16 वर्षीय मैत्री शाह ने अपना पूरा जीवन व्हील चेयर पर बिताया है. उन्हें Congenital Muscular destrophy है. ये बीमारी शरीर के सारी मांसपेशियां कमजोर कर देती है पर मैत्री के जीने के उत्साह को ये छटांक भर भी कम नहीं कर पायी.मैत्री ने इस परीक्षा में 95% पाए. पेंटिंग और elocution में भी उसने कई ईनाम जीते हैं. स्कूल में एक नाटक भी निर्देशित किया है. अभी वो graphic designing और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सीख रही है.
Mitri Shah |
मैत्री ने एक सामान्य स्कूल में पढ़ाई की है.उसके स्कूल की प्रिंसिपल और शिक्षक भी ज़िन्दगी के प्रति उसकी जिजीविषा पर हैरान रह जाते हैं. सामन्य स्कूल में ऐसे बच्चों के पढने से बाकी बच्चों की संवेदनशीलता को भी बढ़ावा मिलता है.
ऐसे ही सोलह वर्षीय विद्याश्री जाओकर ने जो मूक-बधिर हैं, अपने स्कूल में सारे सामान्य बच्चों को पीछे छोड़ते हुए 95.4% नंबर लाकर अपने स्कूल में टॉप किया .और उसने कोई कोचिंग क्लास नहीं ज्वाइन की थी,सिर्फ नियमित पढाई की थी.
मेरे घर में भी एक बार फिर से कछुए और खरगोश की कहानी सही साबित हुई.
मेरे दोनों बेटे पांचवी कक्षा तक 96% लाया करते थे. फिर धीरे धीरे उनके पर निकलते गए और और कक्षा की ऊँची पायदानों के साथ अंक का प्रतिशत नीचे गिरता गया.मैं घबरा कर टीचर्स से पूछतीं..तो वे आश्वस्त करातीं,नहीं नहीं...ये लोग क्लास के टॉप 5 में से हैं.(इनके स्कूल में रैंकिंग नहीं होती कि फर्स्ट ,सेकेण्ड पता चले.)ऊँची कक्षाओं में ज्यादा नंबर नहीं मिलते. फिर भी मैं संतुष्ट नहीं होती,जबकि टीचर्स इनके ओवर ऑल पेर्फौर्मेंस से काफी खुश रहतीं. जब बड़ा बेटा ,अंकुर नवीं में था तो पेरेंट्स मीटिंग में जाते हुए ठीक क्लास के सामने उसने कहा,"पहले से बता दे रहा हूँ...टीचर बहुत शिकायत करने वाली है" मैं चौंकी, "क्यूँ??" तो लापरवाही से बोला.."वो ऐसी ही है..हमेशा डांटती रहती है" आगे कुछ पूछने का मौका नहीं था ,हम क्लास में कदम रख चुके थे. और टीचर ने शिकायतों की झड़ी लगा दी, "इतना talkative है.तीन फ्रेंड्स है, तीन कोने में बिठाती हूँ और नज़र बचा के फिर से सब साथ बैठ जाते हैं..एक को डांटने पर दूसरा हँसता रहता है...इसे डांटती हूँ तो सर झुकाए कैसे कैसे मुहँ बनाता है, सिर्फ एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ में मन लगता है,क्लास में तो टिकता ही नहीं...ये रिहर्सल..वो रिहर्सल.....मना करने पर भी बालों की स्पाईक्स बनाता है.वगैरह..वगैरह." मेरे लिए यह पहला मौका था अपने बच्चे की शिकायत सुनने का.मैं शर्म और गुस्से से लाल हुई जा रही थी.खैर मैने टीचर को पूरे अधिकार दिए..."आप डांट , मार या जो भी पनिशमेंट देनी हो दीजिये,मैं कुछ नहीं बोलूंगी"
घर आकर मैने अपना भाषण शुरू किया.बीच में एक पल को रुकी तो अंकुर ने पूछा,"मैं थोड़ा और पोहा ले लूँ?" बस मैं समझ गयी कि इस चिकने घड़े पर कोई असर नहीं हो रहा.उसके बाद ये सिलसिला चलता रहा. टीचर पढाई में तो शिकायत नहीं करती.पर इसकी और बातों से उन्हें शिकायत थी. पर प्रिंसिपल को शायद ऐसे शैतान बच्चे ही अच्छे लगते थे.उनके गुड़ बुक्स में था इसका ग्रुप.पर जब प्रिंसिपल ने अंकुर को "हेड बॉय " नियुक्त करने को बुलाया तो उसने इनकार कर दिया. उसने ही नहीं उसके बाकी चारों फ्रेंड ने भी मना कर दिया क्यूंकि ये आखिरी साल था और इन्हें शैतानी करनी थी.टीचर्स को परेशान करना था. पहले तो मैने विश्वास नहीं किया पर जब इसकी क्लास टीचर ने भी यही शिकायत कि " U know what...he even refused to b the head boy of the school ".तो मुझे बहुत अफ़सोस हुआ.ज़िन्दगी भर लोग इस बात को याद रखते हैं.
खैर ,अब बोर्ड की परीक्षा पास आ रही थी और पढाई में गंभीरता नदारद थी थी. सिर्फ कोचिंग क्लास अटेंड करता और वही फुटबौल मैच, नाटक, क्विज़ कॉम्पिटिशन..वगैरह में व्यस्त रहता. दिसंबर आ गया और यही रवैया, पति से शिकायत की तो,उन्होंने बस इतना कहा,"पढ़ते क्यूँ नहीं....तुम्हारी वजह से मुझे सुनना पड़ता है." मैने अपने हर तरीके आजमा लिए लेकिन सेल्फ स्टडी थी ही नहीं उसकी.
फिर जनवरी में प्रिपरेशन लीव मिला और वह सुबह आठ बजे तैयार होकर जो पढने बैठता ,बीच बीच में एकाध घंटे का ब्रेक लेकर रात के बारह बजे तक पढता रहता. अब मैं ही कहती कि जरा ब्रेक ले लो..बाहर घूम आओ..कभी कभी ये भी कह देती.."इस तरह दिन रात पढने से कुछ नहीं जायेगा दिमाग में" बोर्ड परीक्षा तक यही सिलसिला चला. परीक्षा के बाद जो भी पूछता उसे से कहता 85 प्लस मिलेगा.मैं उसे अलग बुला कर बोलती, लास्ट मिनट पढने से इतने नंबर नहीं मिलेंगे. बहुत हुआ तो 80- 82 मिल जाएंगे.उसे 87% मिले .
छोटा बेटा अपूर्व कुछ सिंसियर था. नियमित पढता .एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ में वो भी सक्रिय था पर पढाई नियमित करता.नवीं तक टीचर ने शिकायत भी नहीं की और अपने स्कूल का डिसिप्लिन मिनिस्टर भी बन गया तो मुझे लगा अब राहत है. पर देर से ही सही इनके भी पर निकले. नवीं ख़तम होते होते शिकायतें शुरू.सबसे ज्यादा उसके हेयर स्टाइल पे. मैने कहा,'मैं भी परेशान हूँ..हमेशा हाथों से सीधे कर देती हूँ पर ये लोग फिर से स्पाईक बना लेते हैं."एक बार प्रिंसिपल ने तेल की शीशी मंगवा कर बाकी बच्चों के सर पर तो थोड़ा थोड़ा डाला.इसके सर पर पूरी शीशी उलट दी कि डिसिप्लिन मिनिस्टर होकर भी ऐसी हरकत?? दसवीं में इन महाशय ने भी 'हेड बॉय' बनने से इनकार कर दिया.टीचर्स के समझाने पर भी प्रीफेक्ट कौंसिल तक नहीं ज्वाइन किया.क्यूंकि शैतानी करनी थी. हॉकी फुटबौल दोनों की टीम में था. पर सबके साथ ये नियमित रूप से दो घंटे सेल्फ स्टडी भी करता. अंकुर भी कहता "ये तुम्हे परेशान नहीं करेगा."
पर जनवरी आ गया,मार्च में बोर्ड की परीक्षा और उसकी पढाई की रफ़्तार बढती ही नहीं. वही रात के दस बजे पढाई बंद और सुबह सात बजे के पहले किताबों को हाथ नहीं लगता. मैं इतना समझाती कुछ तो एक्स्ट्रा पढो. कोई असर नहीं. अंकुर भी कहता,"अंतिम समय में तो घोड़े ,गधे सब भागते हैं, इसकी रफ़्तार तो कछुए वाली ही है." अंकुर ने पूरे साल परेशान किया था और अपूर्व ने इन अंतिम दो महीने में. हम उसे कहते, थोड़ी मेहनत से तुम्हे ९०% मिल जाएंगे पर तुम मेहनत करते ही नहीं.उसने My goal 92% लिख कर अपने स्टडी टेबल पर चिपका रखा था..पतिदेव भी कहते,"सिर्फ लिख कर चिपका देने से नहीं मिलते नंबर"
और उसे बोर्ड में 92% ही मिले. फिर से एक बार खरगोश और कछुए की कहानी सही साबित हुई.हालांकि दोनों भाइयों में कोई रेस नहीं थी. दोनों की अपनी क्षमताएं और कमजोरियां हैं. अब मुझे यही लगता है कि इस पीढ़ी को मालूम है,उन्हें कब, कहाँ, कितना समय देना है.और ये किसी बनी बनायी लीक पर नहीं चलते.
अंकुर और अपूर्व दोनों को ही बधाई दी और आपको भी.. हमें भी.. :) और उन सब बच्चों को जिन्होंने प्रतिमान स्थापित किये, जिनका आपने उल्लेख किया और जिनका नहीं भी किया.. बहुत सही प्रेरक पोस्ट..आभार दी..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दीपक...प्रेरक तो नहीं...पर टीनेजर बच्चों के माता-पिता को थोड़ी तसल्ली जरूर हो जाएगी...क्यूंकि टीनेज में आजकल अपने बच्चे ही नहीं पहचाने जाते...रोज गाथाएँ सुनती हूँ,सहेलियों से...:)
जवाब देंहटाएंये केस स्टडी भी खूब रही। वो कहते हैं न, कि, हर बच्चा अपनी तरह से विशिष्ट होता है। मैंने देखा है कि नई पीढ़ी अपने करियर को लेकर ज्यादा सचेत है। उनमें प्रतिभागिता की भावना भी ज्यादा है। लेकिन यह तो है कि यदि कुछ उल्लेखनीय करना है तो अपूर्व का तरीका ही जीवन में काम देगा। ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि मेरा अपना लहजा उसके उलट रहा है। जो अब काम नहीं देता। जब तक आदमी को परीक्षा पास करनी होती है तब तक तो अंतिम समय का अध्ययन काम देता है। उसके बाद नहीं। उदाहरण देना हो तो कहुंगा कि मैथ की पूरी बुक को दो-तीन दिन में साल्व करके 90 नम्बर लाए जा सकते हैं। लेकिन गणित की बुनियादी अवधाराणा को समझने के लिए रोज-रोज आधे घण्टे पढ़ना ज्यादा कारगन साबित होता है। ऐसा मेरा मानना है। मैं कोई तयशुदा बात नहीं रख रहा।
जवाब देंहटाएंलगता है सामने से आने वाले का ऑफर ठुकराना बच्चों ने अपनी मम्मी से सीखा है....एक ओर आप ने रेडियो स्टेशन की नौकरी सामने से ऑफर होने के बावजूद इन्कार कर दिया उधर दूसरी ओर दोनों बच्चों ने अपने अपने स्तर पर इन्कार कर दिया.....।
जवाब देंहटाएंलगता है आपके परिवार में 'इन्कारी जीन्स' स्ट्रॉंग है :)
दोनो बच्चों के लिये मेरी ओर से शुभाषीश।
@रंगनाथ जी,बिलकुल सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंबच्चे जितनी जल्दी ये बात समझ जाएँ.उनके हक़ में उतना ही अच्छा है.
@सतीश जी,
ये अच्छी कही आपने....:)
पर मैने तो इन बच्चों के लिए ही इनकार किया था.
पर ,अगर ऐसा है तो सोचती हूँ ,वो उनका पहला और आखिरी इनकार हो ,तो अच्छा ..:)
अजी बच्चो को आजाद छोड दे... पढाई के मामले मै फ़िर देखे, भगवान की दया से मुझॆ कभी भी नही बोलना पडा बच्चो को , लेकिन मां उन की बोलती रहती है( अब नही)ओर बच्चे अपनी मंजिल की ओर शान से बढ रहे है,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी आप की यह बात, दोनो बेटो को बहुत बहुत बधाई, आप दोनो को भी बधाई
हम पैरेट्स बच्चों को उनके कर्तव्य याद दिलाते रहे बस,मंजिल ये पाएगें ही, दोनों बच्चों और मम्मा को बधाई .......
जवाब देंहटाएंआपको बधाई। वैसे माँएं हमेशा झक-झक करती रहती है उन्हें तो चाहिए कि बस बच्चा जो हम कहें वो करता रहे। लेकिन बच्चों की दुनिया अलग है फिर आजकल तो बच्चा स्मार्ट होना चाहिए, कितने नम्बर आते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता। इतना कुछ है आजकल, पहले वाली बात नहीं रही कि जब डॉक्टर और इंजीनियर के आगे विकल्प ही नहीं थे।
जवाब देंहटाएंbat kaha se shuru hui aur kakha khatm, nissandeh aapke dono bacche badhai ke patra hain.......
जवाब देंहटाएंaur un dono se jyda badhai ke paatra hain ve jinka ullekh aapne shuraat me kiya hai.....
sabhi ko shubhkamnayein....
muaafi chahunga agar kahin aap ko hurt kiya ho to...
दी, मुझे आपकी ये पोस्ट बहुत अच्छी लगी... और मैं इस बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ कि आज की पीढ़ी जानति है कि उसे कब, कहाँ और कितना समय देना है... वो पहचान में नहीं आते क्योंकि उनका दायरा बहुत बड़ा होता है...
जवाब देंहटाएंरंगनाथ जी की भी बात सही है और अजित गुप्ता जी की भी ...
और मैं इस बात से भी सहमत हूँ---'सामन्य स्कूल में ऐसे बच्चों के पढने से बाकी बच्चों की संवेदनशीलता को भी बढ़ावा मिलता है.
@राज जी,आभा जी, अजित जी, आपलोगों की शुभकामनाओं का बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएं@संजीत जी, इसमें hurt होने जैसा क्या है?...सचमुच वे बच्चे लाखो गुणा ज्यादा बधाई के पात्र हैं.
हर्षा एक सामान्य बच्ची होते हुए भी चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी की बेटी है,उसे उतने अच्छा स्कूल और कोचिंग की सुविधाएं नहीं मिली होंगी. मैत्री एवं विद्याश्री ने अपनी शारीरिक अक्षमताओं के ऊपर विजय प्राप्त कर अपनी मेहनत और लगन से आकाश छू लेने जैसी सफलताएं प्राप्त की हैं.उनकी प्रशंसा के लिए तो शब्द भी नहीं मिलेंगे.
@मुक्ति,
जवाब देंहटाएंमेरे बेटों के स्कूल में भी ऐसे बच्चों को एडमिशन के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है.कई ऐसे बच्चे देखे हैं. और यह देख बहुत बहुत अच्छा लगता था की उनके साथ बिलकुल सामान्य व्यवहार होता था. अक्सर उनके व्हील चेयर बच्चे ही पुश करते थे . एक बच्चा मूक-बधिर था पर उसे hearing aid की जरूरत नहीं पड़ती थी क्यूंकि वो अच्छे से lip reading कर लिया करता था. टीचर्स की दोस्तों की सबकी बात समझ जाता था.
"पा' फिल्म इस लिहाज़ से बहुत ही ख़ूबसूरत फिल्म थी. अमिताभ बच्चन के उत्कृष्ट अभिनय के साथ साथ स्क्रिप्ट भी शानदार था. सबका उस बच्चे के साथ सामान्य व्यवहार.और खासकर बच्चों का अच्छी दोस्ती कर लेना , बहुत ही दर्शनीय था.
ये बात सही है कि आजकल बच्चों से बंधी बंधाई लीक पर चलने की उम्मीद रखना बेमानी है ...बस उन पर निगाह रखने की जरुरत है ...ज्यादा टोकाटोकी कीनहीं ...
जवाब देंहटाएंबेटी रात भर पढ़ती और सुबह देर तक सोती है ...शुरू शुरू में बहुत अजीब लगता क्यूंकि हमारे घर में देर तक सोना अच्छा नहीं माना जाता ...मगर देखा कि वो दिन में ठीक से पढ़ नहीं पाती ...
दीपक अम्ब्रे , हर्षा , मैत्री शह जीवटता और उत्साह के उदहारण है ... ऐसे सभी बच्चों और बड़ो पर हमें गर्व है ...इन्हें बहुत सारी शुभकामनायें ..
अंकुर और अपूर्व होनहार माता के सुपुत्र और उसकी तरह ही प्रतिभाशाली हैं ...दोनों को बहुत शुभकामनायें ...
रश्मि बहना,
जवाब देंहटाएंआपने पता नहीं फिल्म राकेट सिंह देखी है या नहीं...हर बच्चे को ये फिल्म ज़रूर दिखानी चाहिए...बहुत ही प्रैक्टीकल एप्रोच थी इसमें राकेट सिंह बने रणबीर कपूर की...एक डॉयलॉग भी कमाल का था...सर आपको हर जगह नंबर दिखते हैं और मुझे इनसान...
जय हिंद...
वाह बधाई आपके दोनों बेटों के नंबर पे..और आपके इस बात से मैं सहमत हूँ की इस पीढ़ी को मालूम है,उन्हें कब, कहाँ, कितना समय देना है.और ये किसी बनी बनायी लीक पर नहीं चलते....मेरी कुछ बहनें हैं जो अभी इंजीनियरिंग की पढाई कर रही हैं....उन्हें देख के भी ऐसा ही कह सकता हूँ मैं की इस नयी पीढ़ी को मालूम है की कब कहाँ कैसे पढ़ना है
जवाब देंहटाएं:)
bahut zyada bolna sahi nahi hota...waise poore prasang me mere chehre per muskaan aa gai ise padhker---"मैं थोड़ा और पोहा ले लूँ?"
जवाब देंहटाएंशुरुआती रुझानों से ही भविष्य निर्धारण कर निराश नहीं होना चाहिये कई अभिवावकों को । केवल 3 साल में पूरा शैक्षणिक कायाकल्प होते देखा है ।
जवाब देंहटाएंसभी बच्चों में प्रतिभा होती है । फर्क बस इतना है कि किसी का एक काम में मन लगता है तो किसी का दूसरे काम में । अक्सर अभिभावक ही बच्चों पर जोर डालते रहते हैं , अच्छा परफोर्म करने के लिए , जिसे वो % अंकों से मापते हैं ।लेकिन यह सही नहीं है । बच्चों को एक सीमा तक मार्गदर्शन की ज़रुरत होती है । लेकिन स्वाभाविक विकास के लिए थोड़ी स्वतंत्रता की भी आवश्यकता होती है । तभी सही व्यक्तित्व का विकास हो पाता है ।
जवाब देंहटाएंआपके दोनों बच्चे अच्छे हैं , जिन्होंने समय अनुसार अपना काम किया और अच्छा रिजल्ट पाया ।
बधाई स्वीकारें ।
सारी बाते तो गुनीजनो ने ऊपर कह दी है , मुझे तो केवल बधाई देनी है, तो बधाई स्वीकार करे. और बच्चो को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद उनके सुनहले भविष्य के लिए.
जवाब देंहटाएंअरे! वाह..... यह तो जैसे मेरे ही ऊपर लिखा गया है..... मैं भी स्कूल में बिलकुल ऐसा ही था.... टीचर मुझसे भी बहुत परेशां रहते थे.... मुझे रिफाइंड गुंडे का तमगा मेरे एक टीचर ने ही दिया था.... आपका यह संस्मरण मुझे फ्लैशबैक में ले गया.... अंकुर और अपूर्व दोनों को ही बधाई... उनसे बोलियेगा की खूब बदमाशी करें.... बदमाश लड़के ही ज़िन्दगी में तरक्की करते हैं.... यह हेन्स प्रूव्ड भी है.... एक एक्जाम्पल आपके सामने है..... ही ही ही ही....
जवाब देंहटाएं--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
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"अब मुझे यही लगता है कि इस पीढ़ी को मालूम है,उन्हें कब, कहाँ, कितना समय देना है.और ये किसी बनी बनायी लीक पर नहीं चलते."
सही निष्कर्ष है आपका...और यह केवल आज की नहीं सभी पीढ़ियों पर लागू होता है।
आपे गुरु चेला !... यानी दुनिया का हर इंसान स्वयं का गुरू भी है और चेला भी... जब गलती करता और उस से सबक लेता है तो 'चेला' होता है...और जब पूर्व में सीखे सबक को याद कर अगली गलती नहीं करता तो उस पल स्वयं का ही 'गुरू' होता है।
आभार!
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जवाब देंहटाएं.
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"अब मुझे यही लगता है कि इस पीढ़ी को मालूम है,उन्हें कब, कहाँ, कितना समय देना है.और ये किसी बनी बनायी लीक पर नहीं चलते."
सही निष्कर्ष है आपका...और यह केवल आज की नहीं सभी पीढ़ियों पर लागू होता है।
आपे गुरु चेला !... यानी दुनिया का हर इंसान स्वयं का गुरू भी है और चेला भी... जब गलती करता और उस से सबक लेता है तो 'चेला' होता है...और जब पूर्व में सीखे सबक को याद कर अगली गलती नहीं करता तो उस पल स्वयं का ही 'गुरू' होता है।
आभार!
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बच्चों के अच्छे रिजल्ट के लिए तुमको बधाई और बच्चों को शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंइस पीढ़ी को मालूम है,उन्हें कब, कहाँ, कितना समय देना है.और ये किसी बनी बनायी लीक पर नहीं चलते.
आज वक्त बदल गया है..ज्यादा टोकने से कुछ हासिल नहीं होता ..
दीपक आम्ब्रे , मैत्री शाह ,विद्याश्री के प्रसंग बहुत प्रेरक हैं....उंके लिए भी शुभकामनायें
bachchon aur aapko dono ko bahut bahut badhaai.
जवाब देंहटाएंबधाई हो........... असल में रश्मि, पढने वाले बच्चे अपना मूल्यांकन बेहतर तरीके से करते हैं, वैसे हर बच्चा अपने बारे में बेहतर जानता है, यही वजह है कि दोनों बेटों ने अपना प्रॉमिस पूरा कर दिखाया. पढाई को लेकर बच्चों के पीछे पड़ने से या दिन भर हाथ में किताब थमाए रहने से कुछ नहीं होगा, जितनी देर पढें मन लगा के पढें, जो अपूर्व, अंकुर और अन्य बच्चों ने कर दिखाया है.
जवाब देंहटाएंइस परदेसी मामा की तरफ से बच्चों को ढेरों आशीष!! मुबारक बाद !! और दुआएं !!
जवाब देंहटाएंलेखन के विषय में कुछ नहीं....किसी को खाह्ह्मखाह ....इर्ष्या हो जाती है !!!
अंकुर - अपूर्व को बधाई और आशीष। सबसे ज़्यादा अच्छी बात जो नई पीढ़ी के साथ है - वो यही कि एक तो ये जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए और क्या-कब करना है? और दूसरा ये कि ये भयग्रस्त नहीं - सहज हैं अपने जैसे हैं - वैसे होने में, और इसीलिए पिछली कई पीढ़ियों से ज़्यादा ईमानदार और सच्चे हैं। कम से कम किसी भय या हिप्पोक्रेसी के कारण तो झूठ नहीं बोलते।
जवाब देंहटाएंआपका लेखन आज लेखिका के हाथ से निकलकर माँ के आँचल में जाने की कोशिश में था, मगर लेखिका-पन ने छोड़ा नहीं।
वैसे शुद्ध माँ का लेखन पढ़ना भी एक अच्छा अनुभव होता - शायद अविस्मरणीय भी।
फिर कभी…
वाह अंकुर और अपूर्व को बहुत बहुत बधाई ...हम तो हमेशा कहते हैं अरे क्यों बच्चों का भी और अपना भी दिमाग का दही करना ..बहुत समझदार हैं आजकल के बच्चे ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट .
@ आप सब लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया...आपलोगों का आशीर्वाद हमेशा बच्चों के साथ रहेगा और उनके जीवन के रास्ते सुगम बनाएगा.
जवाब देंहटाएं@शहरोज़ भाई...ये किसे इर्ष्या हो जाएगी?? :)...बहन के लेखन के प्रति आप थोड़े से पक्षपाती तो हैं ही...जो सही है...:)
जवाब देंहटाएं@ शिखा..बड़ी समझदार हो...पूछूँ..सौम्या एवं वेदान्त से कि तुम दिमाग का दही नहीं करती...:):)
@हिमांशु जी,
जवाब देंहटाएं"आपका लेखन आज लेखिका के हाथ से निकलकर माँ के आँचल में जाने की कोशिश में था, मगर लेखिका-पन ने छोड़ा नहीं।"
आपकी पारखी नज़र ने बिलकुल सही आकलन किया, अपने बच्चों के बारे में लिखते समय यही आशंका बनी रहती है कि कहीं कुछ अतिशयोक्ति ना हो जाए...या फिर पाठकों को ऐसा ना लगे. ख़ुशी है कि निभा ले गयी...:)
रश्मिजी
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक आलेख |सच बच्चो को आज ये मालूम है की उन्हें कब क्या करना है |ज्यादा रोक टोक से उनको वो आकाश नहीं मिलता जहाँ वे मुक्त होकर उड़ सके |मेरे तो दोनों बेटों ने बिना टूशन के ही पढाई की है अपनी सामर्थ्य के अनुसार और मुकाम पाए है मन मुताबिक |
अंकुर और अपूर्व को बधाई और आशीर्वाद |
Rashmi ji,
जवाब देंहटाएंWorthy mother of worthy sons !
Congrats !
It is true that the coming generation is far more ahead of us and a lot more confident.
All we need is to trust them and believe in their capacities.
Our children are our charioteers !
प्रेरक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंअंकुर -अपूर्व दोनों को, और आपको बधाई..
Rashmi ji,
जवाब देंहटाएंbadhai..badhiya to nahi kahunga..warna kahengi apne sath walon ka paksh to yun bhi le raha hai :)
Haan,
Thoda poha milega mujhe bhi????