शनिवार, 15 सितंबर 2012

पूरी हुई तीसरी पारी...पर बल्लेबाजी अब तक है जारी :)


तीसरी पारी पूरी हुई यानि कि तीन साल हो गए ब्लॉगजगत में कदम रखे. बल्लेबाजी चल ही रही है...चौकों-छक्कों का नहीं पता...पर रन तो बनते ही रहे, यानि लिखना चलता रहा.
इच्छा हुई, जरा ब्लॉग बही को उलट- पुलट कर देखा जाए.

ब्लॉग शुरू करने से पहले की कशमकश भी याद आ रही है. जब अजय (ब्रह्मात्मज ) भैया ने कहा था कम से कम अब तक जो लिखा है...वो तो एक जगह एकत्रित हो जाएगा. यही सोच कर ब्लॉग बना लो. पर मैने  जो कुछ लिखा था वो अट्ठारह साल पहले..अपने कॉलेज के दिनों में. घर गृहस्थी की उलझन और मुंबई प्रवास ने तो हिंदी पढ़ने से भी वंचित कर रखा था तो लिखने का मौका कहाँ से आता. सोच रही थी...जितना लिखा है,वो टाइप करके डाल दूंगी..
पर उसके बाद?...उस से आगे? 
लेकिन 
लेकिन 
बस, एक पहले से लिखी पुरानी कहानी और एक कविता पोस्ट कर दी...पर इन दोनों पोस्ट ने ही मानो बाँध की मेड से मिटटी हटा दी..और हहराता हुआ लेखन प्रवाह इस गति से बह निकला..कि इन तीन सालों में दोनों ब्लॉग में कुल 321 पोस्ट लिख डालीं. अब क्या लिखा ..कैसा लिखा ..इसका आकलन तो गुणीजन करेंगे पर हम तो इतना जानते हैं कि खूब सारा लिखा. :)
समसामयिक विषय....कुछ सामाजिक मुद्दे...संस्मरण..खेल...फ़िल्में..कहानियाँ  और  कुच्छेक   कविताएँ {वो भी पता नहीं,कैसे लिख डालीं :)} .ब्लॉग्गिंग की वजह से कई सारे मौके भी मिले. 

दिल में ये कशमकश भी हमेशा जारी रहती है...कहानी या सामाजिक आलेख??  दिमाग कहे..."कहानी लिखो.." और दिल किसी ना किसी सामाजिक या समससामयिक विषय पर आ जाए . पर कभी -कभी दिमाग की जोरदार डांट सुन, दिल को कहानी में मन लगाना ही पड़ता है और फिर इस तरह कहानी में दिल रमता  कि १८ किस्त हो जाते हैं और पता ही नहीं चलता. इस साल फ़रवरी में एक लम्बी कहानी शुरू करने से पहले एक अख़बार के आग्रह पर उनके लिए एक आलेख लिखा था...उन्हें बहुत पसंद आया और उन्होंने नियमित एक कॉलम लिखने का प्रस्ताव ही रख दिया .पर तब तक मैं कहानी लिखना शुरू कर चुकी थी.  दिमाग ने फुसलाया .."कहानी के बीच बीच में समय निकाल कोशिश कर लो" पर दिल ने साफ़ कह दिया.."खुद ही तो कहा ,कहानी लिखो..अब मन लगाकर कहानी लिखने दो.." वो कहानी भी कुछ ऐसी थी कि  डूब कर, महसूस करके  लिखना जरूरी था.

अवसरें गंवाने का ये मौका नया नहीं है...:( .क्या ये सिलसिला चलता रहेगा...हमेशा कोई ऑफर  ऐसे अवसर पर ही क्यूँ आता है जब सामने दोराहे होते हैं और निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है....रेडियो  स्टेशन में काम  (जुड़ी तो अब भी हूँ आकाशवाणी से पर नियमित जॉब नहीं स्वीकार कर सकी.) और कॉलेज में पेंटिंग  सिखाने का ऑफर  तब आया था जब मेरे बेटे दसवीं में थे.

पर एकाध मौके ऐसे भी आए जब सारा जहां  ( अब मेरे जानने वाले ही मेरे जहां   हैं ) एक तरफ और मेरी  मकर राशि (capricorn )  का मिजाज़ एक तरफ. (कहते हैं  capricornian..     surefooted होते हैं ,सोच -समझकर निर्णय लेते हैं,पर फिर अपने निर्णय से जल्दी नहीं हटते. मन की ही करते हैं. ) वैसे भी मेरे मित्र तो कहते हैं तुम्हारी फितरत है.." सुनो सबकी..करो अपने मन की " कुछ तो ये भी कहते हैं..जिनके नाम के अंत में 'मि' या 'मी'   हो वे अपनी मर्जी के मालिक होते हैं ( अजीबोगरीब फंडे हैं ) 

हुआ यूँ कि  इस ब्लॉग लेखन की बदौलत टी.वी.से एक ऑफर आया. एक प्रसिद्द प्रोडक्शन कंपनी (बाला जी टेलीफिल्म्स नहीं ) वाले एक नेशनल चैनल के लिए एक नया प्रोग्राम बना रहे हैं...उनलोगों ने निलेश मिश्र ('याद शहर' फेम वाले और 'जादू है... नशा है'..जैसे गीत के रचयिता ) से चर्चा की...निलेश जी ने अनु सिंह चौधरी से जिक्र किया कि मुंबई की एक महिला से संपर्क करना चाहते हैं...और अनु ने हमारा नाम सुझा दिया . उस प्रोग्राम की डायरेक्टर नेशनल अवार्ड विनर  फिल्म की कहानी लिख चुकी हैं. उन्होंने मेरा ब्लॉग देखा...कई पोस्ट पढ़ीं...उन्हें  पसंद आया और मेरे पास एक मेल आया कि इस प्रोग्राम  के सिलसिले में मिलना चाहती हैं. मुझे भला क्या एतराज होता. और उनकी असिस्टेंट ने इतनी स्वीटली  बात की थी..."आप को डिस्टर्ब तो नहीं कर रही...कब कॉल करूँ..कब का अपोयेंटमेंट  देंगी आप ? {जैसे पता नहीं, कितनी बड़ी लेखिका हूँ :)}

नियत समय पर हम उनके ऑफिस पहुँच गए. बड़ा सा कॉन्फ्रेंस रूम और छः लोग ..चार लड़के और दो लडकियाँ, मुझे प्रोग्राम की रूपरेखा समझाने के लिए बैठे थे. गोल मेज की एक तरफ मैं बैठ गयी.  मुझे लगा था लिखने का काम होगा, परदे के पीछे रहकर पर यहाँ परदे के सामने आना था. वे मुंबई की पांच अलग-अलग उम्र और अलग अलग वर्ग की महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी...उनकी सोच...उनके सपने...पर आधारित कार्यक्रम बनाना चाहती थीं. इसमें कैमरा महिला के सुपुर्द ही कर देना था कि वो जो चाहे शूट करे...अपनी नज़र से दुनिया को कैमरे में कैद करे. अपनी रोजमर्रा की जिंदगी भी. वे यह दिखाना चाहती थीं  कि महिला किसी भी वर्ग की हो...उम्र की हो..उनकी सोच आपस में मिलती-जुलती होती है.

पर यह सुनकर मेरा मन हामी भरने को तैयार नहीं हुआ. मुझे कैमरे के सामने नहीं...पीछे की दुनिया पसंद थी. मैने तो पहले ही 'ना' कह दिया. पर वे 'ना' सुनने को तैयार नहीं...करीब 3 घंटे तक वे सब मुझे कन्विंस करने की कोशिश करते रहे. हमें तो पता ही नहीं...पर उन्हें मेरी लाइफ बड़ी इंटरेस्टिंग लग रही थी. एक छोटे शहर से आई हूँ...मुंबई में रम गयी...यहाँ के जीवन को आत्मसात कर लिया...ब्लॉग है...कहानियाँ लिखती हूँ...वगैरह..वगैरह . अपने  प्रोग्राम के लिए मेरा चयन उन्हें बिलकुल परफेक्ट लग रहा था. 

उनलोगों का बार-बार कहना था 'आप क्यूँ हिचकिचा रही हैं'...हमारी तरफ से कोई निर्देश नहीं होगा. कोई इंटरफेयारेंस  नहीं होगा. आप कैमरे पर जो दिखाना चाहती हैं...बस वही शूट कीजिए. हमारी टीम का कोई मेंबर आपके घर भी नहीं जाएगा,यह सब कॉन्ट्रेक्ट में लिखा होगा. मैं बीच -बीच में कह भी देती ,'आपलोग बेकार  टाइम वेस्ट कर रहे हैं...मैं 'हाँ' नहीं कहने वाली'.पर उनका कहना था, "आपके माध्यम से बहुत कुछ पता चल रहा है..एक महिला के सपने..उसकी सोच..उसकी रोजमर्रा की जिंदगी..." वे लोग अपनी नोट बुक में कुछ नोट भी करते जा रहे थे. उन्होंने कैमरा ऑन करने के लिए भी कहा...कि ये इंटरव्यू रेकॉर्ड करना चाहते हैं. पर जब मैने मना कर दिया तो तुरंत मान  गए कि 'ठीक है...जब आप कम्फर्टेबल नहीं हैं तो  रेकॉर्ड नहीं करेंगे.' 
मेरी पूरी जिंदगी के पन्ने दर  पन्ने पलटे  जा रहे थे. कहाँ से स्कूलिंग की??..कहाँ कॉलेज में पढ़ी?...जीवन  में क्या करना चाहती थी??...क्या सपने थे??.." मुझे भी वो सब कहते हुए लग रहा था कि कब से यूँ पलट कर अपनी जिंदगी को देखा ही नहीं. 

आखिर विदा लेते समय भी उन्होंने यही कहा..." घर जाकर, अच्छी तरह इस ऑफर पर विचार कीजिए...परिवार जन...सबसे सलाह ले लीजिये...फिर फैसला करिए "
परिवार वाले पहले तो थोड़ा सा हिचकिचाए पर किसी ने भी 'ना ' नहीं कहा. 
पतिदेव  ने तो बड़ा डिप्लोमैटिकली  कहा..".देख लो..करना तो तुम्हे है..." 
बड़े बेटे किंजल्क  ने कहा ,"मैं तो ज्यादातर बाहर ही रहता हूँ....बस कैमरे को हाय  और बाय ही बोलूँगा..." 
छोटे बेटे कनिष्क की छुट्टियाँ चल रही थीं...वो थोड़ा असहज था पर उसने कहा.."मैं तो सारा समय अखबार पढता रहूँगा. कैमरा जब भी सामने आएगा...पेपर सामने कर लूँगा " 

पर मना किसी ने नहीं किया. ये नहीं कहा कि 'इंकार कर दो.' सहेलियों से  चर्चा की तो  वे तो ख़ुशी से उछल गयीं..."तुम्हे जरूर करना चाहिए..ऐसे मौके बार बार नहीं आते..मौका हाथ से जाने मत दो..आगे भी तुम्हे सहायता  मिलेगी..जान-पहचान बढ़ेगी...आदि आदि ." 

माता-पिता..भाई-भाभी तो इसी बात से खुश हो गए कि हमें टी.वी. पर देखते रहेंगे. मेरी कजिन अलका  ने तो डांट ही दिया.."पागल हो तुम...ऐसा मौका  कोई छोड़ता है?..चुपचाप 'हाँ ' कह दो.."

विभा (रानी )भाभी ने कहा.."कुछ नया करने का मौका मिलेगा...इसे एक चैलेन्ज की तरह लो."

कुछ ब्लॉगर मित्रों से चर्चा  करने पर सुनने को मिला ," दुनिया को बचा क्या है..आपके बारे में जानने के लिए...अपने परिवार...दोस्तों के फोटो ब्लॉग-फेसबुक पर लगाती ही हैं...ब्लॉग में अपने जीवन से सम्बंधित घटनाएँ लिखती ही हैं...ये ऑफर स्वीकार कर लेनी चाहिए."

मतलब ये कि हर दरवाजा खटखटा लिया  कि कोई तो मेरे निर्णय को सही बताए और मुझे संतोष .मिले...पर नहीं..जैसे अपना सलीब सबको खुद ही ढोना पड़ता है...वैसे ही अपने निर्णय का सलीब भी मुझे ही ढोना  था .
और उस पर से पैसे भी बड़े अच्छे मिल रहे थे. इतने पैसे तो मैं खुद कमाने की कभी सोच भी  नहीं सकती थी .
पर मुझे खुद को यूँ टी.वी. स्क्रीन पर देखना मंजूर ही नहीं हो रहा था. अभी ख्याल आ रहा है...अपना ब्लॉगजगत भी फेमस हो जाता. मेरी रोजमर्रा की जिंदगी में तो ये भी शामिल है..यहाँ की अच्छाइयां....राजनीति....गुटबंदियां ...सब दर्शकों के सामने आ जातीं..:)

एक बार निलेश मिश्र की 'मंडे मंडली' में स्टोरी सेशन के लिए गयी थी. वहाँ भी इस कार्यक्रम की बड़ी चर्चा सुनी. वहाँ भी सबका कहना था..आपको स्वीकार कर लेना चाहिए था. प्रोडक्शन कंपनी से  मेल और उनके कॉल्स भी आते रहे .सबके यूँ कहने पर हर  बार पुनर्विचार करने को विवश होती  पर फिर वही अपनी तो एक बार ना..हज़ार बार ना :)
पर ब्लॉग्गिंग को एक थैंक्यू तो बनता है..ऐसे अवसर उपलब्ध करवाने के लिए :)

तीन साल हो गए ब्लॉग्गिंग करते हुए .मन ये सवाल भी करता है...क्या सारी जिंदगी यही करते रहना है या कुछ और आजमाना चाहिए? ऎसी  ही कुछ असमंजस  की स्थिति एम.ए के इम्तिहान के बाद आई थी  जब इम्तिहान के बाद मैं दुविधा में थी कि अब आगे क्या करना चाहिए. कम्पीटीशन की तैयारी...या एम.फिल. या कुछ और ? उन्ही दिनों  'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' में एक विषय पर आलेख आमंत्रित थे ,"डिग्री तो हासिल कर ली..अब क्या करें.." और मैने अपने मन का सारा कशमकश उंडेल दिया था उस आलेख में जो छपा भी था.

पर उसके बाद जल्द ही शादी हो गयी...पतिदेव की अतिव्यस्तता ने बच्चों की सारी जिम्मेवारी मेरे कन्धों पर ही डाल दी . और मैं पूरी तरह उन्हें बड़ा करने में रम गयी. छोटा बेटा जब दसवीं में आया तब ब्लॉग्गिंग  में कदम रखा...और पूरी तरह ब्लॉग्गिंग में खो गयी. 

पर ब्लॉग्गिंग  ने मेरी पेंटिंग लगभग बंद ही करवा दी है..पढना भी पहले से कम हो गया है. पहले तो हफ्ते में दो किताबें ख़त्म कर देती थी. मन को समझा तो लेती हूँ...इतने दिनों सिर्फ पढ़ा,अब लिख रही हो..पर सतत अच्छी किताबें पढना भी बहुत जरूरी है. 

 अब तक जिंदगी जैसे एक तनी हुई रस्सी पर चलने जैसा था. सारे समय ये चिंता ,अपनी पढ़ाई में अच्छा करना है.....बाद में बच्चे अपनी पढ़ाई..खेलकूद..दूसरी गतिविधियों में अच्छा करें..इसकी चिंता. कभी ये भी सोचती हूँ..रिलैक्स होकर बहने दूँ जिंदगी को,अपनी रफ़्तार से. जब जो अच्छा लगे ..जैसा जी में आए,बस  वैसा ही करूँ... पर ऐसे जीने की आदत ही नहीं पड़ी ना. :) कुछ कुछ ना कुछ चैलेंज तो जीवन में चाहिए. 

हाँ, लिखना तो शायद ना छूटे कभी...क्यूंकि इतना तो जान लिया है कि यही है जो de stress करता है .चाहे तन और मन कितना भी थका हुआ हो...थोड़ा सा लिख कर ही रिफ्रेश हो जाती हूँ. 

तो हम लिखते रहेंगे...आपलोग  पढ़ते रहिए :)

ब्लॉग की पहली और दूसरी सालगिरह पर भी पोस्ट यहाँ और यहाँ  लिखी थी. 

84 टिप्‍पणियां:

  1. हैप्पी थर्ड बर्थ डे...
    सूरत से इत्ती बड़ी लगती नहीं हो :-)

    सच्ची इत्ती बड़ी सेलिब्रिटी हो हमें कहाँ पता था.....चलो हमारी शान भी बढ़ गयी..
    और और उन्नती करो.....यूँ ही बिंदास जियो...
    हां बेटों के रिएक्शन एकदम बढ़िया थे...हमारे बेटों जैसे...शायद हर बेटे जैसे :-) (पतिदेव के भी..)
    so wish u great luck....keep wriing...keep shining.....
    bless u
    love
    anu

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    1. सेलिब्रिटी ???
      वो क्या होता है, मैडम..और यहाँ हर कोई अपनेआप में एक सेलिब्रिटी है...:)
      N
      thanx aton for ur wishes :)

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  2. ओहो ... बढ़िया दी.. इतना हमें भी आज पता चला आपके बारे में... :) बधाइयाँ-शधाइयाँ... तीन साल क्या है.. अभी बहुत लंबा करना है... हम सबकी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.... आपसे इंस्पिरेशन भी मिला कि तीन साल में इतना लिख डाला आपने.. हम तीन-चार सालों से किस्तों में ही ब्लॉगिंग कर रहे हैं अटक-अटक के... लगन की कमी है..

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    1. लगन की कमी नहीं...आपलोगों के लिए जमाने में गम और भी हैं, ब्लॉग्गिंग के सिवा...:)
      अपना एक ही गम बचा है...:(

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  3. देखा...देखा...मैंने आपको चाय भेजी थी इसलिए...जानता था की आज कुछ स्पेशल है!! :)

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    1. वो चाय नहीं ब्लैक कॉफी थी..इसीलिए तो मेरी नींद उड़ गयी और ये पोस्ट लिख डाली :)

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  4. तीन साल का सफर.. लंबा या बहुत ही मुख़्तसर..और सफर के पड़ाव भी बड़े दिलचस्प रहे.. मगर इतना तो है कि डिस्ट्रेस में यह ब्लॉग, डी-स्ट्रेस करने में बड़ा मददगार साबित होता है.. शुभकामनाएं!! ये सफर यूं ही चलता रहे!!

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    1. सचमुच लेखन कर्म बहुत ही de stressing है .
      शायद हर हॉबी..जिसमें भी मन रमे...कुछ लोगों के लिए खाना बनाना भी .

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  5. तीन साल का यह सफ़र बहुत दिलचस्प रहा... दो साल से हम भी लगातार पढ़ रहे हैं... कुछ कवितायेँ जो लिखी हैं आप वे सब आपकी कहानियों से बेहतर है.... आगे यह सफ़र जारी रहे.. ढेर सारी शुभकामनाएं....

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    1. ओह!! ये आपने क्या कह दिया...अब तक मन,कहानी लिखने के लिए ही डांट सुना करता था था...अब उसे कविता की भी फरमाइश झेलनी पड़ेगी.

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  6. तुमने कहा है कि "थोड़ा सा लिख कर रिफ्रेश हो जाती हूँ...!"
    बस तो जीवन का एक सही तंतु एक सूत्र तुम्हारे हाथ
    लग गया है...लेखन...और लेखन...और लेखन से
    रिफ्रेश होना यानी एक तरह की सार्थकता...अब के
    जब कलम(लेपटोप) ने तुम्हारा हाथ पकड़ा है और
    तुमने कलम का तो कहिये, 'एक तेरा साथ हमको
    दो जहां से प्यारा है' और लिखते रहिए...वैविध्यतापूर्ण !
    दिन का प्रकाश जैसे आकाश और धरती का कोई कोना
    बाकी न छोड़े और जो कोना छूट जाए वहां अपनी उष्मा
    लिए पहुँच जाए...आपकी कलम भी वैसी ही हमारे आज के
    जीवन का सबकुछ छुए और कम ही कुछ छूटे, यही अपेक्षा...

    दूसरा, तुम्हारी खुदमुख्तियारी चकित करे कि जो तुम्हें ठीक
    न लगे वहाँ तुम दृढता से ना कह्दो और उस "ना" पर टिकी
    भी रहो...दिखो नहीं पर हो तुम (आप) अदभुत ...

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    1. 'एक तेरा साथ हमको
      दो जहां से प्यारा है'

      क्या बात कह दी...पर बिलकुल सटीक :)

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  7. 'सुनामी' जैसा जबरदस्त प्रवाह है आपकी भाषा और भावनाओं में | आप लिखती रहिये , हम पढ़ते रहेंगे | सुनामी में में भी अंत में 'मी' है | हा हा हा |

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    1. पर सुनामी तो तबाही लाती है...मेरा लेखन तबाही मचाता है ??

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    2. सुनामी का सन्दर्भ मैंने केवल गति और अकस्मात निरंतरता के लिए उद्धृत किया था | 'तबाही' शब्द तो कोसों दूर है आपके लेखन से | कभी कभी प्राकृतिक तांडव में भी अच्छे और दूरगामी सन्देश निहित होते हैं |

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    3. sunaami me tabaahi hi nahin , samudr kae neechaey jo hotaa haen wo bhi satah par aataa haen rashmi ji

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    4. आपने सही कहा,रचना जी,
      इस मामले में भी तुलना की जा सकती है...कई मुद्दे जिस पर लोग बात नहीं करना चाहते ,उन विषयों पर भी लिखा है .और जम कर विमर्श भी हुआ है.

      पर मानती हूँ...जैसा अमित जी ने अपने दूसरे कमेन्ट में कहा...उनका मंतव्य सिर्फ उसकी गति से ही था.

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    5. अर्थात मैं बा-इज्जत बरी हुआ |

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    6. ab amit meri vakalt sae barii huae haen to fees bhej dae

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    7. रचना जी , जरूर | वादा रहा |

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  8. तीन वर्ष होने की बधाईयाँ..आपको पढ़ना अनुभव के विस्तृत वितान खोलता है..

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  9. आपका प्रोग्राम कब और किस चैनेल पर आएगा हमें बता दीजियेगा. हमें देखना है.

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    1. शोभा जी,
      आपने पूरी पोस्ट पढ़ी नहीं??..हमने तो उस प्रोग्राम में शामिल होने से इंकार कर दिया .

      पर उस प्रोग्राम का तो मुझे भी इन्तजार है. जैसा वे लोग बता रहे थे ,शायद दिसंबर के अंत में शुरू होगा. अभी चैनल वगैरह का नाम नहीं लिखा है...जब प्रोग्राम शुरू हो जाएगा तो जरूर बात दूंगी

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  10. सबसे पहले तो तीन वर्ष पूर्ण होने पर बधाई। आपने टीवी सीरियल का प्रस्‍ताव ठुकरा दिया, शायद अच्‍छा ही किया। कुछ विषय ऐसे हैं जिन्‍हें सुनकर बहुत अच्‍छा लगता है लेकिन उनसे समाज को या स्‍वयं को क्‍या मिलता है, इस प्रकार विचार करने से लगता है केवल मायाजाल ही है। आप ब्‍लाग जगत के लिए खास हैं, वे आपको एक आम महिला बनाकर पेश करना चाहते थे। यदि वे कहते कि खास महिलाओं का जीवन कैसे होता है और आपको शूट करते तो बात बनती। हो सकता है मैं गलत हूँ और मैं उनके प्रस्‍ताव को समझ नहीं पा रही हूँ।

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    1. ये आपका प्यार है, जो मुझे ख़ास बता रहा है..शुक्रिया :)

      प्रोग्राम का कंसेप्ट अपनेआप में बहुत अच्छा है.मैने स्वीकार नहीं किया क्यूंकि मैं सहज नहीं थी...पर मैने कई लोगों से पूछा और उनका कहना था..'उन्हें ये ऑफर मिलता तो वे जरूर करतीं.'

      जिनलोगों ने उस ऑफर को स्वीकार किया है....उन्होंने कुछ गलत नहीं किया...एक महिला कैसे अपनी सारी जिम्मेवारियाँ पूरी करते हुए भी अपने लिए थोड़ा सा वक़्त निकाल लेती है..कैसे अपने सपनों से समझौते करती है...एक महिला के मन पर क्या क्या गुजरती है...उसके मन में झाँक कर देखने की इच्छा और समय किसके पास है? इस प्रोग्राम के माध्यम से बहुत लोगों के सामने ये सब आएगा.

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  11. तीन सफल वर्ष पूरे करने की बहुत बधाई .
    मन मुताबिक लिया गया निर्णय गलत भी हो , तब भी यह संतोष तो देता है कि हमारा अपना निर्णय था , और वह सुकून तुम्हरे पास है .
    इत्तिफाकन तीन वर्ष से कुछ अधिक समय मुझे भी हो गया है , मगर इस वर्ष में पोस्ट इतनी कम लिखी कि बधाई लेने की इच्छा ही नहीं हुई :(
    ऐसे ही कई वर्ष हम ब्लॉगिंग में साथ बने रहे , शुभकामनायें !

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    1. तो बधाई अब ले लो :):)...बहुत बहुत बधाई तुम्हे भी तीन वर्ष का ब्लॉग्गिंग का सफ़र तय करने की
      ब्लॉगजगत में सिर्फ अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखना ही महत्वपूर्ण नहीं है...दूसरों के लिखे आलेख पर अपने विचार रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. और यह काम तुम बखूबी कर रही हो.
      हमेशा इन्तजार रहता है तुम्हारी प्रतिक्रिया का :)

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  12. सफर तीन सालों का इस ब्लॉग जगत पे ... पर जीवन का सफर सांसों तक रहता है ... कितना कुछ होता है समेटने के लिए ... और आप तो माहिर हैं इस विधा में ...
    ऐसी बातों का सिलसिला चलता रहे ... बहुत बहुत शुभकामनायें ...

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    1. सही कहा आपने,
      जीवन का सफ़र तो अंतिम सांस तक है....फिर अनुभवों को समेटने की कवायद भी चलती रहनी चाहिए.

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  13. किसी काम को शुरू करना और फिर उसमें निरंतरता बनाए रखना अपने आप में उपलब्धि है, जो तुमने हासिल की है.
    बहुत-बहुत बधाई रश्मि, ब्लॉग के सफल तीन वर्ष पूरे होने की, अन्य क्षेत्रों में चर्चित होने की.

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    1. चर्चित कहाँ!!.चर्चित होने का अवसर तो गँवा दिया...मनमर्जी से ही सही .

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  14. आपसे पहले कभी ज्यादा संपर्क तो नहीं रहा है मगर हाँ आपका लिखा काफी कुछ पढ़ा है बहुत ही बढ़िया लिखती हैं आप और इतनी सारी प्रतिभाओं की मालिक है आप, यह मैंने आज ही जाना मुझे बहुत खुशी है इस बात की आप जैसी शकसियत मेरी फ्रेंड लिस्ट में भी है। अंत मे तो बस इतना ही की आप लिखती रहिए हम पढ़ते रहेंगे... :-)साथ ही ब्लॉग के सफल तीन वर्ष पूरे होने की बहुत-बहुत बधाई।

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    1. हमें भी दुगुनी ख़ुशी है कि आप हमारी फ्रेंड्स लिस्ट में हैं...:)

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  15. सिलसिला चलता रहे ...स्वान्तः सुखाय भी अर्थवान है

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    1. हाँ, स्वान्तः सुखाय से बड़ा सुख और क्या

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  16. तीन साल , इतना लंबा समय इतनी निरंतरता के साथ लेखन ! साधुवाद !

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  17. 'सेलिब्रिटी' जी को इधर तीन साल पूरे होने पर बधाई। यह एक उपलब्धि है कि तीन साल निरंतर लिखा गया। शुभकामनाएं

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    1. अच्छा लगा..संजीत
      इतने दिनों बाद तुम्हे अपने ब्लॉग पर देखना...

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  18. हाथ में आया अवसर कभी नहीं छोड़ना चाहिए .
    फ़िलहाल ब्लॉगिंग के तीन साल पूरे करने के लिए बधाई .
    और शुभकामनायें .

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    1. हम्म और हमने तो जैसे अवसरें गंवाने में महारत हासिल कर ली है...:(

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  19. बढ़िया जानकारी, आपकी कलम प्रभावशाली है ...
    बधाइयाँ !

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  20. विभा (रानी )भाभी ने कहा.."कुछ नया करने का मौका मिलेगा...इसे एक चैलेन्ज की तरह लो.
    मैं भी यही लिखती .... हमनाम के विचार भी तो एक ही होते हैं ......
    खैर ! हमेशा अपने दिलो-दिमाग से निर्णय लेना चाहिए ....
    ब्लॉगिंग के तीन साल पूरे करने के लिए बधाई और शुभकामनायें :))

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    उत्तर
    1. कहना तो आपका सही है विभा जी,
      पर पता ही नहीं चला...यहाँ दिल औ दिमाग दोनों की ना थी..या एक की हाँ, एक की ना..क्यूंकि असमंजस की स्थिति एक पल को भी नहीं आई.

      हटाएं
  21. तीन साल पूरे होने की बधाई !
    ये लो जी हमारे हाथ से इतना अच्छा मौका चला गया , वरना हम भी टीवी पर देख सबको बताते की सेलेब्रेटी रश्मि जी तो मेरी मित्र है :)
    कितनी बार बनारस में छोटो से ये ताने सुनने पड़ते है की मुंबई में रहते इतने दिन हो गये मै किसी भी सेलेब्रेटी को नहीं जानती हूं जिनसे उन्हें मिलवा सकू :( [ निश्चित रूप से आप ब्लॉग जगत की सेलेब्रेटी तो है ही ]
    कितना अच्छा मौका था आप टीवी पर आती और हम सब गाते की" ये ब्लॉगगर भी एक दिन इस ब्लॉग का बड़ा नाम करेंगी " और दूसरो के सामने अपना कॉलर ऊँचा कर कहते की हम भी ब्लॉगगर है जी :)))
    वैसे एक सवाल क्या कैमरे के आगे आना सच में इतना अजीब होता है क्यों ?

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    1. पता नहीं..अंशुमाला,
      शायद किसी विषय पर बोलना हो तो टी.वी. के सामने शायद असहजता ना हो...
      एक बार दो मिनट के लिए ही सही , पर आ चुकी थी टी.वी. पर तब कुछ भी असहज नहीं लगा था...पर यहाँ कंसेप्ट कुछ और था.
      वैसे कहो तो तुम्हारा नाम रेकमेंड कर दूँ?...तुम भी तो मुंबई में ही हो...और ब्लॉगजगत की स्टार भी :)
      {अब बेख्याली में तुम लिख गयी तो फिर 'आप' नहीं किया :)}

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  22. कई बार लोगों के विचार पढ़ते-पढ़ते उनके बारे में भी जानने की उत्सुकता होती है... और आपने अपने लेखन की प्रत्येक वर्षगाँठ पर बातचीत शैली से व्यक्त भी करते हैं... यही है 'ब्लॉग विधा' लेखन की एक नवेली खासियत.

    आपके बारे में जानकार एक चलचित्र भी सहसा मानस में आकार ले लेता है .... शिक्षार्थी जैसे ही अपनी शिक्षा पूरी करता है वैसे ही दूसरी स्थिति उसको वरण करने के लिये बाहें फैलाये इंतज़ार कर रही होती है. और वह उस बंधन में बंधे-बंधे तीसरी स्थिति में कब पहुँच जाता है उसका बोध उसे वहाँ पहुँचकर होता है. शिक्षा पायी - विवाह किया - बच्चों का पालन किया - और अब सभी अनुभवों को समेटकर उसे नत्थी करने का काम... बहुत सुखद है पूरी जीवनयात्रा.

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    1. हाँ, नियति के लिए गए निर्णय का पालन आसान होते हैं...मुसीबत तब आती है,जब खुद फैसले लेने होते हैं.

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  23. तीन साल तक बिना कभी टंकी पर चढ़े निर्बाध ब्लॉगिंग किये जाने हेतु बधाई स्वीकारें :)

    आगे भी यही उत्साह बना रहे.

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    1. "यूँ तो चल पड़ा हूँ,महफ़िल से, मगर चाहता हूँ मैं.
      उठ कर मुझे कोई रोक ले और रास्ता ना दे "

      ऐसा ख्याल कभी आया तो जरूर कभी हो जाएगा टंकी आरोहण :)

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  24. ओह नो...रश्मि जी, पोस्ट पढता आ रहा था तो लगा की अन्त में जाकर आप कहने वाली हैं कि...'और मैंने सबकी बात मानते हुए हामी भर दी'।लेकिन नही, ऐसा लग रहा है जैसे एक बल्लेबाज को लवली सी फुलटॉस बॉल करवाई गई पर उस पर भी कोई शॉट नहीं मारा।खैर हम आपको केवल बल्लेबाज नहीं बल्कि एक ऑलराउंडर मानते हैं।यदि पेटिंग आदि को छोड़ भी दें तो लेखन में ही कविता कहानी और समसामयिक विषयों पर लेखन से ये प्रूव होता है इसलिए आपके पास तो कुछ रचनात्मक करने के कई तरीके और अवसर हैं।हालाँकि झूठ नहीं बोलूंगा पर मैंने अभी तक सिर्फ आपके लेख ही पढ़े है लेकिन ये पता है कि आप लिखती सभी कुछ हैं।ये भी अब पता चला कि अजय जी आपके भाई है।मेरे लिए तो उनका नाम स्कूली दिनों से ही जाना पहचाना है जब भास्कर में नवरंग आया करता था(शायद कुछ जगहों पर अब भी आता हो)।
    बहरहाल आपको ब्लॉगजगत में तीन साल पूर्ण करने पर बधाई।आगे भी आपकी पारी सफलतापूर्वक चलती रहे।शुभकामनाएँ।

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    1. फुलटॉस पर सिक्सर लगाने के चक्कर में लोग कैच आउट भी तो होते हैं...हमें, अभी अपनी विकेट बचाए रखनी है..:)

      @ झूठ नहीं बोलूंगा पर मैंने अभी तक सिर्फ आपके लेख ही पढ़े है

      और वो भी अभी अभी पढना शुरू किया है...:(:(

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    2. आपकी पारियाँ और उनमे लगाए शॉट्स बार-बार, लगातार देखे पढ़े जा सकते हैं - हर पारी में १०७ का औसत बहुत अच्छा ही कहा जाएगा।
      "ब्रैडमैन साहब!! सुनते हैं??"

      बधाई ले लीजिये, और अधिक तारीफ़ नहीं करूँगा। :) :)

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    3. ये तो ध्यान ही नहीं दिया...हर पारी में सेंचुरी है...:)

      पर आपने अच्छा नहीं किया ध्यान दिलाकर...अब अगली पारी में सेंचुरी नहीं बनी तो...:(:(

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    4. आपने जो पहले पारियाँ खेली हैं और उनमें जो शॉट्स लगाए हैं उनकी हाईलाट्स ही देख रहा हूँ आजकल।पर हाँ मेरी आदत है कि पोस्ट चाहे कितनी ही पुरानी हो जहाँ कमेन्ट करना होता है कर ही देता हूँ जैसे उस दिन एक पोस्ट पर किया।बाकी तो मैंने देखा आपकी पोस्ट्स पर विचार विमर्श अच्छा ही हुआ होता है कि कुछ कहने के लिए बचता ही नहीं।
      विकेट बचाकर खेलना अच्छी नीति।

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  25. रश्मि जी, आपने जो भी अब तक अपने ब्‍लॉगों पर लिखा है उससे स्‍पष्‍ट है कि आपके पास एक पर्यवेक्षक की दृष्टि और अपना एक स्‍पष्‍ट नजरिया है और जैसा आपके प्रोफाइल से स्‍पष्‍ट है कि आपको पढने का शौक है ही। कहते हैं कि एक अच्‍छा पाठक ही एक अच्‍छा लेखक बन सकता है। आपका ब्‍लॉगिंग का सफर यूँ ही अनवरत् चलता रहे, यही शुभकामना करता हूँ।

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    1. शुक्रिया घनश्याम जी,
      ये तो आपलोगों की नज़र है जो मेरे लेखन में ये सब देख लेती है.

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  26. देखिए ब्लॉगिंग की अपनी सीमाएँ हैं पर इसकी अपनी विशिष्टताएँ भी हैं। आप स्वयम् को भविष्य में बतौर साहित्यकार , पेंटर या सिर्फ ब्लॉगर किस रूप में देखना चाहती हैं वो स्पष्ट हो तो आपको कोई दुविधा नहीं होगी।

    अपनी कहूँ तो पिछले सात सालों से ब्लागिंग कर रहा हूँ क्यूँकि इस दुनिया में मैं सिर्फ और सिर्फ एक अच्छा ब्लॉगर बनने आया था और मुझे अभी भी लगता है कि उस मुकाम तक पहुँचने के लिए मुझे अपने मन में बनाए कई मापदंडों को पूरा करना है। जब तक उन मापदंडों से दूरी बनी रहेगी ब्लॉगिंग चलती रहेगी।

    ख़ैर आपने तीन सालों का जो सफ़र पूरा किया है उसके लिए हार्दिक बधाई।

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  27. रश्मि ...तुम्हार पूरा लेख तीसरी वर्षगाँठ वाला एक ही सांस में पढ़ लिया था ...पर दूसरी वर्षगाँठ वाला और पहला लेख पढने में थोडा समय लग गया इस लिए टिपण्णी नहीं डाल पाई. तुम्हारे लेखन की तो मैं उसी दिन कायल हो गयी थी जब रश्मि प्रभाजी ने तुम्हारी कहानी का लिंक डाला था और मैंने जो पढ़ना शुरू किया तो सारी लिनक्स पढ़ डालीं......नि:शब्द थी उसे पढ़कर ..खुद को बटोरकर टिप्पणियां लिखीं थीं ...याद होंगी तुम्हे ...बस तबसे जो सिलसिला शुरू हुआ ...तो आज तक कायम है ....तुम्हारी फोल्लोवेर हूँ...पोस्ट होते ही पढ़ लेती हूँ.....बस रश्मि ...इश्वर करे यूँही लिखती रहो....माँ का आशीर्वाद भरा हाथ सदा तुम्हारे ऊपर बना रहे और हम पाठकों की पढ़ने की आदत बनी रहे ..(जब इतना बढ़िया पढ़ने को मिलेगा तो कोई क्यूँ छोड़ेगा भला) तुम्हारा लिखने का सहज सरल फ्लो ही तुम्हे पढ़ने का सबसे बड़ा सुख है ...उसे सदा कायम रखना ........अशेष शुभकामनाओं के साथ तुम्हारी एक ज़बरदस्त fan!

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  28. ये सफर यूं ही चलता रहे.

    !!हार्दिक शुभकामनाएं!!

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  29. You will get more offers in future...... wish you all the best for upcoming future.

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  30. रश्मि, यह यात्रा चलती रहे, एक एक साल और जुड़ता जाए और अभी तो बहुत कुछ लिखना है. और हमें बहुत कुछ पढ़ना है.
    शुभकामनाओं सहित,
    घुघूतीबासूती

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  31. fir to aap celebrity bante bante rah gayee:)
    waise aapke posts behtareen hote hain..:)
    aapki kahanaiyan....lajabab !!
    ummid hai chhakke chaukke lagte rahenge.. aage bhi:)

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  32. अरे वाह! मैं तो शीर्षक देखकर बंद ही करने वाली थी कि फिर लगा नहीं यार, क्रिकेट पर नहीं होगा :) यह तो बड़ी दिलचस्प पोस्ट निकली। तीन साल पूरे होते-होते शायद मैं भी वरिष्ठ (या गरिष्ठ?) ब्लॉगर बन जाउं शायद :)। वैसे लिंक वाली पोस्टें अभी नहीं पढ़ी हैं और बाकी टिप्पणियां भी पढ़नी पड़ेंगी। लेकिन पोस्ट पढ़कर सोचा पहले टिपिया लूं, फिर बाकी का काम। फिर आती हूं.....

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  33. तीन साल पूरे करने की बधाई हो! ऐसे ही लगातार लिखती रहें। नयी-नयी उपलब्धियां हासिल करें।

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  34. रश्मिजी ,
    बहुत बहुत बधाई ब्लागिंग के तिन वर्ष पूरे करने पर |
    पता नहीं मुझे क्यों अच्छा लगा है की अपने चैनल के कार्यक्रम को मना किया |(बुरा नहीं मानना) आपने इतने विविध विषयों पर इतना सार्थक लिखा है और लिखा हुआ अनन्तकाल तक रहेगा जो आपको अति विशिष्ट बनता है |

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  35. पहली बार आपको पढ़ा ...पढ़ती चली गई ...!!सबसे पहले शुभकामनायें ...भले देर ही सही ..:))....बहुत रुचिकर लिखा है आपने ...!!आप इसी तरह लिखती रहें ...हम पढ़ते रहेंगे ...ये यात्रा युहीं चलती रहे ....!!

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  36. बहुत शुभकामनायें ब्लॉग्गिंग में तीन साल पूरे करने के लिये. बहुत सुंदर लेखा जोखा इन तीन सालों की तमाम उपलब्धियों और अवसरों का. यह यात्रा सुचारू रूप से चलती रहनी चाहिये अनवरत बाकी सब कुछ इसके बाद.

    फिर से एक बार बधाई.

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    उत्तर
    1. बधाई हो दीदी। टनाटन लिखते हो आप। यूं ही चलती रही आपकी कलम।

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  37. लेखन के तीन साल...हार्दिक बधाई |

    सादर नमन |

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  38. अरे वाह!! तीन साल पूरे हो गये...बहुत खूब...बधाई और यूँ ही नियमित लिखती रहें....अनेक शुभकामनाएँ...

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  39. देर से पढ़ी यह पोस्ट ..........बहुत बहुत बधाई रश्मि ...जो मन कहे वही करना चाहिए :)

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