो गया होता है तो उसके बाद उस से ज्यादा बुरा नहीं हो सकता, सिर्फ अच्छा ही हो सकता है।
हालांकि दोनों बच्चों के मन में एक मलाल भी है। निशांत के पैरेंट्स उसे दुबई बुला रहे हैं कि वहां से कैटरिंग का कोई कोर्स कर ले। पर वो कहता है मेरी दसवी और बारहवी की परीक्षा के समय मेरे पैरेंट्स साथ नहीं थे तो अब मैं क्यूँ उनके पास जाऊं? मैं भारत में ही रहकर कोर्स करूँगा।
जावेद के पिता अब तक उस से बात नहीं करते। जावेद का कहना है वो ये तमन्ना नहीं रखता कि कुछ ऐसा बन जाए कि उसके पिता उस पर गर्व कर सकेँ । बस इतनी सी उसकी ख्वाइश है कि कुछ ऐसा कर सके, ज़िन्दगी में कि उसके पिता को कोई शर्मिंदगी न हो और वे उसका अस्तित्व स्वीकार कर सकें .
जिस तरह से उन दोनों लडको ने इतने स्नेह से अंकुर को गले लगा कर विदा कहा था कि सोच कर मेरा मन भर आया। दोनों लड़कों के अन्दर एक छटपटाहट सी है कि समाज उन्हें स्वीकार कर ले। दुआ है अब उनके जीवन में अब बस अच्छा ही अच्छा हो .
(सहयात्रियों के नाम बदल दिए हैं )
Main chay tak nahi pita aur kisi tarah ka eb nahi hai. rich hu. simple lifestyle hai. par kuch logo ko es baat se taklif hoti hai. ve chahte hai koi lat mujhe lag jaye.
जवाब देंहटाएंkyo ye ladka neat hai. uksane ke liye kai tarike aajmate hai. kam age ke ladke es baat ko pakad nahi paate. nashebaaz hamesha chahta hai ki tumhe bhi duboye. aur esliye anand me hone aur jhuthi shaan ka dikhava karta hai.
बिलकुल सही कहा हेमंत,
हटाएंकम उम्र के बच्चे लोगों के बहकावे में आ जाते हैं। ख़ुशी हुई जानकार आपको इन चीज़ों की बुराइयों का अहसास है और आप इन सबसे दूर हैं।
रश्मि, हमेशा की तरह बहुत ही अच्छी तरह से तुम ने समाज में जड़ पकड़ चुकी इस समस्या को इस पटल पर रखा ,,बधाई !
जवाब देंहटाएंमुझे निशांत से अधिक गंभीर समस्या जावेद की लगी ,,उसके पिता को ये समझन चाहिये कि यदि उन का यही व्यवहार उस के साथ रहा तो वो ख़ुदानख़्वास्ता फिर उसी हालत में पहुँच जाएगा और इस बार स्थिति ज़्यादा गंभीर होगी ,,यही कह सकते हैं कि अल्लाह उन्हें इस बात की समझ दे
इस समस्या के समाधान के लिये जितनी ज़रूरत ऐसे सेंटर्स की है उस से ज़्यादा ज़रूरत परिवार के प्यार और सहयोग की है
रिहैब सेंटर्स नशे की लत छुडवाने का काम करते हैं। इसके आगे परिवार की जिम्मेवारी होती है, कि कैसे अपने स्नेह की ऊष्मा और प्यार भरी देखभाल से उन्हें इन सब चीज़ों से दूर रखें।
हटाएंजावेद के पिता को भी कम चिंता नहीं होगी, अपने बेटे की और उस से बहुत प्यार भी करते होंगे पर कई पुरुष अपने इगो को किनारे रख खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाते। बेटे ने भी एक अनजान से अपने दिल की बता कह दी, पर शायद अपने अपनों से नहीं कह पाया होगा। दुआ है जावेद के पिता तक जावेद के मन की बातें पहुँच सकें।
अँधेरे से उजाले की ओर ...पर कई घरवाले rehab के बारे में नहीं सोचते और खो देते है अपने परिवार के सदस्य को
जवाब देंहटाएंहाँ सोनल,
हटाएंवैसे रिहैब सेंटर बहुत ही महंगा होता है। कई लोग अफोर्ड नहीं कर पाते पर बेटे की या अपने किसी आत्मीय की ज़िन्दगी से महंगा तो नहीं होता। हर हाल में नशे की लत छुडवाने की कोशिश करनी चाहिए।
ise padhkar yah laga ki jindagi men koi "the end" nahin, jaha se chaho ek nayee begaining ki ja sakti hai.....
जवाब देंहटाएंसही है, जब आँख खुले तभी सवेरा
हटाएंयुवाओं में नशा अक्सर देखादेखी अपनाये जाने वाला शौक होता है या फिर बुरी संगत में पड़ी हुई लत ! जो भी हो , बहुत बुरा होता है !
जवाब देंहटाएंउन बच्चों के बारे में जानकर अच्छा लगा , मुसीबत तब होती है जब आप चाह कर भी ऐसे पीड़ितों किसी की मदद ना कर सको !
सार्थक विषय !
हाँ, मदद तो बिलकुल करीबी लोग ही कर सकते हैं। और उन्हें आगे आना भी चाहिए।
हटाएंअगर परिवार का सहयोग इन्हें विश्वास और धैर्य के साथ बुरे समय में मिले तो यकीनन यह लत छुटाने में मदद मिलती है ! प्रतारणा से निराशा ही उत्पन्न होगी जो बालमन और कच्ची बुद्धि के लिए घातक साबित होगी !
जवाब देंहटाएंमंगल कामनाएं !
होता अक्सर उल्टा है, परिवार जन इसे एक समस्या के रूप में नहीं देखते और ताने ही कसते हैं .
हटाएंसुधरने की आस हो मन में तो हर दिन एक नया जीवन है। ईश्वर सबको सफल करे।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
हटाएंकूल पोस्ट!
जवाब देंहटाएंकूल टिपण्णी !
हटाएंएक मौका और ज़िन्दगी सुधर सकती है .अच्छा विषय लिया इस बार भी आपने रश्मि ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रंजना
हटाएंसचमुच मुझे भी नहीं लगा था,कभी इस विषय पर भी लिखने का मौका मिलेगा
अभी दो दिन पूर्व एक महिला का फोन आया, अपने बेटे के लिए ऐसा ही कोई सेंटर का पता पूछ रही थी। लेकिन उसकी समस्या यह थी कि वह उदयपुर में ही ईलाज कराना चाहती थी, उसका पति उसका साथ नहीं दे रहा था। मुझे अभी तक समझ नहीं आ रहा कि मैं उसकी कैसे मदद करूं? क्योंकि उदयपुर में मेरे ध्यान में ऐसा कोई सेंटर नहीं है।
जवाब देंहटाएंएक बात और यह कूल मम्मी वाले शब्दों से सावधान रहो, मुझे भी बहुत भुगतना पड़ा है। कुछ भी करते है फिर कहते है कि आप तो बहुत कूल हो।
ईश्वर उनके पति को सम्मति दे और वे बेटे के इलाज के लिए मन जाएँ।
हटाएंइस 'कूल मॉम' के टैग से तो मैं पहले ही सावधान हो गयी हूँ। अनकूल बनाने के लिए बिलकुल तैयार हूँ :)
सभी अभिभावकों को निशांत की माँ से प्रेरणा लेनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंसच कहा शोभा जी,
हटाएंमैं भी यही सोच रही थी। अपने बेटे की बातें सुनते हुए निशांत की माँ का दिमाग तेजी से काम कर रहा होगा कि अब आगे सुधार के लिए क्या किया जा सकता है।
कठिन परिस्थितियों में तो कभी भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए।
इच्छाशक्ति के बलबूते पर क्या नही किया जा सकता ……………जरूरत है नशेमुक्त समाज की तो उसके लिये समाज को भी उनका साथ देना होगा और उन्हें फिर से स्वीकारना होगा।
जवाब देंहटाएंबिलकुल वंदना ,
हटाएंउनके आस-पास के लोगों को भी उनका अतीत भूल जाना चाहिए।
यह उन लोगों के अंदर फिर से आत्मविश्वास जगने का ही उदाहरण था कि उन्होंने एक अनजान सहयात्री के सामने अपनी कहानी बेहिचक बयान कर दी। इससे डिप्रेशन और निराशा, नशे जैसी चीजों के शिकार लोगों को प्रेरणा मिल सकती है कि इस दुनिया में कोई भी समस्या लाइलाज नहीं है। जरूरत है बस दृढसंकल्प की। मेरे कई परिचितों ने भी सिर्फ इसी दृढसंकल्प के बल पर बरसों की नशे की लत छोड़ दी। ऐसे लोगों पर हमें गर्व होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की बागडोर थोड़ी देर को भले ही छूट जाए पर फिर जरा सी कोशिश से अपने हाथों में वापस ली जा सकती है।
हटाएंऔर जो लोग ये कर पाते हैं वे प्रेरणा, सराहना और गर्व के पात्र होते हैं
ज़िन्दगी चाहे रसातल में चली जाए पर बस एक हिम्मत की जरूरत होती है। अगर कोशिश की जाए तो सिर्फ उठ कर खड़ा ही नहीं हुआ जा सकता, सरपट दौड़ भी लगाई जा सकती है।
जवाब देंहटाएं....बहुत सच कहा है. एक सार्थक आलेख..हमें इनके प्रति अपनी सोच बदलनी होगी जिससे उनमें ये आदतें छोड़ने का साहस दृढ हो..
शुक्रिया,
हटाएंये पोस्ट लिखने का आशय भी यही था कि उनके प्रति अपना नजरिया बदलकर उन्हें समाज में वापस शामिल होने का अवसर देना चाहिए।
रश्मि क्या कहूं..हमेशा की तरह बांधे रखा तुम्हारी पोस्ट ने ..और उन बच्चों की व्यथा ने...खैर जब जागो तब सवेरा ..इन बच्चों के जीवन का यह नया सवेरा ..नई उम्मीदें .लेकर आयें ..उनकी ख्वाईशें पूरी हों .बस इश्वर से यही प्रार्थना है ...यह बच्चे लकी थे की उन्हें सही वक़्त पर सही मार्गदर्शन मिल गया ..न जाने कितने ऐसे अभी भी अंधेरों में भटक रहे होंगे ..कोई हो जो बढ़कर उन्हें रौशनी दिखाए
जवाब देंहटाएंहाँ, सरस जी,
हटाएंउनके करीबी लोग भी इसे एक समस्या के रूप में नहीं देखते और उसे सुलझाने की कोशिश नहीं करते .
सिर्फ हिकारत और डांट फटकार से इस से छुटकारा नहीं दिलवाया जा सकता।
कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अगर आत्मविश्वास बचा हुवा है तो इंसान उभर सकता है ... जरूरत सच्ची कोशिश की है ... बहुत ही सार्थक लेखन .. प्रेरणा देता हुवा ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया,
हटाएंइन बच्चों के विषय में लिख कर आपने समाज में ऐसे लोगों को पुनः नए हौसलों से जीवन जीने की एक राह दिखाई है | अव्वल तो माँ-बाप का ऐसा संरक्षण और ब्राट-अप हो कि बच्चों को ऐसी लत की कोई लत न लगे और अगर दुर्घटना वश वे इसके शिकार और एडिक्ट हो भी जाएँ तो उन्हें उससे बाहर निकालने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए | एक सार्थक आलेख और , आपका, सदा की तरह |
जवाब देंहटाएंमेर भी यह मानना है ,मान बाप को हर हाल में अपने बच्चों के पीछे खड़े होना चाहिए।
हटाएंउन्हें सही राह पर लाने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए
मान = माँ
हटाएंजहाँ आँख खुले , वहीँ सवेरा होता है।
जवाब देंहटाएंवेरी इन्स्पाइरिङ्ग।
शुक्रिया,
हटाएंसार्थक प्रयास ! नशा मुक्ति केन्द्रों के बारे में भी बहुत सी भ्रांतियाँ है आम लोगों में इन्हें भी दूर होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं पता को लेकर कैसी भ्रांतियां हैं लोगो के मन में।
हटाएंहाँ, ये सुना है , कई बार वापस वे उस लत के शिकार हो जाते हैं।
और ये rehab center बहुत महंगे होते हैं, इनमे कोई शक नहीं।
कमाल की हकीकत से रू ब रू करवाया आपने. रोमांचक!! नशे में आज़ादी ढूँढते लोग कब इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं पता ही नहीं चलता.. लेकिन शाबाश कहना पड़ता है उनको जिनकी इच्छा शक्ति और उनको जिनकी कोशिशों से उन्हें अपनी वास्तविक आजादी नसीब होती है!!
जवाब देंहटाएंइससे बेहतर यात्रा वृत्तान्त कोई हो ही नहीं सकता!
हाँ, अंकुर को धन्यवाद और प्यार कहियेगा मेरी ओर से!!
अंकुर तक जरूर आपका स्नेह पहुंचा दूंगी, उसे भी कम उम्र में बहुत ही अच्छी सीख मिली। चाहे कितना भी अँधेरा छा जाए जीवन में .प्रकाश पुंज अपने हाथों में ही होता है .
हटाएंऐसी पोस्ट का अधिक से अधिक प्रसार होना चाहिये, ताकि ऐसी समस्या से जूझ रहे परिवार या बच्चे कुछ सम्बल पा सकें.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंरश्मि शुरुआत में तो पोस्ट पढ़ कर दिल बैठने लगा..फिर हिम्मत करके पूरी पढ़ी,तब सुकून आया.
जवाब देंहटाएंशायद मेरे बच्चे भी उसी उम्र के है इसलिए दिल में कुशंकाएँ जल्दी आती हैं....बड़ा बेटा तो बताता भी रहता है कि कोई कोई लड़के नशा करते हैं....बड़े फेसिनेट होकर बताता है...फिर हमारे बीच महाभारत का युद्ध होता है...हाँ तब हम भी कूल से हॉट बन जाते हैं...मगर बात करने से गुत्थियाँ सुलझती हैं...बच्चों से बहुत सारी बातें करना चाहिए...हर तरह की..
i truely respect your writing....very sensitive and awakening..
love
anu
बेहद प्रेरक पोस्ट है ये खासकर उन लोगों के लिए जो ऐसे किसी नशे में फँसे हुए हों।
जवाब देंहटाएंतुमसे इस बारे में बात होने के बाद से ही, तुम्हारी पोस्ट पढना चाह रही थी, लेकिन देर हो गयी ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक लगी पोस्ट, आशा का संचार करती हुई। जीवन बहुत खूबसूरत है, और इसे हर हाल में सही तरीके से जीना चाहिए। गलतियां करना बुरी बात नहीं है गलतियों को स्वीकार करके उनको सुधारना ही बहादुरी है। अंकुर बेटे को ढेर सार स्नेह और तुम्हें भी।
ईश्वर करे कि समाज में वो सहजता से घुल मिल सकें | उन्होंने गलतियाँ की थीं इस बात का इतना महत्त्व नहीं रहा जाता क्यूंकि उन्हें अपनी गलती पर पछतावा भी है और वे उसे सुधारने को प्रयासरत भी हैं |
जवाब देंहटाएंमेरी कविता में ही कुछ पंक्तियाँ थीं-
"गहरा घुप्प अँधेरा है ,
पर एक किरण झील-मिल सी है ,
उसे उठाकर लाते हैं |
आकाश के उस पार ,
चलो घूमकर आते हैं |"
रौशनी हमेशा हमारे दिल में होती है , जरूरत है तो उसे देखने की |
सादर
बहुत ही मार्मिक और सोचने पर मजबूर कर देने वाला संस्मरण है। नशे की समस्या पर बहुत कम पढ़ा है। सच कहें तो बड़ा विचलित करने वाला विषय है।
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