रविवार, 17 नवंबर 2013

ये दुनिया हैरान-परेशान करती रहेगी

ये दुनिया आखिर कब तक सरप्राइज़ करती रहेगी . इतनी उम्र हो गयी, इतना कुछ पढ़ लिया, देख लिया, सुन लिया कि लगता है अब ऐसा क्या देख-जान लूंगी जो चौंका देगी. पर तभी कोई ऐसी घटना से रु ब रु होती हूँ कि मुहं खुला का खुला रह जाता है और बार-बार अविश्वास से पूछने पर कि ऐसा कैसे हो सकता है ?? पता चलता है ,बिलकुल ऐसा ही हुआ  है.
 

पर उस घटना को शेयर करने से पहले एक दूसरी बात कि कैसे समय के साथ हमारी खुद की सोच बदलती है . आज के युग में तो खैर चालीस साल की  उम्र को न्यू ट्वेंटी और साठ को न्यू फोर्टी कहा ही  जाता है. पर जब अट्ठारह-बीस की  उम्र में मैंने अपना पहला उपन्यास लिखा था तो उसमें मेरी नायिका जब तीस-चालीस की उम्र की हो जाती है तो उसका वर्णन कुछ यूँ किया था ,"चेहरे पर प्रौढ़ता का गाम्भीर्य झलक रहा था , दो चोटियों में झूलते बाल एक सादे से जूड़े में बंधे थे और चेहरे पर मोटे फ्रेम का चश्मा लगा हुआ था {तब इतनी ही अक्ल थी :)} . लेकिन जब मैंने वो कहानी ब्लॉग पर पोस्ट की तो खुद चालीस की हो चुकी थी...वे पंक्तियाँ कुछ यूँ बदल दीं, "कमर तक लम्बे बाल अब कंधे तक रह गए थे .चेहरे की तीखी रेखाएं पिघल कर एक स्निग्ध तरलता में बदल गयी थीं..." पर अब भी साठ साल की एक महिला की कुछ अलग ही छवि थी मेरे मन में .छवि क्या ...मेरी कुछ सहेलियां भी हैं,साठ के उम्र की हैं . फिट हैं ,..बहुत एक्टिव हैं, जीवन से भरपूर हैं...कार्यकुशल हैं .. पर साथ में उनमें सादगी भी है . पर एक साठ के करीब की महिला से हाल में ही मुलाकात हुई और जब मिल कर अच्छा लगे तो फिर दोस्ती होते देर नहीं लगती. इनमें भी वो सारी खूबियाँ हैं... साथ ही ये अपनी साज-सज्जा  का बहुत ख़याल रखती हैं. महीने में दो बार मैनीक्योर,पेडिक्योर ,उनके नाखूनों पर बिलकुल फंकी कलर वाले नेलपॉलिश लगे होते हैं और वे बुरे इसलिए नहीं लगते क्यूंकि नियमित मेनिक्योर से उनके हाथ बड़े कोमल  से हैं. आई शैडो, मैचिंग लिपस्टिक, मॉडर्न बैग-सैंडल , जंक ज्वेलरी  की शौक़ीन हैं ..उन्होंने अपनी कलाई पर चाइनीज़ में अपने पोते का  नाम  टैटू  करवा रखा है. ...यह सब उनपर फबता है. पहले मुझे लगता था ऐसी साज सज्जा इतनी उम्र में शोभा नहीं देती पर शायद उसे ग्रेसफुली  कैरी करना आना चाहिए. और ये महिला कोई सोशलाइट या बहुत उच्च वर्ग की नहीं हैं. मिड्ल क्लास की हैं . छोटी उम्र से नौकरी की  है ,संघर्ष किया है , खाड़ी देश में बिना किसी हाउस हेल्प के सिर्फ पति की सहयता से  बच्चे ,घर  नौकरी सब संभाला है. बच्चों को अच्छी शिक्षा दी, घर बनाया और  अब रिटायर्ड लाइफ जी रही हैं और अपनी शर्तों पर अपनी मर्जी से जी रही हैं.

हाँ, तो जिनका परिचय दिया है, वे अक्सर बातों में अपनी भतीजी का जिक्र करतीं, उसके लिए शॉपिंग करतीं हैं , उसकी पसंद की चीज़ें बनातीं हैं ,उसका बहुत ख्याल रखतीं हैं .  मैंने एक दिन कह दिया.."भतीजियाँ अपनी बुआ की बहुत प्यारी होती ही हैं. " उन्होंने कहा , "मैं इसकी कहानी सुनाउंगी तुम्हे " और एक दिन जब सारी बातें बताईं तो मैं बस यही कहती रह गयी.."ऐसा कैसे हो सकता है ??"
 

ये महिला अपने पति के पास खाड़ी देश में थीं. उनकी बेटी यहाँ नौकरी करती थी और अपने फ़्लैट में रहती थी.  बेटा ऑस्ट्रेलिया में है . एक दिन इनका मन बहुत बेचैन हो रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ है. अपने बेटे और बेटी को फोन किया..पर वहाँ सब ठीक था . फिर भाई के यहाँ  फोन किया तो छोटी भतीजी   से बात हुई , जब बड़ी के लिए पूछा तो उसने बताया ,'वो तो घर छोड़ कर चली गयी है  ' दोनों बेटियों को उनकी माँ , खाना बनाने का जिम्मा सौंप बाहर गयी थीं. माँ के लौटने पर छोटी बेटी ने शिकायत की  कि "सारा काम मैंने  किया है दीदी तो बस अपने बॉयफ्रेंड से फोन पर चैटिंग कर रही थी ." माँ बहुत नाराज़ हुई ,पूछने पर बेटी ने स्वीकार किया कि उसका एक बॉयफ्रेंड है . माँ ने बेटी को बहुत भला-बुरा कहा, थप्पड़ भी लगाया और बोला, 'पिता आयेंगे तो तुम्हे काट डालेंगे ,उनके आने से पहले घर छोड़ कर चली जाओ " जबकि ये लोग कैथोलिक हैं . डेटिंग इनकी संस्कृति में है. खुद उस लड़की के  माता-पिता की लव मैरेज है . पर उसके पिता बहुत सख्त थे और माँ भी उनसे डरी हुई थी . बेटी ने उस लड़के को फोन किया . लड़का उनके ही धर्म का है, कैथोलिक है , बैंक में नौकरी करता था, अपने माता-पिता का इकलौता बेटा है..मुंबई में अपना फ्लैट है . गिटार और पियानो बजाने का शौक है . खाली वक़्त में क्लास लेता है. इस लड़की की छोटी बहन को भी सिखाया करता था .वहीँ इन दोनों की मुलाक़ात हुई थी .
लड़का ,अपने पिता के साथ आया और लड़की को लेकर चला गया . (अब मुझे ये विश्वास करना ही कठिन हो रहा था कि बस बॉयफ्रेंड से चैटिंग के लिए एक उन्नीस साल की लड़की को घर से निकाला जा सकता है...वो भी मुंबई जैसे शहर  में, २००९  में और एक कैथोलिक परिवार में  ..खैर इन्होने भाई-भाभी  से बात करने की कोशिश की. उनका कहना यही था कि 'उन्हें उस लड़की से कोई मतलब नहीं '. फिर इन्होने अपनी बेटी को कहा ,"उस लड़की को अपने पास ले  आओ..बिना शादी किये लड़के के घर में रहना ठीक नहीं " वे भारत आयीं ,..भाई-भाभी को समझाने की कोशिश की ..पर उनकी एक ही रट, "हमारी बेटी , हमारे लिए मर गयी है  " (माता-पिता का ऐसा एटीट्युड मुझे अब भी हैरान कर देता है ) . 

इनकी भतीजी और बेटी साथ रहने लगे. उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी . एक दिन कॉलेज के बाहर से लड़की के मामा, मौसी उसे कार में जबरदस्ती बिठा  कर ले जाने लगे. अब पता नहीं उसका ब्रेन वॉश करने के लिए या उसे सजा देने के लिए पर एक जगह ट्रैफिक धीमी हुई तो वो लड़की निकल कर भागी . इसके  बाद इनलोगों ने इस लड़की को कानूनी रूप से गोद ले लिया . और पूरे रीती रिवाज से उस लड़की की शादी उसके बॉयफ्रेंड के साथ कर दी. सारे रिश्तेदारों को बुलाया . पर एक ही कॉलोनी में रहने वाले माता-पिता शरीक नहीं हुए .अब लड़की अपने ससुराल में है .पढाई पूरी कर जॉब कर रही है . अब बुआ का घर ही उसका मायका है. जहाँ हफ्ते मे तीन चक्कर वो जरूर लगाती है .

मैंने ये सब सुनते हुए न जाने उनसे कितनी बार पूछा होगा, "आखिर आपके भाई-भाभी को क्या एतराज था ??..उन्होंने ऐसा क्यूँ  किया ??" इनके  पास भी एक ही जबाब था, "पता नहीं,कुछ  समझ  में नहीं आता  "जबकि इनके भाई ने अपने पिता का उदारपन देखा है . जब ये महिला नवीं कक्षा में थीं, इनके पिता ने इनकी सहेली  के भाई के साथ सिनेमा देखने , कॉफ़ी पीने की इजाज़त दे रखी थी. बाद में शादी भी उसी लड़के से हुई. और इनके पति भी इतने उदार हैं कि पत्नी के भाई की बेटी को कानूनी रूप से अपनी बेटी बना लिया. पर शायद यहाँ पिता का सिर्फ अहम  है कि लड़की ने अपनी पसंद का लड़का कैसे चुन लिया.

जब मुंबई में एक पढ़े-लिखे कैथोलिक परिवार में ऐसा हो सकता है ,(जहाँ लड़के-लड़कियों को आपस में मिलने की छूट किशोरावस्था से ही होती है ) तो दूर दराज के गाँव-कस्बों के शिक्षा से दूर लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है. पर लड़कियों पर बंदिशें लगाने के लिए पढ़े-लिखे और अनपढ़ परिवार में कोई फर्क नहीं . मैंने  पहले भी अपनी एक पोस्ट  में जिक्र किया था कि मेरी एक परिचिता के बेटे ने एक एयरहोस्टेस  से शादी की है. उस लड़की के पिता कर्नल हैं ,बेटी को लन्दन-न्यूयार्क -पेरिस जाने की इजाज़त है पर अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनने की नहीं ....दुनिया ऐसे ही हैरान करती रहती है ,यहाँ ऐसे भी  लोग हैं जो अपनी बेटी से नाता तोड़ लेते हैं और ऐसे भी हैं जो दूसरे की बेटी को अपना  लेते हैं.

14 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि दुनिया मे सब तरह के लोग हैं और सब तरह की सोच भी …………अगर बदलाव का असर होता तो नारी की आज भी दुर्दशा ना होती ………बेशक कुछ अंश तक ही बदलाव आया है तो इसे आटे मे नमक जितना ही कह सक्ते हैं हम भी देखते हैं ऐसे ऐसे दकियानूसी पढे लिखे लोग कि क्या बतायें बल्कि एक अनपढ या गरीब को कभी इतना रिज़िड नही देखा जितने पढे लिखे हो रहे हैं आजकल …………जाने कैसी शिक्षा पा रहे हैं कैसी सोच विकसित हो रही है

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  2. सच में बहुत सी बातें विरोधाभास लिए हैं ...... यही तो विडंबना है हमारे समाज की

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  3. जैसे माँ बाप का ज़िक्र तुमने किया है वो कोई rare बात नहीं है मगर बड़े विरोधाभास हैं......एक तरफ खुद उन्होंने इतने एडवांस स्टेप्स ले रखे हैं जीवन में...दामाद और उसका घर परिवार भला है...फिर कोई तो वजह हो मना करने की.......ये सच्चा वाकया न होकर एक कहानी होती तो हम खूब आलोचना करते :-) मगर अब सच्चाई है तो क्या कहें.....world is full of fools !!!!

    हाँ तुम एक बेहतरीन story teller हो इसमें दो राय नहीं !!!
    अनु

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  4. कुछ मामलों में बेटी अपनी पसंद बता भी देती है और घरवाले उसे पसंद भी कर लेते हैं।कुछ मामले में शुरुआती नोंक झोंक होती है लेकिन बाद में मामला सेट हो जाता है।हाँ दिक्कत तब होती है जब बात बहुत बढ़ चुकी हो यहाँ तक कि लड़की की शादी की बात चल रही हो तभी अचानक से झटका देते हुए अपना फैसला सुनाया जाए इससे फिर बात पिता के अहम पर आ जाती है।लडकी ही नहीं ये काम लड़के के मामले में भी होता है ये अलग बात है कि लडकों की सामाजिक स्थिति अच्छी होने के कारण उन्हें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।जबकि लडकी के पास पिता को मनाने का मौका ही नहीं होता क्योंकि शादी के बाद लड़की वैसे भी पिता के घर नहीं रह सकती।हमारी जाति में भी लड़की का अपने पसंद के लड़के से शादी करना अब आम होने लगा है माता पिता उसकी बात मान लेते हैं पर हाँ जाति के बाहर शादी करने पर मुश्किलें आती हैं।काश की जाति धर्म जैसी समस्याएँ ही नहीं होती ।

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  5. आज के युग में ऐसी घटनाएं व्यथित करती हैं परन्तु सबसे बड़ा दुःख तो तब होता है जब इसका कोई तार्किक कारण बहुत खोजने पर भी नहीं मिलता .....

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  6. हर प्रकार की मानसिकताएं यहाँ जीवित हैं , वर्ग कोई भी हो !!

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  7. वाकई में ये दुनिया विरोधाभासों की ही है ,सुन्दर

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  8. हैरान कर देने वाला प्रकरण.
    क्या हम सभी,इन विक्षिप्त मानसिकता के शिकार नहीं है?

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  9. समाज में हर तरह के लोग होते हैं ... शायद धर्म से इसका मतलब नहीं होता ... सोच से होता है ...
    समय के साथ बदलाव आएगा इस सोच में भी ...

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  10. इस किस्से पर नहीं एक जनरल बात करती हूँ , कई बार नाराजगी का कारण लड़की की पसंद अहम आदि का नहीं होता है , कई बार लड़का योग्य नहीं होता है , कभी आर्थिक रूप से तो कभी शारीरिक रूप से तो कभी व्यक्तितव से अयोग्य होता है , तो कई बार अपने साथ हुई धोखे की नाराजगी , दी गई आजादी का गलत प्रयोग , पढाई कैरियर के नाम पर घर से बाहर जा कर ये सब करना , और घरवालो से हजारो झूठ आदि भी होती है , कई बार माता पिता ठगे महसूस करते है , बाकि समाज का दबाव , आदि आदि तो होता ही है ।

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  11. कई बार घटनाओं और उनके कारण इतने प्रत्यक्ष नहीं होते ,माता पिता की नाराजगी के विभिन्न कारण हो सकते हैं , मगर फिर भी अपनी बच्ची को यूँ बेसहारा छोड़ देना गलत ही है , निंदनीय है !
    उम्र आजकल कोई मायने नहीं रखती जबसे अपनी बढ़ रही है :)

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  12. Har insaan anokha hai aur usaki fitarat juda..
    Ek azad khyal parivar ka itna sakht ravaiya apni beti ki ore, ye ishara karta hai ki is kahani/waqaye me kuchh GREY SHADES hain.. Kuchh baatein jo roshan nahin hain..
    Lihaja baap ke bare me JUDGEMENTAL nahin huaa ja sakta.. Kyonki poori kahani me baap ke dimagi halaat ka koi zikr nahin hai.. Kai deep rooted wazahe ho sakti hain.
    Jo bhi ho ye to sach hai ki LIFE IS ALWAYS FULL OF SURPRISES!

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  13. स्थितियाँ विकट हैं...परन्तु पढ़ी-लिखी माँओं के बढ़ने से बेटियों के प्रति समाज लचीला भी हुआ है...शिक्षा ही अधिकांश कुरीतियों का इलाज़ है...

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  14. विश्वास नहीं होता कि इंसान अपने आपको इतना चाह सकता है कि बाकी सारे रिश्ते ...उनकी खुशियां इनके लिए गौण हो जाएं ....!!!!!तरस आता है ऐसे लोगों पर ...यह सिर्फ दया के पात्र हैं

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