tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post3866153731698599106..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: बातों के शेर rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-10614139289583250032013-05-26T11:36:47.140-07:002013-05-26T11:36:47.140-07:00ati marmik abhivyakti, sahee hai koi bhee aage nah...ati marmik abhivyakti, sahee hai koi bhee aage nahin aata hai.<br />bahut bahut badhai.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03051171614183614154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-77066174485741871882013-05-14T20:37:58.463-07:002013-05-14T20:37:58.463-07:00हमें अपराध सहन करने की आदत पड़ गयी है। मारपीट ही क...हमें अपराध सहन करने की आदत पड़ गयी है। मारपीट ही क्यों, लोग किसी भी गलत बात के लिए नहीं टोकते हैं। पता नहीं यह डर है या कुछ और। अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-41936635820712326842013-05-14T10:44:56.285-07:002013-05-14T10:44:56.285-07:00एक विचारपूर्ण आलेख,सारगर्भित
बधाई
आग्रह है प...एक विचारपूर्ण आलेख,सारगर्भित <br />बधाई <br /> <br />आग्रह है पढ़ें "अम्मा"<br />http://jyoti-khare.blogspot.inJyoti kharehttps://www.blogger.com/profile/02842512464516567466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-63227046482607150092013-05-13T18:11:55.220-07:002013-05-13T18:11:55.220-07:00सारगर्भित बात ....कभी कभी लगता है अभिव्यक्ति की इस...सारगर्भित बात ....कभी कभी लगता है अभिव्यक्ति की इस आज़ादी और होड़ ने हमारी बातों के मायने खो दिए हैं ...... पोस्ट का हर भाव वैचारिक है डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-67575507949505940002013-05-13T07:41:38.075-07:002013-05-13T07:41:38.075-07:00"नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो ,कुछ काम..."नर हो न निराश करो मन को<br />कुछ काम करो ,कुछ काम करो "<br />रामविलास शर्मा की यह पंक्तिया याद आ गई <br /> बाकि सबसे सहमत शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-53772596223660431012013-05-12T01:18:55.665-07:002013-05-12T01:18:55.665-07:00जरूरी नहीं है की सब बातें कर के ही चुप बैठ जाते हो...जरूरी नहीं है की सब बातें कर के ही चुप बैठ जाते होंगे ... कोई जरूर होते हैं जो कहे को अंजाम देते हैं ... घंटी जरूर बजाते हैं ... हालात कुछ तो बदलते हुए नज़र आते हैं ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-40883313013061507832013-05-11T23:19:28.576-07:002013-05-11T23:19:28.576-07:00जिस क्षण हम स्वयं को ऐसी घटनाओं से अलग कर लेते हैं...जिस क्षण हम स्वयं को ऐसी घटनाओं से अलग कर लेते हैं, उसी समय समाज हजार टुकड़े और बिखर जाता है। भेदता आलेख।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-27121639249279881432013-05-11T22:27:49.584-07:002013-05-11T22:27:49.584-07:00बस अब बातों के ही शेर रह गए हैं हम
दुखद पर सत्य बस अब बातों के ही शेर रह गए हैं हम<br />दुखद पर सत्य राजेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/02628010904084953893noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-26082596907067157462013-05-11T08:22:21.372-07:002013-05-11T08:22:21.372-07:00AISE HI AAJ-KAL REMAKE BAN RAHE HAI.SANGEET BADAL ...AISE HI AAJ-KAL REMAKE BAN RAHE HAI.SANGEET BADAL GAYA PAR GEET NAHI BADALE.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14897255269537183724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-81563863389900736632013-05-11T08:20:01.149-07:002013-05-11T08:20:01.149-07:00WAISE HI AAJ-KAL SANGEET BADAL GAYA LEKIN GEET NAH...WAISE HI AAJ-KAL SANGEET BADAL GAYA LEKIN GEET NAHI BADALE. (RIMEK)Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14897255269537183724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-46479278052918927232013-05-10T23:01:51.079-07:002013-05-10T23:01:51.079-07:00हस्तक्षेप लोग इसलिए भी नहीं करते क्योंकि अक्सर लडन...हस्तक्षेप लोग इसलिए भी नहीं करते क्योंकि अक्सर लडने वाले कपल का भी यही मानना होता है कि यह हमारा निजी मामला है, अक्सर पिटने या बेइज्जत होने वाली महिला भी यह नहीं चाहती कि कोई तीसरा बीच बचाव करे क्योंकि वे लोग खुद एक-आध दिन में सुलह कर लेते हैं। आज भी स्त्रियां सिर्फ इस उम्मीद में हिंसा सहती हैं कि एक दिन सब कुछ अपने आप (मानो किसी जादू से) ठीक हो जाएगा और वे खुद ही अपने आप को दोयम दर्जे का प्राणी मानती हैं। जब तक वह अपने आप को इज्जत नहीं देगी, कोई दूसरा उसकी इज्जत नहीं कर सकता।दीपिका रानीhttps://www.blogger.com/profile/12986060603619371005noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-64646509938423599102013-05-10T21:20:07.821-07:002013-05-10T21:20:07.821-07:00पापा ने एक बार बताया था एक किताब में एक पैसेज लिखा...पापा ने एक बार बताया था एक किताब में एक पैसेज लिखा था ...<br /><br />'आजकल समाज में बहुत बुराइयां बढ़ गयी हैं...चोरी डकैती की खबरें आम हो गए हैं...लोगों में सहनशीलता ख़त्म हो गयी है ..आदमी आदमी के खून का प्यासा है ...बीते ज़माने की बात कुछ और थी ...तब ऐसा कुछ नहीं होता था ....'<br /><br />यह लाइन्स तीन बार दोहराई गयीं थीं <br /><br />और हर पैसेज की सिर्फ तारीख अलग थी ...सबमें २०० साल का फर्क था <br /><br />तो हालत कभी नहीं बदलते ..पर हर ज़माने में लोगों को लगता है ...पिछला ज़माना इससे बेहतर था Sarashttps://www.blogger.com/profile/04867240453217171166noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-76103831113414305982013-05-10T19:42:19.139-07:002013-05-10T19:42:19.139-07:00अब विवाद नहीं,विमर्श होते है.
सहमत !अब विवाद नहीं,विमर्श होते है.<br />सहमत !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78177583305540227722013-05-10T10:25:54.300-07:002013-05-10T10:25:54.300-07:00रश्मि जी आप सही कह रही है की हम लोग सिर्फ कागजी शे...रश्मि जी आप सही कह रही है की हम लोग सिर्फ कागजी शेर हैं और बातें ही बना सकते हैं। पर मियां बीबी के झगड़े के विषय में आपको अपने अनुभव बता देता हूँ। मियां बीबी के झगड़े में मैंने जब भी अपनी नाक घुसाई हमेशा पीटने वाली महिला से मार खाई। मेरा तो अनुभव यही कहता है की अगर आपको अहसास है की ये झगडा मिया बीबी या गर्ल फ्रेंड बॉय फ्रेंड का है तो तभी हस्तक्षेप करो जब मामला खून खारबे वाला हो जाय। उससे पहले अगर बिच में आये तो हो सकता है की महिला ही आपकी बेइज्जती ख़राब कर दे। ध्यान रखें ये कागजों में आदर्श झाड़ने वाले की नहीं बल्कि एक वास्तविक भुक्तभोगी की सलाह है। VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-76976221533687647062013-05-10T09:02:00.553-07:002013-05-10T09:02:00.553-07:00बहुत ही सार्थक बातें सामनें रखी हैं आपनें.. जागरुक...बहुत ही सार्थक बातें सामनें रखी हैं आपनें.. जागरुकता से ही यह हो पाएगा, पर इतना तो हम सभी कर ही सकते हैं कि हमारे आस-पास जब कुछ गलत होता हो तो हम आवाज उठाएँ...Prashant Suhanohttps://www.blogger.com/profile/13063081005432678937noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-81934144523826438692013-05-10T02:17:32.943-07:002013-05-10T02:17:32.943-07:00सभी बातों से सहमत हूं..
समाज की असल तस्वीर है .. ख...सभी बातों से सहमत हूं..<br />समाज की असल तस्वीर है .. खास तौर पर <br /><br /> { प्रसंगवश एक बात याद आ रही है ,एक फ्रेंड ने अपने बैंक की एक सहकर्मी के विषय में बताया था .वे ऊँची पोस्ट पर हैं. पचास वर्ष से ऊपर की हैं,पर हाल में ही उनका तलाक हो गया है और उन्हें कोई फ़्लैट किराए पर नहीं मिल रहा. एक बिल्डिंग में फ़्लैट एक मिला भी तो तीन महीने के अन्दर छोड़ना पड़ा क्यूंकि बिल्डिंग वालों ने आपत्ति की कि ये अकेली रहती हैं,पर इनके घर में लोग आते हैं, पार्टी होती है .एक अकेली औरत का पिटना समाज बड़े मजे में बर्दाश्त कर लेता है पर एक अकेली औरत का हँसना -बोलना उस से बर्दाश्त नहीं हो पाता }<br /><br /><br />बिल्कुल सही कहा आपने..<br />महेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/18051207879771385090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-16061680120373504042013-05-10T02:07:38.565-07:002013-05-10T02:07:38.565-07:00नैतिक मूल्यों और सुधार के संदर्भ में,वास्तव में हो...नैतिक मूल्यों और सुधार के संदर्भ में,वास्तव में होता क्या है कि हम सकारात्मक और नकारात्मक दोनो हथियारों का एक साथ वार करते है. उसी कारण कईं सुधार अभियान बीच में ही दम तोड देते है. एक तरफ हम कहते है नैतिक कर्तव्यों का पूरी तरह समापन ही हो गया है. ऐसे में एक ही उपाय रह जाता है कि ऐसे कर्तव्य बोध का पुनः स्थापन हो. जागृति अभियानों से नैतिक कर्तव्य बोध आ सकता है और कोई उपाय नहीं है. ऐसे उपाय छोटे छोटे प्रयास भी हो सकते है और असफल भी बन सकते है. किंतु ऐसे प्रयासों की आलोचना या नकारात्मक अभिगम उसे जोरदार हानि पहुँचाते है. असफलता की हताशाओं में से पुनः सुधार के प्रयास नहीं उगा करते. और असफल प्रयास अपने आप में पूरी तरह असफल नहीं होते,वे उस तक का मार्ग तो आसान करके ही जाते है. इसलिए जरूरत है ऐसे छोटे छोटे असफल प्रयासों को भी सकारत्मक दृष्टि से देखकर दूसरे प्रयासों के लिए हौसला बनाए रखने का.<br /><br />मैं नहीं समझता ब्लॉगिंग में या अन्यत्र हमारा प्रयास बातों के शेर जैसा है. जहां तक बात उत्तम नैतिक मूल्यों की है, हम लेखकों का मात्र पहला कर्तव्य है बीज रोपना और आशावादी बने रहना कि देर सबेर पेड अवश्य होगा. जितने बीज रोपे जाय इतने पेड न उगे तब भी बीज रोपना बंद नहीं किया जाना चाहिए. ब्लॉगिंग की ही बात करें तो मुझे तीन वर्ष हुए है. जब मैं आया था यहां हर दिन एक न एक विवाद व्यक्तिगत विवाद चलता ही रहता था. बडी सरगर्मी रहती थी. बात, बहसें, नाराजगी!! क्या वे हिंदी ब्लॉगिग के आदर्श दिन थे? हिंदी ब्लॉगिग आज स्थिर ठंडा ठंडा सा लगता है तो क्या यह अवनति है? नहीं!! उस समय लोग मात्र विवादों के मजे के लिए चल कदमी मचाए हुए थे. आज माहोल गर्म न होने का अर्थ है हम गम्भीर हुए है. अब विवाद नहीं,विमर्श होते है. यह तो और भी उत्तम स्थिति है.<br /><br />बाकि अगली बार.........सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-43901869529250995712013-05-10T00:44:47.283-07:002013-05-10T00:44:47.283-07:00आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(11-5-2013) के च...आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(11-5-2013) के <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow">चर्चा मंच</a> पर भी है ।<br />सूचनार्थ! vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-18999767456842140862013-05-10T00:24:26.148-07:002013-05-10T00:24:26.148-07:00कितना कुछ कहने का मन है...कितना कुछ कहा जा सकता है...कितना कुछ कहने का मन है...कितना कुछ कहा जा सकता है.....मगर इस मसले पर पुरुष कुछ कहें तो अच्छा लगेगा.....<br />समस्या का समाधान औरतों को करना है मैं मानती हूँ....मगर कितना अच्छा हो कि पुरुष समस्याएँ पैदा ही न करें !!!!!<br /><br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-31004354301824139942013-05-09T23:22:53.249-07:002013-05-09T23:22:53.249-07:00दरअसल लगता है यह आभासी दुनिया हमें एक झूठी संतुष्ट...दरअसल लगता है यह आभासी दुनिया हमें एक झूठी संतुष्टि देकर कर्तव्य विमुख कर रही है ,हर मामले में <br /><br />sunokahanihttps://www.blogger.com/profile/17041078249659276421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-10714441749286865482013-05-09T23:00:10.983-07:002013-05-09T23:00:10.983-07:00स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' की इमेल से प्राप्त...<b>स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' की इमेल से प्राप्त टिपण्णी <br />बातों के शेर और मिटटी के शेर ही देख रही हूँ। और अब तो आदत भी हो गयी है सब देखने की । जल्दी में हूँ फिर आउंगी। <br />:)</b>rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-89757047486979073652013-05-09T22:41:09.259-07:002013-05-09T22:41:09.259-07:00सबसे पहले की बहुत ही सही अच्छी और मन की बात कह दी ...सबसे पहले की बहुत ही सही अच्छी और मन की बात कह दी आप ने , अच्छा लेख | <br />अभी हाल में ही मैंने दो ब्लॉग पर दो बाते कही एक तो नैतिकता को लेकर हम आम इंसान से कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहे है दुसरे एक समझदार व्यक्ति कभी भी दूसरो की बकबक से नहीं समझने वाला है उसका खुद का अनुभव ही उसे किसी बात को समझा सकता है | लोग काफी पहले से आत्मकेंद्रित हो चुके है इसलिए उनसे दूसरो की मदद की उम्मीद करना हम कुछ ज्यादा ही सोच रहे है , पहले वो परिवार में किसी की मदद कर दे वही बड़ी बात होगी और ऐसा कह कर कई बार हम पीड़ित को भी ये सोचने के लिए उकसा देते है की वो खुद कुछ नहीं कर सकती है उसे इंतज़ार करना चाहिए किसी और के मदद करने की , कई बार युद्ध शुरू होने के बाद पता चलता है की हमारी रणनीति गलत है अब उसे बदल देना चाहिए , वैसा ही इस मामले में भी है दूसरो से उम्मीद करने की जगह अब हमें कहना चाहिए की इन मामलों में तो तभी कुछ होगा जब पीड़ित ही आगे बढ़ कर अपनी स्थिति के बारे में कुछ करे किसी की मदद मिलने को वो बस बोनस भर समझे , हम लोगो को मजबूर नहीं कर सकते है किसी की मदद के लिए और कई बार तो सामने वाला व्यक्ति खुद ही कमजोर और डरपोक होता है वो अपनी मदद न कर पाए तो किसी और की क्या करेगा , सो रणनीति इस बारे में बदली जाये तो ही अच्छा , दुसरे महिलाओ की मदद के लिए ज्यादा से ज्यादा केंद्र हो जो पुलिस से अलग हो , पुलिस की छवि एक तो अच्छी नहीं है दुसरे घरेलु मामले में पुलिस को लोग लाना नहीं चाहते है इसलिए कोई संस्था निजी रूप से ये काम करे उन्हें मदद देने की पति की जरुरत पड़ने पर काउंसलिंग की तो बात कुछ बन सकती है , तीसरे इन संस्थाओ की जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगो तक हो , हम लोगो से ये उम्मीद कर सकते है की वो खुद जा कर घंटी न बजा सके तो कम से कम इन संस्थाओ के एक फोन की घंटी ही बजा दे इस शर्त पर की उनकी जानकारी उजागर नहीं होने दी जाएगी तो भी महिलाओ का कुछ भला हो सकता है क्योकि कई बार ये भी होता है की लोग मदद तो करना चाहते है किन्तु बाद में होने वाले विवाद में नहीं पड़ना चाहते है , कई बार आस पास के लोग ही मदद करने वाले से कहने लगते है की उसे किसी के बिच में पड़ने की क्या जरुरत थी , बेचारा मदद करने के बाद पछताने लगता है की लोगो की तारीफ मिलने की जगह उसकी बदनामी हो रही है , सो अपना युद्ध महिलाओ को खुद लड़ने की हिम्मत दी जाये वही बेहतर | जब ये समझदार लोग अपने निजी अनुभव से सीखेंगे की कभी कभी हमें भी दूसरो की मदद की कितनी जरुरत पड़ती है तब ही लोग दूसरो की मदद के बारे में सोचेंगे | और ये बदलाव अभी तक तो घोंघे की चाल से भी धीमी है , ब्लॉग करते तिन साल से ऊपर हो गए इतनी छोटे से ब्लोग जगत में ज्यादा कुछ नहीं बदला जो बदलाव आये है या जो लोग बदले है वो इसलिए क्योकि वप पहले से ही अच्छे लोग थे महिलाओं के मामले में वो बदलाव के लिए तैयार थे , बाकि जो पहले से तैयार नहीं थे जिनकी सोच ख़राब थी वो आज भी वैसे ही है तो फिर इतनी बड़ी दुनिया से क्या उम्मीद करे |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-12196491498924367012013-05-09T21:51:16.227-07:002013-05-09T21:51:16.227-07:00एक अकेली औरत का पिटना समाज बड़े मजे में बर्दाश्त क...एक अकेली औरत का पिटना समाज बड़े मजे में बर्दाश्त कर लेता है पर एक अकेली औरत का हँसना -बोलना उस से बर्दाश्त नहीं हो पाता,<br /><br />यदि सच कहा जाये तो इस विषय में ना पहले कुछ बदलेगा और ना आगे. कहने को तो स्त्री आर्थिक रूप से स्वतंत्र है पर जितनी अधिक मात्रा में स्वतंत्र है उतने ही अधिक झगडे टंटे हैं. सामाजिक बदलाव शाय्द दो चार पीढियों में नही आते ये युगों की बात होगी. <br /><br />जान पहचान और आसपडौस में आर्थिक रूप से मजबूत परिवारों का भी यही नक्शा दिखाई देता है फ़िर निम्न तबके की बात क्या करें?<br /><br />रामराम.<br />ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-32097226098733579992013-05-09T19:23:54.408-07:002013-05-09T19:23:54.408-07:00क्या लिखूं टिप्पणी , मेरी पोस्ट " बातें है बा... क्या लिखूं टिप्पणी , मेरी पोस्ट " बातें है बातों का क्या " इसी विषय पर थी :(.<br />बाते बातें और बातें !!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com