वो ऑरकुट का समय था, किसी बुक कम्युनिटी में Hemanshu Joshi से मुलाक़ात हुई थी ,किसी विषय पर बहस से शुरुआत हुई होगी,जिसमें हम दोनों ही प्रवीण हैं 😀. फिर तो सिलसिला चल निकला, हिमांशु मेरी पेंटिंग्स में मीन-मेख निकालता और मेरी सारी फ्रेंड्स उस से उलझ जातीं,.वो सबके सामने अकेले ही मोर्चा सम्भाले रहता. इन सबसे अलग भी हिमांशु के विषय में पता चला, वो दुबई में रहता है, आई.टी. प्रोफेशनल है. काफी जिंदादिल है. मैराथन में भाग लेता है. (11 फुल मैराथन और 24 हाफ मैराथन में भगा ले चुका है ) .अच्छा वक्ता है .Toastmasters international ( a public speaking forum )में नियमित भाग लेता है . एक दिन उसने यूँ ही कहा कि वो गाँव वापस आ जाना चाहता है. वहां आकर खेती करेगा . देर तक वो अपनी योजनाओं के विषय में बातें करता रहा. लेकिन मैं बहुत बेमन से सुन रही थी, मुझे पता था सब विदेशों में रहने वाले ऐसा ही कहते हैं, कोई नहीं लौटता. मैंने अपनी सहेलियों से कहा भी ,'आज बहुत पकाया हिमांशु ने '
ये 2008-9 की बात थी. उसके बाद हिमांशु भी अपने कैरियर वगैरह में व्यस्त हो गया, मैं अपने लिखने-पढने में.
2016 में अचानक एक फोन आया .हिमांशु ने अपने अंदाज़ में कहा, 'अस्सलाम वालेकुम....मैं आपकी मुंबई में हूँ. ' 2015 के दिसम्बर में उसके पिता गम्भीर रूप से बीमार पड़े . हिमांशु सोचता रहा, 'माता-पिता हल्द्वानी में अकेले हैं , वृद्ध हैं, बीमार हैं .मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ....सिर्फ पैसे कमा रहा हूँ और खर्च कर रहा हूँ.' 2016 की फरवरी में उसने अपनी हाई-प्रोफाइल जॉब छोड़ दी और हमेशा के लिए हल्द्वानी आ गया. मैंने हिमांशु से आग्रह किया कि वो अब तक के अपने अनुभव लिख कर भेजे .ताकि इसे पढ़कर लोग प्रेरणा भी ले सकें और यह भी जानें कि कुछ युवा सिर्फ पैसों के पीछे नहीं भागते , परिवार-समाज को कुछ वापस देने की कोशिश भी करते हैं.
हिमांशु ने अंग्रेजी में लिख कर भेजा है ,जिसका मैंने हिंदी रूपांतरण किया है.
हिमांशु ने अंग्रेजी में लिख कर भेजा है ,जिसका मैंने हिंदी रूपांतरण किया है.
हिमांशु :
कृषि का मुझे कोई अनुभव नहीं था .पिता वैज्ञानिक , दोनों बहनें भी शिक्षा क्षेत्र से जुडी हुई .खेती बाड़ी से किसी का कोई रिश्ता नहीं. पर मैंने एक कोशिश करने की सोची. मेरे खेत, घने साल वृक्ष के जंगल के पास हैं , जिन्हें मैंने नाम दिया, ' Forest side farm' . मैंने ऐसे अनाज की खेती करने की सोची, जिन्हें बिलकुल प्राकृतिक तरीके से उगाया जाए. उनमें कोई केमिकल नहीं हो . जिसे मैं अपने परिवार और अपने आस-पास के लोगों को बिना किसी चिंता के दे सकूं और कोई अपराधबोध ना हो . Forest side farm' के पास दो कॉटेज भी बनाए हैं .जहां लेखक/कलाकार /प्रकृति से प्यार करने वाले या शहर के शोर शराबे से दूर लोग आकर कुछ दिन रह सकें.
दिसम्बर 2017 में पहली फसल लाही (एक तरह का सरसों ) की उगाई. फसल अच्छी हुई पर उन्हें बेचना मुश्किल. मैंने कोई भी केमिकल यूज़ नहीं किया था .इसलिए मेरी इच्छा थी कीमत ज्यादा मिले. लेकिन व्यापारियों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. आखिरकार तीन महीने के इंतज़ार के बाद सामान्य मूल्य पर ही फसल बेचनी पड़ी. लाही की वजह से मसूर की फसल में देरी हुई और मसूर की बहुत कम पैदावार हुई ,निराशा तो हुई पर काम जारी रखना था .
मैंने उत्तराखंड में Avocado का सबसे बड़ा orchard लगाने का भी प्लान किया. avocado पांच साल में फल देने लगता है. साथ ही अमरूद के पेड़ भी लगाए जो दो साल में फल देते हैं. अक्टूबर 2017 में कर्नाटक जाकर avocado के180 पौधे लाए .पर अनुभवहीनता, पौधों के रखरखाव में कमी की वजह से सिर्फ दस पौधे बचे बाक़ी सब सूख गए. फिर भी आम,लीची,अमरूद, निम्बू का बाग़ लगाया है.
अगस्त 2018 में भट और कुलथी लगाई .जिसकी फसल एक क्विंटल से भी ज्यादा हुई. नवम्बर 2018 में गेंहू, चना, मसूर, राजमा,लगाया। फसल अच्छी हुई. मुझे ख़ुशी हुई कि जमीन ऊपजाऊ हो रही है.
मुझे कई लोगों से प्रेरणा मिली जिनमें प्रमुख हैं, ;गोपाल उप्रेती ( सेब उत्पादक ), डॉक्टर एस.एन. मौर्या (रिटायर्ड वाईस चांसलर ), डॉक्टर विशाल सोमवंशी (वैज्ञानिक, पूसा, दिल्ली ), डॉक्टर ए.के.सिंह (जॉइंट डायरेक्टर पंतनगर यूनिवर्सिटी ) दीपक मिश्रा ( एक डेयरी फार्मर ), पूर्वी सरकार ( बिजनेस कन्सल्टेंट ) और भी कई लोगों ने मानसिक सहारा दिया .
माँ मेरी एक बिग सपोर्ट है .पर वे थोड़ी नाखुश भी हैं कि मैंने अपनी इतनी अच्छी नौकरी छोड़ दी और अब तेज धूप में अपना बदन जला रहा हूँ . वे हेमशा चिंता करती हैं कि धूप में लगातार काम करने से मेरी त्वचा काली पडती जा रही है.
इतने दिनों की खेती में ये सीख मिली :
1. बाज़ार में केमिकल डले अनाज और प्राकृतिक रूप से उपजाए अनाज में कोई फर्क नहीं किया जाता. किसान को बहुत ही कम पैसे मिलते हैं.
2. एक ही फसल को बेचना कठिन होता है क्यूंकि उसकी मात्रा बहुत ज्यादा होती है और होलसेल मार्केट में पैसे बहुत कम मिलते हैं.
3. स्वयं उपयोग करने वाले लोग व्यक्तिगत तौर पर बहुत ज्यादा मात्रा में नहीं खरीदते.
4. खाद बहुत महंगा होता है और इसी वजह से फसल की कीमत बढ़ जाती है.
5.कृषि व्यापार नहीं हो सकता, यह जीने का तरीका है ( agriculture is not a business.It is a way of life )
6.छोटे किसान, मुहल्ले/शहर के लोग हमारे जैसे छीटे किसान की सहायता करते हैं क्यूंकि उन्हें साफ़ और केमिकल रहित अनाज चाहिए होता है.
7. यू ट्यूब मेरा अकेला गुरु है. मैं ज्यादातर चीज़ें वहीँ से सर्च करके सीखता हूँ. मेरे दोस्तों ने भी बहुत सपोर्ट किया है.
2. एक ही फसल को बेचना कठिन होता है क्यूंकि उसकी मात्रा बहुत ज्यादा होती है और होलसेल मार्केट में पैसे बहुत कम मिलते हैं.
3. स्वयं उपयोग करने वाले लोग व्यक्तिगत तौर पर बहुत ज्यादा मात्रा में नहीं खरीदते.
4. खाद बहुत महंगा होता है और इसी वजह से फसल की कीमत बढ़ जाती है.
5.कृषि व्यापार नहीं हो सकता, यह जीने का तरीका है ( agriculture is not a business.It is a way of life )
6.छोटे किसान, मुहल्ले/शहर के लोग हमारे जैसे छीटे किसान की सहायता करते हैं क्यूंकि उन्हें साफ़ और केमिकल रहित अनाज चाहिए होता है.
7. यू ट्यूब मेरा अकेला गुरु है. मैं ज्यादातर चीज़ें वहीँ से सर्च करके सीखता हूँ. मेरे दोस्तों ने भी बहुत सपोर्ट किया है.
आगे के लिए सोचा है ---
अपनी जमीन की क्वालिटी प्राकृतिक रूप से बढ़ाऊंगा . अगर मिटटी में biomass अधिक होगा तो जमीन ज्यादा ऊपजाऊ होगी. ज्यादा पानी सोखेगी.इस तरह सिंचाई की जरूरत कम पड़ेगी.
अलग अलग फसल उगाऊंगा, यह जमीन और फसल दोनों के लिए अच्छा होगा. सीधा खरीदार तक पहुँच पाऊँगा. मंडी में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
प्रकृति पर ज्यादा निर्भर करूंगा . खेती को ज्यादा जटिल नहीं बनाउंगा .
हमारे क्षेत्र के किसानों को कम से कम केमिकल के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करूंगा.
अपनी जमीन की क्वालिटी प्राकृतिक रूप से बढ़ाऊंगा . अगर मिटटी में biomass अधिक होगा तो जमीन ज्यादा ऊपजाऊ होगी. ज्यादा पानी सोखेगी.इस तरह सिंचाई की जरूरत कम पड़ेगी.
अलग अलग फसल उगाऊंगा, यह जमीन और फसल दोनों के लिए अच्छा होगा. सीधा खरीदार तक पहुँच पाऊँगा. मंडी में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
प्रकृति पर ज्यादा निर्भर करूंगा . खेती को ज्यादा जटिल नहीं बनाउंगा .
हमारे क्षेत्र के किसानों को कम से कम केमिकल के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करूंगा.
हिमांशु को अपने कार्य में सफल होने की ढेरों शुभकामनाएं !!
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/06/2019 की बुलेटिन, " तजुर्बा - ए - ज़िन्दगी - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंआप का तहे दिल से शुक्रिया।
हटाएंप्रेरक आलेख। हिमांशु जी को ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंहिमांशु जी को शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंउनके कॉटेज के बारे में और जानकारी, हो सके तो एक पोस्ट के माध्यम से दें कि कैसे पहुंचा जा सकता है और बुकिंग आदि कैसे की जा सकती है ताकि पर्यटक और प्रकृति प्रेमी वहाँ आसानी से पहुंच सकें.
बहुत शुक्रिया आपका. मैं हिमांशु से कहती हूँ,वे सारी जानकारी देंगे .
हटाएंरवि जी आप का अभिनन्दन। मेरा फार्म नैनीताल डिस्ट्रिक्ट के कोटाबाग ब्लॉक में आता है। यह दिल्ली से अगर कार से आया जाये तो ५ घंटे की दूरी में है। ट्रेन से हल्द्वानी भी आया जा सकता है और वहां से कार या टैक्सी से फार्म तक पहुंचा जा सकता है। फार्म मैं २ बैडरूम का छोटा सा घर है जहाँ एक समय मैं २ लोग ठहर सकते हैं। ज़्यादा लोग भी रह सकते हैं। वैसे हमारा प्रयास रहता है की फार्म का शांत माहौल शांत ही रहे। और हमारे मेरा नंबर 7310690604 है। आप कभी भी फ़ोन कर के जानकारी ले सकते हैं।
हटाएंimpressive हिमांशु जी को शुभकामनाये
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