tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post3983136998517801764..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: डोर को सुलझाने का यत्न....पर सिरा है कि मिलता नहींrashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger46125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-6528064146381033902011-03-21T07:32:09.822-07:002011-03-21T07:32:09.822-07:00बहुत ही संवेदन शील पोस्ट , हम सब को अध्यात्मिक रिय...बहुत ही संवेदन शील पोस्ट , हम सब को अध्यात्मिक रियलाइजेशन की जरुरत होती है , जब तक हम परिस्थितियों को गुजर जाने वाले शो की तरह न देख पायेंगे , तब तक तूफ़ान से हिलते ही नजर आयेंगे ....भला बताओ , इंसान महत्त्व-पूर्ण है या ये बाधाएं ...?शारदा अरोराhttps://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-1838795404761622732011-03-20T22:46:09.710-07:002011-03-20T22:46:09.710-07:00व्यक्ति का आई.क्यू. बढ़ रहा है तेजी से। उस अनुपात म...व्यक्ति का आई.क्यू. बढ़ रहा है तेजी से। उस अनुपात में ई.क्यू. (Emotional Quotient) और एस.क्यू. (Spiritual Quotient) नहीं तालमेल बना पा रहा। :(Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-47769635863927272082011-03-20T06:41:16.579-07:002011-03-20T06:41:16.579-07:00Purely materialistic society...Purely materialistic society...Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-46194541297904069932011-03-19T19:12:07.018-07:002011-03-19T19:12:07.018-07:00होली पर आपको सपरिवार शुभकामनायेंहोली पर आपको सपरिवार शुभकामनायेंSatish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-60136387431485197292011-03-18T19:00:58.888-07:002011-03-18T19:00:58.888-07:00दोनों घटनाएँ सुनी थी मैंने :(
मुड एकदम खराब हो जा...दोनों घटनाएँ सुनी थी मैंने :( <br />मुड एकदम खराब हो जाता है ये सब पढ़ सुन कर :(abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-87819976577570066452011-03-18T16:30:36.533-07:002011-03-18T16:30:36.533-07:00so tragic ,even then we claim ourselves being prog...so tragic ,even then we claim ourselves being progressive.we dont know parenting,dont know to care and share other's feelings and sentiments and pose to be very thoughtful and social reformer,may god good sense prevail upon these sort of stuff...amit kumar srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10782338665454125720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-61493291838001477652011-03-18T13:17:25.563-07:002011-03-18T13:17:25.563-07:00रश्मि जी,बहुत भारी मन से लिख रहा हूँ. पहली घटना के...रश्मि जी,बहुत भारी मन से लिख रहा हूँ. पहली घटना के लिये उस महिला के लिये मेरे मन मे अपार क्रोध है जिसने अपने बच्चो को मारा या इसके लिये उकसाया. हालात जो भी रहे हो उनका सामना करती. धरती के किसी भी कोने मे एक सी ए के लिये जीवन निर्बाह लायक कमाना मुश्किल होगा इस पर सिर्फ हंस सकता हू.<br /><br />दूसरे मामलो मे बच्चो को सही गलत का अंतर आसानी से समझाया जा सकता था. हम लोग माता पिता के रूप मे कब समझदार होंगे ?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13199219119636372821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-6869513325144777372011-03-18T08:34:23.413-07:002011-03-18T08:34:23.413-07:00पहले तो ये बताइए की आपकी तस्वीर ने ज्यादा होली खेल...पहले तो ये बताइए की आपकी तस्वीर ने ज्यादा होली खेल ली थी जो हटा दी .....?<br />और पोस्ट की तो क्या कहूँ बड़े संजीदा प्रश्न उठती हैं आप ......<br />जवाब तो आपने स्वयं दे दिया है .....<br />पहले यही नियति मानी जाती थी अब टी वी भी है राह दिखने वाला .....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78620370895962369072011-03-18T05:33:22.627-07:002011-03-18T05:33:22.627-07:00दोनों घटनाएं पढ़कर मन उदास हो गया । ग्यारह साल की ...दोनों घटनाएं पढ़कर मन उदास हो गया । ग्यारह साल की बच्ची तो बहुत छोटी होती है , उसकी माँ तो समझदार थी , फिर शिकायत करने की इतनी जिद क्यूँ पकड़ ली।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-79925771732580843912011-03-17T23:51:10.776-07:002011-03-17T23:51:10.776-07:00di jab se dono dhatna akhbaar me padhi man itna vy...di jab se dono dhatna akhbaar me padhi man itna vyathith hai...aajkal sahanshakti jaise shunay hoti ja rhi hai...kya pratikiya du kuch samjh me bhi nahi aa rha lekin koi bhi itna bada kadam yun hi nahi utha leta aur bachcho ko to aaj kal unke friend ban kar hi pala ja sakta hai...Shubham Jainhttps://www.blogger.com/profile/11736748654627444959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-2376135988023792172011-03-17T23:26:34.033-07:002011-03-17T23:26:34.033-07:00स्तब्ध हूँ .... कई बार इस पोस्ट को पढ़ चुकी हूँ ल...स्तब्ध हूँ .... कई बार इस पोस्ट को पढ़ चुकी हूँ लेकिन समझ नहीं पा रही कि क्या प्रतिक्रिया दूँ... .......मानव मन के झंझावात को समझ पाना आसान नहीं....मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-83603699180223126952011-03-17T21:03:42.621-07:002011-03-17T21:03:42.621-07:00निर्मला कपिला जी की इ -मेल से प्राप्त टिप्पणी
दो...<b>निर्मला कपिला जी की इ -मेल से प्राप्त टिप्पणी</b><br /><br /> दोनो घटनायेण बेहद दर्द नाक हैं मगर दो क्या देश मे हाजारों ऐसी घटनायें हो रही हैं। मगर उपाय कुछ नही। मर्ज़ बढता ही गया ज्यों ज्यों दवा की। इस देश मे नारी केवल भगवान भरोसे है।। होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें।rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-24724725674286151152011-03-17T20:37:53.443-07:002011-03-17T20:37:53.443-07:00@ निधि ,
उसके पिता ने उसे आत्मनिर्भर ज़रूर बनाया प...@ निधि ,<br />उसके पिता ने उसे आत्मनिर्भर ज़रूर बनाया पर विवाह उस परिवार में किया जिसने सबसे पहले उसकी आत्मनिर्भरता पे हमला किया !<br /><br />उसके लिए शराबी और गैरजिम्मेदार पति चुन लिया गया है यह पहचान होने के बाद भी निधि के पिता उसे ससुराल में निबाह करना है वाली मानसिकता में जीते रहे ! और अब अफ़सोस या पछतावा ! <br /><br />कथित सामाजिकता के प्रदर्शन /मर्यादा के नाम पर अपने ही अंश के प्रति कोई ठोस कारगर निर्णय लेने में झिझकते रहे ! शर्म की बात !<br /><br />निधि ने जीवन से पलायन का अंतिम विकल्प चुना ,निश्चय ही वह अत्यधिक तनाव में रही होगी ! ससुराल के हालात और मायके की अनिर्णय वाली स्थिति में संभव है उसे प्रतिरोध की तुलना में पलायन चुनना पड़ा हो ! दुखद है !<br /><br />निधि का पति एक किस्म का पशु है जिसे सेक्स की दरकार तो है ...जिसके लिए उसने शादी भी की पर उसके आगे की जिम्मेदारियां उसकी होने का ( अपराध )बोध उसे नहीं है क्योंकि इसे वह शराब के साथ घोल कर पी गया है ! मेरे विचार से अपने बच्चों और पत्नी की असामयिक मृत्यु का सबसे बड़ा गुनहगार वो ही है ! <br /><br />@ ११ वर्षीय बेटी ,<br />अब 'मां' भी बच्चों को समझ पाने /स्पेस देने में असमर्थ हो गई हैं ? भावनात्मक संबंधों /जुड़ाव की सबसे सशक्त डोर मां ?उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-63406660122585448742011-03-17T20:32:17.896-07:002011-03-17T20:32:17.896-07:00बहुत हृदय विदारक घटनाएँ हैं दोनों रश्मि जी ! स्त्र...बहुत हृदय विदारक घटनाएँ हैं दोनों रश्मि जी ! स्त्री अपने ही घर में अपनों से ही उपेक्षित होकर किस घुटन को जीती है, पराश्रित होने पर किस तरह अपने अरमानों और इच्छाओं की बलि चढ़ाती है और पल पल किस अपमान का सामना कर अपने जीवन और व्यक्तित्व को टूटता हुआ देख कर खून के घूँट पीती है इसका यदि वास्विक आकलन किया जाये तो सातों सागर भी उसकी पीड़ा के आगे छोटे पड़ जायेंगे ! लेकिन फिर भी मैं यही कहना चाहूँगी कि परिस्थतियाँ कितनी भी विपरीत और विषम थीं निधि को ऐसा आत्मघाती कदम नहीं उठाना चाहिये था ! उससे भी अधिक दो अबोध बच्चों के सुन्दर जीवन को इस तरह नष्ट करने का उसे कोई अधिकार नहीं था ! वह स्वयं पढ़ी लिखी थी कामकाजी भी थी ! ऐसे घटिया लोगों से स्वयं को असम्पृक्त कर उसे अपने बलबूते पर अपनी पहचान बनानी चाहिये थी जो वह बना सकती थी यदि ठान लेती तो ! <br />दूसरी घटना अमानवीयता की पराकाष्ठा है ! जिस स्थति में माँ को बेटी के साथ अतिरिक्त संवेदनशीलता, सहानुभूति और समझदारी से पेश आने की आवश्यकता थी वहाँ वही अपनी ही बेटी की प्रबलतम शत्रु बन बैठी ! ११-१२ वर्ष की उम्र ही क्या होती है ! इस उम्र में बच्चे बहुत भावुक होते हैं और भावनाओं के ज्वार में सहज ही बह जाते हैं ! यहीं पर अभिभावकों की भूमिका में अतिरिक्त सतर्कता, जागरूकता और मित्रवत भावना का समावेश होना चाहिये ! धमकाने और प्रिंसीपल का खौफ दिलाने की जगह माँ को बच्ची को प्यार से समझाना चाहिये था तब शायद ऐसी दुखद स्थति पैदा न होती ! आपकी पोस्ट उदास कर गयी लेकिन इसे पढ़ कर यदि चंद अभिभावक सचेत हो जायें तो इससे बड़ी उपलब्धि और कोई नहीं होगी ! सार्थक आलेख के लिए बधाई एवं होली की अनंत शुभकामनायें !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-26825807488281980242011-03-17T19:56:55.275-07:002011-03-17T19:56:55.275-07:00सुनामी .... प्रकृति का प्रकोप , निधि - जब किसी ने ...सुनामी .... प्रकृति का प्रकोप , निधि - जब किसी ने सुना ही नहीं तो क्या कहना है ! दो बच्चों को खुद के साथ ले जाने का फैसला कितना दुखद होगा ! स्वर, चेहरा सबकुछ परेशानी बता देते हैं - नहीं समझना हो तो अनुभवों को मासूम बनने में कितना वक़्त लगता है ! अपनी इमेज के लिए ! क्या है यह इमेज ? जिसके आगे दम घुटता है , चिताएं जलती हैं , रात सवाल बन भयावह हो जाती है ...रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-67919152284757684432011-03-17T11:42:55.985-07:002011-03-17T11:42:55.985-07:00दोनों घटनाएं अंतस को झकझोरती हुई घटनाएं हैं !
आपने...दोनों घटनाएं अंतस को झकझोरती हुई घटनाएं हैं !<br />आपने सही लिखा है थोड़ी सी सहशीलता और संवाद से ऐसी घटनाएं टाली जा सकती हैं|Dr Varsha Singhhttps://www.blogger.com/profile/02967891150285828074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-7837811528853718652011-03-17T10:57:35.339-07:002011-03-17T10:57:35.339-07:00दोनों ही घटनाएँ हालांकि एक जैसी ही हैं परंतु परिस्...दोनों ही घटनाएँ हालांकि एक जैसी ही हैं परंतु परिस्थितियाँ अलग अलग हैं..<br /><br />क्या हम संवेदनाहीन हो चले हैं कि अपने अलावा और कुछ अच्छा ही नहीं लगता है.. पता नहीं पर अभी मैंने भी इस प्रकार की कुछ घटनाएँ बहुत करीब से देखी हैं और उन्हीं को सुलझाने के समीकरण बैठा रहा हूँ..<br /><br />आज जरुरत है समझदारी से काम लेने की.. आत्मबल की..विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-34545436268895510292011-03-17T04:53:50.290-07:002011-03-17T04:53:50.290-07:00ऐसी पोस्ट पर अपनी हंसती हुई तस्वीर भी अच्छी नहीं ल...ऐसी पोस्ट पर अपनी हंसती हुई तस्वीर भी अच्छी नहीं लग रही....सो बदल दी.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-10149300342865931442011-03-17T04:52:40.795-07:002011-03-17T04:52:40.795-07:00@राजेश जी,
आपने तो डरा ही दिया. शुक्र है कि सही सम...@राजेश जी,<br />आपने तो डरा ही दिया. शुक्र है कि सही समय पर आपको पिताजी की कही हुई उक्ति का ध्यान आ गया...सच है...जिंदा रहकर समस्या का सामना करना चाहिए...<br /><br />मुझे निधि के माता-पिता से पूरी सहानुभूति है...पर लगता है...शायद उन्होंने निधि को मानसिक सहारा दिया होता...आगे बढ़कर कहा होता...अगर वे लोग बुरा व्यवहार कर रहे हैं...तो हमारे साथ रहो... निधि सक्षम थी...brilliant student थी. बी.कॉम और सी.ए. की परीक्षा एक साथ पास की....जबकि पहली बार में बहुत कम लोग क्लियर कर पाते हैं. वो जी तोड़ मेहनत कर बच्चों को पाल लेती...अगर माता-पिता ने बच्चों की देखभाल की जिम्मेवारी ली होती. और शायद इसीलिए उसे ज्यादा निराशा हुई क्यूंकि वो ऐसा कर सकती थी...पर कर नहीं पा रही थी...rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-18248459584303074052011-03-17T04:51:53.913-07:002011-03-17T04:51:53.913-07:00@अरशद.
मेरे दादा जी कहते थे कि "अगर कमरे में ...@अरशद.<br /><b>मेरे दादा जी कहते थे कि "अगर कमरे में बिल्ली आ जाये और आप उसे भागना चाहते हें तो कम से कम एक खिड़की खोल कर उसे डरना चाहिए "अन्यथा डरी हुई बिल्ली कोई रास्ता ना पाकर आपको घायल कर सकती है..</b><br /><br />दादाजी ने बहुत ही पते की बात कही थी....आशा की किरण के लिए कम से कम एक सूराख भी होना चाहिए...वरना चारो तरफ से बंद दरवाजे ऐसे अंजाम की ओर ही ले जाते हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-20635940055802454722011-03-17T04:51:14.379-07:002011-03-17T04:51:14.379-07:00@मुक्ति
वैसे कई जीवट वाली महिलाओं कोई साथ ना हो फि...@मुक्ति<br />वैसे कई जीवट वाली महिलाओं कोई साथ ना हो फिर भी , इस से भी भीषण त्रासदी हंस कर झेलते हुए देखा है. शायद औरत सारे जुल्म सह जाती है...अगर सिर्फ मानसिक और शारीरिक अत्याचार उस अकेले को झेलने पड़ें. और उसके बच्चों पर आंच ना आए....पर पता नहीं यहाँ शायद बच्चों की भी सही तरह से परवरिश ना कर पाने पर दुखी होगी....rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-57327666249167532112011-03-17T04:45:06.832-07:002011-03-17T04:45:06.832-07:00@वाणी गीत
मन ना माने..पर सच तो यही है.....पूरी तरह...@वाणी गीत<br />मन ना माने..पर सच तो यही है.....पूरी तरह आत्मनिर्भर होती तो शायद ऐसा कदम नहीं उठाती..प्राइवेट कॉलेज में लेक्चरर की तनख्वाह कितनी होगी?...अखबार में आया है कि सुबह बेटे के स्कूल में सौ रुपये देने थे...उसकी जेठानी ने देने से मना कर दिया...ऐसे वाकये पहले भी हुए होंगे...और ख्याल आ गया होगा उसके मन में....कि बेटे को सौ रुपये भी ना दे पाए...ऐसे जीने से तो मर जाना अच्छा...rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-42123786203252618732011-03-17T03:25:40.621-07:002011-03-17T03:25:40.621-07:00aap yuhi jagatee rahae shyaad kabhin savera ho hi ...aap yuhi jagatee rahae shyaad kabhin savera ho hi jaayeरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-82444705927024872962011-03-17T01:57:34.159-07:002011-03-17T01:57:34.159-07:00दोनों घटनाएं हमारे समाज का आईना हैं।
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यह भी उतना...दोनों घटनाएं हमारे समाज का आईना हैं। <br />*<br />यह भी उतना ही सच है कि न जाने ऐसी कितनी घटनाएं सचमुच में संवाद और सहनशीलता के कारण घटते घटते रह जाती हैं। हमें उनका शुक्र मनाना चाहिए। <br />*<br />मैं आत्महत्या का पक्षधर नहीं हूं। पर निधि को कमजोर कहना उचित नहीं होगा। इस कदम के लिए अपने को बहुत मजबूत बनाने की जरूरत होती है। मैं स्वयं विभिन्न परिस्थितियों में चार बार ऐसा कदम उठाते उठाते पीछे हट गया हूं। मेरे पिताजी कहा करते थे,' आत्महत्या समस्या को खत्म नहीं करती है,वह आपको खत्म करती है। अगर समस्या को खत्म करना है तो जिंदा रहा और उससे लड़ो।' हर बार उनकी यही उक्ति मुझे वापस ले आई।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-19179927477141508862011-03-17T00:29:54.923-07:002011-03-17T00:29:54.923-07:00दोनों ही घटनाओं ने अंदर तक हिला दिया....दोनों ही घटनाओं ने अंदर तक हिला दिया....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.com