tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post3738357414976519486..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ के...rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-17288853970642592882013-02-10T22:34:15.579-08:002013-02-10T22:34:15.579-08:00सभी ने अच्छा लिखा, लेकिन किसी ने समस्या का कोई व्य...सभी ने अच्छा लिखा, लेकिन किसी ने समस्या का कोई व्यव्हारिक समाधान नहीं सुझाया है।Subhash Chandra Bohrahttps://www.blogger.com/profile/07511549742513221327noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-25596286128421991592010-09-24T16:21:32.343-07:002010-09-24T16:21:32.343-07:00नमस्कार रश्मिजी... पिछले दिनों दोनो बेटे नानी के स...नमस्कार रश्मिजी... पिछले दिनों दोनो बेटे नानी के साथ थे..खुशी होती थी जब माँ फोन पर दोनों बच्चों की तारीफ़ करती..देर से उठने या शाकाहारी खाना कम खाने की शिकायत बुरी न लगती..छोटे ने टेडी मेडी चपाती बनाई... बड़ा दवाई देता और पैर दबाने मे देर न लगाता.. नए और पुराने में जहाँ विचारों में भिन्नता होती है वहीं समझौता करने की गुंजाइश हो तो साथ अच्छा निभता है...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-63979114307106954622010-09-23T02:36:37.269-07:002010-09-23T02:36:37.269-07:00स्त्री व्यक्ति होती है कोई बिन आकार विचार का फोम क...स्त्री व्यक्ति होती है कोई बिन आकार विचार का फोम का तकिया या टुकड़ा या गुड़िया नहीं कि कहीं भी किसी भी ओने कोने में फिट कर दिया। समस्या तो है किन्तु समाधान स्त्री में ढूँढना गलत है। यह एडजस्टमेंट नाम का विनम्र भाव केवल स्त्रैण गुण ही क्यों माना जाता है?<br />कोई जंवाई ससुर के मन अनुसार खाना पीना, उठना बैठना, वस्त्र पहनना, नौकरी करना, व्यवहार करने की चेष्टा करने की केवल कल्पना भर करे तो! किन्तु कल्पना में आज के जंवाई पर मन प्राण लुटाने वाले, लाड़ लड़ाने वाले सास ससुर न होकर अपने तरीके से जीवन जीना पसन्द करने वाले व अपने ही रंग ढंग को सही मानने वाले सामान्य सास ससुर होने चाहिए। जब यह कर चुकें तो फिर शायद समस्या को समझा जा सकता है और समाधान केवल जियो और जीने दो में ही पाया जा सकता है। सामान्य जीवन में अलग अलग रहो, जब समस्या आए तो स्त्री या पुरुष किसी के भी माता पिता या परिवार की सहायता को जुट जाया जाए।<br />जब तक स्त्री से एडजस्ट होने की अपेक्षा रहेगी तब तक पुत्र की चाह में स्त्री भ्रूण हत्या भी होती रहेगी, या फिर बच्चों की लाइन लगत जाएगी। क्योंकि बुढ़ापे के लिए पुत्र व पुत्रवधू जो चाहिएगी। यदि स्वस्थ समाज चाहिए तो स्त्री पुरुष से स्वस्थ अपेक्षाएँ ही रखनी होंगी।<br />एक बात यह भी सोचने की है हम क्या सोचते हैं यह बात इस पर भी निर्भर करती है कि हमारे पुत्र हैं या नहीं। शायद वैसे ही जैसे कम्युनिस्म का स्वप्न प्रायः गरीब ही देखता है अमीर नहीं। निःस्वार्थ सेवा करती बहू का स्वप्न भी.....<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-16141942900496682202010-09-20T11:11:45.490-07:002010-09-20T11:11:45.490-07:00समस्या पीढ़ियों के अंतराल की भी है…वैसे तो मैं न्य...समस्या पीढ़ियों के अंतराल की भी है…वैसे तो मैं न्यूक्लियर फेमिली के पक्ष में हूं क्योंकि वह डेमोक्रेसी को विस्तार देती है। मैने किसि संयुक्त परिवार में पुरुषों को किचेन में जाते नहीं देखा। बहुओं को अकेले दोष देना भी उचित नहीं। कभी पति लड़की के घरवालों के साथ रहे तो इसका विपरीत भी दिखेगा। समस्या यह है कि हमारे यहां उम्रदराज़ लोगों के लिये कोई व्यवस्था या सोच है ही नहीं। ऐसे में एक ही रास्ता बचता है…एडजस्टमेंट!Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-81930831256958465122010-09-19T12:28:08.852-07:002010-09-19T12:28:08.852-07:00बड़ी मुश्किल है। मेरे एक मित्र तो पत्नी और मां के ...बड़ी मुश्किल है। मेरे एक मित्र तो पत्नी और मां के बीच हुए झगड़े से इतने परेशान हुए कि दस दिन तक घर नहीं आए। क्या करें और क्या न करें...।रवि धवनhttps://www.blogger.com/profile/04969011339464008866noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-58301829171374324692010-09-19T09:50:57.622-07:002010-09-19T09:50:57.622-07:00अच्छा विश्लेषण .समस्या बड़ी गंभीर है. हम तो भयग्रस...अच्छा विश्लेषण .समस्या बड़ी गंभीर है. हम तो भयग्रस्त हैं.देखें कहाँ से संबल मिलता है.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-75673581887390945812010-09-19T04:44:12.893-07:002010-09-19T04:44:12.893-07:00ऐसे कितने ही घर मैंने भी देखे हैं, परंतु समस्या क्...ऐसे कितने ही घर मैंने भी देखे हैं, परंतु समस्या क्या है यह कोई बता नहीं सकता है। पता नहीं नई पीढी को कितनी और कैसी आजादी चाहिये, और ऐसी बहुओं को तो यह सोचना चाहिये कि अगर उनकी माँ के साथ उनकी भाभी यही परिस्थिती करे तब क्या होगा, लड़का तो बेचारा फ़ँस जाता है, माँ कहती है कि बेटा जा बहु के साथ रह, बहु कहती है मुझे माँ के साथ नहीं रहना है हाँ तुम चाहो तो मिल सकते हो परंतु मुझे रिश्ता निभाने के लिये मत कहना।<br /><br />बहुत अजीब रिश्ते हैं यहाँ पर...विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-77867809802024904542010-09-19T04:29:12.458-07:002010-09-19T04:29:12.458-07:00bahut hi gudh vishleshan karti hain.......bahut hi gudh vishleshan karti hain.......रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-9746962847391125332010-09-19T04:22:20.856-07:002010-09-19T04:22:20.856-07:00अभी अभी मैं भी वंदना जी की वही पोस्ट पड़ कर आ रहा ...अभी अभी मैं भी वंदना जी की वही पोस्ट पड़ कर आ रहा हूँ ..... आधुनिकता के इस दौर में पैसे की अंधी दौड़ शुरू हो गयी है ..... अपने मूल्य ख़तम हो रहे हैं ... तेज़ी के साथ पश्चिम से प्रभावित हो रही है हमारी सांस्कृति ... समय की और करवट लेगा ... समय ही बताएगा ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-54825391085467451482010-09-18T12:43:15.778-07:002010-09-18T12:43:15.778-07:00आजकल सब जगह बढती उम्र के लोगों की यही कहानी है । ज...आजकल सब जगह बढती उम्र के लोगों की यही कहानी है । जैसे कि संगीता जी ने कहा है हर नई पीठी भूल जाती है कि एक दिन उन्हें भी बूढा होना है और हर सास ये भूल जाती है कि वह भी कभी बहू थी तब उसे कैसा लगता था ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-49172415105277258112010-09-18T11:35:56.837-07:002010-09-18T11:35:56.837-07:00मेरे द्वारा भी एक ब्लॉग-पोस्ट में इसी से मिलता-जुल...मेरे द्वारा भी एक ब्लॉग-पोस्ट में इसी से मिलता-जुल्ता मुद्दा उठाया गया था.<br />जिसमे परिवारों के टूटने और बुजुर्गो के अकेले रहने का दर्द, आदि मुद्दे थे.<br />कृपया मेरे ब्लॉग पर आये और (2-अगस्त-2010 को लिखे "ये किसी सौतन से कम नहीं।") नामक ब्लॉग-पोस्ट को पढ़ें, और कमेन्ट करे.<br />धन्यवाद.<br />WWW.CHANDERKSONI.BLOGPSOT.COMचन्द्र कुमार सोनीhttps://www.blogger.com/profile/13890668378567100301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-35626009319066265402010-09-18T11:26:56.375-07:002010-09-18T11:26:56.375-07:00रश्मि, अपने आस-पास तमाम ऐसे रिश्ते बिखरे होते हैं,...रश्मि, अपने आस-पास तमाम ऐसे रिश्ते बिखरे होते हैं, जो अच्छे, बहुत अच्छे या फिर कुछ कम अच्छे होने का सबूत देते रहते हैं, लेकिन क्रूर रिश्ते... इंसानियत पर से ही विश्वास उठने लगता है. सार्थक पोस्ट.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-44657023337961012252010-09-18T10:55:51.499-07:002010-09-18T10:55:51.499-07:00इन लचीले रिश्तो का कितना अच्छा विश्लेषण किया आपने ...इन लचीले रिश्तो का कितना अच्छा विश्लेषण किया आपने दी...ये लघभग हर घर की कहानी है...कई घर तो ऐसे देखे यहाँ की बड़े बड़े धनाढ्य लोग वृधा आश्रम में लाखो के दान फोटो खिचवाते हुए खूब देंगे लेकिन अपने ही घर में बूढ़े माँ बाप की दशा बद से बदतर....पहचान में ही एक आंटी है, उनका बेटा शुरू से ही नालायक था शादी एक अच्छी लड़की देख कर करवा दी | शादी के १० साल तक बहु ने सास - ससुर की खूब सेवा करी, उनलोगों के लिए अपने पति से भी लड़ जाती...एक दिन लड़के ने धोके से फ्लैट अपने नाम करवा लिया और उस दिन से बहु भी बिलकुल बदल गयी | बेटे बहु ने जो किया सो किया बेटी भी अपने माँ बाप के ही खिलाफ हो गयी...पैसे की कोई कमी नहीं थी सो उसी सोसाइटी में उतना ही बड़ा फ्लैट किराये पर लेकर रहना शुरू कर दिया.....लेकिन मन की शांति तो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती.....नतीजतन दोनों की तबियत अक्सरह ख़राब ही रहती है....<br /><br />दी, मेरी सास तो मेरा बहुत ही ख्याल रखती है, लेकिन मुझे कभी नहीं लगा की वो मेरी माँ की जगह ले रही है बल्कि अगर मम्मी ना हो तो पतिदेव के साथ रहना मुश्किल हो जाये :D...बस थोड़े से आपसी सामंजस्य की जरुरत है हर रिश्ता बहुत सुन्दर होता है....Shubham Jainhttps://www.blogger.com/profile/11736748654627444959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-36393566525381618542010-09-18T07:50:40.369-07:002010-09-18T07:50:40.369-07:00दी, ऐसे मामलों पर मिल-बैठकर बात कर लेना ही अच्छा ह...दी, ऐसे मामलों पर मिल-बैठकर बात कर लेना ही अच्छा होता है और मुझे भी 'संसार' फिल्म वाला हल ठीक लगता है. साथ रहें या अलग-अलग, पर रिश्तों में कड़वाहट ना हो.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-64656792570146417622010-09-18T05:08:42.528-07:002010-09-18T05:08:42.528-07:00आज आपका ब्लॉग चर्चा मंच की शोभा बढ़ा रहा है.. आप भ...आज आपका ब्लॉग चर्चा मंच की शोभा बढ़ा रहा है.. आप भी देखना चाहेंगे ना? आइये यहाँ- http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/blog-post_6216.htmlदीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-41089939379057562302010-09-18T03:25:56.222-07:002010-09-18T03:25:56.222-07:00बाप रे बाप..... यहाँ सबके विचार पढ़ कर तो मैं बेसु...बाप रे बाप..... यहाँ सबके विचार पढ़ कर तो मैं बेसुध हो गया...डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-91254461620714270202010-09-18T00:58:21.803-07:002010-09-18T00:58:21.803-07:00स्थिति की सही विवेचना की है आपने....
बहुत ही चिंता...स्थिति की सही विवेचना की है आपने....<br />बहुत ही चिंताजनक है यह...विशेषकर बड़े शहरों तथा महानगरों में तो हाल और भी बदहाल है...पर इसका समाधान नहीं दीखता निकट भविष्य में..स्थितियां और बदतर होंगी ,यही लगता है...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-87561983934511928132010-09-17T23:31:06.958-07:002010-09-17T23:31:06.958-07:00गंभीर लेख है
आत्मसम्मान के नाम पर बढता स्वार्थपन
स...गंभीर लेख है<br />आत्मसम्मान के नाम पर बढता स्वार्थपन<br />स्टेट्स बढाने और धन कमाने के कारण होती समय की कमी<br />नैतिक मूल्यों की शिक्षा के बजाय बढता कॉम्पीटिशन और स्वतन्त्रता के नाम से अकेलापन की चाहत<br />पता नहीं क्या-क्या कारण हो सकते हैं<br /><br />थोडा सा मूड हल्का कर देता हूँ - <br /><b>लडका - तुम शादी के बाद अलग घर तो नहीं मांगोगी?<br />लडकी - नहीं, मैं ऐसी लडकी नहीं हूं। मैं उसी घर में गुजारा कर लूंगी। बस तुम अपनी मां को अलग घर दिलवा देना।</b><br /><br />प्रणाम स्वीकार करेंअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-56373187584884009282010-09-17T22:08:02.915-07:002010-09-17T22:08:02.915-07:00शोचनीय स्थिति है और हल सबकी सोच पर निर्भर करता है…...शोचनीय स्थिति है और हल सबकी सोच पर निर्भर करता है……………जब तक अपने स्वार्थों से ऊपर नही उठेंगे तब तक तो कोई हल नही है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-18461867054966695412010-09-17T21:57:23.087-07:002010-09-17T21:57:23.087-07:00रश्मिजी, जितने पहलू हो सकते हैं, सभी पर आपने चिंतन...रश्मिजी, जितने पहलू हो सकते हैं, सभी पर आपने चिंतन किया है। पहले विकल्प नहीं था तो लड़-झगड़कर साथ ही रहते थे लेकिन आज है तो साथ क्यों रहें? एक और बात मुझे दिखायी देती है कि पूर्व में अधिकतर पुश्तैनी व्यापार हुआ करते थे जिसमें पिता ही बॉस होता था लेकिन आज पिता बॉस नहीं है। इसी कारण पिता उपेक्षित हो गया है और पिता के साथ माँ भी। माता-पिता का भी स्वाभिमान उन्हें झुकने नहीं देता और बच्चों का अहंकर उन्हें। हम दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति के साथ समझौते करते हैं लेकिन बस घर में ही नहीं कर पाते। भारत में अभी समस्या प्रारम्भ हुई है आगे और विकराल रूप लेगी। क्योंकि विदेशों में वृद्धावस्था सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन भारत में पारिवारिक है। इस कारण विदेश में वृद्धजन भावनात्मक रूप से ही दुखी हैं लेकिन यहाँ तो आर्थिक संकट भी आ गया है। माता-पिता भी अब आर्थिक पक्ष के प्रति सावचेत हो गए हैं।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5393232549381638662010-09-17T21:52:02.116-07:002010-09-17T21:52:02.116-07:00bahut sahi mudda hai
aaj kal yahi ho raha hai buj...bahut sahi mudda hai <br />aaj kal yahi ho raha hai bujurgon ke saath<br /><br />http://sanjaykuamr.blogspot.com/संजय कुमार चौरसियाhttps://www.blogger.com/profile/06844178233743353853noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-81436555932248195492010-09-17T20:46:28.083-07:002010-09-17T20:46:28.083-07:00बुज़ुर्गो की अनदेखी घर-घर की समस्या है...
लेकिन य...बुज़ुर्गो की अनदेखी घर-घर की समस्या है...<br /><br />लेकिन ये भी शाश्वत सत्य नहीं कि हमेशा बुज़ुर्ग ही सही हों...<br /><br />ज़रूरत हर एक को तेज़ी से बदलते परिवेश में सामंजस्य बिठाने की...<br /><br />इस विषय पर पूरी सीरीज़ लिख चुका हूं...समय मिले तो एक नज़र ज़रूर डालना...लिंक्स दे रहा हूं...<br /><br />http://deshnama.blogspot.com/2009/09/blog-post_03.html<br /><br />http://deshnama.blogspot.com/2009/09/blog-post_04.html<br /><br />http://deshnama.blogspot.com/2009/09/blog-post_05.html<br /><br />http://deshnama.blogspot.com/2009/09/blog-post_06.html<br /><br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-46355766890622208192010-09-17T19:44:57.495-07:002010-09-17T19:44:57.495-07:00अपवाद नहीं , आजकल घर घर में बुजुर्गों की यही स्थित...अपवाद नहीं , आजकल घर घर में बुजुर्गों की यही स्थिति है ...<br />समय बदल रहा है ...बुजुर्ग भी बदले हैं तो युवा पीढ़ी भी ...दोनों ही स्वतंत्र रहना चाहते हैं ...लेकिन अर्थ पर निर्भरता भावुकता को लील रही है ...सच कहूँ तो संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों की जो दुर्दशा देखती रही हूँ आसपास , रिश्तों पर से विश्वास उठने सा लगता है कभी- कभी, मगर नहीं ...मेरा मकसद रिश्तों के पुल बनाना है , उन्हें दूर करना नहीं ...इसलिए मुंह बंद रखना पड़ता है ...<br />तुम्हारी पोस्ट पर इतनी सी टिप्पणी से संतुष्ट नहीं हूँ ...मगर अभी इतना ही ..<br /> सार्थक पोस्ट ...!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-42861201958142928432010-09-17T19:00:52.855-07:002010-09-17T19:00:52.855-07:00बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्र...<b> बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।</b><br /><a href="http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2010/09/blog-post_18.html" rel="nofollow"> साहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें</a>राजभाषा हिंदीhttps://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5287386839857370062010-09-17T18:19:26.317-07:002010-09-17T18:19:26.317-07:00संजीदा आलेख है..बहुत नाजुक होता है यह सामन्जस्य बै...संजीदा आलेख है..बहुत नाजुक होता है यह सामन्जस्य बैठाना...जरा सा हिला डुला और गया...और फिर जुड़ना..शायद नामुमकिन सी बात है.<br /><br />बहुत सतर्कता के साथ दोनों पक्ष यदि चलें तो ही संभव है आजकल अन्यथा तो हालात देख ही रहे हैं नित आसपास.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com