बुधवार, 26 मई 2021

सीमा प्रधान की पुस्तक : कश्मकश की आँच

 


आजकल रोज रोज की खबरों से मन इतना अवसादग्रस्त है कि बस शुतुरमुर्ग की तरह किसी फिल्म में सर घुसा दीन दुनिया भूल जाने की कोशिश करता है. किसी किसी दिन चार फ़िल्में देख लेती हूँ (अलग-अलग भाषाओं की ) किताबें पढनी हैं, लिखना है पर मन कहीं टिकता ही नहीं. ऐसे में बचपन की दोस्त Seema Pradhan की किताब, “कश्मकश की आँच” आई. उलट-पुलट कर देख लिया, सीमा की तस्वीर निहार ली , परिचय पढ़ गर्वित हो ली और जल्दी ही पढूंगी करके रख दिया. जब उसने फोन पर पूछा तो बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई. वो भी इंतज़ार में ही होगी कि रश्मि खुद बतायेगी .

और फिर सुबह की चाय के साथ जो किताब शुरू की,लंच की तैयारी से पहले खत्म कर ली। एक सिटिंग में इसलिए नहीं पढ़ी कि मेरी फ्रेंड की किताब है बल्कि इस किताब में ऐसी क्षमता है कि उठने नहीं देती.
सीमा पच्चीस वर्षों से भी अधिक समय से अध्यापन कर रही है. पिछले दस वर्षों से अपने कुशल हाथों में केन्द्रीय विद्यालय के प्राचार्या का पद सम्भाल रखा है. सीमा ने ज्यादतर ग्यारहवीं -बारहवीं कक्षा के छात्रों को पढाया है. यह उम्र का सबसे नाजुक दौर होता है, जिसमें सीमा जैसे संवेदनशील शिक्षकों की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो उठती है. करीब दस वर्ष पूर्व रुचिका राठौर की आत्महत्या की खबर से आहत होकर मैंने एक लेख लिखा था,'खामोश और पनीली आँखों की अनसुनी पुकार'
रुचिका के साथ पढने वाली एक लड़की बता रही थी कि अपने साथ हुए उस हादसे (एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा छेड़खानी ) के बाद खिड़की के पास अपनी डेस्क पर बैठी रुचिका पूरे पूरे दिन या तो खिड़की से बाहर देखती रहती थी या रोती रहती थी। रोज़ उसकी क्लास में करीब करीब सात टीचर्स जरूर आते होंगे। उनमे से एक ने भी करीब जाकर उसके दिल का हाल जानने की कोशिश नहीं की ?उस तक पहुँचने के लिए कोई पुल तैयार नहीं किया ? अगर किसी टीचर ने रुचिका के साथ,थोडा समय बिताया होता.उसके पास आने की कोशिश कर उसका दुःख बांटने की कोशिश की होती.रुचिका को भी अपना दुःख,इतना बडा नहीं लगता,कि उसने अपनी ज़िन्दगी खत्म करने का ही फैसला ले लिया "
पर मुझे बहुत गर्व है कि मेरी कुछ करीबी सहेलियाँ भावना शेखर,रीना पंत, सीमा प्रधान ऐसी ही शिक्षिकाएं हैं जिन्होंने न जाने कितने ही किशोर मन के ताने बाने को सुलझाने की कोशिश की। उनके कोमल मन के बिखरते तन्तुओं को अपने सुदृढ़ हाथों से सहारा ही नहीं दिया, उनके जीवन को एक नई दिशा भी प्रदान की .
सीमा प्रधान अपनी किताब की भूमिका में लिखती हैं, "जीवन की धूप से कुम्हलाए,इन अधखिले फूलों को जानते,इनकी खूबियों और खामियों को पहचानते,भांपते यही समझ पाई हूँ कि थोड़े से प्यार व विश्वास के घेरे में लेकर आसानी से इनके मन की तहों में प्रवेश किया जा सकता है "
सीमा ने बखूबी उनके किशोर मन की समस्याएं समझीं और सुलझाई हैं।चाहे माता-पिता के लाड़-प्यार में डूबे अज़ीज़ का किसी भी रिजेक्शन को बर्दाश्त न कर पाना हो या माँ के अविश्वास और कठोर सजा से घबराई निधि का झूठ-फरेब के रास्ते को अपना लेना हो। एक सह्रदय -संवेदनशील शिक्षिका उन्हें सही मार्ग पर ले आती है।
इस किशोर वय में मन में कोमल भावनाएं भी कुंनमुनाने लगती हैं और अपेक्षित प्रतिक्रिया न पाकर निराशा के गर्त में डूबते देर नहीं लगती। जिस उम्र में भविष्य के सपनों की नींव रखी जानी होती है वह अवसादग्रस्त हो यूँ ही जाया हो जाती है। पर अगर शिक्षक की निगाहें सजग हों तो बच्चे इस स्थिति से उबर आते हैं।
एक छात्रा 'संगम' के संघर्ष का उल्लेख पाठकों को सुखद आश्चर्य से भर देगा। हम नागरिकों को अपरिमित अधिकार प्राप्त है बस हम उसका उपयोग नहीं करते। गाँव में रहने वाली 'संगम' बहुत कठिनाइयों से शहर आकर पढ़ाई करती है। उसे विज्ञान पढ़ना था पर उसे 52% अंक ही मिले थे। स्कूल के नियम के अनुसार सिर्फ 60%वालों को ही ग्यारहवीं में विज्ञान लेने की अनुमति थी।
संगम ने सीधा प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा, "क्या बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ अभियान महज एक नारा है।अगर सच्चाई है तो वह एक बेटी को साइंस संकाय में दाखिला दिलवा कर इसे साबित करें।"
संगम की अदम्य इच्छा को देखते हुए, विद्यालय को प्रधानमंत्री कार्यालय से उसे साइंस संकाय में प्रवेश का निर्देश मिला।
सभी घटनाओं के उद्गम में सच्चाई का अंश है फिर उन्हें सीमा की कलम ने बड़ी रोचकता से पठनीय बना दिया है।
सीमा को उसकी प्रथम पुस्तक की सफलता की अशेष शुभकामनायें ।
मेरे लिए विशेष गर्व का अवसर है। किशोर वय में ही सीमा और मेरी दोस्ती हुई थी। उस वक्त हम दोनों को किताबें पढ़ने का जुनून था। उस वक्त हमने कभी नहीं सोचा था,हमारी किताबें भी प्रकाशित होंगी ,पाठकों को पसन्द आयेंगी। पर कभी अनदेखे सपने भी सच हो जाते हैं।😊
"कश्मकश की आँच " पुस्तक 'दी बुक लाइन' पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई है।अमेज़न पर उपलब्ध है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-05-2021को चर्चा – 4,078 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. निकट से अनुभव किये गये कशमकश के पल। सुन्दर विवेचनात्मक समीक्षा।

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  3. किशोर अवस्था की कशमकश को समझ कर उसक हल बताने वाली अध्यापिकाएं वास्तव में समाज के लिए एक वरदान होती हैं।
    आपने अपनी सखी की पुस्तक की सुंदर समीक्षा की है।

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  4. विस्तृत समालोचना।
    सार्थक परिश्रम।

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  5. मेरा नाम लिलियन एन है। यह मेरे जीवन का एक बहुत ही खुशी का दिन है क्योंकि डॉ सगुरु ने मेरे पूर्व पति को अपने जादू और प्रेम मंत्र से वापस लाने में मेरी मदद की है। मेरी शादी को 6 साल हो गए थे और यह बहुत भयानक था क्योंकि मेरे पति वास्तव में मुझे धोखा दे रहे थे और तलाक की मांग कर रहे थे, लेकिन जब मुझे इंटरनेट पर डॉ. सगुरु का ईमेल मिला कि कैसे उन्होंने अपने पूर्व को वापस पाने में इतने लोगों की मदद की है और रिश्ते को ठीक करने में मदद करें। और लोगों को अपने रिश्ते में खुश रखें। मैंने उसे अपनी स्थिति के बारे में बताया और फिर उसकी मदद मांगी लेकिन मेरे आश्चर्य से उसने मुझसे कहा कि वह मेरे मामले में मेरी मदद करेगा और यहां मैं अब जश्न मना रही हूं क्योंकि मेरे पति अच्छे के लिए पूरी तरह बदल गए हैं। वह हमेशा मेरे पास रहना चाहता है और मेरे वर्तमान के बिना कुछ नहीं कर सकता। मैं वास्तव में अपनी शादी का आनंद ले रहा हूं, क्या शानदार उत्सव है। मैं इंटरनेट पर गवाही देता रहूंगा क्योंकि डॉ. सगुरु वास्तव में एक असली जादू-टोना करने वाला है। क्या आपको मदद की ज़रूरत है तो डॉक्टर सगुरू से संपर्क करें अब ईमेल के माध्यम से: drsagurusolutions@gmail.com वह आपकी समस्या का एकमात्र उत्तर है और आपको अपने रिश्ते में खुश महसूस कराता है। और उसका भी संपूर्ण
    1 प्रेम मंत्र
    2 पूर्व वापस जीतें
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    4 वर्तनी संवर्धन
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