tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post8095451363145613377..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: घूँघट की आड़ से....rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-3318756371218854452011-10-16T11:50:37.403-07:002011-10-16T11:50:37.403-07:00आज नहीं कहना है कुछ :) :) :)आज नहीं कहना है कुछ :) :) :)Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-59589157043932709262011-10-15T02:34:40.388-07:002011-10-15T02:34:40.388-07:00:)
क्या ज़माना था !:) <br />क्या ज़माना था !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23653307675769212632011-10-13T08:11:27.013-07:002011-10-13T08:11:27.013-07:00:):):):):):)
आज पढ़ा मैंने यह पोस्ट :D
ऐसी ऐसी पो...:):):):):):)<br />आज पढ़ा मैंने यह पोस्ट :D<br /><br />ऐसी ऐसी पोस्ट और लिखिए न :Pabhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-73744528549437552222011-10-12T03:16:08.309-07:002011-10-12T03:16:08.309-07:00:)
हमारे सासू माँ तो बहूऊऊऊऊत प्यारी हैं - उन्होंन...:)<br />हमारे सासू माँ तो बहूऊऊऊऊत प्यारी हैं - उन्होंने तो आते ही कहा - "बहू नहीं - बेटी हो - जो करना है - करो , जैसे रहना है - रहो | बस - खुश रहो "<br /><br />तो बस - हम कर रहे हैं - बस - खुश रहते हैं | घूंघट का कोई एक्सपेरिएंस नहीं :) | एक दो बार सासु माँ की जेठानी जी (मेरी ताई सास जी ) आती थीं / हम लोग वहां जाते थे , तो पैर छूते समय सर पर पल्ला लिया | इनकी मम्मी तो मैं रोज़ पैर भी छूने जाती हूँ (जब हम वहां जाते हैं / वे हमारे पास आती हैं) तो भी uncomfortable हो जाती हैं |<br /><br />४- ५ साल पहले punjab गए थे - तो मामा जी और सब लोग कहने लगे - ये शिल्पा तो पैर छू छू कर पैर ही घिस देगी !! <br /><br />:DAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-90164781206665081652011-10-11T04:45:30.356-07:002011-10-11T04:45:30.356-07:00सब समय का फ़ेर है, कभी घूंघट कभी सिर पर कुछ भी नही...सब समय का फ़ेर है, कभी घूंघट कभी सिर पर कुछ भी नहीं।SANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-53872814737548000262011-10-11T03:29:51.485-07:002011-10-11T03:29:51.485-07:00उधर घूँघट की आड़ में जाने क्या हालत हुई होगी...लेक...उधर घूँघट की आड़ में जाने क्या हालत हुई होगी...लेकिन इधर हम हँसे फिर घबराए...फिर कुछ सोचने लगे...संस्मरण लिखना छोड़ दें क्या...... !!! :):)मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-8966352591572847692011-10-10T04:48:19.993-07:002011-10-10T04:48:19.993-07:00ऱ्श्मिजी आनन्द आ गया और वाकयी हँसी भी आ रही है। अ...ऱ्श्मिजी आनन्द आ गया और वाकयी हँसी भी आ रही है। अच्छी रेगिंग हो गयी! पोस्ट लिखते हुए मैं और मेरा लिखा वाक्य याद आ गया यह भी अच्छा लगा। लोग कहेंगे कि कौन सा वाक्य तो लिखे दे रही हूँ - ."पहनी ओढ़ी हुई नई दुल्हन कितनी सुन्दर लगती है"...<br />अरे ससुराल के किस्से तो हमारे भी हैं। निपट गाँव था, लेकिन हमने पार पा ली थी। सर ढकने का जरूर रिवाज था लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं। कुछ रिवाज तो हमने ही हँसी-हँसी में समाप्त करा दिए थे। बढिया रहा आपका संस्मरण, बधाई।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-80447359071020716102011-10-09T23:15:41.571-07:002011-10-09T23:15:41.571-07:00बढि़या पोस्ट। इसे पढ़कर हमारे एक परिचित से जुड़ी ...बढि़या पोस्ट। इसे पढ़कर हमारे एक परिचित से जुड़ी घटना याद आ गई। ये साहब आस्ट्रेलिया में एक एमएनसी में कार्यरत हैं। इन्होंने एक आधुनिक हिन्दुस्तानी लड़की से शादी की है। साल में पन्द्रह दिन के लिए जब यू0पी0 में अपने गांव आते हैं, तो अपनी पत्नी को समझा कर लाते हैं कि समझ लो पन्द्रह दिन के लिए कालापानी की सजा मिल रही है। वहां वैसे ही रहना जैसे गांव का रिवाज है।जीवन और जगत https://www.blogger.com/profile/05033157360221509496noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-49076510495091996432011-10-09T03:02:22.233-07:002011-10-09T03:02:22.233-07:00जी हमें तो गीत याद आ गया....
"घूँघट की आड़ ...जी हमें तो गीत याद आ गया.... <br /><br />"घूँघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है"दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-24908557031651183992011-10-08T23:35:16.755-07:002011-10-08T23:35:16.755-07:00@ लंबा घूंघट,तन मन भर जेवर,बनारसी साड़ी से लदी फंद...@ लंबा घूंघट,तन मन भर जेवर,बनारसी साड़ी से लदी फंदी नईकी दुल्हन से सम्बंधित आपकी संस्मरणात्मक रचना ,<br /> <br />जाके पैर ना फटी बिंवाई :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-82835490676459020502011-10-08T21:26:47.421-07:002011-10-08T21:26:47.421-07:00@रचना जी,
मैने तो ब्लोगिंग की शुरुआत ही संस्मरण ल...@रचना जी,<br /><br />मैने तो ब्लोगिंग की शुरुआत ही संस्मरण लिखने से की है...और चंडीदत्त शुक्ल जो 'एक नामी कवि और पत्रकार हैं' (आजकल 'अहा जिंदगी' के फीचर सम्पादक हैं) <br />उन्होंने और कुछ और लोगो ने भी...शुरुआत से ही कहा कि आप संस्मरण पर ही कंसंट्रेट किया करें...{कई बार मेरी पोस्ट पर कमेन्ट में भी कहा है)...मेरे संस्मरण वाली पोस्ट की तारीफ़ में भी काफी कुछ कहा है...जिन सबको यहाँ नहीं लिख सकती.."आखिर modesty को ताक पर नहीं रखा जा सकता ना....सब वहाँ भी ताक लेंगे...:)<br /><br />पर आपने सही कहा.."बुढ़ापा तो सच्ची आ गया....आधे पैर तो कब्र में लटके ही हुए हैं....और मेरे पैरों और कब्र के सतह की दूरी लगातार कम होती रही है....जल्दी-जल्दी बाकी संस्मरण भी लिख डालूँ..:):):)rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-86698904680002120932011-10-08T21:21:36.765-07:002011-10-08T21:21:36.765-07:00यी घूंघट बड़ी निर्दयी होती है. बेचारी दुल्हनें !यी घूंघट बड़ी निर्दयी होती है. बेचारी दुल्हनें !P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-58465775614117426392011-10-08T21:19:39.699-07:002011-10-08T21:19:39.699-07:00अब देखिए न घूंघट की आड़ से ही आपने इतना कुछ देख सु...अब देखिए न घूंघट की आड़ से ही आपने इतना कुछ देख सुन लिया। अगर घूंघट न होता तो शायद यह संस्मरण भी न बनता। मैं घूंघट का पक्ष नहीं ले रहा हूं।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-17094745249791317142011-10-08T21:15:03.162-07:002011-10-08T21:15:03.162-07:00हमारे हरियाणा में तो अभी तक ऐसा ही होता है । लेकिन...हमारे हरियाणा में तो अभी तक ऐसा ही होता है । लेकिन आज पहली बार इससे होने वाली दुविधा और असुविधा को महसूस किया । शुक्र है शहरों में ऐसा नहीं होता ।<br />लेकिन घूंघट का एक फायदा भी रहा । घूंघट की आड़ में हर दुल्हन सुन्दर बहुत लगती थी ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-30172772097941459052011-10-08T20:40:19.330-07:002011-10-08T20:40:19.330-07:00@रचना जी,
मुझे पता था....कोई ना कोई शीर्षक का उल्...@रचना जी,<br /> मुझे पता था....कोई ना कोई शीर्षक का उल्लेख जरूर करेगा....और अब ये बताने का वक्त आ गया कि ये शीर्षक " सतीश पंचम जी' ने सुझाया...मैने पोस्ट लिख तो ली थी..पर हिचकिचाहट सी थी...सो उन्हें ऑनलाइन देख...मैने उनसे राय ली...और शीर्षक भी पूछा..{वो अक्सर पूछती हूँ...मेरे मित्रों को पता होगा :)}<br /><br />मैने तो अपनी तरफ से शीर्षक रखा था..."घूँघट या शामत" पर सतीश जी को ये शीर्षक पसंद था...:)<br /><br />वैसे तो मैं "सुनो सबकी..करो अपने मन की ही करती रहती हूँ."..पर कभी-कभी मित्रों की बात भी सुन लेती हूँ...:)...और मैने सतीश जी से कह दिया था...किसी ने भी शीर्षक को लेकर कुछ कहा...तो कह दूंगी..."सतीश जी ने सुझाया है.." और लीजिये...कह भी दिया :):):)rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-38307202706344758432011-10-08T20:20:30.068-07:002011-10-08T20:20:30.068-07:00कैसी कैसी परंपरायें थीं, वर्णन अपरंपार।
हौले हौले ...कैसी कैसी परंपरायें थीं, वर्णन अपरंपार।<br />हौले हौले हट रही हैं, कुरीतियां कट रही हैं<br />तज कुप्रथा जिये जिंदगी, रख शालीनता बरकरार। <br />अच्छी प्रस्तुति।सूर्यकान्त गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/05578755806551691839noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-30349700163313310172011-10-08T20:20:28.240-07:002011-10-08T20:20:28.240-07:00sansmarn jab koi likhnae lagae to samjhiyae umr ho...sansmarn jab koi likhnae lagae to samjhiyae umr hogayee haen !!!!!!रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-19396890165238937772011-10-08T19:52:25.668-07:002011-10-08T19:52:25.668-07:00भुक्तभोगी हैं, क्या कहें , फेरे की रस्म तो बिना पर...भुक्तभोगी हैं, क्या कहें , फेरे की रस्म तो बिना परदे हो गयी और विदाई के समय गज भर का घूंघट ...<br />रोचक संस्मरण!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-81548798135192401622011-10-08T19:50:30.121-07:002011-10-08T19:50:30.121-07:00सच्चाई को बयाँ करता उम्दा आलेख. नयी पीढ़ी को ये पु...सच्चाई को बयाँ करता उम्दा आलेख. नयी पीढ़ी को ये पुराने रिवाज़ हटाने की जिम्मेदारी लेनी होगी.<br /><br />पर घूंघट की आड़ से दिलवर का दीदार तो जरूर कुछ शीतलता प्रदान कर गया होगा.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-40746734118029243172011-10-08T19:10:11.634-07:002011-10-08T19:10:11.634-07:00हमने अपने परिवार में यह सब नहीं देखा. कुछ था भी तो...हमने अपने परिवार में यह सब नहीं देखा. कुछ था भी तो इतना भीषण नहीं था. मध्य प्रदेश में ही कुछ अंचलों में यह बहुत होता है पर हमारे क्षेत्र में तो नहीं.<br />कुछ पुरुष कहते हैं कि घूंघट तो झीना होता है और उससे हवा आती-जाती रहती है पर यह बात गलत है. झीना घूंघट भी भीतर गर्म हवा का क्षेत्र बड़ा देता है और महिला की असुविधा बढ़ जाती है.<br />अब कुछ दसियों साल के मेहमान हैं ये रीत-रिवाज़. दिल्ली में देखिये, स्टेज पर ही दुल्हनें ससुर के साथ नाचने लगीं हैं, या सच कहें तो अब ससुर ही दुल्हनों के साथ थिरकने लगे हैं. पहले तो लोग जबरदस्त लिहाज़ करते थे. इतना आगे बढ़ना भी अच्छा नहीं लगता.<br />एक बात पूछना चाहता था, हांथों में वरमाला लेकर जब दुल्हन स्टेज की और आतीं हैं तो घोंघे की चाल क्यों चलतीं हैं? अपनी श्रीमती जी से पूछूंगा तो शायद वे यह कहें कि भारी-भरकम लहंगा और जेवर आदि सहेजकर चलना मुश्किल होता है... लेकिन यह तो एक्सक्यूज़ ही लगता है. और मौकों पर भी स्त्रियाँ लहंगे और जेवर पहनती हैं पर उतना धीरे नहीं चलतीं.<br />खैर...निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-87050431650851386622011-10-08T19:08:33.954-07:002011-10-08T19:08:33.954-07:00हमें तो जी पूरा विश्वास है आपकी हर बात पर -यह समाज...हमें तो जी पूरा विश्वास है आपकी हर बात पर -यह समाज तो अपना जाना पहचाना समाज है ....Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-70524093725173114062011-10-08T18:50:28.860-07:002011-10-08T18:50:28.860-07:00आज की युवतियों को क्रेज भी हो सकता है घूंघट का, यह...आज की युवतियों को क्रेज भी हो सकता है घूंघट का, यह पढ़ कर.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-44743866263896523642011-10-08T11:50:31.992-07:002011-10-08T11:50:31.992-07:00"ई हथीन नइकी कनिया!"... ये बिलकुल सही है..."ई हथीन नइकी कनिया!"... ये बिलकुल सही है! मगर जो व्यथा आपने सुनाई वह बचपन में देखी थी.. बाद में नहीं, अपनी शादी में भी, थैंक गौड, मेरी पत्नी को भी यह सब नहीं सहना पड़ा... <br />अब तो खैर बिलकुल ही खतम हो गया ये रिवाज़... वरना जब नइकी कनिया कहीं बाहर किसी रिश्तेदार से मिलने या बाज़ार घूमने जातीं तो घूंघट करती थीं और सारे मोहल्ले की औरतें तक भी एक झलक पाने को खिडकी दरवाज़े से झांकती रहती थीं.<br />हमारी शादी तो जनवरी में हुई और मंडप छत पर.. हवा को कनात नहीं रोक पाता था... दुल्हन ने दो साड़ी और चादर पहन रखी थी, बेचारे दुल्हे को हवन की आग और वीडियो की लाईट का ही सहारा था..चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-80708145905590388232011-10-08T11:16:15.975-07:002011-10-08T11:16:15.975-07:00बहुत ही रोचक और जीवंत चित्रण किया है रश्मि जी आपने...बहुत ही रोचक और जीवंत चित्रण किया है रश्मि जी आपने ! आपसे कई साल सीनियर हूँ आयु में इसलिए तुलनात्मक रूप से उतने ही साल अधिक पुरातन, अधिक परम्परावादी और अधिक रिजिड रस्मों रिवाजों के ऐसे ही कई खट्टे मीठे अनुभवों को मैन भी झेल चुकी हूँ ! आपकी स्थिति का सहज ही अनुमान लगा पा रही हूँ ! आपकी शैली इतनी सुन्दर है कि हर आलेख, संस्मरण या कहानी पढ़ कर दिल बाग बाग हो जाता है ! बहुत बहुत बधाई आपको !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-86927369389401936002011-10-08T10:40:51.480-07:002011-10-08T10:40:51.480-07:00OH MY GOD,
अंशुमाला जी मुझे इस वाले कल्चर का तरफदा...OH MY GOD,<br />अंशुमाला जी मुझे इस वाले कल्चर का तरफदार समझ रही थी :))<br /><br />अपने लिए तो<br />रिवाज वही जो स्वास्थ्य-सुख लाये<br />बाकी चीजों को टाटा टाटा-बाय बाय<br /><br />:)))एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.com