tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post9171869287420515304..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: संवेदनहीनता की परकाष्ठा rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger36125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-36142199116536823612013-12-22T07:03:25.208-08:002013-12-22T07:03:25.208-08:00 आपकी सलाह पूरी तरह अनुकरणीय है|
एकपुरानी घटना ... आपकी सलाह पूरी तरह अनुकरणीय है|<br /> एकपुरानी घटना मुझे भी याद आगयी<br /><br />मेरी सहकर्मी अध्यापिका एक दिन स्कूल देर से आयीं तो सभी ने देर से आने का कारण पूछा, उन्हों ने बताया वह अपनी गाड़ी से स्कूल आ रही थीं रस्ते में एक लड़की स्कूटी से जा रही थी तभी पीछे से आरही गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी वह लड़की गिर गयी गाड़ी वाला भाग गया मेडम पीछे से आरही थी उसने देखा तो गाड़ी साइड में लगाकर उसके पास पहुंची उसे उठाया उसकी स्कूटी को भी साइड करवाया। लड़की ठीक थी कोई चोट नहीं लगी थी फिर भी मेडम ने उससे मदद कि पेशकश कीतो लड़की बोली - मेडम दो हजार रुपए निकालो आपने ही तो मुझे टक्कर मारी है नहीं तो पुलिस बुलाती हूँ .... प्रेमलता पांडेhttps://www.blogger.com/profile/11901466646127537851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-77219982279565002472013-12-21T21:00:55.910-08:002013-12-21T21:00:55.910-08:00हमारी ऐसी संवेदनहीनता पूरी सामाजिकता से ही भरोसा उ...हमारी ऐसी संवेदनहीनता पूरी सामाजिकता से ही भरोसा उठा देती है .... यह विचारणीय पहलू है ... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-82606276241040757002013-12-20T03:16:46.031-08:002013-12-20T03:16:46.031-08:00sheer disgusting...how can one do such things... h...sheer disgusting...how can one do such things... heartless ppl...why do the exist ..rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-66748919895025791092013-12-20T03:12:14.976-08:002013-12-20T03:12:14.976-08:00ओह्ह !! कितने अफ़सोस की बात है....इसीलिए तो इतनी चि...ओह्ह !! कितने अफ़सोस की बात है....इसीलिए तो इतनी चिढ होती है लोगों की ऐसी असंवेदनशीलता पर .rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-59100163798594303832013-12-19T20:54:56.512-08:002013-12-19T20:54:56.512-08:00Few years back, at CST or some other station, a pa...Few years back, at CST or some other station, a passenger was hit by the train. Another person had bought a new handycam and he was shooting the incident, instead of avoiding the mishap by warning the passenger. Not only that a news channel purchased the footage and the same was running in the name of EXCLUSIVE CLIPPING. Height of insensitivity!!<br />My sincere homage to departed Doctor (he would have saved several lives) and blessings to the brave daughter of India!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-60493276085924196942013-12-19T20:33:50.535-08:002013-12-19T20:33:50.535-08:00मेरा कमेन्ट यहाँ नहीं दिख रहा है दीदी...शायद पोस्ट...मेरा कमेन्ट यहाँ नहीं दिख रहा है दीदी...शायद पोस्ट नहीं हुआ होगा...फिर से लिख रहा हूँ...<br /><br />मेरे मौसा जी के साथ अभी दो महीने पहले यही हुआ था...वो ऑफिस के वक़्त पर घर से निकले और सरिता विहार , दिल्ली (मथुरा रोड, जहाँ सुबह ११ बजे ट्रैफिक बहुत जबरदस्त होती है, ऑफिस जाने वालों की...) के आसपास उनका एक्सीडेंट हुआ..वो बाईक से थे, और पीछे से आती हुई एक ट्रक ने उनके बाईक को भयानक टक्कर दे मारी थी...सड़क के किनारे ही वो इंजर्ड होकर गिरे रहे...जाहिर है काफी खून बह गया था...करीब पंद्रह बीस मिनट तक वो वैसे ही वहां पड़े रहे थे, लोग देख भी रहे होंगे शायद लेकिन कोई मदद को आगे नहीं आ रहा था....फिर अंत में एक सरदार जी ने अपने गाडी में बिठाकर उन्हें अपोलो हॉस्पिटल पहुंचाया...अपोलो हॉस्पिटल जो की जहाँ एक्सीडेंट हुआ वहाँ से मात्र दो किलोमीटर की दुरी पर था...लेकिन मौसा जी को बचाया नहीं जा सका...डॉक्टर्स ने कहा की अगर पांच मिनट पहले भी यहाँ लाया जाता इन्हें तो हम कुछ और कोशिश कर सकते थे...<br />सरदार जी ने कहा बाद में की हॉस्पिटल के गेट तक पहुँचने तक उन्हें थोड़ा होश था...लेकिन गाड़ी से उतारकर उन्हें जब ले जाया जा रहा था तब उनको बिलकुल भी होश नहीं था....abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-89920520775585496582013-12-19T10:12:39.807-08:002013-12-19T10:12:39.807-08:00शुक्रिया Indian soul {(पर indian soul तो हम सब ही ...शुक्रिया Indian soul {(पर indian soul तो हम सब ही हैं :)}<br />ये तो बहुत ही कटु अनुभव हो गया...बचाने वाले पर ही केस कर दिया...ऐसे लोग भी होते हैं ..तभी तो लोग किसी की मदद करने से डरते हैं. एक आदमी ऐसा करता है और बाकी के सौ लोग उसकी ऐसी हरकत से डर जाते हैं. <br />फिर भी किसी की मदद से पीछे नहीं हटना चाहिए ....कितनी अच्छी बात है..लोग सिर्फ सहारा देकर उठाते ही नहीं ...बल्कि हाल भी पूछ लेते हैं. <br />हमारी भी यही प्रार्थना है कि लोग इन्सानियत का पाठ न भूलें .<br />rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-32702819917071594062013-12-19T10:04:09.926-08:002013-12-19T10:04:09.926-08:00"किसी दुर्घटनाग्रस्त इंसान की मदद नहीं करना उ..."किसी दुर्घटनाग्रस्त इंसान की मदद नहीं करना उसे मरने के लिए छोड़ देना, क्रिमिनल ऑफेंस माना जाना चाहिए । "<br />मैंने दो बार ऐसा ही कुछ लिखकर कि "तमाशा देखने वालों को ही कोई दंड देने का प्रावधान होना चाहिए ताकि आगे से लोग सिर्फ तमाशबीन न बने रहें...कुछ करें "डीलीट कर दिया क्यूंकि पता है, इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में इसकी अपेक्षा करना व्यावहारिक नहीं. यहाँ दोषियों को ही सजा नहीं मिलती या दस साल बाद मिलती है तो तमाशबीनों के लिए किसी सजा की अपेक्षा आकर्ण बेवकूफी है. <br />पर सच है, व्यवस्था को दोष वही लोग देते हैं, जो कुछ करना नहीं चाहते .जिनमें संवेदना होती है और किसी की मदद करने का ज़ज्बा ...वे व्यवस्था के क़ानून बदलने का इंतज़ार नहीं करते .rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-50338248248458666852013-12-19T09:53:22.018-08:002013-12-19T09:53:22.018-08:00आशा है ,हम खुद से आगे बढ़कर सोचना शुरू करेंगे .आशा है ,हम खुद से आगे बढ़कर सोचना शुरू करेंगे .rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-859851965573371862013-12-19T09:52:20.656-08:002013-12-19T09:52:20.656-08:00और यह बेहद अफसोसनाक बात है .और यह बेहद अफसोसनाक बात है .rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-18243474510008771592013-12-19T09:51:43.279-08:002013-12-19T09:51:43.279-08:00यही तो सोचने वाली बात है कि ऐसा लोग क्यूँ नहीं सो...यही तो सोचने वाली बात है कि ऐसा लोग क्यूँ नहीं सोचते .rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-599877598603556762013-12-19T09:48:47.541-08:002013-12-19T09:48:47.541-08:00आपके द्वारा उद्धृत सारी घटनाएं, हमारे ही समाज का ...आपके द्वारा उद्धृत सारी घटनाएं, हमारे ही समाज का हिस्सा हैं. एक जगह लोग मदद के लिए भी आते हैं और वहीँ ज्यादातर लोग मुहं फेर कर चले जाते हैं...सबलोग एक जैसे तो नहीं हो सकते पर आशा ही कर सकते हैं कि मदद करने वाले हाथों में इजाफा हो.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-8211964104966287032013-12-19T09:41:43.387-08:002013-12-19T09:41:43.387-08:00ये बिलकुल सही बात कही आपने. हम ही अपने बच्चों को स...ये बिलकुल सही बात कही आपने. हम ही अपने बच्चों को स्वार्थी होना सिखाते हैं...'तुम्हे क्या जरूरत थी बीच में पड़ने की ....और लोग भी तो थे...चुप रहा करो...अपने काम से मतलब रखो ' ..और ये बहुत गलत है...अगर बच्चे किसी की सहायता करते हैं तो उनकी तारीफ़ करनी चाहिए ...उन्हे प्रेरित करना चाहिए. <br />rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-14250537801792128402013-12-19T09:23:04.010-08:002013-12-19T09:23:04.010-08:00सचमुच ऐसी घटनाएं ही बिलकुल निराश नहीं होने देतीं.सचमुच ऐसी घटनाएं ही बिलकुल निराश नहीं होने देतीं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-51305102715353609782013-12-19T09:20:35.277-08:002013-12-19T09:20:35.277-08:00किसी अनजान के लिए संवेदना रहती ही नहीं.:(किसी अनजान के लिए संवेदना रहती ही नहीं.:(rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-67621863949811168812013-12-19T05:17:58.630-08:002013-12-19T05:17:58.630-08:00रश्मिजी,
आप बहुत अच्छा लिखती है। मुझे नहीं पता इस...रश्मिजी,<br /><br />आप बहुत अच्छा लिखती है। मुझे नहीं पता इस बात के बारे मे मैं क्या लिखू पर भारत मे हर तरह के लोग मिलते है। करीब १५ साल पहले एक दुर्घटनाग्रस्त मोटर साइकल सवार को बचा कर मेरे पापा ने अस्पताल पहुचाया उसने उस समय तो बहुत शुक्रिया अदा किया पर तीन साल बाद पापा के रेटिरेमेण्ट के बाद हमे कोर्ट से नोटीस आया की उसने पापा के खिलाफ केस किया है मुश्किलो से मामला रफा दफा हुआ<br /><br />ऐसे लोग होते है पर फिर भी मैं अपने आपको दूसरो की मदद करने से रोक नहीं पाती... बहरहाल अभी मे जर्मनी मे हूँ और यहा जब भी साइकल चलते हुए गिर जाती हूँ कोई ना कोई सहारा दे कर उठा देता है और पूछ लेता है की क्या तुम ठीक हो?<br /><br />काश लोगो को फिर से इंसानियत याद आ जाये।indian soulhttps://www.blogger.com/profile/10516312932160787930noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-74309378603712721532013-12-19T03:20:02.315-08:002013-12-19T03:20:02.315-08:00व्यक्तिगत संवेदनशीलता का सिस्टम से कोई लेना देना न...व्यक्तिगत संवेदनशीलता का सिस्टम से कोई लेना देना नहीं है । हमसे सिस्टम है सिस्टम से हम नहीं। दुर्घटनायें हुईं नहीं कि लोगों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है, अधिकतर तमाशबीन ही होते हैं कोई इक्का दुक्का ही मददगार होता है.। मुझे वो एड याद आ रहा है निरमा वाला जिसमें ३-४ लडकियां एक गाड़ी को कीचड़ से निकालतीं हैं । समाज का बिलकुल सही चेहरा दिखाता है वो विज्ञापन। <br /><br />मुझे याद है मेरे बाबा-माँ मेरे पास कैनेडा आये हुए थे, घर के अंदर का मौसम और बाहर के मौसम में बहुत ज्यादा फर्क होता है यहाँ। जाड़े के दिन थे मेरे बाबा बिना ढंग से कपडे पहने हुए बाहर चले गए मुझे पता ही नहीं चला, मैं ऑफिस के लिए निकलने ही वाली थी कि घंटी बजी घर की, एक अनजान अंग्रेज भागता हुआ आया था और बताया आपके घर में जो बुजुर्ग रहते हैं वो रस्ते में गिर गए हैं मैंने उनको आपके घर के सामने अक्सर खड़े देखा है इसलिए उनको पहचान गया । उस व्यक्ति से मेरी कोई जान पहचान नहीं थी । हम सभी भागे, वहाँ पहुँच कर देखा मेरे बाबा चार-पांच रजाइयों में लिपटे चार-पाँच गोरियों की गोद में लेते हुए थे :) अगले ही पल एम्बुलेंस भी पहुँच चुकी थी, उन्हीं लोगों ने एम्बुलेंस भी बुलवा दिया था । अब अगर वो सभी भी सिस्टम के चक्कर में रहते तो मेरे बाबा कहीं और निकल लिए होते।<br /><br />मानुष की जान किसी भी सिस्टम से ज्यादा कीमती है उसे इस कचरे सिस्टम की भेंट चढ़ने देना क्रिमिनल होगा। असंवेदनशील और हृदयहीन लोगों के पास सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त होकर तड़पते इंसान की मदद के लिए रुकने का वक्त नहीं है ?? और हम खुद को सभ्य कहते हैं ?? किसी दुर्घटनाग्रस्त इंसान की मदद नहीं करना उसे मरने के लिए छोड़ देना, क्रिमिनल ऑफेंस माना जाना चाहिए । कहीं कोई एक्सीडेंट हो गया है तो क्या हम ये सोचेंगे कि अरे अब हम पहले लोकपाल बिल, ३७७ या दामिनी मूवमेंट की तरह रैली निकाल लें, कानून में संशोधन करवा लें फिर इसको देखेंगे। धन्य हो प्रभु ! इस तरह की दलील देना कायरता है । अपने दिल की आवाज़ को सुना जाए, ये सोचा जाए अगर उस व्यक्ति कि जगह हमारा अपना कोई होता, या हम खुद होते तो हम उस नासपीटी भीड़ से क्या उम्मीद करते। जो हम उस भीड़ से उम्मीद करेंगे वही हमें भी करना चाहिए, जहाँ ऐसा सोचेंगे संवेंदनशीलता के तूफ़ान को कोई नहीं रोक सकेगा। <br />बहुत अफ़सोस की बात है कि एक इंसान की जान तमाशबीनों के सामने तमाशा बन कर निकल गई और लोग तमाशा ख़तम पैसा हजम करते अपने घर चले गए। <br /><br />संवेदनशीलता के लिए परमिट नहीं मिलता वो बस होती है और यकीन कीजिये काम भी करती है.…आज आप एक अच्छा काम दुसरे के लिए करेंगे कल आपके लिए कोई दूसरा करेगा, फिर हमारे धर्म में तो अच्छे-बुरे काम का पूरा लेखा-जोखा होता है :) स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-68028080320775052782013-12-19T01:30:32.852-08:002013-12-19T01:30:32.852-08:00जब जब अती होती है तो वह बदलाव का संकेत भी होता है ...जब जब अती होती है तो वह बदलाव का संकेत भी होता है ... आक्रोश ऐसे ही जन्म लेता है और आग की तरह फ़ैल जाता है ... युवा पीड़ी इतनी भी संवेदनहीन नहीं ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-89194084718512496242013-12-18T23:51:54.139-08:002013-12-18T23:51:54.139-08:00हमारे आसपास सब ऐसे ही अधिक हैं !हमारे आसपास सब ऐसे ही अधिक हैं !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-84212451083604837632013-12-18T22:42:46.820-08:002013-12-18T22:42:46.820-08:00वैसे जानती हैं दीदी, मुझे उन दोनों से थोड़ी भी सहान...वैसे जानती हैं दीदी, मुझे उन दोनों से थोड़ी भी सहानुभूति नहीं हुई थी. फिर भी मैं जो कर सकता था वह किया.<br />सहानुभूति नहीं होने का कारण - <br />१. वे दोनों ही नशे में धुत्त थे. दोनों के ही मुंह से अल्कोहल कि भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी.<br />२. दोनों में से किसी के पास हेलमेट नहीं था.<br />वैसे पहला कारण ही बहुत है उनसे सहानुभूति नहीं होने कि क्योंकि यह ड्रिंक & ड्राईव का केस था.PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-21054062425521945632013-12-18T22:35:40.645-08:002013-12-18T22:35:40.645-08:00हम्म.. दरअसल पहले कमेन्ट के समय मुझे मोडेरेशन वाली...हम्म.. दरअसल पहले कमेन्ट के समय मुझे मोडेरेशन वाली सूचना भी नहीं दिखी थी. इसलिए यह दूसरा कमेन्ट किया..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-42088192597015637892013-12-18T22:22:51.425-08:002013-12-18T22:22:51.425-08:00हे भगवान, लोग घायल के स्थान पर स्वयं को रखकर सोचें...हे भगवान, लोग घायल के स्थान पर स्वयं को रखकर सोचें।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-59714190524704060562013-12-18T22:19:22.319-08:002013-12-18T22:19:22.319-08:00 दो तीन किस्से बताती हूँ , तिन साल पहले भाई का एक्... दो तीन किस्से बताती हूँ , तिन साल पहले भाई का एक्सीडेंट हुआ था पुलिस उन्हें अस्पताल पहुँचाने वाले पर ही शक करने लगी की उन्ही की कार से हुआ है , हमारा गन्दा सिस्टम ,<br /> उसके एक साल बाद मेरी माँ दिल्ली में ऑटो से जा रही थी , उसने युवक को गिरे देखा एक्सीडेंट हुआ था उन्होंने ऑटो वाले से कहा की रुको उसे अस्पताल पहुंचाते है वो ऑटो और तेज करके फलाईओवर पर चला गया माँ दुहाई देती रही कि उसके बेटे को भी किसी ने बचाया था , इच्छा है पर इच्छा शक्ति नहीं , <br />उसी के कुछ समय बाद मै और मेरे पति राजस्थान गए उदयपुर जाते समय अंदर गांव की और जा रहे थे रास्ते में एक लड़का बाईक के साथ गिरा पड़ा था , गांव की कुछ बुजुर्ग महिलाए आने जाने वाले को रोक रही थी सभी देशी विदेश टूरिस्ट की गाड़िया थी कोई रुक नहीं रहा था , मैंने अपने गाड़ी वाले को रोकने को कहा उसने इंकार कर दिया तो मैंने चिल्ला कर उसे रोकने को कहा पति उतर कर गए उसे उठाया किनारे बिठाया ज्यादा चोट नहीं लगी थी कच्ची सड़क के कारण शारीर छिल गया था , बेटी गोद में सो रही थी मै कार में ही थी मैंने ड्राइवर से कहा जरा मदद करो प्राथमिक स्वस्थ केंद्र तक तो ले चलो उसने साफ मना कर दिया की कार उसकी नहीं है और मालिक कभी इसकी इजाजत नहीं देंगे उलटा कहने लगा कि मैडम जल्दी कीजिये चार घंटे का सफ़र करके जिस मंदिर को देखने जा रही है वो बस आधे घंटे में बंद हो जायेगा , इस बिच कई गाड़िया आती रही और जाती रही रुका कोई नहीं , कुछ विदेशी तो सर बाहर निकाल कर अफसोस जता रहे थे किन्तु देशी तो उसकी भी जहमत नहीं उठा रहे थे तभी एक मोटरसाइकल पर एक और व्यक्ति आया समभवतः वो स्थानीय व्यक्ति रहा हो और मदद करने लगा उसने हाथ जोड़ कर मेरे पति से कहा कि आप जाइये वो उसे देखा लेगा , बाद में पति ने बताया कि वो शराब के नशे में धुत था और भैसो से टकरा कर गिर गया था । कभी कभी मदद करने वाला भी असहाय होता है , और साला शराबी गिरा पड़ा है कि मानसिकता भी कई बार लोगो में होती है । <br />तिन दिन पहले ही पति मित्र की दूकान में गए जाते ही वहा काला धुँआ निकलता देखा मित्र ने दूकान बंद कि और सब माल से बहार आ गए पति ने झट फायरबिग्रेड को फोन कर दिया , वो आये भी और अपना कम भी किया पति जब घर आये तो मित्र का फोन आया की उसी मॉल में तम्हारी बहन का भी शॉप है उसे मत बताना कि कॉल तुमने किया था नहीं तो सब मुझसे बुरा मना जायेंगे , क्योकि फायरब्रिगेड अब उन पर जुर्माना लगाएगा , फायर सिस्टम को चेक करेगा , कुछ समय पहले भी आग लगी थी तब उन लोगो ने खुद ही बुझा लिया था , शायद इसे कहेंगे होम करत हाथ जलत <br />हम सभी एक जैसे नहीं हो सकते है ये कुछ करने का जस्बा ही तो कुछ लोगो को सभी से अलग बनाता है बाकि तो ज्यादातर हम जैसे आम डरपोक लोग ही है , जैसा कि रचना जी ने कहा कि संस्कार तो हमी देते है ना कि किसी के लफड़े में मत पड़ो , हमरी संवेदनशीलता या तो अपनो के लिए जागती है , या तब जब हम वहा नहीं होते है :( anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-60995529548975215602013-12-18T21:10:42.717-08:002013-12-18T21:10:42.717-08:00असंवेदनशील होना हम बच्चो को खुद सिखाते हैं। उनको ...असंवेदनशील होना हम बच्चो को खुद सिखाते हैं। उनको कमजोर हम खुद बनाते हैं। असंख्य बार हम हैं किसी भी मुसीबत में मत पड़ो। एक असम्वेदनशील समाज निर्माण हमने खुद किया हैं। हमारे ऊपर आंच ना आये दूसरा जल जाए तो भी क्या। <br /><br />आज से तकरीबन २० साल पहले गाजियाबाद के एक नामी स्कूल से बच्चा किडनैप हुआ , बहुत से बच्चो के सामने उसको एक कार में उठा कर ले गए<br /><br />पुलिस के सामने किसी बच्चे ने कुछ नहीं कहा सब चुप रहे। फिर एक बच्ची ने पुलिस से कहा मैने देखि हैं कार , मैने नंबर भी नोट किया हैं , आप लिख लो , और मेरे दोस्त को छुड़ा कर लाये। उस बच्ची के बोलने के बाद पुलिस उस किडनेप किये हुए बच्चे को खोज पाई। <br /><br />उस बच्ची के माँ - पिता ने उसको डांटा कि तुम ही क्यूँ बोली , और क्युकी वो रिश्ते में मेरी भांजी थी मुझे भी कहा गया कि उसको समझाऊ कि आगे से पुलिस से कुछ ना कहे और कहे मुझे अब कुछ याद नहीं। <br /><br />मेरा सिंपल जवाब था मेरी कजिन बहन से कि क्या तुमने इस को सच बोलना , किसी से ना डरना सिखाया हैं , बहन ने कहा हां इस मेरी भांजी बोली मौसी इसी लिये तो मुझे बताना पड़ा मेरी मम्मी अब पता नहीं क्यूँ डर रही हैं रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-45060740283650759332013-12-18T20:58:32.462-08:002013-12-18T20:58:32.462-08:00रश्मिजी मेरी जिंदगी में २ घटनायें हुई है.
एक तो मे...रश्मिजी मेरी जिंदगी में २ घटनायें हुई है.<br />एक तो मेरी बेटी के बस से एक्सीडेंट होने का. उस वक़्त वहाँ खड़े सभी लोगो ने उसको सहारा दिया था एक लड़की ने जो उसी बस से आगे जाती थी वही उतर कर मेरी बेटी को PG तक पहुँचाया था और काफी देर तक रुकी भी थी. ये घटना दिल्ली की है. <br />दूसरी घटना लगभग ३० वर्ष पुरानी है. मेरे पापा स्कूटर से एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे कि उनका एक्सीडेंट हो गया. पापा बेहोश थे और साथ वाले के पैर पर स्कूटर पड़ा था। उस सुनसान जगह पर दूर दूर तक कोई नहीं था वहाँ से गुजरने वाले २ सज्जनो ने उनको सहारा दिया दूर से पानी ला कर पिलाया और बस में बैठा कर स्कूटर को खींच कर अपने घर ले गए। <br /> ये दोनों केस मुझे सामान्य जनता में भरोसा दिलाते हैं. शोभाhttps://www.blogger.com/profile/12010109097536990453noreply@blogger.com