tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post8016900375417543832..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: टी.वी. सीरियल देखना....महिलाओं का शौक या मजबूरी.rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger52125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-34685761136495921242011-02-20T11:17:45.859-08:002011-02-20T11:17:45.859-08:00रश्मि जी !! इस बुद्धू बक्से के बारे में आपने जो लि...रश्मि जी !! इस बुद्धू बक्से के बारे में आपने जो लिखा है वह काफी उपयोगी एवं अपेक्षित है ..<br />विषय पर सटीकता से लिखना आप ने बैखुबी निभाया आभार .हें प्रभु यह तेरापंथhttps://www.blogger.com/profile/12518864074743366000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5763041871736657562011-02-20T07:34:15.510-08:002011-02-20T07:34:15.510-08:00सही कहा आपने रश्मि जी
लेकिन रोने-पीटने और सास बहू ...सही कहा आपने रश्मि जी<br />लेकिन रोने-पीटने और सास बहू वाले प्रोग्राम ही क्यों, इस पर भी कुछ लिखिए.शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-90415563587545808522011-02-19T21:03:50.220-08:002011-02-19T21:03:50.220-08:00@ घुघूती बासूती ,
अरे मैं तो आपके भरोसे बैठा था !@ घुघूती बासूती ,<br />अरे मैं तो आपके भरोसे बैठा था !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-11358968381641467792011-02-19T19:30:50.765-08:002011-02-19T19:30:50.765-08:00definitely leisure should be utilised for some con...definitely leisure should be utilised for some concrete work but if there is some time to spare, there is nothing wrong in viewing TV. morever excess of anything is bad,be it tv ,net or even blogging.amit kumar srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10782338665454125720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-42105643394947368972011-02-19T09:19:10.206-08:002011-02-19T09:19:10.206-08:00ये सीरियल्स तो उच्च मध्य वर्ग की महिलाओं (काउच पोट...ये सीरियल्स तो उच्च मध्य वर्ग की महिलाओं (काउच पोटेटोज) के चोचले हैं! :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-48240073929751466932011-02-19T08:14:42.806-08:002011-02-19T08:14:42.806-08:00टी वी पर सोप ओपेरा देखना एक स्त्रैण कर्म है ही इसे...टी वी पर सोप ओपेरा देखना एक स्त्रैण कर्म है ही इसे क्या राशेनालायिज करना:)Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-19887116403035622822011-02-19T06:35:11.922-08:002011-02-19T06:35:11.922-08:00अब आएं शौक या मज़बूरी के मूल प्रश्न पर ...
मैं अपन...अब आएं शौक या मज़बूरी के मूल प्रश्न पर ...<br />मैं अपने अनुभव, और अपने घर तक ही बात रखूंगा, बाक़ी की आपने शौक या मज़बूरी होगी।<br />मैंने मां, बहन और बीवी का उदाहरण दिया ... इन तीनों के लिए देखता हूं ये मज़बूरी ही है।<br />शौक से मेरी बीवी तो अभी भी .... यू नो बेटर!मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-58629140114527616822011-02-19T06:27:16.182-08:002011-02-19T06:27:16.182-08:00.... और अंत में मैं खुद खूब टीवी देखता हूं, और मेर....... और अंत में मैं खुद खूब टीवी देखता हूं, और मेरी पसंद <br />मैं ललिया देखता हूं, पसंद करता हूं<br />मैं डांस वाले सभी रियलिटी शो देखता हूं<br />मैं विधाता देखता हूं<br />मैं कॉमेडी सर्कस देखता हूं<br />मैं फ़िल्में देखता हूं<br />मैं न्यूज़ कम देखता हूं<br />मैं सब के सजन रे.., लपता गंज, और एफ़ अई आर देखता हूं, तेंदुलकर भी<br />और सारा सारा दिन क्रिकेट भी देखता हूं, इसका मतलब क्या मैं दफ़्तर, घर के काम या ब्लोगिंग नहीं करता।<br />जी ...ये सब भी करता हूं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-24239267093971927452011-02-19T06:10:13.735-08:002011-02-19T06:10:13.735-08:00इसमें कई बातें हैं।
एक वो जो मज़बूरी में टीवी देखत...इसमें कई बातें हैं।<br />एक वो जो मज़बूरी में टीवी देखती हैं।<br />मेरी मां, जो गांव में रहती है, और कोई साधन ही नहीं समय पास करने के लिए। पापा थे तो कुछ उनसे बात वात करके उनका समय कट जाता था।<br />अब ... तो टीवी ही सहारा है।<br />एक मेरी बीवी (उसे पता न चले) जिन्हें टीवी ने मज़बूर कर दिया है उसे देखने के लिए।<br />ये सीरियल ... सच में नशा ही है।<br />अब बच्चे या तो कॉलेज स्कूल होते हैं, और हम दफ़्तर। तो गृहिणियों को क्या ... लग गए टीवी में।<br />कुछ दिनों के बाद ... टीवी का वायरस उसे छोड़ता ही नहीं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-616766383507261862011-02-19T06:07:42.487-08:002011-02-19T06:07:42.487-08:00ग़लती से छूट गई यह पोस्ट! बहुत देर हो गई..लेकिन एक ...ग़लती से छूट गई यह पोस्ट! बहुत देर हो गई..लेकिन एक घटना मैं भी शेयर करना चाहुँगा.. अभी पीछे मेरी माता जी की आँख का ऑपरेशन हुआ, और जब डॉक्टर ने उनको बुलाया तो पहला प्रह्न उन्होंने यही पूछा कि टीवी कब से देख सकती हूँ.. मेरे घर पर आई.पी.टी.वी. है, जिसमें हफ्ते भर के प्रोग्राम वो जब चाहे देख सकती हैं.. लेकिन उनके सीरियल के समय अगर कोई दूसरा चैनेल कोई देखना चाहे तो आफ़त... एक ऐडिक्ट की तरह समय होते ही टीवी केसामने होती हैं वो.. बिना घड़ी देखे कब सात बजे उनको पता चल जाता है...चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-16565692741800034952011-02-19T05:59:25.956-08:002011-02-19T05:59:25.956-08:00अब तक तीन पारा पढा हूं, और यह शेयर करने का मन कर ग...अब तक तीन पारा पढा हूं, और यह शेयर करने का मन कर गया कि सही कहा आपने कि हमारे जमाने में दीदी को इतना काम करते देखता था कि उस जमाने अगर टीवी होता तो शायद वो उसे भी इगनोर करती।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-32146551979386327052011-02-18T17:39:22.908-08:002011-02-18T17:39:22.908-08:00टीवी देखना शौक और मजबूरी इस पर तो लंबी बहस हो सकती...टीवी देखना शौक और मजबूरी इस पर तो लंबी बहस हो सकती है, परंतु हाँ विश्लेषण बहुत अच्छा किया है।<br /><br />ये शौक नहीं नशा भी हो सकता है, परंतु केवल महिलाओं में ही नहीं, पुरुषों में भी।<br /><br />वैसे भी महिलाओं के पास घर का इतना काम होता है कि उन्हें टीवी देखने का समय भी मिलता होगा।<br /><br />मैंने एक कविता लिखी थी, जिसमें घरेलू महिला की सोच बतायी थी, कि अगर तुम्हें ५ दिन काम करके २ दिन आराम मिलता है तो क्या हमें नहीं मिलना चाहिये ? तुम ये दो दिन भी ऑफ़िस में ही रहा करो घर पर रहते हो तो कितनी फ़रमाईशें करते हो, कि मुझे समय ही नहीं मिल पाता।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-35828419251556912492011-02-18T08:15:29.369-08:002011-02-18T08:15:29.369-08:00sandesh to badhiyaa hai ...sandesh to badhiyaa hai ...रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-52310650116840654352011-02-18T06:55:26.349-08:002011-02-18T06:55:26.349-08:00सही बात है आपकी, वैसे ममताजी की ऊपर वाली टिपण्णी अ...सही बात है आपकी, वैसे ममताजी की ऊपर वाली टिपण्णी अच्छी लगी.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-2959092447673266752011-02-18T03:53:28.394-08:002011-02-18T03:53:28.394-08:00I don't understand why watching tv has to be j...I don't understand why watching tv has to be justified.I love watching tv,even the so-called regressive serials and I don't need anybody's approval to do so...........mamtahttps://www.blogger.com/profile/10767198205312070778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-67174257900604335292011-02-18T02:59:52.684-08:002011-02-18T02:59:52.684-08:00तुम्हारी पोस्ट और उसपर आये कमेन्ट के बाद कुछ कहने ...तुम्हारी पोस्ट और उसपर आये कमेन्ट के बाद कुछ कहने को बचता ही नहीं है ...<br />फिर भी ..<br />शादी के बाद कभी बोर होने की फुर्सत ही नहीं मिली ...घर और बच्चों की जिम्मेदारी , रोज ही कोई नया काम निकल आता है , और फिर इतने सारे शौक ...ढेर सारा पढना , रेडिओ सुनना , नयी रेसिपी सीखना ,बागवानी और अब तो इन्टरनेट जिंदाबाद ...<br /><br />सास बहू वाले आम सीरियल पसंद नहीं है ...रियल लाइफ में ही बहुत कुछ देख लिया है :):), मगर दो-तीन सीरियल जरुर देखती हूँ क्योंकि वे बहुत ही हलके- फुल्के हैं और भरपूर मनोरंजन करते हैं ...<br />समाज सेवी संगठन का तुम्हारा सुझाव बहुत ही अच्छा है ...बच्चों के एक्जाम के बाद इस पर कुछ काम करना है , ठान रखा है !<br /><br />बहुत अच्छी पोस्ट और इतने ही अच्छे कमेंट्स!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-84838479452579580272011-02-18T02:55:25.261-08:002011-02-18T02:55:25.261-08:00बडी सी टिप्पणी लिखी, गायब हो गई>
फ़िर लिखूँगी फ़ु...बडी सी टिप्पणी लिखी, गायब हो गई><br />फ़िर लिखूँगी फ़ुरसत से.<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-29477538948553609202011-02-18T01:52:10.859-08:002011-02-18T01:52:10.859-08:00रश्मि जी ,
टीवी देखना अपने आप में एक दुनिया में स...रश्मि जी ,<br /><br />टीवी देखना अपने आप में एक दुनिया में सिमटे रहने जैसा है ..कई बार मैंने महसूस किया है . जब मैं किसी होममेकर से बात करती हूँ तो लगता है वो भावनात्मक रूप से पात्रों से जुड़ गई है ..उनकी ख़ुशी में हँसती है और दुःख में रोती है और ये दुनिया कई बार उन्हें वास्तविक दुनिया से अलग भी कर देती है ..मैं ये नहीं कहती ये सब के साथ होता है ..पर ये होता है .<br />कुछ दिन पहले एक परिचित से मैं अपने ऑफिस के बाद मिलने गई कुछ देर बात करने के बाद मेरी उपस्थिति मानो रही नहीं टीवी पर कार्यक्रम शुरू होने से पहले मुझे आगाह कर दिया ७.३० पर फलां सीरियल आता है हम तो मिस नहीं कर सकते ... ये वही थी जो मेरे ना आने के ताने मुझे समय समय पर देती थी ..... अपमानित सा महसूस हुआ और अब शायद मैं कबी उनसे ऐसे मिलने ना जाऊंsonalhttps://www.blogger.com/profile/03825288197884855464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-19589977795960804872011-02-18T01:14:22.632-08:002011-02-18T01:14:22.632-08:00रश्मिजी महिलाओं की कमी या मजबूरी कहिये इसे... लेकि...रश्मिजी महिलाओं की कमी या मजबूरी कहिये इसे... लेकिन वास्तव में यह बाज़ार की घुसपैठ है घरों तक... महिलाएं स्वाभाविक रूप से इमोसनल होती हैं.. यह अच्छाई भी और कमजोरी भी.. इस कमजोरी का फायदा बाज़ार सोच समझ कर उठा रहा है... वास्तव में महिलायें अच्छी चीज़ें भी देखेंगी लेकिन बशर्ते की उन्हें दिखाई जाए... जब दूरदर्शन अपने शैशावास्वस्था में था याद करिए बेहतरीन सीरियल्स आते थे और लोग उन्हें देखते भी थे.. लेकिन दूरदर्शन की अकर्मण्यता के कारण निजी चैनलों की बाढ़ आयी.. और फिर दर्शको के मनोविज्ञान का गंभीर अध्यनन और सर्वेक्षण हुआ ... जैसे पत्रिकाओं के पर्सनल समस्या के कालम प्रायोजित से होते हैं.. वैसे ही ये सीरिअल हो गए हैं और दर्शक के मूल में छुपी हिंसा, कुंठा आदि आदि है.. उसको भुनाया जा रहा है... गुलज़ार साहब को प्रेमचंद के उपन्यास पर सीरियल बनाने के लिए ५०,००० प्रति एपिसोड दिए जाते थे .. तो उन्होंने छोड़ दिया... श्याम बेनेगल को डीडी ने निर्माताओं के पैनल में नहीं रखा.. ऐसे में जो कुछ हो रहा है वह सही है. इसमें महिला की मजबूरी नहीं हमारे व्यवस्था की कमी है ... जो परोसा जा रहा है उस से अलग जाकर कुछ करने के लिए बहुत हिम्मत की जरुरत है...अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-39210652336744017962011-02-17T23:55:53.225-08:002011-02-17T23:55:53.225-08:00@वंदना
सच कहा...महिलाओं को दूसरे शौक अपनाने चाहिए....@वंदना<br />सच कहा...महिलाओं को दूसरे शौक अपनाने चाहिए....पर मुझे लगता है..इसके लिए उन्हें पति और घरवालों का भरपूर समर्थन और प्रोत्साहन मिलना चाहिए जबकि अक्सर लोग हतोत्साहित ही कर बैठते हैं.<br /><br />मेरी एक कजिन को सिलाई का शौक था...उसने मुश्किल से समय निकाल ,अपनी नन्ही सी बिटिया के लिए सुन्दर फ्रॉक सिला...उत्साह से पति और सास को दिखाया .पति ने एक उचटती नज़र डाली और टी.वी. पर नज़रें जमाये कहा...'पचास रुपये में इस से सुन्दर फ्रॉक बाज़ार में मिल जाते हैं'....सास ने दस कमियाँ निकालीं...ये ठीक नहीं सिला...वो ठीक नहीं सिला...और उसने सिलाई मशीन बंद कर दी...जिसपर वर्षों से धूल जम रहा है.<br /><br />इस तरह के कई उदाहरण हैं...कोई प्ले स्कूल के लिए मना कर देता है...जितना वेतन मिलेगा वो सब...आने-जाने....ड्रेस-चप्पल...बाई में खर्च हो जायेगा..क्या फायदा..घर बैठो. <br />कोई हाथ से बनी वस्तुओं पर कहते हैं....इस से कम पैसे में चीज़ें बाज़ार में मिल जाती हैं....इसलिए घरवालों का समर्थन...प्रोत्साहन...उत्साहवर्द्धन बहुत जरूरी है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-31976134222643026142011-02-17T23:44:23.778-08:002011-02-17T23:44:23.778-08:00@अंशुमाला जी,
पिछली पोस्ट की टिप्पणियों में कई लोग...@अंशुमाला जी,<br />पिछली पोस्ट की टिप्पणियों में कई लोगो ने कहा कि महिलाएँ ज्यादा टी.वी. देखती हैं...आपने भी कहा कि <b>"मेरे पति बहुत खुश होते है कहते है भला हो इन धारावाहिकों का जो देश के उन गिने चुने पतियों में हूं जिनके पास टीवी का रिमोर्ट रहता है और खाना पानी जब चाहो मिल जाता है नहीं तो लोगों को धरावाहिक ख़त्म होने या ब्रेक तक रुकना पड़ता है |"</b><br /><br />यहाँ आशय दूसरी महिलाओं के टी.वी. सीरियल्स देखने से ही है ना??<br /><br />इसीलिए मैने महिलाओं के ही टी.वी. सीरियल्स देखे जाने पर पोस्ट लिखी. वरना बच्चे ,पुरुष...कामकाजी महिलाएँ भी टी.वी. देखती हैं....पर उनके जीवन में इसके अलावा भी बहुत कुछ है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-69528499945945864122011-02-17T23:36:28.505-08:002011-02-17T23:36:28.505-08:00@राज जी,
मैं मानती हूँ..विदेश में रहकर भी भाभी जी ...@राज जी,<br />मैं मानती हूँ..विदेश में रहकर भी भाभी जी घर का काफी काम करती हैं...पर आपलोग वीकेंड्स पर बाहर जाते होंगे,ना?? पिकनिक...पार्टियां...दूसरे समारोह...इन सबमे शिरकत करते होंगे...<br /><br />लेकिन मध्यमवर्गीय भारतीय महिलाओं को ये सब मयस्सर नहीं है...इसलिए मनोरंजन के लिए उनकी टी.वी. पर ज्यादा निर्भरता है....जिसे दूर किया जाना चाहिए.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-50555659373499878532011-02-17T20:16:02.373-08:002011-02-17T20:16:02.373-08:00आपने सारे विकल्प बता दिए, लेकिन पहले हर घर में सा...आपने सारे विकल्प बता दिए, लेकिन पहले हर घर में साहित्य पढ़ा जाता था आज साहित्य दूर होता जा रहा है। पहले धर्मयुग और हिन्दुस्थान हर घर की जरूरत था लेकिन आज पत्रिकाएं या तो राजनैतिक दृष्टिकोण को लिए हैं या फिर फिल्मों को। ऐसे में महिला की बौद्धिक स्तर पीछे छूटता जा रहा है। उपन्यासों और कहानी संग्रहों का पढ़न तो न के बराबर हो गया है। कम पढ़ी-लिखी महिलाएं धार्मिक पुस्तके भी खूब पढ़ती थी लेकिन अब वे भी दूर हो गयी हैं। इसलिए यह समय साहित्य की वापसी का समय है बस प्रकाशक यदि थोडा विज्ञापन करें तो।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-16211252841010106272011-02-17T19:04:48.584-08:002011-02-17T19:04:48.584-08:00हर एक की बैटरी चार्ज करने वाला आलेख है रश्मि जी ! ...हर एक की बैटरी चार्ज करने वाला आलेख है रश्मि जी ! इस विषय पर सबके पास ग्रन्थ भर कहने के लिये मटीरियल होगा ! टी वी महिलायें शौक से देखती हैं या मजबूरी में, देखती हैं तो क्यों देखती हैं, जो देखती हैं वह उन्हें देखना चाहिए या नहीं इस विषय पर इतना कहा सुना जा सकता है कि टिप्पणी बॉक्स छोटा पड़ जायेगा ! आपकी सभी बातों से सहमत हूँ ! अपनी दूसरी पारी में घटिया सीरियल्स देखने की बजाय महिलाओं को कुछ सकारात्मक और स्तरीय कार्य करने चाहिए लेकिन इसके लिये पुरुषों का सहयोग और प्रोत्साहन भी उतना ही अपेक्षित है जो ऑफिस से घर लौटने के बाद केवल न्यूज़ चैनल्स एवं पलंग से ही सरोकार रखते हैं ! क्या उन्होंने कभी पत्नी की खुशी नाखुशी, पसंद नापसंद पर ध्यान दिया है ? बहुत बढ़िया एवं विचारोत्तेजक आलेख ! बधाई एवं आभार !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-12537241733285211122011-02-17T16:35:07.899-08:002011-02-17T16:35:07.899-08:00सहज और सुगम हो कर प्रभावी है आपकी यह अपनी, उनकी......सहज और सुगम हो कर प्रभावी है आपकी यह अपनी, उनकी...Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.com