सोमवार, 6 दिसंबर 2010

छोटी सी ये दुनिया...पहचाने रास्ते हैं...

शिल्पी(बीच में ) JNU के अपने गैंग के साथ 
मेरी छोटी बहन 'शिल्पी' JNU से फिलॉसफी में पी.एच.डी कर रही है और 'जानकी देवी कॉलेज' में 'एड हॉक लेक्चरर' भी है...(मुझे तो समझ नहीं आता इतनी छोटी सी लड़की की बातें बाकी बच्चे कैसे सुन  लेते हैं.....ये भी तो उनमे से एक ही लगती है). शादी में JNU से उसके  कई फ्रेंड्स आए थे और शादी का सारा कार्यभार 'शिल्पी और उसके फ्रेंड्स ने ही संभाल रखा था. ये बच्चे सुबह से देर रात तक शादी की तैयारियों में व्यस्त रहते. कभी सुबह सुबह सब्जी  मंडी जा कर ढेर सारी सब्जी लाते..तो कभी फूलवाले , मिठाईवाले या फिर टेलर के पास दौड़ लगाते. इतना अच्छा लगा देख,'शुचि' (bride to be) को पार्लर लेकर उसका चौथी कक्षा में मिला दोस्त अनुज जा रहा था...आज,अनुज ड्राइव कर रहा था और दोनों मुझे वो किस्से सुना रहें थे जब स्कूल  में अनुज,उसकी बड़ी बहन नमिता,  शिल्पी और शुचि एक ही रिक्शे में स्कूल जाते थे. शुचि-नमिता एक क्लास में थे और शिल्पी -अनुज एक क्लास में. चारो आमिर खान के  फैन...उसका नया पोस्टर या ऑडियो कैसेट आते ही टूट  पड़ते...अनुज को पोहा पसंद था ,उसने पहले से ही  कह रखा था.. 'शुचि दी.. मेरे लिए जरूर बचा कर रखना" और शुचि लंच-बॉक्स में  उसके लिए बचा कर ले आती थी. दोनों याद कर रहें थे..कितने अच्छे दिन थे बस रिजल्ट के एक दिन पहले टेंशन होता...बाकी सारे समय मस्ती. लकी हैं वे लोंग..जिनकी, बचपन की दोस्ती यूँ लगातार बनी रहती है.


शिल्पी के  एक फ्रेंड सत्येन ने रंग-बिरंगे दुपट्टों को पता नहीं कैसे मोड कर बड़े ख़ूबसूरत  फूलों का रूप दिया था. और संगीत वाले दिन पूरे हॉल को उन दुपट्टों से सजाया था. मेरी भी सीखने  की तमन्ना थी पर वक्त ही नहीं मिला..वरना एक पोस्ट भी लिख देती उसपर. जब उस से ये बात कही.तो कहने लगा, "ओह! मैं एक सेलिब्रिटी बनने से चूक गया" .जो भी काम सामने दिखे उसे  ये लोंग बिना किसी का इंतज़ार किए झट से पूरा कर देते . सत्येन, अफज़ल, ललित,पवन,जावेद,अनुज  (और नाम मुझे याद नहीं आ रहें ) तुम सबो को तन और मन  से ख़ूबसूरत लड़की जीवनसंगिनी के रूप में मिलेगी ...ऐसा शाहरूख खान ने DDLJ में कहा था कि लड़की की शादी में काम करने से ख़ूबसूरत दुल्हन मिलती है :)


पवन मेराज
शादी के दो  दिन पहले शिल्पी ने बताया कि आज  उसका एक फ्रेंड आ रहा है 'पवन मेराज' वो भी एक ब्लॉगर  है. मेरी उत्सुकता जगी. पूछने पर बताया कि वह नई, आधुनिक कविताएँ लिखा करता है. पवन ने मिलते ही कहा,'हाँ मैं आपको जानता हूँ...आपका ब्लॉग देखा है' अब यह नई बात नहीं रह गयी थी.  परिचय करवाते ही एक उत्सुकता होती है, कि लोंग पूछेंगे...".कहाँ रहती हैं..क्या करती हैं?" उसके अधिकाँश फ्रेंड्स...एक लाइन में बात ख़तम कर देते,'हाँ... आपको जानते हैं' .:(. मैने पवन से यूँ ही पूछ लिया, ' अशोक कुमार पाण्डेय..और शरद कोकास का ब्लॉग पढ़ते हो?"..लगा कविताओं में रूचि है..तो उन्हें जरूर पढता होगा. और वह कहने लगा..."वे दोनों तो मेरे बड़े  भाई जैसे हैं . शरद भैया  हमेशा गाइड करते हैं. अशोक भैया से तो अक्सर  मिलना होता है. वे कदम-कदम पर मेरा मार्गदर्शन करते हैं. कोई भी बड़ा निर्णय मैं उनकी राय के बिना नहीं लेता." .पवन ब्लॉग पर ज्यादा सक्रिय नहीं है...उसकी दूसरी बहुत सारी गतिविधियाँ हैं. उस से साहित्य जगत की ही बातें होती रहीं. हाल में ही 'वसुधा' पत्रिका में उसकी एक लम्बी कविता छपी है. उसने चौदह साल की उम्र से कविताएँ लिखनी शुरू  कर दी थीं...और पवन को अपनी  सारी कविताएँ कंठस्थ हैं. उर्दू का भी उसे अच्छा ज्ञान है और एडवेंचरस भी काफी है...सेल्समैनशिप  से लेकर पत्रकारिता तक आजमा चुका है...अभी तो एक अच्छी सी नौकरी में है.


अशोक जी बिटिया वेरा के साथ
जब मैने शिल्पी को यह सब बताया  कि ' अशोक कुमार पाण्डेय अच्छे मित्र हैं..पवन उन्हें बड़े भाई की तरह मानता है' तो  शिल्पी बड़े जोर से चौंकी .."तुम अशोक भैया को कैसे जानती हो..?" (अशोक जी से मित्रता का  भी दिलचस्प किस्सा है. उन्होंने शायद कुछ सामयिक विषयों पर  मेरी टिप्पणियाँ देख मुझे "जनपक्ष' ज्वाइन करने का आमंत्रण  भेजा था. मैने 'जनपक्ष' ब्लॉग चेक किया और पाया वहाँ तो बड़े बड़े साहित्यकारों...पत्रकारों के गंभीर आलेख  थे .और मैने  अशोक जी को जबाब भेज दिया कि "वहाँ तो बड़ा गंभीर साहित्य लिखा जाता है..जबकि मैं तो बहुत हल्का-फुल्का लिखती हूँ, क्या कंट्रीब्यूट करुँगी? " अशोक जी का जबाब आया "गंभीर साहित्य  क्या होता है?" और मैने मजाक में  लिख डाला, "बोरिंग सा.." दरअसल सोचा ,'कौन से मेरे मित्र हैं...बुरा भी मान जायेंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.' पर अशोक जी ने बुरा नहीं माना और उनका दो तीन स्माईली  के साथ जबाब आया कि "गंभीर साहित्य हमेशा बोरिंग नहीं होता " और मानती हूँ इस बात को...शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने 'जनपक्ष' से परिचय करवाया और कुछ बहुत ही उत्कृष्ट आलेख पढने को मिले. ) शिल्पी  को तो बता दिया..पर अब मेरी बारी थी पूछने की कि वो कैसे जानती है,उन्हें  तो बताने लगी.."मैं तो उनके घर पर दो दिन रही भी हूँ...जब वह ग्वालियर कोई परीक्षा देने गयी थी तो अशोक जी के घर पर ही रुकी थी " (रिश्तेदारों से कई साल बाद मिलो तो कितना कुछ घट चुका होता है उनके जीवन में... कितने नए रिश्ते बन गए होते हैं...पता भी नहीं चलता )


शिल्पी, अशोक जी की ..किरण भाभी की (अशोक जी की पत्नी किरण पाण्डेय अच्छी बैडमिन्टन प्लेयर है....नेशनल लेवल पर बैडमिन्टन खेल चुकी हैं,पर तब वे 'किरण विश्वकर्मा' थीं. ) और उनकी प्यारी बिटिया 'वेरा' की छोटी सी उम्र में समझदारी भरी कई बातें बताती रही. शिल्पी ने एक रोचक बात बतायी कि वे लोंग यूँ ही चर्चा कर  रहें थे कि 'बचपन की   कौन सी हसरत बाकी है...जो अब तक नहीं की' { अगली परिचर्चा के लिए एक नया आइडिया भी मिल गया :) } शिल्पी ने कहा.."उसे 'बबल गम' से गुब्बारे बनाने नहीं आते " और वेरा ने तुरंत उसे सिखाने का बीड़ा उठा लिया..सिखाया ही नहीं...अगले दिन ताकीद की कि ढेर सारे बबल गम्स लेकर आइयेगा आपको प्रैक्टिस करानी है. :)


जब मुंबई लौट कर ये सब बातें अशोक जी को बताईं तो उनका चौंकना लाज़मी था ...अच्छा था हम चैट कर रहें थे वरना जिस तरह से वे चौंके थे अगर फोन पर बताती तो फोन उनके हाथों से गिर,अपनी  सदगति को प्राप्त हो गया होता:). उन्होंने कहा  " दुनिया कितनी छोटी है, न "..सच में दुनिया कितनी छोटी है ..और खूबसूरत  भी...फिर भी लोंग प्यार से एक-दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढाते बल्कि सामने हाथ बांधे , टेढ़ी गर्दन किए... तिरछी  नज़रों से देखते रहते हैं..{कितने ही चेहरे घूम गए नज़रों के सामने ..:) :) }

57 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा संस्मरण है...आप वाक़ई बहुत अच्छा लिखती हैं...

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  2. यही होता है अक्सर। हम जिससे मिलते हैं लगता है केवल हमीं जानते हैं उसे जबकि बातचीत जब शुरू होती है तो फिर धीरे धीरे गिरह खुलने लगती है कि अरे इन्हें तो मैं जानता हूँ, अरे उनसे तो मैं मिल चुका हूं।

    मैं भी जब मनोज मिश्र जी (मापलायनम्) से उनके घर जाकर मिला तो पता चला कि वह तो पहले से ही मेरे ससुर जी से अच्छी तरह परिचित हैं और वहां सभी एक दूसरे को जानते भी हैं।

    रोचक विवरण रहा। बढ़िया।

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  3. ओह! आज पहला हूं इसलिए पहले तो यह कहूं कि
    अगर ‘मैं तो बहुत हल्का-फुल्का लिखती हूँ’
    यह सच है, तो आप ऐसा ही लीखिए, हम तो ऐसा ही पढते हैं। जलेबीनुमा गद्य पढ़ना यूं ही बहुत मुश्किल है और उसे समझना, मुझ जैसे ज़हिल आदमी के लिए और भी दूभर है।
    आपका हलका-फुलका (आलेख) लेखन गहरे विचारों से परिपूर्ण होता है।
    इस आलेख के कई आयाम हैं, और सबको समेट कर एक दिशा में दौड़ा देना, हलके-फुलके लेखन से ही संभव है।
    आज की वस्तविकता को दर्शाता ये लेख बहुत ही सुंदर है। इस संस्मरण मे एक सच्चे, ईमानदार ब्लॉगर के मनोभावों का वर्णन है। बधाई।

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  4. चैट पे तो आपने ट्रेलर दे ही दिया था इन सब बातों का :)
    आज मूवी भी देख ली मैंने...

    मस्त लगा पोस्ट..
    .


    और अच्छा, वैसे पंकज जी का ब्लॉग भी किसी ने खोज के आपको दिया था?? वैसे वो कौन था?? :P

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  5. हा हा...सॉरी बाबा...तुम्हारा जिक्र नहीं किया...अभिषेक कुमार से मैने इल्तजा की कि जरा 'पवन मेराज' का ब्लॉग ढूंढ कर दो..और उन्होंने कुछ सेकेण्ड में ही लिंक थमा दिया..जय हो..अभी जी की...बहुत बहुत धन्यवाद आपका.:)

    पर अभी एडवांस में सारा थैंक्स ले लो..आगे भी हम, तुमसे ऐसे बहुत सारे ऐसे काम करवाने वाले हैं. :)

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  6. गूगल बज़ पर इतना शो नही हो रहा था.. अभी पूरा पढ़ा.. और भी कई चीजों का स्वाद मिल गया.. :)
    "लड़की की शादी में काम करने से ख़ूबसूरत दुल्हन मिलती है :)"
    हमारे यहाँ तो कहावत है कि तुम किसी की शादी में काम नही करोगे तो तुम्हारी में कौन करेगा.. हा हा
    और घसीट कर काम पे लगा देते हैं..
    आपकी यादों को देखते जब यहाँ तक पहुँचे तो... :(
    "सच में दुनिया कितनी छोटी है ..और खूबसूरत भी...फिर भी लोंग प्यार से एक-दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढाते बल्कि सामने हाथ बांधे , टेढ़ी गर्दन किए... तिरछी नज़रों से देखते रहते हैं..{कितने ही चेहरे घूम गए नज़रों के सामने "

    सभी को एक ही तरह की फीलिंग क्यों होती है? सच में दुनिया बहुत छोटी है..

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  7. jnu के पढैये इतने कुशल होते हैं , यह जानकार मुझे आश्चर्य मिश्रित खुशी हुई !

    अशोक भाई संदर्भी किस्से तो सटीक बन पड़े हैं , दुनिया ऐसे भी छोटी हो जाती है , अवश्यमेव !!

    अंत की पंक्ति में समोया व्यंग्य ऐसे है जैसे जाते जाते कोई टीप मार जाय ! आभार !

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  8. jnu के पढैये इतने कुशल होते हैं , यह जानकार मुझे आश्चर्य मिश्रित खुशी हुई !

    अशोक भाई संदर्भी किस्से तो सटीक बन पड़े हैं , दुनिया ऐसे भी छोटी हो जाती है , अवश्यमेव !!

    अंत की पंक्ति में समोया व्यंग्य ऐसे है जैसे जाते जाते कोई टीप मार जाय ! आभार !

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  9. छोटी सी है दुनिया, पहचाने रास्ते हैं।

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  10. इतना अच्छा वर्णन ..जैसे सब कुछ जीवंत हो उठा हो ..आप इतने सारे लोगों से मिल लीं अच्छा लगा । और आप का भी यह रिश्तेदारी निकालने का तरीका पसन्द आया । यह पूरी पीढी ही ऐसी है कि सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करने में बहुत कुशल है . पवन दुर्ग आया तो उसने अशोक से मेरा मोबाइल नम्बर जुगाडा और तुरंत फोन किया भैया आपके शहर मे हूँ । अशोक के फोन आते ही रहते है . आज ही अशोक ने अपनी दो किताबें भिजवाई थी वह लेकर आया हूँ । और भी कुछ नई बातें आपकी इस पोस्ट से मालूम हुईं उनका ज़िक्र फिर कभी ।
    बस ऐसे ही लिखते रहिये । बीच में अनुपस्थित रहा .. किताब की तैयारी मे लगा था ।

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  11. वाकई छोटी सी दुनिया है.रोचक स्नेहिल विवरण.

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  12. रश्मी जी!शायद ऐसे ही कभी आपकी हमारी भी मुलाक़ात हो जाए! लेकिन बहुत अच्छा लगा पढकर!
    वस्तव में दुनिया बहुत छोटी है!!

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  13. बहुत रोचक, और शादी में तो ऐसे ही पता नहीं कितने रिश्ते हमें पता चलते हैं जो हैं, पर हम या परिवार सोचते हैं कि सबको चौंका देंगे पर पता लगता है कि वे पहले से ही एक दूसरे को जानते हैं।

    वाकई बहुत छोटी दुनिया है।

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  14. बहुत खूबसूरत संस्मरण ! आप लिखती इतना अच्छा हैं कि हर आलेख प्राणवान हो जाता है ! शायद इसीलिये कैसी भी व्यस्तता हो आपकी पोस्ट पढ़े बिना कुर्सी से नहीं उठ पाती !

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  15. हमेशा की ही तरह रोचक संस्मरण ....
    खूब जान -पहचान निकल आई ..अब तो रिश्तेदारी , मित्रता और ब्लोगिंग एक साथ... क्या बात है ...

    अशोक पाण्डेय जी और पवन मेराज के ब्लाग से परिचित हूँ ...

    सचुमच लक्की होते हैं वे लोंग जिनकी बचपन की मित्रता उम्र भर चलती है ..

    @ जो लोंग जल्दी मित्रता नहीं करते ...हाथ बांधे तिरछे देखते रहते हैं ..:):) ...उनका कुछ ऐसा कटु अनुभव रहा होगा ...वरना अच्छी मित्रता कौन नहीं चाहता होगा ...

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  16. रोचक संस्मरण ...हर जगह ब्लॉगर्स की धूम है ...

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  17. अच्छा लगा यह संस्मरण पढ़ कर....

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  18. वाकई छोटी सी दुनिया के पह्चाने रास्ते है.

    रोचक स्नेहिल संस्मरण

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  19. अरे आप पवन को नहीं जानती थीं? मैं भी अपने जे.एन.यू. के दोस्तों के माध्यम से ही उससे परिचित हुयी थी.
    सच में दुनिया बहुत छोटी है और हिन्दी ब्लॉगर्स की तो एक कम्युनिटी, एक चेन सी बन गयी है, परिचय से परिचय निकलते जाते हैं.

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  20. दी आपकी पिछली ३-४ पोस्ट एक साथ पढ़ी...मज़ा आ गया. सारे संस्मरण बहुत मज़ेदार है...वाकई कितना अच्छा लगता है जब ऐसी मुलाकाते होती है....अब तो आपसे मिलने का इंतजार हमें भी है...

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  21. Cute,engrossing post!!But people of the other type add spice to life otherwise it would become so boring...

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  22. @अमरेन्द्र
    आश्चर्य क्यूँ...मुझे यकीन है...आप भी JNU के हैं...ऐसे ही होंगे...:)

    उन बच्चों ने तो इतना काम किया और ऐसी मजेदार घटनाएं हुईं कि पूरी पोस्ट ही बन जाए...सत्येन को किसी ने अँधेरे में ठीक से देखा नहीं और नल ठीक करते देख,प्लंबर समझ डांट दिया.."कैसे ठीक करते हो...बार-बार बिगड़ जाती है" और कल को क्या पता वो कहीं IAS (ईश्वर करे) बना बैठा हो.

    पवन और अफजाल बिना कपड़े बदले...दिन भर दौड़-भाग करते वैसे ही जनवासे में इंतज़ाम देखने चले गए और वहाँ जाकर फोन किया शिल्पी को.."किसी और को भेजो...बाराती ,पता नहीं हमें क्या समझ लें.."

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  23. @ममता
    बिलकुल सही कहा....वैसे लोंग (गर्दन टेढ़ी करने वाले ) ना हों तो फिर ज़िन्दगी की अच्छाई के स्वाद का पता ही कैसे चले.

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  24. बीच में कुल चार लडकियां हैं ,दुल्हन को छोड़ भी दूं तो बाकी तीन में से शिल्पी ? :)


    [ सुन्दर संस्मरण , जेएनयू वालों के लिए हमारे मन में सम्मान रहता है काश हम भी वहां पढ़े होते ]

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  25. बहुत अच्‍छी पोस्‍ट। जल्‍दी ही जनपक्ष को देखेंगे।

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  26. thanks Di..humari yaadon ko shabdon me qaid karne ke liye..lko se dilli aate waqt mere mann me bhi yahi khayal aa raha tha ki sachmuch ye duniya kitni chhoti aur pyari hai..itne busy schedule hote hye bhi sabka aa pana aur sab kuch bhula kar kaam me jut jaana...it shows that 'where there's a will there's a way'

    post sachmuch bahut achchi hai..par isme bhed bhav kyun?
    mere saare doston ko sundar biwi ka aashirwad aur mujhe bhool gayi :(

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  27. @अली जी,
    चार लड़कियों में दो, दोनों किनारे पर हैं...एक तो दुल्हन ही है .....फिर बचा कौन....ग्रीन कलर की साड़ी में शिल्पी :)

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  28. @शिल्पी
    हा..हा...अरे नहीं...जबसे आई हूँ ..बस तुम्हे ही याद कर रही हूँ...कि तुम जल्दी से जल्दी फिर से लखनऊ आने का मौका दो {कितनी सारी शॉपिंग रह गयी ना :).}...तुम्हारे लिए तो आशीर्वादों का टोकरा इतना भरा है कि लिखने लगती तो फिर पोस्ट ही पूरी नहीं हो पाती..इसीलिए मन ही मन दे दिया...करोड़ों आशीर्वाद और शुभकामनाएं

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  29. अदभुत, इतना आत्मिय और रोचक विवरण पढकर सोच रहा हूं कि कहानी पढ रहा हूं या संस्मरण? बहुत शानदार लेखन, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  30. रश्मि जी, आपका लेखन बहुत रोचक है...
    सच कहा, इंटरनेट के इस युग में ये दुनिया आज बहुत छोटी होकर रह गई है.

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  31. Maza aa gaya di...
    Bahut khoobsoorti se aap ne itni saari baaton ko ek saath keh diya...alag-alag, phir bhi ek hi dhaade me piroyi hui... Bahut sundar.
    Waise Shilpi ne achchhi biwi ka hawala dekar hi hum logon ko kaam par lagaya tha...
    Aur aapke saath meri ek mulaqaat due rahi, dupatto ke phool ke liye... celebrity jo banana hai :-)

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  32. Oh... Bahut jaldi ki aapne likhne ki ... padh kar laga ki main bhi kuch chatpan kar sakta hun... lekin main itni jaldi kuch nahi likh paunga... kyunki choti si dunya main kam waqt ho to likhne main zyada waqt lagta hai...
    lekin aapki wajah se aaj main kuch full blogg padh paya... kyunki ismain sab kuch jaane pahchaana sa lag raha hai...

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  33. इतना सब हो लिया दिल्‍ली में
    और हमें खबर भी नहीं हुई

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  34. @अविनाश जी,
    मैं दिल्ली में नहीं थी..लखनऊ में गयी थी आपनी मौसी की लड़की की शादी अटेंड करने..वहीँ कुछ ब्लॉगर्स से भी मुलाक़ात हुई थी .

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  35. फिल्म का डायलॉग याद आ रहा है 'जिंदगी बहुत बड़ी है और दुनिया बेहद छोटी, मुलाकातें तो होती रहेंगी।'
    एक बार फिर शब्दों से बयां मगर चलचित्र की तरह लगने वाला संस्मरण।
    ...और आखिर के शब्दों पर क्या कहें- वववववववववाह।

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  36. शादी का घर, दुल्हन के दोस्त और दोस्ती, पवन जी से मुलाकात. और अशोक जी से तुम्हारी मुलाकात का ब्यौरा...मज़ा आ गया.

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  37. @सत्येन्द्र
    हम्म तो शिल्पी ने तुम्हे पहले से ही यह कह रखा था...तभी तो मैं कहूँ,सबसे ज्यादा काम तुम्ही क्यूँ कर रहें थे...सबसे पहले आए भी और सुना सबसे अंत में सारा काम निबटवा कर तब गए...तो ये राज है??...हम्म :):)

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  38. वाह गजब है!न जाने मेरे भी कितने मित्रों रिश्तेदारों को तुम जानती होगी.
    सदा की तरह रोचक लिखा है.
    घुघूती बासूती

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  39. जी , वजा फरमाया आपने !

    और सचमुच दुनिया छोटी है , अभी पोस्ट की सबसे ऊपर वाली फोटो को बड़ी करके देखा तो मुझ जैसे अल्प परिचय वाले के दो परिचित दिख ही गए , लाल स्वेटर में ललित सर - कावेरी हॉस्टल के - और उनका छोटा भाई !

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  40. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  41. रोचक संस्मरण। रोचकता ही तो खींच लाती है यहाँ। शुभकामनायें।

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  42. रश्मि जी…सच कहूँ तो शर्म आ रही है ;-) यहाँ सत्येन, शिल्पी, पवन, अमरेन्द्र कितने ही भाई-बहन हैं मेरे…किसी से एक मुलाक़ात, किसी से एक भी नहीं और सब कितने प्रिय…शरद भाई और आपसे भी कहाँ हुई है मुलाक़ात्…लेकिन अपनों से ज़्यादा अपने…कौन कहता है कि यह वर्चुअल दुनिया है!

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  43. बेहतरीन संस्मरण रहा...कहाँ से कहाँ लिंक निकले और मुलाकात हुई.

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  44. sansmaran achchaa hee nahee manoranjak andaaz mai bahut pravaah se likhaa gaya hai. (mei aisa kyu likh rahaa hoo ? hameshaa to aisa hee hota hai ) isliye ki mujhe ye bhee batanaa hai ki maine poora padh liya hai aur haa duniyaa vaakai bahut chhotee ho gai hai

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  45. अच्छा! शाहरुख़ ने ऐसा कहा था? मैंने तो बहुत लड़कियों की शादी में काम किया है... यहाँ तक कि अपनी कई एक्स-गर्ल-फ्रेंड्स की शादी में भी काम किया है... फिर भी??????????? पवन भाई से मिलकर अच्छा लगा.... और अशोक जी को तो मैं अक्सर उनके यहाँ वहां छपने पर बधाई देता रहता हूँ..... बहुत अच्छा लिखते हैं.... पूरा संस्मरण बहुत अच्छा लगा... लखनऊ से बाहर था... आज ही लौटा हूँ.... इसलिए देरी से आया हूँ....

    बहुत ही अच्छी पोस्ट....

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  46. वाह शायद इसे ही कहते हैं.. बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी. धीरे-धीरे समाज यूं ही जुड़ता चला जाता है.. पढ़ कर अच्छा लगा.

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  47. bahut achha pyara sansmaran ... bahut achha lagta hai jab sab miljulkar haath badhakar ek dusare ka saath dete chale jaate hai...
    ..sach kahan hai aapne ki we log lacky hote ti jinki dosti yun hi sada bani rahti hai...

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  48. wah ji sach purane blog purani yade taza kar dete hai aur man khush ..main bhi aajkal fir blog ki aur mud rahi hu ..thoda bahut lekhan chalta rahana chahiye

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फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

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