रविवार, 16 अक्तूबर 2011

सुबह की सैर के बहाने

कुछ दिनों पहले प्रवीण पाण्डेय जी ने और अजित गुप्ता जी ने अपने प्रातः भ्रमण पर एक पोस्ट लिखी थी...इसके काफी पहले से ही मैं भी मय-तस्वीरों के एक पोस्ट लिखनेवाली थी....पर बस, टलता ही रहा..कुछ महीनो से पता नहीं कैसी व्यस्तता चल रही है कि अब इसका जिक्र भी फ़िज़ूल लग रहा है...


जब-जब थोड़ा समय निकाल कर ऑनलाइन आई...ब्लॉग-जगत में चल रही किसी ना किसी डिस्कशन  में उलझ गयी...दिमाग का दही बन गया है..:(

अब शायद ये पोस्ट लिखते वक्त जरा मूड फ्रेश हो जाए...आशा है आपका भी. {लेखन से नहीं तो तस्वीरों से ही सही :)}

शायद बचपन में ही हॉस्टल में रहने के कारण सुबह उठने में कभी आलस्य महसूस नहीं हुआ...बच्चों के स्कूल की खातिर तो खैर सारी महिलाओं को सुबह की नींद को तिलांजलि  देनी ही पड़ती है. तो सुबह बच्चों को स्कूल बस में बिठाकर मेरा प्रातः-भ्रमण शुरू हुआ. मेरे घर के आस-पास के दो पार्क में जाने में तो पांच मिनट भी नहीं लगते...दो और पार्क भी पास ही हैं..वहाँ जाने में दस मिनट लगते हैं...उनमे से तीन पार्क में सुमधुर संगीत भी बजता रहता है...लता-रफ़ी-किशोर के के पुराने नगमे . बस सुबह की शुरुआत हो तो ऐसी.:) 


फिर भी मैं इन पार्क में नहीं जाती. जाने की शुरुआत तो की पर जॉगिंग ट्रैक पर वो गोल-गोल चक्कर लगाते बोर हो जाया  करती थी. कभी समय देखती कभी राउंड गिनती...आगे चलने वालों को पीछे छोड़ देने की चाह में चाल तेज करने में मजा भी आता...कई सारी सहेलियाँ भी मिल जातीं...फिर भी एकरसता कायम रहती .

और मिलते-जुलते खयालात वाले लोग आपस में मिल ही जाया करते हैं. राजी भी बच्चों को छोड़ने बस स्टॉप पर आती..उसे भी मॉर्निंग वाक का शौक....पर पार्क में जाना गवारा नहीं. उसने कॉलोनी के अंदर से पेडों से घिरा एक ख़ूबसूरत सा रास्ता चुन रखा था...लम्बा-घुमावदार-ऊँचा-नीचा रास्ता जिसपर चल कर जाने और आने में कुल एक घंटे लगते...और मैं उसके साथ हो ली. अच्छी कंपनी-ख़ूबसूरत रास्ता-सुबह का समय..परफेक्ट कॉम्बिनेशन. कहीं अमलतास के फूलों की चादर बिछी होती तो कहीं हरसिंगार के फूलों की. चिड़ियों की चहचहाट  के साथ, कोयल की कूक भी खूब सुनायी देती है. {दूसरे पक्षियों की आवाज़ मैं पहचानती ही नही :)}

इन रास्तों पर कई लोग मिलते हैं. उनमे एक हैं मेजर अंकल ( राजी कई बार पूछ चुकी है...अब तक मेजर अंकल का जिक्र तुम्हारी पोस्ट में नहीं आया? ) लम्बे-छरहरे तेज चाल से चलते हुए अंकल से कोई पहचान नहीं है..पर वे हमें वाक करते देख बड़े खुश होते हैं...दूर से ही हाथ फैला कर कहते हैं. " My  daughters  " और राजी कहती है..अगर फॉरेन कंट्रीज में होते तो अंकल जरूर हमें गले से लगा लेते. उनकी आवाज़ से ही इतना स्नेह छलक रहा होता है.  पर हमारे यहाँ तो अजनबियों को देख कर मुस्कुराते भी नहीं. मॉर्निंग वाक पर कुछ चेहरे हम वर्षों से देख रहे हैं.पर एक-दूसरे को देख कर भी अनदेखा कर देते हैं. ऐसे में विदेशों की ये प्रथा अच्छी लगती है. जहाँ अजनबियों की तरफ भी एक मुस्कान उछालने  से कोई परहेज नहीं की जाती.

एक बार कुछ दिनों तक अंकल को नहीं देखने पर हमने पूछ लिया..' अंकल वेयर हैव उ बीन ?'   और उन्होंने कहा,  "डोंट कॉल मी अंकल...कॉल  मी पप्पा " . शायद उनकी बेटी भी हमारी उम्र की ही होगी. अगर हमें फोन पर बात करते  देख लिया तो जोर की डांट भी लगा देते हैं...और हमने भी अगर उन्हें सामने से आते देख लिया तो जल्दी से फोन नीचे कर देते हैं... बारिश के दिनों में छतरी लाना भूल गए तब भी डांट पड़ती  हैं....अगर कभी थक कर हम  चाल धीमी कर देते हैं...तो उत्साह बढ़ाती उनकी आवाज़ जरूर आती है  " walk  fast... walk   fast  " 


कुछ लोगो का एक ग्रुप है जिसे उन्होंने खुद ही नाम दे रखा है.."गोविंदा ग्रुप" वे लोग एक दूसरे को देखकर नमस्ते या हलो नहीं बोलते....एक ख़ास अंदाज़ में 'गोss विंदा' कहते हैं. रास्ते में एकाध झोपडी भी है..उसके बाहर छोटे-छोटे बच्चे , इस ग्रुप को देखते  ही जोर से 'गोssविंदा' कहकर चिल्लाते हैं ये लोग भी उसी सुर में जबाब देते हैं...इतने उम्रदराज़ लोगो का ये बचपना देखना,अच्छा लगता है. 

महिलाएँ नियमित कम ही हैं..कुछ दिनों के लिए आती हैं..फिर ब्रेक ले लेती हैं. हमारी भी कई सहेलियों ने हमारे साथ वाक शुरू किया...पर कुछ दिनों  से ज्यादा  नियमित नहीं हो सकीं. पर एक Miss Sad  face  भी हमारी तरह ही रेगुलर है. पता नहीं क्यूँ हमेशा उसके चेहरे पर हमेशा एक मायूसी...एक वीतराग सा भाव रहता है. किसी ने कहा है, " if u  see someone  without a smile , give him one  of yours "  पर हमने कितनी कोशिश की पर वो सीधा सामने देखती हुई चली जाती है. हमारी स्माइल लेती ही नहीं. .:(

लिखते वक्त एक कुछ साल पहले की घटना याद आ रही है...जब हमने कुछ शैतानी भी की थी. कुछ दिनों से हम गौर कर रहे थे ...एक पेड़ के नीचे एक कार खड़ी होती है...शीशे चढ़े होते हैं. हम समझ गए उसके यूँ खड़े होने का मकसद. और जान-बूझकर उस कार के आस-पास जोर जोर से बातें करते हुए चक्कर लगाते रहते. कुछ ही दिनों में वो कार नया ठिकाना ढूँढने को निकल पड़ी. 

पिछले एक दो साल से सुबह चेन खींचने की घटनाएं भी आम हो गयी हैं. ...अब पुलिस गश्त लगाती रहती है. एक बार मोटरसाइकल पर एक पुलिसमैन को अपनी तरफ घूरते हुए पाया..और मन खीझ गया...मुंबई में तो आम लोग भी नहीं घूरते और ये पुलिसवाला...बेहद गुस्सा आया. पर आगे देखा वो एक महिला को रोक कर समझा रहा था.."चेन या मंगलसूत्र पहन कर ना आया करें" तब समझ में आया...वो देख रहा था...मैने भी पहनी है या नहीं...हाल में ही एक पुलिसमैन, मोटी चेन पहने एक पुरुष को समझाते हुए कह रहा था,..."काय करता तुमीस....अमाला प्रोब्लेम  होतो".

सैर से लौटते समय अक्सर  ही सब्जियां खरीद लाते हैं हम और हर बार मेरी जुबान से निकल ही जाता है.."ओह! रिटायर लोगो की तरह...रोज़ सब्जियां खरीद कर ले जाती हूँ" मुंबई में पली-बढ़ी राजी को ये बात समझ नहीं आती....और वो समझाने पर भी नहीं समझ  पाती..."हमारे यहाँ यूँ, सुबह-सुबह औरतें सब्जी खरीद कर नहीं लातीं" 

जब हम, पसीने से लथ-पथ.. चिपके बाल.. थका चेहरा लिए बिल्डिंग  के अंदर आते हैं...तो कितनी ही सजी संवरी , सुन्दर कपड़ों में बिलकुल फ्रेश दिखती  महिलाएँ ऑफिस के लिए निकल रही होती हैं. हम उन्हें देख कर मायूस हो जाते हैं...पर वे शायद हमें देख उदास हो जाती होंगी..क़ि "क्या लग्ज़री है...हम तो मॉर्निंग वाक पर जाने की सोच भी नहीं  सकते" 
वही है..कुछ खोया  कुछ पाया...







कौन चित्रकार है...ये कौन चित्रकार 

ये टहनियों से पैकेट की तरह लटकते चित्र , उलटे टंगे  चमगादड़ों के हैं.

विटामिन डी देने आ गया सूरज 

हम तो चले स्कूल 

मराठी पढ़ाने वाले हमारे कॉलोनी के काका..जिनपर एक पोस्ट लिखनी कब से ड्यू है.
पेवमेंट पर बिकती वसई से आई ताज़ी सब्जियां 

64 टिप्‍पणियां:

  1. घूम लिए हम भी आपके साथ.. हमसे तो कभी नहीं हुई सुबह की सैर!! सबसे अच्छे काका लगे..इस उम्र में भी चेहरे पर ऊर्जा दिख रही है!! बस लिख ही डालिए इनपर एक पोस्ट!!

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  2. "क्या लग्ज़री है.......वैसे यह लक्ज़री हम शाम को कर लेते हैं...

    बढ़िया रही मार्निंग वॉक गाथा...सारे ड्यू एक एक करके खत्म करें.....और कृपया बहस में ज्यादा न उलझें..अभी कहीं देखा.... :)

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  3. बहस में उलझकर अपना दिमाग खराब करने से अच्छा है कि अच्छी किताबें पढ़ उनका आनंद लिया जाय :)

    राप्चिक पोस्ट !

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  4. ओह अच्छा, तो ये पोस्ट लिखी जा रही थी :)
    और फोटो भी अच्छे से लगी दिख रही है :)
    सुन्दर तस्वीरें हैं और मस्त पोस्ट :)

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  5. सुबह भ्रमण स्‍पेशल ब्‍लाग तो ज्ञानदत्‍त जी का है, वहां तक भी एक बार टहल आइए, सेहत के लिए अच्‍छा होगा.

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  6. बहसु करने से ज्‍यादा लाभकारी है सुबह की सैर । सच है बीच बीच में अपन भी यह करते रहे हैं। अभी कई दिनों से बंद है। शुरू करेंगे जल्‍द ही।

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  7. सुबह की ताजगी और सैर का आनन्द। पढ़ कर ताजा हो गये।

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  8. @समीर जी, सतीश जी एवं राजेश जी,

    बहस में पड़ता कौन है....मेरे कमेन्ट को लेकर लोग कुछ भी लिखने लगते हैं...

    पर अब लगता है...अच्छी प्रस्तुति....बढ़िया लिखा है...सुन्दर आलेख..वाला कमेन्ट ही सेफ है :)

    और किताबे पढ़ने और मॉर्निंग वाक पर तो इस बहस का कोई असर नहीं पड़ता....बस दूसरे लोगो की पोस्ट पढ़ने से रह जाती है या फिर पढ़ने में देर हो जाती है :(

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  9. @राहुल जी,

    ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग पर पहले तो बिलकुल ही नियमित थी...आजकल नहीं जा पा रही हूँ.

    उनके गंगा किनारे के सैर के तो क्या कहने....उसका आनंद ही कुछ और है.

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  10. अरे वाह!! कितनी खुशनुमा पोस्ट है!!! एकदम सुबह की ताज़ा हवा की तरह. तुम्हारे साथ मैने भी मुम्बई के उन इलाक़ों की सैर कर ली, जहां तुम वॉक पर जाती हो. मज़ा आ गया. सोचती हूं, मैं भी अपने वॉक के अनुभव लिख डालूं. लिखूं न?

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  11. हमने भी बहुत दिनों से सूरज से गुडमॉर्निंग नहीं की है .. देखते हैं आपकी बात से कुछ प्रेरणा मिलती है या नहीं ।

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  12. पार्क की सैर बहुत उम्दा रही. महंगे जिम में जाने से ज्यादा फायदेमंद है सुबह की ताज़ी आवो हवा में घूमना.

    बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  13. खुद के लिये वक्त निकालना बहुत जरूरी है, और कंपनी अच्छी मिले तो सोने पर सुहागा।
    मेजर साहब जैसे लोग अच्छे लगते हैं, people with positive vibes.

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  14. अब तो लग रहा है कि सुबह की सैर शुरू करनी पड़ेगी

    हिन्‍दी कॉमेडी

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  15. मेजर अंकल की तस्वीर कहाँ है?

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  16. :)
    ये आदत मैंने भी हमेशा से पाल रखी है, इसलिए तारीफ़ नहीं करूँगा (सेल्फ प्रेज़ जैसा लगेगा)। पर हाँ! चित्र और आपका जीवंत लेखन बहुत पसंद आया। :)

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  17. जिस आत्मीयता से आपने सुबह की सैर कराई है वह प्रेरक है।

    मैंने पाया है कि इन लमहों में शरीर ही नहीं मन को भी ताज़गी मिलती है। सुबह और/या शाम को वॉक करने वाले लोग मन/दिमाग से अधिक सकारात्मक ख़्यालात वाले होते हैं।

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  18. मॉर्निंग वॉक की तो बात ही क्या है ...सबकुछ फ्रेश लगता है और हमको तो दूर भी नहीं जाना पड़ता . सुबह उठते ही में गेट का लौक खोल्ते मॉर्निंग वॉक हो जाती है , लोंग घूमते रहेते हैं सामने पार्क में , हम देख लेते हैं ...हो गयी ना मॉर्निंग वॉक:)
    अच्छी तर्स्वीरें!

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  19. ये तो अच्छा है कि आप नियमित सुबह टहलने जाती हैं। हम भी रोज प्लान बनाते हैं। :)

    आखिरी वाली फ़ोटो सबसे चकाचक है।

    और ये समीरलाल की सलाह उचित नहीं है। विचार-बहस ब्लागिंग का प्राणतत्व हैं। इसके बिना ब्लागिंग का क्या मजा। :)

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  20. कितने केयरिंग होते हैं लोग न .....
    मैं भी अंकल पसंद नहीं करता मगर पापा भी नहीं ....
    ये सम्बन्ध केवल ब्लड रिलेशन के लिए हैं ...
    बाकी हम सब इन्सान हैं ..
    जैसे ही नाम देते हैं व्यक्ति की गरिमा गिर जाती है ....ऐसा मैं सोचता हूँ ...
    ..कल से मैं भी घूमने निकला हूँ ..अच्छे समय यह पोस्ट आयी आपकी :)

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  21. सुबह घूमकर आने का आनन्‍द ही कुछ और है। सारा दिन ताजगी बनी रहती है। सब्‍जी खरीदकर लाना तो बड़ी अच्‍छी बात है लेकिन इतनी जल्‍दी सब्‍जी कहाँ मिल गयी? मैं तो पतिदेव के साथ जाती हूँ जिन्‍हें बातें करने का कोई शौक ही नहीं है, बड़ा बोर सा साथ है लेकिन अब आदत पड़ गयी है। बस मैं ही अकेले बोलती रहती हूँ या फिर चुपचाप चलने में ही भलाई समझती हूँ। कुछ दिन पहले अपनी एक पडोसन के साथ शाम को घूमने जाना शुरू किया था, तब आते थे बातों के मजे। लेकिन इन दिनों वो व्‍यस्‍त हैं तो जुबान पर दही जम जाता है। जीवन में बोलने वाला कोई मिलना जरूर चाहिए। आपको आपकी मित्र मुबारक हो।

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  22. वाकई हम भी इस लग्जरी से महरूम हो गये हैं, सोच रहे हैं कि जल्दी ही शुरू कर दी जाये। मुंबई में सबसे अच्छी बात यह है कि हरेक जगह कम से कम एक बड़ा पार्क मिल जायेगा, परंतु यहाँ बैंगलोर में इसकी कमी खलती है, और अगर पार्क मिल भी जाये तो इतना छोटा कि पार्क भी न कह पायें।

    मजा आ गया मुंबई की सुबह की सैर याद आ गई, हमने भी एक पोस्ट लिखी थी इसी संदर्भ पर उन दिनों ।

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  23. वाह क्या लग्जरी लाइफ है आप की :) और हमारी :( हम मार्निंग तो नहीं पर इवनिग वॉक पर जाते है हमारा सौभाग्य ( मुंबई में तो यही कहना होगा ) की ईमारत के निचे ही पार्क है बिटिया को खेलने छोड़ वही वॉक कर लेती हूँ वो भी नियमित नहीं | किन्तु सभी का कहना है की जो बात सुबह की सैर में है वो किसी और समय में किये सैर में नहीं होती है | कारण तो आप ने बता ही दिया है की सुबह की सैर हम जैसे को नसीब में क्यों नहीं है | पर अब दिवाली की छुट्टिया होने जा रही है देखती हूँ सुबह उठने की हिम्मत हो पाती है की नहीं | प्रेरणा देने के लिए धन्यवाद देखते है की हम कितना ले पाये |

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  24. कई बार छोटो छोटी घटनाएं प्रभावित करती हैं ! !
    शुभकामनायें आपको !

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  25. आनंद आ गया पढ़ कर..... चूँकि अभी बच्चों की बस ठीक सात बजे आ जाती है और उस से पहले उन्हें तैयार करने में श्रीमती जी की पूरी मदद करनी पड़ती है , हम दोनों का मार्निंग वाक् स्थगित है उनके बड़े होने तक... तब तक डॉक्टर भी प्रिस्क्राइब कर देंगे.... बढ़िया आलेख... काका पर पोस्ट का इंतजार है...

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  26. "शायद बचपन में ही हॉस्टल में रहने के कारण सुबह उठने में कभी आलस्य महसूस नहीं हुआ"
    ओह !
    हम तो इसके ठीक उलट इल्जाम लगाते हैं अपने होस्टल के दिनों पर :)

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  27. एक लंबी टीप लिखी और वो उड़ गई !

    बात साफ़ ये कि सुबह की सैर वाला पन्ना अपनी ज़िन्दगी में शामिल नहीं है :)

    ये खब्त कैसी कि जिसमें घड़ी देख,कदम गिन के अपनी और दूसरों की सेहत का ख्याल रखा जाये :)

    बंद शीशों वाली कार वाले गुनाह पर भगवान आपको कभी माफ नहीं करेगा :)

    दुखी चेहरे वालों की कमी दिन में है क्या जो इस वास्ते अपनी सुबह खराब की जाये :)

    आप राजी खुशी साथ घूमते हैं सो हमें जेलस मत समझियेगा :)

    लिखूं तो और भी पर ये कमबख्त टिप्पणी फिर से ना उड़ जाये :)

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  28. @वंदना,
    मैं भी अपने वॉक के अनुभव लिख डालूं. लिखूं न?
    चलो इजाज़त दी मोहतरमा....(कितना बड़ा दिल है मेरा) लिख ही डालो..:)

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  29. @ PD

    जरा सा संकोच किया और मेजर अंकल आगे निकल गए...सोचा...बाद में ले लूंगी..पर मुहूरत ही नहीं हुआ...:(

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  30. @अजित जी,

    ये तो सही कहा...वॉक पर कोई बातें करने वाला अच्छा साथी मिल जाए तो आनंद दुगुना हो जाता है और वॉक नियमित भी रहती है.

    सब्जियां तो सुबह-सुबह खूब मिलती हैं यहाँ...आपके लिए तस्वीर भी लगा दी...(और भी कई तस्वीर लगाने की सोची थी..पर पोस्ट करने की जल्दी में छूट गए.)...कभी-कभी जोश में ज्यादा सब्जी खरीद ली फिर तो ढोने में जो कंधे टूटते हैं..वे बस हमीं जानते हैं..:(

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  31. @अरुण जी,

    हम दोनों का मार्निंग वाक् स्थगित है उनके बड़े होने तक... तब तक डॉक्टर भी प्रिस्क्राइब कर देंगे..

    डॉक्टर के प्रेस्क्राइब करने पर आज तक कोई भी नियमित वॉक नहीं कर पाया है...जबतक आप अपनी वॉक एन्जॉय ना करें....इसलिए डॉक्टर की सलाह का इंतज़ार ना करें..हाँ बच्चे बड़े हो जाएँ...तो शुरू कर दें..आप तो एकाध कविता भी लिख डालेंगे :)

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  32. @अभिषेक,

    आप किस राजशाही हॉस्टल में रहते थे??...हमें तो सुबह साढ़े पांच बजे उठा दिया जाता था...फिर प्रेयर...एक्सरसाइज़...उसके नहाने धोने के बाद नाश्ता मिलता था....:(

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  33. @अली जी,

    मैं भी राजी को हमेशा कहती हूँ..तुम्हारी बहन का नाम ख़ुशी होना चाहिए था...फिर सब कहते इस घर में 'राजी-ख़ुशी' रहते हैं.

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  34. अरे वाह , आपके घर के पास तो घूमने के लिए बहुत अच्छा रास्ता है । प्रातकाल की सैर बड़ी तरो ताज़गी देती है । लेकिन यदि सुबह समय न मिले तो शाम को घूमने में भी कोई बुराई नहीं ।

    सुन्दर पोस्ट ।
    चमगादड़ वाला फोटो बहुत सुन्दर है ।

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  35. अच्छी प्रस्तुति....बढ़िया लिखा है...सुन्दर आलेख.

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  36. बहुत पसंद है सुबह की सैर ..... दिनभर तरोताजा महसूस होता है.... बढ़िया रही यह सैरगाथा...सैर जारी रहे ब्रेक न आने पाए.... शुभकामनायें :)

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  37. आपकी पोस्ट पढ़कर मूड फ्रेश हो गया. हम भी जाते हैं टहलने, लेकिन शाम को. देर रात तक पढ़ने के कारण सुबह कभी नहीं उठ पाते. जहाँ हम घूमने जाते हैं, वहाँ भी कुछ 'कारें'आती हैं, लेकिन खड़ी होने नहीं ड्राइविंग सिखाने :) हाँ, अँधेरा होते ही कुछ जोड़े बैक से ज़रूर आते हैं बतियाने.
    लेकिन अफ़सोस मैं जहाँ टहलने जाती हूँ, वहाँ इतनी हरियाली नहीं है :(
    सच में नौकरी करने वाली औरतों के लिए मार्निंग वॉक एक लक्ज़री ही है. मेजर अंकल की एक ठो फोटू लगाना था ना.

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  38. एकदम रेफ्रेशिंग पोस्ट ! मज़ा आ गया पढ़ कर ! इन दिनों व्यस्तता के कारण इतनी थकान है कि ऐसी पोस्ट की बहुत ज़रूरत थी ! बढ़िया आलेख !

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  39. अब अगर राजी की बहन का नाम खुशी ना भी हो तो खुशदिल रश्मि भी खुशी कही जा सकती हैं :)

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  40. सुबह की सैर आनंददायक और लाभदायक होती है।

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  41. सीरियसली, रश्मिजी हमारे जैसी वर्किंग वूमन सुबह सुबह घूमकर आने वालों को देखकर हर रोज सोचते हैं कि हम भी कल से वाक करेंगे लेकिन जब अगले दिन आंख खुलती है तब तक सुबह से कई घंटे ऊपर हो चुके होते हैं :-)

    लकी यू :-))))

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  42. मॉर्निंग वाक् में अंकल , नहीं नहीं पप्पा बहुत अच्छे लगे .... अपनत्व भारी उनकी डांट बहुत अच्छी लगी

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  43. आपकी पोस्ट पढकर मजा आ जाता है, मेरा भी आज सुबह से डल था पर आपकी पोस्ट पढ़कर एकदम रिफ्रेश हो गई.

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  44. लेख तो हमेशा की तरह मज़ेदार...रोचक...दिलचस्प...दिमाग का दही नहीं बना बल्कि सफेद स्वादिष्ट मक्खन बन गया...वैसे एक ख्याल आया कि दिमाग का दही ही क्यों बनता है...मक्खन क्यों नहीं बन सकता....!!!

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  45. आपका पास पड़ोस काफी हरा भरा है... वृत्‍तांत जीवंत है। आभार

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  46. बहुत ही मज़ेदार पोस्ट है ,,
    आप का लेखन तो रुचिकर होता ही है ख़ूबसूरत तस्वीरों ने इसे और ख़ूबसूरत बना दिया है

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  47. बहुत ही सुन्दर पोस्ट प्रकृति के मनोहारी चित्रों के साथ |

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  48. पोस्ट पढकर मजा आ गया ...... मूड रिफ्रेश हो गया आज तो....

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  49. :)
    भ्रमण स्‍पेशल
    :))

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  50. वाह ... फोटो तो कमाल के हैं सरे ... अनेक रंगों को समेत है आपने इन चित्रों और प्रात भ्रमण में ..
    अलग अलग शेड बुन दिए हैं ...
    वैसे पता नहीं क्यों मैं कभी उठ नहीं पाया सुबह सुबह ... शायद सूर्यवंशी हूँ ... सूर्य आने के बाद ही जाग पाता हूँ ... पर आपकी पोस्ट पढ़ के लग रहा है कितना कुछ मिस भी कर रहा हूँ ... ...

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  51. हमें तो हमारा मैक टहला कर ले आता है अंधेरा छटने से पहले

    आप कहती हैं दिमाग का दही बन गया है
    इधर अजित गुप्ता जी कह रहीं
    जुबान पर दही जम जाता है
    बर्तनों से निकल कर दही इधर किधर आ गया :-)

    पार्क में सुमधुर संगीत
    वाह! क्या बात है

    दूसरे पक्षियों की आवाज़ मैं पहचानती ही नही
    अरे! इत्ता भी नादाँ ना बनिए

    हमारे यहाँ तो अजनबियों को देख कर मुस्कुराते भी नहीं
    हम भी नहीं मुस्कुराते. कौन बाद में जूते खाए :-)

    मेजर अंकल का जिक्र पोस्ट में नहीं आया?
    आया लेकिन फोटो नहीं आई :-(

    मुंबई में तो आम लोग भी नहीं घूरते
    चलिए फिर, हम ख़ास लोगों को छूट मिली :-)

    बिलकुल फ्रेश दिखती महिलाएँ हमें देख उदास हो जाती होंगी
    दिखती और लगती में फर्क तो होता है जी :-)

    टहनियों से पैकेट की तरह लटकते चित्र, उलटे टंगे चमगादड़ों के
    मुम्बई में चमगादड़! हमने तो बचपन में देखे थे अपने शहर में, अब नहीं दिखते

    (ये थी आपके ब्लॉग पर आज तक की हमारी सबसे बड़ी टिप्पणी)

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  52. @हा..हा.. ज़हेनसीब पाबला जी ज़हेनसीब !!

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  53. शायद कुछ अटपटा लगे क्योकि बहुमत है की सुबह की सैर लाभदायक होती है स्वास्थ के लिए ,किन्तु मेरा अनुभव है की जब भी सुबह की सैर को जाती हूँ बीमार पड़ जाती हूँ |शायद सब चीज सबको सूट नहीं करती |
    बहरहाल आपकी पोस्ट बहुत खुशनुमा है सुबह की ही तरह |

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  54. @शोभना जी,

    बिलकुल भी अटपटा नहीं है...कई लोगो को सूट नहीं करता..उन्हें जुकाम हो जाता है.

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  55. बहुत अच्छा लिखा है रश्मि जी... हमेशा की तरह पठनीय...शिक्षाप्रद...यादगार.

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  56. ssubah ke walk ki tarah taro taja karne wali post...
    padh to kafi pahle liya tha comment aaj kar rhi hun :)...
    subah subah milne wale kai aparichit chehare bhi jane pahchane ban jate hai, hia na di, aapke uncle jaise ek uncle hame bhi roj milte hai...bahut ahcchilagi aapkip post...

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  57. ये मुंबई ही है न...मायानगरी में भी हरियाली भरी इतनी शांतिपूर्ण जगह....

    रही अपनी मॉर्निंग वॉक की बात तो रोज़ वादा किया जाता है...कल से शुरू होगी...मक्खन की तरह कल कभी आता ही नहीं...जब भी देखता हूं आज ही होता है...कोई मुझे बताए ये कल कब आएगा...

    जय हिंद...

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  58. शायद पहले भी दो बार पढ़ चूका हूँ ये पोट्स, पढ़ कर मन ही मन मैं भी घूम लेता हूँ
    वैसे....... क्या कुछ साल पहले आप इतनी शरारती थीं ?:))

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  59. @गौरव
    क्या कुछ साल पहले आप इतनी शरारती थीं ?:))

    बिलकुल नहीं..वो तो मेरी सहेली के उकसाने पर बस उसका साथ दिया था शरारत में.
    मैं तो हमेशा से बिलकुल सीधी सादी थी/हूँ/रहूंगी..:):)

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  60. बढिया लगता आपका प्रात: भ्रमण .... अब पता चला ब्लॉग्गिंग के लिए भी अछ्हा है.

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  61. लेखन और तस्वीरों, दोनों से ही मूड फ्रेश हो गया। आपके साथ हमने भी सैर कर ली। सुबह की सैर को बेहद खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है।

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  62. likhne aur anubhav se likhne ka farkh dikhta hai keep it continuing,may be many people might start to experience the morning walk anubhav.good k.i.p

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फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

यह संयोग है कि मैंने कल फ़िल्म " The Wife " देखी और उसके बाद ही स्त्री दर्पण पर कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग सुनी ,जिसमें सुधा अरोड़ा, मध...