जब कभी अकेले शॉपिंग के लिए जाती हूँ तो लौटते समय बच्चों के लिए कुछ पैक करवाना ही होता है (ये टैक्स हर माँ को देना पड़ता है...बच्चे चाहे कितने बड़े हो जाएँ..पर माँ के घर आने पर पूछते ही हैं.."क्या लाई मेरे लिए.?"..) पार्सल का इंतज़ार करते दुखते पैर पास पड़ी कुर्सी पर बैठने को मजबूर तो कर देते...पर नज़र इधर उधर दौड़ती रहती..'कोई परिचित देख ले तो क्या सोचेंगे कि अकेले बैठ कर खा रही है' . {जैसे कोई गुनाह कर रही है :)} ) इसलिए मैं टेबल की तरफ करीब-करीब पीठ करके बैठती कि कोई ये ना समझ ले, मेरा यहाँ कुछ खाने का इरादा है ( वैसे कोई ऐसा समझ भी लेता तो क्या...कोई पैसे उन्हें तो नहीं देने होते :)}.पर इस बेवकूफ मन का क्या कहें कुछ भी उटपटांग सोचता है....वैसे शुक्र है कि मन ही बेवकूफ है...दिमाग नहीं {अब ये मुगालता भी सेहत के लिए कोई नुकसानदेह नहीं :)} .
एक बार अपनी मुम्बई वाली सहेलियों से भी पूछा क्यूंकि ये सब पहले जॉब में थी. बच्चों की देखभाल के लिए स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी है...सोचा इन्हें तो कभी ना कभी अकेले किसी रेस्तरां में चाय के घूँट भरने ही पड़े होंगें . पर इन सबने भी बहुत सोचा...और फिर बताया...'ना ऐसा मौका तो नहीं आया कभी..कलीग साथ होते ही थे.'
एक बार अपनी मुम्बई वाली सहेलियों से भी पूछा क्यूंकि ये सब पहले जॉब में थी. बच्चों की देखभाल के लिए स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी है...सोचा इन्हें तो कभी ना कभी अकेले किसी रेस्तरां में चाय के घूँट भरने ही पड़े होंगें . पर इन सबने भी बहुत सोचा...और फिर बताया...'ना ऐसा मौका तो नहीं आया कभी..कलीग साथ होते ही थे.'
लड़के/पुरुषों के लिए यह कोई ख़ास बात नहीं...पर हम महिलाओं के लिए जरूर बहुत अलग सा अनुभव है.
जब आकाशवाणी जाना शुरू किया...तब भी लौटते हुए स्टेशन से एक सैंडविच और कॉफी लेती और लोकल ट्रेन में चढ़ जाती.(जिसकी गाथा मैं यहाँ लिख चुकी हूँ. ) आकाशवाणी जाने के रास्ते में एक कैफे पड़ता है....वहाँ कॉफी की इतनी स्ट्रॉंग खुशबू आती है..कि कदम जिद्दी बच्चे सा अड़ जाते और उन्हें ठेल कर वहाँ से हटाना पड़ता.
एक दिन हुआ यूँ कि सुबह की रेकॉर्डिंग थी और हम महिलाएँ..घर के सारे काम सही समय पर सुचारू रूप से पूरा कर देंगी..अपनी मैचिंग इयर रिंग्स..बैंगल्स..सैंडल..सबके लिए हमारे पास समय होगा...बस नहीं होगा समय, तो कुछ उदरस्थ करने का . हर महिला के लिए ये काम बस सेकेंडरी ही नहीं ..अंतिम स्थान पर होता है .( महिलाओं की इस लापरवाही पर एक पोस्ट कब से लिखने की सोच रखी है ) .तो मैं अपनी बिरादरी से अलग कैसे हो सकती हूँ.
सारे काम निबटाए...औरकुछ खाने का वक़्त तो बचा ही नहीं..किसी तरह एक बिस्किट मुहँ में डाल पानी पिया और निकल पड़ी. हमेशा की तरह...रेकॉर्डिंग लम्बा खींच गया..और मेरे पेट में चूहे कबड्डी-खो-खो...सब एक साथ खेलने लगे. आकाशवाणी भवन से निकली तो इस बार तो बस कदम उस कैफे के सामने चिपक ही गए..मैने भी उनका कहा नहीं टाला. और एक ग्रिल्ड सैंडविच और कॉफी ली. सेल्फ सर्विस थी. सो एक ट्रे में कॉफी और सैंडविच सजाए एक खाली टेबल ढूंढ कर बैठ गयी.
पहले तो अपनी मोबाइल निकाल थोड़ी देर तक उसे घूरने का नाटक किया..फिर धीरे से इधर उधर नज़र दौडाई तो पाया सब अपने में गुम हैं...यहाँ मुंबई में किसी को फुरसत नहीं कि देखे बगल वाले टेबल पर कोई क्या कर रहा है ...{बस मुझ अकेले को छोड़ कर :) } और किसी महिला का अकेले कॉफी पीना भी उनके लिए कुछ अनहोनी नहीं थी. अब मैने जरा कॉन्फिडेंस से सर उठा कर मुआयना करना शुरू किया तो भांति भांति के दृश्य मिले. बिलकुल बगल वाली टेबल पर एक लद्धड़ सा आदमी..मतलब कि मैली सी सिंथेटिक शर्ट ( अब या तो उसका रंग ही ऐसा था या फिर उसे शर्ट बदलने का मौका नहीं मिला होगा) ...धूसर से रंग की पैंट और पैरों में चप्पल पहने, चेहरे पर थोड़ी उगी दाढ़ी और बिखरे बाल लिए बैठा था. पर उसके आजू-बाजू में दो कमाल की ख़ूबसूरत बलाएँ बैठीं थीं. ब्लो ड्राई किए हुए बाल..कानों में, कंधे छूते लम्बे इयर रिंग्स, शॉर्ट ड्रेस और बित्ते भर की ऊँची सैंडल...बता रही थी, दोनों या तो कोई मॉडल हैं या मॉडल बनने का सपना संजोये हुए हैं. और दोनों लडकियाँ झुक कर उस आदमी से जिस तरह बात कर रही थीं...मुझे लगा वो जरूर मॉडल को-ऑर्डिनेटर होगा या फिर कोई फोटोग्राफर होगा...तभी वे उसे इतना भाव दे रही थीं.
कैफे के आस-पास ही दो मशहूर कॉलेज हैं...'जय हिंद कॉलेज' और 'के.सी. कॉलेज ' (तमाम बौलीवुड के सितारे यहाँ के स्टुडेंट रह चुके हैं ). उनके स्टुडेंट्स का तो यहाँ होना लाज़मी ही था. बस रूप-रंग से ही सब भारतीय दिख रहे थे...वरना पहनावा और बोली तो पश्चिमी ही था. लड़के थ्री फोर्थ में और लडकियाँ बस केप्री..या स्कर्ट में थीं.यानि कि जींस भी यहाँ ओल्ड फैशन में शुमार हो गया था.
एक लड़के और लड़की हाथ में हाथ डाले आए (वेरी कॉमन साइट )..लड़का ऑर्डर करने गया और इसी बीच उस लड़की ने बड़ी सफाई से गले तक के अपने टॉप को धीरे से खिसका कर ऑफ शोल्डर कर लिया.और फिर नज़रें घुमा कर चारों तरफ देखने लगी कि लोग उसे नोटिस कर रहे हैं या नहीं..मैने झट अपनी नज़र दूसरी तरफ फेर ली. और कई बार हम देख कर ये सोचते हैं कि पैरेंट्स ऐसे कपड़े पहन कर घर से निकलने कैसे देते हैं.?
एक टेबल पर दो लड़के और एक लड़की बैठे थे. उसमे एक तो गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड थे..क्यूंकि उनका PDA ( Public display of affection )चल रहा था लैपटॉप पर झुके दोनों कुछ देख रहे थे....{अब लैपटॉप का स्क्रीन मुझे नहीं दिखा :)} दूसरा लड़का उदासीन सा सडक निहार रहा था...पर लैपटॉप उसी का था क्यूंकि बीच बीच में दोनों प्रेमी उस से कुछ पूछते...वो लैपटॉप अपनी तरफ कर ठीक कर देता और फिर...फिर उनकी तरफ खिसका वीतराग सा बाहर देखने लगता...मुझे लगा ..ये बस एक्टिंग कर रहा है..और उसके कान खड़े हैं..दोनों की बात सुनने के लिए.
एक लड़के और लड़की हाथ में हाथ डाले आए (वेरी कॉमन साइट )..लड़का ऑर्डर करने गया और इसी बीच उस लड़की ने बड़ी सफाई से गले तक के अपने टॉप को धीरे से खिसका कर ऑफ शोल्डर कर लिया.और फिर नज़रें घुमा कर चारों तरफ देखने लगी कि लोग उसे नोटिस कर रहे हैं या नहीं..मैने झट अपनी नज़र दूसरी तरफ फेर ली. और कई बार हम देख कर ये सोचते हैं कि पैरेंट्स ऐसे कपड़े पहन कर घर से निकलने कैसे देते हैं.?
एक टेबल पर दो लड़के और एक लड़की बैठे थे. उसमे एक तो गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड थे..क्यूंकि उनका PDA ( Public display of affection )चल रहा था लैपटॉप पर झुके दोनों कुछ देख रहे थे....{अब लैपटॉप का स्क्रीन मुझे नहीं दिखा :)} दूसरा लड़का उदासीन सा सडक निहार रहा था...पर लैपटॉप उसी का था क्यूंकि बीच बीच में दोनों प्रेमी उस से कुछ पूछते...वो लैपटॉप अपनी तरफ कर ठीक कर देता और फिर...फिर उनकी तरफ खिसका वीतराग सा बाहर देखने लगता...मुझे लगा ..ये बस एक्टिंग कर रहा है..और उसके कान खड़े हैं..दोनों की बात सुनने के लिए.
पास में ही हाईकोर्ट भी है..तो वकीलों का दिख जाना भी मामूली बात है. दो वकील अपना काला कोट पहने..जबकि उसे उतारकर हाथों में ले सकते थे. बहुत गर्मी नहीं थी..पर सर्दी भी नहीं थी. दोनों जन एक टेबल पर उत्तर-दक्षिण की तरफ मुहँ करके बैठे थे. अब या तो दोनों विरोधी वकील थे ..या फिर कोर्ट में बहस करने के बाद vocal chord को आराम देना चाहते थे या फिर...स्ट्रेटेजी सोचने में .... या फिर कौन सा झूठ कैसे बोला जाए यह तय करने में व्यस्त थे (वकीलों से क्षमायाचना सहित...खाली दिमाग का महज एक खयाल भर है ).पर जितनी देर बैठे रहे...एक शब्द नहीं बात की आपस में.
मेरी ही तरह एक अकेली लड़की ने एक पूरी टेबल घेर रखी थी. एक तरफ बैग पटका हुआ था...और कुछ कागज़ बिखरे हुए थे...वो कागज़ पर लिखे जा रही थी..अब या तो कोई जर्नलिस्ट थी या कोई स्टुडेंट...पर अच्छा लग रहा था...आज के जमाने में भी किसी को कलम से यूँ कागज़ रंगते देख.
पर सबसे ख़ूबसूरत नज़ारा था..बीच वाली मेज का...तीन सत्तर से ऊपर की पारसी महिलाएँ...स्कर्ट पहने थीं. ..कंधे तक बाल सलीके से कंघी किए हुए थे. एक बाल भी अपनी जगह से इधर-उधर नहीं था. चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ था
..पर आँखें चमक रही थीं. होठों पर लिपस्टिक और सुन्दर सी चप्पलें थी पैरों में. तीनों कॉफी-पेस्ट्रीज़ -बिस्किट के साथ लगातार बातें किए जा रही थीं. अब या तो तीनो फ्रेंड थीं...या रिश्तेदार..पर पूरे कैफे में यही तीनो सबसे ज्यादा एन्जॉय कर रही थीं. मैने बड़ी मुश्किल से एक फोटो लेने की इच्छा पर काबू पाया...वे लोग बिलकुल भी मना नहीं करतीं. पर मुझे बीच में घुसकर उनकी बातों का तारतम्य तोडना..गवारा नहीं हुआ.
..पर आँखें चमक रही थीं. होठों पर लिपस्टिक और सुन्दर सी चप्पलें थी पैरों में. तीनों कॉफी-पेस्ट्रीज़ -बिस्किट के साथ लगातार बातें किए जा रही थीं. अब या तो तीनो फ्रेंड थीं...या रिश्तेदार..पर पूरे कैफे में यही तीनो सबसे ज्यादा एन्जॉय कर रही थीं. मैने बड़ी मुश्किल से एक फोटो लेने की इच्छा पर काबू पाया...वे लोग बिलकुल भी मना नहीं करतीं. पर मुझे बीच में घुसकर उनकी बातों का तारतम्य तोडना..गवारा नहीं हुआ.
सोनल रस्तोगी की टिप्पणी ने ने याद दिलाया तो याद आया...एक लड़की का जिक्र भूल ही गयी थी...जो लॉंग स्कर्ट पहने थी...स्लीवलेस टॉप और गले में लम्बी सी मोटे मोटे मोतियों की माला. ठीक एंट्रेंस के सामने वाली टेबल पर एक मोटी सी किताब लिए बैठी थी..पर नज़रें किताब पर नहीं , दरवाजे से लगी थीं ...किसी के इंतज़ार में थी..और जब वो शख्स आया तो उसने काफी बातें सुनाईं होंगी क्यूंकि वो लड़का हंस हंस कर सफाई दिए जा रहा था ....ऐसा लगता था जिस हिसाब से उसे डांट पड़ती...उस हिसाब से उसकी बत्तीसी दिखती :)
एक नज़ारा और देखने को मिला...अपने उत्तर -भारत का आम नज़ारा. लड़की देखने-दिखाने का अब मुंबई में रहते हैं,तो क्या..किसी लड़की को I Luv U बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए तो माता-पिता को ये कवायद तो करनी ही पड़ेगी. पहले मुझे कुछ समझ नहीं आया....कुछ लड़के-लडकियाँ..महिलाएँ...आये और जोर जोर से बातें करते हुए, एक टेबल पर बैठ गए. कुछ मिसफिट से लग रहे थे,इस माहौल में ..मुझे लगा या तो ये लोग मुंबई घूमने आए हैं...या फिर शॉपिंग के लिए आए होंगे..कॉफी की तलब यहाँ खींच लाई होगी. थोड़ी देर बाद उनमे से एक लड़की उठी...और मेरे पीछे की तरफ गयी वहाँ से एक लड़की को साथ ले अपने टेबल पर चली गयी. तब मैने देखा..पीछे तरफ माता-पिता के साथ वह लड़की पहले से बैठी हुई थी. अब ये लोग मेरे सामने थे...लड़की कुछ भी नहीं बोल रही थी...बस मुस्कुरा रही थी. वे लोग भी कुछ ज्यादा बातें नहीं कर रहे थे...बस उसे घूरे जा रहे थे. थोड़ी देर बाद सारी मण्डली उठ कर लड़की के माता-पिता के पास चली गयी और लड़की-लड़के को वहाँ छोड़ दिया....अब मुझे पता चला कि उनमें लड़का यानि भावी दूल्हा कौन है...बहुत ही कमउम्र का लड़का था..कानों में डायमंड और एम्ब्रॉयड्री वाली शर्ट पहन रखी थी. बिजनेसमैन की फैमली का लग रहा था..वरना नौकरीपेशा वाले घरों में इतनी जल्दी शादी नहीं करते. पर वे दोनों कुछ भी बात ही नहीं कर रहे थे...उनकी सामने पड़ी कॉफी भी ठंढी होती जा रही थी...उन दो वकीलों की तरह दोनों उत्तर-दक्षिण की तरफ नहीं देख रहे थे बल्कि लड़की की नज़रें टेबल घूर रही थी और लड़के की सड़क. थोड़ी देर बाद एक लड़की (जरूर लड़के की बहन होगी..) ने लड़के से इशारे से पूछा...और लड़के ने हाँ में सर हिलाया...लड़की(भावी दुल्हन) की पीठ उस तरफ थी..इसलिए वो ये इशारे नहीं देख सकी. पर लड़की के माता-पिता वाले टेबल पर सबके चेहरे खिल गए. लड़की के पिता..तुरंत काउंटर की तरफ चले गए..(शायद पेस्ट्री लाने ) . अब लड़की से पूछा गया था या नहीं..ये तो पता नहीं लग पाया..पर हो सकता है...लड़की से पहले से ही पूछ लिया गया हो..अब पहले वाला ज़माना तो रहा नहीं कि लड़की की राय लेना जरूरी ना समझा जाए.
थोड़ी देर बाद वे लोग आकर लड़की/लड़के को भी अपनी टेबल पर ले गए.
मुझे भी लगा..इस सुखद नोट पर यहाँ से उठ जाना चाहिए.
कोई बुरा नहीं रहा..अकेले कॉफी पीने का अनुभव...यानि की फिर से अकेले पी जा सकती है,कॉफी .. :)
क्या वाक़ई अकेले कॉफ़ी पीना इतना ही बड़ा अनुभव होगा, कभी नहीं सोचा था
जवाब देंहटाएंकैसे सोचेंगे ...आपलोगों के लिए यह आम बात जो है...दूसरी बिरादरी के जो ठहरे :)
हटाएंबडा रोचक किस्सा अकेले कैफ़े जाने का !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :)
हटाएंसलाम आपकी नज़र को.
जवाब देंहटाएंक्या हम कभी अकेले हो पाते हैं ?
हम्म...सही कहा...तन्हाई हो तब भी अकेले नहीं होते...एक शेर याद आ गया..
हटाएं"जाने कब हमराह हो गयी तन्हाईयाँ
हम तो समझे थे अकेले ही हैं,सफ़र में "
आपकी कहानियों से निकल कर यह पोस्ट एकदम ताज़ा दम एहसास दे रही है... काफी मज़ेदार लगा..
जवाब देंहटाएंसच में ,सख्त जरूरत थी..उस कहानी के मूड से निकल...एक ऐसी पोस्ट लिखने की...
हटाएंझूठ बोल रही है आप अकेली कहाँ थी आप ....तन्हा किसी रेस्टोरेंट में काफी का लुत्फ़ हमने भी उठाया है और वो भी फुल मस्ती में शिवानी की "शमशान चम्पा" ,एक ग्रिल सैंडविच ..बढ़िया सा सोफा CCD में ..किताब की ओट से कई कहानियों के पात्र भी वही मिले
जवाब देंहटाएंहम्म...तो सोनल अब आप ये बताएँ उस किताब की ओट में किसका इंतज़ार कर रही थीं..:)
हटाएंक्यूंकि तुमने याद दिलाया तो याद आया...उस लॉंग स्कर्ट वाली लड़की का जिक्र तो भूल ही गयी...जो ठीक दरवाजे के सामने एक मोटी सी किताब लिए बैठी थी...पर नज़र दरवाजे लगी थी ...किसी के इंतज़ार में ही थी..और जब वो शख्स आया..तो उसने काफी बातें सुनायी होंगी क्यूंकि वो हंस हंस कर सफाई दिए जा रहा था...ऐसा लगता था जिस हिसाब से उसे डांट पड़ती ..उस हिसाब से उसकी बत्तीसी दिखती..:)
akele chai to hamne bahuto baar peeya.. kisi bhi chai ki chhoti see dukan pe khade ho kar...
जवाब देंहटाएंpar coffee house me coffee ke maje aapke tarah nahi le paye...:)
waise road side chai peene ka bhi ek alag maja hai... :) kabhi try kijiyega:)
जवाब देंहटाएंमुकेश जी,
हटाएंहमने ये अनुभव भी लिया है...पर अकेले नहीं..फ्रेंड्स के साथ...फेसबुक पर तस्वीर भी लगाई है....नुक्कड़ पर चाय पीने वाली.
बारिश के दिनों में मॉर्निंग वाक के साथ एक बार तो जरूर पीते हैं नुक्कड़ वाली चाय.
अकेले जाना पड़े तो हम तो काफी ही न पियें ... पर आपका अनुभव ... बहुत रोचक है ...
जवाब देंहटाएंशायद आपको भी कभी मौका मिल जाए....फिर बांटिएगा अपने अनुभव :)
हटाएंआपने तो दिल की बात कह दी बहुत अच्छा रहा आपका अनुभव मगर वाकई बहुत कुछ सोच लेता है न हम महिलाओं का मन इन छोटी-छोटी बातों को लेकर... :-) मैंने तो कैफ़ क्या अपने collage के कैंटीन में भी कभी अकेले कॉफी या चाय नहीं पी :)
जवाब देंहटाएंअक्सर महिलाओं को ऐसे मौके नहीं ही मिलते..मेरा भी तो इतने दिनों के बाद पहला अनुभव ही था यह .
हटाएंmain to kabhi himaat hi nahi kar pati akele coffee peene ki
जवाब देंहटाएंहमने तो कभी अकेले कॉफी पीने की हिम्मत ही नहीं की
जवाब देंहटाएंअरे !! आपने ये क्या कह दिया...आप तो पत्रकार हैं..फिर भी मौका नहीं आया..या आपने ही शायद जब्त कर ली हो, ऐसी कोई इच्छा :)
हटाएंनीलिमा जी! अच्छा लगा जो रोमन के बाद आपने देवनागरी का सम्मान किया। रोमन में हिन्दी देखकर मेरा मुँह मिर्ची खाये जैसा हो जाता है । हम का करें हमरा अदतिये अइसा हो गया है। ख़ैर, देवनागरी का सम्मान करने के कारण हम आपका सम्मान करते हैं।
हटाएंसफल लेखिका या लेखक होने की यही निशानी है। जहां भी हो जिस हाल में भी हो। अवलोकन करने से नहीं चूकना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसफल..असफल तो नहीं पता...पर शायद आदत सी है...चीज़ों का अवलोकन करने की...कई बार तो सबकॉन्शस माइंड ही कई बातें नोट कर लेता है जो लिखते वक़्त अपने आप लिख जाती हैं.
हटाएंहमारी भाषा में तो इसे ही वैज्ञानिक मानसिकता कहा जाता है।
हटाएंवाह क्या खाका खींचा है। शादी तक करा डाली कॉफी हाउस में। बढिया संस्मरण है।
जवाब देंहटाएंलीजिये..अब हमने थोड़ी ना दोनों पक्षों को इनवाईट किया था...:)
हटाएंहॉस्पिटल की एक्स-रे मशीन इन दिनों ख़राब है ...आपकी एक्स-रे निगाहें कमाल की हैं। आ जाइये कुछ दिनों मरीज़ों का भला हो जायेगा। हाँ ! पिछले जनम में आप कोई जासूस-वासूस थीं क्या? और आख़िरी बात ये कि अकेले चाय-कॉफ़ी पीने के मामले में हमें पीएच.डी.है। शायद ही कभी कोई साथ होता हो। हम प्रायः आवारा जैसे अकेले ही होते हैं।
जवाब देंहटाएंहमें तो हमेशा किसी का साथ मिल ही जाता है..ये पहला मौका था..इसलिए एक पोस्ट ही बन गयी..:)
हटाएंरश्मि जी
जवाब देंहटाएंकभी अकेले फिल्म ना देखी हो तो जरुर देखिये जितना ध्यान से और फिल्म में डूब कर आप उसे देखेंगी उतना पहले कभी नहीं देखा होगा फिल्म देखने के बाद भी उसे आप जीती रहेंगी | कुछ महीनो पहले मैंने अकेले फिल्म देखी, पूरे ६ साल बाद थियेटर की शक्ल देखी थी , वही बिटिया रानी के चक्कर में हम दोनों इतने साल फिल्म ही देखने नहीं गये उसे ले कर जा नहीं सकते थे | बस एक दिन मन किया की ये फिल्म देखनी है पर जाये कैसे , फिर नेट पर नजर पड़ी की सुबह ९.३० पर भी उनका शो होता है जो १२.३० तक ख़त्म हो जाना था ( लो मुझे तो ये भी ना पता था ) १ बजे उसके स्कुल से आने का समय था बस बच्ची को स्कुल भेजा पति गये अपने दो टकिये की नौकरी पर ( अब फिल्म के लिए छुटी तो नहीं ले सकते थे और मै लेने भी नहीं देती ) और फिल्म देखी बिल्कुल मुझे इन परिस्थितियों को सूट करने वाली " जिंदगी ना मिलेगी दुबारा " पहली बार लगा की शायद फिल्म मै कुछ ज्यादा ही ध्यान से देख रही हूँ फिल्म का निर्देशन कला जगह कपडे डायलाग फिल्मांकन फिल्म का दर्शन शास्त्र लगा पहले तो कभी इन सब पर इतना ध्यान गया ही नहीं बिल्कुल आप की ही तरह अकेले में हर जगह नजर जाती है ( और आने के बाद पति को खूब चिढाया भी लो जी अब तो तुम्हारी पत्नी रही सही भी तुम्हारे हाथ से निकल गई अकेले फिल्म देखने भी जाने लगी है :) मेरे जाने से पहले वो खूब हँस रहे थे की मै अकेले मूवी के लिए जा रही हूं बोर हो जाउंगी )
सही किया आपने आजकल तो दो टकिए की नौकरी भी मुश्किल से मिलती है। वह जिंदगी ना मिलेगी दुबारा की तरह है।
हटाएंबहरहाल पर यह फिल्म पर भी निर्भर करता है कि वह आपको आसपास के माहौल से बिलकुल अछूता रखे और अपने में ही समो ले। कोई शक नहीं कि 'जिंदगी ना मिलेगी दुबारा' ऐसी ही फिल्म है। पिछले दिनों मैंने ऐसी ही एक और फिल्म देखी 'कहानी'।
अंशुमाला जी,
हटाएंजब ये मौका आ गया तो शायद कभी वो भी आ जाए...फिर इसी ब्लॉग पर वो अनुभव भी शेयर करुँगी जरूर..:)
आपका कहना बिलकुल सही है, मैंने ९०% फ़िल्में अकेले ही देखी हैं.
हटाएंएक काफ़ी के साथ बहुत कुछ बटोर लिया आपने आस-पास से, इसे कहते हैं पारखी नजर।
जवाब देंहटाएंपारखी नज़र क्या...बस टाइम पास था..:)
हटाएंजब कॉफी साथ में है तो अकेले कहाँ, विचारों का प्रवाह प्रबल हो जाता है..
जवाब देंहटाएंविचारों के प्रवाह को तो हमने रोक रखा था...बस सबको घूरे जा रहे थे...:)
हटाएंअगर मैं रहता उस कॉफी शॉप में और आप मेरे को ऐसे घूरती तब तो हमारी लड़ाई हो जाती :D वैसे प्रवीण भैया कितने कॉन्फिडेंट होकर बोल रहे हैं...विचारों का प्रवाह प्रबल हो जाता है...बैंगलोर में कहाँ कहाँ अकेले बैठ कर कॉफी पीये हैं भैया? ;) ;)
हटाएंमान गए जी मान गए ... क्या तफसील से सब नोट किया है आपने ... लगा हम भी है वहाँ ... सलिल दादा पढ़ेंगे तो जरूर कहेंगे कि किसी सीन का स्क्रीनप्ले जैसा है पूरा विवरण ... बस यह और पता होता कब, कहाँ, किसको, ... क्या करना है !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आज का दिन , 'बिस्मिल' और हम - ब्लॉग बुलेटिन
शुक्रिया शिवम..मेरी पोस्ट शामिल करने का..
हटाएंgreat observation...............
जवाब देंहटाएंexcellent expression.....................
superb writing..........................................
anu
Thankuuu so much Anu..:)
हटाएंगज़ब के ऑब्ज़रवेशंस हैं आपके । अगली बार जब मैं मुम्बई आऊँ तो मुझे इस रेस्टारेंट का पता दीजियेगा । ( मैं भी वहाँ अकेले कॉफी पीने जाऊँगा )
जवाब देंहटाएंही ही..पर आप मेरी तरह बेबाक हो लड़कियों को नहीं घूर सकते..:):)
हटाएंशरद जी को ख्यालों में भी लुतफन्दोज़ ना होने दीजियेगा आप तो :)
हटाएंआज की पोस्ट पढ़के अच्छा लगा ! एक अलग ही फ्लेवर रहा ! बंधी बंधाई लीक से हटकर , खूबसूरत अनुभवों से सजी ! मेरे कमेन्ट की शक्ल मत देखिये एक बार खुद कहिये कि ये पोस्ट आपको तसल्ली दे गई कि नहीं !
हटाएंआपके कमेन्ट की शक्ल तो अच्छी खासी है...फिर देखने को मना क्यूँ किया...:)
हटाएंअच्छा अनुभव..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंघर में ही अकेले चाय /कॉफ़ी पीना अजीब लगता है तो रेस्तरां में पीने के लिए काफी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी . लग रहा है कि कभी- कभी इसे भी आजमा लेना चाहिए . दिलचस्प अनुभव!
जवाब देंहटाएंकेवल पीना अजीब!..मैं तो अकेले के लिए कभी बनाती भी नहीं...कामवाली की राह देखती हूँ..फिर उस से बड़े प्यार से पूछती हूँ.."चाय पियोगी?' तो जरा मेरे लिए भी एक कप बना देना..:)
हटाएंअरे मैं भी ऐसा ही सोचती थी और अपनी सोच में अकेले व्यक्ति की हमदर्द बन जाती थी ! :) पर जो नज़ारे उपस्थित हुए हैं उनको याद करके अकेले की ताजगी समझ में आई ...
जवाब देंहटाएंइस दृश्य के लिए यह गीत - ज़िन्दगी तेरे संग इक लम्हा लगे , वो लम्हें चुपचाप से कॉफी की भाप में यूँ हीं मचलते रहे '
चलिए आप भी मेरी तरह अकेले इंसान पर तरस खाती थीं.....:)
हटाएंअभी तक तो ऐसा मौका आया नहीं , क्या कहें
जवाब देंहटाएंकुछ मत कहिए..एक बार आजमा लीजिये..:)
हटाएंएक झिझक के साथ ही सही लेकिन आपने जब रेस्तरां में अकेले कॉफी पीने की हिम्मत जुटा ली तो सौदा घाटे का तो नहीं रहा ! कितने तो कथानक मिल गये होंगे भावी कहानियों के लिए और कल्पना को कितनी ऊँची उड़ान भरने का मौक़ा भी मिला होगा ! यह अनुभव भी शानदार ही रहा होगा आपके लिए ! है ना ? हमेशा की तरह बेहद दिलचस्प और बाँधे रखने वाला संस्मरण है यह भी ! पढ़ कर बहुत आनंद आया !
जवाब देंहटाएंकहानियों के कथानक तो सोनल को मिले थे....अब उनमें से कोई एक किसी कहानी में उतर आए तो कुछ कहा भी नहीं जा सकता...:)
हटाएंक्या बात है ... आपके लेखन में इतनी ताज़गी तो कई बार कॉफी पीने के बाद भी नहीं आती जो इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आई है :) लाजवाब
जवाब देंहटाएं@शुक्रिया सदा....:)
हटाएंअकेले कॉफी पीते हुए सोचना और उसे शब्द चित्र में खूबसूरती से उतारना लाजवाब लगा...
जवाब देंहटाएंथैंक्स मीनाक्षी जी,
हटाएंआपका ब्लॉगजगत में लौटाना..सुखद लग रहा है...:)
interesting location par hai ye coffee shop :)
जवाब देंहटाएंइस किस्सागोई का जवाब नहीं, बहुत ही दिलचस्प और मजेदार और वास्तविक भी.
जवाब देंहटाएंबधाई.
वाह,एक बार में ही इतना अवलोकन -
जवाब देंहटाएंये कहिये न ,कॉफ़ी के बहाने दुनिया को पढ़ती रहीं !
जी! आपके अकेले कॉफ़ी पीते इस अनुभव से साक्षात्कार
जवाब देंहटाएंबिलकुल जी के चेस्टरटन के आलेखों जैसा लगा. बिलकुल वही लबो लहजा, वही अंदाज़. बस
अंग्रेज़ी फ्लेवर की जगह यहाँ हिन्दी कलेवर था. इस बहुत ख़ूबसूरत
रचना के लिए शब्द नहीं.
रोचक रहा आपका यह अकेले रेस्टॉरेंट में जाना। दिलचस्प रहा पढ़ना
जवाब देंहटाएंBahut badhiya. Aapne akele he itna enjoy kiya, padhke maja ayaa. Kal he aayi hun Missouri se. Meri sister in law ke ghar gayi this pichle kuch din se. Usne bhi yehi samjhaya ki akele life enjoy karna shuru karo, kabhi bor nahi hogi. Wo bahut bindas hai, akele dur dur shehron mein ghum aati hai, apni car mein, while husband business sambhalta hai. Aur wo bahut jyada english bhi nahi janti. Per himmat gajab ki hai. Aur aaj aake apka yeh lekh padha to laga jaise, mere liye he thaa. Ab to sachmuch akele ghumne ki adat dalni padegi.
जवाब देंहटाएंअकेले किसी रेस्टोरेंट में जाना अच्छा लगता है .... लेकिन चाय-कॉफी के लिए नहीं .... शुकून के लिए ..... भीड़ में अकेलापन अच्छा लगता है.... !!
जवाब देंहटाएंपहले भी पढ़ी थी। समझ में नहीं आ रहा है कि कमेंट क्यों नहीं किया! हो सकता है उसी रेस्टोरेंट में चला गया होऊँ खयालों में!:)
जवाब देंहटाएंहमारे आसपास का हर जर्रा अभिव्यक्त हो रहा होता है उसे बस चाहिए होती है ऐसी ही एक पारखी नज़र और अभ्यस्त उंगलियाँ।
मैं तो अक्सर अकेले ही जाता हूँ कॉफी शॉप, लेकिन मैं भी कॉफी लेने के बाद सबसे पहले अपने मोबाईल को कुछ देर तक घूरता हूँ :P
जवाब देंहटाएंवाकई, इतना बेहतरीन लिखती हैं आप...बल्कि बेहतरीन शब्द बहुत हल्का है। क्या रवानगी है भाषा में, पूरा पोस्ट एक सांस में पढ़ गया। आपकी कहानियों पर टिप्पणी करना बाकी है...काहे कि हफ्ते भर के लिए नेट, मोबाइल की दुनिया से अज्ञातवास में चला गया था। अब वापसी हो गई है...
जवाब देंहटाएंआप वाकई एक्स-रे हैं! इतना गहरा अवलोकन! वाह! और बहुत ही रोचक जगह है, वहाँ तो अकेले भी (ही?) जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंक्या मेरा ट्रैक रिकॉर्ड सचमुच ख़राब है? मैं एक बार भी किसी रेस्टोरेंट में अकेला नहीं गया।
लेखक /लेखिकाओं कि यही तो बात तारीफ़-इ-काबिल होती है कि दे कैन कॉन्जूर स्टफ ...कुछ नहीं में भी बहुत कुछ दिखाई दे जाता है उनको ...भला बताओ ..एक कप कॉफ़ी में इतनी सारी कहानियां घुली हुई थीं..जितना दूध पानी और कॉफ़ी मिलकर भी न होगी .....खैर ! हमेशा कि तरह तुम्हारी शैली ने बांधे रखा ....
जवाब देंहटाएंCoffee ke sath kafi sare drishya.......coffee akeli kahe ki...Dimag me chal rahi itni chatpati batto ki list ke aagey to coffee kam par rahi hogi....Sachmuch aapki coffee ne to sama bandh diya aankho ke samne..
जवाब देंहटाएंAapki coffee ne to sama bandh diya aankho ke samne...
जवाब देंहटाएंवाह..ऐसे कॉफ़ी तो सबको पीना चाहिए..कितना कुछ देखने मिला आपको..आपके साथ हम भी वहाँ पहुँच गए
जवाब देंहटाएंवाह , एक कप कॉफ़ी के साथ आपने कितने दृश्य पी लिए | ये कोफ़ी यादगार बन गयी | पर अनदेखे , अनजाने आज हम सब भी उस कॉफ़ी में आपका साथ दे ही दिया ... वंदना बाजपेयी
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