tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post2532073183895893180..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: क्या सचमुच कहीं, कुछ बदला है ??rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger60125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-72098692180942313322010-12-10T22:30:24.954-08:002010-12-10T22:30:24.954-08:00रश्मि जी, मुझे अफ़सोस है कि पहले क्यों नहीं आता था...रश्मि जी, मुझे अफ़सोस है कि पहले क्यों नहीं आता था आपके ब्लॉग पर।<br />लगता है लोग सिर्फ़ कपोल कल्पना में ही खोए रहते हैं।<br />मैं भे बिहार का ही हूं, और जो सत्य देखता हूं वह अगर बताने लगूं तो लोगों के आंसूं नहीं थमेंगे और टिप्पणी बक्स खाली नहीं बचेगा।<br />एक एक उदाहरण देकर निपटाता हूं।<br />१. मेरी शादी में मेरी नानी को मड़वा पर इसलिए नहीं आने दिया गया कि वो विधवा थीं, और अगर वह आती तो नवविवाहित जोड़े को .... पता नहीं शायद वैधव्य का शाप लग जाता।<br />---- हमने पकड़ कर उनका आशीष लिया।<br />२३ वीं सालगिरह मनाऊंगा, फ़रवरी में।<br />२. एक परिचित लड़की जब अपने २९ वें वर्ष में विधवा हो गई, और जब उसका अपना ससुराल पक्ष ताड़ दिया और जब उसका अपना मयाका पक्ष साथ नहीं दिया तो उसकी ज़िन्दगी सम्भालने का बीड़ा उठाया।<br />नतीज़ा, यह समाज जिसमें मेरे परिवार के क़रीबी रिश्तेदार भी शामिल थे, मुझपर ही उंगली उथाने लगे।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5367891331286253282010-07-20T08:38:10.710-07:002010-07-20T08:38:10.710-07:00दी, पहले तो देर से आने के लिए माफी चाहती हूँ... इत...दी, पहले तो देर से आने के लिए माफी चाहती हूँ... इतनी महत्त्वपूर्ण पोस्ट मैं कुछ व्यस्तता और कुछ तकनीकी कारणों से नहीं पढ़ पायी. आपने बहुत गंभीर मुद्दे पर बात छेड़ी है. सचमुच "औरत की हैसियत एक निर्जीव वस्तु से अधिक कुछ नहीं है" आपने जैसा बताया पढ़े-लिखे घरों में भी यह प्रवृत्ति अब भी जारी है... हम सब उसके भागीदार हैं और सभी बदलेंगे तभी कुछ बदलेगा.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-17647726411347556562010-07-19T12:21:14.767-07:002010-07-19T12:21:14.767-07:00Rashmiji, aapne ek jaroori mudda uthaya hai. Par m...Rashmiji, aapne ek jaroori mudda uthaya hai. Par muze bhee lagta hai ki samay badal raha hai aur humare ghron men ye bdlaw aaya hai. mai apne bhbiyon ko ( mere do Bhaee ab nahee hain ) rngeen sadiyan uphar me deti hoon unhe bindi lagane ke liy prtsahit karati hoon. Iska asar dikhaee dene men der lag sati hai par shurwat ho chuki hai Widhwa hone se kisika insan hone ka hak nahee chala jata.Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-62020663786121430352010-07-17T02:16:01.760-07:002010-07-17T02:16:01.760-07:00रश्मि जी आपकी इस पोस्ट की जीतनी तारीफ करूँ कम है ....रश्मि जी आपकी इस पोस्ट की जीतनी तारीफ करूँ कम है ....स्त्री से जुड़े कितने ही सवाल आपने उठा लिए ...ऐसे कई सवाल मेरे पास भी हैं ...जिनके जवाब नदारद होते हैं ......सच न तो मायका उसका रह जाता है न ससुराल ......आपकी पोस्ट से कई बीते किस्से याद आ गए और आखें नम हो गयी .....बहुत वक़्त लगेगा अभी पुरुष को ये बातें समझने के लिए और अपने आप को बदलने के लिए ....वरना हर घर में तलाक तलाक ही नज़र आयेंगे ...अपने आस पास तो हर रोज़ यही दिख रहा है ....!<br /><br />आपकी कहानी अभी पढ़ी नहीं ...पढ़ती हूँ.....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-31950459272669342932010-07-16T14:17:36.608-07:002010-07-16T14:17:36.608-07:00"पत्नी की जगह लोटा " बस इसे ही बदलने की ..."पत्नी की जगह लोटा " बस इसे ही बदलने की ज़रूरत है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-57477564436762499352010-07-14T00:58:47.266-07:002010-07-14T00:58:47.266-07:00यूं तो आपके लम्बे लेख पढ़ता ही हूं
बहुत लम्बा लिखत...यूं तो आपके लम्बे लेख पढ़ता ही हूं<br />बहुत लम्बा लिखती हैं आप<br />मगर मैं टिप्पणी दिए बगैर ही पढ़ लेता हूं<br />और आपकी हर कहानी दिल को छू लेती है इसी लिए पढ़ता हूं<br />और आज पहली बार टिप्पणी कर रहा हूं।<br />आप एक बढ़िया लेखक हैं अच्छा लिखती हैं पढने को मन करता है।Shuaibhttps://www.blogger.com/profile/09917522401192571532noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-32926605974938568092010-07-14T00:57:31.941-07:002010-07-14T00:57:31.941-07:00@ रशिम रविजा, अरे मैं इस कहानी के बारे में नहीं कह...@ रशिम रविजा, अरे मैं इस कहानी के बारे में नहीं कह रहा भाई। सामान्य बात कह रहा हूं। लेख पढ़कर ही तो कहा बहुत अच्छा लिखती हैं। <br /><br /><b>वैसे तारीफ का शुक्रिया...बिना पढ़े ही सही :)<br /></b><br />बिना पढ़े तारीफ़ करता होता तो अब तक आपकी सब पोस्टों पर टिपिया चुका होता।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-1815039578322143162010-07-13T11:48:24.774-07:002010-07-13T11:48:24.774-07:00der se aaya, par shayad durust aaya, agar jaldi hi...der se aaya, par shayad durust aaya, agar jaldi hi aa jata to shayad comment ke roop me is pure vichar vimarsha se vanchit rah jata...<br /><br />aapne is post me bahut hi sahi aur satik mudde uthaye hain.....<br /><br />khastaur par is rasm nibhane ke samay vidhwao ki bhumika wale mudde par, ise ham bachpan se dekhte aa rahe hain aur aaj bhi mehsus karte hain, han yah jarur hai ki bachpan ke samay aur aaj ke samay me kaafi parivartan bhi dekhne ko mil rahe hain is tarah ke muddo par, lekin abhi bhi ek vyapak sudhar ki jarurat to hai hi.<br /><br />dekhiye rangnatha ji aur amrendra ji ke is baat se to sehmat hu ki kahaniyan chaape hue form me padhna jyada accha lagta hai... lekin apni baat karu to itne saalon me aadat se hi ho gai ki jo kahani mann ko bhaa jaaye use har hafte online blog par hi padhna. ab aakhir Hans, aur naya gyanoday jaisi patrikayein aakhir download kar ke PDF formate me computer par hi to padhte hain har bar....<br /><br />ab jata hu aapki kahani ki pichhli kisht padhne, jyada hi vyast rahne ke karan taza kisht nahi padh paya hu abhi tak...Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-52835945257067349502010-07-13T07:12:25.969-07:002010-07-13T07:12:25.969-07:00@दीपक शुक्ल जी,
आपके कमेंट्स दो बार पब्लिश हो गए थ...@दीपक शुक्ल जी,<br />आपके कमेंट्स दो बार पब्लिश हो गए थे,इसलिए एक कमेन्ट डिलीट कर दिया.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-39480855042052339392010-07-13T05:28:48.663-07:002010-07-13T05:28:48.663-07:00रश्मि जी...नमस्कार...
मैं आपकी पोस्ट पर एक दिन के...रश्मि जी...नमस्कार...<br /><br />मैं आपकी पोस्ट पर एक दिन के विलम्ब से आया और देखिये विलम्ब से आने की वजह से इस सामयिक चर्चा के हर अंश को वस्तुतः पढ़ पाया..<br /><br />आपने एक ज्वलंत विषय उठाया है...आपका कहना बिल्कुल सही है की आज भी हमारे समाज मैं ये विसंगति मौजूद है...और जो इसे नहीं मानते हैं वो वस्तुतः पर्याप्त modrate हो चुके हैं..यह कहने मैं मुझे कोई संकोच नहीं है... ईश्वर उनकी तरह की सोच हमारे समाज, हमारे आस पास भी लाये...जिस से हम इस दर्द को साँझा कर सकें...<br /><br />मेरा व्यक्तिगत अनुभव है...मेरे पिता का स्वर्गवास तब हुआ था जब मैं मात्र १६ साल का था.. मेरी माँ जी को मैंने भी ऐसे कई सामाजिक कार्यक्रमों से दूर रहते देखा है और तब मैं खुद ही विरोध करता था की माँ आप क्यों नहीं चलतीं हमारे साथ.. और धीरे धीरे उनके न आने के रहस्य मेरे बालमन को भी पता चल गए.. आप स्वयम महसूस कर सकती हैं की उस समय मुझे किस दर्द का अनुभव हुआ होगा...और जब मुझे इतना दर्द था तब मेरी माँ किस वेदना से गुज़र रही होंगी इसकी कल्पना करते ही मेरे रोंगटे आज भी खड़े हो जाते हैं... पर जैसे की श्रीमती साधना वैद जी ने कहा है की बदलाव घर से ही आते हैं... सो मेरे घर के सभी कार्यों मैं आज भी मेरी bhabhi joki स्वयम विधवा हैं, मेरी माँ जी unhen ही hamesha aage rakhti हैं...<br /><br />humara samaaj abhi इतना udaar नहीं हुआ है...एक से एक padhe likhe log भी en kuprathaon मैं pade हुए हैं... पर जैसे sati pratha का एक समय aakar ant हुआ है...समाज की हर ku pratha एक न एक दिन dam avashya tod degi...यही humari shubhkamna भी है और यही humari Eshwar से prarthna भी है...<br /><br />Bahut ही bhavnatmak आलेख...<br /><br />दीपक...<br /><br />net slow hone के कारन hindi नहीं ban paayee<br />sry....<br />Deepak<br /><br />दीपक...Deepak Shuklahttps://www.blogger.com/profile/02437731202200979518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-79845903244719214892010-07-13T05:28:48.664-07:002010-07-13T05:28:48.664-07:00इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.Deepak Shuklahttps://www.blogger.com/profile/02437731202200979518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-86875562429539638962010-07-13T03:59:12.189-07:002010-07-13T03:59:12.189-07:00samay tejee se badal rahaa hai. asha hai hamaare b...samay tejee se badal rahaa hai. asha hai hamaare baad kee peedhee is sabko samool nasht kar de<br />haan tab ham bujurg honge<br />tab ham unhe roke naheeAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/13199219119636372821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-26143458949418684222010-07-13T03:56:05.353-07:002010-07-13T03:56:05.353-07:00"बस शिकायत यही है कि ऐसे उदाहरण पर्याप्त क्यू..."बस शिकायत यही है कि ऐसे उदाहरण पर्याप्त क्यूँ नहीं हैं? टेबल फैन से ए.सी. की दूरी, रेडिओ से सैटेलाईट चैनल्स की दूरी, टेलिग्राम से सेल-फोन की दूरी तो हम छलांग लगा कर पूरी कर रहें हैं लेकिन सामाजिक सुधार की गति अति धीमी है."<br /><br />Three claps for you!!Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-46733238068028606712010-07-13T03:44:05.255-07:002010-07-13T03:44:05.255-07:00विधवा महिलाओं की क्या स्थिति है इसे कौन नहीं जानता...विधवा महिलाओं की क्या स्थिति है इसे कौन नहीं जानता ! अब कोई किसी टापु में रहता है तो उसकी बात और होगी।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-90898034249281545982010-07-13T03:36:47.052-07:002010-07-13T03:36:47.052-07:00रश्मि, सबने सब कह दिया. मेरे कहने लायक कुछ बचा ही ...रश्मि, सबने सब कह दिया. मेरे कहने लायक कुछ बचा ही नहीं. देर से आने के कुछ सटीक कारण हैं, खैर देर तो हो ही गई, वरना हम भी बहुत कुछ कहते....अभी तो केवल इतना ही कि बदलाव की गति बहुत धीमी है इसलिये यदि कुछ बदल भी रहा है तो उसका पता ही नहीं चलता. ज़रूरत है बदलाव की गति को तेज़ करने की. गांव जहां ये कुप्रथाएं जमी हुई हैं, के युवा यदि अपने बुजुर्गों की मानसिकता में परिवर्तन का जिम्मा लें तो शायद कुछ गति बढ सके, वरना तो पचासों साल लग जायेंगे बदलाव आते-आते.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-2583251474406473962010-07-13T01:50:23.337-07:002010-07-13T01:50:23.337-07:00बहुत बढ़िया पोस्ट व चर्चा, विचार विमर्श!
घुघूती बास...बहुत बढ़िया पोस्ट व चर्चा, विचार विमर्श!<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-87051602512288796632010-07-13T00:53:53.472-07:002010-07-13T00:53:53.472-07:00रश्मि जी, बहुत भावुक कर गई आपकी ये पोस्ट.मेरे सगे...रश्मि जी, बहुत भावुक कर गई आपकी ये पोस्ट.मेरे सगे ताऊ जी की लड़की यानि मेरी दीदी की बेटी की शादी अभी फरवरी में पूना में थी जीजा जी की मृत्यु हुए कोई तीन साल हुए हैं हम तो यू पी के है और लड़के वाले मराठी हैं. शादी की सारी विधियाँ उनकी देवरानी ने की और कन्या- दान भी देवर देवरानी ने किया.पूरी शादी में पीछे ही बैठी रहीं हर बात में मुझे ही आगे करती रहीं बता रही थीं की लड़के वालों को पसंद नहीं है की वो सामने आयें. हमने तो भरपूर कोशिश की कि जहाँ तक हो उन्हें आगे भी करते रहे पर जब लड़के वाले होते हम भी चुप हो जाते कि बाद में लड़की को कुछ न कहा जाए.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-58710051589165771812010-07-13T00:04:18.380-07:002010-07-13T00:04:18.380-07:00कोई भी परिवर्तन अपने और अपने परिवार की ताकत से शुर...कोई भी परिवर्तन अपने और अपने परिवार की ताकत से शुरू होता है...अगर हम स्वयं शुभ कार्यों से उस व्यक्ति को अलग कर दें, जिसका ह्रदय आशीषों से भरा है, तो परिवर्तन कहाँ और कैसे ! दूसरे को कहने, बोलने से कुछ नहीं होता और यह सब केवल अंधविश्वास है , जिससे पुरुषों को अलग नहीं किया है....रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-6592797301190062882010-07-12T23:57:28.339-07:002010-07-12T23:57:28.339-07:00शोभना जी,
सही कहा मुझे भी संतोष हुआ कि मैने यह पोस...शोभना जी,<br />सही कहा मुझे भी संतोष हुआ कि मैने यह पोस्ट लिखी . इतने लोगों के विचार सामने आए.<br />संगीता जी, साधना जी,वाणी, के अनुभवों को सुन बहुत अच्छा लगा.<br />42 साल पहले,साधना जी के श्वसुर जी द्वारा उठाये गए कदम की जितनी सराहना की जाए, कम है. अगर समाज का हर व्यक्ति इतना साहस कर लेता तो आज मैने यह पोस्ट नहीं लिखी होती.<br /><br />इंदु पुरी गोस्वामी जी ने भी एक मेल भेजकर बताया है कि कैसे उन्होंने अपने भतीजे के गुजर जाने के बाद उसकी पत्नी को नौकरी के लिए प्रेरित किया और वेशभूषा में कोई बदलाव नहीं आने दिया, अपने बेटे की शादी की रस्मे भी उस से करवाईं.<br /><br />बस शिकायत यही है कि ऐसे उदाहरण पर्याप्त क्यूँ नहीं हैं? टेबल फैन से ए.सी. की दूरी, रेडिओ से सैटेलाईट चैनल्स की दूरी, टेलिग्राम से सेल-फोन की दूरी तो हम छलांग लगा कर पूरी कर रहें हैं लेकिन सामाजिक सुधार की गति अति धीमी है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-34298231102227851922010-07-12T23:10:27.383-07:002010-07-12T23:10:27.383-07:00रश्मिजी
आपकी कहानी के माध्यम से बहुत ही अच्छा और स...रश्मिजी<br />आपकी कहानी के माध्यम से बहुत ही अच्छा और स्वस्थ चर्चा का वातावरण निर्मित हुआ सभी लोगो ने अपने आसपास हुए बदलाव के उदाहरन देकर इस चर्चा को आगे बढाया |समाज में परिवर्तन हो रहे है इसकी चाल अवश्य धीमी और काँटों भरी है |इसके लिए अनूप शुक्लजी जी ने किलकुल सही कहा है की जो हम चाहते है अपने पात्रों द्वारा करवा सकते है |<br />बंगाल में तो पूर्व में कितनी कट्टरता थी कितु उस समय ठाकुर रामकृष्ण परमहंस ने कहा था माँ शारदा को -मेरे जाने बाद भी तुम कभी हाथ से कंगन नहीं उतारनाऔर सदा लाल किनारी वाली साड़ी पहनना |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-72999139948765507182010-07-12T20:11:46.787-07:002010-07-12T20:11:46.787-07:00@अमरेन्द्र जी, शुक्रिया
निर्मला जी,संगीता जी,राज ज...@अमरेन्द्र जी, शुक्रिया<br />निर्मला जी,संगीता जी,राज जी, शिखा आदि की तरह आप भी सहमत हैं, कि समाज अभी पूरी तरह बदला नहीं है. इसमें बहुत सुधार की जरूरत है.<br />और मैं इतनी बड़ी कहानीकार तो नहीं...अभी अभी लिखना शुरू किया है....अपने तईं कोशिश जारी है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-91353575571472808412010-07-12T20:06:28.987-07:002010-07-12T20:06:28.987-07:00@अनूप जी,
आप मेरी कहानियां पढ़ते कहाँ हैं ? चलिए आ...@अनूप जी,<br />आप मेरी कहानियां पढ़ते कहाँ हैं ? चलिए आपकी सुविधा के लिए कहानी की इसी किस्त से....मैं ही उद्धृत कर दे रही हूँ,कुछ उद्धरण...<br />"लड़के के चाचा,भाई,नाराज़ होकर बारात वापस ले जाने लगे. लड़का ,उनकी आवाज़ सुन झट से खड़ा हो गया,बाहर जाने को. पर अम्मा जी ने उसकी कलाई पकड़ ली और कहा, "चुपचाप बैठिये मंडप में...बिना फेरा लिए और लड़की की मांग में सिन्दूर भरे आप आँगन नहीं टप सकते."<br /><br />""ई त नहीं होगा...आप जबरदस्ती दुसर बियाह करोगे दिलीप का..तो गाँव का कोई सामिल नहीं होगा...जाओ सहर में कागज़ी बियाह करो...और फिर सहर में ही बसा दो उनको. ई घर में तो इहे दुलहिन मलकिनी रहेगी...." मलकिनी ने ने फैसला सुना दिया.<br /><br />"बाद में , अम्मा जी ने सिवनाथ और उसकी बहू को बुला कर बहुत डांटा और उन्हें उस झोपडी से निकालने की धमकी भी दी अगर उन्होंने अपनी माँ का ठीक से ख़याल नहीं रखा. "<br /><br />" उन्होंने मन ही मन प्रण लिया उन्होंने, चाहे जो हो जाए...गाँव वाले कुछ भी कहें, दोनों पोते और पोतियों के ब्याह में अम्मा जी हर रस्म करेंगी. उनको बिलकुल भी वे दूर नहीं रहने देंगी."<br /><br />ये सब लिखने के साथ,मुझे समाज में व्याप्त कुरीतियों,कुप्रथाओं के बारे में भी लिखना पड़ता है...हम उस से मुहँ नहीं मोड़ सकते.<br /><br />वैसे तारीफ का शुक्रिया...बिना पढ़े ही सही :)rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-89949968538334642142010-07-12T19:29:29.903-07:002010-07-12T19:29:29.903-07:00हाँ अनूप जी ने भी एक अच्छी बात कही और वह है ऐसी सम...हाँ अनूप जी ने भी एक अच्छी बात कही और वह है ऐसी समस्या में फंसे व्यक्तियों के सामने एक प्रेरणा-प्रद 'नायक चरित्र' की सर्जना ! इसे कहानीकार या उपन्यासकार बखूबी कर सकता है , अपने कथासाहित्य में ऐसे ताकतवर चरित्र की योजना करके ! इससे समस्याओं में घिरे लोगों की आँखों में बदलाव के सपने जगेंगे !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-64399905188089844902010-07-12T19:17:32.893-07:002010-07-12T19:17:32.893-07:00रश्मि जी , आपसे सहमत हूँ , आज सती-प्रथा जैसी चीज त...रश्मि जी , आपसे सहमत हूँ , आज सती-प्रथा जैसी चीज तो नहीं है पर इतनी भी तरक्की नहीं आयी है , मेरे गाँव में दो विधवाएं हैं , आपकी पोस्ट पढ़ते हुए उनका स्मरण हो रहा था , उलटे पीठ पीछे इन विधवाओं को संबोधन का जो शब्द होता है उसे यहाँ लिखने में भी शर्म आ रही है ! ऐसे खयालात अभी भी हैं समाज में ! किसी एक कुल / घर / मोहल्ला में अगर यह स्थिति नहीं है ( जो कि निस्संदेह खुशी की बात है ) तो यह व्यापक तौर पर नहीं कहा जा सकता कि समस्या नहीं है ! यह तो समस्या का ही सतही साधारणीकरण होगा !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-28995712170374689052010-07-12T19:06:16.226-07:002010-07-12T19:06:16.226-07:00सुन्दर लेख। बड़ी अच्छे कमेंट भी देखे। बहुत अच्छा लग...सुन्दर लेख। बड़ी अच्छे कमेंट भी देखे। बहुत अच्छा लगा। आप बहुत अच्छी कहानियां लिखती हैं। अपनी कहानियों के पात्रों के माध्यम से बदलाव की बातें करिये। जैसा होना चाहिये वैसा अपने पात्रों के माध्यम से कहिये। सुखद परिवर्तन की बात पढ़कर कोई पाठक बदलाव के लिये अपना मन तैयार करेगा।<br /><br />मेरे मित्र गोविन्द उपाध्याय की एक कहानी अभी प्रकाशित हुई है। उसमें एक विधवा की स्थिति का वर्णन है। उसमें उनकी लड़की इस तरह के भेदभाव करने पर बड़े-बुजुर्गों को टोंकती है, धिक्कारती है। यह भी उनके विधवा होने के बाद उनका घर क्यों नहीं बसाया दुबारा।<br /><br />"दुख की अनुपस्थिति ,सुख की गारंटी तो नहीं है??"<br /><br />सुन्दर बात है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com