होली जब सन्निकट होती है तो होली के काफी पहले ही बीते दिनों की याद भरी फुहारें जब-तब मन को भिगा जाती हैं और हम उन यादों को को ब्लॉग पर बिखरे भी देते हैं . यहाँ बचपन की होली की यादें और यहाँ मुम्बइया होली का जिक्र किया है .
पर एक याद ऐसी भी है जो सहमा जाती है...पर हर होली पर याद भी जरूर आती है. होली के समय माहौल बड़ा खुशनुमा होता है जिसे गुड़गोबर (बड़े दिनों बाद ये शब्द याद आया तो बस इसे लिखने का मन कर गया ) करने का मन नहीं होता . इसलिए सोचा होली के काफी पहले ही लिख डालूं .
मेरी एम.ए. की क्लास बस होली के दस दिन पहले शुरू हुईं . आठवीं से लेकर बी .ए. तक हॉस्टल में रहकर पढने के बाद ,एम.ए की पढ़ाई मुझे चाचा के घर रहकर करनी थी. पापा की पोस्टिंग काफी दूर एक दुसरे शहर में थी. उन्होंने कहा, "बस अटैची संभाल लो, चाचा के यहाँ छोड़ आता हूँ "मुझे अंदेशा था , होली के पहले शायद ही स्टूडेंट्स आयें और सुचारू रूप से पढ़ाई शुरू हो "मैंने कहा भी, "होली के बाद चलते हैं " पर पापा ने कहा, "ये एम.ए की पढाई है, क्लास मिस नहीं होनी चाहिए ' और तब पापा का आदेश जैसे पत्थर की लकीर, वो टाला ही नहीं सकता था सो हम चाचा के घर आ गये.
धड़कते दिल से जब कॉलेज पहुंची तो मेरी आशंका सही निकली . मुश्किल से दस लड़के क्लास में और लड़की एक भी नहीं . सातवीं के बाद पहली बार को-एड में पढने आयी थी .ये भी एक मुसीबत थी . हाथों में हमेशा एक पत्रिका रखने वाली आदत काम आयी .मैं चुपचाप पत्रिका खोल कर बैठ गयी. हम आगे बढ़कर तो किसी से बात करने वाले थे नहीं और मेरी खडूसियत देख लड़कों की भी हिम्मत नहीं पड़ती. इसलिए यही सिलसिला चलता रहा . जब प्रोफ़ेसर आते तो मैं पत्रिका बंद कर के लेक्चर सुनती, नोट करती और उनके जाते ही पत्रिका में आँखे गडा देती . (पढूं या नहीं ये दीगर बात है )
होली की छुट्टी के लिए स्कूल -कॉलेज बंद होने से एक दिन पहले हर स्कूल -कॉलेज में स्याही से या छुपा कर लाये गुलाल से खूब होली खेली जाती है, इतना तो पता था मुझे. इसलिए सोच रखा था छुट्टी शुरू होने से एक दिन पहले कॉलेज नहीं आउंगी. पर अभी तो दो दिन बाकी थे,इसलिए मैं कॉलेज आ गयी. . मैं हमेशा की तरह पत्रिका खोले बैठी थी , प्रोफ़ेसर क्लास में आ नहीं रहे थे और कॉलेज के कैम्पस में जमकर होली शुरू हो गयी थी. बहुत समय गुजर गया तो मुझे भी लगा, अब क्लास नहीं होगी, घर जाना चाहिए. पर मुश्किल ये थी कि मेरी क्लास कॉलेज के सामने वाले गेट के पास थी . और मैं कॉलेज के पीछे वाले गेट से आती-जाती थी क्यूंकि पीछे वाले गेट से चाचा का घर नज़दीक था। कॉलेज का कैम्पस बहुत बड़ा था, सामने वाला गेट किसी और एरिया में खुलता था और मुझे सामने वाले गेट से चाचा के घर का रास्ता नहीं मालूम था. वह शहर भी मेरे लिए बिलकुल नया था . घोर असमंजस की स्थिति थी.
मेरी क्लास के लड़के भी सोच रहे थे, ' ये घर क्यूँ नहीं जा रही ' आखिर दो लड़के मेरी बेंच के सामने खड़े होकर मुझे सूना कर जोर जोर से आपस में बातें करने लगे, "अभी डिपार्टमेंट में पूछ कर आया हूँ, सर क्लास नहीं लेंगे ,आज कोई लेक्चर नहीं होगा " मैं सब सुनकर भी हठी की तरह अनसुना किये बैठी थी. वे लड़के भी शायद सोच रहे थे बाहर होली खेली जा रही है, यूँ एक अकेली लड़की को क्लास में छोड़कर कैसे जाएं ??
आखिर थोड़ी देर बाद दो लड़के मेरे पास आकर बोले, "आप घर जाइए, अब क्लास नहीं होगी "
अब कोई मैं बॉलीवुड की हीरोइन तो थी नहीं जो कह देती "मुझे डर लग रहा है " और किसी से उबारने की अपेक्षा करती. यहाँ तो अपना सलीब खुद ही ढोना था .
मैंने सपाट स्वर में उन्हें 'ओके थैंक्स ' बोला और पत्रिका बंद कर झटके से उठ खडी हुई.
क्लास से बाहर कदम रखते ही कलेजा मुहं को आ गया. पूरे मैदान में लड़के एक दूसरे के पीछे भाग रहे थे,रंग लगा रहे थे , चिल्ला रहे थे .और मुझे उनके बीच से होकर गेट तक जाना था . मैंने ईश्वर का नाम लिया (अब किसी न किसी भगवान का नाम का तो जरूर लिया होगा, चाहे राम का या ह्नुमान का या दुर्गा देवी का ) और कदम बढ़ा दिये. मैंने सिर्फ यही सोचा ,'आज अगर एक कतरा रंग भी मुझपर पड़ा तो मैं सीधा प्रिंसिपल के ऑफिस में जाकर खड़ी हो जाउंगी " बस यही सोच एकदम सर उठाया और बिलकुल अकड़ कर सीधी उनकी बीच से चल दी. जैसे एन.सी.सी. में मार्च की प्रैक्टिस कर रही होऊं .
अन्दर से मन आंधी में पड़े प्त्ते की तरह काँप रहा था पर मैं हर कोण से यह दिखा रही थी कि मुझे बिलकुल डर नहीं लग रहा . अब यह ट्रिक काम कर गयी या वे लड़के भी मुझे यूँ बीच से जाते देख ,सकते में आ गये पर मुझपर गुलाल का एक कण भी नहीं पड़ा. और मैं चलते हुए गेट तक पहुँच गयी. गेट से निकलने के पहले मुड़ कर एक बार पीछे की तरफ देखा तो पाया मेरी क्लास के लड़के ठीक मेरी क्लास के सामने कमर पर हाथ रखे खड़े हैं. शायद आश्वस्त हो जाना चाहते थे कि मैं सुरक्षित गेट तक पहुँच गयी.
एक खाली रिक्शे को हाथ दिखाया और बैठ गयी और रास्ते भर सोचती रही ,मैंने सोच तो लिया था कि प्रिंसिपल के ऑफिस में चली जाउंगी.पर शिकायत किसके खिलाफ करती?? लड़कों का नाम क्या है, किस इयर के हैं. मैं तो कुछ नहीं जानती थी .और क्या वे लड़के डांट खाने या सजा पाने के लिए शरीफियत से खड़े रहते. वे तो कब के भाग खड़े होते पर अच्छा हुआ ये विचार तब नहीं आये मन में वरना मेरा वो रास्ता पार करना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाता .
मेरी क्लास के लड़के भी कमर पर हाथ रखे बिलकुल लड़ने की मुद्रा में खड़े थे .अगर मुझ पर रंग पड़ जाता तो वे उन लड़कों की धुनाई कर देते और वे लड़के भी कहाँ चुप बैठते .ये तो बिना किसी बात के अच्छा -खासा हंगामा हो जाता . मैं उस अज़ाब से तो निकल आयी थी पर यह सब सोच मेरा चेहरा सफ़ेद पड़ गया था क्यूंकि घंटी बजाते ही चाची ने दरवाजा खोला और घबरा कर पूछने लगीं "क्या हुआ ??" छोटी बहनें भी भाग कर आ गयीं और मेरी सारी बहादुरी कच्ची दीवार सी ढह गयी. अब वे लोग और घबरा गयीं. खैर किसी तरह हिचकियों के बीच उन्हें सबकुछ बताया .
चाची काफी मजाकिया थीं (अब वे इस दुनिया में नहीं हैं, इश्वर उनकी आत्मा को शांति दे ) कहने लगीं, "अच्छा!! तो आप इसलिए रो रही हैं कि किसी ने रंग नहीं लगाया ??"
बहनें भी काफी दिनों तक चिढ़ाती रहीं, "इन्हें कोई रंग नहीं लगाता तो ये रोने लगती हैं "
पर एक बात अच्छी हुई अपनी क्लास के लड़कों का इतना कंसर्न देख ....सारी अजनबियत मिट गयी, अच्छी दोस्ती हो गयी और बाकी के दो साल हमने बढ़िया गुजारे .
तो दोस्ती हो गयी अपने क्लास के लड़कों से :)
ReplyDeleteहमारी यूनिवर्सिटी में तो हफ़्तों पहले से रंग खेला जाने लगता था. और तो और हमारा शहर में निकलना ही मुश्किल हो जाता था. पूरा समय हमलोग हॉस्टल कैम्पस में बंद रहते थे. हाँ, हॉस्टल में खूब मस्ती करते थे.
:-) yaadein
ReplyDeleteक्या बात है :)
ReplyDeleteशुभकामनायें !
कहीं पढा था कि बहादुर नहीं है तो भी बहादुर होने का अभिनय करना भी कारगर होता है।
ReplyDeleteप्रणाम
इसी बहाने दोस्ती तो हो गई अपनी क्लास के लड़कों से अच्छा अनुभव शेयर किया पढ़कर ख़ुशी हुई
ReplyDeleteक्या उनमें से आज किसी के सम्पर्क में हैं, जिनसे अच्छी दोस्ती हो गई थी? बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteye to sahi hai ladake bhi ladakiyon ki hifazat ke liye concern hote hain..bada hi rochak anubhav hai..happy holi...
ReplyDeletesomewhere i read "student life is golden life " . very nice post ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-03-2013) के चर्चा मंच 1186 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeletevery nice Rashmi ji ..College ki Yaadein aisee hee hotee hain. We din fir laut kar nahee aate na ..!
ReplyDeleteवैसे , क्लास में आपका रुतबा तो बढ़ गया होगा ..की रश्मि किसी से डरती नहीं ....:)
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण ....आप क्या डरतीं भला...?
ReplyDeleteमान गए साब ... मान गए ... रंग गुलाल भी डर गए होंगे उस दिन तो ... तभी तो 'एक कण' भी नहीं लगा ... ;)
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन यह कमीशन खोरी आखिर कब तक चलेगी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अरे वाह !
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही बढ़िया संस्मरण ...हाय ! कॉलेज के दिन भी क्या दिन थे, उड़ते फिरते तितली बन के :)
अरे वो दिन भी क्या दिन थे जब पसीना गुलाब था, अब तो गुलाब से भी पसीने की बू आती है, आदाब अर्ज़ है :)
अरे हम भी नहीं डरते थे/हैं किसी से, लेकिन हमको तो बहुतों का नाम ही पता नहीं चला, सिर्फ रोल नंबर जानते थे ....one thirty four, one forty one ....हा हा हा
हिम्मत करने से हिम्मत आ जाती है . अजनबी शहर के अजनबी लोगों की जान पहचान हो आती है . रोमांचक संस्मरण !
ReplyDeleteक्लास के लड़के अक्सर सहायक होते हैं।
ReplyDeleteहोली ही एक ऐसा त्यौहार है जिसमें बाहर जाने पर डर का आभास होना लाज़मी है वह भी अजनबियों के बीच में से. बहुत बढ़िया संस्मरण.
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएँ अडवांस में.
मज़ा आ गया रश्मि. तुम्हारा अकड़ के चलना और तुम्हारी क्लास के लड़कों का कमर पर हाथ रख के तैनाती देना...:) सचमुच क्लास के लड़के ऐसे ही होते हैं. बहुत शानदार संस्मरण है. होली की अग्रिम शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण ,शुभकामनाएं
ReplyDeletelatest postऋण उतार!
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ।
ReplyDeleteहम भी वहीं कहीं थे...
ReplyDeleteऐसा ही होता है ... क्लास के लड़के अपनी क्लास की लड़कियों का कंसर्न रख्जते हैं ओर दूसरे क्लास की लड़कियों पे रंग लगाते हैं ... हा हा ... पर ये भी एक आनद है ... जिसने इसका मज़ा लिया है वो आज भी उन बातों को याद करता है ....
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें ...
अच्छे से होली खेलिएगा. रोईयेगा मत. :P
ReplyDeleteरोचक संस्मरण !
ReplyDeleteहोली पर लड़कियों को हिम्मत से काम लेना चाहिए और क्लास के लड़के रंग न लगाए तो हिचकियाँ लेते हुए रोना नहीं चाहिए।
wah....
ReplyDeletebahut hi behtareen sansmaran
ReplyDelete