काफी दिनों बाद कोई ब्लॉगपोस्ट लिख रही हूँ. शुरुआत करने से पहले एक बार फिर अपने ब्लॉग पाठकों का शुक्रिया अदा कर दूँ। लेखन की दूसरी पारी ,आप सब पाठकों के उत्सावर्द्धन से ही जारी रही...कहानियाँ लिखते,उपन्यास भी छप गया। कुछ यात्रा वृत्तांत काफी दिनों से लिखना चाह रही थी ,पर टलता जा रहा था। अब ब्लॉग वापसी हुई है तो सोचा, किस्तों में वही लिख डालूँ। पढ़ने वाले होते हैं तो लिखने का भी दिल करता है। तो भूमिका ज्यादा लंबा न खींचते हुए ,ले चलती हूँ आप सबको 'लाहुल स्पीति' की सैर पर।
मुझे पहाड़ घूमने का मन था ,पर जानी सुनी , भीड़ भरी जगहों पर नहीं। मुझे एक मित्र ने 'लाहुल स्पीति ट्रिप' सुझाया। इसके पहले मैंने यहाँ का नाम भी नहीं सुना था। फिर तो इंटरनेट खंगाला गया ,काफी कुछ पढ़ा और ग्यारह दिनों की ट्रिप प्लान कर ली। 'लाहुल स्पीती' हिमाचल प्रदेश में स्थित दो जिलों का नाम है ,जिन्हें पहाड़ों का रेगिस्तान भी कहा जाता है..करीब 15000 फीट पर स्थित यह भारत की चौथी सबसे कम आबादी वाली जगह है. यहाँ सिर्फ ऊंचे पहाड़, नदियाँ, झरने मिलने वाले थे. हमारी यात्रा के पड़ाव थे ,चंडीगढ़- नारकंडा- सराहन- सांगला- चिट्कुल-काल्पा- टाबो- काज़ा - चंद्रताल - मनाली- चंडीगढ़। हमने सब जगह होटल की बुकिंग कर दी।शिमला |
चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर हम टकटकी लगाए देख रहे थे कि शायद हमारा सामान आ गया हो। और जब काफी देर बाद हमारा बड़ा सा बैग नज़रों की ज़द में आया तो सारी मायूसी काफूर हो गई. हमने एक इनोवा बुक की थी , जो हमें चंडीगढ़ एयरपोर्ट से रिसीव कर सारी जगहें घुमा फिर चंडीगढ़ छोड़ जाने वाली थी । बाहर ड्राइवर इंतज़ार में ही था। एक मेजदार बात हुई. मेरे साथ ही एक महिला अपनी ट्रॉली धकेलते हुए जा रही थी...जब हमारी नज़रें मिलीं तो अनजान होते हुए भी हम दोनों एक दूसरे को देख खुल कर मुस्करा दिए, 'हम दोनों ने बिलकुल एक जैसा टॉप पहना हुआ था :) .मुंबई के एक ही स्टोर से खरीदा होगा.
शिमला में एंटर करते ही घुमावदार सड़कें, लाल, हरे रंग वाली टीन की छतें, ऊँचे चीड़ के वृक्ष और उनके पार पर्वतों की चोटियां मन मोह ले रही थीं। शिमला पहुँचते अँधेरा घिर आया. शिमला से हमें गर्म कपड़े खरीदने थे। आगे 'रोहतांग पास' वगैरह में मौसम ठंढा होने वाला था और हम मुम्बईकर के पास गरम कपडे होते नहीं. मेरा हॉलिडे का मूड, ठंढी हवा, शिमला की पतली गालियां, छोटी दुकानें, लाल लाल गाल वाले प्यारे से बच्चे। सब कुछ इतना खुशनुमा लग रहा था कि मन हो रहा था, खरामा खरामा चलती रहूं पर ड्राइवर बार बार फोन कर रहा था कि हमें नारकंडा पहुंचते बहुत रात हो जायेगी, पहाड़ी रास्ता है...और रास्ता भी खराब है. बिना ज्यादा घूमे, मोलभाव किये पहली दूकान में जो मिला...हमने स्वेटर,जैकेट,मफलर सब खरीद लिया . ( सिर्फ चंद्रताल में जैकेट काम आये ,बाकी स्वेटर वगैरह अब तक वैसे ही नए पड़े हैं. जुलाई के महीने में बाकी सारी जगहों पर जरा भी ठंढ नहीं थी और मौसम बहुत खुशनुमा था। )
अब तक हम थक कर चूर हो चुके थे ,निढाल से पड़े थे। जंगलों के बीच एक ढाबा नज़र आया, ड्राइवर से आग्रह किया गया, 'कुछ खाकर चाय पी जाए।' आँखों के सामने गर्मागर्म समोसे और पकौड़े की प्लेट नाच रही थी। पर ढाबा बिलकुल खाली था ,एक औरत कुछ रख,उठा रही थी. दो लडकियां टी वी देख रही थीं. पता चला, बिस्किट और चाय के सिवा कुछ नहीं मिलेगा. माँ आवाज़ लगाती रह गई, पर देश-विदेश, मैदान- पहाड़ कोई भी जगह हो, किशोरावस्था एक सी होती है. लडकियां टी वी के सामने से नहीं उठीं. माँ ने ही हाथ का काम छोड़ स्टोव जला, चाय बनाई । वे लोग जितना हो सके स्टोव या लकड़ियों पर खाना बनाती थीं. गैस बचा बचा कर खर्च करती थीं.
नारकंडा में हमारा होटल एक छोटी सी पहाड़ी पर था. दोनों तरफ ढलान और ढलान पर हल्की रौशनी में नहाते चीड़ के पेड़ एक तिलस्म सा रच रहे थे। होटल की बगल में कुछ लोहे की कुर्सियां और गोल टेबल रखे थे। किनारे रेलिंग थी और रेलिंग के पार गहरी घाटी। तभी हल्की सी बारिश शुरू हो गई. होटल के शेड में लगे बल्ब से छन कर आती रौशनी में नाचती बारिश की बूंदें कुछ इतनी भली लग रही थीं कि मन हुआ उस फुहार में कुर्सी पर देर तक बैठी रह जाऊँ ,पर थके शरीर ने इज़ाज़त नहीं दी। कुछ देर बाद संगीत और शोर शराबे की आवाज़ आने लगी । खिड़की से देखा, कुछ युवा उसी फुहार में गाना लगा, पार्टी कर रहे थे। हमने सोचा ये तो शिमला से आये होंगे ,हम तो मुम्बई से करीब २००० किलोमीटर का सफर करके आये हैं। खाना भी हमने रूम में ही मंगवाया और उन सबकी एन्जॉयमेंट पर रश्क करते सो गए.बहुत शौक था की किसी अनजान शहर में सुबह सुबह मैं अकेली निरुद्देश्य घुमा करूं. लिहाजा चलती चली गई. शहर बस अलसाया सा अधमुंदी आँखों से माहौल का जायजा ले रहा था. इक्का दुक्का लोग सड़कों पर थे. पर सड़क मरम्मत करने वाले इतनी सुबह से काम पर लगे थे। सब अठारह-बीस वर्ष के लड़के लग रहे थे। पता नहीं वहीँ के थे या फिर दूसरे शहरों से मजदूरी करने आये थे। इतनी सुबह उन्हें फावड़ा चलाते देख,अपने इस तरह निफिक्र घूमने पर कुछ गिल्ट भी हुआ.
एक सीख भी मिली,.... जो दृश्य अच्छा लगे, झट कैमरे में कैद करो, वरना बदल जाएगा.
(क्रमशः )
इतनी सुबह सडक मरम्मत करते मजदूर |
आपको भी जेट एयरवेज वालों ने आखिर मदद कर ही दी, हमें तो बहुत परेशान किया था. आगे के वृतांत का इंतजार करेंगे. चित्र वहां के खुशनुमा मौसम को बयां कर रहे हैं, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
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बहुत शुक्रिया
हटाएंइसी बहाने हम भी घूम आए लाहुल स्पीति...
हटाएंफिर दिल दो #हिन्दी_ब्लॉगिंग को..
लाहुल स्पीति अच्छा नाम बताया , शिमला और कुल्लू मनाली जैसे भीड़ वाली जगह तो घूम चुके थे | हम भी कुछ शांत पहाड़ी जगह खोज रहे थे |
जवाब देंहटाएंपर आपकी बिटिया बहुत छोटी है, शायडबोर हो जाये ।प्राकृतिक दृश्यों के सिवा और कुछ नहीं फिर पूरे पूरे दिन बड़े खतरनाक रास्तों पर यात्रा करनी पड़ती है।रास्ते में एक ढाबा भी नहीं मिलता ।
हटाएंथोड़ी बड़ी हो जाये तब जाएं
बढ़िया विवरण है ,
जवाब देंहटाएंआप जैसे बेहतरीन लिखने वाले को ब्लॉग लेखन कम करना समझ नहीं आया , मुझे नहीं लगता कि आपकी कलम को टिप्पणियों की दरकार है ! चाहें कम लिखें मगर लिखे अवश्य !
मंगलकामनाएं !
लिखना तो कम नहीं हुआ, FB पर, अखबार पत्रिकाओं में लगातार लिखती ही रही हूं ।
हटाएंटिप्पणियों से तो क्या फर्क पड़ेगा
ब्लॉगर दिवस की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंरोचक वर्णन। आपका यात्रा वृतान्त पढ़ कर और चित्र देख कर यात्रा पर जाने का मन हो आया।
आगे की कड़ी का इंतज़ार रहेगा।
आपको भी बहुत शुभकामनाएं
हटाएंतुम्हारी कलम से जो यात्रा होती है, वह अद्भुत होती है
जवाब देंहटाएंलाहुल स्पीति के बारे में तो कुछ भी नहीं जानती थी पर तुम्हारी रोचक वर्णन शैली ने तो जैसे सदेह वहाँ पहुँचा ही दिया .....
जवाब देंहटाएंअभी तो और घुमाउंगी :)
हटाएंबहुत खूबसूरती से वर्णन किया है आपने। तस्वीरें भी सुन्दर हैं। वहाँ जाने की इच्छा हो आई।
जवाब देंहटाएंअगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी।
जरूर जाएं, प्लान करें, जल्द ही
हटाएंशानदार विवरण... रोचक अंदाज
जवाब देंहटाएंपर हे भगवान! कितना इंतजार करना होगा पूरा यात्रा वृतांत के लिए....
आप पूरी यात्रा का खर्च भी बताएंगी तो दूसरे भी प्लान कर पाएंगे
जय हो #हिन्दी_ब्लॉगिंग
हर महीने की पहली तारीख को ब्लॉग पर पोस्ट लिखने है ।
हटाएंछः महीने का इंतज़ाम तो हो गया :)
खर्च तो अपने ऊपर निर्भर है । एक अंदाज़ा लगाया जा सकता है, लद्दाख यात्रा जितना ही खर्च है।
शुक्रिया :)
जवाब देंहटाएंयात्रा वृतांत पढने का अपना मज़ा है, खासकर जब खुद उस जगह जा चुके हैं किसी और के नज़रिए से उस जगह को देखने का अपना मज़ा है.... फ्रीक्वेंसी बढाईये ब्लॉग की...
जवाब देंहटाएंशानदार एवं सार्थक लेखन.....अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_ब्लॉगिंग
I always love ur reportings didi !
जवाब देंहटाएंMazaa aa gaya, and the pictures are beautiful ! :)
मजा आ गया पढ़ कर रश्मि 👌बहुत रोचक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया छायांकन
यात्रा लेख पढकर यात्रा का अहसास करने का सुख अलग ही है।
जवाब देंहटाएंमेरा पसंदीदा विषय, महीने में एक ही सही लिखा करे।
सुन्दर और रोचक पोस्ट, मानों हमने भी आपके साथ ही यात्रा कर ली। अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंबधाई और शुभकामनाएं।
हमने पहले ही सोच रखा था आपका ब्लॉग सबसे आखिर में पढ़ेंगे,जब किसी तरह का कोई डिस्टर्बेंस न हो...। बहुत मज़ा आया पढ़ के...और एक मज़े की बात और...अभी हाल में ही मेरा छोटा भाई लाहौल स्फीति ही घूम के आया है । सोचा था, उससे सब पूछूँगी...पर अब सोच रही कि आपके इस यात्रा वृतांत के सहारे उसको ही कुछ बातें बता कर थोड़ी देर को हैरान कर दूँ :)
जवाब देंहटाएंब्लॉग की रुकी हुई शुरूवात अच्छी तरह से हुई है, एक यात्रा वृतांत के ज़रिए। उम्मीद है ये सफर जारी रहेगा।
जवाब देंहटाएंहिमाचल मैनें बहुत घूमा है दूर दराज़ के गुमनाम इलाकों तक, कई बार रात जंगल मे भी बितानी पड़ी। इस तरह से उन इलाकों की सैर हमेशा ही रोमांचित करती है, अकेले हो तो और भी। एक अलग अहसास होता है जब तारों भरी रात हो और आपके पास थोड़ा सामान हो कंधे पे और हो एक स्लीपिंग बैग। बस उस समय आप पृथ्वी पे बिल्कुल अकेले हैं, ऐसा लगता है। उत्तर पूर्व भी बहुत
घूमा है इसी तरह, कभी अकेले कभी अपनी मित्र के साथ। निरंतर चलते रहना प्रकर्ति की गोद में हमेशा लुभाता है। पर अब जाना नही हो पाता।
आपका ट्रेवेलॉग पढ़के पुराने दिन याद आ गए। लिखती रहिये।
रोचक वर्णन ........
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन और चित्र |ऐसे स्थलों पर जाना नई ऊर्जा पाने जैसा है |
जवाब देंहटाएंवाह ,घूमना और घूमने के बाद शब्दों चित्रों के सहारे ,सबको घुमाना .मुझे बहुत प्रिय रहा है | आप तो निर्झर निर्बाध बहती हैं , सरल शैली में आनंद ही आनंद ...क्रमशः के बाद इंतज़ार ..बहुत खलता है जी | जारी रहिये
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़कर , ऐसा लगा मैं स्वयं घूम आई हूँ | सबसे अच्छी लगी अंत में दी गयी सीख ...जो दृश्य अच्छा लगे, झट कैमरे में कैद करो, वरना बदल जाएगा.बात सिर्फ कैमरे की ही नहीं है, सम्पूर्ण जीवन की है कहीं न कहीं हम भूत - भविष्य में उलझ कर उन पलों का आनंद नहीं ले पाते जो हमें अभी मिले है .... वंदना बाजपेयी
जवाब देंहटाएंयादगार यात्रा वृत्तांत ...... सुन्दर शब्द चित्रण/वर्णन !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शरुआत और बहुत उम्दा वर्णन ! उत्साह बना रहे !!
जवाब देंहटाएंसराहन तो और भी ज्यादा खूबसूरत है
जवाब देंहटाएंसुन्दर यात्रा वृतांत... अगली कडी का इंतजार
प्रणाम