पता नहीं कितने लोगो को कहते सुना ..मेरा बरसो पुराना फ्रेंड फेसबुक या नेट के माध्यम से मिला/मिली और मैं खीझ कर रह जाती...मुझे तो मेरी कोई फ्रेंड मिलती ही नही. मेरी अधिकाँश फ्रेंड्स की तो शादी के बाद सरनेम चेंज हो गए होंगे...इसलिए नहीं मिलती...पर सीमा...सीमा, क्यूँ नहीं मिलती?? उस से तो उसकी शादी के बाद भी मुलाकात होती रही, बस पिछले 12 बरस से बिछड़ गए, हम. उसके पति का सरनेम भी पता था, फिर भी ना तो वो नेट पर मिलती ना ही फेसबुक पर. ब्लॉग पर भी कभी पोस्ट में कभी टिप्पणियों में उसके शहर उसकी कॉलोनी का जिक्र कर देती कि कोई पहचान वाला पढ़े तो शायद मदद कर सके. समस्तीपुर वालों से तुरंत दोस्ती का हाथ बढ़ा देती ....शायद वे जानते हों पर हर बार निराशा ही हाथ लगी.
सीमा ,कॉलेज के दिनों की मेरी बेस्ट फ्रेंड थी, जबकि हम एक साथ कभी पढ़े भी नहीं. पर उन दिनों वो ही मेरी बेस्ट फ्रेंड थी. उस से दोस्ती का किस्सा भी बड़ा अजीब है. बारहवीं के बाद मैने घर में ऐलान कर दिया था कि मैं अब हॉस्टल में रहकर नहीं पढूंगी बल्कि समस्तीपुर में ही पढूंगी(जहाँ पापा कि पोस्टिंग थी) . मम्मी-पापा ने समझाया..'ठीक है..पहले जाकर कॉलेज देख लो...अगर अच्छा लगे तो यहीं पढना" और मैं अपने पड़ोस में रहनेवाली एक लड़की के साथ वहाँ के विमेंस कॉलेज गयी. वहीँ पर मेरी मुलाकात सीमा से हुई और हमारी तुरंत दोस्ती हो गयी. करीब एक हफ्ते तक कॉलेज जाती रही. हम साथ लौटते...एक गली मेरे घर की तरफ मुड जाती और सीमा कुछ और लड़कियों के साथ सीधी चली जाती. एक हफ्ते में ही मैने निर्णय ले लिया कि नहीं हॉस्टल में रहकर ही पढूंगी. सीमा से मुलाकात भी ख़त्म हो गयी. मेरा एडमिशन हो गया...और सरस्वती पूजा के बाद मुझे हॉस्टल जाना था. सरस्वती पूजा के दिन, सीमा मेरा घर ढूँढती हुई मुझसे मिलने आई और हम साथ साथ सरस्वती जी के दर्शन के लिए चले गए .उसके बाद से ही अक्सर हमारी शामें,एक दूसरे के घर के छत पर गुजरने लगीं.
उन दिनों हमारी दुनिया थी...किताबें..पत्रिकाएं...फ़िल्में ,क्रिकेट और जगजीत सिंह की गज़लें. फिल्म हम साथ देखते...किसी पत्रिका में कोई कहानी पढ़ लेते तो दूसरे के लिए रख देते और जब उस कहानी की बातें करते तो पता चलता...हम दोनों को वो ही अंश पसंद आए हैं. एक ने जो किताब पढ़ी..दूसरे को पढवाना अनिवार्य था. एक शाम,सीमा एक मोटी सी किताब लेकर आई जिसमे अमृता प्रीतम की तीन लम्बी कहनियाँ...कुछ छोटी कहानियाँ और कुछ कविताएँ संकलित थीं. किताब देखकर मुझे हर्ष और विषाद एक साथ हुआ...दूसरे दिन ही मुझे हॉस्टल जाना था. पर सीमा ने ताकीद कर दी...पूरी किताब ख़त्म करनी ही है. हम इन कहानियों पर बातें करेंगे. मेरी रूचि तो थी ही और पूरी रात जागकर मैने वो सारी कहानियाँ पढ़ीं (उनमे अमृता प्रीतम की मशहूर कहानियाँ .. पिंजर और नागमणि भी थी) .
सीमा की प्रतिक्रिया देखकर ही मुझे ये पता चला...'हर उम्र पर किताबो का असर अलग रूप में होता है" मैने नवीं कक्षा में 'गुनाहों का देवता 'पढ़ी थी ..और आज तक...वही असर है.पर सीमा को शायद बी.ए. फाइनल इयर में मैने उसके जन्मदिन पर 'गुनाहों का देवता' दी थी. उसे अच्छी लगी पर उतनी नहीं, जितनी मुझे लगी थी. मेरे भी हर जन्मदिन पर सुबह-सुबह, कोहरे में लिपटी दो दो स्वेटर पहने. मोज़े, जूते, स्कार्फ से लैस. (क्यूंकि पूरा जाड़ा...उसका सर्दी-जुकाम-बुखार से लड़ते गुजरता ) सीमा, अमृता-प्रीतम..मोहन राकेश की या कोई दूसरी साहित्यिक किताब लिए मेरे घर हाज़िर हो जाती. उन दिनों..हमें ' Pride and Prejudice " Wuthering Hights 'बहुत अच्छे लगते . Erich Segal की Love Story तब भी हम दोनों को उतनी अच्छी नहीं लगी थी...जबकि वो अंग्रेजी की 'गुनाहों का देवता' है.
उन दिनों मैने कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया था और सीमा उनकी पहली पाठक ही नहीं...जबरदस्त आलोचक की भूमिका भी निभाती. तारीफ़ वाली जगह तारीफ़ भी करती पर बहुत ही कंजूसी से :)
हॉस्टल में भी लम्बे लम्बे ख़त के सहारे हम साथ बने रहते. कभी-कभी छुट्टियों में मुझे दादाजी गाँव ले जाते ..जहाँ टी.वी. था तो सही..पर बैटरी पर चलता...सिर्फ रविवार को रामायण और फिल्म ही देखे जाते. क्रिकेट मैच के दिनों में एक-एक मैच के हाइलाइट्स सीमा मुझे लिख भेजती. सुनील गावस्कर की आत्मकथा 'सनी डेज़' हम दोनों ने साथ पढ़ी थी. और ऐसे कितनी ही बहस हो जाए..पर सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री हम दोनों के ही फेवरेट थे {मेरे तो आज भी हैं...सीमा का नहीं पता :)}
वैसे ही फेवरेट थे जगजीत सिंह. उन दिनों कैसेट का जमाना था.... "बात निकलेगी तो दूर..." कल चौदवीं की रात थी...' देश में निकला होगा चाँद..." हम पता नहीं कितनी बार रिवाइंड करके सुनते. उस ढलती शाम में गूंजता..जगजीत सिंह का उदास स्वर हमें कहीं भीतर तक उदास कर जाता जबकि वजह कोई नहीं होती.
पर कुछ मामलो में सीमा बहुत बेवकूफ थी. उसने दसवीं में पढ़ने वाले अपने कजिन को 'ख़ामोशी' फिल्म सजेस्ट कर दी..और जब उसे पसंद नहीं आई तो सीमा को बहुत आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया . ऐसे ही, उसके घर बोर्ड की परीक्षा देने उसके गाँव से कुछ लडकियाँ आई थीं. ,उनलोगों ने रविवार को टी.वी. पर फिल्म देखने की इच्छा जताई. सीमा ने उनके बैठने की व्यवस्था..बिलकुल टी.वी. के सामने की. पर फिल्म थी, 'कागज़ के फूल' कुछ ही देर में उनकी खुसुर पुसुर शुरू हो गयी...और सीमा मैडम नाराज़.."एक तो सामने बैठ गयीं..और अब डिस्टर्ब भी कर रही हैं..इतनी अच्छी फिल्म उन्हें कैसे अच्छी नहीं लगी." यह बात उसे समझ में नहीं आती ..कि सबका लेवल अलग होता है...:)
बाज़ार से मुझे या सीमा को कुछ भी लाना हो.हम साथ जाते और आने-जाने के लिए सबसे लम्बा-घुमावदार रास्ता चुनते..जाने कैसी बातें होती थीं ..जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेतीं. सीमा को कॉलेज में कुछ काम होता और मैं शहर में होती तो हम साथ ही जाते उसके कॉलेज. पर कॉलेज में नहीं रुकते. उन दिनों कैफे....मैक डोनाल्डस तो थे नहीं, जहाँ समय गुजारे जा सकते. कॉलेज के पास एक निर्माणधीन मकान के अंदर जाकर कभी उसकी सीढियों पर बैठते तो कभी..उस घर के किचन की प्लेट्फौर्म पर. रेत-पत्थर -इंटों के ढेर के बीच...और हमें डर भी नहीं लगता...उस घर में एक तरफ मजदूर काम कर रहे होते...और एक तरफ हम बैठे अपनी बातों में मशगूल. अब सोच कर ही डर लगता है...अब शायद ही ऐसे माहौल में लडकियाँ सुरक्षित महसूस करें, खुद को....क्या होता जा रहा है,हमारे समाज को.
सीमा की शादी बहुत जल्दी हो गयी...और घर में शादी की बातचीत उस से भी पहले से शुरू हो चुकी थी. ऐसे में सीमा ,सीधा मेरे घर आ जाती. पीछे से उसकी अनु दीदी और कजिन...आतीं तब मुझे पता चलता..'मैडम घर से नाराज़ होकर आई है' जाहिर है..इतनी जल्दी शादी की उसकी मंशा नहीं थी....पढ़ने में बहुत तेज थी..अपने कॉलेज की प्रेसिडेंट भी थी. दूसरे कॉलेज में किसी प्रोग्राम के सिलसिले में जाती तो उसकी धाक जम जाती. सारे लोग उसे पहचानते थे. मेरे पड़ोस में रहने वाली लड़की तो इसी बात पर इतराए घूमती और अपनी सहेलियों पर रौब जमाती कि उसके पड़ोस में 'सीमा' का आना जाना है. मैं, जब दुसरो से उसकी तारीफ़ सुनती तो पलट कर सीमा को एक बार देखती..'मुझे तो उसमे ऐसा कुछ ख़ास दिखता नहीं....किस बात की तारीफ़ करते हैं लोग.' :)
समस्तीपुर से पापा का ट्रांसफर हो गया..मैं एम.ए करने पटना चली आई..सीमा ससुराल चली गयी. एक दिन मैं मनोयोग से लेक्चर सुन रही थी..और देखती क्या हूँ..मेरी क्लास के सामने सीमा अपने पतिदेव के साथ खड़ी है. एम.ए में थी..पर फिर भी कभी लेक्चर के बीच में क्लास छोड़ बाहर नहीं निकली थी. पहली बार बिना..प्रोफ़ेसर से कुछ पूछे बाहर आ गयी...और फिर थोड़ी देर में अपनी किताबें भी उठा कर ले आई. इसके बाद तो सीमा को जब भी मौका मिलता...मुझसे मिल जाती. मैं बनारस में अपनी मौसी के यहाँ थी...वहाँ, सीमा के डॉक्टर पति का कोई कॉन्फ्रेंस था..वो उनके साथ,अपने छोटे से बेटे को लेकर मुझसे मिलने चली आई. मेरी शादी में भी...अपनी छः महीने की बेटी को अपनी माँ के पास छोड़कर शामिल हुई थी.
पापा भी रिटायरमेंट के बाद पटना में आ गए थे. और सीमा अब पटना के एक स्कूल में बारहवीं कक्षा को पढ़ाती थी. शादी के बाद उसने बी.ए.,..एम.ए.....बी.एड. और पी.एच .डी. भी किया. सिविल सर्विसेज़ का प्रीलिम्स भी क्वालीफाई किया. am really proud of her :) .पर वो समझ गयी थी कि mains नहीं कर पाएगी...क्यूंकि ससुराल में घर का काम....दो छोटे बच्चों की देखभाल के साथ मुमकिन नहीं था.
फिर तो, मैं जब भी गर्मी छुट्टियों में पटना जाती..पहला फोन सीमा को ही घुमाती. और हम मिलते रहते. करीब बारह साल पहले... गर्मी छुट्टी में पटना गयी तो आदतन फोन लगाया..बट नो रिस्पौंस...सीमा के स्कूल गयी...वहाँ ऑफिस में किसी ने बताया.."उनका तो स्थानान्तरण हो गया' मुम्बइया भाषा के आदी कान को...ये शब्द समझने में ही दो मिनट लग गए. उनके पास सीमा का कोई कॉन्टैक्ट नंबर नहीं था और गर्मी छुट्टी की वजह से स्कूल बंद था..प्रिंसिपल,किसी टीचर से मिलना मुमकिन नहीं था. पटना में पापा ने भी नया घर ले लिया था ....मुंबई में हमने भी फ़्लैट ले लिया था. सबके फोन नम्बर बदल चुके थे. मुझे पता था, सीमा ने कोशिश की होगी..पर कहाँ ढूँढती हमें. और मैने सोचा लिया..."अब तक वो मुझे ढूँढती आई है...'इस बार सीमा को मुझे ढूंढना है."
मैं कोशिश करती रहती. हर कुछ दिन बाद मैं उसका नाम लिख एक बार एंटर मार लेती.....पता नहीं कितनी सीमा के चेहरे की रेखाएं गौर से पढ़ने की कोशिश करती. और कामयाबी मिली कल..एक अक्टूबर को. उसके नाम के साथ जुड़ा था. प्रिंसिपल ऑफ़ ___ स्कूल {स्कूल का नाम नहीं लिख रही...उसका कोई स्टुडेंट ना पढ़ ले, ये सब :)} पर इस से ज्यादा कोई इन्फोर्मेशन नहीं मिली. पर नीचे एक वेबसाईट का लिंक मिला..जिसमे परिचय में लिखा था.. son of Dr Rajkumar and Dr . Seema ...early education in Darbhanga . दरभंगा सीमा की ससुराल थी.. अब इतने संयोग तो नहीं हो सकते. मैने जैसे ही नाम पढ़ा..याद आ गया...'सीमा के बेटे का नाम 'ऋषभ' है. पर कन्फर्म कैसे हो...ये सीमा का ही बेटा है. उसके ऑर्कुट प्रोफाइल का लिंक था. वहाँ फोटो में ढूँढने की कोशिश कि. एक फोटो थी माँ के साथ..पर उसमे सीमा पहचान में नहीं आ रही थी. हाँ, डॉक्टर साहब को जरूर पहचान लिया. ऋषभ का मेल आई डी भी मिल गया..और मैने झट से एक मेल भेज दिया...फिर भी सुकून नहीं आ रहा था...अब नाम पता चल गया तो फेसबुक पर ढूँढने की कोशिश की और पाया...ऋषभ ने माँ के साथ...अपने बचपन की एक तस्वीर लगा रखी है.
सीमा ही थी..:)
मैने सोचा...अब कहाँ वीकेंड में वो रिप्लाय करेगा...दोस्तों के साथ फिल्म देखने..पार्टी करने में बिजी होगा...अब सोमवार को ही reply करेगा . फिर भी सोने से पहले एक बार मेल चेक किया.....और..और ऋषभ का मेल था...जिसमे एक संदेश था...".. apki timing bhi perfect hai .. Its her birthday tomorrow .. mamma ko bhi apse baat karke utni he khushi hogi i m sure ! :)
फेसबुक पर मिली फोटो जिसमें सीमा को पहचानना मुश्किल नहीं था.
सीमा का फोन नंबर भी था...और बारह बजने में बस तीन मिनट शेष थे फिर तो मैने एक पल की देरी नहीं की ...बस बर्थडे विश किया और पूछा..पहचाना?...दूसरी तरफ से चीखती हुई आवाज़ आई.."कहाँ थी इतने साल??" सीमा ने आवाज़ पहचान ली...:)
जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो सीमा..:):)
:):):):):):)
जवाब देंहटाएंवाह....इतनी स्वीट पोस्ट है...देखिये कितने फायदे हैं आजकल इन्टरनेट और सोशल नेटवर्किंग साईटों की :) :) इतनी पुरानी दोस्त मिल गयीं आपको और वो भी उनके जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले...क्या बात है... :)
मुझे भी अपने एक बचपन के दोस्त को खोजना है, खोज चालु भी है फ़िलहाल लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली..:)
जवाब देंहटाएंअद्भुत! अविस्मरणीय! बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह...बेहद खूबसूरत....सीमा को हमारी तरफ से भी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ...काश बचपन के दोस्त हमें भी मिल जाएँ... :)
जवाब देंहटाएंमन की मुराद पूरी हुई अब तो हलवा बाँट दो, नवरात्रों का भी मौका है।
जवाब देंहटाएंdono ko mubarak... mil gaye ayr bday wish bhi ker liya... happy bday seema ji
जवाब देंहटाएंमाडरेशन लगा रखा है लेकिन ये वाला कमेन्ट मिटा देना, इस खुशी में मीठा जरुर बाँट देना, मन की मुराद वो भी नवरात्रों में माँ ने सुन ली आप की दिल की पुकार। क्यों ठीक कहा ना मैंने
जवाब देंहटाएंआपके आनन्द की कल्पना कर सकता हूँ मैं।
जवाब देंहटाएंजिन खोजा तिन पाइयां..गहरे पानी पैठि
जवाब देंहटाएंbadhaii
bahut hi sweet post hai di...maine bhi facebook ke through hi apni sari frens ko dhundha abhi...aapki khushi ka me bahut jayada khush hun.. :)
जवाब देंहटाएं@संदीप जी,
जवाब देंहटाएंकमेन्ट क्यूँ हटाऊं?.....आपने इतनी अच्छी सलाह दी है....जरूर अमल करुँगी....बस काश आपलोगों को भी खिला पाती..:)
रश्मि जी,
जवाब देंहटाएंएक साधारण सी खोज को आपने कोमल भावनाओं से सरस बना दिया है। अंत तक आते आते आंखे नम हो गई, जब अतिरेक में सीमाजी ने कहा "कहाँ थी इतने साल"
मैं भी अपने एक बचपन के मित्र को याद कर रहा हूं, पर 'अशोक' नाम के अलावा कोई सूत्र नहीं।
भावनाप्रधान लाईव संस्मरण
जहां चाह, वहां राह!
जवाब देंहटाएंइससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है इस कहावत का।
भावुक कर देने वाला पोस्ट।
हे ईश्वर!!! कितनी एक जैसी कोशिशें कर रहे थे हम दोनों बरसों से!!! स्कूल में हम पांच लड़्कियों का गुट था, जो पूरे स्कूल में अपनी दोस्ती के लिये जाना जाता था :) कॉलेज तक हम साथ थे, लेकिन फिर एक-एक कर अलग हो गये :( नेट पर मैं पता नहीं कब से उन सब को ढूंढ रही थी :( लेकिन कोई नहीं मिला. अभी पिछले हफ़्ते ही कानपुर से उस पब्लिकेशन का रिप्रेजेन्टेटिव आया जिस की किताबें स्कूल में चल रही हैं. पता नहीं क्यों पब्लिकेशन का नाम " गौतम ब्रदर्स" देख के मुझे लगा कि विनीता के हस्बैंड भी तो गौतम हैं और वे कानपुर में हैं. उनका पब्लिकेशन का काम है ये पहले ही जनती थी. बस ऐसे ही उससे पूछ लिया ओनर का नाम. उसने कहा अम्बरीश गौतम. उफ़्फ़्फ़्फ़. उछल पड़ी मैं. आगे तुम समझ सकती हो क्या हुआ होगा :) चौबीस बरस बाद हम मिल ही गये :) :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी पोस्ट.
हमारा हलवा उधार रहा जब कभी आपके शहर का भ्रमण होगा तब खाकर जरुर जायेंगे।
जवाब देंहटाएंवन्दना अवस्थी दुबे जी को भी देखो मन की मुराद पूरी हुई, कुछ ऐसा ही 29 साल बाद अविनाश जी परिकल्पना/नुक्कड वाले के पुराने दोस्त मिले।
JAI HO NET DEVTA KI
बड़ी ईर्ष्या हो रही है ऐसी दोस्ती से। बचपन के दोस्त तो कई थे लेकिन ऐसे बुद्धीजीवी नहीं थे। बस अपनी बहन से ही आज तक काम चल रहा है। बहुत ही सरस पोस्ट। एकाध को मेरा मन भी है खोजने का।
जवाब देंहटाएंसीमा जी को जन्मदिन की बधाई और आपको अपनी मित्र को खोज पाने की बधाई. आलेख बहुत ही प्रवाह सहित लिखा गया है जिसे आद्योपांत पढने को विवश होना पडा, यही आपके लेखन की विशेषता है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इसे कहते है जब चाहत बुलन्द हो तो कायनात भी साथ देती है……………बधाई दोनो को।
जवाब देंहटाएंजय हो, जहाँ चाह वहाँ राह!
जवाब देंहटाएंरश्मि जी!
जवाब देंहटाएंसोशल नेटवर्किंग साइट्स का निर्माण भी इसी उद्देश्य के साठ किया गया था.. अपने किसी बिछड़े को खोजने के लिए.. और आपको तो बारह साल के बाद आपकी दोस्त मिली.. माँ ने मुरादें पूरी कर दीं एक माँ (माँ के रूप में तस्वीर दिखी न आपको) के रूप में!!
बधाई उन्हें भी!!
रश्मि जी!
जवाब देंहटाएंसोशल नेटवर्किंग साइट्स का निर्माण भी इसी उद्देश्य के साठ किया गया था.. अपने किसी बिछड़े को खोजने के लिए.. और आपको तो बारह साल के बाद आपकी दोस्त मिली.. माँ ने मुरादें पूरी कर दीं एक माँ (माँ के रूप में तस्वीर दिखी न आपको) के रूप में!!
बधाई उन्हें भी!!
बेहद खूबसूरत....सीमा को हमारी तरफ से भी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ. पुरानी दोस्त मिलजाए इससे खुशी की बात और क्या होसकती है...आप को भी बधाई...
जवाब देंहटाएंदोनों को ही बधाई....उसे जन्म दिन की और तुम्हें इस अद्भुत मिलन की...कितना आनन्द आया होगा...कल्पना कर सकते हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण, आपकी सहेली सीमा जी को जन्मदिन की बधाईयाँ और शुभकानाएं !
जवाब देंहटाएंवाह यह भी एक आनंद है इस सोशल वेबसाईट का ।
जवाब देंहटाएंlovely... bahut hi pyari post utni hi bhavnao me bhigi hui....
जवाब देंहटाएंसच में रश्मि जी पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी , मेरी भी एक बहुत ही अच्छी मित्र खो गई है ,दस साल पहले जब छोटी बहन ने ऐसे ही अपने बचपन के मित्र के मिलने की बात बताई तो एक दो बार प्रयास किया था पर जानती हूं की ना वो नेट से जुडी होगी और ना ही उसके बच्चे फिर भी , अब तो बस संजोग पर निर्भर है | पोस्ट का अंत आते आते मान में एक साथ दो भावनाए आ रही थी आँखे नम भी हो रही थी और ख़ुशी भी |
जवाब देंहटाएंऔर हा पिंजर किताब तो नहीं पढ़ी पर फिल्म देखी है मैंने, वो भी शादी के बस एक महीने बाद अपने माँ बाप से दूर अकेले कमरे में बैठ कर , आप समझ सकती है की मेरी क्या हालत हुई होगी |
बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंमिल जाते हैं कुछ जाने पहचाने लोंग यहाँ भी ...
मजे की बात है कि खुद को नेटवर्किंग साईट से दूर रखने के ढोल नगाड़े पिटने वाले भी बधाई दे ही गये हैं !
रश्मि,तुम्हारी मेहनत रंग लाई.बहुत खुशी हुई.बधाई.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
फेसबुक और ऑरकुट जैसे साइट्स भी कभी कभी काम आ जाते हैं .
जवाब देंहटाएंवर्ना तो टाइम खोटी ही करते हैं ये .
बहुत सुन्दर विवरण , पुरानी दोस्त से मिलने का .
हमें भी पिछले हफ्ते एक दोस्त की इ मेल मिली तीस साल बाद , फेसबुक पर देखकर .
जिन खोजा तिन पाईयां। यह कहावत तो है, पर सबके साथ सच नहीं होती । आपके साथ हो गई बधाई।
जवाब देंहटाएं*
हमने भी पिछले साल भूल बिसरे दोस्त नाम से एक शृंखला ही लगाई थी। पर कोई नहीं मिला। चलो अब भी इंतजार तो है।
*
आपको दोस्त मिलने की बधाई और सीमा जी को जन्मदिन की।
वाह...बिल्कुल फ़िल्मी सा लगता है...
जवाब देंहटाएंऐसी ही एक कहानी है अपने पास...
बस ज़रा हटके:)
सीमा का मतलब होता है बंधन जहाँ से हम आगे नहीं बढ़ सकते ....लेकिन आपकी भावनाओं ने इस बात को पीछे छोड़ दिया ..और अंततः आपको अपनी बचपन की सहेली मिल गयी ...आपकी ख़ुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है ....खुदा करे आपकी यह दोस्ती सबके लिए एक मिसाल बने ....सीमा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें ....!
जवाब देंहटाएंकिसी न किसी मोड़ पर मिल जाते हैं बचपन के दोस्त,
जवाब देंहटाएंआपके दोस्त को जन्मदिन की शुभकामनाएं।
♥
जवाब देंहटाएंआपकी दोस्त सीमाजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं
मैं फेसबुक की बजाय ब्लॉग जगत में ज़्यादा समय गुज़ारता हूं …
अब तक तो समझ नहीं पाया कि क्रिएटिविटी के लिए फेसबुक पर क्या संभावना है …
आपको भी सपरिवार
नवरात्रि पर्व एवं दुर्गा पूजा की बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सबसे पहले इस बात की बधाई कि बारह वर्ष के बाद आपको आपकी सहेली मिल गई ।
जवाब देंहटाएंदूसरी बधाई इस बात की कि इस सम्पूर्ण विवरण को आपने इतने रोचक ढंग से लिखा है कि यह कहानी की तरह लगता है ।
तीसरी बधाई ... आपको नहीं फेसबुक और आर्कुट को ,और शुभकामना कि जैसे आपको बिछड़ी हुई सहेली मिल गई वैसे औरों को भी मिल जाये ।
और चौथी बधाई स्व. धर्मवीर भारती को .कि उनकी " किताब का ज़िक्र अब भी किया जाता है ।
कई बार सोचता हूं गुनाहों का देवता पढ़ने, पसंद आने की उम्र में ''कसप'' क्यों नहीं लिखी गई, इतनी देर से क्यों लिखी गई.
जवाब देंहटाएंबधाईयाँ जी :)
जवाब देंहटाएंआपकी खोज पूरी हुई - सोशल नेटवर्किंग का शुक्रिया :) :) :)
happy birthday seema :)
सीमा प्रधान की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी
जवाब देंहटाएंपहले भी जुदा हुए हम
शहरों से, चेहरों से, ख्यालो से
पर जुड़े रहे हमेशा, मन के तारों से
मजा उल्फत का है - वह भी बेकरार
फिर तेरी कोशिश कैसे होती बेकार
चलो ये जन्मदिन तो हो गया यादगार!!
जन्मदिन से ठीक पहले बरसों से खोई मित्र का मिलना बहुत बहुत मुबारक हो। इंटरनैट और सोशल साईट्स इतनी भी बुरी नहीं हैं, असली बात तो प्रयोग करने की नीयत से है।
जवाब देंहटाएंसंयोग घटित होते ही रहते हैं, वैसे भी दिल की सच्ची पुकार सुनी ही जाती है। एक डायलाग भी है किंग खान की किसी फ़िल्म में, शिद्दत-कायनात वगैरह वगैरह करके।
फ़िर से आप दोनों सहेलियों को बहुत बहुत बधाई।
नेट और अन्य साईट के कितने फायदे होते हैं ... आपको अपनी पुरानी दोस्त मिल गयी .... ऐसे पता नहीं कितने बिछुडे लोग लिम होंगे ... अब मेले में खोये हुवे बच्चे भी एल जाते हैनैसे ही इसलिए आजकर ऐसी पिक्चर नहीं बनतीं ... हा हा ...
जवाब देंहटाएंजय माता दी ....
इसीलिए तो कहते हैं सच्चे मन से ढूंढो तो भगवान भी मिल जाते हैं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बहुत किस्मत वाली हैं आप ! मुझे भी तलाश है कुछ सहेलियों की ! कई बार सर्च में नाम डाल एंटर कर देती हूँ ! अभी सफलता नहीं मिल पाई है ! हाँ ४४ साल के बाद एक क्लासमेट को फेसबुक के ज़रिये ढूँढने में सफलता मिली है सो आशा का दामन अभी छोड़ा नहीं है ! आपके आनंद की कल्पना कर सकती हूँ ! और उसीकी अनुभूति से स्वयम् भी पुलकित हूँ ! बहुत बहुत बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंबहुत देर से आया हूँ, लेकिन बधाई किसी भी दिन दी जा सकती है।
जवाब देंहटाएंकिंग खान के शब्द ही वाया संजय जी, दोहरा रहा हूँ।
:)
"ये दिल की लगी कम क्या होगी
जवाब देंहटाएंये इश्क़ भला कम क्या होगा...."
आपके इस ब्लॉग को पढ़कर ये मशहूर गीत ज़ुबाँ पे आ गया। वाकई ये दिल की लगी ही तो है जिसने इतने बरसों बाद ही सही आपको आपकी सहेली से मिलवा दिया। साथ ही भला हो सोशल मीडिया का जिसने न जाने कितने ऐसों को मिलवा दिया।
आपको पढ़ने लिखने और संगीत का इतना शौक बचपन से रहा है ये जान कर और भी अच्छा लगा। जिन लेखकों का आपने ज़िक्र किया है उनमे से कुछ लोगों से मिलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त है।लखनऊ के पुराने कॉफ़ी हाउस में इन नामी गिरामी लोगों का जमघट लगा करता था और मैं भी जब तक लखनऊ में था सप्ताह में 2-4 दिन अपनी शामें यहीं गुज़ारता था। वैसे भी अवध की तहज़ीब और शामें मशहूर रहीं हैं।
आपने जो भी लिखा है न केवल दिल से लिखा है बल्कि अत्यंत सुन्दर बन पड़ा है। लेखन शैली तो आपकी लाजबाव है ही ...
क्या ये वही सीमा है जिनका ज़िक्र आज आपने अपनी पोस्ट में किया था?