tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post7294984667264407647..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: डायना के जमाने में डायन की खोजrashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-29245617438643025992011-02-17T00:28:40.899-08:002011-02-17T00:28:40.899-08:00रश्मि जी...
आपकी पोस्ट देर से पढ़ी...और देर से पढन...रश्मि जी...<br /><br />आपकी पोस्ट देर से पढ़ी...और देर से पढने के कारण ही में इतने लोगों की टिप्पणियां पढ़ सका...जो आपकी पोस्ट की सार्थकता को और बढा गए हैं....बरहाल देर से पढने की क्षमा चाहता हूँ...<br /><br />लोग कहते हैं सीरियल समाज का आइना होते हैं.,..पर मेरा कहना है की बुधू बक्से के धारावाहिकों का वास्तविकता से कुछ भी लेना देना नहीं है....वास्विक जीवन में कहाँ ऐसा सब होता है....पर जब तक किसी भी खाने को मिर्च मसाला डाल कर पेश न किया जाए लोगों को खाने में कहाँ अच्छा लगता है...सो इन धारावाहिकों में भी लेखक और निर्देशक अपनी योग्यता के अनुसार कल्पनाओं में दर्शकों को गोते लगवाते हैं....पर जब तक इस तरह की बे-सर-पैर की कहानियां दर्शक स्वीकारते रहेंगे तब तक धारावाहिक बनते रहेंगे....हमें ही इन्हें सिरे से नकारना होगा....तभी शायद समाज को इनसे निजात मिल सके....<br /><br />बरहाल विचारोत्तेजक विषय पर आपने आलेख लिखा है...इसके लिए हार्दिक बधाई....<br /><br />दीपक....Deepak Shuklahttps://www.blogger.com/profile/02437731202200979518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-84362255852656906912011-02-15T01:37:52.662-08:002011-02-15T01:37:52.662-08:00इधर शादियों की व्यस्तता के चलते पढना बहुत कम हुआ \...इधर शादियों की व्यस्तता के चलते पढना बहुत कम हुआ \आज आपका लेख पढ़ा और टिप्पणिया भी जिसमे सभी तरह के विचार थे |घ्रण करके हम क्या हासिल कर सकते है ?बाकि साधना जी की टिप्पणी से पूर्णत सहमत |<br />अगर ब्लाग के जरिये एकजुट होकर कोई रिपोर्ट कर सकते है तो हम साथ है |<br />बहुत ही सही विषय पर जो की हमे धीमा जहर दे रहा है खुलकर लिखा है अपने साधुवाद |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-57331218395276372912011-02-14T23:10:56.990-08:002011-02-14T23:10:56.990-08:00चार दिन के लिये पतिदेव के साथ एक कोंफ्रेंस में बाह...चार दिन के लिये पतिदेव के साथ एक कोंफ्रेंस में बाहर गयी थी ! आज ही लौटी हूँ ! इसलिए देर से पहुँचने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ! इतने विचारोत्तेजक आलेख के लिये धन्यवाद रश्मि जी ! इन चैनल्स वालों ने भारतीय संस्कृति को नहीं वरन् कपोल कल्पित, मिथ्या एवं घोर निंदनीय अपसंस्कृति को लाइम लाईट में लाने की कुचेष्टा की है जिसे मैं जघन्य अपराध की श्रेणी में रखती हूँ ! एक अरब से अधिक की आबादी वाले देश में कतिपय स्वार्थी, अंधविश्वासी एवं निपट मूर्ख लोगों द्वारा जो इक्का दुक्का काण्ड कर दिए गये हैं या किये जा रहे हैं उन्हें सारे ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता ! ऐसी कहानियाँ लिखने वाले लेखक, ऐसी कहानियों पर सीरियल बनाने वाले निर्माता, ऐसे सीरियल्स में अभिनय करने वाले कलाकार तथा ऐसे सीरियल्स को दिखाने वाले सभी चैनल्स पर तत्काल प्रभाव से आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए ताकि वे समाज में लोगों को कुमार्ग पर चलने के लिये उकसावा ना दे और गलत परम्पराओं की जड़ें मजबूत ना कर सकें ! सार्थक लेखन के लिये आपका बहुत बहुत साधुवाद एवं अभिनन्दन !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-54253329904610840322011-02-14T05:54:16.987-08:002011-02-14T05:54:16.987-08:00ha ha ha...sabhi manoj kumar se kochh na kuchh see...ha ha ha...sabhi manoj kumar se kochh na kuchh seekhein hain....writer bechara kabhi kabhi channel ke jhanse mein aa jata hai......Rawathttps://www.blogger.com/profile/14483576329781143325noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23279406891291488962011-02-14T05:53:21.804-08:002011-02-14T05:53:21.804-08:00ha ha ha...sabhi manoj kumar se kochh na kuchh see...ha ha ha...sabhi manoj kumar se kochh na kuchh seekhein hain....writer bechara kabhi kabhi channel ke jhanse mein aa jata hai......Rawathttps://www.blogger.com/profile/14483576329781143325noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-55408556799230309532011-02-14T03:53:38.300-08:002011-02-14T03:53:38.300-08:00बहुत बढिया मुद्दा उठाया है रश्मि तुमने. मेरी सास ज...बहुत बढिया मुद्दा उठाया है रश्मि तुमने. मेरी सास जी लगभग सारे सीरियल्स देखतीं हैं, सो उस दिन वे फ़ुलवा भी देख रही थीं. जब डायन जैसे शब्द का शोर सुनाई दिया तो मैं भी कमरे में पहुंची और अवाक रह गई. तमाम चैनल्स ने देश की संस्कृति को गर्त में पहुंचाने की ठान ली है. हिन्दी साहित्य में एक से बढ कर एक उपन्यास भरे पड़े हैं, जिन पर सीरियल्स बनाये जाने चाहिये, पर पता नहीं इन निर्माताओं की समझ को क्या हुआ है? दूरदर्शन ने बहुत शानदार धारावाहिक हमें दिये थे, लेकिन जब से इतने सारे चैनलों की बाढ आई है, तब से कार्यक्रमों का स्तर निरन्तर गिर रहा है. ऐसी अमानवीय घटनाओं को दिखाये जाने का विरोध होना ही चाहिये.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-61685566182980907072011-02-13T23:35:47.112-08:002011-02-13T23:35:47.112-08:00ऐसा नहीं है कि ये सब बातें ये सीरियल निर्माता नही...ऐसा नहीं है कि ये सब बातें ये सीरियल निर्माता नहीं जानते...पर उनकी आत्मा ही मर चुकी है. ये किसी अपराधी से कैसे कम हैं जो हमारी सभ्यता-संस्कृति के साथ ही खिलवाड़ कर रहे हैं?? <br />बोलकुल सही कहा है। अपने स्वार्थ के लिये देश के भविष्य के साथ खिलवाड कर रहे हैं ये लोग।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-21633501260168502222011-02-13T05:28:55.875-08:002011-02-13T05:28:55.875-08:00बहुत संवेदनशील ह्रदय की हो ...प्यार बांटने वाले ऐस...बहुत संवेदनशील ह्रदय की हो ...प्यार बांटने वाले ऐसे लोग घ्रणा चाहते हुए भी नहीं कर सकते ! यह लेख पढ़ते हुए ऐसा लग रहा था कि मैं अपनी आदतों के बारे में पढ़ रहा हूँ ! <br />कुछ लोग किसी भी कीमत पर केवल नाम की तलाश में रहते हैं चाहे उन्हें गालियाँ ही क्यों न मिलें मगर लोग जानेंगे तो जरूर ! <br />ऐसे लोगों पर पोस्ट लिखना भी उन्हें लोकप्रियता देना है ! ये वाकई अपराधी हैं !<br />शुभकामनायेंSatish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-67999369050771004972011-02-13T03:32:09.473-08:002011-02-13T03:32:09.473-08:00वास्तव में छोटे परदे पर जिस तरह के सीरियल्स इन दिन...वास्तव में छोटे परदे पर जिस तरह के सीरियल्स इन दिनों दिखाए जा रहे है वह चिंतनीय विषय है सीरियल तो सीरियल रियेलिटी शो के नाम पर जिस तरह के प्रोग्राम आ रहे है शर्मनाक हैamar jeethttps://www.blogger.com/profile/09137277479820450744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-35661701806475424152011-02-13T02:59:08.317-08:002011-02-13T02:59:08.317-08:00टीवी सीरियल्स तो वैसे भी अतिशयोक्ति से भरपूर होते ...टीवी सीरियल्स तो वैसे भी अतिशयोक्ति से भरपूर होते हैं.. जो अच्छा है वो इतना अच्छा कि आँखों के सामने पानी मे ज़हर मिला दो पी जाए उठाकर,जो बुरा है वो इतना बुरा कि आँखों के सामने बच्चे के गले पर छुरी चलती रहे और वो हँसी बिखेरता रहे.. साज़िशें ऐसी कि सब सामने और कुछ पता न चले जबतक सूत्रधार न चाहे.. ऐसे में येसब देखना भी अतिशय ही है.. संगसारी का इतिहास बहुत पुराना है, ईसा के ज़माने सए (पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी कुछ भी ग़लत न किया हो).<br />अपुन तो चंद्रमुखी चौटाला के दीवाने हैं, उसके बिंदास हरियाणवी सम्वाद और बरसते हुए चाँटों और बाकी कलाकारों के बेतुके तकियाकलाम.. विशुद्ध मनोरंजन!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-34342598243989011982011-02-12T23:46:31.971-08:002011-02-12T23:46:31.971-08:00जो बिकता है सो दिखता है...बस्स्स (इससे कम या ज़्या...जो बिकता है सो दिखता है...बस्स्स (इससे कम या ज़्यादा कुछ भी नहीं)Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-29107454037961770462011-02-12T18:35:54.889-08:002011-02-12T18:35:54.889-08:00तो क्या मैं टीवी नहीं खरीदूं?तो क्या मैं टीवी नहीं खरीदूं?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-51057070758899720412011-02-12T17:58:57.386-08:002011-02-12T17:58:57.386-08:00लोग देखते हैं इसलिए वे दिखाते हैं -अगर इनसे मनुष्य...लोग देखते हैं इसलिए वे दिखाते हैं -अगर इनसे मनुष्य की इंगित घृणास्पद वृत्तियाँ शमित हो जायं /जाती हों तो इन सीरियलों की भी उपयोगिता हो सकती है ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-14113225347262256972011-02-12T10:24:13.310-08:002011-02-12T10:24:13.310-08:00इसीलिए तो हम पहले ही तय कर लिये कि सीरियल बंद........इसीलिए तो हम पहले ही तय कर लिये कि सीरियल बंद.............. अब तो टी बी न्यूज भी बंद है. अब जो भी एक्स्ट्रा टाइम मिलता है , सिर्फ और सिर्फ ब्लोगिंग.उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-14984143094350408422011-02-12T09:03:40.309-08:002011-02-12T09:03:40.309-08:00एक सीरियल में (नाम याद नहीं आ रहा, चैनल क्लर्स ही ...एक सीरियल में (नाम याद नहीं आ रहा, चैनल क्लर्स ही था) तो लड़के व लड़की को फांसी पर लटका दिया था। बेहद खतरनाक सीन था वो। सोचकर ही सहम जाता हूं। एक सीरियल है ना आना इस देश लाडो। इतनी बकवास दिखाते हैं कि जी करता है कि टीवी तोड़ दूं...। अपना ही नुकसान होगा। ये चैनल जितना तेजी से उभरा था, उसी तरह नीचे भी गिर रहा है।रवि धवनhttps://www.blogger.com/profile/04969011339464008866noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-25917861871239681482011-02-12T08:29:46.395-08:002011-02-12T08:29:46.395-08:00होना तो यह चाहिये कि यदि कहीं ऐसी कुप्रथाएं चल भी ...होना तो यह चाहिये कि यदि कहीं ऐसी कुप्रथाएं चल भी रही हों तो इन सीरियलों के माध्यम से उनका मनोरंजक शैली में विरोध दिखाया जावे किन्तु हो यह रहा है कि जहाँ ये सब नहीं चल रहा है वहाँ भी इन्हें बढावा कैसे मिले ये दिखा रहे हैं और TRP बढा रहे हैं । जबकि TRP तो विपरीत दर्शन में भी बढ सकती है चाहे उसका अनुपात कुछ कम हो ।Sushil Bakliwalhttps://www.blogger.com/profile/08655314038738415438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-90432101678197208502011-02-12T08:22:50.843-08:002011-02-12T08:22:50.843-08:00समय की कमी के कारण सिरियल के सन्दर्भ में क्या कहू?...समय की कमी के कारण सिरियल के सन्दर्भ में क्या कहू? मगर ज्यादातर कहानियों में सास-बहू का झगडा या घर में भी राजनीति... गंदकी ही होती हैं | अंधश्रद्धा फ़ैलाने में न्यूज़ चेनल भी पीछे नहीं है |Pankaj Trivedihttps://www.blogger.com/profile/13825761046315674437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-1293255575956712822011-02-12T08:03:05.075-08:002011-02-12T08:03:05.075-08:00बहुत ही उम्दा आलेख.
सलाम.बहुत ही उम्दा आलेख.<br />सलाम.विशालhttps://www.blogger.com/profile/06351646493594437643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-27170221116515296592011-02-12T07:48:08.791-08:002011-02-12T07:48:08.791-08:00आज आर्थिक नफ़े नुक्सान के आधार पर सब कुछ परोसा जात...आज आर्थिक नफ़े नुक्सान के आधार पर सब कुछ परोसा जाता है. चरित्र निर्माण जैसी बातो की अर्थ के आगे क्या महता है? <br /><br />सवाल ये है कि हम मे से ही कोई निर्देशक है कोई निर्माता है पर हम जहां आर्थिक रिस्क देखते हैं वहीं सब कुछ भूल कर भी वही परोसते हैं. कई निर्माता निर्देशकों से बात होती है वो भी यही सब रोना रोते हैं. भगवान जाने ये आर्थिक युग कब तक चलेगा?<br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-88660589264653405782011-02-12T06:24:03.555-08:002011-02-12T06:24:03.555-08:00अच्छा है की मैं सीरिअल्स नहीं देखता कोई सा भी...अच्छा है की मैं सीरिअल्स नहीं देखता कोई सा भी...abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-21548882544317171462011-02-12T05:41:33.694-08:002011-02-12T05:41:33.694-08:00जिस माटी पर घृणा उगती है उसी धूल से ये बवंडर भी बन...जिस माटी पर घृणा उगती है उसी धूल से ये बवंडर भी बनते हैं ! <br />वो धरती अब भी अबोध है ! उसे प्रेमानुभूति / ज्ञान और परिपक्वता की दरकार है !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-45644114538611558732011-02-12T03:50:28.985-08:002011-02-12T03:50:28.985-08:00पोस्ट और उस पर आई टिप्पणियां एकदम राप्चिक हैं। देर...पोस्ट और उस पर आई टिप्पणियां एकदम राप्चिक हैं। देरी से आने का लाभ मिला कि टिप्पणियों के जरिये विमर्श का आनंद दुगुना हो गया। <br /><br /> मैं भी कई बार इन बजरबट्टुओं को देख कुढ़ जाता हूं.....कम्बख्त घर में रहेंगे लेकिन कोट पैंट हमेशा पहने रहेंगे....इन लोगों को गर्मी भी नहीं लगती क्या....हरदम शादी के सूट में ही नजर आते हैं....और महिलायें तो ओफ्फ.....हमेशा रोती ही नजर आएंगी लेकिन गहने एक भी कम नहीं....बल्कि जो पिछले सिरियल में ज्यादा रोती नजर आती है उसके अगली कड़ी में दो चार गहने ज्यादा पहने हुए नजर आती है....जाने कौन सा सत छुपा है इनके आंसुओं में कि गहने और साडियों की वेरायटी कड़ी दर कड़ी बढ़ती चली जाती है :)<br /><br /> मैं ऐसे सिरियल चैनल बदलते वक्त अक्सर मौज लेने के लिये दो चार सेकंड के लिये देखता हूं और उसमें भी बैकग्राउंड में मरघट का म्यूजिक चल रहा होता है....आsss आssss करते हुए....मन करता है कि सालो और कोई धुन नहीं है क्या तुम्हारे पास.....अब तो वो रूदन माहौल वाली रिकार्ड की गई चिप भी चिपचिपाने लगी होगी तुम्हारें आंसुओ की वजह से .....अब तो बंद तो करो।<br /><br /><br /> एक और सिरियल थोड़ा सा देखा है जिसमें वो पुनपुन वाली आती है....पटना स्टाइल बोलने में ऐसा स्टाईल लेकर बोलती है कि देखकर खीझ होती है। <br /><br /> इन सब सिरियल्स का एक पहलू यह भी है कि ऐसे ही सिरियलों की वजह से उत्तर भारत की छवि नकारात्मक बन रही है और नतीजतन राजनीतिक हेट....उपहास वाली बोली ठोली आदि का लोगों को सामना करना पड़ता है।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-91770687791452705392011-02-12T01:15:29.535-08:002011-02-12T01:15:29.535-08:00आपने सही लिखा....
‘सचमुच किसी गाइड लाइंस की जरूरत...आपने सही लिखा....<br /><br />‘सचमुच किसी गाइड लाइंस की जरूरत अब इन टी.वी.सीरियल को जरूर है.’<br /><br />दर्शक यदि नकारने लगें तो भी अंकुश लग सकता है।Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-16356741892552620422011-02-12T01:09:45.212-08:002011-02-12T01:09:45.212-08:00रश्मि प्रभा जी की मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी
...<b>रश्मि प्रभा जी की मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी</b><br /><br /> आपने व्याख्या बहुत ही अच्छी की है रश्मि .... किसी भी नारकीय दृश्य को दिखाना मानसिकता को कुंद करना है , पर आज भी गांवों में, शहरों में ऐसे पाप हो रहे हैं ... और बड़े ही भयानक ढंग से. <br /><br />लोग इतने सारे कर्मकांड करते हैं , पर कभी भी खुद को नहीं देखते .... कुरीतियाँ किसने बनाई , क्यूँ बनाई , अपने बचाव या अपनी इच्छा पूर्ति के लिए . तकलीफें भगवान् नहीं देते , व्यक्ति खुद उसे बनाता है ! हमारे पास तो कलम है , कभी कल्पनाओं को लिखते हैं, कभी आँखों देखा लिखते हैं ,...<br /><br />इंडिया टीवी भी तो यही करता है . <br />कभी भी समाज में आज तक चंडाल नहीं हुआ सिर्फ चुड़ैलें हुईं और उनको पत्थर मारा गया है .... यह भी एक सोचनेवाली बात है !rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-3271084030396782812011-02-12T00:39:16.373-08:002011-02-12T00:39:16.373-08:00@ रश्मी जी
आजकल के सीरियल्स का ना तो साहित्य से को...@ रश्मी जी<br />आजकल के सीरियल्स का ना तो साहित्य से कोई लेना-देना है और ना ही यथार्थ सेसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.com