मौजूदगी से गहरा , मौजूदगी का अहसास है
दूर जाकर, पता चले, कोई कितने पास है .
सामने जो लफ्ज़ रह जाते थे, अनसुने
अब अनकही बातों को भी सुनने की प्यास है.
बेख्याली में फिसल, उड़ गए, गुब्बारों से वो लम्हे
फिर से पास सिमट आएँ , ये कैसी आस है.
मिली होती मुहलत , करने को सतर, जिंदगी की सलवटें
ना कर पाने की कसक, ज्यूँ दिल में गडी कोई फांस है.
तिमिर की कोशिश तो पुरजोर है,घर कर लेने की
पर दिल में, तेरी यादों की रौशनी की उजास है.
ये पंक्तियाँ लिखते वक्त 'वाणी गीत' याद आई...वो अक्सर मेरी कहानियों को पढ़कर कोई कविता रच देती है.
कुछ ऐसा ही हुआ.सलिल जी की कहानी पढ़ने के पश्चात . जो भाव उपजे वो यूँ शब्दों में ढल गए.
मेरी कहानी की नायिका अगर अपनी यादों को गीत की शक्ल देना चाहती तो वो बिलकुल ऐसी ही होती.. उस कहानी पर कमेन्ट के रूप में आई एक लाइन, फेसबुक पर एक शेर की शक्ल में दिखाई दी और अब एक मुकम्मल गीत के रूप में हमारे सामने है!!
जवाब देंहटाएंआभार आपका!
आपने इसे गीत की संज्ञा दी, आभार आपका .
हटाएंमौजूदगी से गहरा , मौजूदगी का अहसास है
जवाब देंहटाएंदूर जाकर, पता चले, कोई कितने पास है .
सामने जो लफ्ज़ रह जाते थे, अनसुने
अब अनकही बातों को भी सुनने की प्यास है.
बहुत ही बढ़िया...अक्सर किसी के दूर जाने के बाद ही उसकी अहमियत का एहसास होता है फिर चाहे वो वक्त हो या कोई इंसान...
रश्मि जी ...कितना सुंदर लिखा है ...अटूट भावनाएं ...वैसे सलिल जी की कहानी भी बहुत अच्छी थी सच मे उसी के लिए लिखा है समझ मे आ रहा है ...!!बहुत बार पढ़कर भी मन नहीं भरा ....!!बधाई स्वीकार करें ....!!
जवाब देंहटाएंकिसी का न होना ही अक्सर उसके होने का एहसास कराता रहता है | उड़ते गुब्बारे वापस पकड़ने की जबरदस्त चाह होती है | खूबसूरत सी अभिव्यक्ति सच्ची भावनाओं की |
जवाब देंहटाएंबढ़िया है :) सलिल जी की कहानी पढने जा रही हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूब रचना..
जवाब देंहटाएंसामने जो लफ्ज़ रह जाते थे, अनसुने
जवाब देंहटाएंअब अनकही बातों को भी सुनने की प्यास है.
सुंदर पंक्तियाँ .....दूरियां रिश्तों के मायने समझा देती हैं....
बहुत खूब |सुनहरी कलम पर नागार्जुन की कविताएं समय हो तो अवलोकन करने का कष्ट करें |
जवाब देंहटाएंwww.sunaharikalamse.blogspot.com
बहुत सुन्दर रश्मि....
जवाब देंहटाएंपूरा पूरा न्याय किया है सलिल जी की कहानी के साथ....
गज़ल पढ़ना अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर...
:-)
अनु
सलिल जी ने गीत कहा...अब तुम ग़ज़ल कह गयीं..
हटाएंये सब कुछ नहीं बस चंद सतरें हैं...:)
ओहो ! तो हमारी दीदी सलिल जी की कहानी पढ़कर शायर हो गयी :) अच्छी लगी आपकी ये कोशिश. आखिर की पंक्तियाँ बहुत प्यारी हैं.
जवाब देंहटाएंहम तो दौड़े आये अपने जिक्र से , मगर काश हमारी किसी रचना ने आपसे कोई कविता लिखवाई होती ...चलो कोई नहीं , किसी भी बहाने से कोई याद रखे !
जवाब देंहटाएंजिसकी भी है , यादों की उजास रोशन होती रहे , ताकि तुम्हारे गीत -ग़ज़ल भी पढने को मिलते रहे और हम यह सुनने से बच जाए - "अच्छा है मैं कवितायेँ नहीं लिखती "!!
बढ़िया है !
तिमिर की कोशिश तो पुरजोर है,घर कर लेने की
जवाब देंहटाएंपर दिल में, तेरी यादों की रौशनी की उजास है.
kamaal....kamaal didi...no words :) :)
जैसे सलिल जी की पोस्ट हटके थी, वैसे आपकी यह कवितानुमा पोस्ट भी आपकी पोस्टों से हटके है। बधाई...
जवाब देंहटाएंतिमिर की कोशिश तो पुरजोर है,घर कर लेने की
जवाब देंहटाएंपर दिल में, तेरी यादों की रौशनी की उजास है.
सब इतना कह गए कि मेरे लिए कुछ बचा ही नहीं .... :)) संयोग से कहानी मेरी भी पढ़ी हुई थी .... !! पूरा पूरा न्याय हुआ है ,कहानी के साथ....!!
bahut achchha lagi rachna...
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन उम्दा प्रस्तुति क्या बात है
जवाब देंहटाएंइसे समय की माँग कहो
जवाब देंहटाएंया ख़ामोशी की प्यास कहो
सुनना है अनकहे को
वाह
जवाब देंहटाएं@तिमिर की कोशिश तो पुरजोर है,घर कर लेने की
जवाब देंहटाएंपर दिल में, तेरी यादों की रौशनी की उजास है.
वाह... बेहतरीन गज़ल बन पड़ी है..
हाँ सलील जी कई मायनों में अपनी टीप और पोस्ट द्वारा कई ब्लोग्गरों को प्रेरित करते है ... कहीं न कहीं हिट छोड़ जाते हैं जिनसे प्रेरणा पाकर मेरे जैसे कई लोग आगे चल पढते हैं.
बढ़िया! और चित्र भी बहुत सुन्दर है! :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति......
बात तो यह भी सुंदर है, कहानी पर कविता और कविता पर कहानी.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता.
waah.. :-)
जवाब देंहटाएंतिमिर की कोशिश तो पुरजोर है,घर कर लेने की
जवाब देंहटाएंपर दिल में, तेरी यादों की रौशनी की उजास है.
वाह ..बहुत सुंदर
रश्मि जी ..नमस्कार आपके ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगा.... अब आना होता रहेगा
तो इस क्षेत्र भी महारथ हासिल है आपको ...आज जाना ...वाह ..बहुत प्यारी रचना
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