पुलिस के कार्यों की यूँ तो काफी आलोचना की जाती है ,उसके भी अपने कारण
होंगे पर धूप-बारिश-सर्दी में दिन रात ड्यूटी निभाते ट्रैफिक पुलिस,
कॉन्स्टेबल के लिए सबके मन में सम्मान ही जागता है . हाल में ही मेरे दोनों
बेटे मुहम्मद अली रोड गए थे ,जहाँ रमजान के दिनों में बाज़ार और खाने-पीने
के स्टाल पूरी रात खुले होते हैं.. दोनों की जुबां पर एक ही बात थी,
'सैल्यूट टू मुंबई पुलिस. पूरी रात , पुलिस मैन, महिला कॉन्स्टेबल ,इतनी
सारी भीड़ मैनेज कर रहे थे, लोगों की सहायता कर रहे थे, उन्हें रास्ता बता
रहे थे. '
जब झमाझम बारिश में कार के शीशे चढ़ाए महफूज़ होकर गाने सुनते हुए ड्राइविंग का आनंद उठाया जाता है ,उस वक्त ये पुलिसमैन रेनकोट पहने बीच रास्ते में खड़े बैरियर लगाए ,गाड़ियों की जांच कर रहे होते हैं .(और मुम्बई की बारिश में कोई रेनकोट,छतरी काम नहीं आती..पूरी तरह भीगना ही होता है )
मुझे भी एक सुखद अनुभव रहा ,इनके कार्य का .
जिस रास्ते पर मैं मॉर्निंग वॉक के लिए जाती हूँ . कुछ कुछ दूरी पर चार परिवार को सडक पर रहते हुए देखती हूँ. एक बिल्डिंग के पीछे दीवार से लग कर एक लंबा सोफा रखा है ,और आस-पास कुछ बोरियाँ और सामान बिखरे रहते हैं .सुबह ईंट के चूल्हे पर एक महिला खाना बनाती रहती है और बहुत ही स्नेहिल पिता अपने बच्चों के साथ खेलते रहते हैं. कभी भागते पिता के पीछे बच्चे दौड़ते रहते हैं..पिता भाग कर सोफे पर लेट जाते हैं और फिर बच्चे उन्हें गुदगुदी करने लगते हैं. फिर पिता एक एक बच्चे को हवा में उछाल उछाल कर खेलाते हैं . दुसरे राउंड में देखती हूँ , पिता और तीनों बच्चे एक थाली घेर कर बैठे होते हैं और कुछ खाते रहते हैं. लगभग रोज ही ऐसे दृश्य होते हैं.
थोड़ी दूर पर एक बहुत ही साफ़ सुथरी झोपडी है, जिसके अंदर और बाहर लाल दरी बिछी होती है, वहाँ भी एक महिला खाना बनाती रहती है और कुछ पुरुष आस-पास बैठे होते हैं. एक बुजुर्ग अखबार पढ़ते रहते हैं...कुछ बच्चे पास खेलते रहते हैं.
कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक दक्षिण भारतीय अम्मा बड़ी सी बिंदी लगाए अपने दो युवा बेटे और पति के साथ रहती हैं . सुबह, सारे पुरुष खुले आकाश के नीचे अक्सर सोये रहते हैं..अम्मा कुछ उठा रख रही होती हैं. उस से आगे बढ़ने पर फुटपाथ पर एक बूढी अम्मा..एक मध्य आयु की महिला, दो किशोर लड़के और एक पुरुष रहते हैं. बूढी अम्मा को मॉर्निंग वॉक वाले, नियमित पैसे, नाश्ता, कपड़े देते हैं .बाकी सब कचरा बीनते हैं . उन्हीं के पास एक दिन एक बिलकुल साफ़ कपड़े पहने ,बढ़िया से बाल बनाए ,एक महिला को अख़बार पढ़ते देखा . फिर उन्हें अक्सर वहीँ बैठे देखने लगी . कई बार कुछ पूछने की इच्छा हुई .पर संकोच हो गया कि जब कोई मदद नहीं कर पाउंगी तो फिर सिर्फ कहानी सुनने के लिए क्या जाऊं .
बारिश का मौसम सडक पर रहने वालों के लिए कहर बन कर आता है. मौसम की पहली बारिश हुई थी, तभी ये सारे जगह वीरान हो गए, उनलोगों ने दूसरे ठिकाने ढूंढ लिए होंगे. कुछ मौसम खुला और मैं वॉक के लिए गई तो उन महिला को अकेले बैठे, अखबार पढ़ते देखा . 'अपूर्व' जिस आश्रम में बच्चों को पढ़ाने जाता है ,वहाँ बेघर लोगों के लिए रहने की व्यवस्था भी है. मैंने सोचा, उन्हें बारिश में कोई जगह नहीं मिल पाई होगी तो शायद कुछ मदद कर पाऊं .
पूछने पर बताया ,' "वे बारहवीं पास हैं . तीस वर्ष की हैं. माता-पिता और एक भाई के साथ रहती थीं .कुछ प्रॉपर्टी विवाद में पडोसी रिश्तेदारों ने पिता को शराब में जहर मिला कर पिला दिया . जब इन लोगों ने पड़ोसियों को भला-बुरा कहा तो रिश्तेदारों ने तीनों को बहुत मारा . माँ और भाई की तो अस्पताल में मृत्यु हो गयी . इन्हें भी दो महीने अस्पताल में रहना पडा .जब ठीक होकर वापस गईं तो पाया ,रिश्तेदारों ने इनके घर पर कब्जा कर लिया था. इन्हें फिर से बहुत मारा. ये वापस हॉस्पिटल में रहीं . ठीक होने के बाद वापस उस तरफ नहीं गईं. अब सडक पर रहती हैं , कचरा बीन कर पेट पालती हैं . जब मैंने पूछा, 'पढ़ी लिखी हैं , कोई नौकरी क्यूँ नहीं करतीं " .कहने लगीं ,मार की वजह से उनके सीने में हमेशा दर्द रहता है. वे देर तक खड़ी नहीं रह सकती, काम नहीं कर
पातीं. '
जब मैंने उन्हें आश्रम के बारे में बताया तो कहने लगीं ," एक दूसरा आश्रम है, जिसमे कमरा लेने के लिए एक फॉर्म भरना पड़ता है . पुलिस स्टेशन में फॉर्म भर कर दिया है .पर कोई सुनवाई नहीं हो रही .प्लीज़ आप पुलिस वालों से बात करो न..उन्हें कहो, मेरे फॉर्म पर कार्यवाई करे .और मुझे कमरा दिलवाए .मैंने अंग्रेजी में फॉर्म भरा है "
मैंने उन्हें आश्वासन दिया , सोच ही रही थी ,शायद पुलिस स्टेशन जाकर बात करनी पड़े कि बाइक पर दो पुलिसमैन गश्त लगाते दिख गए .(चेन खींचने की घटनाओं की वजह से सुबह पांच बजे से ही गश्त शुरू हो जाती है )
मैंने उन्हें सारी बात बताई .उन्होंने इस मामले को देखने का आश्वासन दिया .
वो महिला मुझे फिर नहीं दिखीं . एक दिन वॉक कर ही रही थी कि एक बाईक बिलकुल पास आकर रुकी .पुलिसवाले को देख कर थोड़ा सा चौंक ही गई थी कि उन्होंने बताया ,'मैडम उन्हें आश्रम में जगह मिल गई " .मैं एक थैंक्स ही कह सकती थी . थोड़ी झिझक भी हुई कि मैंने उस पुलिसमैन से बात की थी ,पर चेहरा नहीं पहचान पाई, हमलोग वर्दी ही देखते हैं, चेहरे पर ध्यान ही नहीं जाता
जब झमाझम बारिश में कार के शीशे चढ़ाए महफूज़ होकर गाने सुनते हुए ड्राइविंग का आनंद उठाया जाता है ,उस वक्त ये पुलिसमैन रेनकोट पहने बीच रास्ते में खड़े बैरियर लगाए ,गाड़ियों की जांच कर रहे होते हैं .(और मुम्बई की बारिश में कोई रेनकोट,छतरी काम नहीं आती..पूरी तरह भीगना ही होता है )
मुझे भी एक सुखद अनुभव रहा ,इनके कार्य का .
जिस रास्ते पर मैं मॉर्निंग वॉक के लिए जाती हूँ . कुछ कुछ दूरी पर चार परिवार को सडक पर रहते हुए देखती हूँ. एक बिल्डिंग के पीछे दीवार से लग कर एक लंबा सोफा रखा है ,और आस-पास कुछ बोरियाँ और सामान बिखरे रहते हैं .सुबह ईंट के चूल्हे पर एक महिला खाना बनाती रहती है और बहुत ही स्नेहिल पिता अपने बच्चों के साथ खेलते रहते हैं. कभी भागते पिता के पीछे बच्चे दौड़ते रहते हैं..पिता भाग कर सोफे पर लेट जाते हैं और फिर बच्चे उन्हें गुदगुदी करने लगते हैं. फिर पिता एक एक बच्चे को हवा में उछाल उछाल कर खेलाते हैं . दुसरे राउंड में देखती हूँ , पिता और तीनों बच्चे एक थाली घेर कर बैठे होते हैं और कुछ खाते रहते हैं. लगभग रोज ही ऐसे दृश्य होते हैं.
थोड़ी दूर पर एक बहुत ही साफ़ सुथरी झोपडी है, जिसके अंदर और बाहर लाल दरी बिछी होती है, वहाँ भी एक महिला खाना बनाती रहती है और कुछ पुरुष आस-पास बैठे होते हैं. एक बुजुर्ग अखबार पढ़ते रहते हैं...कुछ बच्चे पास खेलते रहते हैं.
कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक दक्षिण भारतीय अम्मा बड़ी सी बिंदी लगाए अपने दो युवा बेटे और पति के साथ रहती हैं . सुबह, सारे पुरुष खुले आकाश के नीचे अक्सर सोये रहते हैं..अम्मा कुछ उठा रख रही होती हैं. उस से आगे बढ़ने पर फुटपाथ पर एक बूढी अम्मा..एक मध्य आयु की महिला, दो किशोर लड़के और एक पुरुष रहते हैं. बूढी अम्मा को मॉर्निंग वॉक वाले, नियमित पैसे, नाश्ता, कपड़े देते हैं .बाकी सब कचरा बीनते हैं . उन्हीं के पास एक दिन एक बिलकुल साफ़ कपड़े पहने ,बढ़िया से बाल बनाए ,एक महिला को अख़बार पढ़ते देखा . फिर उन्हें अक्सर वहीँ बैठे देखने लगी . कई बार कुछ पूछने की इच्छा हुई .पर संकोच हो गया कि जब कोई मदद नहीं कर पाउंगी तो फिर सिर्फ कहानी सुनने के लिए क्या जाऊं .
बारिश का मौसम सडक पर रहने वालों के लिए कहर बन कर आता है. मौसम की पहली बारिश हुई थी, तभी ये सारे जगह वीरान हो गए, उनलोगों ने दूसरे ठिकाने ढूंढ लिए होंगे. कुछ मौसम खुला और मैं वॉक के लिए गई तो उन महिला को अकेले बैठे, अखबार पढ़ते देखा . 'अपूर्व' जिस आश्रम में बच्चों को पढ़ाने जाता है ,वहाँ बेघर लोगों के लिए रहने की व्यवस्था भी है. मैंने सोचा, उन्हें बारिश में कोई जगह नहीं मिल पाई होगी तो शायद कुछ मदद कर पाऊं .
पूछने पर बताया ,' "वे बारहवीं पास हैं . तीस वर्ष की हैं. माता-पिता और एक भाई के साथ रहती थीं .कुछ प्रॉपर्टी विवाद में पडोसी रिश्तेदारों ने पिता को शराब में जहर मिला कर पिला दिया . जब इन लोगों ने पड़ोसियों को भला-बुरा कहा तो रिश्तेदारों ने तीनों को बहुत मारा . माँ और भाई की तो अस्पताल में मृत्यु हो गयी . इन्हें भी दो महीने अस्पताल में रहना पडा .जब ठीक होकर वापस गईं तो पाया ,रिश्तेदारों ने इनके घर पर कब्जा कर लिया था. इन्हें फिर से बहुत मारा. ये वापस हॉस्पिटल में रहीं . ठीक होने के बाद वापस उस तरफ नहीं गईं. अब सडक पर रहती हैं , कचरा बीन कर पेट पालती हैं . जब मैंने पूछा, 'पढ़ी लिखी हैं , कोई नौकरी क्यूँ नहीं करतीं " .कहने लगीं ,मार की वजह से उनके सीने में हमेशा दर्द रहता है. वे देर तक खड़ी नहीं रह सकती, काम नहीं कर
पातीं. '
जब मैंने उन्हें आश्रम के बारे में बताया तो कहने लगीं ," एक दूसरा आश्रम है, जिसमे कमरा लेने के लिए एक फॉर्म भरना पड़ता है . पुलिस स्टेशन में फॉर्म भर कर दिया है .पर कोई सुनवाई नहीं हो रही .प्लीज़ आप पुलिस वालों से बात करो न..उन्हें कहो, मेरे फॉर्म पर कार्यवाई करे .और मुझे कमरा दिलवाए .मैंने अंग्रेजी में फॉर्म भरा है "
मैंने उन्हें आश्वासन दिया , सोच ही रही थी ,शायद पुलिस स्टेशन जाकर बात करनी पड़े कि बाइक पर दो पुलिसमैन गश्त लगाते दिख गए .(चेन खींचने की घटनाओं की वजह से सुबह पांच बजे से ही गश्त शुरू हो जाती है )
मैंने उन्हें सारी बात बताई .उन्होंने इस मामले को देखने का आश्वासन दिया .
वो महिला मुझे फिर नहीं दिखीं . एक दिन वॉक कर ही रही थी कि एक बाईक बिलकुल पास आकर रुकी .पुलिसवाले को देख कर थोड़ा सा चौंक ही गई थी कि उन्होंने बताया ,'मैडम उन्हें आश्रम में जगह मिल गई " .मैं एक थैंक्स ही कह सकती थी . थोड़ी झिझक भी हुई कि मैंने उस पुलिसमैन से बात की थी ,पर चेहरा नहीं पहचान पाई, हमलोग वर्दी ही देखते हैं, चेहरे पर ध्यान ही नहीं जाता
सचमुच...बहुत मुश्किल ड्यूटी निभाते हैं पुलिसकर्मी. उस पर भी इज़्ज़त नहीं बख्शता कोई उन्हें...
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