आठवीं में थी तब धर्मयुग में जिनकी कहानी पढ़ी थी और अब तक याद है और बाद में लगातार उनकी कहानियां पढ़ती रही, आज उन प्रिय लेखिका "मालती जोशी दी " का हस्तलिखित पत्र मिला ।
जब हाल में उनसे मिली थी तो उन्हें अपनी किताब भेंट की थी। मुझे कोई अपेक्षा नहीं थी कि वे इसे पढ़ेंगी। मेरी किताब को उनके हाथों का स्पर्श मिला ,मैं उन्हें किताब दे पाई,यही सुख मेरे लिए बहुत बड़ा था। वैसे भी मैं संकोचवश अग्रजाओं से कभी नहीं पूछती कि , 'आपने मेरी किताब पढ़ी, कैसी लगी '।मुझे लगता था,वे लोग तो बड़े लोगों को पढ़ती होंगीं ।
उषाकिरण खान दी से भी नहीं पूछा था। बाद में विजयपुष्पम ने बताया कि वे तुम्हारी किताब का जिक्र कर रही थीं ,तब उनसे बात की । सूर्यबाला दी, उषा दी, मालती दी को मेरी किताब पसंद आई , इस से बढ़कर कोई ईनाम और क्या । वो भी उनलोगों ने खुद से बताया :)
मालती जोशी दी से मिलकर आई थी तो फेसबुक पर सारा विवरण लिख डाला था .
वे दिन याद आते हैं जब धर्मयुग में मालती जोशी जी की कहानी की अगली क़िस्त आने वाली होती थी, बेसब्री से अंक का इंतजार होता था और कहीं जो भाई के हाथ में पत्रिका पहले पड़ गई तो आंसू निकल आते थे। (वो पूरी पत्रिका पढ़े बगैर देता नहीं था :( )
कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि स्कूल-कॉलेज में जिनकी कहानियों की घनघोर प्रशंसिका हुआ करती थी , कभी उनके सामने बैठ कर एक अनौपचारिक सी गोष्ठी में उनके ही श्रीमुख से कहानी सुनने का सौभाग्य मिलेगा। मालती दी की ये अद्भुत कला है , वे बिना देखे पूरे भाव के साथ, मय डायलॉग सहित लंबी लम्बी कहानियाँ सुनाती हैं । और मंत्रमुग्ध से सबलोग एकटक उन पर नज़रे जमाये ,कहानी को आत्मसात करते रहते हैं ।
प्रख्यात पेंटर एवं लेखिका उषा भटनागर जी ने अपने आवास पर छोटी सी गोष्ठी आयोजित की थी, जिसमें मालती जोशी दी, पुष्पा भारती जी, सुधा अरोड़ा जी, सुमित्रा अग्रवाल जी, उर्मिला जी, छाया जी, रागिनी, चित्रा देसाई और मैं अकिंचन भी शामिल हुई ।
मालती दी से मिलते ही मैंने उनकी उस कहानी का जिक्र किया जिसकी नायिका का नाम इतना अच्छा लगा था कि मैंने स्कूल में ही अपना नाम 'रश्मि विधु' रख लिया था ('रविजा' शब्द बाद में मिला ) कथानक थोड़ा बहुत ही याद था ,मालती दी ने तुरंत कहानी का नाम बताया, ' निष्कासन'। उन्होंने पात्रों का नाम रखने में कहानीकारों को आने वाली परेशानियों का भी जिक्र किया कि कैसे हमेशा सजग रहना पड़ता है कि कोई बुरा चरित्र हो तो किसी जानने वाले का नाम ना रखा जाए ।उन्होंने बताया इसीलिये वे बहुत अलग से नाम रखती हैं, अपराजिता, बाँसुरी आदि। मुझे उनकी वो कहानी भी याद आ गई जिसमें लडक़ी का नाम 'बांसुरी' था । एक प्रेम सफल नहीं हो पाया था, लड़की एक हॉस्टल की वार्डेन बन गई थी और उसके हॉस्टल में ही उसके प्रेमी की बेटी 'बांसुरी' रहने आती है (शायद अपनी माँ को खोने के बाद ) बांसुरी के साथ रिश्ते की कश्मकश ही शायद कहानी का मूलभाव था ।मालती दी ने कहानी का नाम बताया, 'एक और देवदास ' (अब ये कहानी ढूंढ कर पढ़नी है) आज शाम उन्होंने दो कहानियां सुनाईं, 'नो सिम्पैथी प्लीज़'। स्त्रियों द्वारा एक पुरुष के मनोभावों को व्यक्त करते हुए कहानियाँ कम ही लिखी जातीं हैं । जब किसी लड़की के प्रेम सम्बन्ध को नकार कर उसकी शादी जबरन किसी और से कर दी जाती है तो सबकी सहानुभूति उस लड़की के साथ होती है ।इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता कि उस पुरुष पर क्या गुजरती है, जिसे पता होता है कि वह अपनी पत्नी का प्रेम नहीं है फिर भी वह रिश्ता निभाए जाता है ।कहानी इसी विषय की तरफ ध्यान दिलाती है।
मालती दी ने "काँच के शामियाने' पढ़कर अपनी टिप्पणी में कितना सच और सार्थक लिखा है, " शिक्षित होने का अर्थ सुसंस्कृत होना नहीं है । डिग्रियाँ मनुष्य को सभ्य नहीं बनातीं। आभिजात्य तो खून में ही होना चाहिए।वो ऊपर से ओढ़ने की वस्तु नहीं है। पौरुषी अहंकार मनुष्य को पशु बना देता है,इसका यह ज्वलंत उदाहरण है ।"
सादर नमन मालती दी 🙏🙏
(मालती जी के सुपुत्र जी का भी बहुत धन्यवाद जिन्होंने पता और फोन नम्बर की अनुपस्थिति में ये पत्र स्कैन कर मुझे मेल किया ।उनके इस प्रयास के लिए उनकी आभारी हूँ )
मालती जोशी जी एवं पुष्प भारती जी |
सुधा अरोड़ा जी और मालती जोशी जी के साथ |
पुष्प भारती जी के संग |
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "फ़ाइल ट्रांसफर - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।
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