अनूप जलोटा के जन्मदिन पर उनके पारिवारिक समारोह में बर्थडे बॉय की फरमाईश पूरी करते हुए
काश..काश...ऐसी पोस्ट लिखने का मौका कभी नहीं आता...कोई चमत्कार हो ही जाता और जगजीत सिंह जी सकुशल अस्पताल से वापस अपनी उन्ही ग़ज़ल की दुनिया में लौट आते...पर ऐसा हो ना सका.
चित्रा सिंह के दुख की तो कल्पना भी मुश्किल ...पहले बेटा खोया...दो साल पहले उनकी बेटी ने आत्महत्या कर ली (चित्रा सिंह और उनके पहले पति की बेटी मोनिका लाल...जो डिप्रेशन की शिकार थीं )...और अब उन्हें इन सारे संकटों में संभालने वाले हाथो का सहारा भी नहीं रहा..
हम सब तो बस अब यही कह सकते हैं...
रोज़ अखबारों में उनके स्वास्थ्य के अपडेट्स ढूँढने वाली आँखें...अब उनकी अंतिम यात्रा की ख़बरें कैसे पढ़ पाएंगी, राम जाने..... दुख इतना गहरा है कि कुछ भी लिखना फ़िज़ूल लग रहा है...कहाँ इतनी काबिलियत है मेरे लेखन में कि अंदर का सारा दर्द शब्दों में उतार सके.
हमारी पीढ़ी ऐसी है कि प्रेम..रोमांस.....विछोह...दुख...दर्द... सब जगजीत सिंह की ग़ज़लों के सहारे ही महसूस किया है. फिल्म साथ-साथ..अर्थ...और उनकी ग़ज़लों के कुछ कैसेट्स सुनकर ही मन के गलियारों में एक दूसरी दुनिया का पदार्पण हुआ .
आज भी जब मैं या मेरे जाननेवाले..स्कूल-कॉलेज के दिन याद करते हैं तो जगजीत सिंह का नाम अनायास ही आ जाता है...उन दिनों उनकी गज़लों के प्रति दीवानगी की ये सीमा थी कि लगता था...उनकी गज़लें और उनकी आवाज़ में छुपा दर्द मुझसे बेहतर शायद ही कोई समझ सकता है. कितने सारे उर्दू शब्द , उनकी ग़ज़लों से ही जाना...ग़ालिब के अशआर से परिचय भी जगजीत सिंह की आवाज़ के जरिये ही हुआ.एक कजिन से शायद पिछले पंद्रह-सोलह बरस से नहीं मिली हूँ...पर आज भी जब भी बात होती है..एक बार जरूर पूछ लेता है.."अब भी वैसे ही ,जगजीत सिंह की गज़लें सुना करती हो?" उसने फेसबुक पर अकाउंट बनाया ,और फ्रेंड्स रिक्वेस्ट के साथ मैसेज में यही लिखा.."और जगजीत सिंह के क्या हाल हैं?" इतने दिनों की बिछड़ी सहेली से जब बारह बरस बाद बात हुई...तो उसने बात की शुरुआत ही इस वाक्य से की.." कुछ दिनों पहले जगजीत सिंह की बीमारी की खबर सुनी तो तुम्हे बहुत याद कर रही थी.." जगजीत सिंह के बहाने याद करने का बहाना भी गया..अब लोगो के पास से...
जिंदगी में तीन शख्सियत की ही घोर प्रशंसक रही...जगजीत सिंह..सुनील गावस्कर और जया भादुड़ी...अभी हाल में ही किसी से कहा...दो का जादू तो उतर गया...पर जगजीत सिंह के स्वर के जादू ने आज भी वैसे ही मन मोहा हुआ है...खैर जो गज़लें हमारे खजाने में शामिल हो चुकी हैं..वे तो यूँ ही महकती रहेंगी...बस अब नई ग़ज़ल शामिल नहीं हो सकेगी...इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है , ये मन.
जब आप किसी के फैन होते हैं...तो उससे सम्बंधित हर खबर...पर निगाहें होती हैं...याद है..बरसो पहले धर्मयुग में छपा उनका इंटरव्यू....जिसमे उनसे पूछा गया था.."सुना है .चित्रा सिंह से आपकी अनबन चल रही है..आपलोग तलाक लेने वाले हैं"...और जगजीत सिंह का उत्तर था.."अच्छा! हमारे बारे में भी अफवाहें उड़ने लगीं..इसका मतलब..हमलोग भी फेमस हो गए हैं"
पढ़ कर मेरी भृकुटी पर बल आ गए थे...."ये क्यूँ कहा..जगजीत सिंह ने ...वे तो ऑलरेडी इतने फेमस हैं.."
इतने अपने से लगने लगे थे कि इंटरव्यू के साथ छपी तस्वीर भी पसंद नहीं आई....जिसमे चित्रा सिंह कुर्सी पर बैठी थीं..और वे पीछे खड़े थे..किशोर मन ने शिकायत की थी.."ये क्या पुराने स्टाईल में राजा-रानियों की तरह तस्वीर खिंचवाई है"
जब उन्होंने अपने बेटे को खोया था..तो उनके दर्द की सोच ही मन भीग आता था. चित्रा सिंह को संभालने के लिए जगजीत सिंह बाहरी रूप से शांत बने रहते..पर चित्रा सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया.." वे बाहर से शांत दिखते हैं..पर आधी रात को उठ कर रियाज़ करने चले जाते हैं...और रियाज़ करते ,उनकी आँखों से झर-झर आँसू बहते रहते हैं.
इतना बड़ा दुख सहकर भी.....शो मस्ट गो ऑन की तर्ज़ पर उन्होंने शोज़ देना जारी रखा...कुल तीन बार उनकी शो में जाने का मौका मिला और हर बार जैसे गज़ले सुन कान ही नहीं...उन्हें गाते देख आँखें भी तृप्त हो जातीं . एक बार एक शो में हमलोग काफी देर से पहुंचे...और संयोग ऐसा कि ठीक जगजीत सिंह ने भी उसी समय हॉल में प्रवेश किया...मैं दरवाजे के एक किनारे खड़ी थी...और एक हाथ के फासले से हमारे आइडल गुज़र रहे थे...इतना बड़ा सुर सम्राट और सफ़ेद झक कुरते पायजामे में..इतना सिम्पल सा पर गरिमामय व्यक्तित्व ...कि देखने वाला ठगा सा रह जाए. संयोग से हमारे बैठने की जगह तीसरी कतार में थी .और मैं ग़ज़ल सुनने से ज्यादा उन्हें अपलक निहार रही थी..वो बीच-बीच में अपने साजिंदों का उत्साह बढ़ाना...चुटकुले सुनाना...अपनी ही गयी ग़ज़ल की ऐसी व्याख्या करना कि हॉल ठहाकों से गूंज उठता...कुछ चुनिन्दा ग़ज़लों पर पूरा हॉल उनके साथ गाने लगता. मध्यांतर में कई लोग उनका ऑटोग्राफ लेने गए...स्टेज से ज्यादा दूरी पर मैं नहीं थी..ऑटोग्राफ लेने के लिए मुझे भी ज्यादा नहीं मशक्कत नहीं करनी पड़ती..पर पता नहीं...उस भीड़ में जाकर खड़े रहने से ज्यादा मुझे दूर से ही उनके हर क्रिया-कलाप को देखना ज्यादा अच्छा लग रहा था.
जगजीत सिंह को यूँ भी....दर्शकों के साथ interaction अच्छा लगता था. एक बार वे दिल्ली में कुछ ब्यूरोक्रेट्स की महफ़िल में ग़ज़ल पेश कर रहे थे...उन्होंने दो गज़लें सुनायी ..पर हॉल में सन्नाटा पसरा रहा...उन टाई सूट में सजे अफसरों को ताली बजाना नागवार गुजर रहा था. अब जगजीत सिंह से रहा नहीं गया.उन्होंने तीसरी ग़ज़ल शुरू करने से पहले कहा..."अगर आप लोगों को ग़ज़ल अच्छी लग रही है. तो वाह वाह तो कीजिये.यहाँ आप किसी मीटिंग में शामिल होने नहीं आए हैं.सूट पहन कर ताली बजाने में कोई बुराई नहीं है.अगर आप ताली बजाकर और वाह वाह कर मेरा और मेरे साजिंदों का उत्साह नहीं बढ़ाएंगे तो ऐसा लगेगा कि मैं खाली हॉल में रियाज़ कर रहा हूँ."
फिर तो अपने सारे संकोच ताक पे रख कर उन अफसरानों ने खुल कर सिर्फ वाह वाह ही नहीं की और सिर्फ ताली ही नहीं बजायी.जगजीत सिंह के साथ गजलों में सुर भी मिलाये.अपनी फरमाईशें भी रखी.वंस मोर के नारे भी लगाए.(मैने बहुत पहले इस घटना से सम्बंधित एक पोस्ट भी लिखी थी )
पता नहीं..क्या क्या मिस करनेवाली हूँ...मन को समझाना मुश्किल पड़ रहा है कि उनके गाए, भजन...सबद...ग़ज़लों के अल्बम में और नए अल्बम शामिल नहीं होने वाले....अक्सर अखबार में कहीं ना कहीं उनके शो की खबर छपती थी....टी.वी. पर झलक दिख जाती थी...अब सब सूना ही रह जाएगा..
ईश्वर जगजीत सिंह आत्मा को शान्ति दे...और चित्रा जी को ये अपरिमित दुख सहने का संबल प्रदान करे..
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है
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जवाब देंहटाएंजगजीत सिंह जी तो आवाज के जरिये अमर हो गए हैं , नई पीढी तक ग़ज़ल गायकी को पहुंचाने के लिए उनका योगदान अतुलनीय है ...ग़मों की इन्तिहाँ और उनकी गायकी और शोहरत की भी ...हर कोई ऐसा ही महसूस करता होगा जैसे बस वही समझ पा रहा है और उनकी आवाज और उसके बीच और कोई तीसरी चीज है ही नहीं ...आपने बहुत अच्छा लिखा है ...आँखें नम हैं ...
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट पे मैं क्या कहूँ समझ नहीं आ रहा दीदी..मैं आज सुबह कुछ काम से बाहर गया था दो घंटे के लिए और वापस आया तो देखा ये खबर...मैं एकदम स्तब्ध रह गया!
जवाब देंहटाएंजगजीत आज जगहार गये !
जवाब देंहटाएंउन्हें श्रद्धा सुमन ,शत शत नमन !
जगजीत जी पुत्र के आकस्मिक मृत्य से टूट से गए थे.. जीवन कष्टमय रहा -इस नश्वर संसार को छोड़कर उस रूहानी मिलन को जल्दी चले जाना भी उसी परवर दिगार की ही कोई सूझ रही हो -अब वे कष्ट और पीड़ा से मुक्त हुए ....
जवाब देंहटाएंमेरा नमन
@मैं समझता हूँ जग उन्हें हार गया वे तो जग को पहले ही जीत ही गए हैं !
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि...... :(
जवाब देंहटाएंसच में मैं सिर्फ चित्र सिंह को सोच रही थी.... और क्या कहूँ ऐसे समय में ......
जवाब देंहटाएं" चिट्ठी ना कोई सन्देश…
जवाब देंहटाएंजाने वो कौन सा देश जहा तुम चले गए
इस दिल पे लगा के ठेस जाने वो कौन सा देश
जहा तुम चले गए....”
विनम्र श्रद्धांजलि।
श्रद्धांजलि! यकीन नहीं हो रहा!!
जवाब देंहटाएं्कुछ कहा नही जा सकता सिर्फ़ विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंएक सिल्कन स्मूथ आवाज़ आज हमेशा के लिए कहीं खो गई ।
जवाब देंहटाएंखुद कष्ट भोगकर उन्होंने देश की जनता को अपनी मधुर ग़ज़लों से भाव विभोर किया ।
विनम्र श्रधांजलि ।
क्या कहूं? शब्द जैसे गुम हो गये हैं...श्रद्धान्जलि.
जवाब देंहटाएंजग को जीत कहां तुम चले गए...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
इतनी मधुर, दर्दभरी, मखमली और रेशमी आवाज़ की कमी सदा खलेगी ! मुझे याद है सालों पहले एक शाम एक रेस्टोरेंट में पहली बार जगजीत सिंह की गज़ल 'कल चौदहवीं की रात थी' पहली बार सुनी थी और उस जादुई आवाज़ ने ऐसा सम्मोहित किया था कि मैं सारा संकोच भूल मैनेजर के पास यह पूछने चली गयी थी कि किस गायक की गज़ल है और मेरी रिक्वेस्ट पर लगातार तीन बार यह गज़ल उस दिन उस रेस्टोरेंट में बजाई गयी थी ! उस जादुई आवाज़ का असर आज तक मुझ पर तारी है ! 'अर्थ' की दोनों गज़लें 'झुकी झुकी सी नज़र' और 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो' मेरी सबसे अधिक फेवरेट हैं ! जगजीत सिह के इस अवसान ने संगीत की दुनिया के एक सबसे मधुर और हरदिल अज़ीज़ कलाकार के अध्याय को समाप्त ज़रूर कर दिया है लेकिन उनके चाहने वालों के दिलों में उनकी यादें और उनके अल्बम्स में उनकी आवाज़ सदा अमर रहेंगी ! ईश्वर उनकी आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करें !
जवाब देंहटाएंबस श्रद्धांजलि अर्पित करने के सिवा क्या कहूं
जवाब देंहटाएंप्रेम के कोमल स्वरूप को सुना कर चले गये।
जवाब देंहटाएंयकीनन वे चले गए। सबको एक दिन जाना ही है। वे भी अचानक नहीं गए। पिछले एक महीने से जिस तरह की स्थिति में थे,उसमें यह कभी भी संभव था। इसलिए स्तब्ध मत होईए।
जवाब देंहटाएं*
पर जगजीत जी अपने नाम के अनुरूप जग जीत कर ही गए हैं। जो उन्होंने गाया है,वह यह दुनिया अगर रहेगी तो सदियों तक गुनगुनाती रहेगी। रश्मि जी यह सच है कि उनका कोई न अलबम नहीं आएगा। पर जो हैं क्या वे कम हैं। उनकी एक एक गजल आप दिन दिन भर सुन सकती हैं।
और आंखों में नमी तो हमेशा रहेगी ही अगर आप जगजीत को पसंद करते रहें हैं तो। उनके रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
सच उनकी गायकी में एक नशा सा था। विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंजगजीत सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि |
जवाब देंहटाएंचित्रा सिंह के लिए बहुत दुःख हो रहा है |
:-(
जवाब देंहटाएंआपके हरेक शब्द मेरी भावनाओं की भी अभिव्यक्ति हैं. श्रद्धांजलि के लिए तो शब्द ही नहीं हैं..... वो कभी भुलाये तो नहीं ही जा सकेंगे मगर उनकी कमी हमेशा खलेगी.
जवाब देंहटाएंशाम से आँख में नमी सी है
जवाब देंहटाएंआज फिर आपकी कमी सी है
जैसे शब्द कहीं खो गये हों ... विनम्र श्रद्धांजलि ..।
लेकिन अपनी जादुई आवाज़ के कारण वे हमेशा हमारे दिलों में अपने होने का एहसास कराते रहेंगे...उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि और चित्राजी को इस असीम दुख को सहने की शक्ति मिले..
जवाब देंहटाएंaankhe nam hai, ek yug ka anat sa ho gya hai...kuch bhi likh pana saksham nahi...shrdhhasuman.
जवाब देंहटाएंहम तो बहुत छोटे हैं कुछ कहने के लिए। जगजीत सिंह का जाना तो अखरा ही…लेकिन हर जगह यह देखकर कि ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे, इन ईश्वरों और भक्तों के दिमाग पर गुस्सा आता है। जिस आदमी के घर बेटा, बेटी रहे नहीं, जो बचा सो चला गया, उसकी जिंदगी में उस ईश्वर का ध्यान किस जगह था?
जवाब देंहटाएंशायरी के अलफ़ाज़ जैसे जगजीत सिंह जी की आवाज़ का सिंगार पाकर खिल उठते थे...कुछ ऐसा जादू था उनकी गायकी में...
जवाब देंहटाएंहमेशा याद आएंगे जगजीत सिंह जी.
उनकी आवाज अमर रहेगी ....
जवाब देंहटाएंआज मैं भी चित्रा जी के बारे में ही सोच रहा था....
जवाब देंहटाएंजगजीत जी जग को जीत कर ही गये , ऐसे लोंग अमर हो जाते हाँ ...
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि!
श्रद्धांजलि के सिवा क्या कहूं...
जवाब देंहटाएंकभी कभी, कहीं कहीं, कहने को इतना कुछ होता है, कि शब्द छोटे हो जाते हैं ....
जगजीत सिंह के परिवार के बारे में जानकारी विस्तार से इस पोस्ट में मिली।
जवाब देंहटाएंजगजीत सिंह की स्मृति को नमन।
एक युग का अंत हुवा है ... गज़ल का एक दौर खत्म हो गया ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की ११०० वीं बुलेटिन, एक और एक ग्यारह सौ - ११०० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबस,मन भीग जाता है कहते नहीं बनता कुछ!
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