शनिवार, 8 जनवरी 2011

रिश्ते....वफ़ा... ऐतबार...तेज हवाओं में जैसे जलते चिराग

(चित्र सतीश पंचम जी के सौजन्य से )
कभी नहीं सोचा था, 'अवैध ' या 'विवाहेतर सम्बन्ध ' जैसे  विषय पर कभी कुछ लिखूंगी...इसलिए भी कि यह एक रोग मध्यम वर्ग से कुछ दूर ही रहता है. मध्यम वर्गीय पुरुष, कैरियर  बनाने में...सर पर एक छत की जुगाड़ में...बच्चों की उच्च -शिक्षा के प्रबंध  में और फिर भविष्य सुरक्षित करने के उपायों में आपादमस्तक इतने आलिप्त  रहते हैं कि उनके ह्रदय के दरवाजे पर पत्नी के सिवा कोई और मोहतरमा दस्तक नहीं दे पातीं. (अगर दे भी तो दरीचों को कस कर बंद कर लेने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं होता ) अब यह उनकी मजबूरी के तहत है..या स्वेच्छा से, ये तो वे ही जानें. शायद पुरुष-मित्रों के सामने दिल खोल कर रखते  हों पर हम महिलाएँ तो यही सोच खुश हो जाती हैं कि आस-पास चलती बयार से वे बेखबर ही रहते हैं. (अपवाद हर जगह हैं...यहाँ,बहुसंख्यक की बात हो रही है ) बेखबर ना भी हों तो जरा पड़ोसी, कलीग या फिर पत्नी की सहेली से दो मीठी बातें कर लीं  (harmless flirting ) इस से ज्यादा ये लोग अफोर्ड नहीं कर पाते या फिर पुरानी प्रेमिकाओं को दिए-लिए या देने  की सोच कर लिखे गए पत्र बांच कर ही तसल्ली पा लेते हैं ( मध्यमवर्गीय महिलाओं की खुशकिस्मति :)}


लेकिन फिर इस विषय पर मुझे लिखने की क्या सूझी??...दरअसल कभी-कभी शहर  के अंदेशे से मियाँजी की तरह दुबले भी होना चाहिए { योगा..वाक ..कुछ ना कर पाया, यही सही :)} लेकिन असल बात ये है कि आजकल मेरी कामवाली बाई इसी वजह से बहुत त्रस्त है....और रोज ही अपना दुखड़ा रो जाती है.  उसकी उम्र का तो पता नहीं...क्यूंकि इन लोगो की शादी बहुत जल्दी हो जाती है. दो बेटियों की शादी हो गयी है...वे गाँव में हैं. अकेले यहाँ अपने पति के साथ रहती है. सुबह से शाम तक कई घरों में काम करती है..छः हज़ार तक कमा लेती है.उसकी  अपनी झोपड़ी है. कहती तो है कि उसने अपने पैसों से बनवाया है,पति के पैसो से नहीं. पर उसका दुख है कि पति ड्राइवर है. दस-बारह हज़ार रुपये कमाता है. पर सारे पैसे उसके सामने रहने वाली, एक औरत पर खर्च कर देता है, जो पांच बच्चों की माँ है. इसे सिर्फ पंद्रह सौ रुपये देता है. और यह उसके कपड़े साफ़ करती है. खाना  बनाती है. खाने में भी उसे रोज मच्छी-मटन चाहिए.अच्छा खाना नहीं बनाने पर, उसे गालियाँ देता है...और जब यह पलट कर कुछ बोलती है तो हाथ उठाता है.


मैं उसे समझाती हूँ...तुम अपना पेट पाल  सकती हो....अपने पति पर आश्रित नहीं हो...छोड़ दो उसका खाना  बनाना...उसके कपड़े धोना....इस तरह दुखी होने से क्या  फायदा?? पर मेरे लिए कहना आसान है. रोज अपनी आँखों के सामने पति का दूसरी औरत को पैसे, कपड़े ला कर देना...घूमने लेकर जाना..बर्दाश्त करना कितना  मुश्किल है ये तो उसका दिल ही जानता होगा.


मेरे समझाने पर कहती है.."अब से अयेसायीच  करेगी" कहने को तो वह कह देती है. पर उसका असली  दुख है कि वह दूसरी औरत को पैसे क्यूँ देता है. उसके प्रति आसक्त क्यूँ है?? रोज ही बडबडाती रहती  है..."मेरा आदमी उदर  को गया..पीछू से ये भी गयी "... "कल इगारे बजे रात को आए दोनों ..क्या मालूम किदर को गए थे?"...."मेरे आदमी को भी अक्कल नई है....उसका आदमी तो कुछ कमाता  नई...ऐसी  औरत लोग को समझना मांगता ना...मेरे आदमी के पिच्छे  क्यूँ पड़ी है??"


अब इस प्रश्न का जबाब किसी के  पास है?? जबाब तो नहीं...पर सोचने को मजबूर कर देती हैं...ऐसी बातें.


आखिर क्या वजह है...कि उच्च  और निम्न वर्ग में ऐसी घटनाएं आम हैं? कई सारे बड़े बड़े  नाम हैं..'धर्मेन्द्र'.. 'आमिर खान'.. 'सैफ'..'महेश भट्ट ' 'शशि थरूर'...'अज़हरुद्दीन'...'संजय  सिंह'....आदि  (नामो की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है..कहाँ तक लिखे कोई ) जो काफी दिनों तक वैवाहिक जीवन बिताने के बाद ..दूसरी महिला के प्रति आकृष्ट हो गए.


शायद वजह ये है कि पहली पत्नी उनके संघर्ष की साक्षी होती है. उनका फ्रस्ट्रेशन...हताशा...नाराज़गी,सब देखा होता है. पर जब ये सफलता  के शिखर पर  पहुँच जाते हैं...तब सिर्फ ऊँची ऊँची बातें करते हैं...दरियादिली दिखाते हैं....quotable quotes उच्चारित करते हैं. हैं. उनके व्यक्तित्व का सिर्फ उजला पक्ष ही सामने आता है..जिसे देखकर कन्याएँ बलिहारी जाती हैं...और इन अधेड़ पुरुषों का खूब ego massage होता है. अब पत्नी तो इतनी तारीफ़ करने से रही क्यूंकि उसने वो काला पक्ष भी देखा होता है...जब लोगों  को कितनी गालियाँ दी गयी होती हैं...कितने चाल  चले गए होते हैं....कितनी जोड़-तोड़ की गयी होती है. इसलिए वो अब उनके अनमोल वचन से प्रभावित नहीं होती.


और भी बहुत से कारण हैं...रूप-यौवन...अपनी पत्नी की ज़िन्दगी का केंद्र बिंदु ना होना. क्यूंकि पत्नी पर घर की, बच्चों की जिम्मेवारियाँ बढ़ जाती हैं. और वो अब पति को undivided attention  नहीं दे पाती..जो ये बालाएँ बखूबी कर लेती हैं.


इतने दिनों पत्नी के सान्निध्य में रहने से उन्हें स्त्री मन की भी अच्छी पहचान हो जाती है. स्त्रियों की पसंद-नापसंद भी ये अच्छी तरह जान लेते हैं. पर उनका मेल इगो उसे अपनी पत्नी के साथ आजमाने नहीं देता. यह सब वे दूसरी महिला-कन्या को इम्प्रेस करने में उपयोग करते हैं. अब इस उम्र में थोड़ी मेच्योरिटी  भी आ गयी होती है. अपनी शुरूआती दिनों में की गयी  गलतियां वे नहीं दुहराते और ये सारे गुण,दूसरी औरतों को आकृष्ट करते हैं.


मशहूर फिल्म निर्देशक (मासूम  और मिस्टर इण्डिया फेम वाले ) शेखर कपूर ने "मेधा" (जो अब मेधा जलोटा हैं ) के साथ अपनी शादी टूटने की पूरी जिम्मेवारी अपने ऊपर ली  थी. उनके एक इंटरव्यू में पढ़ा था कि.." वो  कैरियर के शुरुआत के दिन थे..वे काफी फ्रस्ट्रेटेड  रहते थे...अपने आप में ही गुम रहते थे...मेधा ने बहुत कोशिश की पर वे उनका साथ नहीं निभा पाए"


काफी दिनों बाद 'सुचित्रा कृष्णमूर्ति' ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि 'शेखर कपूर ने अपनी पहली शादी में अपनी गलतियों से सीखा है...और अब वे उन्हें नहीं दुहराते.' (ये दीगर  बात है कि शायद शादी के दस साल बाद ,अब ये दोनों भी अलग हो गए हैं.)


महमूद के गायक बेटे "अली' ने साफ़-साफ़ कहा था कि बच्चों के स्कूल की वजह से शूटिंग्स पर उनकी पत्नी उनके साथ ट्रैवेल नहीं कर सकती...इसलिए अपना अकेलापन दूर करने को उन्होंने दूसरी शादी की (कोई उनसे पूछे कि पत्नी अपना अकेलापन दूर करने को क्या करे....शायद जबाब होगा...उसके पास बच्चे और घर हैं )


जब पत्नी को पति की इस नई आसक्ति का पता चलता है तो वो विरोध  करती है...भला-बुरा कहती है...कड़वी बातें कहती है..जिस से पुरुष और भी दूर होता जाता है...और अंततः हमेशा  के लिए दूर हो जाता है.


शायद कुछ लोग कहेंगे...पत्नी की भी गलती होती है...हो सकता है...पर कई जगह पति भी पूरी तरह गलत होता है तो पत्नी तो किनारा नहीं कर लेती. पर यह सब अनादिकाल  से चलता आ रहा है...और कभी विलुप्त होगा, ऐसा प्रतीत तो नहीं होता.


बस मध्यम-वर्ग इन सबसे बचा ही रहे...और अपनी नून-तेल-लकड़ी की माथापच्ची में ही जुटा रहे...यही बेहतर है

96 टिप्‍पणियां:

  1. बस पुरुष ही ये नही समझ पाता ……………काफ़ी बढिया लिखा है। मेरी पिछली कहानी मे भी तो यही था।

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  2. भाई हम तो मध्‍यम वर्गीय ही हैं तो ये सब अफोर्ड ही नहीं कर सकते। हा हा हाहाहा। वैसे समस्‍या विकराल है।

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी सोमवार के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    (10/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  4. पोस्ट को पढ़ते समय मुझे एक घटना याद आ रही है जो कि काफी पहले एक जगह घटी थी जहां पर कि पहले मैं जॉब करता था।

    वहां पर एक बूढ़ा वर्कर था जिसके कि संबंध एक विधवा महिला से काफी पहले से चले आ रहे थे।

    रिटायरमेंट के समय तक महिला ने उस शख्स का पूरा पीएफ वाला पैसा अपने नाम से लोन वगैरह और कई बहानों से निकाल लिया था।

    रिटायरमेंट के वक्त बूढ़े के हाथ में कुछ नहीं बचा था। उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करे। परिवार पहले ही दुत्कार चुका था दूसरी महिला से संबंध के चलते।

    उधर रिटायरमेंट के समय डिपार्टमेंट के लोगों ने उस महिला को बुलाकर रिक्वेस्ट की कि थोड़े पैसे उसे दे दो पूरा मत हड़पो।

    लेकिन उस महिला ने खुलेआम इतनी गंदी स्टाईल से डपट लगाई कि लोगों को आगे कुछ बीच बचाव करने की इच्छा ही नहीं हुई। पुरूष ही नहीं महिलाएं भी सक्ते में थी उसकी बोली सुनकर

    बाद में उसने किसी से कहा कि अगर इतनी गंदी जबान से नहीं बोलती तो ये ही शिष्ट माणूस लोग मेरे से पैसा निकलवा कर उसको देते। इस वाकये को अपने सामने ही देखा था मैने कि किस तरह से उसने हड़काया था मैंने तब ही जाना कि केवल पुरूष ही नहीं महिलाएं भी शातिर होती है।

    पोस्ट का विषय अलग किस्म का है रोचक ढंग से लिखा गया है।

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  5. sirf our sirf jhooth bolata hai purush
    ousatan purush charitrawan nahee hotaa (apavad ko Chhod den)

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  6. रश्मि जी
    आपने विषय तो बहुत ज्वलंत चुना है...मगर भारतीय समाज में पुरुषों के ऊपर तो सब अंगुलियां उठा देते हैं...मगर हवस की भूखी महिलाओं का क्या...?
    जिस देश में 'सीता-सावित्री' जैसी देवियां हुई हैं, उस देश में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं जो अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ अवैध संबंध रखती हैं...बेशर्मी की हद तो यह कि उन लड़कों से कहती हैं कि उनके लिए 'करवा चौथ' का व्रत रखा है...कभी सावित्री ने यह नहीं सोचा होगा कि इस 'पवित्र व्रत' के नाम पर इतना 'अधर्म' होगा...?
    कुछ वक़्त पहले एक एक युवक ने अपनी मां की उम्र की महला से अवैध संबंध के चलते अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चों को जलाकर मौत की नींद सुला दिया...ऐसे कितने ही मामले मिल जाएंगे...
    कहते हैं-वेश्याएं भी मजबूरी में अपना जिस्म बेचती हैं...लेकिन ऐसी महिलाओं को क्या कहेंगे, जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ अवैध संबंध बनाती हैं...?
    अवैध संबंध कई ज़िन्दगियों की खुशियों को लील जाते हैं... सवाल यह भी है कि जो महिला अपने पति और बच्चों की न हुई तो उस लड़के कि क्या होगी...? जिस महिला को अपनी और अपने परिवार की मान-मर्यादा का ख़्याल नहीं तो वह किसी और की इज्ज़त का क्या ख़्याल करेगी...?

    अवैध संबंध समाज के लिए नासूर हैं...जब तक ऐसे संबंध रहेंगे मासूमों की ज़िंदगियां, उनकी खुशियां तबाह होती रहेंगी...

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  7. @फिरदौस..एवं सतीश जी,
    मैने इस समस्या का एक पक्ष रखा...आप लोगों ने दूसरा पक्ष रखा...शुक्रिया

    सतीश जी द्वारा वर्णित घटना में तो फिर भी उस वर्कर की गलती थी.

    पर फिरदौस द्वारा उल्लिखित घटनाएं तो अक्षम्य हैं.

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  8. दी, ये समस्या हर वर्ग की है.. आपने बताया तो हर वर्ग से जुड़े कई आँखों देखे किस्सों पर नज़र दौड़ गई और लगा कि हर वर्ग से बराबर उदाहरण हैं ये रिश्ते सर्वव्यापी हैं, क्या निम्न, क्या मध्यम और क्या उच्च... सच्चाई ये है कि मध्यम वर्ग की महिलायें ऐसे रिश्तों को परिवार की इज्ज़त और समाज के डर से छुपा लेती हैं जबकि उच्च वर्ग को ऐसे संबंधों में ज्यादा खराबी नहीं दिखती और गरीब के पास है क्या छुपाने को? संजय सिंह कौन है? कहीं कपूर तो नहीं(करिश्मा वाला)?

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  9. कल हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'हाट' देखी.. नाथ-प्रथा के विरोध में अच्छी फिल्म लगी.. हाथ लगे तो देखिएगा..

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  10. @दीपक,
    'संजय सिंह'.राजनेता हैं. इनके अफेयर के पीछे बहुत सारी कहानियाँ हैं...कितनी सच्ची-कितनी झूठी नहीं कह सकते.

    एक राज-परिवार की बेहद ख़ूबसूरत लड़की "गरिमा सिंह' से विवाह किया...बच्चे भी हैं.
    पर कुछ साल बाद , इन्होने मशहूर 'बैड मिन्टन प्लेयर ' अमिता मोदी से शादी कर ली.

    'अमिता मोदी' बैडमिन्टन के राष्ट्रीय चैम्पियन 'सैय्यद मोदी' की पत्नी थीं...'सैय्यद मोदी' का मर्डर कर दिया गया था. शक के घेरे में 'संजय सिंह' भी थे
    आज 'गरिमा सिंह' मानसिक विक्षिप्तता की शिकार हैं ...और बच्चे भी पिता की तरफ ही हैं...(पैसे तो पिता ही देंगे ना)

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  11. सबसे पहले तो मैं ये कहूँगा की विवाहोत्तर संबंधों के उदहारण देते हुए फ़िल्मी कलाकारों के उदहारण ना लिए जाएँ तो बेहतर होगा क्योंकि ये तो वर्तमान समाज के गन्धर्व हैं जिनमे शादी ब्याह के बंधन उतने मजबूत नहीं रह पाते जितने की आम सामाजिक आदमी के होते हैं. इन लोगों के कार्य में अलग अलग लोगों से शारीरिक निकटता या कहें की घनिष्टता बनती रहती है जो की वैवाहिक स्थायित्व में बाधक होती है.

    अब अगर आम व्यक्ति की बात करें तो मेरा अपना निजी अनुभव ये कहता है की जो लोग विवाह पूर्व सम्बन्ध स्थापित करते हैं वो ही विवाहोत्तर सम्बन्ध भी बनाते हैं. मतलब ये की कुछ लोग पैदायशी रोमांटिक टायप के होते हैं. ज्योतिषीय भाषा में कहें तो इनका शायद मंगल या शुक्र ख़राब होता होगा (या मेरे हिसाब से बढ़िया होता होगा जो इन्हें विवाहपूर्व और विवाहोत्तर सम्बन्ध देता है ) पर जो कुछ भी हो ये एक अलग ही वर्ग होता है जो जब से जवान होता है, तब से लेकर मरने, मौके और सुविधा के हिसाब से तक इधर उधर मुह मारता रहता ही है. ये लोग सभी वर्गों में हैं चाहे वो निम्न वर्ग हो मध्य हो या उच्च वर्ग हो. जीवन में हर प्रकार की समाश्या हर वर्ग में होती ही है पर ये उन समस्याओं से जूझने के लिए इस प्रकार के प्रेम संबंधों का सहारा लेते रहते हैं. जैसे शराबियों को पीने के लिए कोई ना कोई बहाना मिल ही जाता है उसी तरह से इस वर्ग के लोगों को इस तरह के संबंधों को बनाने के लिए कोई ना कोई बहाना मिलता रहता है.

    अच्छा मैं यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ की मैं यहाँ पर सिर्फ पुरुषों की बात नहीं कर रहा बल्कि स्त्री और पुरुष दोनों की बात एक साथ कर रहा हूँ. अनैतिक संबंधों के लिए, चाहे वो विवाहपूर्व हों या विवाहोत्तर, स्त्री व पुरुष दोनों ही समान रूप से दोषी होते हैं.

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  12. @विचार शून्य जी,
    सिर्फ फ़िल्मी कलाकारों के ही नहीं....खिलाड़ी..राजनेता...उद्योगकर्मियों के नाम भी हैं,उदाहरणस्वरुप

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  13. सशक्त कारण बता दिये आपने, जीवन को सही राह में लाने के लिये।

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  14. मुझे ये समझ में नहीं आता कि ख़ूबसूरत, कमाऊ और नामी महिलाएं भी,शादीशुदा पुरुषों में क्या ढूंढ लेती हैं जो दूसरी पत्नी होना क़बूल कर लेती हैं। इस पर भी प्रकाश डालतीं तो अच्छा लगता। कई उदाहरण हैं.. क्रिकेट से लेकर फ़िल्म तक।
    और मुझे नहीं लगता कि मध्यम वर्ग इससे अछूता है.. शायद यह चर्चा ए आम नहीं हो पाता होगा।

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  15. आपक। ब्लॉग खजाने की तरह है.बहुत अच्छा लगा यहाँ आना.
    नए वर्ष पर आपको हार्दिक शुभकामनायें.

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  16. मेरा तो इस विषय में सीधा सा फंडा है : जो जैसा रहना चाहता है, उसे उसके हाल पर छोड़ दो। महिला को दी गई आपकी सलाह से मैं सहमत हूं। अगर पति हीरो बनता है तो उसे आउट करो और अगर पत्नी अपनी सीमाएं तोड़ती है तो उससे भी नाता तोड़ लो।
    और फिर मस्त लाइफ जियो।
    काहे टेंशन पालो।
    अब इन चीजों से ऊपर सोचने का वक्त आ गया है।

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  17. रश्मि जी ,ये बात आपने किस आधार पर कह दी कि विवाहेतर सम्बंध से माध्यम वर्ग दूर रहता है ?सच्चाई ये है कि आज ये माध्यम वर्ग का हिस्सा बन गया है ,उच्च वर्ग और समाज का निम्न वर्ग जिनमे अनुसूचित जातियां और जनजातियाँ आती है |मै कई जनजातियों को जनता हूँ जिनके यहाँ विवाहेतर सम्बंध आम हैं ये बात दीगर है कि ऐसे सम्बंध सार्वजनिक होने पर उनके यहाँ भी आर्थिक या फिर सामाजिक दंड देने का प्रावधान है |जहाँ तक माध्यम वर्ग का सवाल है ये बात स्वीकार करनी होगी कि किसी को कभी भी किसी के साथ प्रेम हो सकता है ,प्रेम की संभावनाएं कभी ख़त्म नहीं होती
    विवाह संस्था अपने आप में प्रेम के नाम पर प्रेम का नाश करनेवाली व्यवस्था है क्योंकि यह एक व्यवस्था है, रूटीन है जो प्रेम को खत्म कर डालती है। हमारे यहाँ विवाह बहुत कम आयु में कर दिए जाते हैं। विवाह की उम्र स्त्री के लिए ३०-३५ साल होनी चाहिए ताकि वह अपने कार्य, चयन के प्रति अपने अनुभवों के आधार पर निर्णय ले सके। प्रेमहीन विवाह निश्चित रूप से विवाहहीन प्रेम को जन्म देता है। दरअसल प्रेम को लेकर हमारे दिमाग में विशेष प्रकार का आवेग, आकर्षण का भरा पूर्वग्रह है। सब पहले से बँधा-बँधाया है, उसमें कुछ भी नया और प्रयोगशील होने की गुंजाइश नहीं है। जब जादू तक थोड़े समय बाद निष्प्रभ हो जाता है तो साथ रहते औरत-मर्द का आपसी आकर्षण लंबा कैसे चल सकता है? जो साहसी होते हैं, वे एक मंज़िल तक कभी नहीं रुकते। उन्हें नई-नई मंज़िलें चुनौतियाँ देती रहती हैं। विवाह समझदारी पर आधारित होना चाहिए, आकर्षण पर नहीं। जिस प्रकार मिर्गी के रोगी को पता नहीं होता कि कब दौरा पड़ेगा, उसी प्रकार जीवन में यह भविष्यवाणी नहीं की जा सकती कि कब नूतन प्रेम अवतरित हो जाएगा। इसके लिए न घर छोड़ने की ज़रूरत है न पति। दूसरों को कम से कम कष्ट देते हुए जीवन को उसके पूरे आयामों के साथ, डाइमेंशन्स के साथ जीना चाहिए। जीवन एक बार ही मिलता है और प्रेम अनन्त संभावनाएं हैं, सवाल आपकी सामर्थ्य का है, साहस का है| इन्हें अवैध कहना सर्वथा गलत और बौद्धिक अपंगता का प्रतीक है

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  18. ऐसे ज्‍यादातर मामलों में महिलाओं की सहनशीलता, बल्कि कहें टालरेंस अविश्‍वसनीय सा होता है. शाश्‍वत किस्‍म की समस्‍या, लेकिन अभिव्‍यक्ति स्‍पष्‍ट और प्रभावी है.

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  19. लेखन के लिये आपके विषय वैविध्य को देख कर चकित हूँ ! आपकी सूक्ष्म दृष्टि की भी कायल हूँ ! विवाहेतर संबंधों की यह समस्या बहुत विकराल है और पाश्चात्य जीवन शैली को अपनाने की लालसा के चलते 'लिन इन रिलेशनशिप' का जो चलन समाज में चल रहा है उसने इस आग में और आहुति ही डाली है ! मध्यम वर्ग भी इससे अछूता नहीं है ! हाँ बहुत अधिक नामचीन ना होने के कारण शायद लोगों की जुबान पर उनके नाम नहीं चढ़ पाते ! लेकिन समाचारपत्र ऐसे किस्सों से भरे पड़े होते हैं !

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  20. आपने इस विषम समस्या के सभी पहलू पाठकों तक रखने का सफल प्रयास किया है।

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  21. विचार शून्य जी की बात से सहमत हु , कुछ लोगों का स्वभाव ही ऐसा होता है | किन्तु ऐसे पुरुषो की भी कोई कमी नहीं है जो खुद को अविवाहित बता कर लड़कियों से सम्बन्ध बना लेते है | ओए ये बीमारी अब माध्यम वर्ग में काफी तेजी से पैर पसार चूका है |

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  22. रश्मि जी आपने बहुत संतुलित ढंग से बात कहने की कोशिश की है।
    *
    मुझे नहीं लगता कि मध्‍यमवर्ग इससे अछूता है। असल में यह हमारी जिंदगी का एक हिस्‍सा है। हां कहीं यह बहुत खुलकर सामने आता है और कहीं अंदर ही अंदर पलता रहता है। इसके रूप भी कई हैं। जरूरी नहीं है कि शारीरिक संबंध ही बनें।
    *
    इसे समस्‍या के रूप में नहीं बल्कि एक सा‍माजिक घटना के रूप में ही देखना चाहिए।

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  23. आवेश की सोच सबसे ज्यादा व्यवहारिक लगी जो कि आदि भारत के समाज का स्वरुप थी और शायद दुनिया के अंत से पूर्व पुनः हो जानी है.

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  24. रश्मि जी, इस पोस्ट को पढ़कर जौहर कानपुरी साहब का एक शेर याद आ रहा है-
    ग़ाफ़िल लोगो मत देखो नापाक दुपट्टों की जानिब
    जिस पे नमाज़ें पढ़ सकते हो, ऐसा दुपट्टा घर में है.

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  25. @शाहिद जी,
    शुक्रिया इस शेर के लिए...और बस
    वाह!! वाह!! वाह!!

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  26. दुनिया में कई लोगों की ईमानदारी का कारण यह है कि उन्हें बे‌ईमानी का अवसर नहीं मिला या सही कीमत नहीं मिली. कुछ लोग इसलिये ईमानदार है कि उनको अपनी सफ़ेदपोशी की चिंता रहती है. और यह मार बेचारे मध्यमवर्गीय परिवार पर सबसे ज़्यादा पड़ती है. कम्बख़्त उनका दिल भी धिक्कारता है और समाज भी... बड़े शरीफ समझते थे हम उनको, वो तो वैसे निकले.
    विवाहेतर संबंधों की बात भी इसी बे‌ईमानी की कैटेगरी में रखकर देखें तो आसान हो जाएगा इस मध्यम्वर्ग की व्यथा को समझना. मेरे घर अगर मेरे रिश्तेदार भी पुलिस की यूनिफ़ोर्म में आ जाएं तो हंगामा हो जाए पूरे मोहल्ले में. पासपोर्ट के लिये पुलिस वेरिफिकेशन करने आ गए थाने से कुछ लोग और हो गई हमारी थू थू… सफाई देनी पड़ी और समझाना पड़ा. लेकिन जेल जाकर भी नेता मुख्य मंत्री बन जाता है अगले चुनाव में, क़ैद से निकलकर भी कोई सुपर स्टार बन जाता है, पर्दे पर औरत की इज़्ज़त बचाने वाला शख्स अपनी कामवाली के साथ बलात्कार के इल्ज़ाम में पकड़ा जाता है.
    कुल मिलाकर समरथ के नहीं दोस गुसाईं. और यही नियम निम्नवर्ग पर भी लागू होता है.हज़ारों किस्से देखे सुने जाते हैं रोज़ अख़बारों में जहाँ एक औरत अपने दामाद के साथ भाग गई, या भाभी को देवर भगा ले गया. लेकिन यही ख़बर एक सरकार के मामूली मुलाज़िम के बारे में छप जाए तो आसमान सिर पर उठा लेते हैं लोग.

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  27. एक बड़ा पुराना लतीफा याद आ गया.. जुहू बीच पर कुछ बच्चे खेल रहे थे. एक बच्चे ने दूसरे से पूछा कि तुम कितने भाई बहन हो, तो दूसरे ने जवाब दिया कि दो भाई और एक बहन. जवाब देने वाले ने पूछने वालेसे यही सवाल कर दिया. वो एक फिल्म स्टार का बेटा था. उसने मासूमियत से जवाब दिया, “भाई बहन का तो नहीं पता.मगर मेरी पहली माँ से दो बाप हैं और दूसरे बाप से तीन माँ हैं.”
    बड़े घरों में यह सब सहज है, क्योंकि एक्सेप्टेबिलिटी है, निम्नवर्ग में भी एक्सेप्टेबल है. लेकिन मिडल क्लास में.. बाप रे! प्राण जाये पर आन न जाये!!

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  28. माध्यम वर्गीय पुरुषों की स्थिति पर अच्छी नजर है ...एक और रिश्ता ये अफोर्ड नहीं कर सकते ...lol!
    मुझे लगता है संस्कार , नैतिकता जैसे कुछ शब्द इस वर्ग की बदौलत ही बचे हुए है /अपनी पहचान बनाये हुए हैं...

    उच्चतम वर्ग या फ़िल्मी कलाकारों आदि की तो बात ही क्या है ...१५- २० वर्षों के बाद पति से अलग होने वाले ये लोग अक्सर नारी सम्मान/सशक्तिकरण पर भाषण देते देखे जा सकते हैं ...ऐसे समय में जब वह स्त्री उम्र की ढलान पर होती है और उसके लिए दूसरे किसी रिश्ते में बंधना संभव नहीं हो पाता...सितारों का यह अमानवीय पक्ष उनके ग्लैमर के आगे ढक जाता है ...

    निम्नवर्ग में अवैध रिश्ते पुरुषों ही नहीं महिलाओं के लिए भी आम ही है ...गली गलौज मार पीट दोनों और से सामान मात्रा में ही चलते हैं ..

    एक अलग विषय पर अच्छी पोस्ट !

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  29. कल शाम को ही इस विषय पर हमारी चर्चा हो रही थी और आज अपकी यह पोस्ट पढ़ी, हमारी चर्चा का विषय था एक्स्ट्रा मेरिटल अफ़ेयर आईटी प्रोफ़ेशनल्स में, जिसमें बहुत सारे उदाहरण और कारणों का भी जिक्र हुआ, परंतु वे सारे कारण पोस्ट के कारणों से भिन्न हैं, वे सब केवल और केवल अपना एक बेहतरीन दोस्त पाने के लिये और अपने कार्य को सुगम तरीके से निपटाने के लिये, दो ही कारण हमें लगे।

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  30. कोई सब रिश्तो के होते हुए जब भी कहीं कोई रिश्ता खोजता हैं तो उसके पास जितने रिश्ते हैं उनमे कुछ ना कुछ कमी हैं
    रिश्ते बनाना आसान हैं निभाना मुश्किल लेकिन अपने हर सही गलत रिश्ते को स्वीकारना आसान नहीं होता । इसके लिये बहुत दम चाहिये ।

    हमारे समाज मे दूसरे विवाह को हय दृष्टि से देखा जाता हैं और अगर कोई विवाहित पुरुष या स्त्री का सम्बन्ध किसी से हैं तो उसको वो सम्बन्ध गुप चुप निभाने की सलाह दी जाती हैं ।

    माध्यम वर्ग मे ये समस्या और भी बहुत गंभीर हैं देवर- भाभी , जीजा -साली के रिश्ते ना जाने कितने घरो का सच हैं ।
    माध्यम वर्ग और आप के बताये उच्च वर्ग मे फरक ये हैं की उनलोग ने स्वीकार करना शुरू कर दिया हैं की "विवाह " और "जीवन साथी" के उनके पूर्व के निर्णय गलत थे ।

    विवाह के बाद सम्बन्ध अगर कोई बनाता हैं तो नैतिक ज़िम्मेदारी केवल और केवल उस व्यक्ति की हैं ना की उसकी जिस से वो सम्बन्ध बनाता हैं { पुरुष /स्त्री दोनों } अगर एक विवाहित किसी अविवाहित से सम्बन्ध बना रहा हैं तो इस मे अविवाहित की कोई गलती नहीं हैं क्युकी वो अविवाहित हैं और अपना साथी खोज रहा हैं ।

    विदेशो मे एक समय मे एक साथी की बात को मान्यता देते हैं । वहां "चीटिंग " कहते हैं अगर आप एक समय मे दो लोगो से दैहिक सम्बन्ध रखे तो और वहां "चीटिंग " होती हैं अगर आप किसी के साथ "मानसिक " रूप से जुड़ कर अपने " साथी " की बात शेयर करे तो ।

    हमारे यहाँ ना जाने कितने सम्बन्ध जो नितांत गलत हैं "शादी हो जाना सही सम्बन्ध की परिभाषा नहीं हैं " उनको सामाजिक मान्यता मिली हैं और उनकी वजह से वो सम्बन्ध जो सही हैं यानी जो विवाह के बाद बनते हैं लेकिन सामाजिक मान्यता ना मिलने से विवाह मे नहीं बदल पाते ।

    हम एक समाज का हिस्सा हैं और समाज के नियम हैं अगर हमको वो नियम मनवाने हैं तो पहले खुद मानना होगा और हां एक बात ध्यान दे की नियम / कानून मे बदलाव भी समाज मे ही होता हैं । हम जजमेंटल क्यूँ होते हैं ।

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  31. विवाहेत्तर आकर्षण होना - नर या नारी में, नैसर्गिक है। पर वह बांध नहीं तोड़ पाता मध्य वर्ग में। जो वर्जनायें हैं इस वर्ग की, वे मैं इस वर्ग की अच्छाइयों में गिनता हूं।
    (सामान्यत: यह विषय अपने लिये नेट पर वर्जित मानता हूं; कमेण्ट लिखने के बाद मैने सोचा कि पब्लिश बटन स्किप कर जाऊं, पर कर ही दे रहा हूं! :) )

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  32. @ज्ञानदत्त जी,
    मैने पूरी पोस्ट लिख डाली और आप दो पंक्ति के कमेन्ट लिखने से बचना चाह रहे थे ...Not fair :)

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  33. पावर मनुष्य को भ्रष्ट बनाती है । पावर भले ही ओहदे की हो , राजनीति की हो या पैसे की ।
    उच्च वर्ग के लिए पथ भ्रष्ट होने का यही कारण है ।
    लेकिन निम्न वर्ग के लोगों में आर्थिक मजबूरियां स्त्री पुरुष दोनों को प्रभावित कर सकती हैं ।
    अपने सही कहा कि मध्यमवर्गीय परिवारों में सब जीविका उपार्जन में इतने व्यस्त होते हैं कि उनका कहीं और ध्यान जाता ही नहीं ।

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  34. मै भी यही कहने जा रहा था की यह नैसर्गिक है. ज्ञानदत्त जी से सहमत.

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  35. @मनोज जी,
    आपने कहा,"मुझे ये समझ में नहीं आता कि ख़ूबसूरत, कमाऊ और नामी महिलाएं भी,शादीशुदा पुरुषों में क्या ढूंढ लेती हैं जो दूसरी पत्नी होना क़बूल कर लेती हैं।"

    मुझे जैसा लगता है ,और मैने जिसका जिक्र पोस्ट में भी किया है कि शादी-शुदा पुरुषों को स्त्री मन की अच्छी पहचान हो जाती है...वे उनके मन की जरूरतों को अच्छी तरह समझते हैं.उनका ज्यादा ध्यान रख पाते हैं...इसीलिए ये महिलाएँ भी उनकी तरफ आकृष्ट हो जाती हैं.

    फ़िल्मी गॉसिप जैसी लगेगी पर करीना-शाहिद-सैफ के पीछे यही किस्सा था. शाहिद कपूर उतना अटेंशन नहीं देते थे,जो सैफ ने दिया. (जैसा कि पत्रिकाओं में पढ़ा है) करीना के कहने पर कि अपना प्यार 'प्रूव' करो..झट उन्होंने बोतल से अपने हाथ काट लिए...(हा हा हा...कोई इंटेलिजेंट लड़की होती तो इस बेवकूफी भरी हरकत पर वहीँ का वहीँ उन्हें डंप कर देती ,पर इन ग्लैमर डॉल का ऊपरी माला खाली होता है...वो फ़िदा हो गयी.) शायद बैचलर लड़के अपनी ही गुमान में रहते होंगे...कि हम किस बात में कम हैं.

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  36. @आवेश,
    मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ. मेरे सैकड़ों रिश्तेदार, और आस-पास रहने वाले हज़ार फ्लैट्स में रहनेवाले पुरुष और ब्लॉगजगत के भी पुरुष , सब अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं और उनकी देखभाल करते हैं .किसी ने एक घर छोड़ कर दूसरा घर नहीं बसाया.(वजह जो भी हो ) इसीलिए मैने कहा कि मध्यमवर्गीय परिवार इनसे दूर हैं.

    मैने यहाँ लुके-छिपे प्रेम की बात नहीं की एक पत्नी को छोड़ दूसरा घर बसाने का उल्लेख किया है. जो कि निम्न वर्ग और उच्च वर्ग में ही प्रचलित है. अपवाद हर जगह हैं...इसका जिक्र मैने पोस्ट में ही कर दिया है.

    आपके विचार क्रांतिकारी हैं,पर व्यावहारिक धरातल पर उन्हें आने में कितना समय लगेगा या वे कभी व्यवहार रूप में परिणत होंगे भी या नहीं ...नहीं कहा जा सकता. विवाह-संस्था इतनी जल्दी ख़त्म होने वाली तो नहीं. एक ऐसे ही रविवार को किन्ही 'बेनामी ' के ब्लॉग पर "विवाह संस्था और लिविंग रिलेशनशिप' के ऊपर पूरे दिन बहस चली. ब्लॉग जगत के कई बड़े दिग्गज, 'गिरिजेश राव', अमरेन्द्र त्रिपाठी, लवली गोस्वामी, दिव्या श्रीवास्तव, विवाह संस्था को ख़त्म किए जाने की वकालत कर रहे थे. मैने अकेले इसका विरोध किया क्यूंकि हमारे पास कोई 'बैक अप' प्लान नहीं है और एक बार फिर वर्जनाहीन और उन्मुक्त समाज में लौटने की सोच वास्तविकता के धरातल पर खरी नहीं उतरती. दस-बारह घंटे की बहस में भी कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया.(बेनामी जी ने अपना ब्लॉग ही मिटा दिया है..इसलिए लिंक देने में असमर्थ हूँ )

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  37. रश्मि,
    तुम्हारे लेख से जुदा एक पक्ष मानव मनोविज्ञान का पक्ष है और आज ही मैंने इस पर एक पोस्ट दी है "मिड - लाइफ क्राइसिस" . जिसके लिए नीचे दी लिंक देखी जा सकती है. ये बात सिर्फ पुरुष से नहीं जुड़ी है बल्कि इसका शिकार दोनों ही हो सकते हैं. इसके लिए खास हालात के साथ मानसिकता भी होती है. पुरुष से जुड़ी स्त्री का भी अपना जीवन और सोच होती है लेकिन अपने विवेक को छोड़ कर वह दूसरे के घर में सेंध लगा लेती है. इसके लिए सिर्फ एक पुरुष और एक स्त्री ही दोषी नहीं है बल्कि दोषी दोनों ही बराबर के होते हैं. जब विवाह करते हैं तो दोनों ही एक दूसरे को सम्पूर्ण अच्छाइयों और बुराइयों के साथ स्वीकार करते हैं फिर विवाह के बाद क्यों उनको बारीकी से देख कर आक्षेप लगने शुरू कर देते हैं और फिर उनका सहारा लेकर दूसरे के घर में सेंध लगने का काम करने लगते हैं.

    www.merasarokar.blogspot.com

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  38. @राहुल जी,
    आपने कहा,"ऐसे ज्‍यादातर मामलों में महिलाओं की सहनशीलता, बल्कि कहें टालरेंस अविश्‍वसनीय सा होता है."

    इसमें क्या अविश्वसनीय है...वे पति के विवाहेतर सम्बन्ध, घरेलू हिंसा...सब बर्दाश्त करने को मजबूर हैं....क्यूंकि वे आत्मनिर्भर नहीं हैं. वे अपने बच्चों की देखभाल के लिए अपने पति पर आश्रित हैं,इसलिए सबकुछ सहती रहती हैं. जो नहीं बर्दाश्त कर पातीं...वे या तो मानसिक संतुलन खो देती हैं या फिर आत्महत्या कर लेती हैं.

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  39. BUZZ से G.G.shaikh के कमेंट्स

    Very balanced and matured article...
    sahi-galat kahan hai uska sahi-sahi lekha-jhokha...
    achchha lagta hai jab koi itna 'concerned' ho sochta hai,
    aur jiski spasht prastuti bhi...'Buzz" dhanya hai

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  40. BUZZ से G.G.shaikh के कमेंट्स - हमारी एक प्लूरल सोसाइटी थी.
    इस सोसाइटी में एक दादा अपने छोटे बेटे के यहाँ आँठ-दस दिन रहने के लिए आते.
    वैसे उनका परमेनेंट घर तो कुछ दूर के शहर में था...
    सोसाइटी में आते ही उनकी धर्म-पत्नी मेरे घर मुझे बुलाने आते...
    'चलो दादा ने तुम्हें याद किया है'
    दादा धर्म भाव में जीने वाले इंसान थे. प्रवचन, प्रक्टिसिंग रेलिजिअस भी.
    अस्सी साल से ऊपर की उम्र...जिस पर आधा अंग लक़वा-ग्रस्त.
    मुझसे बड़ा ही प्रेम भाव रखते... धार्मिक बातें तो ठीक, मुझे जो आकर्षित करता
    वह था उनका कबीर प्रेम. कबीर की ऐसी-ऐसी साखियाँ उनसे सुनने को मिली जो मैंने पहले
    कभी सुनी न थी...उन्हें सुन में गद-गद होता उठता और मुझे अपनी अनुभवी नज़रों से
    भाँप एक से एक नयी साखी सुनाते जाते... उन्हें सभी कंठस्थ थी..

    एक साखी में कुछ कामुक भाव आए तो उन्हों ने मुझे 'आग-घी का उदाहरण देते हुए कहा:
    "आज भी हम (दादा) किसी स्वरूपवान महिला को पास से गुज़रते हुए देखते हैं तो उन्हें देख ही लेते हैं...
    मन को शरीर की कोई भी अवस्था से कुछ लेना-देना नहीं...". उनका इशारा विकार के मुताल्लिक
    रहा हो.

    कुछ पुरुष स्वरूपवान पत्नी, सुंदर बुद्धिमान बच्चे, ऊंचा ओहदा, परिपूर्ण आर्थिक स्थिति,
    सामाजिक दृष्टि से आदरणीय...उच्च कोटि के सदगृहस्थ बने रहते हैं, सालों से उन्हें वैसा ही
    देखते चले आ रहे हैं...
    और कुछ पुरुष वैसा ही रसूख़/हैसियत रखने वाले पर नितांत निकृष्ट...

    आपकी यह बात ठीक है की मध्यम वर्गीय पुरुषों का एक बड़ा तबका अपनी वर्तमान जद्दोजहद
    के तहत इन मामलों में सीमित रहा है.

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  41. रश्मि, बहुत बढ़िया पोस्ट है. हमेशा की तरह सार्थक विषय को छुआ है तुमने. या कहूं की आमजन की दुखती रग़ को छुआ है .
    विवाहेत्तर सम्बन्ध समाज में नासूर की तरह हो गए हैं. निम्न वर्ग और उच्च वर्ग में तो ये हमेशा से होते आये हैं. निम्न वर्ग में तो खैर दंपत्ति को इस बात की कोई चिंता ही नहीं होती की समाज क्या कहेगा. यदि पति कहीं और सम्बन्ध रखता है, तो पत्नी भी उसे छोड़ने और दूसरा घर बसाने में देर नहीं लगाती. उच्च वर्ग में यह मामला कुछ सालों तक द्वंद्व झेलता है. बाद में तलाक और नई शादी के रूप में सामने आता है. मध्यम वर्ग भी इस रोग से अछूता नहीं है. लेकिन यहाँ मामला सार्वजनिक कम हो पाता है. पत्नी और पति दोनों पर समाज का दायित्व हाबी हो जाता है. कोई क्या कहेगा की उक्ति ज़ोर मारने लगती है. और विवाहेत्तर प्रेम का बुखार उतर जाता है. लेकिन रिश्तों के बीच में दरार तो पड़ ही जाती है.
    आवेश जी ने कई बातें कल्पना के आधार पर की हैं. उनका कहना है की लड़कियों की शादी ३०-३५ साल होने चाहिए, तो आवेश जी शादी का आधार वंशवृद्धि होती है. और इसके लिए यह उम्र वैज्ञानिक तौर पर ठीक नहीं होती. और हमारे देश में तो शादी पहले होती है और प्रेम बाद में. और माशाल्लाह , रिश्ते बहुत खूबसूरती के साथ अंजाम तक पहुंचाते हैं.
    heyyyy.... रश्मि, यहाँ तो ये पूरी पोस्ट ही हो गई...

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  42. दी, आपकी पोस्ट संतुलित ढंग से समस्या को उठाती है. पर ये मामला मेरे ख्याल से बहुत जटिल है और अलग-अलग वर्गों में कारण भिन्न-भिन्न हैं. इस पोस्ट पर विचारशून्य, आवेश और रचना जी के विचार आपकी पोस्ट को पूर्णता दे रहे हैं.
    मैं आवेश की इस बात से सहमत हूँ कि हम प्रेम की तलाश में रहते हैं. अरेंज्ड मैरिज एक जुए की तरह होती है. अगर आपको प्रेम मिल गया तब तो ठीक, पर अगर नहीं मिला तो आप दूसरी जगह प्रेम की तलाश करते हैं. मध्यम वर्ग में बहुत से कारक रोक लगाते हैं. उच्च वर्ग में ऐसी कोई समस्या नहीं है, इसलिए उन्हें जहाँ प्रेम मिलता है, वहाँ चले जाते हैं.
    और दी,आपने उच्च वर्ग से जो उदाहरण दिए हैं, वो अधिकतर दूसरे विवाह के हैं और मेरे ख्याल से इन्हें विवाहेतर सम्बन्ध नहीं माना जा सकता. विवाहेतर सम्बन्ध वो होता है, जहाँ पति अपनी पत्नी के सामने तो एक पत्नीव्रत बना रहता है, पर चोरी-छिपे सम्बन्ध रखता है और ऐसे संबंध मध्यवर्ग में भी होते हैं, बस औरतें उन्हें छिपा लेती हैं. इस तरह के सम्बन्ध वो पुरुष बनाते हैं, जो अपने परिवार को भी बचाकर रखना चाहते हैं और गैर औरत से प्रेम के भी मज़े लूटना चाहते हैं. ऐसे लोग अपनी पत्नी से कुछ ज्यादा ही प्रेम जताते हैं :-) और समाज में एक आदर्श पति बने रहते हैं.
    पर मेरे ख्याल से दूसरा विवाह विवाहेतर सम्बन्धों में नहीं आता क्योंकि इससे पुरुष की छवि पर असर पड़ता है, जिसकी हिम्मत वही कर सकता है, जो वाकई उस महिला से प्रेम करता है.

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  43. ऐसे सम्बन्धों के लिए दो लोग चाहिए होते हैं.केवल पुरुष कुछ नहीं कर सकता.
    घुघूती बासूती

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  44. @घुघूती जी,
    यहाँ मैने विवाहित पुरुषों द्वारा, अपनी पत्नी को नज़रंदाज़ कर दूसरी महिला की तरफ आकृष्ट होने की बात कही है. महिला-पुरुष..दोनों में ही यह परस्पर आकर्षण किस वजह से होता है कि एक बसा-बसाया घर टूट जाता है...इसी पर कुछ विमर्श की कोशिश की है.

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  45. @वंदना,
    कोई बात नहीं..कभी-कभी तो इतने इत्मीनान से टिप्पणी करती हो...थोड़ी और लम्बी हो जाती टिप्पणी तब भी चलता :)
    तुम्हारी स्कूल की छुट्टियों का कुछ फायदा ब्लॉग के पाठक भी तो उठाएँ :)

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  46. @मुक्ति
    मुझे ध्यान था कि ये 'विवाहेतर ' शब्द एक शादी में बने रहते हुए दूसरा रिश्ता बनाने को कहते हैं. परन्तु और बाकी शब्द जो ध्यान में आ रहे थे, वे बड़ा असहज कर रहे थे.इसलिए यही शब्द इस्तेमाल किया कि सुधि पाठक आशय समझ जाएंगे.
    वैसे भी पहले कोई ना कोई विवाहेतर सम्बन्ध बनता है.....उसके बाद ही उसकी परिणति दूसरी शादी में होती है. (तलाक के बाद किया गया दूसरा विवाह,इस श्रेणी में नहीं आते.)

    तुमने लिखा,
    अगर आपको प्रेम मिल गया तब तो ठीक, पर अगर नहीं मिला तो आप दूसरी जगह प्रेम की तलाश करते हैं.
    अगर पति वहाँ प्रेम देने का प्रयत्न करेंगे तो वापसी में जरूर मिलेगा लेकिन अगर पत्नी को एक केयर टेकर समझ दूसरी जगह प्रेम की तलाश करेंगे तो वो तो गलत ही होगा.

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  47. ये सिर्फ गरीब तबके में ही नहीं होता, सो कॉल्ड इलीट तबके में भी होता है...

    ऐसे ही एक शख्स से थे, खुद को फ्लर्ट बताने में फख्र महसूस करते थे...एक दिन पार्टी में शेखी बधारते हुए कहने लगे...भई रोज़ रोज़ तो हमसे घर की दाल खाई नहीं जाती...कभी कभी टेस्ट बदलने के लिए चिकन भी चाहिए होता है...ये सुनकर उनकी पत्नी बोली...अगर मैंने भी टेस्ट बदलना शुरू कर दिया तो...इतना सुनने पर उन शख्स का चेहरा देखने लायक था...

    जय हिंद...

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  48. बहुत जटिल और महत्वपूर्ण विषय लिया है, रश्मि !
    मगर लेख और टिप्पणियों में कहीं न कहीं लिखते समय कंजूसी की गयी है !

    जिस कामवाली की चर्चा है यह वर्ग में, अशिक्षा और अस्वस्थ वातावरण के माहौल में यह सब बहुत आम है और उनका मर्म उतना नहीं दुखता जितना इस घटना को सुनकर रश्मि का दुखा होगा !
    उनके जीवन में दोनों तरफ यह सम्बन्ध आम हैं और इससे वहां अधिक फर्क नहीं पड़ता ....

    और आपने मध्यम वर्ग को इस " गन्दगी " से मुक्त ही कर दिया :-)

    उच्च वर्ग में आपने शशि थरूर जैसी क्लास को भी शामिल कर लिया :-))

    मैं शशि से प्रभावित होकर नहीं कह रहा और न उनका बचाव कर रहा मगर ऐसे लोगों के विवेक और समझ पर ही रश्मि और सतीश जैसे लोग प्रश्न चिन्ह लगा दें यह हास्यास्पद ही होगा ! किसी पर ऊँगली उठाने से पहले उससे उसका पक्ष समझाना आवश्यक तो होता ही है !

    शशि की समझ का दायरा बहुत व्यापक होगा ऐसा उन्हें पढ़ कर जाना जा सकता है !

    समय, स्थान और परिस्थितयाँ मानवीय भूले कराने में समर्थ हैं और कई बार यह भूल नहीं बल्कि आवश्यकता होती है ...ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है !

    स्वस्थ मानसिक जीवन के लिए सेक्स बेहद आवश्यक है और यह एक पक्षीय नहीं होता ! पार्टनर के साथ बिना, सारा जीवन नरक बन जाता है और उस पर तुर्रा यह कि भारतीय समाज में इस विषय पर चर्चा भी वर्जित है...

    कोई खुल कर बोलने कि हिम्मत नहीं रखता ...एक दुसरे को देख हाँ में हाँ मिलाना स्वस्थ परंपरा नहीं ...ईमानदारी तो क्या होगी !
    यहाँ आयीं अधिकांश टिप्पणिया गवाह हैं इस बात की ! खैर

    हिम्मत के लिए मुबारक बाद रश्मि और भविष्य के लिए शुभकामनायें !
    उम्मीद है आगे भी लिखती रहोगी !

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  49. रश्मि जी, विवाहेतर सम्‍बंधों की आपने गहरी पडताल करने की कोशिश की है। पर मुझे नहीं लगता कि मध्‍य वर्ग इससे बचा हुआ है। जहां तक मेरा अध्‍ययन है, मध्‍य वर्ग में भी यह सब बखूबी चल रहा है। हॉं, ये और बात है कि ज्‍यादातर ऐसे सम्‍बंध पर्दे के पीछे चलते हैं और सामने नहीं आ पाते।

    ---------
    पति को वश में करने का उपाय।
    विज्ञान प्रगति की हीरक जयंती।

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  50. सतीश सक्सेना जी,

    आपने शशि थरूर के बारे में जो अपनी राय रखी है और जो आप कह रहे हैं कि उनका इतिहास देखिये तब कुछ कहिये तो भई किस किस का इतिहास देखा जाय....क्या सब इतिहास पढ़कर ही हम उन पर लिखें ?

    और इतिहास भ्रष्ट भी होता है सक्सेना जी, विश्वास न हो तो किसी ऐरे गैरे इतिहासविद से पूछ लिजिएगा कि कैसे और क्यों तथ्यों को मरोड़ा और पहनाया जाता है ताकि किसी की छवि को धक्का न लगे। ऐरे गैरे इतिहासकार इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि नामचीन इतिहासकारों के मुंह पर ताले लगा दिये गये हैं चाहे वह तोड़ फोड़ के जरिये हो या फिर किसी और दबाव के जरिये।

    और हमें इतनी फुरसत भी नहीं है कि ऐसे शख्सों के बारे में इतिहास खंगालते फिरें।

    हम तो इतना जानते हैं कि पलटदास कई प्रकार के होते हैं, कई क्षेत्रों में होते हैं। ये राजनीति के पलटदास लोग हैं जिनका ध्येय वाक्य बहुत पुराना है कि -

    जहाँ दिखी नारी, पट आँख मारी,
    लही तो लही,वरना बाल ब्रम्हचारी

    ऐसे ही नहीं नारायण दत्त तिवारी डी एन ए टेस्ट से भागते फिर रहे हैं :)

    थरूर के बारे में हमने जो कुछ देखा पढ़ा है....उसके तहत cost cutting के दौरान ही फाइव स्टार होटल की मौजमस्ती..... क्रिकेट में हिस्सेदारी और बाद में विवाह कार्यक्रम आदि को पढ़ा उचारा है, तदनुसार हमें थरूर जैसे शख्स का और इतिहास जानने की जरूरत नहीं है :)

    कहीं ज्यादा लिख गया होउं तो ज्यादा ही समझियेगा.....वैसे भी आप तो महान हो....महान लोगों को समझाने के लिये जरा ज्यादा बताना पड़ता है :)

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  51. बहुत ही शोधपूर्ण आलेख है !
    कई पहलुओं पर सार्थक विवेचना प्रसंशनीय है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  52. ख़ुशदीप जी ने बहुत अच्छी बात कही है...
    @ऐसे ही एक शख्स से थे, खुद को फ्लर्ट बताने में फख्र महसूस करते थे...एक दिन पार्टी में शेखी बधारते हुए कहने लगे...भई रोज़ रोज़ तो हमसे घर की दाल खाई नहीं जाती...कभी कभी टेस्ट बदलने के लिए चिकन भी चाहिए होता है...ये सुनकर उनकी पत्नी बोली...अगर मैंने भी टेस्ट बदलना शुरू कर दिया तो...इतना सुनने पर उन शख्स का चेहरा देखने लायक था...

    दरअसल... फ्लर्ट वही लोग (अगर सिंगल हैं तो) करते हैं, जिनमें किसी का हाथ थाम कर ज़िन्दगी भर साथ निभाने की हिम्मत नहीं होती...ऐसे में ये 'कमज़ोर' लोग ख़ुद को तथाकथित 'मर्द' साबित करने के लिए फ्लर्ट का सहारा लेते हैं... (हम ऐसे कई लोगों को जानते हैं, जो फ्लर्ट करते-करते बूढ़े हो गए...)
    कई महिलाओं के साथ फ्लर्ट करने वाले लोग 'प्रेम' के लिए तरस जाते हैं, क्योंकि उनके जीवन में जितनी भी महिलाएं होती हैं, सबको मालूम होता है कि वह 'टाइम पास' कर रहा है... ऐसे में कोई भी महिला उसके साथ गंभीर रिश्ता नहीं बना पाती...अगर अनजाने में कोई बना भी लेती है तो उसे सिर्फ़ तकलीफ़ के सिवा कुछ हासिल नहीं होता...

    फ्लर्ट करने में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं, ऐसी महिलाएं सिर्फ़ 'भोग की वस्तु' ही बनकर रह जाती हैं...
    फ्लर्ट करने वालों को सम्मान की नज़र से नहीं देखा जाता...

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  53. अगर लोग बाहर प्रेम तलाशने की बजाय घर में ही प्रेम तलाशें तो उनकी ज़िन्दगी इतनी ख़ुशहाल हो जाए कि किसी को भी उससे ईर्ष्या हो...
    अगर कोई मर्द बाहर की महिला पर एक हज़ार रुपये ख़र्च करने की बजाय अपनी पत्नी के लिए 5-10 रुपये के फूल ही ले जाए तो क्या उनकी ज़िन्दगी में रूमानियत पैदा नहीं होगी...?
    इसी तरह कोई महिला ग़ैर मर्दों के साथ वक़्त बिताने के बजाय अपनी पति को समय दे तो क्या उसकी ज़िन्दगी ख़ुशहाल नहीं बनेगी...?

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  54. हर इंसान के अन्दर एक जानवर भी होता है... अपने साथी के अलावा यहां-वहां मुंह मारने की प्रवृति जानवरों में होती है...
    समाज को सभ्य बनाने के लिए ही विवाह संस्था की बुनियाद डाली गई... लेकिन समाज ने विवाह प्रथा को 'बोझल' बना दिया...अगर विवाह के मामले में लड़के-लड़की की रज़ामंदी ली जाए तो इसे और मज़बूती मिलेगी...या यूं कहें कि भटकने के बहाने नहीं मिलेंगे...ऐसे कितने ही लोग हैं, जो प्रेम विवाह करने के बाद भी नाजायज़ रिश्ते क़ायम रखते हैं... कहते हैं न- चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से नहीं...

    नाजायज़ रिश्ते रखने के लिए लोग अपने साथी को ज़िम्मेदार ठहराते हैं...मर्द कहते हैं कि पत्नी उन्हें प्यार नहीं करती..., ठीक यही बहाना महिला बनाती है...जबकि हक़ीक़त दोनों ही जानते हैं... शायद लोग ऐसे बहाने बनाकर ख़ुद को ही 'तसल्ली' देना चाहते हैं...

    जिस दिन विवाह संस्था ख़त्म हो गई, उस दिन परिवार ख़त्म हो जाएंगे...तब घर नहीं होंगे...होटल के रूम बनकर ही रह जाएंगे... लोग माता-पिता, भाई-बहन के प्यार को तरस जाएंगे...

    लगता है- नाजायज़ रिश्तों का समर्थन करना 'आधुनिक' होने का सबूत हो गया है...

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  55. रश्मि जी,
    न आपका तर्क जमा, न उदाहरण।
    मेरे मन में सबसे बड़ा उदाहरण धर्मेन्द्र हेमा है, अज़हर - बिजलानी है, किरण - आमीर है।
    ये मन मिलने के लिए किसी स्वप्न सुन्दरी को उस जमाने में एक व्याहता ही मिला था??

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  56. @ मनोज जी,
    ऐसा लगेगा कि मैं 'हेमा मालिनी ' को सपोर्ट कर रही हूँ...पर अगर फ़िल्मी गॉसिप से ना हिचकें :) तो कह सकते हैं...और कौन था..'.perspective groom '??..जितेन्द्र..संजीव कुमार ...और कुछ मोटे-बदसूरत प्रोड्यूसर डायरेक्टर. जिनके साथ हेमा मालिनी का रोज मिलना-जुलना होता हो.
    धर्मेन्द्र-हेमा कई फिल्मे भी साथ कर रहे थे.
    हाल में हेमा मालिनी "indian idol के सेट पर आई थीं....और एक कंटेस्टेंट के पूछने पर कि "अपनी गर्लफ्रेंड' को कैसे इम्प्रेस करूँ?
    हेमा मालिनी ने कहा.." ये तुम्हे धरम जी से सीखना चाहिए " अब और क्या कहा जा सकता है. वही सारे तर्क दिए जा सकते हैं.
    जबकि धर्मेन्द्र को अपने बच्चों की माँ "प्रकाश कौर' का खयाल करना चाहिए था. उनके संघर्ष के दिनों की साथी वही थीं.

    अज़हर- संगीता बिजलानी के लिए भी कह जा सकता है कि अजहर को कोई 'आर्म कैंडी ' चाहिए होगी. जो उनके साथ पार्टी में जा सके. उनके साथ टूर पर जा सके. उनके दो बेटों की माँ तो घर संभालती होगी,ना तब.

    किरण-आमिर के साथ भी वही तर्क हैं...कि किरण राव को तो आमिर का स्टेटस किसी भगवान की तरह ही लगा होगा और इस hero worship से आमिर इतने मुग्ध हो गए कि घर वालों का विरोध कर बनाई जीवन-संगिनी 'रीना' को भी भूल गए.

    हर दिल अज़ीज़ "जावेद अख्तर' का नाम मैं कैसे भूल गयी और अपने धर्मवीर भारती :)

    (मुझे ऐसा लगता है....पर सबके अपने विचार,अपने तर्क होंगे )

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  57. @फिरदौस,
    अगर लोग बाहर प्रेम तलाशने की बजाय घर में ही प्रेम तलाशें तो उनकी ज़िन्दगी इतनी ख़ुशहाल हो जाए कि किसी को भी उससे ईर्ष्या हो..

    मुझे भी ऐसा ही लगता है...नैसर्गिक आकर्षण की बात अपनी जगह ठीक है. पर जब हम समाज में रहते है. अनुशासन का पालन तो करते ही हैं. रोज किसी सुन्दर से घर के सामने से गुजरते हैं. वो घर कितना ही अच्छा लगे, हम उस घर में तो नहीं जाते. अपने घर ही आते हैं,चाहे वो जैसा भी हो.

    पार्किंग में मर्सिडीज़ ही क्यूँ ना खड़ी हो...उसे कितना भी निहार लें...पर अगर अपनी गाड़ी मारुती 800 है. तो वहीँ जाएँगे. फिर 'एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर' के वक्त , मन को लगाम क्यूँ नहीं दे सकते?? ऐसा नहीं कि पुरुष/स्त्री जिसने भी घर तोड़ने की पहल की हो,उसे दुख ना होता हो. फिर भी...वे मजबूर क्यूँ हो जाते हैं.

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  58. सराहनीय प्रस्तुति.आपकी पूरी पोस्ट और सारे कमेन्ट पढ़े. बहुत अच्छी चर्चा लगी. अब ये बात अलग है की सबकी अपनी अपनी दलीलें हैं.

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  59. रश्मी जी एक सुंदर लेख। सत्य ही मध्यम वर्ग इस बुराई से बहुत हद तक दूर है, शुक्र है हमारी वर्जनाएं रूढियां कुछ तो बेहतर भी करने मे समर्थ हैं, इसमे आर्थिक स्थितियों का कुछ योगदान है ऐसा मुझे नही लगता। हाँ यह जरूर है कि आर्थिक असुरक्षा एक ऐसी महत्वपूर्ण तथ्य है जिसके चलते महिलाएं (मध्य वर्ग) अपने पति को बर्दाश्त करती रहती हैं। दूसरा कारण जितना आसानी से पुरुष।

    अब रही बात आपकी बाई की, क्यों नही छोड देती वो अपने पति को, उसके कई कारण हो सकते हैं - १. उसने अपना सर्वस्व उस घर को बनाने मे झोंका होता है, और इस घर को बनाने का मतलब चार दीवारों से नहीं है, अपितु उसके परिजनों से भी है। उसके अपने सपने होंगे, उस घर और घर मे रहने वालों को लेकर। २. उन सपनों को लेकर वो इतनी मोह ग्रस्त हो सकती है कि वो मरते दम तक (शायद) अपने पति के सुधरने की अपेक्षा करेगी। ३. उसका अपने बच्चों के भविष्य के प्रति सोच - अगर उसको ऐसा विश्वास हो कि दूसरा उसके (वर्तमान) बच्चों के लिए बेहतर पिता सिद्ध हो सकता है तो शायद वो कुछ सोचे।

    धनाढ्य वर्ग एवं निम्न वर्ग मे पुरुषों का स्त्रीयों से एकांत मे मिलने की संभावनाएं मध्यम वर्ग के मुकाबले कहीं अधिक होती हैं (यद्यपि यह अब बदल रहा है) जिससे कि इस प्रकार के संबंधों की भ्रूण हत्या हो जाती है। आखिर अपनी भावनाएं प्रकट करने के लिए समुचित माहौल भी तो चाहिए।

    इस प्रकार के संबधों के लिए पुरुषों के द्वारा अधिक लालायित होने के कारण है उनका अपने बालकों के प्रति वैसा लगाव न होना जैसा स्त्रियां रखती हैं (फिरदौस बहन आप भी सही है पर पुरुषों के उदाहरण ज्यादा होते हैं), आखिर ९ माह अपने शरीर का अंग बना कर रखती हैं वो। दूसरी बात आपने बिल्कुल सही कही - मर्द समझ चुके होते हैं कि बालिकाओं को कैसे रिझाया जाए। और कच्ची उम्र की लडकियां झांसे मे आ जाती हैं (मेरे एक मित्र की भतीजी बताती है कि उसके कक्षा मे कई लडकियों के boyfriend हैं वो कक्षा ८ की है, और सभी boyfriend शादीशुदा), ऐसे गलीच हरकत करते हुए शर्म भी नही आती इन्हे।

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  60. The blog is still there. Here is the link.
    http://benamee.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html

    I'm now a silent observer. Just reading good articles in Hindi blogs. The decision to stop writing anonymous blog was my own since people started guessing and taking names of Hindi bloggers to link with the Benamee. I never wanted that some decent lady or gents blogger should be 'blamed' for being 'pardanashin'.
    Just compare the discussion here with the discussion on that blog. You'll feel the qualitative difference. That is beauty of positive anonymous writing.
    Anyway, I don't wish to be in futile discussion. ..Happy that there are many Hindi bloggers who have quality in their writing...N'joying that.

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  61. Ohh! Benami ji...so you r still around.....glad to know that...bt its really sad that you r compelled to b a silent observer....but u hv ur reasons....we should respect that.

    Still I think , you can put ur views in...occasional comments...everyone will b benefited by ur pearl of wisdom :)
    thanx for the link... wud love to go through it once again...thanx allot.

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  62. विवाहेत्तर सम्बन्ध ?

    स्त्री पुरुष आकर्षण / प्रेम क्या पूर्वनियोजित होता है ?

    लैंगिक संबंधों में एकत्व और अनेकत्व के मानदंड सामाजिक धारणा हैं जोकि समाज वर्सेस समाज में भिन्न हो सकते हैं किन्तु शारीरिक आकर्षण प्रकृति समर्थित है ऐसे में वर्ग भेद कैसा ?

    क्या प्रेम, वर्ग/जाति/परिवार/धर्म/भाषा वगैरह वगैरह की बंदिशों के अधीन/नियंत्रित है या ऐसा होने की अपेक्षा मात्र है ?

    ...इसलिए लगता ये है कि आपका आलेख एक सहचर की सामजिक मान्यता वाले समाज में बहु सहचर के विकल्प को आघात मान कर लिखा गया है ! क्योंकि एकाधिक सहचर होने से स्त्री या पुरुष अपने जोड़े के साथ दैहिक /प्रेम समर्पण /विश्वास /आर्थिक /सामजिक आदि आदि मुद्दों में सम्यक न्याय नहीं कर सकते ! वर्ना ...

    यदि प्राकृतिक तौर पर आकर्षण हो तो सामाजिक निषेध के बावजूद एकाधिक का विकल्प तो दोनों पक्षों के लिए खुला ही है ना !

    ये बात ज़रूर है कि अब तक इस विकल्प का दुरूपयोग पुरुष के पक्ष में ही झुका दिखाई देता है ? कारण शायद सोशल कंडीशनिंग के प्रति अनुदार रवैय्या और आर्थिक सक्षमता जैसे हो सकते है ! मेरे ख्याल से स्त्रियों की आर्थिक सक्षमता /सशक्तिकरण और सोशल कंडीशनिंग को ईश्वरीय सत्य मानने से इन्कार भी ,इस मसले पर स्त्रियों का पक्ष मजबूत कर सकेंगे !

    आज की तारीख में 'काम नियमन अथारिटी' के रूप में वैवाहिक संस्थाओं के रूपरंग विविध तो हैं ही , पर इन्हें समय के साथ बदलते / अपडेटेड होते रहना होगा अन्यथा ये संस्थायें स्वयमेव डिस्कार्ड हो जायेंगी !

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  63. दोबारा आ गई. असल में इस बीच आई त कई बार हूं, लेकिन टिप्पणी करने दोबारा आ गई.
    रश्मि, इसके पहले भी मैं टिप्पणी कर चुकी हूं, लेकिन सच कहूं तो वो एक सर्वमान्य टिप्पणी थी. मेरे भीतर का सच, या इस विषय पर मेरी जो वस्तुत: सोच है, वो नहीं है. मेरे अपने विचार अभी भी मेरे पास ही सुरक्षित हैं, जो विवाहेत्तर सम्बन्धों को अवैध घोषित नहीं करते. असल में विवाहेत्तर सम्बन्ध केवल दैहिक सम्बन्ध नहीं होते. ये मानसिक सम्बन्ध भी होते हैं, जो बहुत खूबसूरत भी हो सकते हैं. ऐसे मानसिक रिश्ते जिनसे दोनों परिवार प्रभावित न हो रहे हों, नुक्सानदेह नहीं होते.बात अभी भी पूरी नहीं हुई मेरी.
    तुम्हारी पोस्ट का सीक्वेल लिख डालूं? एक्सटेंशन?
    रचना जी से क्षमा प्रार्थना सहित, वरिष्ठ हैं इसलिये-
    उन्होंने लिखा-
    "विवाह के बाद सम्बन्ध अगर कोई बनाता हैं तो नैतिक ज़िम्मेदारी केवल और केवल उस व्यक्ति की हैं ना की उसकी जिस से वो सम्बन्ध बनाता हैं { पुरुष /स्त्री दोनों } अगर एक विवाहित किसी अविवाहित से सम्बन्ध बना रहा हैं तो इस मे अविवाहित की कोई गलती नहीं हैं क्युकी वो अविवाहित हैं और अपना साथी खोज रहा हैं।"
    रचना जी, ज़िम्मेदारी केवल एक पक्ष पर कैसे डाल सकतीं हैं आप? जो सम्बन्ध बना रहा है वो दोषी और जो बनाने दे रहा वो? वो निर्दोष है? आप महिला हैं, खुद जानती होंगीं, कि पुरुषों की क्या मजाल, जो महिलाओं की सहमति के बिना एक कदम भी आगे बढा सकें?
    दोनों ही बराबरी के दोषी हैं, यदि वे अवैध दैहिक या मनसिक सम्बन्ध बना रहे हैं तो. अविवाहित अपना साथी खोज रहा है, तो उसे ये बात समझ में नहीं आती कि अगला विवाहित है?
    आपसी समझ और विचारों के साम्य द्वारा पैदा मानसिक रिश्ता जहां आपको सुकून से भर सकता है, वहीं दैहिक रिश्ते आपको अपराध बोध से भर सकते हैं, भरते ही हैं. प्रेम और आकर्षण में बहुत अन्तर है, इसे फिलहाल यहां विस्तार देने की गुन्जाइश नहीं है.

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  64. @वंदना अवस्थी दुबे

    तुम्हारी पोस्ट का सीक्वेल लिख डालूं? एक्सटेंशन?

    ऑफ कोर्स, वंदना....यह भी कोई कहने की बात है...बिलकुल लिख डालो ( तुम्हारी एक पोस्ट ड्यू भी है,कब से )
    "प्लेटोनिक रिश्ते" पर कुछ.....

    जवाब देंहटाएं
  65. @ अली जी,
    आज की तारीख में 'काम नियमन अथारिटी' के रूप में वैवाहिक संस्थाओं के रूपरंग विविध तो हैं ही , पर इन्हें समय के साथ बदलते / अपडेटेड होते रहना होगा अन्यथा ये संस्थायें स्वयमेव डिस्कार्ड हो जायेंगी !

    समय के साथ बदलते/अपडेटेड ....कैसे होंगे..?? विवाहेतर सम्बन्ध को स्वीकार कर...या उसकी अनुमति देकर...या सहभागी बन कर?

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  66. रश्मि जी आपके इस पोस्ट पर देर से आया .. सो कहने कुछ बचा नहीं... बस कहूँगा कि कोई भी तबका बचा नहीं है इस से... फिर भी ढेर सारे प्रतिबद्ध लोग हैं अपने समाज में.. किसी ने इस ओर दृष्टि नहीं डाली कि.. विवाहोत्तर सम्बन्ध उस समाज में अधिक है जहाँ सामाजिकता का आभाव है...

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  67. उच्च घरों में , निम्न घरों में इसे देखना आसान है, पर एक मध्यमवर्गीय परिवार इससे
    अछूता है ... कैसे कह सकते हैं?
    संबंध कभी एकतरफा नहीं चल सकते ... यह संबंध एक ऐसा संबंध है , जहाँ पूरी तरह से
    कोई भी बाहरी निर्णायक नहीं हो सकता ! कमरे के भीतर के सत्य और बाहर के सत्य में ज़मीन आसमान
    सा फर्क होता है , जहाँ संबंध क्षितिज की तरह ही होते हैं !
    कई जगह स्त्री समझौता करती है (अधिकतर), कई जगह पुरुष(यूँ आज के परिवेश में उनकी संख्या भी कम
    नहीं)...मेरे ख्याल से समझौते की एक हद होती है , गलत राह अख्तियार करना जितना गलत है, उतना ही गलत
    है संबंधों को ढोना ! ज़िन्दगी जीने के लिए होती है, घुट घुटकर मरने के लिए नहीं ... कोई उपलब्धि नहीं होती,
    न समाज से , न बच्चों से ... बच्चे भी कई बार इन ढोते रिश्तों में बेपरवाह हो जाते हैं , क्योंकि खामियाजा वे भी
    चुकाते हैं ! कहीं कोई समाज नहीं साथ देता , न परिवार ... सही का निर्णय अपने हाथों होता है . आप मरें या जियें -
    दुनिया को क्या मतलब !

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  68. बहुत क्लिष्ट है यह विषय. सबके अपने अपने तर्क हैं अपने अपने संदर्भों व अपनी अपनी पृष्ठभूमि में.

    जवाब देंहटाएं
  69. @ बदलाव के स्वरुप की घोषणा करने वाला मैं कौन होता हूं ? फिर भी ...

    अग्नि को साक्षी मानकर / कमिटमेंट देकर या फिर निकाहनामें में दस्तखत करके भी कोई बन्दा अगर एक सहचर पर सीमित नहीं रह जाता तो निश्चय ही इसे संस्था की असफलता माना जाएगा और अगर समाज में बड़ी संख्या लोग ऐसा कर रहे हों तो विश्वास कीजिये , संस्था का 'मान' एक प्रतीक /एक टोकन जैसा ही माना जा सकेगा ! संभव है स्त्रियाँ अपने सहचर जैसा दुस्साहस ना कर सकें तो फिर विवाह नाम की संस्था में न्यायिक एलीमेंटस /अनुबंध / शर्तें जोड़े जाना सामाजिकता से अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है ,जिसमें दोनों पक्षों के उत्तरदायित्व का निर्धारण सुस्पष्ट हो तथा निराकरण की 'त्वरा' भी ! इस छोटे से संकेत को अपडेट होने के उदाहरण बतौर स्वीकार किया जाए ,यद्यपि विकल्प समाज को स्वयं ही खोजने होंगे !

    आप चाहे या ना चाहें बदलाव तो होके रहेंगे उन्हें मनुष्यों की ज़रूरतों के अनुरूप होना ही होगा वर्ना संस्था के कारगर ना रह गए प्रतीकों को चिपटाए समस्या का रोना रोते रहिये !

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  70. @ अली जी,
    समय के साथ जो भी बदलाव होंगे.....सब उसके साक्षी होंगे. परन्तु तब तक तो सचमुच काफी दुखी ह्रदय अपने सहचर के 'इस व्यवहार' से रो ही रहे हैं.

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  71. रचना जी के कमेंट्स....जो मेल से मिले ...वे टिप्पणी पोस्ट नहीं कर पा रहीं.

    अविवाहित अपना साथी खोज रहा है, तो उसे ये बात समझ में नहीं आती कि अगला विवाहित है?

    प्रिय वंदना
    बहस मे वरिष्ठ और कनिष्ठ बेकार की बात हैं ।
    अब मुद्दे पर आते हैं
    एक अविवाहित स्त्री या पुरुष के क़ानूनी अधिकार / संवैधानिक अधिकार क्या हैं । क्या उन मे से किसी भी अधिकार मे ये कहा गया हैं की उनको अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं हैं । या की उनको किसी विवाहित को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं हैं ।
    हां एक विवाहित को अवश्य ये अधिकार कानूनन और संवैधानिक रूप से नहीं हैं की वो जब तक विवाहित हैं दूसरे से सम्बन्ध विवाह के लिये बनाए ।

    हम हमेशा नैतिकता , समाज के नियम की ही बात करते हैं जबकि बात अगर हमेशा क़ानूनी / संवैधानिक होगी तो उसको सुलझाने मे आसानी होगी ।

    समाज के नियम , कौन से नियम ?? वो जो इतने खोखले हैं की अगर एक विवाहित पुरुष या स्त्री विवाहित होते हुए भी अगर दूसरी जगह सम्बन्ध बनाता हैं { दैहिक / मानसिक } तो समाज उसको गलती का नाम दे देता हैं और वही अगर एक अविवाहित स्त्री / पुरुष किसी विवाहित से सम्बन्ध महज इस लिये बनाता हैं की आगे चल कर उसको उस से विवाह करना हैं तो उसको समाज घर को तोडने वाला / वाली कहता हैं ।
    {ध्यान दे की मै उस सम्बन्ध की बात नहीं कर रही जहां एक अविवाहित स्त्री या पुरुष किसी विवाहित या अविवाहित से मात्र देह की तुष्टि के लिये संबध बनाता हैं वैसे वहाँ भी मै इसको उनका मामला कहूँगी जब तक उस मामले से किसी का नुक्सान नहीं होता , लेकिन मै इसको गलत कहती हूँ }

    जवाब देंहटाएं
  72. रचना जी के कमेंट्स...जारी
    समाज के नियम किसने बनाये और किसने माने और किसने तोड़े से हमेशा बेहतर हैं की हम कानून और संविधान से मिले अपने अधिकारों को जाने । अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाता हैं और कहीं दूसरी जगह भी { किसी भी तरह का स्त्री , वेश्या , कॉल गर्ल या सम लैगिक } सम्बन्ध बनाता हैं तो पत्नी को कानून उस से अलग होना चाहिये । ये आदत हैं और इसको माफ़ करके आप इसको बदल नहीं सकते । पत्नी को अपने क़ानूनी अधिकारों का ज्ञान करवाए ताकि पत्नियों को ये पता हो की अगर लिव इन रिलेशनशिप लम्बा चलता हैं तो कानून मै अब शीघ्र ही उस महिला को भी पत्नी का दर्जा मिलेगा जिस को आज तक सब विवाहित महिला "दूसरी औरत " कह कर अलग हो जाती हैं ।
    एक पत्नी की गलतियां क्या हैं अगर पति बहार दैहिक सम्बन्ध बनाता हैं ?? कुछ तो होगी उन गलतियों पर कभी कोई लंबा आलेख कहीं पढने को नहीं मिलता किसी भी विवाहित महिला का { कृपा कर कोई भी इसको पर्सनल ना ले } जब भी मिलता हैं हमेशा यही मिलता हैं पति को फंसा लिया !!!! कोई दूसरी आप के पति को फसा सकती हैं आप क्यूँ नहीं अपने पति कोई फंसा कर रख सकती हैं और अगर नहीं रख सकती तो आज़ाद क्यूँ नहीं कर सकती ।

    पति हमेशा आप के लिये एक सामाजिक सुरक्षा कवः क्यूँ होता हैं । आप उसके बिना { अगर वो कहीं फंसा हैं तो } जीवन क्यूँ नहीं जी सकती । आप अपने को इतना सशक्त क्यूँ नहीं कर सकती की कोई आप को छोड़ कर चला जाए तो समाज मै आप की इज्ज़त पर खतरा ना हो । आप को छोड़ी हुई , तलाक शुदा या अविवाहित कहना क्यूँ खलता हैं


    यहाँ आप का अर्थ पर्सनल नहीं हैं महज सिम्बोलिक हैं उन पत्नियों के लिये जो पति की गलती को माफ़ कर के दूसरी को कोसती हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  73. रचना जी,
    आपकी टिप्पणी वंदना को मुखातिब है...पर कुछ मैं भी कहना चाहूंगी.

    कौन सी पत्नी, उस पति के साथ रहना चाहेगी....,जिसके सम्बन्ध कहीं और हों. पर उनकी मजबूरियाँ होती हैं. वे आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं,पति पर. और खुद अपने लिए रोटी और छत का इंतज़ाम कर भी लें...पर बच्चों को लेकर कहाँ जाएँ? उनके भविष्य का सोच ही एक पत्नी चुपचाप सब सहने को मजबूर होती है. कानून ने उन्हें सुरक्षा जरूर दी है पर कहाँ रहकर वे केस लड़ेंगी...केस करने में कौन उनका साथ देगा? माता-पिता तो सब सहने कि ही सलाह देते हैं.

    कहना आसान है कि अलग क्यूँ नही हो जाती....पर व्यावहारिक रूप में इसे परिणत करना उतना ही मुश्किल है.

    और ये कहना कि "एक पत्नी की गलतियां क्या हैं अगर पति बहार दैहिक सम्बन्ध बनाता हैं ?? कुछ तो होगी उन गलतियों पर कभी कोई लंबा आलेख कहीं पढने को नहीं मिलता"

    क्या हो सकती हैं उनकी गलतियाँ??....कि अब वो उतनी सुन्दर नहीं रही....उतनी युवा नहीं रही...चौबीस घंटे पति के आगे-पीछे नहीं घूम सकती. ....ridiculous

    जवाब देंहटाएं
  74. प्रिय रचना जी,
    १)पहले बात कानून की, तो सारे रिश्ते कानून के आधार पर नहीं बनाये जा सकते. क्या प्रेम भी संविधान के अनुसार किया जाता है? अपना साथी चुनने की आज़ादी प्रेमियों के मसले में क्यों लागू नहीं होती? क्यों परिवार वाले प्रेम के बीच में आड़े आते हैं? अगर सब संविधान के मुताबिक होता, तो महान प्रेमियों को जान न गंवानी पड़ती. अब यदि किसी विवाहित स्त्री/पुरुष को कोई अच्छा लगने ही लगे, तो वो उसे पसंद करने से पहले कानून में अपने अधिकार नहीं खोजेगा.
    २) अब समाज की बात, तो समाज पहले बना, क़ानून बाद में, इसीलिये हर बात में समाज का पहले ख़याल रखा जाता है. मनुष्य भी एक सामाजिक प्राणी है, समाज की चिंता करना उसका दायित्व है. ऐसा कहने के पीछे मेरी ये बिलकुल मंशा नहीं है कि सही बात पर भी समाज की चिन्ता की जाये. कोई भी बात समाज तक पहले पहुँचती है, क़ानून तक बहुत बाद में.

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  75. ३) रचना जी, एक विवाहित पुरुष यदि किसी महिला से अवैध सम्बन्ध रखता है तो इसे हम और आप भी ग़लत ही कहेंगे. सप्रिय रचना जी,
    १)पहले बात कानून की, तो सारे रिश्ते कानून के आधार पर नहीं बनाये जा सकते. क्या प्रेम भी संविधान के अनुसार किया जाता है? अपना साथी चुनने की आज़ादी प्रेमियों के मसले में क्यों लागू नहीं होती? क्यों परिवार वाले प्रेम के बीच में आड़े आते हैं? अगर सब संविधान के मुताबिक होता, तो महान प्रेमियों को जान न गंवानी पड़ती. अब यदि किसी विवाहित स्त्री/पुरुष को कोई अच्छा लगने ही लगे, तो वो उसे पसंद करने से पहले कानून में अपने अधिकार नहीं खोजेगा

    ४) आपने कहा कि यदि कोई पुरुष कहीं और सम्बन्ध बनाता है तो पत्नी को अलग हो जाना चाहिये.
    क्या ये इतना आसान है? कितनी महिलायें हैं, जो आर्थिक रूप से स्वतन्त्र हैं? उस परेशान पत्नी की पति में भले ही दिलचस्पी न रह जाये, लेकिन बच्चे तो उसी के हैं न? बच्चों के चलते पत्नी का घर छोड़ना आसान नहीं होता. घर छोड़ने से पहले उसे रहने-खाने का इन्तज़ाम करना होगा. कानून ये ज़िम्मेदारी उठायेगा? पति से मिलने वाली एक तयशुदा रक़म दिलाने से ज़्यादा कानून और क्या कर सकता है? हाँ मामला हद से बाहर हो तो क़ानून की मदद लेनी ही चाहिए.
    जारी..

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  76. ५) पत्नी की गलती....होती है, कई बार. लेकिन क्या पति गलतियाँ नहीं करता? ऐसे में पत्नी भी बाहर रिश्ते बनाये? परिवार का क्या होगा तब? यदि शादी हो गई है, तो दूसरी स्त्री से दैहिक सम्बन्ध होने की गुन्जाइश होनी ही नहीं चाहिये. और पति को फंसा के रखना.......रचना जी, पति-पत्नी तो शादी के समय ही बंध जाते हैं. दूसरी महिलायें, ये जानते हुए कि पुरुष शादीशुदा है, यदि सम्बन्ध बनाती हैं, तो निश्चित रूप से फंसाने का काम करती हैं. ये रिश्ता मानसिक हो, तो समझ में आता है, लेकिन दैहिक हो, तो समझ में नहीं आता. पति को आज़ाद करने का मतलब? खुद आज़ाद होना न? मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि ये महिलाओं के लिए बहुत आसान नहीं है. आर्थिक परावलम्बता उनके आड़े आती है.
    जारी..

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  77. ६) अब फिर वही बात. पति सामजिक सुरक्षा कवच नहीं है. पति-पत्नी का रिश्ता भी आपसी प्रेम और विश्वास पर ही टिका होता है. एक ऐसी पत्नी, जिसका अपना कोई सामजिक दायरा नहीं है, वह पारिवारिक समारोहों में ही शिरकत करती है, जहाँ पति उसके साथ होता ही है. ऐसी पत्नियाँ वही होतीं हैं जिनका आर्थिक आधार पति ही होता है. पत्नी अकेले जीवन जी सकती है, जी रहीं हैं पता नहीं कितनी. जो आर्थिक रूप से सक्षम महिलायें हैं, वे पति को छोड़ने में ज्यादा वक्त भी नहीं लगातीं, यदि पति कहीं और इन्वॉल्व है तो.
    पहली शर्त आर्थिक आज़ादी है. आत्मनिर्भरता ही आत्मविश्वास लाती है रचना जी. उसके बिना अकेले रहना तो दूर कि बात, सोचना भी मुश्किल होगा.
    ७) पत्नी यदि पति को माफ़ कर रही है, तो उसे उस महिला को भी माफ़ करना ही होगा. क्योंकि ऐसे संबंधों में कोई एक दोषी नहीं होता, बल्कि दोनों का दोष बराबर होता है.

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  78. पहली शर्त आर्थिक आज़ादी है. आत्मनिर्भरता ही आत्मविश्वास लाती है रचना जी. उसके बिना अकेले रहना तो दूर कि बात, सोचना भी मुश्किल होगा.

    exactly that is why its important that we give equal opportunity to woman and that the society should not think that the ultimate aim of the woman should be "to get married and give birth "
    we should stop giving tags ike second woman , second man , divorcee , etc and try to implement the law which as you say came after the society was formed

    why are laws made , to protect but we never go by laws we try to give a free hand to moral laws which are always tilted in favor of one

    lets not feel the "being a wife is an honor or ordeal " its merely a role in life that you "chose " to perform and if you say you did not "choose " then its an irony that you dont even have the right / ability to chose your life partner '

    blaming someone elses for our own faliur to perform the duties of the wife correctly is not going to lead any married lady any where

    cont

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  79. If a man can proclaim that he is handsome even when above 50 how can a woman feel she has become old when they are husband and wife

    in indian society the age of wife is always less then man and yet in most homes the wifes dont bother to even check how they look and the age of 50

    what stops any one from looking good ??
    dont saychild bearing makes the differnce it does not or else you own quoted example of hema is for all to see

    itss the attitude towards life

    जवाब देंहटाएं
  80. कहना आसान है कि अलग क्यूँ नही हो जाती....पर व्यावहारिक रूप में इसे परिणत करना उतना ही मुश्किल है.

    somewhere rashmi one has to start and find a way out
    i know woman who are economically independent and still tolerate the flings of their husband because they want to " KEEP A GOOD IMAGE IN SOCIETY"
    promiscuty is wrong and one has to fight it

    we cant alwsy blame parents for everything because for parents the child is a responsibilty and with girl it ends the moment she is married

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  81. http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2008/07/blog-post_10.html
    ek behas yahaan bhi hui thee jinko interst ho daekh saktey haen

    saadar

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  82. अपने तीसरे नम्बर के बिन्दु को एक बार फिर पोस्ट कर रही हूं, ये कल पूरी तरह पोस्ट नहीं हो सका-
    " ३) रचना जी, एक विवाहित पुरुष यदि किसी महिला से अवैध सम्बन्ध रखता है तो इसे हम और आप भी ग़लत ही कहेंगे. समाज किसी चिड़िया का नाम तो है नहीं, हम और आप से ही मिल के बना है. और हां, ऐसे पुरुष को ग़लत, और महिला को घर तोड़ने वाली ही कहा जायेगा, घर पुरुष भी तोड़ता ही है, लेकिन घर जोड़ने वाली तो महिला को कहा गया है न? तो तोड़ने की
    ज़िम्मेदारी उसे लेनी ही होगी. आज भी जितने घर इन मामलों से बचे हुए हैं, जहां ऐसे प्रकरण हुए, वे भी समाज
    के डर से ही बचे हैं लोग क्या कहेंगे, ये डर लोगों को पूमी तरह बिगड़ने नहीं देता, वरना कानून ने तो तलाक़ और पुनर्विवाह केव्यवस्था दी ही है."

    जवाब देंहटाएं
  83. @रचना जी
    its always easier said than done. Its easy for us to say that they should not do this....they should have done that but we are not in their shoes...and we can only imagine...have not experienced the pain and miseries which they must have gone through.

    For everyone's benefit will write in Hindi

    हर शादी में बच्चे जरूर इन्वॉल्व होते हैं .और जैसा आपने कहा ," KEEP A GOOD IMAGE IN SOCIETY" से ज्यादा एक माँ को अपने बच्चे की फ़िक्र होती है. कई बार वो आर्थिक रूप से सबल होकर भी एक सीमा तक सब कुछ सिर्फ अपने बच्चे के लिए सहन करती रहती है और भरसक प्रयत्न करती है कि बच्चे किसी भी मानसिक यातना से दूर रहें.
    एक माँ, सिर्फ अपना स्वार्थ नहीं देखती. और इसमें मुझे कुछ भी गलत नहीं लगता, जब आप बच्चे को इस दुनिया में लाए हैं तो उन्हें अपनी कोशिश भर खुशहाल वातावरण देना आपका फ़र्ज़ है. कहा जा सकता है, बच्चे अकेले उसके तो नहीं? लेकिन अगर पुरुष अपने स्वार्थवश उनका हित नहीं देखता तो क्या माँ भी उनकी फ़िक्र छोड़,सिर्फ अपनी मानसिक शान्ति और सुख देखे?

    और मैं आपके इस कथन से जरा भी इत्तफाक नहीं रखती
    with girl it ends the moment she is married ...अगर बेटी मुसीबत में है...उसे सहारा चाहिए तो पैरेंट्स का ये फ़र्ज़ है कि उसकी सहायता करें. मगर अफ़सोस ज्यादातर पैरेंट्स आपकी तरह ही सोचते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  84. @रचना जी,
    यहाँ औरत के महसूस करने की बात नहीं है कि वह खुद को सुन्दर नहीं समझती. आपने जब कहा कि एक पत्नी की गलतियां क्या हैं अगर पति बहार दैहिक सम्बन्ध बनाता हैं ?? कुछ तो होगी उन गलतियों..."

    इस पर मैने कहा कि पति अगर उस से कम उम्र की अविवाहित लड़की की तरफ आकृष्ट हो जाता है तो उसमे उसकी क्या गलती हो गयी.??

    ये सही है, महिलाएँ एक उम्र के बाद सजने संवारने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखतीं. पर अपने पति को बाँध कर रखने के लिए उन्हें सजना संवारना चाहिए. its disgusting to even think of it...महिलाओं को खुद के संतोष के लिए अपनी देख-रेख करनी चाहिए just to feel good ,happy and healthy.

    मैने अपनी पोस्ट में ही स्पष्ट कर दिया है कि पुरुष अपनी तारीफ़ सुनने, undivided attention पाने अपने ego massage , अपने लिए hero worship जैसी भावना की वजह से दूसरी लड़कियों के प्रति आकृष्ट होता है.

    अगर विवाहेतर सम्बन्ध स्त्री या पुरुष बनाते हैं तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ वे ही दोषी हैं, ना कि उनके पति या पत्नी कि उसने ध्यान नहीं रखा...इसलिए वो कहीं और आकृष्ट हो गए...ये सब सिर्फ excuses हैं.

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  85. we cant alwsy blame parents for everything because for parents the child is a responsibilty and with girl it ends the moment she is married
    rashmi
    yae meri soch nahin haen yae society ki soch haen ki beti kae prati utardaitv shadi tak hotaa haen

    aap ne isko meri soch kehaa mae usko sudharna chatee hun

    shadi ko ladki ki niyati mannaa galat haen mae hamesha is ki pakshadhar hun

    aur mae bhi yahii keh rahee hun kisi par ungli uthana aasan haen par uski paristhitiyon ko samjhna mushkil

    jo married haen unkae daitv aur unkae jeevan kae lakshya farak haen unsae jo avivahit haen

    ham har baar naetiktaa ki baat kartey jo ek tarfa hotee haen kyuki ham sab sikkae kaa ek pehlu daekhna chahtey haen

    celebrity ki zindgi open book haen aap aur ham discuss kar saktey haen lekin jahaan apni / apno ki baat aatee haen ham discuss nahin karnaa chahtey

    par purush aur par stri kaa concept bahut aasan haen agar isko daehik shuchita sae naa jodaa jaaye
    lekin yae samay desh aur kaal sae bhinn haen

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  86. अगर विवाहेतर सम्बन्ध स्त्री या पुरुष बनाते हैं तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ वे ही दोषी हैं, ना कि उनके पति या पत्नी कि उसने ध्यान नहीं रखा...इसलिए वो कहीं और आकृष्ट हो गए...ये सब सिर्फ excuses हैं.

    iski sajaa kyaa dee jaatee haen purush ko

    on the contrary the wife blames outside sources for the cracks in their married life

    the problem is that we want the system of marriage to be fool proof arrangement which its is not

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  87. ये सही है, महिलाएँ एक उम्र के बाद सजने संवारने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखतीं. पर अपने पति को बाँध कर रखने के लिए उन्हें सजना संवारना चाहिए. its disgusting to even think of it...


    rashmi
    i can say yaa allaha
    why should it be so disgusting to get dressed and be attractive for ones husband .
    why should one not knowing that man who happens to be a husband is also a man .

    how can one be true life partner without understanding in depth needs and desires of the life partner

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  88. ये समस्या हर वर्ग की है. बहुत ही शोधपूर्ण आलेख

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  89. @रचना जी,
    जब यहाँ आपने ये लिखा....
    we cant alwsy blame parents for everything because for parents the child is a responsibilty and with girl it ends the moment she is married
    इसे आपकी सोच ही मानूंगी ना. मैं तो ये कभी नहीं लिख सकती...क्यूंकि मैं ऐसा नहीं समझती...
    और समाज हमसे ही तो है. कुछ और लोग होंगे,हमारी तरह सोचने वाले. बहुसंख्यक वैसा सोचते हैं...पर उनकी सोच भी शायद समय के साथ बदल जाए और वे अल्पसंख्यक रह जाएँ .

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  90. जब यहाँ आपने ये लिखा....
    we cant alwsy blame parents for everything because for parents the child is a responsibilty and with girl it ends the moment she is married
    इसे आपकी सोच ही मानूंगी ना.

    dear this is "observation " and not "thinking"

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  91. @रचना जी,
    मुझे उस motive पर ऐतराज है. सजने-संवरने की भावना से किसे इनकार है? हर स्त्री को अपना ख्याल रखना चाहिए .

    पर शादी के काफी साल बाद वो सिर्फ इसलिए सजे-संवरे कि उसका पति कहीं किसी और की तरफ आकृष्ट ना हो जाए. ये ख़याल disgusting लगा मुझे. पत्नी का इतने दिनों का साथ...उसका प्यार...उसकी देख-भाल...सुख-दुख में भागेदारी ,जिस पति को बाँध कर रखने में सक्षम नहीं...फिर उसका सजना-संवारना उसे क्या बाँध पायेगा.

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  92. चंद सवाल
    क्या कोई पुरुष यह पसंद करेगा कि उसकी पत्नी किसी और पुरुष के साथ नाजायज़ रिश्ता रखे..? क्या अपनी पत्नी के नाजायज़ रिश्तों को लेकर वो सहज रह सकता है...?

    क्या कोई पत्नी पसंद करेगी कि उसका पति किसी और महिला के साथ नाजायज़ रिश्ता रखे...? क्या अपने पति के नाजायज़ रिश्तों को लेकर वो सहज रह सकती है...?

    जब बच्चों को पता चलेगा कि उनके पिता या माता के किसी के साथ नाजायज़ रिश्ते हैं, तो क्या वे अपने माता-पिता का सम्मान कर पाएंगे..?

    अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ नाजायज़ रिश्ते रखने वाली महिला अपने बच्चों को कैसे संस्कार देगी, सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है...

    कितने ही ऐसे मामले सामने आते हैं...जब ऐसी महिलाओं के पुरुष साथी उनकी बेटियों को भी अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं... या ये महिलाएं ख़ुद ही अपनी बेटी को उनके हवाले कर देती हैं...

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  93. नाजायज़ रिश्तों की शुरुआत भले ही आकर्षण से हो, लेकिन इनका अंजाम बहुत ही घृणित होता है... कई बार तो ये रिश्ते कई लोगों की जान लेने के बाद भी जारी रहते हैं... हमारी एक दोस्त भी ऐसे ही नाजायज़ रिश्तों की भेंट चढ़ चुकी है... हमने इस पर एक पोस्ट भी लिखी थी...जिसका लिंक है-

    http://firdaus-firdaus.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html

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  94. 'मध्यम वर्गीय पुरुष, कैरियर बनाने में...सर पर एक छत की जुगाड़ में...बच्चों की उच्च -शिक्षा के प्रबंध में और फिर भविष्य सुरक्षित करने के उपायों में आपादमस्तक इतने आलिप्त रहते हैं कि उनके ह्रदय के दरवाजे पर पत्नी के सिवा कोई और मोहतरमा दस्तक नहीं दे पातीं..'.

    हा हा )किसे डिफेंड कर रही हैं? :)
    बस एक शब्द का सम्पादन -पुरुष की जगहं स्त्री, पत्नी की जगह पुरुष कर लें !

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  95. महिलाएं किसी भी हद तक झूठ बोल सकती हैं और कभी भी कुछ कर सकती हैं। उन पर विश्वास करो या न करो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर उनको लगा कि वह जो कर रही है वह सबके नजर में आ रहा है और उनको कोई लाभ भी नहीं मिल रहा तो वह किसी भी हद तक धोखा, झूठ, और इमोशनल ड्रामा करके अगले इंसान के साथ कर सकती हैं।

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  96. अगर किसी अविवाहित पुरुष का किसी विवाहित महिला से संबंध है तो इसमें कौन दोषी कहा जायेगा।

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