गुरुवार, 27 सितंबर 2012

उम्रदराज़ लोगों में लिव-इन रिलेशनशिप

जीवन के सांझ का अकेलापन, सबसे अधिक दुखदायी है. इसलिए भी कि जिंदगी की सुबह और दोपहर तो जीने की जद्दोजहद में ही बीत जाती है. सांझ ही ऐसा पडाव है,जहाँ पहुँचने तक अधिकांश जिम्मेदारियाँ पूरी हो गयी होती हैं. जीवन के भाग-दौड़ से भी निजात मिल जाती है और वो समय आता है,जब जिंदगी का लुत्फ़ ले सकें. सिर्फ अपने लिए जी सकें. अपने छूटे हुए शौक पूरे कर सकें. अब तक पति-पत्नी पैसे कमाने ,बच्चों को संभालने....सर पर छत का जुगाड़ और चूल्हे की गर्मी बचाए रखने की आपाधापी  में एक दूसरे का ख्याल नहीं रख पाते थे .एक साथ समय नहीं बिता पाते थे.और आजकल  उन्नत  चिकित्सा सुविधाएं ,अपने खान -पान..स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ने लोगों की औसत आयु में काफी बढ़ोत्तरी कर दी है. स्त्री-पुरुष अपने जीवन की जिम्मेदारियाँ तो पूरी कर लेते हैं, पर मन और तन से सक्षम  रहते हुए भी,अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं. बच्चे अक्सर दूसरे शहरों में या विदेश में बस जाते हैं या फिर उनकी जिंदगी की दोपहर की कड़ी धूप इतना  हलकान किए रहती है कि माता-पिता के साए की ठंढी छाँव में , दो पल सुस्ताने की मोहलत  भी नहीं देती. 
खासकर महानगरों में यह समस्या ज्यादा है .अक्सर फ़्लैट में रहने की वजह से माता-पिता के साथ बच्चे  कम ही रहते हैं. 

 पर ऐसे में अगर एक साथी का साथ  छूट जाए तो दूसरे के जीवन में किस कदर अकेलापन घर कर लेगा,यह कल्पनातीत है . मुंबई जैसे महानगर में तो असहनीय ही है. सरकार की तरफ से कई कदम उठाये जा रहे हैं. वरिष्ठ  नागरिकों  के लिए एक हेल्पलाइन है. जहाँ दो पुलिसकर्मी चौबीसों घंटे लगातार फोन पर उपलब्ध रहते हैं. वरिष्ठ नागरिक उन्हें अपनी समस्याएं बताते हैं. ज्यादातर वे लोग सिर्फ कुछ देर तक  बात करना चाहते हैं. कभी कभी यह कॉल दो दो घंटे तक की हो जाती है. अपने युवावस्था के सुनहरे दिन, छोटी-मोटी तकलीफें, रोजमर्रा की मुश्किलें ,इन्ही सबके विषय में बात करते हैं,वे.

इन सबके बावजूद आए दिन , लूट-पाट के लिए वरिष्ठ नागरिकों  की ह्त्या की घटनाएं बढती जा रही हैं. अभी हाल में ही मुंबई पुलिस विभाग की तरफ से यह घोषणा की गयी है कि हर एक पुलिसकर्मी एक वृद्ध को adopt  कर लेगा. उनकी सुरक्षा...उनके आराम उनकी सुविधा का ख्याल रखेगा. हमेशा उनसे मिलकर उनका हाल-चाल लेता रहेगा. फिर भी ये कहा जा रहा है कि यह कदम शत प्रतिशत कारगर सिद्ध नहीं होगा क्यूंकि  वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बहुत ज्यादा है, जबकि पुलिसकर्मियों की कम. फिर भी कुछ फर्क तो पड़ेगा.

कुछ वरिष्ठ नागरिक   जिनके बच्चे ज्यादातर विदेशों में हैं और अपने पैरेंट्स की देखभाल के लिए अच्छी रकम खर्च करने को तैयार रहते हैं. उनके लिए भी कुछ सुविधाएं हैं. सारी सुख सुविधा से परिपूर्ण 'ओल्ड एज होम्स ' हैं. जहाँ उनका अपना कमरा होता है.एक पर्सनल सर्वेंट होते/होती है. बढ़िया खान-पान की व्यवस्था ,स्वास्थ्य सुविधाएं, मनोरंजन के साधन और बातें करने को संगी-साथी भी होते हैं. करीब तीन लाख डिपोजिट और हर महीने सोलह हज़ार की रकम देनी पड़ती है. आम लोगों की तो इतना खर्च करने की हैसियत नहीं होती. पर हाँ,जिनके पास पैसे हैं, वे इन सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं. पर फिर भी एक ख्याल आता है..वहाँ बंधी बंधाई रूटीन होती है. एकरस दिनचर्या होती है. ज्यादातर लोग पूजा-पाठ में ही समय व्यतीत करते हैं. 
हमारे धर्म में भी चौथा आश्रम 'वानप्रस्थ' का कहा गया  है. पर कुछ ऐसा नहीं लगता जैसे बस अपने दिन गिन रहे हों ??..जाने का इंतज़ार कर रहे हों? पर  फिर यह भी है..देखभाल..सुखसुविधा...मनोरंजन..संगी-साथी भी मिल जाते हैं. 

पिछले  कुछ वर्षों से जीवन की इस शाम की गहराती कालिमा को कुछ कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं. २००१ में नातुभाई पटेल ने एक संस्था की स्थापना की जिसके द्वारा  अकेले पड़ गए वरिष्ठ नागरिकों के  शादी के प्रयास किए गए. कई जोड़ों ने ब्याह किए पर नातुभाई पटेल को यह देख बहुत दुख हुआ कि कई शादियाँ टूट गयीं, कहीं पुत्रवधू ने नई सास को नहीं स्वीकार किया ,कहीं संपत्ति का विवाद छिड़ गया. जब २०१० में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दे दी तो २०११ में 'श्री लक्ष्मीदास ठक्कर'  ने नागपुर में  'ज्येष्ठांचे लिव-इन रिलेशनशिप मंडल ' की संस्था द्वारा पुनः प्रयास किए कि वरिष्ठ नागरिक बिना विवाह किए एक दूसरे के साथ, रहकर बाकी का जीवन एक दूसरे के साथ बिताएं. उनके इस प्रयास को काफी सफलता मिली. 

हालांकि यह सब  आसान नहीं रहा. सम्मलेन के संस्थापक बताते हैं, वरिष्ठ नागरिकों और उनके परिवारजनों की काउंसलिंग करनी पड़ती है .क्यूंकि अभी समाज इसे सहजता से नहीं स्वीकार पाता. मुंबई के कमला दास ने दो साल पहले अपनी पत्नी को खो दिया है और वे इस तरह के सम्बन्ध में  बंधना चाहते हैं. लोगों के विरोध पर वे कहते हैं, "युवजन क्या जाने कि अकेलापन क्या होता है..वे तो सारा समय मोबाइल के द्वारा या लैपटॉप के द्वारा किसी ना किसी से कनेक्टेड रहते हैं. मुश्किल हम जैसे लोगों के लिए है, जिनके लिए पहाड़  से दिन काटने मुश्किल हो जाते हैं "
विट्ठलभाई ने तीस साल की शादी के  बाद अपनी पत्नी को खो दिया पिछले चार साल से वे अकेले हैं. उनके पुत्र-पुत्रवधू उनसे अलग फ़्लैट में रहते हैं. वे काफी अकेलापन महसूस करते थे. अब वीनाबेन के साथ वे लिव-इन रिलेशनशिप में हैं और काफी खुश हैं. उन्हें एक दूसरे से कोइ अपेक्षाएं नहीं हैं. दोनों एक दूसरे की आदत नहीं बदलना चाहते. बस साथ रहते हैं. वीनाबेन का भी कहना है..'अपने पति की मृत्यु के बाद पहली बार वे सुरक्षित महसूस कर रही हैं.  पहले वे खाना खाना..अपनी दवाई लेना भूल जाती थीं. अब वे अपना और विट्ठलभाई   का भी ध्यान रखती हैं कि अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें. दोनों एक दूसरे का ख्याल रखते हैं." वे कहती हैं.."मैने समाज के सामने कुछ साबित करने के लिए यह कदम नहीं उठाया है. बल्कि अपनी जिंदगी को आरामदायक बनाने के लिए ऐसा निर्णय लिया. जब मैं शादी शुदा थी और जब पति को खो दिया तब भी समाज तो कुछ ना कुछ कहता था...इसलिए समाज की क्या परवाह करें " 

विट्ठलभाई का कहना  है , "दुबारा शादी करने से ज्यादा सुविधाजनक है , लिव-इन रिलेशनशिप में रहना ..मुझे अपने बेटों को समझाने में छः महीने लग गए. उन्हें चिंता थी कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी संपत्ति कहीं वीनाबेन को ना मिल जाए. जबकि वे जानते थे मैं कितना अकेला हूँ, फिर भी उन्हें सिर्फ संपत्ति की ही चिंता थी." वीनाबेन की दोनों बेटियों ने माँ के इस निर्णय का समर्थन किया. नातुभाई पटेल ने २०११ में अहमदाबाद में ऐसे सम्मलेन आयोजित किए और कई वरिष्ठ नागरिकों ने  लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का निर्णय किया. २०१२ में श्री पटेल ने रायपुर, इंदौर, भोपाल में ऐसे कई सम्मलेन किए गए  और हर शहर में इस सम्मलेन में करीब ३०० वरिष्ठ नागरिक शामिल हुए. उन्होंने कहा, 'इस व्यवस्था में दोनों पक्षों का एक दूसरे की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता. सारे नियम और शर्तें एक कागज़ पर लिखे जाते हैं और उस पर दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षर किया जाता है. पर कई पुरुष स्वेच्छा से अपनी मृत्यु के बाद लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली संगिनी के लिए कुछ रकम छोड़ जाने का प्रावधान करते हैं. पर इसकी बाध्यता नहीं है.'

तिरसठ वर्षीय 'सरयू केतकर' , जो पुणे ज्येष्ठ लिव-इन रिलेशनशिप मंडल की महिला शाखा की अध्यक्षा हैं, वे कहती हैं.."हमें महिलाओं की भावनात्मक काउंसलिंग करनी पड़ती है...क्यूंकि अक्सर पति की मृत्यु के बाद उन्हें ज्याद उपेक्षाएं झेलनी पड़ती हैं. और उनके लिए ऐसे कदम उठाना बहुत ही मुश्किल होता है. हमलोग ग्रुप्स को पिकनिक पर ले जाते हैं ताकि वे एक दूसरे से बातें कर सकें...एक दूसरे को समझ सकें. अक्सर महिलाएँ अपने पति को छोड़कर किसी परपुरुष के संपर्क में आती ही नहीं. उनके कोई पुरुष दोस्त नहीं होते...इसलिए उन्हें परपुरुष से बात करने में झिझक सी होती है. "

अभी तक मुझे भी व्यक्तिगत रूप से ,ऐसा ही लगता  था..अगर जीवन की सारी जिम्मेवारियाँ पूरी हो गयी हैं. बच्चे अपने पैरेंट्स का ख्याल रखते हैं तो फिर उन्हें दुबारा किसी जीवनसंगी की क्या जरूरत है? पर  MID Day अखबार में छपे एक आलेख और इंटरनेट पर बिखरी हुई सम्बंधित  सामग्री ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया. अब अगर कोई वरिष्ठ नागरिक ऐसा  निर्णय लेते हैं तो उनके इस निर्णय के प्रति आदर ही रहेगा,मन में. 

49 टिप्‍पणियां:

  1. आदर होना भी चाहिए...उस उम्र के भी अपने एहसास हैं,जिसे वे बांटना चाहते हैं....पर नौकरी,घर में वे नज़रअंदाज ना होकर भी हो जाते हैं - कई बच्चे तो अपने सुख के लिए उनकी मृत्यु की दुआ करते हैं. बेहतर है वृद्धाश्रम,और दोस्त बनकर साथ रहना- अब लिविंग रिलेशन कहें या समय की माँग !!!

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    1. समय,स्थिति के साथ साथ सही गलत होता है... बुजुर्गों का साथ रहना मानसिक संबल है...

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  2. उम्रां दी सांझ होवे यार तेरे नाल...
    कई बार ये ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाती। एक वरिष्ठ नागरिक से जब मैंने उन्हें पुनर्विवाह का सुझाव दिया तो उनका दिल खुश हो गया। सेकिंड शादी डॉट कॉम पर एक महिला मिल भी गई। अभी वो अपने परिवार से सहमति के लिए जूझ रहे हैं।
    अच्छा आर्टिकल लिखा है आपने दी।

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  3. निश्चित रूप से ऐसी किसी भी पहल का स्वागत होना ही चाहिए. वे बच्चे जो अपने एकाकी माता या पिता के इस कदम का विरोध करते हैं, या कर सकते हैं, उन्हें सोचना होगा, की जब वे उनके अकेलेपन को बांटने की कोशिश नहीं करते, तो अब जब वव अपने बारे में कोई फैसला कर रहे हैं, तो उसमें भी दखलन्दाजी न करें .

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  4. महत्वपूर्ण विषय पर लिखा एक विचारणीय आलेख |

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  5. वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा और देख भाल केवल महानगरो मे ही नहीं हर जगह एक चिंता का विषय है जिस पर काफी सुधार और ध्यान देने की जरूरत है !


    कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  6. एक निश्चित परिपाटी सी बनी है हमारे समाज में ...उससे अलग कुछ हो, स्वीकार्य नहीं.... पर हाँ यकीनन इनका मान होना चाहिए ....हैरानी इस बात की ज्यादा होती है कि हर बात में दुनिया की परवाह न करने की सलाह देने वाली, अपना जीवन सिर्फ अपनी शर्तों पर जीने वाली नई पीढ़ी ऐसे समय पर खिलाफ खड़ी नज़र आती है....

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  7. ये तो एकदम नयी बात बतायी आपने दी. मुझे तो मालूम ही नहीं था कि हमारे देश में ऐसे प्रगतिशील कदम उठाये जा रहे हैं और वो भी सामूहिक रूप से. बहुत खुशी हुयी ये जानकर.

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  8. अकेले रह जाने वाले उम्रदराज लोगों की तन्हाई को दूर करने वाली अच्छी व्यवस्था लग रही है , अब इसे लिव इन कह ले या मित्रता !
    एक स्वागतयोग्य कदम .

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  9. बिलकुल दीदी...उनके लिए मन में आदर ही रहना भी चाहिए....आखिर इसमें कुछ गलत तो नहीं...बहुत अच्छी पोस्ट..

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  10. साथ के बिना तो दुनिया अधूरी है

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  11. मैने ये सब काफी पहले से पढ़ा हैं , लिखना भी चाहा पर नहीं लिखा क्युकी लिव इन को ले कर बड़ी भ्रांतियां हैं लोगो के मनो में
    खैर आप ने लिखा तो अच्छा लगा विमर्श के लिये कमेन्ट हैं
    लिव इन रिलेशन शिप को अगर युवा करते हैं तो पुरानी पीढ़ी उसको गलत कहती हैं इस लिये अगर पुरानी पीढ़ी उम्र के आखरी मुकाम पर भी ये करेगी तो गलत ही कहलायेगा क्युकी हमारे यहाँ सही और गलत "मानसिक " ज्यादा हैं .
    नयी हो या पुरानी पीढ़ी सब के लिये नियम एक ही हो तब ही सुधर संभव हैं . अगर आप अपने बच्चो को २५ साल के बाद उनकी जिन्दगी उनके तरीके से जीने देगे तो आप के बच्चे भी आप को आप की जिंदगी आप की तरह जीने देगे .
    अगर आप अपने बच्चो के लिये नियम कानून बनाते हैं तो याद रखना हो की एक दिन आप को खुद भी उनका पालन करना होगा
    अब आते हैं वृद्ध को एक दूसरे का साथ , ये लिव इन रिलेशन हो या शादी किसी भी तरह उचित नहीं हैं क्यों क्युकी वृद्ध को साथ से ज्यादा अपनी देख भाल करने वाला चाहिये . अगर एक वृद्ध जो खुद अशक्त हैं वो दूसरे अशक्त वृद्ध को क्या सहारा देगा ?? मानसिक संबल की नहीं शारीरिक संबल की बात हैं .
    विधवा स्त्री हो या विधुर पुरुष अगर युवा हैं तो खुद अपने लिये निर्णय ले सकते हैं लेकिन अगर ६०-६५ के बीच के हैं तो अपनी वृद्ध अवस्था की बीमारी , अशक्त इत्यादि की परेशानी के लिये उनको किसी "नर्स , डॉक्टर , सेवक " इत्यादि की जरुरत हैं नाकी लिव इन की
    कंपनी की जरुरत से ज्यादा उस पढाव पर देखभाल की जरुरत होती हैं
    हम सब को जो ५०-५५ के बीच हैं अब ये सोचना चाहिये की हम अपनी अपनी देखभाल ६०-६५ की उम्र में कैसे कर सकते हैं , हमको परिवार से अलग वो जगह खोजनी होंगी .
    अभी भारत में वृद्ध आश्रम कम हैं जो सरकारी हो यानी वृद्ध की देखभाल हो , और अपने जैसे लोग होंगे तो कम्पनी की कमी नहीं होंगी
    बहुत कुछ हैं और भी जो युवा अवस्था में सोचना चाहिये पर हम नहीं सोचते हैं यानी अपने लिये सोचना और प्लान करना

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    1. रचना जी, आजकल ६०-६५ वर्ष के उम्र के लोग सीनियर सिटिज़न जरूर कहलाते हैं, परन्तु उन्हें वृद्ध नहीं कहा जा सकता. वे रिटायर हो जाते हैं...पर अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता उन्हें सक्षम रखती है. मैने जब इस बारे में पढ़ा तो मेरे सामने मेरे आस-पास रहने वाली एक महिला और एक पुरुष की तस्वीर घूम गयी. महिला ने करीब चार साल पहले अपने पति को खो दिया है. अब सास की बहू से नहीं निभी या बहू की सास से नहीं निभी पर वे लोग साथ नहीं रहते. थोड़ी दूर पर बेटा-बहू अपनी बेटी के साथ रहते हैं.बेटा माँ का बहुत ख्याल रखता है, रोज माँ से मिलने आता है. उनकी पूरी देखभाल करता है. एक बेटी भी मुंबई में ही है...पर कुछ दूरी पर रहती है. वो भी अक्सर उनसे मिलने आती है.

      फिर भी वे बहुत अकेली हैं, बेटा दिन में एक घंटे माँ के साथ बिताता है...बेटी भी शायद सप्ताह में एक या दो बार आती है...बाकी का सारा समय वे अकेली ही रहती हैं. जब भी मैं बाहर से आती हूँ...अपने आप मेरी नज़र ऊपर उठ जाती है और एक जोड़ी आँखें मुझे हमेशा खिड़की पर टंगी दिखती हैं.

      एक पुरुष हैं...तीन साल पहले उन्होंने भी अपनी पत्नी को खो दिया है. उनकी बारह और दस साल की दो छोटी पोतियाँ हैं.फिलहाल तो वे उन्हें स्कूल बस स्टॉप तक छोड़ने-लाने ...उन्हें दुकान पर चीज़ें दिलवाने ले कर जाते हैं..और उसमे व्यस्त रहते हैं. पर कितने दिन? जल्दी ही पोतियाँ अपने आप जाने लगेंगी और वे अकेलेपन से घिर जायेंगे.

      ऐसे लोग अगर लिव--इन-रिलेशनशिप में जाएँ तो मुझे नहीं लगता इसे गलत कहा जा सकता है.

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    2. age and numbers are state of mind and does not influence behaviour

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    3. good can not write in Hindi allow me to state one or two thoughts. it is good initiation,please continue age is state of mind to the numbers old or young is not with number but positive orientation to LIFE, Live life without being labeled
      as good or bad,sorry could not type in Hindi,please suggest and respond

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    4. Welcome to my blog or shud say Hindi blog world :)

      U can freely express ur views in english...there is no compulsion to write in hindi only and u rightly said..'numbers are state of mind and does not influence behaviour.

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  12. कब तब जीवन जिये अकेला,
    कदम बढ़ें दो, और मिलें दो।

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  13. रिश्‍ते रास्‍ता खोज ही लेते हैं.

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  14. करीब १५-१६ साल पहले अखबार के एक वैवाहिक विज्ञापन पढ़ा था की ६५ वर्षीय व्यक्ति को ३५ से ४० साल की वर्जिन महिला की आवश्यकता है , पढ़ कर खून खौल गया था पहली बार में ( जब आप युवा होते है तो बुजुर्गो के ऐसी सोच आप के ज्यादा गुस्सा दिलाती है ), और तरस आया था उनकी बुद्धि और सोच पर , करीब ८-९ साल पहले टीवी पे देखा की एक ७० वर्षीय बुजुर्ग कह रहे थे की उन्हें विवाह करना है पत्नी के मौत को २ महीने ही हुए थे , कह रहे थे की उनसे काम नहीं होता है उनकी जरूरते पूरी करने वाला कोई नहीं है पानी देने वाला कोई नहीं है बच्चे साथ नहीं रहते थे सो उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी , मैंने कहा की इन्हें पत्नी की नहीं नौकरानी की जरुरत है , कुछ समय पहले आमिर के शो में देखा बुजुर्ग कपल को तो उन्हें देख कर लगा हा इन दोनों को ही जीवनसाथी की जरुरत थी और वो एक दूसरे की इस जरुरत को पूरी कर रहे है | कहने का अर्थ ये है की ये जरुरी नहीं है की हर अकेलापन झेल रहे बुजुर्ग को जीवन साथी की ही जरुरत हो उनकी सोच , आचरण को पहले देखना चाहिए , महिलाओ में तो खासकर के, क्योकि वो कई बार अपने पति को मन से कभी भी अलग नहीं हो पाती , और नया पुरुष पराया मर्द टाईप होता है जिसे दिल और दिमाग से स्वीकार कर पाना मुश्किल होता है और उन महिलाओ में तो और भी जरुरी है जो आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर है या बहुत कमजोर है कही वो मात्र सर छुपाने के लिए जगह के लिए तो इसे रिश्तो में नहीं चली जा रही है , क्योकि यदि सभी की जरूरते और सोच का ध्यान नहीं रख गया तो नतीजे बहुत ही भयानक हो सकते है | कही मात्र काउंसलिंग के प्रभाव में , तो कही मात्र ऊपरी सोच से इन रिश्तो में चले गये और गहराई से सोचा नहीं या बाद की जिंदगी के बारे में सोचा नहीं तो क्या होगा , या बच्चो ने पिंड छुटाने के लिए माँ या पिता पर दबाव बना कर ये कर दिया तो क्या होगा | हा ये ठीक है की पहले एक दूसरे से मिलते है जानने का प्रयास करते है किन्तु आप जानती है की एक दो बार मिल कर हम किसी के बारे में नहीं जान सकते है , खासकर उस जीवनसाथी के रूप में तो कतई नहीं | एक और समस्या है की अब जैसे विट्ठलभाई और विना जी का आप ने उदहारण दिया है सोचिये की यदि विना जी के पुत्र होते और वो भी माँ से छुटकारा पाने के लिए उसे अपने घर से विदा कर देते है और उसके बाद विट्ठलभाई को विना जी के पहले कुछ हो गया तो उनका क्या होगा दोनों तरफ के लोग ही पैसे के चक्कर में है इस तरह से तो उसके बाद कोई भी उन्हें नहीं अपनाएगा और वो और भी अकेली और दुखी हो जाएँगी , एक आम लिव इन वाले रिश्ते की परेशानी हो की एक साथी तो रहना चाहे किन्तु दूसरे का व्यवहार मेल ना होने के कारण वो ना रहना चाहे तो क्या होगा , या उनमे से भी किसी एक को जल्द ही कुछ हो जाये तो क्या होगा क्या फिर एक और लिव इन रिश्ता बनेगा , बार बार साथी बदलना या एक के जाने के बाद दूसरा साथी लाना क्या ये नैतिक रूप से सही होगा | इससे जुड़े अपराध पर क्या होगा अभी दो दिन पहले ही खबर पढ़ी की लिव इन में रह रहे बुजुर्ग पुरुष ने महिला की हत्या ही कर दी , या एक ने दूसरे से पैसा निकलवाना शुरू कर दिया और भी अपराध है | मै इन रिश्तो और चीजो के खिलाफ नहीं हूं मै मानती हूं की एक जीवनसाथी के जाने के बाद अपना जीवन ख़त्म नहीं मान लेना चाहिए आप को जरुरत महसूस हो तो जरुरु नये अध्याय लिखना चाहिए किन्तु पहली समस्या ये है की हम भारतीय ज्यादातर आगे की नहीं सोचते है चीजो के हर पहलू को नहीं सोचते है उन से जुडी समस्याओ का पूरी तरह से निदान नहीं करते है और झट पट नया काम रिवाज शुरू कर देते है , दूसरी है की हम भारतीयों जहा महिला और पुरुष के लिए दो अलग तरह की सोच रखते है वही ये दोनों भी जीवनसाथी को लेकर एक अलग सोच रखते है उसका क्या होगा | मुझे एक फिल्म याद आ रही है राजेश खन्ना और स्मिता पाटिल की ( नाम याद नहीं आ रहा है जिसका एक गाना था "दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है " ) उसमे भी दोनों अपने घरो में उपेक्षित बुजुर्ग है वो मिलते है और अंत में परेशान हो कर अपना अपना घर छोड़ साथ रहने लगते है जीवनसाथी के रूप में नहीं बस जीवन गुजरे वाले साथी के रूप में |

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    1. अन्शुमालाजी राजेश खन्ना की उस पिक्चर का नाम 'अमृत' था . उस पिक्चर के अंत में दोनों पास पास के मकान में रहते है. उन दोनों की शादी शायद इसलिए नहीं बताई जाती है कि भारतीय मानसिकता इस बात को नहीं स्वीकारेगी. उन दोनों की दोस्ती को भी उनकी संताने लांछित करती है.

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    2. @ ६५ वर्षीय व्यक्ति को ३५ से ४० साल की वर्जिन महिला की आवश्यकता है , पढ़ कर खून खौल गया था पहली बार में ( जब आप युवा होते है तो बुजुर्गो के ऐसी सोच आप के ज्यादा गुस्सा दिलाती है ),
      ये पढ़कर आज भी मेरा खून उतना ही खौला ...जितना तब आपका खौला था. ६५ वर्षीय को वर्जिन महिला चाहिए. sheer disgusting...shame on him . .
      आपने बड़ा अच्छा विश्लेषण किया है...आपकी टिप्पणी पोस्ट पर भारी है :) इसलिए ऐसी पोस्ट लिखना सार्थक हुआ.शुक्रिया

      इस सम्मलेन की सूचना, अखबारों में आती है. जो लोग, खुद को मानसिक रूप से इसके लिए तैयार कर पाते हैं, वे ही इस सम्मलेन में शामिल होते हैं. कोई उन्हें बाध्य नहीं करता. और अपना पार्टनर चुनने का निर्णय भी खुद उनका ही होता है. मात्र सर छुपाने के उद्देश्य से या काउंसलिंग के प्रभाव में आकर अगर कोई निर्णय ले तो उसे परिणाम भी भुगतने ही होंगे. मुझे लगता है, काफी सोच-समझकर ही लोग इस निर्णय पर पहुँचते होंगे. और सम्मलेन के संस्थापकों का उद्देश्य भी ऐसी इच्छा रखने वालों..सामान विचार वालों को एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना ही है. वे कोई बिजनेस तो कर नहीं रहे कि फायदे की सोच कर लोगों को बाध्य करें.

      और इस बात पर कि 'अगर वीणा जी के पुत्र होते और माँ से पीछा छुडाने के लिए ऐसे रिलेशन में जाने के लिए बाध्य करते' क्या कहा जा सकता है...कई पुत्र ऐसे हैं ही जिनके लिये माँ ने मन्नतें मांगी, रात-दिन जाग कर देखभाल की और वे उसे वृन्दावन की गलियों में छोड़ आए. अब ऐसे लोगों का तो कोई इलाज ही नहीं.
      इसीलिए हर महिला का पूरी तरह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना ही उनकी सुरक्षा की शर्त है. फिर युवावस्था हो या वृद्धावस्था, वे अपने जीवन का निर्णय खुद ले सकती हैं.
      आप शायद फिल्म 'अमृत' की बात कर रही हैं.

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  15. अखंड सत्य और महत्वपूर्ण विषय को निचोड़ कर बाहर निकाला है

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  16. आपने बड़े अच्छे मुद्दे का जिक्र किया है , हमने तो खुद को देखा है कि जब साथी कुछ दिन दूर चला जाता है या साथ रहते हुए भी मुंह मोड़ लेता है ..जैसे सब कुछ बेरौनक हो जाता है...जैसे जीने के कोई मायने ही नहीं ...यही तो एक रिश्ता होता है जो पूरी तरह समर्पण मांगता है....तो जीवन की साँझ तो वैसे भी दुखदाई होती है ...शारीरिक रूप से थोडा अक्षम , यादों के बोझ से झुकी हुई ...मुझे ऐसा लगता है के क्या हर्ज़ है जो लाचार सा बुढ़ापा किसी काँधे पर थोड़ा सुकून पा जाये और और अपनी ज़िन्दगी शांत मन से जी सके ...बाकी होता तो वही है जो राम रूचि राखा.....

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  17. बुजुर्गो की समस्याओ की मुख्य वजह है migration या स्थान परिवर्तन पुराने समय में ज्यादातर लोग एक ही स्थान पर जिन्दगी बिता देते थे जिसके कारण उनके आस पास के लोग बदलते नहीं थे. जीवन साथी के न रहने पर हमउम्र पड़ोसियों के साथ मन लग जाता था पर अब ऐसा सबके साथ नहीं होता है और परेशानी भी ऐसे ही लोगो के साथ ज्यादा रहती है. जीवन के उत्तरार्ध में नए लोगो के साथ मन मिलना मुश्किल होता है. वृध्दाश्रम में दो मुख्य दुःख होते है एक तो अपनी संतानों के साथ न रह पाना और नए लोगो के साथ सामंजस्य.

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  18. अंशुमाला जी ने खूब याद दिलाई उस फिल्म का नाम था "अमृत"
    बहुत बढिया फिल्म थी, दो वृद्धों के अकेलेपन पर
    वृद्ध लोगों को सबसे पहले जरुरत होती है अपने साथ बैठने और उनसे बातें करने वाले एक शख्स की
    ऐसे में लिव-इन रिलेशन अच्छा सुझाव और बदलाव है। एक से भले दो होने पर छोटे-मोटे कामों में भी बहुत सहूलियत हो जाती है।
    लेकिन जहां वृद्धावस्था में बीमारियां भी पीछा नहीं छोडती, ऐसे में दो वृद्ध एक-दूसरे का कैसे और कब तक ख्याल रख पायेंगें।

    प्रणाम

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  19. एक उम्र के बाद शारीरिक जरूरतें इतनी नहीं रह जाती जितना जरुरी होता है मानसिक संबल ऐसी जीवन शैली की स्वीकार्यता के प्रति संतानों और परिवारजनों की आपत्ति का कारण सामाजिक न होकर आर्थिक है
    "कहीं संपत्ति वीरा बेन को न मिल जाये "

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  20. बहुत संवेदनशील विषय उठाया है आपने रश्मिजी। हमारे समाज में अभी इस पर बहुत सोच-विचार की आवश्यकता है।

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  21. अभी कुछ महीनों पहले की ही बात है.
    मेरी एक पहचान की महिला, पचास के आसपास की...उनके एक बेटा है.
    पति नहीं है... पति के अवसान के बाद पति की अगली पत्नी से हुई बेटी
    और पति की बहन ने भाई की सारी प्रोपर्टी हड़प ली...अभी-अभी दस साल की
    कानूनी लड़ाई के बाद पति का कुछ पेंशन इन्हें देने को कोर्ट ने फ़िक्स किया है...
    उनका एक drawing room, kitchen और एक बेडरूम वाला पुराना फ्लेट है...

    उन्हों ने किसी से कहकर मुझे अपने घर बुलाया था...
    मेथी-भाजी के थेपले, आचार और मस्त चाय पिलाने के बाद मुझसे सारी बात
    कही..., "लड़का शादी के लायक हो गया है, दो व्यक्तियों को चले(पत्नी के साथ)
    उतना कमा रहा है. पर मुझे पूरा विश्वास है, शादी के बाद उसकी बीवी मुझे शायद
    ही अपने साथ रखे...फिर मैं भी कोर्ट के चक्कर काट-काट कर चिडचिडी हो गई हूँ...
    सहनशीलता अब उतनी नहीं...घर मेरा, अपना खाती हूँ, फिर किसी की क्यों सुनू...!
    पर फिर भी, बेटा शादी के बाद सुख-चैन से रहे यह भी चाहती हूँ...

    फिर मुझसे कहा, "अपने शहर में 'घरडा-घर'(old aged home) चल रहा है...मेरे
    लिए वहाँ जाकर सारी सुख-सुविधा, खानपान, दवादारू, रहन-सहन, सहवासी, एकांत,
    मासिक फ़ीस इत्यादि की जानकारी ला दो...अगर फ़ोर्म्स मिलते हों तो वो भी ले आना.
    फिर लड़के की शादी के बाद वहाँ जाने का मैं कुछ निर्णय लूं...".

    मैने AtoZ जानकारी लाकर उन्हें दे दी...खुशी-नाखुशी के मिश्र भाव उनके चेहरे पर
    मैने पढे...
    फ़िलहाल वे अपने लड़के के लिए लड़की ढूंढ रही है...

    रश्मि जी, आपने यहाँ बताए वैसे आधार समाज में अगर बने रहे तो after age भी
    ज़रूरतमंदों की ज़िंदगी आसान हो पाए... कुछ हद तक...

    एक सघन, बढ़िया और संवेदनशील आलेख...

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  22. इस विषय पर सोचने और सोच को बदलने की बहुत ज़रुरत है .

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  23. एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा... और जिस पीढ़ी की बात यह आलेख करता है उसके लिए तो सचमुच एक चर्चा का विषय है.. यहाँ जितने भी कमेंट्स आये हैं और उनपर जो प्रति-टिप्पणियाँ दी गयी हैं, सब कुल मिलाकर इस पूरे विषय को विस्तार देती हैं और शायद किसी भी बात से इनकार नहीं किया जा सकता.. आवश्यकता है (और ऐसा प्रयोग आप पहले भी कर चुकी हैं) कि इन सभी टिप्पणियों को समेटकर इस विषय पर कुछ समय पश्चात आप एक विश्लेषणात्मक पोस्ट लिखें.

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  24. लेख में उठाया गया विषय और टिप्पणियों से एक सार्थक विमर्श निकल कर आया है जो इसके दोनों पहलुओं की ओर हमारा ध्यान खींचता है।

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  25. अभी इस पर बहुत कुछ सोचा जाना शेष है | जीवन बस 'केयरिंग और शेयरिंग' ही तो है ,जो चाहे विवाहित से पूर्ण हो जाए चाहे 'लिव इन रिलेशन' से |

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  26. वैसे कुछ लोग इस प्रकार जीवन व्‍यतीत करना चाहते हैं तो कोई बुराई नहीं है लेकिन भारत जैसे देश में सामाजिक कार्यों की कमी नहीं है, अपना समय कार्य करके भी बिताया जा सकता है।

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  27. रश्मि बहुत सुन्दर पोस्ट हैं.....बहुत अच्छा लगा पढ़कर ..इससे ज्यादा बढ़िया बात और क्या हो सकती है ...की लोगों को साथ मिल जाये ...अकेले ज़िन्दगी काटना उन्ही यादों के सहारे ..जो समय रहते धूमिल हो जाती हैं ..और यथार्थ की कालिमा जिन्हें कलुषित कर देती है ...बहुत दुश्वार होता है ..ऐसा में कोई कन्धा ...कोई मरहम लगाने वाला हाथ ..या कुछ दूर साथ चलने वाले कदम मिल जायें तो ज़िन्दगी कितनी खुबसूरत हो सकती है ..यह तुम्हारा लेख पढ़कर जाना ...बहुत सुकून मिला ....आभार रश्मि ..इतनी प्यारी पोस्ट के लिए

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  28. बेहद बढ़िया बात और सशक्त तरीके से लिखी है रश्मि.
    किसी भी इंसान को स्वंतत्रता होनी चाहिए अपने जीवनयापन की.....उसकी अपनी ज़िन्दगी है आखिर...
    फिर नालायक बच्चों की बात तो सुनना ही नहीं..
    हमारे यहाँ तो बुजुर्गों के लिए बाकायदा वैवाहिक सम्मलेन का आयोजन हुआ है और कई लोगों ने वहाँ अपने लिए साथी चुने हैं...कुछ मीडिया के सामने नहीं आये मगर अधिकतर बुजुर्गों ने बेबाक बात कही...बड़ा अच्छा लगा.
    अकेले जीना आसान नहीं ....
    थोड़े से दिन भी क्यूँ रोकर गुजारें भाई????
    :-)
    अनु

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  29. पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा . जमाना बदल रहा है. भारत में महिलाओं की नौकरी और बचत बहुत कम है, और बुढ़ापे में अगर कोई साथी हो तो बहुत अच्छी बात है. कनाडा में मेरे पड़ोस में काफी महिला अकेली रह रही हैं , कोई परेशानी नहीं है. यहाँ लगभग ५०% अडल्ट लोग अकेले हैं. यह तो इच्छा पर निर्भर है.

    @ ६५ वर्षीय व्यक्ति को ३५ से ४० साल की वर्जिन महिला की आवश्यकता है , पढ़ कर खून खौल गया था पहली बार में ( जब आप युवा होते है तो बुजुर्गो के ऐसी सोच आप के ज्यादा गुस्सा दिलाती है ),
    ये पढ़कर आज भी मेरा खून उतना ही खौला ...जितना तब आपका खौला था. ६५ वर्षीय को वर्जिन महिला चाहिए. sheer disgusting...shame on him .

    यह बात कुछ हज़म नहीं हुई . एक विज्ञापन और इतनी अच्छी पोस्ट पर भारी पड़ गया. सदिओं से पैसे वाले लोग महिलाओं के साथ बेमेल रिश्ता रखते आये हैं. पर इस पोस्ट में तो मन की बात हो रही है, एक दुसरे के सहारे की बात है. महिलाओं के लिए कहना चाहूँगा, जवानी में, बुढ़ापे में अगर समाज में अपनी मर्जी से जिंदगी जी सकें , पर इसके लिए अभी और वक्त लगेगा.

    धन्यवाद

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  30. समस्या तो गंभीर है परन्तु कोई भी एक समाधान सभी के लिये उचित नहीं हो सकता. इसलिए तमाम विकल्प तलाशने होंगे और नए नए विकल्पों का स्वागत भी होना चाहिये. लिव-इन रिलेसन भी उनमे से एक विकल्प है और स्वागत योग्य है.

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  31. इसमें कोई दो राय नहीं कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है - आपकी, अंशुमाला जी और रचना जी की बात से भी सहमत हूँ मैं। पर हाँ, अपने मूल में मैं इस पहल को स्वागत योग्य मानता हूँ।

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  32. आज शाम ही मैं बंगलौर से व्‍हाया मुंबई होते हुए उदयपुर आया हूं। मुंबई से उदयपुर की उड़ान में मेरे आगे की (हवाई जहाज टूबाईटू था) सीट पर एक विदेशी दम्‍पति बैठे थे। पत्‍नी को प्‍यार आया तो उसने पति को अपनी तरफ खींचकर गालों पर चुंबन जड़ दिया। कुछ समय बाद मैंने द‍ेखा कि पत्‍नी पति की गर्दन सहला रही है। पति बहुत देर से एक किताब पढ़ रहा था। शायद दुखने लगी थी। दोनों पचहत्‍तर से अधिक के तो रहे ही होंगे। तो प्‍यार और साथ तो हर उम्र में जरूरी है।

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  33. @ कई शादियाँ टूट गयीं, कहीं पुत्रवधू ने नई सास को नहीं स्वीकार किया ,कहीं संपत्ति का विवाद छिड़ गया.

    इस तरह की संभावनाएं सोचने पर मजबूर कर देतीं हैं .... सहमत तो नहीं हूँ पर सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया है इस आलेख ने |

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  34. अच्छी सोच और अच्छा उपक्रम है । जो लेना चाहते हैं उनके लिये ये मार्ग उपलब्ध है यही बहुत बडी बात है । विज्ञापन की बात छोडिये । उन्हें हजार चाहिये पर मिलेगा थोडे ही ।

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    उत्तर
    1. -कुछ लोग कहते हैं हम सारी उम्र खुद के लिए जीते हैं, एक पारी इस समाज के लिए भी होनी चाहिए

      -कुछ लोग ये भी मानते हैं की आदर्शों की स्थापना किसी भी समाज की आने वाली पीढ़ियों के लिए जरूरी है, इसके लिए अपने सुखों में कटौती करनी पड़ती है.

      @"युवजन क्या जाने कि अकेलापन क्या होता है..वे तो सारा समय मोबाइल के द्वारा या लैपटॉप के द्वारा किसी ना किसी से कनेक्टेड रहते हैं. मुश्किल हम जैसे लोगों के लिए है, जिनके लिए पहाड़ से दिन काटने मुश्किल हो जाते हैं "

      यहाँ तो बहस ही ख़त्म हो गयी

      फिर भी ...
      http://nayaindia.com/news/45640-%E0%A4%A4%E0%A4%A8-%E0%A4%B9-%E0%A4%B9-%E0%A4%A4-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5.html

      @वरिष्ठ नागरिक उन्हें अपनी समस्याएं बताते हैं. ज्यादातर वे लोग सिर्फ कुछ देर तक बात करना चाहते हैं. कभी कभी यह कॉल दो दो घंटे तक की हो जाती है.
      अपने युवावस्था के सुनहरे दिन, छोटी-मोटी तकलीफें, रोजमर्रा की मुश्किलें ,इन्ही सबके विषय में बात करते हैं,.

      यही हाल युवाओं का भी है

      मैं काफी सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की होने को तो विकल्प बहुत हैं | ये लिव इन वाला विकल्प नजदीक दिखने वाला एक ऐसा समाधान है जो की भविष्य की समस्याओं की जड़ है | ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता क्योंकि "युवाओं को क्या पता अकेलापन क्या होता है" के तर्क के आगे कुछ भी कहना बेकार है

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    2. ये कमेन्ट गलती से रिप्लाई की जगह आ गया है ..इसे किसी कमेन्ट के रिप्लाई के रूप में ना देखें

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  35. रश्मि बहुत बढ़िया और analytical आलेख है ,,बहुत अच्छा और सामयिक मुद्दा है जिस पर चर्चा की बहुत ज़रूरत है
    ये बिल्कुल सही है कि इस उम्र में (वृद्धावस्था)सहारे की बहुत ज़रूरत होती है बच्चे कितना भी ख़याल रखें लेकिन उन की भी अपनी मजबूरियाँ होती हैं कभी कभी
    लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि ’लिव इन रिलेशनशिप’ के बजाय शादी इस का बेहतर हल है

    इस अच्छे लेख के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकार करो

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  36. बहुत ही संवेनदशील विषय लिया है आपने रश्मि ..मुझे तो लगता है की अभी वक़्त लगेगा ...हालंकि सोचने वाली बात है की अकेलापन बहुत मुश्किल से कटता है .पर हमारा समाज इस पर इतनी जल्दी अभी अपनी स्वीकृति नहीं देगा ..इस पर पहल होनी चाहिए

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