कलावंती सिंह जी एक संवेदनशील कवियत्री और जानी मानी समीक्षक हैं . उनकी कवितायें और पुस्तकों की समीक्षा प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. उनका बहुत आभार ,उन्होंने इस उपन्यास पर अपनी प्रतिक्रिया दी .
रश्मि रविजा का उपन्यास काँच के शामियाने अभी अभी पढ़कर उठी हूँ। सरल भाषा शैली मे लिखा गया एक अत्यंत रोचक उपन्यास । बहुत दिनों बाद कोई ऐसी चीज पढ़ी जहां बौद्धिकता का आतंक नहीं है । मुझे लगता है कि ऐसे पारिवारिक उपन्यासों का बहुत प्रचार प्रसार होना चाहिए ताकि लोग इसे पढ़कर मनोरंजन और शिक्षा दोनों पा सकें।
आज भी परिवार ही किसी व्यक्ति को सुरक्षा और सम्मान दे सकता है अच्छे बुरे वक़्त में उसके साथ खड़ा रहता है। एक पारिवारिक जीवन है और उसकी विसंगतियों की कहानी है यह । आज स्त्री शिक्षा और स्त्री सशक्तिकरण, संपति का अधिकार जैसे तमाम आंदलनों के बावजूद समाज में स्त्री की असली स्थिति क्या है? अपने लिए नौकरी करने या उसमें आगे बढ्ने के तमाम साल औरत को अपने बच्चे बड़े करने में लग जाते हैं। घर में किए गए कार्यों का कोई मोल नहीं। संवेदनशील लड़कियों को दोहरी मार झेलनी पड़ती है। लोग योग्य लड़कियों से विवाह तो करना चाहते है पर उसे सम्मान देना नहीं जानते। हर समय नीचा दिखाते हैं। पुरुष विवाह के बाद उसे जैसे चाहे रखे । मायके के लोग भी कभी उसको मायके के घर को अपना समझने नहीं देते।
मेरे आस पास की कितनी ही लड़कियों का चेहरा मैंने इस उपन्यास में देखा।
रश्मि रविजा ने बहुत छोटे छोटे डिटेल्स को बहुत ही सूक्ष्मता से पकड़ा है और लिखा है।
रश्मि रविजा का उपन्यास काँच के शामियाने अभी अभी पढ़कर उठी हूँ। सरल भाषा शैली मे लिखा गया एक अत्यंत रोचक उपन्यास । बहुत दिनों बाद कोई ऐसी चीज पढ़ी जहां बौद्धिकता का आतंक नहीं है । मुझे लगता है कि ऐसे पारिवारिक उपन्यासों का बहुत प्रचार प्रसार होना चाहिए ताकि लोग इसे पढ़कर मनोरंजन और शिक्षा दोनों पा सकें।
आज भी परिवार ही किसी व्यक्ति को सुरक्षा और सम्मान दे सकता है अच्छे बुरे वक़्त में उसके साथ खड़ा रहता है। एक पारिवारिक जीवन है और उसकी विसंगतियों की कहानी है यह । आज स्त्री शिक्षा और स्त्री सशक्तिकरण, संपति का अधिकार जैसे तमाम आंदलनों के बावजूद समाज में स्त्री की असली स्थिति क्या है? अपने लिए नौकरी करने या उसमें आगे बढ्ने के तमाम साल औरत को अपने बच्चे बड़े करने में लग जाते हैं। घर में किए गए कार्यों का कोई मोल नहीं। संवेदनशील लड़कियों को दोहरी मार झेलनी पड़ती है। लोग योग्य लड़कियों से विवाह तो करना चाहते है पर उसे सम्मान देना नहीं जानते। हर समय नीचा दिखाते हैं। पुरुष विवाह के बाद उसे जैसे चाहे रखे । मायके के लोग भी कभी उसको मायके के घर को अपना समझने नहीं देते।
मेरे आस पास की कितनी ही लड़कियों का चेहरा मैंने इस उपन्यास में देखा।
रश्मि रविजा ने बहुत छोटे छोटे डिटेल्स को बहुत ही सूक्ष्मता से पकड़ा है और लिखा है।
नामचीन लोगों की पुस्तक पर टिप्पणी मिलना मायने रखता है रश्मि. बधाई
जवाब देंहटाएंमैंने आपके बारें मे राजस्थान पत्रिका के लेख में पढ़ा। मुझे आप के लेख पसंद आया। वैसे मुझे कम पसंद है पर अब में आपके लेख पढ़ने लग गया हूँ। आपके विचार अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ... अब इस उपन्यास को अभी तक प्राप्त भी नहीं कर पाया तो पढ़ तो क्या पाया हूँ ... पर आज पता चला है तो खरीद भी लूँगा ... आपको बधाई ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
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